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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, रामायण/रामकथा
RAMAYANA A COMPARATIVE STUDY OF RAMAKATHAS
-10%English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, रामायण/रामकथाRAMAYANA A COMPARATIVE STUDY OF RAMAKATHAS
The story of Rama has been a part of our lives for ever and will probably continue to be so…. But most of us are unaware that the story has as many variations as there are versions. In the author’s own words Valmiki’s Ramayana has taken several ‘incarnations’ due to the efforts of many great writers who wanted to bring the story to their own people in their own language. In his book, Professor AA Manavalan, an eminent scholar in the field of comparative literature, has painstakingly made an intensive and analytical study of the Rama story in 48 languages including the folk tradition. Professor Manavalan’s main focus is on how the receiving language’s rendering could make a greater impact than the original in the popular imagination of the people. Ramayana – A Comparative Study of Ramakathas, an English rendition of Ramakaathaiyum Ramayanangalum, presented by CT Indra and Prema Jagannathan, captures the thematic purpose of Prof AA Manavalan’s Tamil original and creates a forum ‘to discuss whether Ramayana is an ethical text or an ideological text’.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, रामायण/रामकथा
Ramayana Ki Kahaniyan- Harish Sharma
‘रामायण’ भारतीय पौराणिक ग्रंथों में सबसे पूज्य एवं जन-जन तक पहुँच रखनेवाला ग्रंथ है। रामकथा की पावन गंगा सदियों से हिंदू जन-मानस में प्रवाहित होती रही है। भारत ही नहीं, संसार भर में बसनेवाले हिंदू रामायण के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं।
रामकथा का प्रसार और प्रभाव इतना व्यापक है कि इससे संबंधित कथाओं-उपकथाओं की चर्चा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। रामकथा इतनी रसात्मक है कि बार-बार सुनने-जानने को मन सदैव उत्सुक रहता है।
विद्वान् लेखक ने पुस्तक को इस उद्देश्य के साथ लिखा है कि हमारी नई पीढ़ी भारतीय संस्कार, आदर्श एवं जीवन-मूल्यों को आत्मसात् कर सके। इन कहानियों में पर्वतों, नदियों, नगरों, योद्धाओं के पराक्रम, शस्त्रास्त्रों एवं दिव्यास्त्रों, मायावी युद्धों के साथ-साथ ऋषियों, महर्षियों एवं राजर्षियों के पावन चरित्रों का वर्णन अत्यंत सरल भाषा में किया गया है।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर इसके आदर्शों, सदाचारों एवं सद्गुणों का अपने जीवन में अनुकरण-अनुसरण करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, Rajkamal Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Ramkatha : Father Kamil Bulke
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, Rajkamal Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथाRamkatha : Father Kamil Bulke
सुयोग्य लेखक ने इस ग्रन्थ की तैयारी में कितना परिश्रम किया है, यह पुस्तक के अध्ययन से ही समझ में आ सकता है। रामकथा से सम्बन्ध रखनेवाली किसी भी सामग्री को आपने छोड़ा नहीं है। ग्रन्थ चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा सम्बन्धी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का सम्बन्ध ‘रामकथा की उत्पत्ति’ से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ-जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारम्भिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रन्थ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले, दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जानेवाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाए जानेवाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अन्तिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक्-पृथक् विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ काण्ड-क्रम से ली गई हैं अत: यह भाग सात काण्डों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता, प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Ramkatha Aaram
‘जातस्य हि धु्रवोर्मृत्यु ध्रुवजन्म मृतस्य च’, अर्थात् जिसकी मृत्यु निश्चित है, उस मृतक का जन्म भी निश्चित है। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार व चिंतक-विचारक डॉ. विवेकी राय इस विधान से बाहर कैसे रह सकते थे।
उनके सृजन-संसार का विपुल भंडार साहित्य-जगत् को उपलब्ध है। हालाँकि उनके रचना-कर्म की अमूल्य गठरी में अभी बहुत कुछ है, जिसे लोकमानस तक पहुँचाया जाना शेष है। उसकी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है बाबूजी की शुचिता और संबंधों के बीच रचना विधान का लोकसृजन करती यह कृति ‘रामकथा आराम’। उनकी यह धरोहर पाठक तक पहुँचे, जिससे साहित्य की विपुल संपदा को और समृद्धि मिले।
सोलह रचनाशिल्पियों की विधागत दक्षता को पन्नों पर उकेरती यह कृति न सिर्फ ऋषि-परंपरा की साहित्यिक विपुलता को आम पाठक वर्ग तक संप्रेषित करेगी बल्कि विविध विधाओं में रचे विधान को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर एक नई दृष्टि का सूत्रपात करेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, रामायण/रामकथा
Ramkatha Ke naye Aayam
हिंदी में रामकथा पर बहुत कुछ काम हुआ है। इसमें सर्वाधिक विस्तृत संपूर्ण सर्वेक्षण फादर कामिल बुल्के (रामकथा) का है। रामचरितमानस और आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित रामचरितों का तुलनात्मक अध्ययन कई विद्वानों ने किया है। अभी तक गुजराती, मराठी, बँगला, तेलुगु एवं तमिल आदि भाषाओं के प्रमुख रामचरित काव्यों और उनमें उपलब्ध रामकथा का तुलसी के मानस के साथ तुलनात्मक अध्ययन हो चुका है। परंतु बलरामदास की दांडी रामायण और मानस की रामकथा का तुलनात्मक अध्ययन कम ही हुआ है।
प्रसिद्ध समालोचक एवं अनुवादक डॉ. शंकरलाल पुरोहित ने बलरामदास के राम-संबंधी दृष्टिकोण के मूल में जगन्नाथ और तुलसी के राम-संबंधी दर्शन के मूल में ब्रह्म की बात को ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी है।
रामकथा जहाँ भी, जिस रूप में भी कही गई है, उसके मूल में भक्तिधारा रही है। तुलसी और बलराम की रामकथा-धारा में अवगाहन कर हम इसी निष्कर्ष पर पहँुचते हैं और यह भक्तिधारा मानव मंगल तथा जनकल्याण के लिए एक विराट् फलक पर उत्कीर्ण हुई है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Ramkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRamkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
स्वामी राम कृष्ण परमहंस एक महान संत, समाज-सुधारक और हिंदू धर्म के प्रणेता थे। उनका मानना था कि यदि मनुष्य के हृदय में सच्ची श्रद्धा और लगन जग जाए तो ईश्वर का साक्षात्कार कतई मुश्किल नहीं है। वे कहते कि ईश्वर एक ही है, मनुष्यों ने उस तक पहुँचने के मार्ग अलग-अलग बना लिये हैं। वे स्वयं माँ काली के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं की आराधना में व्यतीत किया। उन्होंने हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा का कार्य अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि युवा नरेंद्र के रूप में हिंदुत्व की प्रतिष्ठा को विश्वमंच पर प्रस्थापित करने का पुरुषार्थ कर दिखाया। वे स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु उन्होंने विश्व को विवेकानंद जैसा सार्वकालिक धर्म-प्रवर्तक दिया। परमहंस के जीवन काल में ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। फलस्वरूप मैक्समूलर और रोम्याँ रोलाँ जैसे सुप्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वानों ने उनकी जीवनी लिखकर अपने को धन्य माना।
इस पुस्तक में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़े रोचक एवं प्रेरक प्रसंगों का संकलन किया गया है। इसकी सामग्री रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद पर उपलब्ध साहित्य से प्राप्त की गई। यह पुस्तक स्वामीजी के जीवन को समझने की दिशा में एक विनम्र प्रयास है। आशा है, हमारे प्रबुद्ध पाठक इस पुस्तक को पढ़कर स्वामीजी के जीवन और जीवन-दर्शन को समझ पाएँगे।
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Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Rang Parampara
अत्यन्त समृद्ध नाट्य-परंपरा और सक्रिय आधुनिक नाट्य स्थिति के बावजूद न सिर्फ़ हिन्दी बल्कि भारत की किसी भी भाषा में समकक्ष रंगालोचना विकसित नहीं हो पायी है। नये रंगविचार की रोशनी में अपनी रंग परम्परा को खोजने और उसके पुनराविष्कार के अनेक प्रयत्न रंगमंच पर हुए हैं और उन्हें अपनी परम्परा में अवस्थित कर आलोचनात्मक दृष्टि से समझने की कोशिश कम ही हो पायी है। वरिष्ठ साहित्यकार नेमिचन्द्र जैन पिछली लगभग अर्द्धशती से हिन्दी और समूचे भारतीय रंगमंच के सजग और प्रबुद्ध दर्शक और समीक्षक रहे हैं। हिन्दी में तो उन्हें रंग समीक्षा का स्थपति ही माना जाता है। उनमें परम्परा, उसके पुनराविष्कार और उसके रंगविस्तार की गहरी समझ और उसकी बुनियादी उलझनों की सच्ची पकड़ है। उन्होंने आलोचना की एक रंगभाषा खोजी और स्थापित की है। उसी रंगभाषा और उसमें समाहित एक गतिशील और आधुनिक रंगदृष्टि से उन्होंने हमारी रंग परम्परा का गहन विश्लेषण किया है। दृष्टि का ऐसा खुलापन, समझ का ऐसा चौकन्ना सयानापन और समग्रता का ऐसा आग्रह हिन्दी में ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है। अगर पिछले पचास वर्ष के भारतीय रंगमंच को, उसकी बेचैनी और जिजीविषा को, उसकी सीमाओं और सम्भावनाओं को, उसकी शक्ति और विफलता को समझना हो तो यह पुस्तक एक अनिवार्य सन्दर्भ है। सबके लिए, फिर वह दर्शक हो, या रंगकर्मी, नाटककार या समीक्षक।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rangbhoomi
रंगभूमि प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों में है। इसकी रचना महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर की गई थी। ‘रंगभूमि’ का नायक सूरदास न्याय के लिए आजीवन संघर्ष करता है, फिर भी उसके मन में किसी के प्रति कटुता नहीं है। यह उपन्यास भारत में औद्योगिक संस्कृति की शुरुआत के दौरान साधारण जन की कठिनाइयों का बेबाक चित्रण करता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rani Durgavati
कैसा विचित्र समय था? जब हिंदू राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बारे में विचार करना ही त्याग दिया था। वे सीधे शरणागत हो रहे थे। रानी दुर्गावती की दृढ़ता, शासन करने की शैली तथा प्रजा-रंजन बादशाह अकबर को भी चिढ़ाता था। एक विधवा रानी का सुयोग्य शासन उसे खटक रहा था। अकबर ने संदेश भेजा—रानी, पिंजरे में कैद हो जाओ, तभी सुरक्षित रहोगी और वह पिंजरा होगा, मुगल बादशाह अकबर का। सोने का ही सही, पर पिंजरा तो पिंजरा होता है। गुलामी तो गुलामी होती है। कितना निकृष्ट संदेश रहा होगा? रानी दुर्गावती ने इस संदेश के उत्तर में अकबर को उसकी औकात बता दी। रानी संस्कृति की पूजक थीं, ‘गीता’ रानी का प्रिय ग्रंथ था। वह पंडितों से नियमित गीता प्रवचन सुनती थीं। रानी जीना भी जानती थीं और मृत्यु का वरण करना भी। उन्हें पुनर्जन्म पर भी विश्वास था। वह देशाभिमान भी जानती थीं और युद्ध के मैदान में रणचंडी बनना भी। ऐसी मनस्विनी रानी अकबर की नौकरानी कैसे बन सकती थीं?
दुर्गावती की गाथा गोंडवाना की लोककथाओं में जीवित है, उन्हें जन-जन पूजता है। महारानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र को अनेक लेखकों ने लिखा है। दुर्गावती के बलिदान स्थल से जन्म स्थल तक अनेक अभिलेख, आलेख तथा पुरातत्त्व के अवशेष मिल जाते हैं। दुर्गावती शोध संस्थान, जबलपुर ने रानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र और उनके रेखांकित स्थलों पर अनुसंधान भी किया है। दुर्गावती का जीवनवृत्त सुना, समझा और पढ़ा जा रहा है।
देशाभिमानी, निर्भीक, साहसी क्षत्राणी और विदुषी रानी दुर्गावती का प्रामाणिक जीवन-चरित है यह उपन्यास।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rashtra Gaurav Samrat Hemchandra ‘Vikramaditya’
हिंदू सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। वैश्य परिवार में जनमे हेमू ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं व जीतीं। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हेमू ने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से राजा विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की।
इस पुस्तक में हेमू के व्यक्तित्व के यथार्थपरक चित्रण हेतु बिहार के सासाराम क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों व भगवत मुदित द्वारा रचित रसिक अनन्यमाल व राजस्थान से मिले कुछ तथ्यों को भी आधार बनाया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि हेमू एक कुशल संगठक, जनप्रिय नेता, श्रेष्ठ घुड़सवार, तलवारबाज तथा तुलगमा सैनिकों की भाँति घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे ही धनुष से बाणों का संधान करनेवाले एक महान् योद्धा व सेनानायक थे।
उन्होंने लगभग 350 वर्षों की दासता के बाद दिल्ली में पुनः हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन भारत के भाग्य को यह स्वीकार न था। अतः पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने जीती बाजी को पराजय में परिवर्तित कर दिया। फिर भी हेमू का स्वाभिमान, देशभक्ति, अपूर्व साहस और बलिदान हम सभी राष्ट्रप्रेमियों के लिए सदैव प्रेरणा का अथाह स्रोत बना रहेगा।
भारत के गौरव सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य की प्रेरणाप्रद जीवनी, जो नई पीढ़ी को उनके पराक्रम और शूरवीरता से परिचित करवाएगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Rashtriya Itihas Mein Rathore
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Rashtriya Itihas Mein Rathore
राष्ट्रीय इतिहास में राठौड़
जंग जीत्या केई जबर, ज्यांरी हुवे न किणसूं हौड़।
भागा न कोई भिड़ंत में, जीणसूं रणबंका राठौड़।।
कवि की इन पंक्तियों से राठौड़ों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के ऐतिहासिक महत्व का सहज रूप से ही अनुमान लगाया जा सकता है। शौर्य व बल प्रताप के धनी राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्व के बहुआयामी अध्ययन हेतु महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र की ओर से 24वीं राष्ट्रीय संगोष्ठी 6-7 अक्टूबर 2018 को आयोजित की गई थी। Rashtriya Itihas Mein Rathoreयह राष्ट्रीय संगोष्ठी महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई जिसका विषय “राठौड़ शासकों का भारतीय इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व” है। so इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य मारवाड़ के राठौड़ शासकों का भारत के राष्ट्रीय इतिहास में जो ऐतिहासिक महत्व एवं योगदान है उसे अधिकाधिक प्रकाश में लाना है। surely राठौड़ शासकों का राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक इतिहास में तो महत्त्वपूर्ण स्थान रहा ही, साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है, जिन पर अभी तक विस्तृत रूप से अध्ययन का अभाव है।
Rashtriya Itihas Mein Rathore
also ऐसे क्षेत्र है – सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासनिक, आर्थिक, कला, साहित्य, स्थापत्य, जन कल्याणकारी कार्य, जल प्रबंधन व्यवस्था, पर्यावरण, व्यापार वाणिज्य, उद्योग धंधे, कृषि, भूमि सुधार, अकाल, सिंचाई की व्यवस्थाएँ इत्यादि अनेकोनक विषय है जिन पर अधिकाधिक शोध की आवश्यकता है। अतः इन विषयों पर शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर उन्हें इतिहास जगत के पटल पर रखकर राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्त्व को उजागर करना ही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।
देश के ख्याति प्राप्त इतिहासज्ञों, विद्वानों व शोधार्थियों ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने शोधपरक पत्रों का वाचन कर भारतीय इतिहास में राठौड़ शासकों के सर्वांगीण ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। all in all इस विषय विशेष से संबंधित महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों की प्रस्तुति से अनेक नवीन जानकारियाँ इतिहास में दर्ज हुई जो हमारे आने वाले इतिहास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rashtriya Swayamsevak Sangh : Swarnim Bharat Ke Disha-Sootra
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रRashtriya Swayamsevak Sangh : Swarnim Bharat Ke Disha-Sootra
यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घ-यात्रा पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, फिर भी संघ सदैव ही सुर्खियों में रहता है। हाल के दिनों में संघ के कामकाज को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है, क्योंकि एक ओर इन दिनों में बहुत से स्वयंसेवक सरकार में शीर्ष पदों पर पहुँचे हैं, वहीं दूसरी ओर संघ के हिंदू-राष्ट्र और एकात्मता के मूल विचार अब हमारे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र की मुख्यधारा बन गए हैं। भारत के लिए संघ का दृष्टिकोण क्या है? यदि भारत एक हिंदू-राष्ट्र बन जाता है, तो इसमें मुसलमानों और अन्य धर्मों का क्या स्थान होगा? इतिहास-लेखन की संघ की परियोजना कितनी बड़ी है? क्या हिंदुत्व जाति की राजनीति को खत्म कर देगा? परिवार की बदलती प्रकृति और विभिन्न सामाजिक अधिकारों पसंघ का क्या दृष्टिकोण है? संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकरजी ने इस पुस्तक में इन सवालों का विश्लेषण किया है। आंबेकरजी को तथ्यों की गहरी समझ है, इसी कारण से वे विचार की स्पष्टता और उसके विस्तार, दोनों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हुए हैं। एक स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने शाखा पद्धति में कार्य किया है और उसे अपने जीवन में जिया है, उसी के आधार पर संघ की आंतरिक कार्य-प्रणाली, निर्णय-प्रक्रिया और समन्वयक-दृष्टि पर गहराई से दृष्टिपात किया है। वास्तविक जीवन के अनुभवों से भरपूर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ उन सभी के लिए एक पठनीय पुस्तक है, जो संघ-शक्ति की कार्यप्रणाली और इसकी भविष्य की योजनाओं को समझने के इच्छुक हैं।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rathore Rajvansh ke Riti-Riwaz
राठौड़़ राजवंश के रीति-रिवाज : ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की संस्कृति न केवल प्राचीन है, अपितु शोध जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भी है। जोधपुर राजवंश अनेक ऐतिहासिक कालचक्रों का साक्षी रहा है। शोथ के लिए सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर राजघराने के नीति-रिवाज एवं परम्पराओं का अध्ययन अत्यधिक रुचिकर एव जिज्ञासापूर्ण है। यहाँ सतत् रूप से राजवंश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का विकास होता रहा है।
यह पुस्तक जयनारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर द्वारा सन् 1993 में स्वीकृत शोथ प्रबन्ध जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों का सामजिक एवं आर्थिक अध्ययन (1600-1850ई.) का आशिक संशोधित संस्करण है। इस ग्रन्थ में जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों विशेषकर राजपरिवार एवं जनाना ड्योढ़ी के नियम-कायदों, धार्मिक परम्पराओं, प्रमुख संस्कारों, राजदरबार के समसामयिक आयोजनों, शिष्टाचारों एवं विशिष्ट उत्सवों से संबंधित सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत को ही इंगित करता है।
शोध की दिशा में विषय सर्वथा नवीन एवं मौलिक रहा है। विषय सामग्री का चयन विभिन्न शोध संस्थाओं में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों, अप्रकाशित ख्यातों, बहियों, वंशावलियों आदि में से किया गया है। सम्पादित पुस्तक मध्यकालीन राजस्थान के राजवंशों में रुचि रखने वाले शोधोत्सुक अध्ययनार्थियों, इतिहासवेत्ताओं एवं कला संस्कृतिविज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं संगृहणीय सिद्ध हो सकेगी।SKU: n/a