Nonfiction Books
Showing 1345–1368 of 1463 results
-
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Uttarakhand Ki Sant Parampara
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांUttarakhand Ki Sant Parampara
अनुक्रमणिका : 1. साधकों का सिद्ध क्षेत्र—उत्तराखण्ड 2. साधु-सन्त और महात्मा (सन्त पुरुषों का अवतरण क्योंं होता है?) 3. सन्तोंं की पहचान 4. सन्त सुधा 5. भक्ति व भाव 6. सन्त महिमा 7. उत्तराखण्ड की सन्त विभूतियाँ 8. जगद्गुरु शंकराचार्य (684-716 ई०) 9. कूर्मांचल की विभूति—सोमबारी महाराज 10. परम पूज्य श्री सोमबारी महाराज 11. हैडिय़ाखान महाराज— साहब सदाशिव 12. कूर्मांचल से अन्तर्धान 13. श्री हैडिय़ाखान बाबा एवं सोमबारी महाराज 14. खाकी बाबा 15. योगी श्यामाचरण लाहिड़ी की आत्मकथा 16. स्वामी विवेकानन्द (1863-1902 ई०) 17.श्री श्री 1008 बनखण्डी महाराज (बुद्धिगिरि जी महाराज) 18. उत्तरकाशी में सन्त समागम 19. स्वामी कृष्णानन्द जी महाराज 20. अवधूत रामानन्द जी महाराज 21. स्वामी रामतीर्थ की टिहरी-गढ़वाल की यात्राएँ 22. श्री 1008 बाबा काली कमली वाला (स्वामी विशुद्धानन्द जी महाराज) 23. श्री रौखडिय़ा बाबा 24. श्री नारायण स्वामी 25. परमहंस स्वामी श्री शिवानन्द जी महाराज 26. श्री बाल-ब्रह्मïचारी जी महाराज 27. महाराज के अनन्य भक्त—भवानीदास साह कुमय्याँ 28. माँ आनन्दमयी 29. बाबा श्री सीतारामदास ओंकारनाथ (1892-1982 ई०) 30. हनुमान के परमभक्त नीब करौरी वाले बाबा 31. संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द 32. स्वामी चिन्मयानन्द जी 33. महर्षि महेश योगी (1921 ई०) 34. सिद्ध योगी स्वामी राय (1925 ई०)
SKU: n/a -
-
English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Varna Jati Caste
-12%English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Varna Jati Caste
Caste is being used as a major weapon to shame Hindus. This crisp and easy primer presents a powerful counter to Western Universalism’s harsh attacks on caste. It is a long over-due toolkit to help all open-minded people gain an understanding of the subtleties of Hinduism’s complex social order. This social structure has, after all, produced a civilization with unparalleled diversity. The Vedic worldview along with the historical journey of Varna and Jati demolishes the prevailing myths about caste.
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, पाठ्य-पुस्तक
Vastu Vidya
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, पाठ्य-पुस्तकVastu Vidya
‘अनंत शयन संस्कृत ग्रंथावली’ के तीसवाँ (३०) अंक का प्रसिद्ध ‘वास्तु विद्या’ का यह द्वितीय संस्करण है। यह ११०६वें वर्ष (कोलंबाब्द) में आरम्मुळ वासुदेव मूस महाशय से प्राप्त वास्तु विद्या का केरल भाषा में लिखित व्याख्या के आधार पर, इसी ग्रंथालय में तात्कालिक अध्यक्ष, श्री महादेव शास्त्री के द्वारा प्रस्तुत लघु विवृत्ति नाम के व्याख्यान को अर्थ स्पष्टीकरण के लिए संयोजित किया है। वास्तु संबंधी ज्ञान इस ग्रंथ से प्राप्त हो, अतः इसका ‘वास्तु विद्या’, संज्ञा करण समुचित लगता है।
और यह ‘साधन कथन’ से आरंभ होकर, ‘मृल्लोष्ट विधान’ तक सोलह अध्यायों में सगुंफित है। ग्रंथ के सोलहवें अध्याय के अंत में, समाप्ति प्रकटन का कोई दूसरा वाक्य उपलब्ध नहीं है। ‘इति वास्तु विद्या समाप्त’, ऐसा दृश्यमान होने पर भी—
“दारुस्वीकरणं वक्ष्ये निधिगेहस्य लक्षणे।”
(अध्याय १३)
अर्थात् निधि गेह के लक्षण में दारु ग्रहण (लकड़ी का चयन) करना बताऊँगा।
इस प्रकार ग्रंथकर्ता के ‘दारुस्वीकरण’ आदि स्वयं की वचनबद्धता से बोध के अभाव से (अज्ञानता या भ्रम के कारण) लेखक के द्वारा (‘इति वास्तु विद्या समाप्त’ ऐसा) लिखित होना संभावित होता है।
SKU: n/a -
Aryan Books International, English Books, Suggested Books, इतिहास
Vasudeva Krishna and Mathura
This work examines the antiquity of image worship in India. Its main focus is the Bhagavata religion that evolved around Vasudeva Krishna of the Vrishni clan. The earliest literary reference to Vasudeva was by the grammarian Panini (6th century bce), and the earliest surviving epigraphic reference was the Heliodorus pillar inscription (2nd century bce). At Mathura, several noteworthy archaeological finds dated to the early Common Era were recovered from the site of Katra Keshavadeva.
In the medieval period, Katra Keshavadeva was subjected to repeated devastation, beginning with that by Mahmud Ghaznavi in 1071 ce. However, within a century a temple dedicated to Vishnu was built at Katra Keshavadeva. Thereafter, the story of destruction followed by construction was repeated over and over again.
In the early 17th century, the Keshavadeva temple was rebuilt by Bir Singh Deo Bundela. In 1670, the Mughal emperor, Aurangzeb ordered its destruction. An Idgah was built at the site.
Later developments at Katra Keshavadeva were recorded in the judicial records of colonial India. In 1815, Katra Keshavadeva was sold by auction to Raja Patnimal of Banaras, as was duly recorded in revenue and municipal records.
On 8th February 1944, the heirs of Raja Patnimal sold Katra Keshavadeva to Seth Jugal Kishore Birla, who created a trust for the construction of a temple for Shree Krishna. In a surprising development, on 12th October 1968, approximately two bighas of Katra Keshavadeva were handed over to Trust Masjid Idgah.
Many documents pertaining to events at Katra Keshavadeva after 1815 are perhaps being presented to the general reader for the first time. The documents attest to the dogged Hindu commitment to the site.
SKU: n/a -
English Books, Garuda Prakashan, इतिहास
Vasudhaiv Kutumbakam
Vasudhaiv Kutumbakam, the world is one family, is the compilation of the poems composed by India’s leading light of academics Prof Pritam B Sharma, an eminent academician, innovator, and an institution builder who during his 51 years long professional career has traversed the world of learning in science and technology and has connected himself with sensitivity to society and the humanity.
Beginning with the spiritual power of Mother India and its age old Himalayan Spirit of oneness of humanity, Prof Sharma expresses his mind to capture the realms of life, that covers his profound appreciation of countries and places he visited. The poems that flow from the heart of Prof Sharma, invoke the Himalayan Spirit of Vasudhaiv Kutumbakam that nurtures goodness and showers its divine bliss on the entire humanity. It is this Himalayan spirit that celebrates the ‘Diversity of Oneness’ and at the same time invokes a sense of ‘Oneness of Diversity’. The poems are a read must for all those who live to make this world a place to live in harmony and peaceful coexistence.
SKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Ve andhere din
‘अंधेरे वे दिन….’ तसलीमा के उन अँधेरे दिनों की कथा बयान करते हैं जब उन्हें दीर्घ दो महीने, घुप्प अँधियारे में आत्मगोपन करके रहना पड़ा, वह भी अपने देश में। यह उपन्यास मूलतः तथ्यपरक हैं। बांग्लादेश में प्रकाशित ‘आजकेर कागज’ ‘भोरेर कागज’ ‘इत्तफाक’ संवाद’ ‘बांग्ला बाजार’ ‘इन्क़लाब’ ‘दिनकाल’ ‘संग्राम’ वगैरह दैनिक अखबारों से उन दिनों की ख़बरों से ली गई हैं।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Ve Pandrah Din(PB)
उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था! उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो” ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र’ उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी’ हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।
कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं ! जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।
फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में।
स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Vedant: Bhavishya Ka Dharma
“उनतालीस वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, रचनाधर्मी लेखक और करुणा से ओतप्रोत मानवताप्रेमी भी थे।
अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, “नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से ।”
और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी प्रमुख प्रेरणास्नोत बने ।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वेदांत भविष्य का धर्म’ में स्वामीजी ने भारतीय अध्यात्म के दो आधारभूत ग्रंथों ‘रामायण’ और “महाभारत’ के माध्यम से भारत के समाज का आध्यात्मिक, सामाजिक और मानसिक दृश्य खींचा है, जो भारतीय जनमानस के भावों का दिग्दर्शन कराता है।”
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vedic Vangmay ka Itihas Set of 3
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVedic Vangmay ka Itihas Set of 3
वैदिक वाड्मय का इतिहास 3 खण्ड में प्रकाषित किया गया है।
इसके प्रथम खण्ड में मुख्यतः वैदिक शाखाओं पर विचार किया गया है। विद्वान लेखक ने भाषा शास्त्र तथा भारत के प्राचीन इतिहास विषयक अपने मौलिक चिन्तन का सार भी प्रस्तुत किया है। पं. भगवद्दत्त जी की धारणाऐं और उपपत्तियां विद्वत् संसार में हड़कम्प मचा देने वाली थीं।
इसके द्वितीय खण्ड में लेखक ने ब्राहाण और आरण्यक साहित्य का विचार किया। उपलब्ध और अनुपलब्ध ब्राहाणों के विवरण के पष्चात् इन ग्रन्थों पर लिखे गये भाष्यों और भाष्यकारों की पूरी जानकारी दी गई है।
इस ग्रन्थ के तीसरे खण्ड में अनेक ऐसे भाष्यकारों की चर्चा हुई है जिनके अस्तित्व की जानकारी भी लोगों को नहीं थी।
SKU: n/a -
-
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Veer Kunwar Singh Ki PremKatha
इस पुस्तक की रचना का मूल मकसद रणबाँकुरे वीर कुँवर सिंह जी के कृतित्व को आम जनमानस तक पहुँचाना है। जाति-धर्म से परे होकर बाबू साहब ने जिस प्रकार सबके साथ आत्मीयता निभाई, उसको दिग्दर्शित करते हुए इस पुस्तक की रचना की गई है। उपलब्ध तथ्यों, लोककथाओं, लोकगीतों सहित अनेक माध्यमों को आधार बनाकर यह पुस्तक तैयार की गई है। बाबू साहब की देशभक्ति के साथ-साथ प्रजा के प्रति उनके अगाध स्नेह, प्रेम और दायित्व को केंद्रित कर इसकी रचना की गई है। इस पुस्तक को पढ़ने में पाठकों की रुचि बनी रहे, इसलिए कथानकों को संवाद के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। इसे संगृहीत अंशों का एक संकलन भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के साथ-साथ फिक्शन स्टोरी भी कही जा सकती है।
SKU: n/a