Hindi Books
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Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Manas-Stuti-Sangrah
इस पुस्तक में श्री रामचरितमानस में देवताओं के द्वारा भगवान की स्तुति, सीताजी के द्वारा पार्वती-स्तुति, अत्रिकृत श्री राम-स्तुति, जटायुकृत श्री राम-स्तुति, ब्रह्मकृत श्री राम-स्तुति, शिवकृत श्री राम-स्तुति, वेदकृत श्री राम-स्तुति तथा शिव-स्तुति का सचित्र संग्रह है। उपासना तथा स्वाध्यायकी दृष्टि से यह स्तुति-संग्रह सबके लिये उपयोगी है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Manik Raitang ki Bansuri
‘मानिक रायतंग की बाँसुरी’ डॉ. सुनीता की बच्चों और किशोर पाठकों के लिए लिखी गई बत्तीस अनूठी और भावनात्मक कहानियों का संग्रह है, जिनमें लोकजीवन की सुगंध है तो साथ ही दादी-नानी की कहानियों सरीखा अद्भुत रस और आकर्षण भी। डॉ. सुनीता बच्चों की जानी-मानी कथाकार हैं, जिनकी बाल कहानियाँ अपनी सादगी और सरलता के कारण सीधे बच्चों के दिलों में उतर जाती हैं। वे जिस भी कथानक को उठाती हैं, उसे मन के भावों में पिरोकर इतनी शिद्दत से लिखती हैं कि हमारा मन भी कहानी के पात्रों के साथ ही कभी हँसता तो कभी उदास हो जाता है और कभी मस्ती में भरकर खुशी और उल्लास के गीत भी गाता है।
‘मानिक रायतंग की बाँसुरी’ संग्रह की हर कहानी का अलग रंग, अलग अंदाज, अलग खुशबू है। बच्चे और किशोर पाठक ही नहीं, बड़े भी इन कहानियों से एक विशेष जुड़ाव महसूस करेंगे। वे इनमें बहुत कुछ ऐसा पाएँगे, जिनसे उनका जीवन महक उठेगा और उनमें औरों के लिए कुछ करने की प्रेरणा उत्पन्न होगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manu Ki Drishti Se Hindu Samaj
समाज को मनु की दृष्टि से देखना अपने आप में एक नया अनुभव है। लंबे समय तक भारतीय समाज को बाँधकर रखनेवाले मनु पर चतुर्दिक होनेवाले वैचारिक प्रहार यह सोचने पर विवश करते हैं कि मनु की समीक्षा इस युग में आवश्यक है। इस पुस्तक को लिखते हुए यह उद्देश्य बिलकुल भी नहीं है कि मनु कि व्यवस्था को पुनः लाने का प्रयास किया जाए। किंतु लेखिका का यह उद्देश्य अवश्य है कि मनु, और इसी बहाने से प्राचीन भारतीय दर्शन को देखने कि एक नई दृष्टि दी जाए। अल्पज्ञ, भारतीय भाषाओं तथा संस्कृति से अनभिज्ञ पाश्चात्य (तथाकथित) भारतविदों के पूर्वग्रहयुक्त ग्रंथों और उनकी टिप्पणियों के आधार पर भारतीय दर्शन के मूल्यांकन को प्रवृत्ति पहले ही बहुत हानि कर चुकी है। अब इससे हटकर इस सबको देखने की आवश्यकता है। मनु की दृष्टि को पूरा समझने के लिए बहुत कुछ वह भी समझना पड़ता है, जो उनसे अनकहा रह गया है । बीच के बिंदु भरने के लिए इस पुस्तक में उनके समकालीन, पूर्व तथा परवर्ती ग्रंथों से संदर्भ भी लिये गए हें, जैसे अर्थशास्त्र, महाभारत, रामायण, कुछ उपनिषद्, पुराण, वेद आदि। आशा है यह पुस्तक भारत के प्राचीन समाज तथा जीवन-मूल्यों को देखने की नई दृष्टि की संभावना प्रस्तुत करने के उद्देश्य को पूर्ण करेगी
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिManusmriti (PB)
मनुष्य ने जब समाज व राष्ट्र्र के अस्तित्व तथा महत्त्व कौ मान्यता दी, तो उसके कर्तव्यों और अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दण्ड व्यवस्था करने की भी आवश्यकता उत्पन्न हुई । यही कारण है कि विभिन्न युगों में विभिन्न स्मृतियों की रचना हुई, जिनमें मनुस्मृति को विशेष महत्व प्राप्त है । मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा दो हज़ार पांच सौ श्लोक हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संस्कार, नित्य और नैमित्तिक कर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित्त आदि अनेक विषयों का उल्लेख है। ब्रिटिश शासकों ने भी मनुस्मृति को ही आधार बनाकर ‘ इण्डियन पेनल कोड ‘ बनाया तथा स्वतन्त्र भारत की विधानसभा ने भी संविधान बनाते समय इसी स्मृति को प्रमुख आधार माना । व्यक्ति के सर्वतोमुखी विकास तथा सामाजिक व्यवस्था को सुनिश्चित रूप देने व व्यक्ति की लौकिक उन्नति और पारलौकिक कल्याण का पथ प्रशस्त करने में मनुस्मृति शाश्वत महत्त्व का एक परम उपयोगी शास्त्र मथ है । वास्तव में मनुस्मृति भारतीय आचार-संहिता का विश्वकोश है, जो भारतीय समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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Hindi Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Manusmriti (Vol.1-2)
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The Smrtis are the compedia systematically epitomising the material contained in the Grhya and Dharmasutras. The Manusmrti stands at the top of the smrti literature, unrivalled and unsurpassed by any sister work.SKU: n/a -
Hindi Books, Parimal Publications, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti ka Punarmulyankan
यह सर्वविदित और सिद्ध तथ्य है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य के अनेक ग्रन्थों में समय-समय पर प्रक्षेप होते रहे हैं। मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, निरुक्त, चरक-संहिता, पुराण आदि इसके प्रमाणसिद्ध उदाहरण हैं। प्राचीन ग्रन्थों में प्रक्षेप होने के अनेक कारण रहे हैं। उनमें से एक कारण यह भी है कि उस ग्रन्थ-विशेष की परम्परा के अर्वाचीन व्यक्ति अपने स्वतन्त्र ग्रन्थ न लिखकर उस परम्परा के प्रचलित प्रसिद्ध ग्रन्थ में ही परिवर्तन-परिवर्धन, निष्कासन-प्रक्षेपण करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में मनु और मनुस्मृति विषयक पूर्व स्थापित उन एकांगी, समीक्षाओं, भ्रमों और भ्रान्तियों पर विचार करके उनका पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि प्रमाणाधारित पुनर्मूल्यांकन तटस्थ पाठकों को स्वीकार्य प्रतीत होंगे और पूर्वाग्रह-गृहीत पाठकों को भी इसके निर्णय पुनर्विचार के लिए बाध्य करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwad ke Thikanon ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिMarwad ke Thikanon ka Itihas
मारवाड़ के ठिकानों का इतिहास (ठिकाना रोहिट के विशेष संदर्भ में, 1706-1950 ई.) :
राजस्थान के गौरवमय इतिहास में राठौड़ वंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनकी साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विभिन्न सौपानों में भूमिका बड़ी ही महत्त्वपूर्ण रही। इतिहास के आलोक में देखने पर ज्ञात होता है कि मण्डोर के राव रणमल के सुयोग्य आत्मज एवं जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के अनुज चांपा से राठौड़ों की चांपावत शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था।
मारवाड़ के इतिहास में चांपावत राठौड़ों की विशेष भूमिका रहने के फलस्वरूप यहाँ के उमरावों में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। जोधपुर की स्थापना के पीछे 200 वर्ष का संघर्षमय इतिहास रहा। राव रणमल के समय राठौड़ों के इतिहास ने एक नई करवट ली। मारवाड़ के राठौड़ों की बढ़ती हुई शक्ति और वर्चस्व के फलस्वरूप मेवाड़ के महाराणा कुंभा को चित्तौड़ की बागडोर संभालने में सफलता मिली। चांपाजी ने कापरड़ा में अपना ठिकाना स्थापित कर अपने वंशजों के उज्ज्वल भविष्य की नींव डाली। कापरड़ा गांव में आज भी उनकी छतरी विद्यमान है जो उनकी गौरवगाथाओं की याद दिलाती है।
चांपाजी के वंशजों का खूब वंश विस्तार हुआ, जिससे कई ठिकानों का निर्माण भी हुआ, जिनमें रोहिट ठिकाना भी प्रमुख रूप से है। रोहिट के चांपावत राठौड़ों ने जहाँ राज्य की ओर से लड़े जाने वाले युद्धों में रणकुशलता का परिचय दिया वहीं ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया।
मारवाड़ के उमरावों में चांपावत राठौड़ों का विशिष्ट स्थान रहा था। गोपालदास चांपावत और उसके 8 पुत्रों ने अलग-अलग युद्ध अभियानों में अपने प्राणों की आहुतियां दी थीं। शिलालेखों की खोज कार्यों में कापरड़ा, रणसी, हरसोलाव, रोहट, पाली और आऊवा की शोध यात्राएं और वहाँ से असंख्य शिलालेख जो काल के गरत में समा चुके थे उन्हें प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया।
डाॅ. भगवानसिंह जी शेखावत द्वारा रोहिट ठिकाने पर किया गया शोध कार्य ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ठिकाने की इकाई को न सिर्फ इसमें स्पष्ट किया गया है बल्कि मारवाड़ में यहाँ के उमरावों की भूमिका को समझने के साथ ही ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है, जिसमें सहायक सामग्री के रूप में रोहिट ठिकाने की बहियों का भरपूर उपयोग किया गया है। मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा करता हूँ कि ऐसे शोध कार्य लगोलग प्रकाश में आने से न सिर्फ मारवाड़ बल्कि राजस्थान के इतिहास में उमरावों की भूमिका को समझने में महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Marwar Ka Itihas
मारवाड़ का इतिहास
मारवाड़ अपनी प्राचीन समृद्ध परम्परा, अद्भूत शौर्य एवं अनूठे कलात्मक अवदानों के कारण विश्व के परिदृश्य में दैदीप्यमान है। Marwar Ka Itihas
राजस्थान की मध्यकालीन रियासतों में मारवाड़ का विशेष महत्व रहा हैं। पुस्तक में मारवाड़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, जोधपुर के राठौड़ नरेशों के वंशजों का विद्या प्रेम, दानशीलता, धर्म, कला-कौशल प्रेम का विवरण दिया गया है।
राव सीहा, राव चूण्डा, राव जोधा, राव मालदेव, राव चन्द्रसेन, मोटा राजा उदयसिंह, सवाई राजा सूरसिंह, महाराजा जसवंत सिंह, अजीत सिंह, अभय सिंह, विजय सिंह तथा भीमसिंह व राजा मानसिंह कालीन इतिहास के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का वर्णन किया हैं। इन शासकों के राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था, जागीरदारी व्यवस्था, राजस्व व्यवस्था व व्यापार वाणिज्य की विस्तृत विवेचना को प्रस्तुत करने के साथ ही मारवाड़ की पारम्परिक जल संरक्षण तकनीक व ओरण परम्परा का विश्लेषण किया गया हैं।
व्यापक परिपेक्ष्य में राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य के संरक्षण व संर्वधन की भी विवेचना की गई है। Marwar Ka Itihas
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Marwar ka Puratatva aur Sthapatya
मारवाड़ का पुरातत्व और स्थापत्य : प्रस्तुत पुस्तक मारवाड़ का पुरातत्व और स्थापत्य सम्पदा में लेखक ने मारवाड़ की राजधानी जोधपुर एवं इसके आस-पास के क्षेत्र में फैली हुई स्थापत्य वैभव की कलात्मक सम्पदा उजागर किया है। अत्यन्त सुन्दर शैली में चित्रों के साथ प्राचीन मारवाड़ की स्थापत्य सम्पदाएं जिनमें मन्दिर, हवेलियाँ, विभिन्न प्रासादों एवं विशेषकर कुएँ, बावड़ियाँ, तालाबों और झालरों (सीढ़ीदार कुँए) जैसे प्राचीन स्मारकों को इस पुस्तक में संग्रहीत किया गया है।
इस पुस्तक की वैशिष्ट्या यह है कि इसमें मारवाड़ की स्थापत्य कला परम्परा के क्रमिक विकास को दर्शाते हुये सभी प्रकार के स्थापत्य पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक को शोध प्रविधियों का अनुसरण करते हुये चार भागों में बाँटा गया हैं, क्रमानुसार ऐतिहासिक भवन, ऐतिहासिक हवेलियाँ, मन्दिर स्थापत्य एवं जल स्रोत स्थापत्य। इन चारों मुख्य भागों में तद्सम्बन्धी विवेचन के साथ ही जोधपुर नगर के विकास के साथ स्थापत्य सम्पदाओं के निर्माण कार्य के क्रम का विस्तारशः वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
इस पुस्तक की भूमिका में लेखक ने सभी प्रकार की स्थापत्य श्रेणियों का विस्तार के साथ उल्लेख किया है तथा उसमें प्राचीन काल की परम्पराओं से लेकर वर्तमान तक के स्थापत्य व वास्तु के इतिहास सम्बन्धी विभिन्न बिन्दुओं को समझाने का सराहनीय प्रयास किया है। ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरी जोधपुर में लेखक ने मारवाड़ की राजधानी की स्थापना से लेकर, वर्तमान काल तक हुये इस नगर के विस्तार एवं नगर के विभिन्न मोहल्लों, चैकों, गलियों के सांस्कृतिक स्वरूप को बड़े ही सुन्दर ढंग से लिपिबद्ध किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में न केवल वर्तमान दुर्ग अपितु प्राचीन मण्डोर के दुर्ग एवं वहाँ के देवलों से सम्बन्धित स्थापत्य व उनके अवशेषों को भी वर्णित किया है। मारवाड़ के पूर्व शासकों के स्मारकों का शोधपूर्ण लेखन स्थापत्य कला का वर्णन बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। जोधपुर नगर का परकोटा व ऐतिहासिक द्वारों का इतिहास भी इस पुस्तक में होने से यह पुस्तक मारवाड़ के स्थापत्य इतिहास का आधार ग्रन्थ प्रमाणित होगा। इसका प्रमुख कारण है कि लेखक ने स्थापत्य के सौन्दर्य को ही नहीं वरन् प्रत्येक स्थापत्य के क्रमबद्ध चरणों को भी स्पष्ट रूप से विवेचित किया है।
अतः समग्र रूप से देखा जाय तो यह पुस्तक मारवाड़ की स्थापत्य सम्पदा कला, साहित्य, संस्कृति व स्थापत्य का समन्वित इतिहास है। हमारी पुरा सम्पदा के संरक्षण में यह पुस्तक आदर्श मागदर्शन सिद्ध होगी। पुरा सम्पदा पर जिज्ञासुओं के लिये एक आदर्श ग्रन्थ होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
मारवाड़ की राजनीति में जोधपुर के राजा-महाराजाओं ने अपना द्वितीय योगदान दिया है। उन्होंने मारवाड़ की उन्नति व प्रगति के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, लेकिन उनके इन कार्यों के पीछे उन रानियों, महारानियों, पड़दायतों, पासवानों का बड़ा योगदान था, जो जनानी ड्योढी में निवास करती थीं। Marwar Raniwas Nari Jeevan
प्रस्तुत पुस्तक का उद्देश्य मारवाड़ में पहने जाने वाले वस्त्र व आभूषण जो इसकी वास्तविक संस्कृति के परिचायक हैं, के विविध पक्षों पर प्रकाश डालना है।
राजा-महाराजाओं ने न केवल राज्य के विकास व उन्नति के लिए कार्य किया, अपितु अपने राज्य में विभिन्न कलाकारों व शिल्पियों का भी पूरा प्रोत्साहन दिया।
accordingly पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार राजवंश में सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन के केन्द्र रूप में जनाना महलों का महत्त्व था। राजपरिवार के लोगों के जीवन के समस्त संस्कार जीवनयापन की पद्धति एवं उनसे जुड़ी सामाजिक धार्मिक भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति इन जनाना महलों में होती थी। मारवाड़ का रनिवास पर्दे में होने के उपरान्त भी बहुत अधिक समृद्ध था।
मारवाड़ का रनिवास और नारी जीवन
किस प्रकार मारवाड़ नरेश अपने यहां विभिन्न कारखानों द्वारा इन कर्मचारियों को न केवल रोजगार देते थे, बल्कि उनके द्वारा किये गये कार्यों के प्रोत्साहन के लिए उचित इनाम व सम्मान भी देते थे। होनहार व उत्कृष्ट कारीगरों को मारवाड़ में बसने के लिए पूरा गाँव इनाम में देना यह मारवाड़ में कारीगरों के कला को सम्मान देने का बेहतरीन उदाहरण है। surely यहां के पुरालेखीय दस्तावेजों में मारवाड़ रनिवास की बहियाँ जो राजलोक की बहियाँ कहलाती हैं। वे 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्राप्त होती हैं। बहियों व तत्कालीन लघुचित्र शैलियों के माध्यम से वस्त्रों एवं आभूषण के बारे में विस्तृत जानकारिया° प्राप्त होती हैं। जनानी ड्योढी की राजमाता व पटरानी की व्यय व्यवस्था हेतु जागीरी निश्चित की जाती थी। इन जागीरों के गा°वों की आय एवं व्यय का सम्पूर्ण हिसाब-किताब रानियों, महारानियों के स्वयं के कामदार करते थे।
Marwar Ka Raniwas Aur Nari Jeevan
तत्कालीन समय के वस्त्र व आभूषण कितने प्रकार के होते थे, उनके बनावट, रंग, सजावट आदि के साथ उनके वस्त्रों व आभूषणों को किन व्यापारियों व सुनारों से खरीदा गया, इसका वर्णन भी हमें मिलता है। at this time उस समय के व्यापारियों, कारीगरों को किस प्रकार मेहनताना दिया जाता था, उनकी आर्थिक स्थिति कैसी थी, के साथ-साथ राज्य की ओर से उन्हें समय-समय पर दिये जाने वाले पारितोषिक की भी जानकारी मिलती है।
all in all यह शोध कार्य नये तथ्यों को उजागर करने के साथ-साथ इसकी रोचक सामग्री, जिसका विश्लेषण करने का मैंने प्रयास किया है, अन्य शोधार्थियों के लिये उपयोगी व रुचिकर होगी। वर्तमान समय में जब वस्त्र व आभूषणों के नित नये प्रकार देखने को मिल रहे हैं, ऐसे समय में बहियों में वर्णित वस्त्रों व आभूषणों की बनावट आज की आधुनिक फैशन व ज्वैलरी इंडस्ट्री के लिए बहुत उपयोगी होंगे।
राजस्थान का इतिहास यहाँ की महिलाओं और पुरुषों के वीरोचित गुणों, त्याग और बलिदान की गाथाओं के कारण जगत प्रसिद्ध है। यहाँ के वीरों राजा महाराजाओं ने मारवाड़ के विकास के लिये प्रत्येक क्षेत्र चाहे राजनैतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रगति में अमूल्य योगदान दिया है। जनानी ड्योढ़ी में रहकर भी रानियों ने अपनी जागीर से मिले द्रव्य का सदुपयेाग करके अनेक प्रकार के जन- कल्याणकारी कार्य करवाये जैसे मन्दिर, कुएं, बावड़िया, झालरे, सराय जो आज भी उनकी उज्ज्वल कीर्ति को उजागर कर रही है।
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar
Mayad Re Aangane
मायड़ रै आंगणै
कमल पग धरती कन्या लियो अवतार
लुगाई जूंण री अबखायां रौ सबळौ दस्तावेज – ‘मायड़ रै आंगणै’ साहित्य में कहाणी विधा री ठावी ठौड़ मानीजै। हरेक रचनाकार आपरै आसै-पासै री घटनावां सूं घणौ प्रभावित व्हिया करै, इणरौ प्रभाव उण रै लेखन में आया करै। नवोदित रचनाकार तरनिजा मोहन राठौड़ द्मत ‘मायड़ रै आंगणै’ कहाणी संग्रै समाजू हालातां सूं अरूबरू करावण रौ अंक सबळौ जतन है। Mayad Re Aangane
दरअसल राजस्थानी साहित्य में ‘वात’ रौ घणौ महताऊ स्थान है। अलेखूं बातां आज ई राजस्थानी जन-मन में बस्योड़ी है। रात री टेम बूढा-बडेरा धूंई रै चौगीड़दै बातां सुणावतां जकौ कई-कई दिन अर रात चालती रैवती। in fact कई लोग मानै कै औ ‘वात साहित्य’ इज आधुनिक काल तक आवतै-आवतै कहाणी रूप में सांम्ही आयौ। पण भारतीय साहित्य रै परिपेख में देखां तौ लागै कै आज री राजस्थानी कहाणी अंग्रेजी साहित्य रै स्टोरी जवतलद्ध सूं हदभांत जुड़ियोड़ी है। जकौ अंग्रेजी सूं बांग्ला अर बांग्ला सूं हिंदी रै मारफत अठै तांई पूगै। हिंदी साहित्य री बात करां तौ सन् उगणीस सौ रै पैले-दूजै दसक में कहाणी पैलीपोत सांम्ही आई। जदकै राजस्थानी ‘वात साहित्य’ अपांरी अंजसजोग जूनी परंपरा है। अठै आ बात उल्लेखजोग हैं कै राजस्थानी साहित्य में शिवचंद्र भरतिया ‘विश्रांत प्रवास’ कहाणी लिख र नवौ आगाज करियौ।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Meera Padawali
सगुण भक्ति-धारा के कृष्ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्ठ स्थान है। वे श्रीकृष्ण को ईश्वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण का वरण कर लिया था। माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं। मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उनके पद राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर जे सुने जा सकते हैं। प्रेम-भक्ति में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्ति-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है। आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्ति-सागर में गोते लगाएँगे।
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Hindi Books, Vani Prakashan, इतिहास
Mein Hindu Kyon Hoon (PB)
राजनेता और प्रखर अध्येता शशि थरूर की मूलतः अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तक का यह एक प्रभावी अनुवाद है. इस पुस्तक में शशि हिंदू धर्म की बहलतवादी व्याख्या करते हुए इसके बरक़्स हिंदुत्व की अवधारणा की पड़ताल करते है. हमारे समय में हिंदू धर्म के सिलसिले में होने वाली बहसों में एक विचारोत्तेजक हस्तक्षेप करनी वाले पुस्तक, धर्म और राजनीति के अंतरसंबंध में रूचि रखने वालों के लिए एक अनिवार्य पुस्तक
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Mer Kshatriya Jati ka Itihas
मेर क्षत्रिय जाति का इतिहास :
मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी जाति धर्म आदि तय हो जाते हैं। उस समय ना तो वह अपनी जाति के बारे में जानता है और ना ही अपने धर्म के बारे में। मनुष्यों के द्वारा ही धर्म और जातियों को बनाया गया।
हिन्दू धर्म में कर्म को प्रधानता दी गई है। यदि आप पुश्तैनी कर्म को छोड़कर अन्य कर्म अपनाते है तो उसी क्षण आपकी जाति बदल जायेगी। यह कर्म ही तो है जो नये-नये समाज का निर्माण करते आये है। वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र आदि का निर्माण कर्म के आधार पर ही तो हुआ है एवं इस कार्य प्रधान हिन्दू धर्म में किसी जाति के निर्माण में किसी दूसरी जाति या व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। यह तो अमूक जाति के महापुरुषों के कर्मों की देन है और आज उन्हीं महापुरुषों के वंशज वर्तमान जाति में निवास करते हैं।
भारत देश में हिन्दू धर्म की प्रधानता है। हिन्दू धर्म में पहले तो कर्म के आधार पर वर्ण और जातियाँ तय होती थी लेकिन अब हिन्दू धर्म का विभाजन दलित और स्वर्ण के रूप में उभर कर सामने आया है। आज़ादी के बाद नये वर्गों सामान्य वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियाँ आदि का निर्माण हिन्दू धर्म के लिए घातक साबित हुआ है।
कोई भी जाति दलित नहीं है, उनके कर्म ही उनको दलित बनाते हैं। कोई भी जाति स्वर्ण नहीं है, उनके कर्म ही उनको पूजनीय बनाते हैं। इस देश में कोई दलित नहीं कोई स्वर्ण नहीं है। राजनीति ने हिन्दू समाज को बिखेर दिया है। जातियों का जब मैनें अध्ययन किया तो चैकाने वाले तथ्य सामने आये।
मीणा जाति मध्यप्रदेश के श्योपुर एवं आस-पास के जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग में है एवं राजस्थान की तरह अनुसूचित जनजाति में नहीं। उनके साथ ऐसा कोई भेद भाव नहीं किया जाता है। इतिहास की नज़र से देखा जाए तो मीणा जाति ने हाड़ाओं से पहले हाड़ौती व कछवाहों से पहले ढुँढाढ़ पर राज्य किया था।
कोली (शाक्य, महावर) जाति राजस्थान राज्य में अनुसूचित जाति में आती है लेकिन गुजरात राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में गुजरात के कोली समाज ने योगदान दिया था। मांधाता कोली का गुजरात में राज्य हुआ करता था। उत्तराखण्ड में कोली राजपूत होते हैं। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय राज्य कोली वंश के राजकुमार थे।
गुर्जर जाति कश्मीर में अनुसूचित जनजाति में शामिल है जबकि राजस्थान में अन्य पिछड़ा वर्ग में है। इतिहास में गुर्जर जाति को प्रतिहार राजवंश से जोड़कर देखा जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग ब्राह्मण होते हैं, जो सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कोटा के ग्रामीण अंचल में वैष्णव बाबाजी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है। राजपूत सामान्य वर्ग में आते हैं लेकिन कई क्षेत्रों के राजपूत जैसे सोंधिया (मालवा), रावत (मेवाड़-मारवाड़) राजपूत अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है।
ऐसी ही कई सैकड़ों जातियाँ हैं, जो एक क्षेत्र में कथित दलित समुदाय का हिस्सा है तो अन्य क्षेत्रें में कथित स्वर्ण समाज के रूप में देखी गई हैं।
अगर इस बात को समझ लिया जाए तो दलित-स्वर्ण के झगड़े हमेशा के लिए समाप्त हो सकते हैं। कर्म से व्यक्ति दलित या स्वर्ण हो सकता है लेकिन जाति से कोई भी दलित या स्वर्ण नहीं हो सकता हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Vani Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
MERE BACHPAN KE DIN (PB)
जिन्दगी की मोहर के तौर पर तस्लीमा नसरीन की यह किताब वैसी ही है जैसा एक अछूत का स्पर्श, और उससे भी कुछ ज्यादा। शोषण और धिक्कार के सामाजिक यथार्थ की सैरबीन के आरपार यह जाति व्यवस्था की झूठी योग्यता परखती है और छद्म मैरिट तन्त्र को चुनौती देती हुई महान मेधा के साथ दुनिया में दाखिल होती है। यह विनीत और संकोची है, लगभग नश्वर, विस्मय और जादू से भरे हुए एक नन्हे से बच्चे की नाज़ुक आँखें हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी कमाने की कोशिश कर रहा है जबकि इस उम्र में उसे खेलकूद के मैदान में या स्कूल में होना चाहिए था। ‘बेचैन’ यथा नाम तथा गुण, सदा के बेचैन हैं जैसा कि हिन्दी में इस मुहावरे का मतलब होता है, लेकिन उनकी इस अद्भुत ‘आत्म-पहचान’ में एक आत्मविश्वास और निरुद्विग्नता है जो सिर्फ महान साहित्य की बारीकी और संवेदना से अनुभूत और अभिव्यक्त हो सकती है। आप उसमें संघर्ष का एक पूरा इतिहास पायेंगे, रोजमर्रा की जिन्दगी के पारदर्शी प्रसंगों और यथास्थिति में जीने की इच्छा को नकारने की पूरी चेतना पायेंगे–पूर्व निश्चित साँचों को नकारते हुए, अपराध भाव या मानसिक दासता भाव के बिना यथार्थ को देखते और स्वीकारते हुए।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Meri Ayodhya, Mera Raghuvansh
“हम दोनों भ्राता जब तक अपनी कुटी तक पहुँचते, तब तक अनर्थ घटित हो चुका था। हमारी कुटी रिक्त थी। भूमि पर धूलिकणों के मध्य अन्न एवं पात्र औंधे पड़े थे।
‘सीते!’ मैंने पुकारा, परंतु प्रत्युत्तर नहीं मिला।
‘सीते!’ मैंने पुन: पुकारा; पुन: प्रत्युत्तर में मुझे मौन ही प्राह्रश्वत हुआ।
तत्पश्चात मैं भयभीत कुटी के प्रांगण में आया, जहाँ विशाल वटवृक्ष अवस्थित था।
‘सीते! वृक्ष की आड़ में छिपकर मेरे साथ क्रीड़ा न करो। यह हास का समय नहीं है!’ फिर भी मुझे कोई उत्तर नहीं मिला।
अब मैं उसके पदचिन्हो को देखते हुए आगे बढऩे लगा। रथ के पहियों का चिह्नï मिलने के पश्चात् कोई अन्य चिह्नï नहीं मिला। मेरे धैर्य का सेतु टूट गया।
‘देवताओ, गंधर्वो! क्या आपने भी नहीं देखा?’ मैंने आकाश की ओर मुख करके भीषण गर्जना की। स्तब्ध पवनदेव ने अपना वेग मद्धिम कर दिया।
उस तनावपूर्व घड़ी में देवताओं ने प्रश्नसूचक दृष्टि से गुरु बृहस्पति की ओर देखा। उन्होंने मंद-मंद मुसकराते हुए कहा, ‘प्रभु लीला कर रहे हैं।
आह! मेरा हृदय असंख्य शरों से बिंधा हुआ था। मैं लीला नहीं कर रहा था, वरन राम रूपी मानव काया में असहनीय वेदना का अनुभव कर रहा था।
मैंने पुन: लक्ष्मण से कहा, अवश्य देखा होगा, इन वृक्षों ने, इन लताओं ने, इन पक्षियों ने, इन मृगों ने…। यह कहते हुए मैंने कदंब, अर्जुन, ककुभ, तिलक, अशोक, ताल, जामुन, कनेर, कटहल, अनार आदि अनेक वृक्षों से पूछा, क्या तुमने मेरी भार्या सीता को कहीं देखा है? परंतु वे सभी मौन रहे।
—इसी पुस्तक से”SKU: n/a -
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Meri Tibbat Yatra (PB)
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स्त्री-जीवन के क़ानूनी पहलू पर विस्तार और प्रामाणिक जानकारी से लिखते हुए अरविन्द जैन ने स्त्री-विमर्श की सामाजिक-साहित्यिक सैद्धान्तिकी में एक ज़रूरी पहलू जोड़ा। क़ानून की तकनीकी पेचीदगियों को खोलते हुए उन्होंने अक्सर उन छिद्रों पर रोशनी डाली जहाँ न्याय के आश्वासन के खोल में दरअसल अन्याय की चालाक भंगिमाएँ छिपी होती थीं। इसी के चलते उनकी किताब ‘औरत होने की सज़ा’ को आज एक क्लासिक का दर्जा मिल चुका है। स्त्री लगातार उनकी चिन्ता के केन्द्र में रही है। बतौर वकील भी, बतौर लेखक भी और बतौर मनुष्य भी।
सम्पत्ति के उत्तराधिकार में औरत की हिस्सेदारी का मसला हो या यौन शोषण से सम्बन्धित क़ानूनों और अदालती मामलों का, हर मुद्दे पर वे अपनी किताबों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पाठक का मार्गदर्शन करते रहे हैं। ‘बेड़ियाँ तोड़ती स्त्री’ उनकी नई किताब है जो काफ़ी समय के बाद आ रही है। इस दौरान भारतीय स्त्री ने अपनी एक नई छवि गढ़ी है, और एक ऐसे भविष्य का नक़्शा पुरुष-समाज के सामने साफ़ किया है जिसे साकार होते देखने के लिए शायद अभी भी पुरुष मानसिकता तैयार नहीं है। लेकिन जिस गति, दृढ़ता और निष्ठा के साथ बीसवीं सदी के आख़िरी दशक और इक्कीसवीं के शुरुआती वर्षों में पैदा हुई और अब जवान हो चुकी स्त्री अपनी राह पर बढ़ रही है, वह बताता है कि यह सदी स्त्री की होने जा रही है और सभ्यता का आनेवाला समय स्त्री-समय होगा। इस किताब का आधार-बोध यही संकल्पना है।
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