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Vani Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
संत वाणी-Sant Vani 1
कर्म-ज्ञान-भक्ति योग से आप्लावित भारतवर्ष के दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम तक उसकी भावात्मक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक एकात्मता उसकी सुदीर्घ वैचारिक धारा से स्वयंसिद्ध है। भारतीय एकात्म संस्कृति का निर्माण आध्यात्मिक चेतना की आधार-शिला पर हुआ है। इस तथ्य के अनेकानेक प्रमाण हैं। उनमें से एक है युगों से चली आनेवाली वैष्णव भक्ति-धारा। भारतीय निगमों, आगमों, भगवद्गीता पद्म पुराण, विष्णु पुराण, श्रीमद् भागवत आदि के द्वारा जो वैष्णव भक्ति चेतना उत्तर भारत में विकसित हुई वही ईसा पूर्व के संघकालीन तमिल साहित्य से होते हुए संघोत्तरकालीन महाकाव्य ‘शिलप्पधिकारम्’, ‘मणिमेखलै’ आदि में प्रतिष्ठित होकर परवर्ती परम भागवत वैष्णव संत भक्तों-आषवारों के ‘दिव्य प्रबन्धम्’ में आकर गहनतम प्रपत्तिपरक नारायण (विष्णु) भक्ति के रूप में व्यापक रूप से प्रचारित हुई। यह वैष्णव भक्ति-धारा परवर्ती आचार्यों के माध्यम से दक्षिण से वृन्दावन तक पहुँचकर समग्र भारत में परिव्याप्त हुई। यह भारत की आध्यात्मिक एकात्मता की संक्षिप्त रूपरेखा है। आज के भारत का राष्ट्रीय परिवेश भौतिक श्रीवृद्धि का प्रतिमान है। साथ ही वह नानाविघ बाह्यविभेद रेखाओं से विभिन्न भागों में बँटा हुआ भी है। किन्तु भारत की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक एकात्म चेतना आज भी अक्षुण्ण है और हिमाचल से कन्याकुमारी तक की उसकी एकसूत्रता शाश्वत है। इस राष्ट्रीय आध्यात्मिक एकात्मता का प्रतिपादन ही इस ग्रन्थ का मूल मंत्र है।
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Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
स्वाधीनता के पथ पर : SVADHEENATA KE PATH PAR
टन……टन……टन……..टन……..। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग आगे बढ़कर, दोनों हाथ जोड़, मस्तक नवा, देवता को नमस्कार करते और हाथ की अंजुली बना चरणामृत के लिए हाथ पसारते थे। पुजारी रंगे सिर, बड़ी चोटी को गाँठ दिये, केवल रामनामी ओढ़नी ओढे़, देवता के चरणों के निकट चौकी पर बैठा अरघे से चरणामृत बाँट रहा था।
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