kapot Books
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Jhansi Ki Rani
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं।
रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला।
—इसी उपन्यास से
अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं।
अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jhansi Ki Rani Laxmibai (Hindi)
इस पुसतक में रानी लक्ष्मीबाई के महान् व्यक्तित्व के अनेक देखे-अनदेखे पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है और उनकी प्रसिद्धि पर नए कोण से दृष्टिकोण किया गया है। रानी लक्ष्मीबाई नारी सशक्तीकरण का अद्भुत उदाहरण थीं। उनके जीवन को समर्पित इस पुस्तक से आधुनिक भारतीय पारी को नैतिक और मानसिक बल मिलना चाहिए। इसमें समेटे गए रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के तमाम पहलुओं का यदि पूरी तरह नहीं तो कुछ हद तक अपने जीवन में उतारने की हमें कोशिश करनी चाहिए, जिससे कि हमारा जीवन भी सार्थक हो सके। रानी लक्ष्मीबाई का जीवनकाल यद्यपि छोटा रहा; लेकिन वह आज भी हमे प्रेरणा देता है और आगे आनेवाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देता रहेगा। ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ को इस पुस्तक के माध्यम से विनम्र श्रद्धांजलि।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JHONPADI WALE AUR ANYA KAHANIYAN
प्रमुख रोमानियाई कथाकार मिहाइल सादौवेन्यू द्वारा लिखित झोंपड़ी वाले तथा अन्य कहानियाँ बीसवीं सदी के आरंभ के रोमानियाई ग्रामीणों के जीवन पर आधारित है। इनमें यूरोप की उत्कट गरीबी का चित्रण है और ग्रामीणों के भोले-भाले स्वभाव का। कल-कारखानों के आने से पहले साधारण मनुष्य का जीवन भले कठिन था लेकिन कितना कलुष-रहित, इसका सटीक अंकन इन कथाओं में है। निर्मल वर्मा ने प्राग में रहते हुए इन रोमानियाई कहानियों का अनुवाद किया था। पहली बार ये साहित्य अकादमी के प्रकाशन से सन् 1966 में सामने आईं थीं।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Jihadi Aatankwad
कट्टरता और इस्लाम के नाम पर आज आतंक चारों ओर फैल रहा है, जिसमें हज़ारों निरपराध, असहाय, स्त्री-पुरुषों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है और जिसे रोकने के लिए अनेक देशों के सम्मिलित प्रयास भी पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसी समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह पुस्तक सामयिक भी है और महत्त्वपूर्ण भी।
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास
JINNAH HELPED HINDUS AND OTHER REFLECTIONS
The cocktail of subjects touched upon in Jinnah helped Hindus and Other Reflections may surprise some readers by their diversity. From a young boy questioning why with a galaxy of freedom fighters, we have Gandhi’s portrait on all our currency notes, especially when money was his last concern to how Jinnah actually helped Hindus. Why Germany’s Chancellor Angela Merkel, who welcomed Muslim migrants with open arms, is today offering them 3000 Euros as a return package? Many of the essays ask truly relevant questions. According to the author the Babri Masjid should be called Babri maqbarah since it is not a masjid. How acute is the threat of Islamisation of Europe? What is the future of minorities in Pakistan? Why did Jinnah call the Aligarh Muslim University the ‘arsenal of Pakistan’? Prafull Goradia also analyses why Indians still prefer sarkari jobs over others and what the causes of the failure of State Capitalism are. In the essay ‘Cricket in Need of a Revolution’ the author is critical of the fact that India has only one competitive international cricket team. Almost the same players play Test matches, One-dayers as well as twenty-20s. Why? We overstrain these players and might even be risking the quality of their game. Every reader will find something of interest in this collection of essays.
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Harf Media Private Limited, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Jo Bhi Kahoonga Sach Kahoonga (PB)
Harf Media Private Limited, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Jo Bhi Kahoonga Sach Kahoonga (PB)
प्रस्तुत पुस्तक अजीत भारती की चौथी पुस्तक है। व्यंग्य की विधा में ‘बकर पुराण’ से अपनी अलग पहचान बना चुके लेखक ने दोबारा उसी विधा में वापसी की है। ‘जो भी कहूँगा, सच कहूँगा’ राजनैतिक व्यंग्य संग्रह है जिसमें भारत की न्यायिक व्यवस्था, नेताओं और पार्टियों समेत चौथे स्तंभ मीडिया पर चुभते हुए कटाक्ष हैं। जज और न्यायालयों पर उनके द्वारा लिखे कटाक्ष से सरकार इतनी हिल गई कि भारत के अटॉर्नी जनरल ने लेखक पर सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कन्टेम्प्ट) का केस चलाने की अनुमति दे दी। उनकी अन्य पुस्तकों में एक लघु उपन्यास ‘घरवापसी’ और एक कथा संग्रह (अंग्रेजी में) ‘There Will Be No Love’ शामिल हैं। अजीत भारती 12 वर्षों से पत्रकारिता और साहित्यिक लेखन करते रहे हैं। वर्तमान में वो ‘DO Politics’ के सह-संस्थापक और संपादक के रूप में पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Jodhpur Rajya Ki Khajana Bahi
जोधपुर राज्य की खजाना बही
महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
मारवाड़ के पुरालेखीय स्रोतों में ‘जोधपुर राज्य की खजाना बही’ का विशेष महत्त्व रहा है। खजाना बही में मुख्य रूप से राजकोष से विभिन्न मदों पर खर्च हुई राशि का विवरण समाहित है। in fact बही में जोधपुर राजपरिवार के साथ ही दूसरे विभिन्न राज्यों, प्रशासनिक अधिकारियों, ठिकानेदारों, सरदारों, सेवकों के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन एवं मान्यताओं, दूसरे राज्यों के साथ आपसी सम्बन्धों, न्याय प्रणाली के साथ ही विभिन्न कपड़ों, आभूषणों, सीख दस्तूर, नजराना दस्तूर, कारज दस्तूर, पडला व बत्तीसी दस्तूर का सविस्तार विवरण दिया गया मिलता है। Jodhpur Rajya Khajaana Bahi
जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) से सम्बन्धित यह खजाना बही वि.सं. 1940 से till वि.सं. 1951 तक की है। इस खजाना बही में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के 11 वर्षों के प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजघराने से जुड़े विभिन्न पक्षों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
जोधपुर के महाराजा तखतसिंह के पश्चात् महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) during वि.सं. 1929 की फाल्गुन सुदि 3 (ई.स. 1873 की 1 मार्च) को जोधपुर के उत्तराधिकारी बने थे। वे बड़े गुणी, दानी, शान्त, सरल और प्रजा प्रिय शासक थे। इनके छोटे भाई महाराज प्रतापसिंह बड़े विवेकशील और न्यायप्रिय थे। इन्होंने शिक्षा के कई द्वार खोले और समाज सुधार के क्षेत्र में अपनी महत्ती भूमिका निभाई। महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) के समय में ये मुसाहिबआला (प्रधानमंत्री) थे। वि.सं. 1930 (ई.स. 1873) में महाराजा जसवन्तसिंह (द्वितीय) ने सर्वप्रथम राज्य के कुशल प्रबन्ध और प्रजा के सुभीते के लिये ‘खास महकमा’ कायम किया और मुंशी फैजुल्ला खाँ को अपना मंत्री बनाया था।
also खजाना बही में मुख्य रूप से दीवान की फड़द, टकसाल विभाग, खासा-खजाना पर रुक्का, कपड़े के कोठार की फड़द, महकमे खास की फड़द, जरजरखाना की फड़द, जवाहरखाना की फड़द, खासा खजाना की फड़द के अन्तर्गत विभिन्न विवरण संजोया गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Jungnama(HB)
इतिहास साक्षी है कि भारत ने विदेशी आक्रांताओं से भारत का गौरव कभी भी ध्वस्त नहीं होने दिया, किंतु इस प्रयास में जाने कितने वीर सपूतों की बलि चढ़ानी पड़ी। राष्ट्र हेतु जिन वीरों ने अपना जीवन होम किया उनका स्मरण करना, उनकी कीर्तिगाथा को भावी पीढि़यों तक ले जाना राष्ट्र का कर्तव्य है। उन वीरों की शौर्यगाथा को सभी भारतीय भाषाओं ने और लोकभाषाओं ने स्वर दिया।
इसी गौरवशाली परंपरा में अवध के एक अनमोल रत्न चहलारी नरेश राजा बलभद्र सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जिस वीरता के साथ युद्ध किया, उसकी प्रशंसा विदेशी इतिहासकारों ने भी की है। उनकी कीर्ति का बखान इस ‘जंगनामा’ में किया गया है।
‘गदर के फूल’ के लेखक श्री अमृतलाल नागर को अवधी लोकभाषा में रचित ‘जंगनामा’ की यह हस्तलिखित पांडुलिपि मिली थी।
उनके यशस्वी पुत्र डॉ. शरद नागर ने पं. श्री उदय शंकर शास्त्री द्वारा संपादित, भारतीय साहित्य पत्रिका में प्रकाशित इस दुर्लभ पांडुलिपि के सरल भावांतर और संपादन का दायित्व डॉ. विद्या विंदु सिंह को दिया, जो इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है।
इसे प्रकाशित कराकर हुतात्मा पूर्वजों के ऋण से आंशिक निष्कृति का यह प्रयास किया जा रहा है। उस अभिनव अभिमन्यु की स्मृति जन-जन में राष्ट्र प्रेम की चेतना जगाती रहे, यही शुभकामना है।SKU: n/a -
Rupa Publications India, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JUSTICE FOR THE JUDGE: AN AUTOBIOGRAPHY
Clear-eyed, inspiring and incisive, this is the story of a man of consummate ambition, who made a significant and lasting mark on India’s judicial landscape.
The Supreme Court of India has witnessed a succession of larger-than-life chief justices in its seven-decade history. But it has never seen the likes of Chief Justice Ranjan Gogoi. Fiery yet charming, and simultaneously principled and pragmatic, Gogoi is a fascinating man of contrasts who has intrigued observers across the political and social spectrum.
Now, for the first time, Gogoi tells the dramatic story of his life in fascinating detail in Justice for the Judge. He traces his journey from Dibrugarh in Assam to the highest court of the land through people, landmark cases and his own judicial ambition, and reveals the lessons he learnt along the way about the country’s legal system.
Never one to shy away from contentious issues, Gogoi provides a no-holds-barred account of the extraordinary events that characterized his tenure in the apex court—the ‘infamous’ press conference prior to his elevation as the most powerful judge in the land, unsubstantiated allegations of sexual harassment and the impact of tabloid journalism.
He also takes readers through the important meetings, intense interactions and private confrontation that preceded the landmark verdicts authored by him—Rafale and the contempt proceeding initiated against Mr Rahul Gandhi, Sabarimala, NRC and Ayodhya.
Justice for the Judge is also a definitive insider’s account that fills a large gap in our understanding of the drama and majesty of the nation’s highest court.SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
JYOTISH VIGYAN
ज्योतिष के तीन हिस्से हैं।
एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के बीच में एक परिधि है–सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।
ओशोSKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
K.R. Malkani & The Motherland : Voices of the Nation
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणK.R. Malkani & The Motherland : Voices of the Nation
In its brief existence of about four years, between 1971 and 1975, ʻThe Motherlandʼ, edited by K.R. Malkani (1921-2003) achieved rare distinction and recognition in the world of journalism. It established itself as a fearless and uninhibited voice of the nation, relentlessly exposing the decay seeping into India’s body-politic by the early 1970s. In that respect ʻThe Motherland’sʼ advocacy of ʻIndia Firstʼ and its unalloyed articulation of India’s national interest remain unsurpassed. It was also its strident and uncompromising criticism of the Indira Congress and the Prime Minister’s ways, which eventually led Indira Gandhi to shut it down at the first given opportunity after she imposed the Emergency. ʻThe Motherlandʼ was, “The only paper in India to announce on 26th June the imposition of the Emergency, arrest of leaders and the wave of national shock.” This collection of K.R.Malkani’s columns in ʻThe Motherlandʼ offers an insight into Indian politics and society in the years just before Emergency was imposed by Indira Gandhi. It is a record of India’s political history a quarter century after independence and is a very useful reckoner for the general reader for understanding the years that led to the imposition of the Emergency.
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue
“The BJP believes in the unity of the Hindustan Peninsula and the equality of all its people. It stands for “Justice for all and appeasement of none”. It welcomes diversity so long as it does not destroy our overall unity. It invites the people of India, Pakistan and Bangladesh to get over the trauma of the last fifty years, and draw on the historic experience of preceding centuries to weave a new and happier pattern of life in the Hindustan Peninsula. After all the hullabaloo about riots, most of the Hindus and Muslims are living in peace and amity most of the time. India and Pakistan, with all their hostility, have never fought for more than two weeks at a time. (Iran and Iraq bled each other for eight long years!) Even in the year of Partition, the best singers in Har Mandir, Amritsar, were Muslims. The men, who built the ‘samadhi’ of Dr. Hedgewar, the founder of RSS, in Nagpur, were Muslims. With all our diversities, we in the Hindustan Peninsula are One People, whatever the number of states. We can, and must, live in peace and amity.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
K.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहासK.R. Malkani Hindu-Muslim Samvad (Hindi Translation of K.R. Malkani Hindu-Muslim Dialogue)
“भारत विविधता का स्वागत करता है परंतु वहीं तक, जहाँ तक एकता होती हो। हम भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के लोग पिछले 50 वर्षों के घावों को भरने में एक-दूसरे की मदद करें और गत शताब्दियों के ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर हिंदुस्तान में जीवन का नया व प्रसन्नतादायक साँचा तैयार करें।
दंगों के बारे में इतना शोर-शराबा मचा रहने के बावजूद अधिकांश समय मुसलमान व हिंदू शांति व सद्भाव के साथ रह रहे हैं। भारत व पाकिस्तान की तनातनी के बावजूद इनकी आपसी लड़ाई एक बार में 2 सप्ताह ज्यादा नहीं चली। (ईरान व इराक एक-दूसरे का 8 वर्षों की दीर्घावधि तक खून बहाते रहे।) यहाँ तक कि विभाजन के समय भी हरमंदिर साहब, अमृतसर में सर्वोत्तम गायक मुसलमान थे। जिन लोगों ने नागपुर में रा.स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की समाधि बनाई, वे मुसलमान थे। अपनी सब विविधताओं के बावजूद हम सब हिंदुस्तान प्रायद्वीप के लोग एकजन हैं।
यहाँ इस बात के साथ कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रायद्वीप में कितने राज्य हैं। हम शांति और सद्भाव से रह सकते हैं, अतः इसी तरह से रहना चाहिए । —इसी पुस्तक से”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Kaaljayee Bharatiya Gyan
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Kaaljayee Bharatiya Gyan
“प्रस्तुत पुस्तक में हमारे प्राचीन वाङ्मय, यथा—वेदों, पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, आरण्यकों, रामायण, महाभारत एवं प्राचीन सनातन हिंदू ग्रंथों में उन्नत आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ विवेचित हैं। इनमें ब्रह्मांड की श्याम ऊर्जा, ब्रह्मांड की उत्पत्ति का वैज्ञानिक विमर्श, सौरमंडल रहस्य, गुरुत्वाकर्षण का प्राचीन वैदिक व अन्य शास्त्रों का संदर्भ ज्ञान, प्रकाश की गति का वैदिक विमर्श, ग्रहण का वैज्ञानिक विवेचन आदि की शास्त्रोक्त व्याख्या की गई है। वेदों में लोकतंत्र, गणराज्य एवं राष्ट्र की प्राचीन संकल्पना, राष्ट्राध्यक्ष के चुनाव का वैदिक विमर्श, राजपद व उसकी मर्यादाएँ, राजा या शासनाध्यक्ष की वैदिक शपथ, प्राचीन बहुस्थानिक व्यवसाय के संदर्भ, उद्योग, व्यापार व वाणिज्य लोक वित्त के प्राचीन संदर्भ आदि की भी व्याख्या प्रस्तुत पुस्तक में की गई है।
पुस्तक में उन्नत शब्द विज्ञान, उन्नत भौतिकीय, रासायनिक व गणितीय ज्ञान के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वैदिक सूर्योपासना के वैश्विक प्रसार और अमेरिकी पुरावशेषों पर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वेदों में सार्वभौम राष्ट्र व शासन-पद्धतियों की अवधारणा, राष्ट्र, राज्य व राजशास्त्रों के वैदिक विवेचनों की भी समीक्षा की गई है। कुल मिलाकर यह यशस्वी कृति भारतवर्ष के समृद्ध, समुन्नत, सर्वमान्य ज्ञान-परंपरा का एक वृहद् व व्यावहारिक विश्वकोश है, जिसका अध्ययन करना हमें नई ऊर्जा, उत्साह और आत्मविश्वास से समादृत करेगा।”
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Kaam Kala Ke Bhed | काम-कला के भेद
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षामः, सोमनाथ, धर्मपुत्र और सोना और खून जैसी लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी के लोकप्रिय साहित्यकार होने के साथ आयुर्वेद के ‘आचार्य’ थे। उपन्यास और कहानियों के अतिरिक्त उन्होंने स्वास्थ्य और यौन संबंधों पर भी अनेक पुस्तकें लिखीं। उनका मानना था कि यौन संबंधी सुख ही दांपत्य की धुरी है। इसीलिए इस पुस्तक में उन्होंने यौन-संबंधों के विविध पहलुओं पर विशद जानकारी दी है, और साथ ही अलग-अलग देशों में व्याप्त धारणाओं, कुंठाओं पर भी प्रकाश डाला है। स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचनाओं और सहवास की सही विधि पर पाठक को विस्तृत और स्पष्ट जानकारी मिलेगी इस पुस्तक में। साथ ही यौन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए अनेक उपाय और उपचार दिए हैं। हर युवा के लिए एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक!
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Kachnar
महंत ने कहा- ‘सुमंतपुरी, तुमने एक बार मुझसे प्रश्न किया था कि मै र्द्वजन्म में कौन था।… आज उस प्रश्न का उत्तर देने का समय आ गया है।
.. .सुमंतपुरी, तुम उस जन्म में राजा थे, यह बात मैं पहले बतला चुका हूँ।’ सुमंतपुरी- ‘मैं कहाँ का राजा था, महाराज ‘
महंत-‘तुम सुमंतपुरी, र्द्वजन्म में इसी धामोनी के राजा थे।’
सुमंतपुरी- ‘धामोनी का!’
कचनार- ‘धामोनी के?’
महंत- ‘हो धामोनी के। मेरी बात में कोई संदेह नहीं।’
कचनार- ‘तो महाराज, अंत- पुरीजी का शरीर किसी और का है और आत्मा किसी और की है? कृपा करके समझाइए। मैं बहुत भ्रम में पड़ गई हूँ।
-एक जन्म में तीन जन्मों के स्मरण की ऐसी अनूठी, पर ऐतिहासिक कथा, जिससे चिकित्सा शास्त्र के अच्छे-अच्छे विद्वान् भी चकरा गए।SKU: n/a