Prabhat Prakashan Books
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Mein Paryatan (HB)
हमारे देश में जितनी विविधता है, उतनी विश्व के किसी भी अन्य देश में नहीं है। हिमाच्छादित पहाड़ियाँ, हिमखंड, गरम जल के फव्वारे, गुफाएँ, सम्मोहित करनेवाली झीलें, दूर तक पसरा रेगिस्तान, समुद्र तट, खान-पान, रहन-सहन, त्योहारों के आकर्षण आदि के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है। यही वह देश है जहाँ सभी रुचियों के पर्यटकों के लिए वैविध्यपूर्ण छटा के पर्यटन स्थल हैं। यही नहीं, पर्यटन के लिहाज से भारत को एकमात्र ऐसा देश भी कहा जा सकता है जिसमें पर्यटक दूसरे देशों के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई या इससे भी कम खर्च पर घूमने-फिरने का आनंद उठा सकते हैं।
तेजी से फैल रहे एशियाई बाजारों को देखते हुए भारत के लिए पर्यटन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाने का यही सही समय है। इस दायित्व की पूर्ति के लिए आवश्यक है पर्यटन शिक्षा। पर्यटन शिक्षा की भी उपादेयता यही है कि इसके जरिए राष्ट्रें में बेहतर पर्यटन वातावरण निर्मित किया जा सके। ऐसा यदि होता है तो पर्यटन के जरिए आतंकवाद, हिंसा, आंदोलन, जातिवाद जैसी समस्याओं से स्वत: ही निजात पाई जा सकती है। पर्यटन परस्पर सौहार्द और जीवन स्तर को उत्कर्ष पर ले जाने का बेहतरीन माध्यम बन सकता है
पर्यटन के सैद्धांतिक पक्ष को व्यावहारिक अनुभवों के साथ प्रस्तुत किया गया है। विश्वास है विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमें, पर्यटन संगठनों, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई यह पुस्तक पर्यटन प्राध्यापकों, पर्यटन उद्योग में नियोजित व्यक्तियों, पर्यटकों तथा विद्यार्थियों के लिए समान रूप से लाभकारी सिद्ध होगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Mein Rashtrapati Pranali
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharat Mein Rashtrapati Pranali
एक महान् समाज दुर्बल हो रहा है। भारत के नागरिक जीवन की दयनीय स्थिति और अप्रतिष्ठित सरकारी संस्थाओं से जूझ रहे हैं। इसका परिणाम है, वे नैतिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे हैं। इस स्थिति पर शोक मनाने या केवल टिप्पणी करने के बजाय मैंने कुछ ठोस करने का निर्णय लिया। अमरीका में लगभग दो दशक रहने के बाद मैं भारत लौटा और उस प्रदेश के लिए एक दैनिक समाचार-पत्र आरंभ किया, जहाँ मैं रहने जा रहा था। सोच रहा था कि मेरे अखबार में, जो विचार और विवरण सामने आएँगे, वे जनता की राय बदलेंगे। संभवतया ऐसा हुआ भी, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि दोष महज जागरूकता की कमी से कहीं अधिक गहरा था। इसने मेरा संकल्प और मजबूत कर दिया और उसी मंथन का परिणाम है यह पुस्तक। भारत मेरा एकमात्र ध्येय है। मेरी कोई राजनीतिक, वैचारिक या दलगत संबद्धता नहीं है।
यह पुस्तक भारत को बचाने का एक प्रयास है। हर गुजरते दिन, भारत में सरकार की मौजूदा प्रणाली लोगों के आत्मबल और नैतिक चरित्र को नष्ट कर अपूरणीय क्षति पहुँचा रही है। यह पुस्तक मात्र रोग ही नहीं बताती, इलाज सुझाती है। यह भारत को इसके कष्टों से छुटकारा दिलाने का हृदयस्पर्शी प्रयास है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास
BHARAT VIBHAJAN
स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री और ‘लौह पुरुष’ की उपाधि प्राप्त सरदार पटेल कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य थे। पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वतंत्रता आदोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनके संपूर्ण राजनीतिक जीवन में भारत की महानता और एकता ही उनका मार्गदर्शक सितारा रहा। सरदार पटेल दो समुदायों के बीच आंतरिक मतभेद उत्पन्न करके ‘बाँटो और राज करो’ की ब्रिटिश नीति के कट्टर आलोचक थे।
भारत की एकता को बनाए रखना उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को अपनी योजना घोषित की। इसमें बँटवारे के सिद्धांत को स्वीकृति दी गई। इस योजना को कांग्रेस और मुसलिम लीग ने स्वीकार किया। सरदार पटेल ने कहा कि उन्होंने विभाजन के लिए सहमति इसलिए दी, क्योंकि वह विश्वसनीय रूप से समझते थे कि ‘(शेष) भारत को संयुक्त रखने के लिए इसे अब विभाजित कर दिया जाना चाहिए। ‘
सरदार पटेल के विस्तृत पत्राचार के आधार पर प्रस्तुत पुस्तक में भारत विभाजन किन परिस्थितियों में और किन-किन कारणों से हुआ, भारतीय नेताओं की मनःस्थिति तथा तत्कालीन समाज की मन :स्थिति का साक्ष्यों के प्रकाश में विस्तृत वर्णन किया गया है । भारत विभाजन के काले अध्याय का सप्रमाण इतिहास वर्णित करती एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Vibhajan Aur Pakistan Ke Shadyantra
इतिहास बताता है कि ऐसे राष्ट्र:: जो अपने हालिया अतीत को याद नहीं रखते:: उनके यहाँ उसी त्रासदी की पुनरावृत्ति का खतरा उत्पन्न हो जाता है:: जिसके दौर से कोई पीडि़त राष्ट्र गुजर चुका होता है। इसीलिए कहा गया है कि वर्तमान परिदृश्य को सही ढंग से समझने के लिए इतिहास में झाँकना जरूरी है। हम देश विभाजन की विभीषिका को कभी भूल नहीं सकते। दरअसल भारत विभाजन भारत की आजादी से भी बड़ी घटना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत को तो देर-सवेर आजाद होना ही था।
अंग्रेजों के महाषड्यंत्र की उपज पाकिस्तान ने वजूद में आते ही भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। पाकिस्तान ने भारत के साथ आमने-सामने की लड़ाइयों में कामयाबी नहीं मिलने पर जनरल जिया की रणनीति के अनुसार भारत को हजार जख्मों से लहूलुहान करने की नीति अपनाई:: जिसका वह आज भी अनुसरण कर रहा है। लेकिन नफरत और खूंरेजी से उत्पन्न यह मुल्क उसी नफरत और खून-खराबे का शिकार हो गया है:: जिसमें उसका जन्म हुआ था। षड्यंत्ररचनाशास्त्र और आतंकवाद में पाकिस्तान के आकाओं ने जो महारथ हासिल की है:: उसकी तह में जाने की जरूरत है।
तथ्यान्वेषण पर आधारित यह पुस्तक पाकिस्तान की सोच और उसकी कारस्तानियों को समझने में उपयोगी सिद्ध होगी। इससे यह भी पता चलेगा कि किस प्रकार पाकिस्तान अपने ही कपाल पर हथौड़ा मार रहा है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Vibhajan Ka Dansh
“14 अगस्त, 1947 को विभाजन का दंश एक कभी न भरनेवाला घाव दे गया। भारतभूमि का ही एक टुकड़ा लेकर ‘पाकिस्तान’ नामक इसलामिक राष्ट्र घोषित करनेवाले कट्ïटरपंथी नेताओं ने उस भूखंड पर बहुत समय पहले से ही रहते चले आए भारतीयों को, विशेषकर हिंदुओं और सिखों को जबरदस्ती भारत भेजने का फरमान सुना दिया। उनके सामान लूट लिये गए, जमीनें वहीं छूट गईं, स्त्रियों-बच्चियों के साथ पापाचार हुए; पुरुषों, स्त्रियों की हत्या करके उनके शव ट्रेनों में भरकर भारत की ओर रवाना कर दिए गए।
भारत के विभाजन ने मानवता की ही हत्या नहीं की थी, विचारों की भी हत्या की थी। यदि 15 अगस्त को मिली आजादी एक ऐतिहासिक घटना है तो 14 अगस्त को विभाजन की त्रासदी एक ऐतिहासिक दुर्घटना है।‘भारत-विभाजन का दंश’ रोंगटे खड़े कर देनेवाली, भीतर तक उद्वेलित और आंदोलित कर देनेवाली मार्मिक औपन्यासिक कृति है, जिसके लेखन का एक उद्देश्य यह भी है कि आगे आनेवाली पीढिय़ाँ समझें कि किस तरह से आदमी से आदमी के रिश्ते को उन्माद और आतंक रौंदता आ रहा है। जब नई पीढिय़ाँ उस आतंक और उन्माद को समझेंगी, तभी उनके उन्मूलन का स्थायी मार्ग भी मिलेगा; विभाजन का सच भी पता चलेगा और विभाजन की व्यर्थता भी। तभी पता चलेगा आक्रांताओं के साथ संबंध का ऐतिहासिक झूठ भी और तभी बढ़ उठेंगे पग घर वापसी की ओर भी।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat-Pak Sambandh
भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में कुछ अनुमान अकसर लगाए जाते हैं-पहला, भारत व पाकिस्तान में आम लोग एक- दूसरे के संपर्क में आना चाहते हैं, लेकिन सरकारें इसे रोकती हैं; दूसरा, भारतीयों और पाकिस्तानियों की नई पीढ़ी पुराने पूर्वाग्रहों को तोड़ सकती है; तीसरा, सांस्कृतिक व बौद्धिक संपर्क के समर्थन से सामान्य आर्थिक व तकनीकी सहयोग आपसी संबंधों में सुधार ला सकता है ।
यह पुस्तक इन अनुमानों की उपयुक्तता की जाँच करने का महत् प्रयास करती है । अब तक विभाजन की यादें धुँधली होती नहीं दिखीं, न ही पूर्वग्रहों से मुक्ति मिली है । पाकिस्तान भारत के साथ आर्थिक संबंधो के बारे में गंभीर आशंकाओं से ग्रस्त है, क्योंकि उसे डर है कि एक बड़े पड़ोसी द्वारा उसका शोषण किया जा सकता है और उसे दबाया जा सकता है । यह अनुमान लगाना तार्किक होगा कि सूचना-क्रांति तथा आर्थिक भूमंडलीकरण पाकिस्तान और भारत को अपनी प्रवृत्तियाँ व नीतियों बदलने के लिए विवश कर सकते हैं ।
किंतु ये पूर्वानुमान 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के बाद नाटकीय तरीके से बदल गए । दो माह बाद भारतीय संसद् पर आक्रमण के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव चरम सीमा पर पहुँच गया । अब जनरल मुशर्रफ एक दुविधापूर्ण स्थिति में हैं । यदि उन्हें सत्ता में रहना है तो वह अपने देश में इसलामी कट्टरपंथियों का एक सीमा से अधिक विरोध नहीं कर सकते । दूसरी ओर, उन्हें धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद से खुद को अलग करने के अमेरिका के नेतृत्ववाले अंतरराष्ट्रीय दबाव का ध्यान भी रखना है । अत: प्रतीत होता है, भारत-पाकिस्तान संबंध एक और जबरदस्त घुमाववाले मोड़ पर पहुँच चुके हैं ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharatbodh: Sanatan Aur Samayik
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bharatbodh: Sanatan Aur Samayik
“भारत केवल भौगोलिक रचना या भूखंड मात्र नहीं है, न तो भारतबोध मात्र इतिहास से बनता है । वस्तुत: भारतबोध एक सनातनबोध की प्रक्रिया है, जो नित्य और निरंतर, इन दोनों के साथ गुंफित होता है। नित्यता से शाश्वत मूल्य आते हैं तो निरंतरता से समय के साथ उनका समंजन होता है। भारतबोध राष्ट्रीयता है, संस्कृति है और धर्म भी है। भारतबोध पद से जो अर्थ अभिहित होता है–वह सनातन और निरंतर सभ्यता की जीवन-प्रणाली की अभिव्यंजना है।
भारतीयता का विचार, भारतबोध का प्रश्न इस रूप में समझा जा सकता है कि यह कृतज्ञता की संस्कृति है और कृतज्ञता का प्रारंभ इस मान्यता, इस विश्वास के साथ होता है कि हम कुछ ऋणों के साथ उत्पन्न हुए हैं । हमने इस धरती में जन्म लेने के साथ ही समाज का, धरती का, परिवार का, शिक्षकों का, आचार्यों का ऋण प्राप्त किया है और वास्तविक मुक्ति हमें तब होगी, जब हम इन ऋणों से मुक्त होंगे; और इससे ऋण मुक्ति का तरीका इतना ही है कि हमें मनुष्य बनना है; न तो यह सभ्य बनने की प्रणाली है और न ही यह जीनियस बनने की । भारत धर्म भी है और यह धर्म उपासना-पंथों से परे भी । यह धर्म मानवीय मूल्यों का पुंज है।
भारतबोध की दृष्टि से इस पुस्तक में कुछ सूत्रों की चर्चा है और कुछ सूत्रों का आज के परिप्रेक्ष्य में पल्ल्वन भी है। समकाल के भारत की भूमिका को उभारने की कोशिश की गई है और समकाल के भारत के लिए, भारत में जन्म लिये हुए लोगों को किस प्रकार की जीवन प्रणाली को स्वीकार करना है; किस मूल्य-व्यवस्था को स्वीकार करना है, इस पर किंचित् विवेचन किया गया है.”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
BHARATIYA GYAN KA KHAZANA
दविंची कोड और एंजल्स एंड डेमन्स जैसे विश्वप्रसिद्ध उपन्यास लिखनेवाले डेन ब्राउन का एक उपन्यास है—द लॉस्ट सिंबल। इसमें उपन्यास का नायक अपने विद्वान् और वयोवृद्ध प्राध्यापक से प्रश्न पूछता है—मानव जाति ज्ञान हासिल करने के पीछे लगी है। यह ज्ञान प्राप्त करने का आवेग प्रचंड है। यह प्रवास हमें कहाँ लेकर जाएगा? अगले पचास-सौ वर्षों में हम कहाँ होंगे? और कौन सा ज्ञान हम प्राप्त करेंगे?
वे प्राध्यापक, उपन्यास के नायक को उत्तर देते हैं—यह ज्ञान का प्रवास, जो आगे जाता दिख रहा है, वह वास्तव में आगे नहीं जा रहा है। यह तो अपने पूर्वजों द्वारा खोजे हुए समृद्ध ज्ञान को ढूँढ़ने का प्रयास है। अपने पास प्राचीन ज्ञान का इतना जबरदस्त भंडार है कि आगे जाते हुए हमें वही ज्ञान प्राप्त होनेवाला है। वे प्राध्यापक इस संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा का उल्लेख करते हैं।
और फिर पीछे मुड़कर जब हम देखते हैं, तो ज्ञान की जो बची-खुची शलाकाएँ दिखती हैं, उन्हें देखकर मन अचंभित सा हो जाता है। इतना समृद्ध ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था…!
उसी अद्भुत और रहस्यमयी ज्ञान के कपाट खोलने का छोटा सा प्रयास है यह पुस्तक ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
BHARATIYA GYAN KA KHAZANA (PB)
दविंची कोड और एंजल्स एंड डेमन्स जैसे विश्वप्रसिद्ध उपन्यास लिखनेवाले डेन ब्राउन का एक उपन्यास है—द लॉस्ट सिंबल। इसमें उपन्यास का नायक अपने विद्वान् और वयोवृद्ध प्राध्यापक से प्रश्न पूछता है—मानव जाति ज्ञान हासिल करने के पीछे लगी है। यह ज्ञान प्राप्त करने का आवेग प्रचंड है। यह प्रवास हमें कहाँ लेकर जाएगा? अगले पचास-सौ वर्षों में हम कहाँ होंगे? और कौन सा ज्ञान हम प्राप्त करेंगे?
वे प्राध्यापक, उपन्यास के नायक को उत्तर देते हैं—यह ज्ञान का प्रवास, जो आगे जाता दिख रहा है, वह वास्तव में आगे नहीं जा रहा है। यह तो अपने पूर्वजों द्वारा खोजे हुए समृद्ध ज्ञान को ढूँढ़ने का प्रयास है। अपने पास प्राचीन ज्ञान का इतना जबरदस्त भंडार है कि आगे जाते हुए हमें वही ज्ञान प्राप्त होनेवाला है। वे प्राध्यापक इस संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा का उल्लेख करते हैं।
और फिर पीछे मुड़कर जब हम देखते हैं, तो ज्ञान की जो बची-खुची शलाकाएँ दिखती हैं, उन्हें देखकर मन अचंभित सा हो जाता है। इतना समृद्ध ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था…!
उसी अद्भुत और रहस्यमयी ज्ञान के कपाट खोलने का छोटा सा प्रयास है यह पुस्तक ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharatiya Jnan Parampara Aur Vicharak (PB)
भारत की सनातन-सांस्कृतिक परंपरा समावेशी, करुणाप्रधान एवं समतामूलक रही है। समय के झंझावातों, विदेशी आक्रांताओं के प्रहारों और तकनीक की चकाचौंध ने इसके बाह्य स्वरूप को प्रभावित अवश्य किया है लेकिन मूल रूप में समस्त चराचर जगत् को स्वयं का रूप मानने की भारतीय-दृष्टि आज भी लोकजीवन में अपना स्थान बनाए हुए है। आचार्य रजनीश शुक्ल की यह पुस्तक भारतीय समाज, इतिहास, संस्कृति, राष्ट्र-निर्माण, आत्मनिर्भरता, पत्रकारिता आदि विषयों को सारगर्भित तरीके से प्रस्तुत करती है और ऐसा करते हुए वह गौतमबुद्ध, कबीर, तुलसीदास, गांधी, विनोबा, आंबेडकर, वीर सावरकर और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे मनीषियों को उद्धृत करते हैं, जिससे उनके विचार एक सनातन ज्ञानपरंपरा के वाहक के रूप में दिखलाई देते हैं।
—रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
(केंद्रीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार )
आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल ने इस कृति में भारतीय ज्ञानपरंपरा को उसके वर्तमान व्यापक संदर्भ में देखा है। वे अपनी परिपुष्ट दार्शनिक पृष्ठभूमि के कारण प्राचीन भारतीय चिंतन के विविध आयामों पर अधिकार रखते हैं तथा समकालीन पश्चिमी विचार और दर्शन के साथ-साथ आधुनिक भारतीय दर्शन एवं चिंतन पर भी उनकी वैसी ही पकड़ है। यह पुस्तक एक नई बहस को आरंभ करेगी।
—प्रो. कमलेशदत्त त्रिपाठी
कुलाधिपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
पिछले दो दशकों में पूरे विश्व की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक संरचना में व्यापक बदलाव आया है। इस परिदृश्य में भारत एक बार फिर से विश्वगुरु बन सकता है—इसमें कोई संदेह नहीं है। हालाँकि कुछ लोग असहमत हो सकते हैं। राष्ट्रीय चिंतक यह मानते हैं कि भारत की सांस्कृतिक विशिष्टता में विश्वगुरु बनने के बीज-तत्त्व विद्यमान हैं। यहाँ का जन अपनी पहचान से भारत को विशिष्ट बनाए हुए है। भारतीय चिंतन और भारतीय दृष्टि मनुष्य को एक संपोष्य जीवन प्रणाली दे सकती है और यही वह कारण है जिससे भारत को विश्वगुरु बनना ही है, इसे कोई रोक नहीं सकता है। इस लघु संग्रह में इसकी पड़ताल करने की कोशिश की गई है। इसमें भारतीय ज्ञानपरंपरा के सनातन प्रवाह की विविध धाराओं के रूप में समझने की कोशिश की गई है। इस धारा को प्रवाहित करने में योगदान करनेवाले कुछ विचारकों की विचार-सरणि का निदर्शन करने का यह एक विनम्र प्रयास भी है। विश्वास है कि अनादि से अनंत तक विस्तृत भारत की ज्ञानयात्रा को समझने में यह लघुतम प्रयास पाठकों को सार्थक लगेगा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Bharatiya Pariprekshya
‘संकल्प’ संस्था सिविल सेवा के विद्यार्थियों में सामाजिक प्रतिबद्धता और समाज-परिवर्तन का दृष्टिकोण और भाव जाग्रत कर रही है। यह उसकी तीन दशक से ज्यादा की साधना है। इसके सूत्रधार श्री संतोष तनेजा हैं। यह तथ्य प्राय: ज्ञात है, परंतु साथ ही संकल्प संस्था वैचारिक यज्ञ भी कर रही है। इसी कड़ी में वर्ष 2015 से ‘संकल्प व्याख्यानमाला’ प्रारंभ हुई। इसका उद्देश्य सांस्कृतिक बोध के लेखकों, चिंतकों और विचारकों के माध्यम से देश के प्रबुद्ध समाज में विचारशील लोगों तक एक विमर्श (डिस्कोर्स ) और आख्यान (नैरेटिव) को स्थापित करना था।
इन व्याख्यानों का संकलन कर प्रकाशित किया जाए, यह विचार और सुझाव आदरणीय डॉ. कृष्ण गोपालजी का था। व्याख्यानमाला के इन कार्यक्रमों के आयोजन और इन महत्त्वपूर्ण विचारों की प्रस्तुति तथा प्रकाशन के प्रयत्नों को दिशा श्री संतोष तनेजा द्वारा दी गई। इसके लिए पहल एवं सतत प्रयत्न श्री राजेंद्र आर्य ने किया। यह पुस्तक वास्तव में उनके अथक प्रयासों का फल है।अनुक्रम
श्रीराम जन्मभूमि और व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य — डॉ. कृष्ण गोपाल
राष्ट्रीय सुरक्षा : वर्तमान परिप्रेक्ष्य जम्मू-कश्मीर और धारा 370 — अमित शाह
अद्वितीय प्रशासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज — स्व. अनिल माधव दवे
भारतीय संस्कृति के माध्यम से विश्व की चुनौतियों का समाधान — स्व. सुषमा स्वराज
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण — रमेश पतंगे
संस्कृति, अध्यात्म और प्रशासन — आदित्यनाथ योगी
सामाजिक समरसता एवं भारत की संत परंपरा — डॉ. कृष्ण गोपाल
व्यावसायिक शिक्षा का माध्यम बनें भारतीय भाषाएँ — संतोष तनेजा
हमने भारतीय भाषाओं को व्यावसायिक पाठ्यक्रम में लाने की पहल कर दी है — डॉ. अनिल सहस्रबुद्धे
भारतीय भाषाओं के संबंध में चुनौतियां — अनिल जोशी
विदेश नीति : भारत एवं पड़ोसी देश — विष्णु प्रकाश
विकास के इस तथाकथित मॉडल पर प्रश्नचिन्ह हैं — डॉ. मुरली मनोहर जोशी
नई शिक्षा नीति — डॉ. ओमप्रकाश कोहलीSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Bharatiya Sahitya
इस ग्रंथ में आधुनिक भारतीय भाषाओं की साहित्य-संपदा की रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसमें संविधान में स्वीकृत चौदह भाषाओं के साहित्यिक विकास पर संक्षिप्त सर्वेक्षण-लेख संकलित हैं। हिंदी, सिंधी और कश्मीरी को छोड़कर ये सभी लेख मूलत: अंग्रेजीमें लिखे गये हैं जिनका प्रामाणिक हिंदी अनुवाद इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है।
भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्र के समान ही भारतीय साहित्य की समेकित संकल्पना भी देश की भावनात्मक एकता के लिए अत्यंत असवश्यक है जिसकी ओर ग्रंथ के पहले लेख में पूर्ण आस्था के साथ संकेत किया गया है। यदि यह प्रकाशन हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता-देश में एकता-अखंडता की भावना-को सुदृढ् करने में कुछ भी योगदान कर सका तो हमारा विनम्र प्रयास सफल होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
BHARATIYA SAMVIDHAN : ANAKAHI KAHANI
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBHARATIYA SAMVIDHAN : ANAKAHI KAHANI
यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच, तथ्य, कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है। घटनाएँ इतिहास नहीं होतीं, उसके नायक इतिहास बनाते हैं। 1920 से महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा का नेतृत्व किया। उन्होंने ही स्वराज्य को पुनर्परिभाषित किया। फिर संविधान की कल्पना को शब्दों में उतारा। इस तरह संविधान की अवधारणा का जो विकास हुआ, उसके राजनीतिक नायक महात्मा गांधी हैं। वे संविधान सभा के गठन, उसे विघटित होने से बचाने और सत्ता हस्तांतरण की हर प्रक्रिया में अत्यंत सतर्क हैं। उन्होंने हर मोड़ पर कांग्रेस को बौद्धिक, विधिक, राजनीतिक और नैतिक मार्गदर्शन दिया। संविधान के इतिहास से पता नहीं क्यों, इसे ओझल किया गया है। ग्रेनविल ऑस्टिन ने जो स्थापना दी, उसके विपरीत इस पुस्तक में महात्मा गांधी की नेतृत्वकारी भूमिका का प्रामाणिक विवरण है। पंडित नेहरू बड़बोले नेता थे। खंडित चित्त से उनका व्यक्तित्व विरोधाभासी था। संविधान के इतिहास में वह दिखता है। इस पुस्तक में उसके तथ्य हैं कि कैसे उन्हें अपने कहे से बार-बार अनेक कदम पीछे हटना पड़ा जब 1945 से 1947 के दौरान ब्रिटिश सरकार से समझौते हो रहे थे। सरदार पटेल ने मुस्लिम सदस्यों को सहमत कराकर पृथक् निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कराया, जिससे संविधान सांप्रदायिकता से मुक्त हो सका। इसे कितने लोग जानते हैं! डॉ. भीमराव आंबेडकर ने उद्देशिका में बंधुता का समावेश कराया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का भरोसा उन झंझावातों में भी विचलित होने नहीं दिया। संविधान की नींव में जो पत्थर लगे उन्हें बेनेगल नरसिंह राव ने लगाया, जिस पर इमारत बनी। उस इतिहास में एक पन्ना ‘राजद्रोह धाराओं की वापसी’ का भी है, जिसे असंवैधानिक संविधान संशोधन कहना उचित होगा। पंडित नेहरू ने यह कराया। यह अनकही कहानी भी इसमें आ गई है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Sanskriti
भारतीय संस्कृति एक ओर जहाँ सत्य की सतत खोज में रत है और इस खोज के निमित्त जहाँ वे केवल आडंबरों का ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के हर नाम व रूप के संपूर्ण विसर्जन की पक्षधरता करती है, वहीं दूसरी ओर इस संस्कृति में जैसा अद्भुत समन्वय है वह मानवता के लिए एक श्रेष्ठतम देन है। इस संस्कृति की विशेषता ही यह है कि वह हर बात, हर पक्ष के लिए राजी है तथा और तो और, असत्य को भी परमात्मा की छाया के रूप में मान्यता देती है; क्योंकि लक्ष्य है सत्य और असत्य से ऊपर उठकर, उसका अतिक्रमण करके यह जानने की चेष्टा कि पूर्णत्व है क्या?
—इसी पुस्तक से
प्रखर चिंतक व विचारक नरेंद्र मोहन का भारतीय धर्म, संस्कृति, कला व साहित्य के प्रति विशेष अनुराग रहा। उनके उसी अनुराग ने उनकी लेखनी को यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति के सभी पक्षों पर एक सार्थक चर्चा की है। विश्वास है कि यह कृति भारतीय जनमानस में समाहित भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा को और प्रबल करेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Vastu Shastra
जीवन को सुख-समृद्धि और मानसिक शांति के आलोक से अलंकृत करना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का परम उरभीष्ट होता है । इस दृष्टि से मानव जीवन को प्रभावित करनेवाले अनेक पहलुओं का महत्त्व है । इन महत्त्वपूर्ण पहलुओं में ‘ वास्तु विज्ञान ‘ की स्वीकार्य भूमिका है । यह प्राच्य विद्या वस्तुत: विज्ञान है जिसके सिद्धांतों, नियमों एवं विश्लेषणों का वैज्ञानिक आधार है । वर्तमान युग में इसके महत्त्व को समझा गया है । वास्तु शास्त्र विज्ञान एवं ज्योतिष का अनुपम संगम है ।
वास्तु शास्त्र के सिद्धांत और नियम जनसाधारण के जीवन में उपयोगी बनकर उनके जीवन को प्रगतिशील, समृद्धियुक्त एवं शांतिमय बना सकें, लेखक के इस लघु प्रयास का यही लक्ष्य है । विषय सामग्री सर्वग्राह्य बने, इस हेतु पुस्तक में सरलतम भाषा का प्रयोग किया गया हैं । दिशा एवं कोण वास्तु शास्त्र के अनिवार्य अंग हैं । समग्र भूमंडल की स्थिति का भौगोलिक ज्ञान भी इसी पर आधारित है । व्यक्ति का प्रत्यक्ष संबंध उसके अपने भूखंड से होता है, जिसपर वह अपना जीवन व्यतीत करता है । प्रस्तुत पुस्तक में इसी दृष्टि से भूखंड की मृदा, स्थिति, दिशा, कोण, क्षेत्रफल इत्यादि बिंदुओं का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है ।
पुस्तक में स्थान-स्थान पर दिए गए चित्र विषय की रोचकता को बढ़ाते हैं और उसे और अधिक सुगम व सुग्राह्य बनाते हैं । विश्वास है, ‘ भारतीय वास्तु शास्त्र ‘ अपने इस स्वरूप में पाठकों को और भी पसंद आएगी ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Bharatiyata Ki Pahchan
“हम भारत की संपूर्ण सत्ता को समझने के लिए उसे तीन कोणों से देखें तो ठीक-ठीक समझ सकते हैं। वे कोण हैं—
(1) ‘मृण्मय’ (अर्थात भौगोलिक-आर्थिक-जैविक दृष्टि से),
(2) ‘शाश्वत’ (ऐतिहासिक अविच्छिन्न विकास की दृष्टि से),
(3) ‘चिन्मय’ (श्रुति अर्थात ‘अचल’ मूल्यों की दृष्टि से, यानी ‘मूल प्रकृति’ या essence की दृष्टि से)।
इन तीन कोणों से भारत का अध्ययन करके संपूर्ण भारतीय ‘सत्ता’ और भारतीय पुरुषार्थ को हम समझ सकते हैं। भारत का मृण्मय रूप हमारे गाँव-नगर, खेत-खलिहान, नदी-पहाड़, हाट-बाजार में उपस्थित है और इस रूप द्वारा भारत ‘काम’ और ‘अर्थ’ की साधना कर रहा है।
भारत का ‘शाश्वत रूप’ काल-प्रवाह अर्थात इतिहास में हजार-हजार वर्षों से, सैंधव सभ्यता के पूर्व से, निषाद-द्रविड़-किरात आर्य—इन चार महान् प्रवाहों के क्रमागत आगमन से निरंतर चलायमान है। यह ‘शाश्वत’ इस अर्थ में है कि यह अविच्छिन्न रहा है। अत: भारत का ‘शाश्वत रूप’ इतिहास की विकास-यात्रा में नित्य देहांतर करते हुए, निरंतर चलते हुए ‘धर्म’ नामक तृतीय पुरुषार्थ की अखंड, अविच्छिन्न उपासना कर रहा है। भारत का ‘चिन्मय रूप’ इस शाश्वत रूप से भी सूक्ष्म है। इस रूप का लक्ष्य है ‘मोक्ष धर्म’, अर्थात ‘शुद्ध आनंद’।”SKU: n/a -
Prabhat Prakashan
Bharatvarsh Ke Aakrantaon Ki Kalank Kathayen
“प्रस्तुत पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ ऐसे दुर्दांत आक्रांताओं के कुत्सित कुकृत्यों पर प्रकाश डालती है | महमूद गजनवी के आक्रमण से पहले भारत में सूफियों को छोड़कर इसलाम का शायद ही कोई अनुयायी रहा हो |
लेकिन सैयद सालार मसूद गाजी के आक्रमण के समय, सलल््तनत काल तथा मुगल काल में धर्म-परिवर्तन का नंगा नाच किया गया | धर्म-परिवर्तन न करने पर जजिया कर लादा गया, जो कि मुगल काल तक चलता रहा | इस कालखंड में भारतीय संस्कृति को पददलित करने का हरसंभव प्रयास किया गया।
इसमें नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय जलाने से लेकर अनेक मह्त्त्वपूर्ण मंदिरों व श्रद्धाकेंद्रों को ध्वस्त करना प्रमुख था। इन्हें न केवल ध्वस्त किया गया, बल्कि इन पर उन्होंने अपने उपासना-स्थलों का निर्माण भी किया | सिकंदर और उसके बाद 712 ई. से लेकर 1947 तक भारतवर्ष के लुठेरों की काली करतूतों के कारण भारत आअँधेरे के गिरफ्त में छटठपटाता रहा, लुठता रहा।इन्होंने भरतीय संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को नष्ट किया, हमारी शिक्षा व्यवस्था, उद्योग, व्यापार, कलाओं और जीवनमूल्यों पर निरंतर प्रहार करके भारतवर्ष की समृद्धि और सामर्थ्य को खंडित किया | यह पुस्तक इन क्रूरों और आततायियों की नृशंसता और पाशविकता की झलक मात्र देती है, जो हर भारतीय को भीतर तक उद्वेलित कर देगी कि हमारे पूर्वजों ने इन नरपिशाचों के हाथों कितने दुःख और कष्ट सहे.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bhartiya Sena Ka Gauravshali Itihas
भारतीय सेना का इतिहास विशिष्ट, उच्च कोटि का और गौरवशाली रहा है। भारतीय सैनिकों के शौर्य, साहस, पराक्रम एवं बलिदान की गाथाएँ सदियों से गाई जाती रही हैं। वे गाथाएँ इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। शौर्य व साहस के अतिरिक्त भारतीय सेना सैन्य धर्म एवं चरित्रगत आचरण के लिए भी जानी जाती है।
बारहवीं शताब्दी से लेकर अब तक—फिर चाहे वह पृथ्वीराज चौहान, राजा पोरस, राणा साँगा, महाराणा प्रताप या शिवाजी के नेतृत्व में लड़ी हो अथवा प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना के झंडे तले या स्वतंत्रता के पश्चात् उसने चीन व पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा हो—उसका इतिहास सैन्य दृष्टिकोण से उज्ज्वल और गौरवपूर्ण रहा है।
भारतीय सेना के परंपरागत, चारित्रिक और सैद्धांतिक मूल्यों का समावेश करते हुए इसके सैनिकों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत सैन्य आदर्शों का विवरण इस पुस्तक में प्रस्तुत है। सेना के विशिष्ट व उच्च अधिकारियों द्वारा वर्णित यह गौरवशाली गाथा पुस्तक में दिए गए सैकड़ों जीवंत चित्रों के द्वारा और भी रोचक, रोमांचक व प्रामाणिक बन पड़ी है।
यह पुस्तक भारतीय सेना, उसके विकास एवं विस्तार तथा राष्ट्रीय विकास में उसके योगदानों के संबंध में पाठकों के लिए संक्षिप्त, विश्लेषणपरक और प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत करती है। भारतीय सेना के आरंभिक काल से लेकर आज तक के इतिहास को सँजोए यह पुस्तक स्वयं में अद्भुत एवं अनुपम प्रस्तुति है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Bhasha Sanshay Shodhan
पुस्तक को पढ़कर कहा जा सकता है कि लेखक ने भाषाई शुद्धता संबंधी लगभग सभी पक्षों को छूने का प्रयास किया है। आशा करता हूँ, विश्वविद्यालयों, विद्यालयों के छात्र-छात्राओं के साथ-साथ सभी हिंदी प्रेमी इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे।
-गिरिधर मालवीय
कुलाधिषति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय
सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के साथ-साथ यह पुस्तक उन सभी सुधी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है, जिन्हें हिंदी भाषा से स्नेह है और जो सदैव इस भाषा के विकास के लिए विचार करते हैं अथवा प्रयास करते हैं । सिविल सेवा अभ्यर्थियों में लेखन कौशल के विकास में यह अत्यधिक सहायक होगी ।
-सी.बी.पी. श्रीवास्तव
निदेशक; डिस्कवरी आई. ए. एस., दिल्ली
यह पुस्तक आज के दौर में भाषाई अनुशासन को कायम रखने की दिशा में अभिनव प्रयोग है। यह मीडियाकर्मियों, विद्यार्थियों, लेखकों के साथ-साथ हर हिंदीप्रेमी के लिए अच्छी मार्गदर्शिका के रूप में पठनीय है।
-प्रो. संजीव भानावत
पूर्व अध्यक्ष जनसंचार केंद्र,
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर,
संपादक; “कम्युनिकेशन टुडे
यह पुस्तक पत्रकारिता और लेखन से जुड़े लोगों के लिए एक अत्यावश्यक संदर्भ
ग्रंथ सिद्ध होगी।
-संजय स्वतंत्र
मुख्य उपसंपादक, जनसत्ता,
इंडियन एक्सप्रेस सगृह
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bhookh aur Bhoj ke Beech Vivekananda
कभी राजभवन में सोने की थाली में राजसी भोजन, कभी झोंपड़ी में गरीबों का भोजन, कभी भूखे पेट, कभी सुनसान जंगल में आधे पेट खाकर भ्रमण करना स्वामी विवेकानंद के जीवन के अंतिम दो दशकों की आश्चर्यजनक जीवनगाथा। पिछले लगभग डेढ़ सौ वर्षों से कई देशों में स्वामीजी के पाककला प्रेम की चर्चा के साथ महासागर के उस पार अमेरिका में वेद, वेदांत के साथ-साथ बिरयानी-पुलाव-खिचड़ी से संबंधित कई अनजानी कहानियाँ प्रचलित हैं।
भारतीय पाककला के प्रचार में सर्वत्यागी संन्यासी के असीम उत्साह वर्तमान के समाजतत्त्वविद् के लिए आश्चर्य की बात है, फिर भी पाकशास्त्री महाराज विवेकानंद को लेकर कोई संपूर्ण पुस्तक किसी भी भाषा में क्यों नहीं लिखी गई है, यह समझ से परे है।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के आहार के विषय में हजारों लोगों के मुँह से कही गई अनमोल बातों पर खोजी लेखक शंकर की अद्भुत प्रस्तुति है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bhoole- Bisare Krantikari
इस कसौटी पर 21वीं सदी के दूसरे दशक में पहला यक्षप्रश्न यह है— गांधी के स्वराज को सुराज बनाना है, भारत को महान् बनाकर इतिहास लिखना है, मानसिकता बदलनी है, सेक्युलर भारत को वैदिक भारत बनाना है?
सन् 1962 के चीन-भारत युद्ध में हुए शहीदों की दासता तो अभी भी हेंडरसन रिपोर्ट के अंदर ठंडे बस्ते में बंद पड़ी है, उन्हीं शहीदों की व्यथा-गाथा का एक प्रामाणिक तथ्य सन् 1962 के युद्ध के 48 साल बाद 2010 में उजागर होकर हमारे स्वतंत्र भारत के शासन व सा पर एक प्रश्नचिह्न लगा दिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपनी व्यवस्थागत सात्मक प्रणाली देशभतों और शहीदों के क्रियाकलापों से कितनी अनभिज्ञ तथा उनके बलिदान के प्रति कितनी उदासीन एवं निष्क्रिय है।
वस्तुत: इस पुस्तक के संकलन करने में यही मुय बिंदु है कि जिनको जो देय है, उचित है, उनको दिया जाए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर लेखकद्वय ने दो वर्षों तक शोधकार्य कर इस पुस्तक का संयोजन किया। अत: आशा है कि आखिर कोई तो है, जो इन हुतात्माओं को राष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान देकर इनकी धूमिल छवि को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करेगा।
अतीत के गहरे नेपथ्य में सायास धकेल दिए गए माँ भारती के वीर सपूतों, राष्ट्राभिमानी देशभतों, हुतात्माओं, बलिदानियों का पुण्यस्मरण है यह पुस्तक।SKU: n/a