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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vinashparva
यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता पाने के बाद जिन तथ्यों को लेखनीबद्ध करके देश की भावी पीढि़यों के लिए सहेजा जाना चाहिए था, वह कार्य आज भी अधूरा है। भारत की शिक्षा-व्यवस्था, भारत की स्वास्थ्य सेवाएँ और भारत के उद्योग, इन सबका हृस अंग्रेजी शासन में कैसे होता गया, इस पर विस्तार से कभी नहीं लिखा गया। अंग्रेजों की क्रूरता, बर्बरता, निर्ममता और भारतीयों पर किए हुए उनके अन्याय व अत्याचार के साथ ही अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट का तथ्यपूर्ण विवरण इस पुस्तक में संकलित हैं। साथ ही अंग्रेजों के आने के पहले भारत की स्थिति क्या थी, अंग्रेजों ने कैसे भारत की जमी-जमाई व्यवस्थाओं को छिन्न-भिन्न किया और उनके जाने के बाद भारत की स्थिति क्या रही इस पर विस्तार से प्रकाश डालनेवाली यह पुस्तक अपनी सहज-सरल प्रस्तुति तथा प्रवाहपूर्ण भाषा-शैली के चलते नई पीढ़ी को अपनी ओर अवश्य आकर्षित करेगी।
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Gita Press
Vinay-Patrika
यह अद्भुत पुस्तक संत-शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के आर्त हृदय का भावात्मक परिचय है। इसमें उन्होने विभिन्न देवी-देवताओं के चरणों में प्रणत होकर श्रीरामभक्ति के वरदान की याचना के साथ भगवान श्रीराम की कृपा पक्ष का सुन्दर वर्णन किया है। भावात्मक व्याख्या के साथ उपलब्ध।
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Gita Press
Virah-Padavali
इस पुस्तकमें श्री सूरदास जी के द्वारा विरचित गोपी-विरह-सम्बन्धी 325 पदों का संग्रह है। इसमें अक्रूर जी के साथ श्रीकृष्ण के मथुरागमन के समय यशोदा एवं गोपियों की विरह-दशा का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है। The book consists of 325 poems describing heart-touching separation of Gopis. A heart rending vivid description regarding separation of Gopis and Yashoda, the foster Mother of Krishna, at the time of departure of Krishna along with Akrura to Mathura.
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Gita Press, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Vishnu Sahasranama 0819
प्रार्थना
महाभारतमें भगवान्के अनन्य भक्त पितामह भीष्मद्वारा भगवान्के जिन परम पवित्र सहस्र नामोंका उपदेश किया गया, उसीको श्रीविष्णुसहस्रनाम कहते हैं । भगवान्के नामोंकी महिमा अनन्त है । हीरा, लाल, पन्ना सभी बहुमूल्य रत्न हैं पर यदि वे किसी निपुण जड़ियेके द्वारा सम्राट्के किरीटमें यथास्थान जड़ दिये जायँ तो उनकी शोभा बहुत बढ़ जाती है और अलग अलग एक एक दानेकी अपेक्षा उस जड़े हुए किरीटका मूल्य भी बहुत बढ़ जाता है । यद्यपि भगवान्के नामके साथ किसी उदाहरणकी समता नहीं हो सकती, तथापि समझनेके लिये इस उदाहरणके अनुसार भगवान्के एक सहस्र नामोंको शास्त्रकी रीतिसे यथास्थान आगे पीछे जो जहाँ आना चाहिये था वहीं जड़कर भीष्म सदृश निपुण जड़ियेने यह एक परम सुन्दर, परम आनन्दप्रद अमूल्य वस्तु तैयार कर दी है । एक बात समझ रखनी चाहिये कि जितने भी ऐसे प्राचीन नामसंग्रह, कवच या स्तवन हैं वे कविकी तुकबन्दी नहीं हैं । सुगमता और सुन्दरताके लिये आगे पीछे जहाँ तहाँ शब्द नहीं जोड़ दिये गये हैं । परन्तु इस जगत् और अन्तर्जगत्का रहस्य जाननेवाले, भक्ति, ज्ञान, योग और तन्त्रके साधनमें सिद्ध, अनुभवी पुरुषोंद्वारा बड़ी ही निपुणता और कुशलताके साथ ऐसे जोड़े गये हैं कि जिससे वे विशेष शक्तिशाली यन्त्र बन गये हैं और जिनके यथा रीति पठनसे इहलौकिक और पारलौकिक हु कामना सिद्धिके साथ ही यथाधिकार भगवान्की अनन्यभक्ति या सायुज्य मुक्तितककी प्राप्ति सुगमतासे हो सकती है । इसीलिये इनके पाठका इतना महात्मय है और इसीलिये सर्वशास्त्रनिष्णात परम योगी और परम ज्ञानी सिद्ध महापुरुष प्रात स्मरणीय आचार्यवर श्रीआद्यशङ्कराचार्य महाराजने लोककल्याणार्थ इस श्रीविष्णुसहस्रनामका भाष्य किया है । आचार्यका यह भाष्य ज्ञानियों और भक्तों दोनोंके लिये ही परम आदरकी वस्तु है ।
पूज्यपाद स्वामीजी श्रीभोलेबाबाजीने भाष्यका हिन्दी भाषान्तर कर पाठकोंपर बड़ा उपकार किया है । मेरी प्रार्थना है कि पाठक इसका अध्ययन और मनन करके विशेष लाभ उठावें ।
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Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Vishwa Guru Bharat
विश्वगुरु भारत
लेखक
महामहोपाध्याय
प्रो. अभिराज राजेन्द्रमिश्रप्राचीन भारत की भूमि! मानवता की आधारशिला! हे समादरणीय मातृभूमि! तेरी जय हो, जय हो।
जबकि नृशंस आक्रमणों को शताब्दियाँ अभी भी जनपथ की धूलिपतों के नीचे दफन नहीं हो पाई हैं, हे विश्वास की पितृभूमि! प्रेम, कवित्व एवं विज्ञान की वसुन्धरा! तेरी जय हो।
ईश्वर करे हम अपने पाश्चात्य के भविष्य में भी तुम्हारी अतीत की पुन: प्रतिष्ठा का अभिनन्दन करें!!
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
VISHWA KA ITIHAS
इतिहास अतीत की घटनाओं का तथ्यात्मक वर्णन मात्र नहीं है, अपितु यह मानव केसुंदर भविष्य के निर्माण में भी अत्यंत सहायक है। इस प्रकार इतिहास हमारा पथ-प्रदर्शक है। ‘विश्व का इतिहास’ नामक इस पुस्तक में मानव सभ्यता केआरंभ से लेकर वर्तमान तक का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं, इतिहास एक वृहद् विषय है तथा इसका आंकलन विभिन्न पक्षों, यथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक इत्यादि को दृष्टिगत रखकर किया जाता है। जब हम विश्व के इतिहास की बात करते हैं तो इसे लिखना एक चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसमें घटनाओं की महत्ता को देखते हुए उनका चयन करना होता है।
प्रस्तुत पुस्तक में मैंने विश्व की समस्त प्रमुख सभ्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। इसमें विश्व के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और स्थितियों को विवेचनात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ-साथ विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vishwaguru Bharat: Kal, Aaj Aur Kal
चाहे योगासन हो या चिकित्सा केविभिन्न आयाम, चाहे ज्योतिषशास्त्र, गणित या साहित्य, संगीत, कला, वास्तु के विभिन्न आयाम और चाहे विज्ञान व तकनीक, भारत सदा से ही हर क्षेत्र में विश्व का सिरमौर रहा है। देववाणी संस्कृत को विश्व को सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है।
आज परमाणु शक्ति-संपन्न भारत ने जहाँ प्रथम प्रयास में ही मंगल तक को यात्रा पूरी की है, वहीं औषधि निर्माण व निर्यात के क्षेत्र में ‘ विश्व का दवाखाना ‘ बन गया है ।रक्षा सहित प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति का लक्ष्य रखकर भारत ने तेजी के साथ अपने पग बढ़ाए हैं और शीघ्र ही’दुनिया का दूसरा कारखाना’ बनने के लिए प्रयासरत है ।
सर्वे भवन्तु सुखिन: की मंगल-कामना करने वाला भारत अब पुन: अपनी’ विश्वगुरु’ की छवि प्राप्त करने लगा है ।कोविड काल में विश्व के अनेक देशों को जहाँ निःशुल्क टीका उपलब्ध कराकर भारत ने बिना किसी भेदभाव के सबके कल्याण की कामना की, वहीं आपातकाल में अनेक देशों की विभिन्न प्रकार से सहायता भी की । ‘ वसुधेव कुट्म्बकम्’की अवधारणा व तदनुरूप आचरण ने आज फिर से भारत को विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया है और भगवान् बुद्ध का ‘ अप्प दीपो भव’ नाद पुन: विश्व में गूँजने लगा है ।
भारत के गौरवशाली अतीत को रेखांकितकर स्वर्णिम भविष्य का जयघोष कर हर भारतीय को गर्वित करने वाली पठनीय कृति।
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Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्य
Vitality Strengthening Astavarga Plants (English)
Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्यVitality Strengthening Astavarga Plants (English)
Ayurveda is not only the system of treatment but it is a complete ethics of living a healthy and happy life. This book is an important contribution of Patanjali Yogpeeth in the field of Ayurveda. Astavarga plants are highly efficacious in a range of health problems. This group of plants is very effective in treatment of heart diseases, urinary disorders, diabetes and fever. Further, it also strengthens the energy level of human body, cell regeneration capacity as well as immunity system. This book is the best example of efforts of Patanjali Yogpeeth to promote ayurvedic treatment not only on traditional basis but also develop Ayurveda on modern scientific grounds.
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Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Vivek Chudamani 0133
Gita Press, Hindi Books, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिVivek Chudamani 0133
भगवान् शंकराचार्य के द्वारा विरचित ग्रन्थों में विवेक-चूड़ामणि का विशेष स्थान है। इसमें ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व, ज्ञानोपलब्धि का उपाय, प्रश्न-निरूपण, आत्मज्ञान का महत्त्व, पञ्चप्राण, आत्म-निरूपण, मुक्ति कैसे होगी? आत्मज्ञान का फल आदि तत्त्वज्ञान के विभिन्न विषयों का अत्यन्त सुन्दर निरूपण किया गया है।
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Vivekanand Ki Atmakatha
स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्तित्व, उनकी वाक्शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया। ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।
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RAMAKRISHNA MATH, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vivekananda: Ek Jivani
In the list of biographies of Swami Vivekananda published by us, we have one which extensively narrates his life, and also one which presents him very briefly. The present book stands midway between these extremes. Herein the readers will find his life described in a short compass, without sacrificing the essential details. This is a masterly presentation of his life from the pen of a scholar of repute. A worthy book for all those who want to study Vivekananda in brief without loosing the crucial aspects of his life.
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Wah Kahan Hai ?
पिछले कुछ वर्षों से मेरा स्फुट व्यंग्य-लेखन प्रायः स्थगित है। इन वर्षों में या तो उपन्यास ही लिख पाया हूँ, अथवा आवश्यक होने पर व्यक्तिगत निबन्ध। अपनी सृजन-प्रक्रिया में होते हुए इस परिवर्तन से परिचित तो हूँ, किन्तु उस पर मेरा वश नहीं है। जीवन के अनुभवों के गहरे और विस्तृत होने के साथ-साथ या तो छोटी रचनाएँ भी बहुत कुछ कहने की आवश्यकता की मजबूरी में खिंचकर लम्बी होती जाती हैं, या किसी उपन्यास के लेखन में लगे होने के कारण छोटी रचनाओं के विचार स्वयं ही टल जाते हैं, या मैं ही उन्हें टाल देता हूँ। यह तो जानता हूँ कि ‘कथा’ तथा ‘व्यंग्य’ दोनों तत्त्व मेरे भीतर ऊधम मचाते रहते हैं, किन्तु लौटकर फिर छोटी कहानियों तथा छोटे व्यंग्यों पर आऊँगा, या अब उपन्यास तथा व्यंग्य-उपन्यास ही लिखूँगा—यह कहना कठिन है। अपनी व्यंग्य-रचनाओं में से ‘श्रेष्ठ’ का चुनाव कैसे करूँ? श्रेष्ठ रचनाएँ किन्हें मानूँ, जो मुझे प्रिय हैं या जो प्रशंसित हुई हैं? जो लोगों का मनोरंजन करती हैं या जो प्रखर प्रहार करती हैं? जिनमें बात कटु है या जिनका शिल्प नया बन पड़ा है? मुझे लगता है कि लेखक एक सीमा तक ही अपनी रचनाओं के प्रति तटस्थ हो सकता है। फिर भी उसके लिए अपनी रचनाओं में से कुछ का चुनाव असम्भव हो, ऐसी बात नहीं है, क्योंकि अन्य लोग भी तो अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए मेरा ही चुनाव क्या बुरा है! अतः मैंने बिना किसी से पूछे, अपने-आप अपनी रचनाएँ छाँट डाली हैं। वे रचनाएँ श्रेष्ठ हैं या नहीं, इसका निर्णय मैं नहीं कर सकता। मैं तो केवल यह कह रहा हूँ कि अपनी रचनाओं में से चुनाव मैंने अपनी इच्छा और पसन्द से किया है। ‘श्रेष्ठता’ के साथ मैंने प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा है। प्रयत्न किया है कि विषय, शिल्प तथा तकनीक के वैविध्य को भी महत्त्व दूँ। व्यंग्य को स्वतन्त्र विधा मानने के विरुद्ध सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि व्यंग्य आज विभिन्न विधाओं में लिखा जा रहा है—कविता में, कहानी में, निबन्ध में, उपन्यास में, नाटक में। किन्तु ऐसी आपत्ति करने वाले भूल जाते हैं कि कथा-साहित्य भी महाकाव्यों में लिखा गया, नाटकों में लिखा गया, बृहत् उपन्यासों, लघु उपन्यासों, कहानियों तथा लघुकथाओं में लिखा गया। कविता महाकाव्य, खंडकाव्य, काव्य, गीत, नाटक इत्यादि छोटे-बड़े अनेक रूपों में लिखी गयी। नाटक पद्य-रूपक, गीति-काव्य, स्वतन्त्र नाटक, एकांकी इत्यादि रूपों में लिखा गया। इन सारी विधाओं पर विचार करने से, सहज ही यह निष्कर्ष निकलता है कि विधा की दृष्टि से साहित्यकार के व्यक्तित्व का मूल तत्त्व ही निर्णायक तत्त्व है: जो व्यंग्य के सन्दर्भ में साहित्यकार का सात्विक, सृजनशील तथा कलात्मक, वक्र आक्रोश है। इतनी बात हो जाने के पश्चात, आगे का वर्ग-विभाजन भी किया जा सकता है कि व्यंग्य की कैसी रचना को, शुद्ध व्यंग्य माना जाये और किस रचना के साथ अन्य विधाओं का मिश्रण होने के कारण किसी अन्य विशेषण की आवश्यकता होगी। हिन्दी के व्यंग्य-साहित्य को देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद से, सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों के कारण, भारतेन्दु-युग के पश्चात्त व्यंग्य का टूटा हुआ सूत्र न केवल फिर से पकड़ा गया, वरन् नवीनता और निखार के साथ दृढ़ किया गया। ‘व्यंग्य संकलन’ के नाम से पुस्तकें छपीं, उनमें ऐसे व्यंग्यात्मक निबन्ध थे, जो न तो निबन्ध की परम्परागत परिभाषा में आते हैं, न कहानी की। हिन्दी के स्वातन्त्रयोत्तर व्यंग्य साहित्य की रीढ़ ये रचनाएँ ही हैं, और इन्हीं रचनाओं ने व्यंग्य को हिन्दी साहित्य में स्वतन्त्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। इस मूल विधा की परिधि पर व्यंग्य-कथाएँ, व्यंग्य-उपन्यास तथा व्यंग्य-नाटक स्थापित हुए। कविता में भी व्यंग्य लिखे अवश्य गये, किन्तु कवि इस विधा की स्वतन्त्रता के विषय में इतने गम्भीर दिखाई नहीं पड़े, जितने कि गद्य-लेखक। व्यंग्य-कवियों की महत्वाकांक्षा कवि बनने की ही रही, गद्य में लिखने वाले व्यंग्यकारों की, व्यंग्यकार बनने की। कुछ अतिरिक्त शास्त्रीय समीक्षक व्यंग्य को केवल एक ‘शब्दशक्ति’ के रूप में ही स्वीकार करते हैं। मुझे यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि हिन्दी साहित्य के रीतिकाल तक, व्यंग्य या तो एक शब्दशक्ति था, या अन्योक्ति, वक्रोक्ति अथवा समासोक्ति जैसा अलंकार। किन्तु समय और परिस्थितियों के परिवर्तन के साथ विधाओं का विकास भी होता है, और नयी विधाओं का निर्माण भी। हम व्यंग्य को आज के सन्दर्भ में देखें तो पाएँगे कि आज के व्यंग्य-उपन्यासों, व्यंग्य-निबन्धों, व्यंग्य-कथाओं तथा व्यंग्य-नाटकों में व्यंग्य के शब्दशक्ति अथवा अलंकार मात्र नहीं हैं। उसका विकास हो चुका है और वह शास्त्रकार से माँग करता है कि वह व्यंग्य-विधा के लक्षणों का निर्माण करे। किसी विधा को एक ही भाषा के सन्दर्भ में देखना भी उचित नहीं है। सम्भव है कि यह कहा जा सके कि अमुक भाषा में व्यंग्य नहीं है। किन्तु संसार की किसी भाषा में व्यंग्य अथवा ‘सैटायर’ स्वतन्त्र विधा ही नहीं है, और वह स्वतन्त्र विधा हो ही नहीं सकता, ऐसा कहना मुझे उचित नहीं जँचता। —नरेन्द्र कोहली
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास
WAR AND PEACE, VOL-2
About the Book: One Mind, Many Thoughts: Notes From A Common Mans Diary Do Good to Feel Good In One Mind, Many Thoughts, Pravesh Jain voices the anger and frustration of the common man and talks about how rabid commercialization, materialism, greed and corruption are eating away at the roots of our very existence. He expresses his concerns about how the changing times have eroded traditional values and norms, and bemoans the arrogance of the rich and powerful, the lack of healthcare and other facilities for the elderly and the poor, rising prices, and all the other ills that plague twenty-first century India. As Pravesh Jain eloquently says,
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास
WAR AND PEACE, VOL-I
Leo Tolstoy
“LOVE IS LIFE. All, everything that I understand, I understand only because I love. Everything is, everything is united by it alone. Love is God, and to die means that I, a particle of love, shall return to the general and eternal source.”
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Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
WHAT HAPPENED TO NETAJI
-10%Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)WHAT HAPPENED TO NETAJI
From the best-selling author of India’s Biggest Cover-up In 2013, the Lucknow Bench of the Allahabad High Court described as ‘genuine and based on relevant material’, Anuj Dhar’s writings regarding the controversy surrounding the fate of Subhas Chandra Bose So, what really happened to Netaji? What is the factual position with regard to the air crash that reportedly killed him in 1945? Is there any truth behind Subramaniam Swamy’s belief that Netaji was killed in Soviet Russia at Jawaharlal Nehru’s behest? How do the biggest names of the past and present, from Mahatma Gandhi and Vallabhbhai Patel to President Pranab Mukherjee and Atal Bihari Vajpayee fare in India’s longest running controversy? Who was Gumnami Baba of Faizabad and if indeed he was Netaji, why did he not surface? Above all, what is preventing the Narendra Modi government from declassifying the Netaji files? the answer would make you believe that truth is stranger than fiction.
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Akshaya Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
WHAT IS MODERATE ISLAM?
Akshaya Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)WHAT IS MODERATE ISLAM?
“Richard L. Benkin has put forth a solid collection of chapters on one of the most critical topics of the dayódistinguishing between moderate Muslims and Islamists. With the growing threat of Islamist groups in the Middle East and their affiliates in the West, the issue of identifying moderates necessitates a clear and guided answer, which is detailed throughout these chapters. This book is a must-read for anyone seeking to understand the complexities and nuances of the Muslim world at large.” – Asaf Romirowsky, Middle East Forum Radical Islam is a major affliction of the contemporary world. Each year, radical Islamists carry out terrorist attacks that result in a massive death toll, almost always involving noncombatants and innocents. Estimates of how many Muslims could be considered followers of radical Islam vary widely, and there are few guides to help distinguish moderates from radicals. Observers often sit at the extremes, either seeing all Muslims as open or closeted jihadis or recoiling from any attempt to link Islam with international terror. Both positions are overly simplistic, and the lack of rational principles to absolve the innocent and identify the accomplices of terror has led to governments and individuals mistakenly accepting jihadis as moderate. What is Moderate Islam? brings together an array of scholars and activists -Muslim and non-Muslim- to provide this missing insight. This wide-ranging collection examines the relationship among Islam, civil society, and the state. The contributors investigate how radical Islamists can be distinguished from moderate Muslims, analyze the potential for moderate Islamic governance, and challenge monolithic conceptions of Islam.
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