इतिहास
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Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
On Hinduism: Reviews and Reflections
There are two major groups of religions in the world today. First are the conversion-based monotheistic creeds of Christianity and Islam. Second are the pluralistic dharmic traditions of India, of which Hinduism is the oldest and the largest. Chinese Taoism and Japanese Shinto have an affinity with dharmic traditions. So also the indigenous religious traditions of pre-Christian Europeans, pre-Islamic West Asians, Native Americans, Africans, Australians, and Pacific Islanders which are re-awakening, particularly in Europe and the Americas and Africa. As the world has now moved out of colonial domination by monotheistic creeds, a new respect for dharmic traditions is arising everywhere. At the same time, dharmic traditions are beginning to speak against the missionary aggression of Christianity and Islam. But the missionary aggression continues unabated. In fact, aggression has become more determined and mobilized larger resources in money as well as manpower than ever before. It is this scenario that makes the work of Ram Swarup (1920-1998) so significant. He has understood the current world situation, the dangers to Hinduism, the value of Hinduism for the future of humanity, and a practical way to both overcome the dangers and promote opportunities for the good of all. He outlines a Hindu approach to the problems of the world that offers deep and lasting solutions that go beyond the limitations of Western religions or Western science, following the development of consciousness as the real thrust in civilization.
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Operation Blue Star Ka Sach (PB)
ऑपरेशन ब्लू स्टार संसार की अत्यंत विवादग्रस्त एवं चर्चा का ज्वलंत विषय बननेवाली सैन्य काररवाइयों में से एक है, जो निश्चित ही समकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ समझी जाएगी।
यह पुस्तक उस सैन्यअधिकारी की ओर से प्रस्तुत किया गया विवरण है, जिसने इस काररवाई का नेतृत्व किया था। इसमें दिल को छूनेवाले, मर्मांतक, छोटे-छोटे अनेक सूक्ष्म विवरण पेश किए गए हैं। इस पुस्तक में कुछ भी छिपाया नहीं गया है, न उन नाकामयाबियों के बारे में, जिनका सेना को मुँह देखना पड़ा; न सेना की कमियों को; न उन अतिवादियों की शिद्दत तथा दृढता, जिन्हें बाहर निकालने का काम सेना को सौंपा गया था।
अनेक काल्पनिक कहानियों, आलोचनाओं तथा अर्ध-सच्चाइयों का जोरदार खंडन करते हुए इसमें हिम्मत से बहुत सारे ऐसे सवालों के जवाब दिए गए हैं, जो सिर्फ सिखों को ही नहीं, सारे भारतीयों को परेशान करते हैं।
लेखक—जो काररवाई को योजनाबद्ध करने तथा इसे व्यावहारिक रूप देने के प्रत्येक पड़ाव पर इसमें शामिल रहा—शायद यही एक ऐसा व्यक्ति है, जो सचमुच यह जानता है कि 5 जून, 1984 की अनहोनी भरी रात को ठीक-ठीक क्या घटा। यही इस पुस्तक में वर्णित है। संपूर्ण सच, सच्चाई के अलावा और कुछ भी नहीं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Operation Khatma (PB)
सन् 1990 के दशक में जम्मू और कश्मीर में ‘आजादी’ और ‘जेहादी’ तत्वों के बीच प्रधानता की लड़ाई चल रही थी, जिसमें आम नागरिक झुलस रहा था। ‘आजादी’ समर्थक जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) को ‘जेहादी’ हिजबुल मुजाहिदीन (एच.एम.) से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। दोनों आतंकी संगठन पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली थे। जे.के.एल.एफ. और एच.एम. की प्रतिस्पर्धा में सनसनीखेज मोड़ तब आया जब जे.के.एल.एफ. ने 1996 में श्रीनगर स्थित पाक हजरत बल दरगाह पर कब्ज़ा कर लिया। राज्य सरकार आतंकवादियों से लगातार मुँह की खा रही थी, पर इस बार उसने उन्हें आड़े हाथों लेने का फैसला किया। जम्मू और कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने पहली बार आतंकियों को खत्म करने का बीड़ा उठाया। आतंकी पाक दरगाह में थे, इसलिए ऑपरेशन बेहद संवेदनशील था। कैसे हुई यह सर्जिकल स्ट्राइक? कैसे आतंकवाद की कमर तोड़ी गई, जिससे कश्मीर में दस साल बाद संसद् और विधानसभा के चुनाव हो पाए। ‘ऑपरेशन खात्मा’ आतंकवाद पर लिखा ग्राफिक फर्स्ट हैंड थ्रिलर है, जो एक साहसिक कदम से परिचित कराता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Operation Yoddha (PB)
अर्जुन एक होनहार लड़का है, जो सेना में जाने के सपने देखता है। लेकिन आई.आई.टी. प्रवेश परीक्षा में अचानक ही मिली सफलता उसे दुविधा में डाल देती है। हमेशा साथ निभानेवाला उसका परिवार उसे इस उलझन से निकालता है और उसके सपनों को पूरा करने में मदद करता है।
नेशनल डिफेंस एकेडमी में उसकी दोस्ती तीन अन्य प्रशिक्षुओं से होती है और ये दोस्ती जीवन भर के लिए हो जाती है। आखिरकार, उसे भारतीय सेना की सबसे गुप्त और घातक टीम ‘टीम-ए’ का हिस्सा बनने का मौका दिया जाता है।
अर्जुन अपना जीवन देश के प्रति समर्पित कर देता है और कई प्राणघातक अभियानों को पूरा करता है। लेकिन एक खतरनाक आतंकवादी हमला अर्जुन को उन सारी बातों पर सवाल करने के लिए मजबूर कर देता है, जिन्हें उसने सीखा और जिन्हें वह पसंद करता था। अपने देशवासियों के कदमों से उसे घोर निराशा होती है और वह अपना वतन छोड़ने का फैसला करता है।
लेकिन इससे पहले कि वह अपना सामान बाँधता और देश को अलविदा कहता, 200 से अधिक यात्रियों वाले एक विमान को एक अज्ञात गिरोह हाईजैक कर लेता है। सिर्फ वही उन्हें बचा सकता है। पर क्या कड़वाहट से भर चुका अर्जुन अपनी और अपनी टीम के लोगों की जान एक बार फिर जोखिम में डालेगा?
भारतीय सेना के जाँबाज वीरों के पराक्रम, समर्पण और राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत प्रेरणाप्रद पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
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Over The Top (PB)
Over The Top “ओवर द टॉप” : OTT ka Mayajaal Book in Hindi – Anant Vijay
ओवर द टॉप (ओ.टी.टी.) प्लेटफॉर्म हमारे देश के लिए मनोरंजन का अपेक्षाकृत नया माध्यम है। इस माध्यम को हमारे देश में आरंभ हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। देश में इंटरनेट का बढ़ता घनत्व और डाटा सस्ता होने के कारण इस प्लेटफॉर्म की व्याप्ति बढ़ी है। कोरोना महामारी के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन ने भी इस माध्यम को लोकप्रिय बनाया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों और ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म के प्रतिनिधियों के बीच ओ.टी.टी. के कंटेंट को लेकर विचारों का आदान-प्रदान होता रहा है। ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जानेवाली सामग्री के विनियमन को लेकर जो त्रिस्तरीय व्यवस्था बनाई गई थी, उसके परिणाम संतोषजनक नहीं दिखाई दे रहे हैं। न तो अश्लीलता रुक रही है और न ही विवादित प्रसंग।
ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जानेवाली सामग्री में गालियों की भरमार, यौनिकता और नग्नता का प्रदर्शन, जबरदस्त हिंसा और खून- खराबा, अल्पसंख्यकों की स्तिथि को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ, कई बार सैनिकों की छवि खराब करने जैसे प्रसंग भी सामने आते रहे हैं।
अभिव्यक्त की रचनात्मक स्वतंत्रता और यथार्थ की आड़ में नग्नता एवं गाली-गलौज दिखाने का चलन कम नहीं हुआ। संसदीय समिति ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर दिखाई जानेवाली अश्लीलता पर चिंता प्रकट की थी। समिति के अधिकांश सदस्यों का मानना था कि इनमें दिखाई जानेवाली सामग्री भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है।
ओ.टी.टी. के सभी पक्षों पर विश्लेषणात्मक विवरण देती विचारप्रधान पुस्तक।
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Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
लेखक – डॉ. बी. आर. आंबेड़कर
आजकल भारत में मुख्य मुद्दा सवर्ण-दलित का है। इसमें कुछ बामसेफी, भीमसेना, सांभाजी ब्रिग्रेड़ वाले हिन्दू विरोधी गतिविधियों में भाग लेते है। इनका साथ मुस्लिम और ईसाई मिशनरी देते हैं। आजकल प्रचलित एक नेशनल दस्तक चैनल भी दलित-मुस्लिमों द्वारा सम्यक रुप से प्रसारित किया जाता है। नेशनल दस्तक से अतिरिक्त अन्य मंचों पर भी जैसे कि सोशल नेटवर्किंग साईटों, पत्र एवं पत्रिकाओं में भी दोनों मिलकर आपस में हिन्दु समाज के विरोध में अपने लेखों का सम्पादन करते है। वैदिक संस्कृति को आपस में मिलकर नष्ट करना चाहते हैं। यहां दलितों को सोचना चाहिए कि मुस्लिम उनकें साथ इसलिये नहीं है कि वे दलितों का उत्थान चाहते हैं बल्कि इसलिए है कि सवर्ण दलितों में फूट हो और हम लोग उसका फायदा उठाकर इससे लाभ उठायें।
दलित समाज जिन अम्बेड़कर जी को मानता है, वे स्वयं मुस्लिम कट्टरता और मुस्लिम धर्म ग्रन्थों के बहुत विरोध में थे। डॉ. अम्बेडकर किसी के मुस्लिम हो जाने पर मात्र मतपरिवर्तन नहीं मानते थे बल्कि वे इसे संस्कृति और सभ्यता परिवर्तन भी मानते थे। उनका कथन था कि विदेशी मत को अपनाने से व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता को नष्ट कर देता है और जिस विदेशी मत को उसने ग्रहण किया है उसी देश की राष्ट्रीयता का अनुयायी बन जाता है। यहीं कारण है कि डॉ. अम्बेडकर जी ने मतान्तरण में किसी विदेशी मुस्लिम और ईसाई मत न ग्रहण करके मात्र बौद्धमत अपनाया था।
ड़ॉ. अम्बेड़कर इस्लाम तुष्टिकरण के भी खिलाफ थे, उन्होनें कांग्रेस आदि के मुस्लिम तुष्टिकरण से अनेकों बार असंन्तुष्टि दर्शाई है किन्तु उनके आजकल के अनुयायी स्वयं मुस्लिम तुष्टिकरण के पक्ष में है। ड़ॉ. अम्बेड़कर नें तुष्टिकरण पर कुछ प्रश्न किये थे जो आज भी प्रासंगिक है –
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता ही एकमात्र भारत की राजनीतिक अभियोत्थान हेतु आवश्यक थी?
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता तुष्टीकरण या समझौते के माध्यम से प्राप्त की जा सकती थी।
- यदि एकता तुष्टिकरण से प्राप्त की जाती, वे कौन सी नई सुविधाएं हैं जो मुस्लिमों को दी जानी चाहिए।
- यदि समझौता विकल्प है तो समझौते की शर्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन है अथवा दो संविधान और सभाओं और सेवाओं में 50% भागेदारी?
- क्या दोनों सम्प्रदायों का एक मान्य संविधान हो सकता है?
- बगैर भौगोलिक एकता के हमेशा सीमा विवाद रहेंगे?
- क्या शान्ति से विभाजन नहीं हो सकता था?
इस प्रकार कई प्रश्न थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के सख्त विरोध में दृष्टिगोचर होते है। इन्हीं सब कथनों को लेते हुए, उन्होनें एक पुस्तक Thoughts on Pakistan लिखी थी, इसी पुस्तक का द्वितीय संस्करण Pakistan or Partition of India नाम से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में डॉ. अम्बेड़कर के जो इस्लाम पर मन्तव्य थे, वे प्रत्येक हिन्दू और नवबौद्ध को अवश्य पढ़नें चाहिए –
१. हिन्दू काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं-”मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं, और एक काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है, और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासनहो, वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी सति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।” (पृ. ३०४)
२. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वासहै। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।”
३. एक साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय मुसलमान में अन्तर देख पाना मुश्किल-”लीग को बनाने वाले साम्प्रदायिक मुसलमानों और राष्ट्रवादी मुसलमानों के अन्तर को समझना कठिन है। यह अत्यन्त संदिग्ध है कि राष्ट्रवादी मुसलमान किसी वास्तविक जातीय भावना, लक्ष्य तथा नीति से कांग्रेस के साथ रहते हैं, जिसके फलस्वरूप वे मुस्लिम लीग् से पृथक पहचाने जाते हैं। यह कहा जाता है कि वास्तव में अधिकांश कांग्रेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है, और कांग्रेस के अन्दर राष्ट्रवादी मुसलमानों की स्थिति साम्प्रदायिक मुसलमानों की सेना की एक चौकी की तरह है। यह धारणा असत्य प्रतीत नहीं होती। जब कोई व्यक्ति इस बात को याद करता है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के नेता स्वर्गीय डॉ. अंसारी ने साम्प्रदायिक निर्णय का विरोध करने से इंकार किया था, यद्यपिकांग्रेस और राष्ट्रवादी मुसलमानों द्वारा पारित प्रस्ताव का घोर विरोध होने पर भी मुसलमानों को पृथक निर्वाचन उपलब्ध हुआ।” (पृ. ४१४-४१५)
४. भारत में इस्लाम के बीज मुस्लिम आक्रांताओं ने बोए-”मुस्लिम आक्रांता निस्संदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो यह वरदान माना जाता। वे ऐसे नकारात्मक परिणाम मात्र से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने इस्लाम का पौधा लगाते हुए एक सकारात्मक कार्य भी किया। इस पौधे का विकास भी उल्लेखनीय है। यह ग्रीष्म में रोपा गया कोई पौधा नहीं है। यह तो ओक (बांज) वृक्ष की तरह विशाल और सुदृढ़ है। उत्तरी भारत में इसका सर्वाधिक सघन विकास हुआ है। एक के बाद हुए दूसरे हमले ने इसे अन्यत्र कहीं को भी अपेक्षा अपनी ‘गाद’ से अधिक भरा है और उन्होंने निष्ठावान मालियों के तुल्य इसमें पानी देने का कार्य किया है। उत्तरी भारत में इसका विकास इतना सघन है कि हिन्दू और बौद्ध अवशेष झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं; यहाँ तक कि सिखों की कुल्हाड़ी भी इस ओक (बांज) वृक्ष को काट कर नहीं गिरा सकी।” (पृ. ४९)
५. मुसलमानों की राजनीतिक दाँव-पेंच में गुंडागर्दी-”तीसरी बात, मुसलमानों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है। दंगे इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि गुंडागिर्दी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है।” (पृ. २६७)
६. हत्यारे धार्मिक शहीद-”महत्व की बात यह है कि धर्मांध मुसलमानों द्वारा कितने प्रमुख हिन्दुओं की हत्या की गई। मूल प्रश्न है उन लोगों के दृष्टिकोण का, जिन्होंने यह कत्ल किये। जहाँ कानून लागू किया जा सका, वहाँ हत्यारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली; तथापि प्रमुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की। इसके वपिरीत उन्हें ‘गाजी’ बताकर उनका स्वागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आन्दोलन शुरू कर दिए गए। इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरिस्टर मि. बरकत अली का, जिसने अब्दुल कयूम की ओर से अपील दायर की। वह तो यहाँ तक कह गया कि कयूम नाथूराम की हत्या का दोषी नहीं है, क्योंकि कुरान के कानून के अनुसार यह न्यायोचित है। मुसलमानों का यह दृष्टिकोण तो समझ में आता है, परन्तु जो बात समझ में नहीं आती, वह है श्री गांधी का दृष्टिकोण।”(पृ. १४७-१४८)
७. हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्रजातियां-”आध्याम्कि दृष्टि से हिन्दू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या सम्प्रदाय नहीं हैं जैसे प्रोटेस्टेंट्स और कैथोलिक या शैव और वैष्णव, बल्कि वे तो दो अलग-अलग प्रजातियां हैं।” (पृ. १८५)
८. हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्यों रही ?-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की विफलता का मुखय कारण इस अहसास का न होना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो भिन्नताएं हैं, वे मात्र भिन्नताएं ही नहीं हैं, और उनके बीच मनमुटाव की भावना सिर्फ भौतिक कारणों से ही नहीं हैं इस विभिन्नता का स्रोत ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दुर्भावना है, और राजनीतिक दुर्भावना तो मात्र प्रतिबिंब है। ये सारी बातें असंतोष का दरिया बना लेती हैं जिसका पोषण उन तमाम बातों से होता है जो बढ़ते-बढ़ते सामान्य धाराओं को आप्लावित करता चला जाता हैं दूसरे स्रोत से पानी की कोई भी धारा, चाहे वह कितनी भी पवित्र क्यों न हो, जब स्वयं उसमें आ मिलती है तो उसका रंग बदलने के बजाय वह स्वयं उस जैसी हो जाती हैं दुर्भावना का यह अवसाद, जो धारा में जमा हो गया हैं, अब बहुत पक्का और गहरा बन गया है। जब तक ये दुर्भावनाएं विद्यमान रहती हैं, तब तक हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता की अपेक्षा करना अस्वाभाविक है।” (पृ. ३३६)
९. हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की निरर्थकता को प्रगट करने के लिए मैं इन शब्दों से और कोई शबदावली नहीं रख सकता। अब तक हिन्दू-मुस्लिम एकता कम-से-कम दिखती तो थी, भले ही वह मृग मरीचिका ही क्यों न हो। आज तो न वह दिखती हे, और न ही मन में है। यहाँ तक कि अब तो गाँधी जी ने भी इसकी आशा छोड़ दी है और शायद अब वह समझने लगे हैं कि यह एक असम्भव कार्य है।” (पृ. १७८)
(सभी उद्धरण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २००० से लिए गए हैं)
इस पुस्तक की आज के समय उपयोगिता देखते हुए, इसे हमारे मंच से भी उपलब्ध करवाया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति इसे पढ़े और विशेषकर नवबौद्ध समाज भी और समझे कि दलित-मुस्लिम एकता सब प्रकार से असम्भव है। इस पुस्तक को यदि विभिन्न नेता बिना पक्षपात के पढ़गें तो वे भी मुस्लिम तुष्टिकरण को गलत ही पायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा में होने से सामान्य पाठक भी डॉ. अम्बेडकर के मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लाम पर विचारों से परिचित हो सकता है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
पिछले बीस वर्षों में भारत में आतंकवादी हिंसा में 60 हजार से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। उनमें बूढ़े व जवान,स्त्रियाँ व बच्चे और गरीब व निस्सहाय भी शामिल हैं; और यह सब जेहाद के नाम पर हो रहा है। ऐसी कौन सी बात है, जो अल्लाह के वफादारों को ‘हत्यारे’ के रूप में तैयार कर रही है? पाकिस्तान के ‘गैर-मजहबी’ स्कूलों व मदरसों में शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के मन-मस्तिष्क में क्या घोला जा रहा है? पाकिस्तान में शासन कर रही संस्थाओं का इसलाम-पसंद पार्टियों और आतंकवादी संगठनों के साथ क्या संबंध है? क्या हमें पाकिस्तान के राष्ट्रीय और सामाजिक स्वरूप पर नजर डालनी चाहिए?
भारत के एक बड़े हिस्से पर बँगलादेशी घुसपैठियों ने अपना डेरा जमाया हुआ है। देश की सुरक्षा पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है? हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी और इसलामिक संगठनों को कौन जोड़ रहा है? बँगलादेश में तेजी से बढ़ रही कट्टरवादिता से क्या खतरा उत्पन्न हुआ है? आतंकवाद से निपटने में हम कहाँ चूके और इससे हमने क्या-क्या सबक सीखे हैं?
ऐसे और भी अनेक गंभीर प्रश्न हैं, जिनके उत्तर वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री अरुण शौरी की यह पुस्तक देती है। इसमें पाकिस्तान व बँगलादेश का आतंकवादी चेहरा तो बेनकाब हुआ ही है, उनकी करतूतों का कच्चा चिट्ठा भी खुला है।SKU: n/a -
Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, इतिहास
Panjab Samasya Tatha Samadhan
यह पुस्तक अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद मात्र नहीं है। यह मौलिक रचना है जिसमें मैंने समस्या के सम्बन्ध में तथ्यों को बिना लाग लपेट के पेश किया है और उसके समाधान के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। मेरा उद्देश्य जन साधारण को इस दुर्भाग्यपूर्ण समस्या के सम्बन्ध में शिक्षित करना और नीति निर्धारकों को दिशा दिखाना है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Paramveer Albert Ekka- 1971 Ke Nayak
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणParamveer Albert Ekka- 1971 Ke Nayak
“सन 1971 के मार्च महीने से लेकर दिसंबर तक के नौ महीनों के मुक्तियुद्ध का परिणाम है बांग्लादेश। मार्च के महीने में ही स्थितियाँ बिगडऩी शुरू हो गई थीं। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच कड़वाहट और तेज हो गई थी।
यह कहानी उसी अल्बर्ट एक्का की है, जिस अल्बर्ट ने 1962 के चीन के साथ युद्ध में भाग लिया और 1971 के युद्ध में भी, लेकिन 1971 के युद्ध में वे शहीद हो गए। 44 साल बाद उनकी मिट्टी उनके गाँव आई और 46 साल बाद उनकी कथा लिपिबद्ध की जा रही है। इस दीर्घावधि सालों में शंख और महानंदा में न जाने कितना पानी बह गया। परमवीर के संगी-साथी उनके बचपन की यादें-बातें बताने को रहे नहीं। गाँव वैसा ही है, जैसा वे छोड़ गए थे। परमवीर का परिवार संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता रहा।
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. शिवप्रसाद सिंह का एक लेख, डॉ. धर्मवीर भारती का चर्चित यात्रा-वृत्तांत और एक रिपोर्ट भी है। इनके साथ ही विष्णुकांत शास्त्रीजी का एक रिपोर्ताज भी यहाँ दिया जा रहा है। इन रचनाओं से गुजरते हुए पाठक उस समय के कराह, द्वंद्व, संघर्ष और नरसंहार को भीतर तक महसूस कर सकेंगे। एक ही धर्म के माननेवाले कैसे एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। दुनिया में यह अकेला युद्ध था, जिसकी पृष्ठभूमि में धर्म नहीं, भाषा थी।
धर्म के आधार पर बँटा यह देश भाषा के कारण अलग हो गया। 1971 के युद्ध के हीरो, बांग्लादेश बनाने में सहायक रहे जाँबाज परमवीर अल्बर्ट एक्का की रोमांचक और प्रेरक कहानी।
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Parivartansheel Vishwa Mein Bharat Ki Ranneeti
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर वर्ष 2020 के कोरोना महामारी तक का दशक वैश्विक व्यवस्था में एक वास्तविक परिवर्तन का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियादी प्रकृति और नियम हमारी नजरों के सामने बदल रहे हैं।
भारत के लिए इसके मायने अपने लक्ष्यों को सर्वश्रेष्ठ तरीके से आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को सर्वोत्कृष्ट करने से है। हमें अपने नजदीकी व विस्तारित पड़ोस में भी एक दृढ़ और गैर-पारस्परिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एक वैश्विक पहचान, जो भारत की वृहद् क्षमता और प्रासंगिकता के साथ इसके विशिष्ट प्रवासी समुदाय का लाभ उठाए, अभी बनने की प्रक्रिया में है। वैश्विक उथल-पुथल का यह युग भारत को एक नेतृत्वकारी शक्ति बनने की राह पर ले जाते हुए इससे और अधिक अपेक्षाओं की जरूरत पर बल देता है।
‘परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति’ में भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने इन्हीं चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए संभावित नीतिगत प्रतिक्रियाओं की व्याख्या की है। ऐसा करते समय वे भारत के राष्ट्रीय हित के साथ अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का संतुलन साधने में अत्यंत सतर्क रहे हैं। इस चिंतन को वे इतिहास और परंपरा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं, जो कि एक ऐसी सभ्यतागत शक्ति के लिए, जो वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को पुनः हासिल करने की तलाश में है, सर्वथा उपयुक्त है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Parivrajak: Meri Bhraman Kahani
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनParivrajak: Meri Bhraman Kahani
“स्वामी विवेकानंद ने भारत में उस समय अवतार लिया, जब हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। हिंदू धर्म में घोर आडंबर और अंधविश्वासों का बोलबाला हो गया था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म को एक पूर्ण पहचान प्रदान की। इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्न छोटे-छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म संसद् में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलाई।
प्रस्तुत पुस्तक ‘परिव्राजक: मेरी भ्रमण कहानी’ में स्वामीजी ने अपनी यूरोप यात्रा के माध्यम से सरल शब्दों में तत्कालीन इतिहास, कला, समाज, जीवन-दर्शन इत्यादि का अत्यंत रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। इनके माध्यम से व्यक्ति अपने तत्कालीन ज्ञान-दर्शन को सहज ही प्रशस्त कर सकता है। स्वामी विवेकानंद की यात्रा-वृत्तांत की यह पुस्तक हमें सांस्कृतिक-सामाजिक यात्रा का आनंद देगी।”
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, इतिहास
Parsai Ka Man (PB)
“हरिशंकर परसाई हिन्दी साहित्य में व्यंग्य के सबसे बड़े स्तम्भ हैं। सौ वर्ष पहले जन्मे परसाई का लेखन आज भी बेहद लोकप्रिय और मौजूँ है। उनके लेखन में आखिर ऐसा क्या है कि हर पीढ़ी और वर्ग के पाठक उनकी रचनाओं को हाथोंहाथ लेते हैं। इसका कुछ सुराग ‘परसाई का मन‘ के पन्नों में मिलता है। इस पुस्तक में परसाई के 17 साक्षात्कार प्रस्तुत हैं जो उन्होंने हिन्दी साहित्य के सुपरिचित लेखकों और पत्रकारों को दिये। इनमें हिन्दी साहित्य, लेखन-प्रक्रिया, व्यंग्य के स्रोत, रोज़मर्रा के जीवन-संघर्ष, समाज, राष्ट्र, राजनीति – सभी मुद्दों पर उनके विचार और दुनिया को देखने का दृष्टिकोण मिलता है। इन साक्षात्कारों को पढ़ना परसाई के दिलो-दिमाग में झाँकने जैसा है।
विष्णु नागर प्रतिष्ठित कवि, कथाकार, व्यंग्यकार, जीवनीकार हैं। पेशे से वह पत्रकार हैं। ‘नवभारत टाइम्स‘, ‘हिन्दुस्तान‘, ‘नई दुनिया‘ आदि दैनिकों में विशेष संवाददाता सहित विभिन्न पदों पर रहे। कादम्बिनी मासिक तथा शुक्रवार साप्ताहिक के संपादक रहे और अनेक पुस्तकों का भी संपादन किया। विष्णु नागर मूर्धन्य गद्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग्य पर लगातार काम करते रहे हैं। इसी प्रक्रिया में है यह पुस्तक परसाई का मन । “SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Partitioned Freedom Hardcover
At the stroke of the midnight on 14-15 August 1947, India secured independence. That moment also witnessed the tragic partition of India and birth of Pakistan. Nobody wanted it. Yet it couldn’t be averted.
Four decades earlier, in 1905, Bengal was partitioned by the British. A massive movement, called Vande Mataram Movement, was launched against it by the Indian National Congress. British were forced to annul partition of Bengal in 1911.
A country that defeated the British designs to partition one province failed when the whole country was being partitioned four decades later. Why? What missteps had led to the disaster? Who were responsible?
‘Partitioned Freedom’ explores answers to these questions.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Patan (PB)
उपन्यास “पतन’ एक कहानी के साथ- साथ भारत की राजनीति में घटनेवाली बड़ी घटनाओं को सही समय और काल के साथ व प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है। देश के राजनीतिक पटल पर बदलते दृश्यों को लेकर लेखक के रूप में मेरी एक राय हो सकती है, एक दृष्टिकोण हो सकता है, किंतु घटनाओं के तथ्य, काल, चाल और चरित्र को हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। फिर चाहे वह 1975 की इमरजेंसी के भीतर का सच हो, जनता पार्टी की सतबेझडी हाँड़ी का फूटकर बिखरना उसकी स्वाभाविक परिणति हो, इंदिरा गांधी के द्वारा जनता पार्टी को तोड़ने का सफल षड़्यंत्र हो, मंडल आयोग के कारण पूरे देश के उपद्रव हों, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो, नरसिम्हा राव का हवाला हो, अटल बिहारी की सरकार का बहुमत साबित न कर पाने के कारण तेरह दिन में और फिर तेरह महीने में सत्ता से बेदखल होना हो या छह साल के सफल नेतृत्व के बाद भी अटल सरकार को जनता के द्वारा नकारकर आर्थिक घोटालों के कारण चर्चा में रहे सोनिया गांधी के नेतृत्ववाली मनमोहन सरकार की स्वीकार्यता के दस वर्ष हों। उपन्यास पतन में स्वतंत्र भारत में नेहरू- काल के बाद के इतिहास की नकारात्मकता और सकारात्मकता को उल्लेखित किया गया है।
‘पतन’ में एकात्म मानवतावाद, साम्यवाद, समाजवाद और नक्सलवाद को गहन चिंतन और वार्त्ताओं के माध्यम से खँगालने का भी सफल प्रयास किया गया है।
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Patna Khoya Hua Shahar
अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले बुद्ध ने पाटलिपुत्र की महानता की भविष्यवाणी की थी। कालान्तर में पाटलिपुत्र मगध, नन्द, मौर्य, शुंग, गुप्त और पाल साम्राज्यों की राजधानी बनी। पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात प्राचीन पटना की स्थापना 490 ईसा पूर्व में मगध सम्राट अजातशत्रु ने की थी। गंगा किनारे बसा पटना दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में से एक है जिनका एक क्रमबद्ध इतिहास रहा है। मौर्य काल में पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया था। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्यों के वक़्त से ही विदेशी पर्यटक पटना आते रहे। मध्यकाल में विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई। यह वह वक़्त था जब पटना की शोहरत देश की सरहदों को लाँघ विदेशों तक पहुँच गयी थी। यह मुग़ल काल का स्वर्णिम युग था। पटना उत्पादन और व्यापार के केन्द्र के रूप में देश में ही नहीं विदेशों में भी जाना जाने लगा। 17वीं सदी में पटना की शोहरत हिन्दुस्तान के ऐसे शहर के रूप में हो गयी थी, जिसके व्यापारिक सम्बन्ध यूरोप, एशिया और अफ्रीका जैसे महादेशों के साथ थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ब्रिटिश इण्डिया में पटना और उसके आसपास के इलाकों में शोरा, अफीम, पॉटरी, चावल, सूती और रेशमी कपड़े, दरी और कालीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। पटना के दीघा फार्म में तैयार उत्पादों की जबरदस्त माँग लन्दन के आभिजात्य लोगों के बीच थी। विदेशी पर्यटक और यात्री कौतूहल के साथ पटना आते। उनके संस्मरणों में तत्कालीन पटना सजीव हो उठता है। इस पुस्तक में उनके संस्मरण और कई अन्य रोचक जानकारियाँ मिलेंगी।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Patna Mein 1857 Ki Bagawat
विलियम टेलर ने सन् 1857 में पटना विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई थी, किंतु उसकी अनेक गतिविधियाँ ऊपर के पदाधिकारियों को पसंद नहीं आईं। अति उत्साह में उसके द्वारा उठाए गए कदमों की काफी आलोचना हुई। बिना पुख्ता सबूत के लोगों को फाँसी देना, धोखे से वहाबी पंथ के तीनों मौलवियों को गिरफ्तार करना, उद्योग विद्यालय खोलने के लिए जमींदारों से जबरदस्ती चंदा वसूल करना, पटना के प्रतिष्ठित बैंकर लुत्फ अली खाँ के साथ बदसलूकी से पेश आना, मेजर आयर को आरा की तरफ कूच करने से मना करना, बगावत की आशंका से सारे यूरोपीयनों को पटना बुला लेना इत्यादि अनेक कदम टेलर ने उठाए, जिससे ऊपर के पदाधिकारी, खासकर लेफ्टिनेंट गवर्नर हैलिडे बहुत नाराज हुए। परिणामस्वरूप 5 अगस्त, 1857 को विलियम टेलर को पदमुक्त कर दिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक ‘पटना में 1857 की बगावत’ विलियम टेलर द्वारा अपने आपको दोषमुक्त साबित करने के लिए लिखी गई थी। इसमें उसने बताया है कि कितनी विषम परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर उसने अंग्रेज कौम का भला किया और एक सच्चे अंग्रेज का फर्ज निभाया।
पटना में स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन का जीवंत एवं प्रामाणिक इतिहास।SKU: n/a