Historical city
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Awadh Ki Tharu Janjati : Sanskar Evam Kala
‘आदिवासी थारू जनजाति’ भारत-नेपाल सीमा के दोनों तरफ़ तराई क्षेत्र में घने जंगलों के बीच निवास करती है जो कि भारत की प्रमुख जनजातियों में से उत्तर भारत की एक प्रमुख जनजाति है। उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के तीन ज़िलों लखीमपुर खीरी, बहराइच व गोण्डा में थारू जनजाति निवास करती है। जहाँ अवध क्षेत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का जन्म स्थान पावन धाम प्राचीन धार्मिक धर्म नगरी है और मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म अवध के अयोध्या में हुआ है। वहीं अवध क्षेत्र की एक विशेषता रही है। थारू जनजाति का आवासित होना उनकी समृद्धि, संस्कृति व लोक परम्परा से युक्त उनका इतिहास गौरवशाली होना इनकी कला और संस्कृति का हमारी लोक संस्कृति के साथ घनिष्ठ सम्पर्क है। थारू जनजाति की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, लोक कला अपने आप में लालित्यपूर्ण विधा है। इसका प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक विस्तार है लेकिन कतिपय कारणों से यह अभी तक समृद्ध कला प्रकाश में नहीं आयी है। इनकी संस्कृति, सभ्यता अभी तक पूरे अवध और उसके बाहर भी प्रकाश में नहीं आयी है और ना ही प्रचार-प्रसार हुआ है। मेरा लक्ष्य है कि थारू जनजाति की लोक कला संस्कृति और लोक जीवन पद्धति जो कि हमारे अवध का एक गौरवशाली अंग है, इस पुस्तक के माध्यम से जन सामान्य में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। थारू जनजाति एक जनजाति ही नहीं एक लोक परम्परा है, इसको एक जाति के रूप में जब हम देखते हैं, तो पाते हैं कि इन्होंने हमारी एक विरासत को सँभाल कर रखा है जो अभी तक बची हुई और सुरक्षित है। इस संस्कृति, कला और परम्परा को नयी पीढ़ी तक पहुँचाने, सुरक्षित रखने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण का कार्य किया गया है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Rashtravad : Swaroop Aur Vikas
विषय-सूची 1. सम्पादकीय : कृष्णदत्त द्विवेदी / 2. भारतीय राष्ट्रीयता का विकास और भारतीय संविधान : प्रोफेसर आर० के० मिश्र / 3. भारतीय राष्ट्रवाद का स्वरूप : डॉ० पीताम्बर दत्त कौशिक / 4. राष्ट्रवाद : सम् प्रत्ययात्मक विश्लेषण : डॉ० श्यामधर ङ्क्षसह / 5. राष्ट्रवाद की वैचारिकी एवं भारतीय राष्ट्रवाद -समाज ऐतिहासिक विश्लेषण : डॉ० जयकान्त तिवारी / 6. परिवर्तन के परिवेश में राष्ट्रीय चरित्र की समस्या : डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव एवं० डॉ० प्रदीप कुमार ङ्क्षसह / 7. शिक्षा राष्ट्रीयता और महामना मालवीय : डॉ० कृष्णदत्त तिवारी / 8. साम्प्रदायिकता – भारतीय राष्ट्रवाद का कटु पक्ष : डॉ० जे० एन० ङ्क्षसह एवं डॉ० आनन्द प्रकाश ङ्क्षसह / 9. भारतीय राष्ट्रवाद : निर्माण प्रक्रिया एवं समस्याएँ -शिवदत्त त्रिपाठी / 10. भारतीय राष्ट्रवाद एवं अस्मिता के संकट की चुनौतिया : डॉ० पी० एन० पाण्डेय / 11. राष्ट्रीय निर्माण और भारतीयकरण-संकल्पना : डॉ० जनार्दन उपाध्याय 12. भारतीय राष्ट्रवाद -अध्ययन दृष्टिकोण और प्रवृत्तियाँ : राधेश्याम त्रिपाठी / 13. सुभाषचन्द्र बोस और उग्र राष्ट्रवाद : डॉ० कौशल किशोर मिश्र / 14. भारतीय राष्ट्रवाद -कुछ विचारणीय तथ्य : डॉ० शिव बहादुर ङ्क्षसह / 15. राष्ट्रमण्डल में नेहरू का भारत : डॉ० शेफाली बनर्जी / 16. भारत में उपराष्ट्रवादी आन्दोलन : डॉ० अरविन्द कुमार जोशी
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Patanjali-Divya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Flora of Morni Hills (English)
Morni Hills is situated in northern region of Haryana in Panchkula district and rich in biodiversity. The present book entitled Flora of Morni Hills (Research and Possibilities) provides complete information on vegetational account of Morni Hills based on comprehensive survey and exploration of the region by the Herbal Research Department team of Patanjali Research Foundation Trust under the guidance of Acharya Balkrishna ji Maharaj. The Flora of Morni Hills comprises 980 species falling under 612 genus and 150 families. This book gives the complete details about Morni Hills situated in northern region of Haryana in Panchkula District.
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Gyanganj [PB]
ज्ञानगंज साधारण भौगोलिक स्थान नहीं है। यद्यपि यह गुप्त रूप से भूपृष्ठï पर विद्यमान है तथापि इसका वास्तविक स्वरूप काफी दूर है। भौम (भूमि-सम्बन्धी) ज्ञानगंज कैलास के आगे उध्र्व में स्थित है। फिर भी वह साधारण पर्यटकों की गति-विधि से अतीत है। यह सिद्धस्थान तिब्बतीय गुप्त योगियों की भाषा में ज्ञानगंज के नाम से प्रसिद्ध है। अनादिकाल से हिमालय का सम्पूर्ण क्षेत्र भारतीय सन्तों के लिए तपोभूमि रहा है। प्राचीनकाल के ऋषि-मुनि से लेकर आधुनिक काल के अनेक संत-योगी हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में तपस्या करते रहे। इसी हिमालय में तिब्बत नामक एक रहस्यमय प्रदेश है। कविराजजी के कथनानुसार यहाँ अनेक ऐसे मठ और आश्रम हैं जिनके बारे में सभ्य जगत् को जानकारी नहीं है। वे सामान्य पर्यटकों के निकट अलक्ष्य रहते हैं। इन आश्रमों में योग के साथ-साथ विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। केवल उच्चकोटि के लोग इन मठों में प्रवेश पाते हैं। ज्ञानगंज के बारे में अनेक पाठकों को उत्सुकता है, उसकी निवृत्ति इस पुस्तक से अवश्य हो जायेगी। इस संकलन में कविराजजी के दो अलख्य लेख प्रकाशित किये जा रहे हैं जो सिद्धभूमि; तथा सिद्धों की भूमि तिब्बत के नाम से प्रकाशित हैं। दोनों ही लेख ज्ञानगंज की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं। अनुक्रम : ज्ञानगंज और श्री श्रीविशुद्धानन्द, ज्ञानगंज-रहस्य, देह और कर्म एवं ज्ञानगंज की सारकथा, ज्ञानगंज की पत्रावली, राम ठाकुर की कहानी और कौशिक आश्रम सहित ज्ञानगंज का विवरण, सिद्धभूमि, सिद्धों की भूमि तिब्बत। अनुक्रम ज्ञानगंज और श्री श्रीविशुद्धानन्द ज्ञानगंज-रहस्य देह और कर्म एवं ज्ञानगंज की सारकथा ज्ञानगंज की पत्रावली राम ठाकुर की कहानी और कौशिक आश्रम सहित ज्ञानगंज का विवरण सिद्धभूमि सिद्धों की भूमि तिब्बत
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hardoi : Sanskritik Gazetteer-2
अवध प्रांत के सीमांकन को लेकर भिन्न विचारधाराएँ हैं,कुछ विद्वान इसके एक भौगोलिक क्षेत्र के रूप में डेकते है तो दूसरी और भाषाविदों के आनुसार यह वह क्षेत्र है जहां अवधि भाषा बोली जाती है। इस प्रांत को ऐतिहासिक सन्दर्भ में देखा जाए तो अलग-अलग कालखंड में इसकी सीमाएं एवं राजधानी परिवर्तित होती रही है। दूसरी ओर इस प्रांत में स्तिथ हरदोई जिले को कुछ लोग अवध में रखते हैं तो कुछ अलग मानते हैं फिलहाल वर्तमान प्रशासनिक ढांचे के अनुसार यह ज़िला अवध का ही भाग है। इस गज़ेटियर में हरदोई से जुड़ी वो सब बाते और मान्यताएं मिलेंगी जो फले से चली आ रही हैं।
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिKashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
काशी उस सभ्यता की सदा से परिपोषक रही है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत-मतान्तरों और विचारधाराओं का सहयोग रहा है। यही नहीं, धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्बन्ध होने के कारण इस नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न होकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास है जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। लेखक ने इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी बिखरी हुई सामग्री को जोड़कर इस इतिहास का निखरा स्वरूप खड़ा किया है। रोचक सामग्री का भी प्रचुर उपयोग करके नगर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक की दृष्टि में इतिहास केवल शुष्क घटनाओं का निर्जीव ढाँचा नहीं है, उसमें हम समाज की प्रक्रियाओं तथा धाॢमक अभिव्यक्तियों का भी पूर्णरूप से दर्शन कर सकते हैं। अपने विषय की एकमात्र कृति तो यह है ही। तृतीय संस्करण में काशी के 18वीं-19वीं शताब्दी के अत्यन्त दुर्लभ चित्र सम्मिलित किये गये हैं।
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिKashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
KASHI i.e. VARANASI is an ancient celestial and classical city. Varanasi which represents early history, culture, religion and Indian society. The book presents political and social history of Varanasi from Vedic to Modern period. The book is widely illustrated with rare photographs of early 19th century.
काशी उस सभ्यता की सदा से परिपोषक रही है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत-मतान्तरों और विचारधाराओं का सहयोग रहा है। यही नहीं, धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्बन्ध होने के कारण इस नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न होकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास है जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। लेखक ने इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी बिखरी हुई सामग्री को जोड़कर इस इतिहास का निखरा स्वरूप खड़ा किया है। रोचक सामग्री का भी प्रचुर उपयोग करके नगर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक की दृष्टि में इतिहास केवल शुष्क घटनाओं का निर्जीव ढाँचा नहीं है, उसमें हम समाज की प्रक्रियाओं तथा धाॢमक अभिव्यक्तियों का भी पूर्णरूप से दर्शन कर सकते हैं। अपने विषय की एकमात्र कृति तो यह है ही। तृतीय संस्करण में काशी के 18वीं-19वीं शताब्दी के अत्यन्त दुर्लभ चित्र सम्मिलित किये गये हैं। पृ० : 404 दुर्लभ चित्र : 40
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Maihar Ke Angana
अवध की संस्कृति, सभ्यता और परम्परा हमारी धरोहर है। अवध उत्तर प्रदेश के 25 जनपदों का एक भू-भाग है, जिसे प्राचीन काल में कोशल के नाम से जाना जाता था। कोशल की राजधानी अयोध्या थी। ‘अवध’ का नाम अयोध्या से पड़ा और मेरा परम सौभाग्य है कि मेरा जन्म अवध की पावन भूमि अयोध्या में हुआ। जहाँ की विशेषता कला और संस्कृति का संगम अनन्त भण्डार विश्वविख्यात है। भारत की लोक कलाएँ विश्व की सबसे प्राचीन धरोहरों में से एक बहुरंगी, विविध और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। यहाँ की अनेक जातियों और जनजातियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही पारम्परिक कलाओं को लोक कला के नाम से जाना जाता है। अवध में आलेखित चित्र मांगल्य के प्रतीक होते हैं। हमारे अवध की संस्कृति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी हैं। यहाँ की संस्कृति में लोक कला बसती है, यहाँ के त्योहार लोक कला के बिना अधूरे हैं। एक वर्ष में बारह महीनों के अलग-अलग त्योहार होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास से शुरू होता है। अवध में इस माह में नव वर्ष का उत्सव मनाते हैं। इसी माह में वासन्ती नवरात्रि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी का जन्म उत्सव मनाते हैं।
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Vani Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Shaharnama Faizabad
शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ कहीं न कहीं आधुनिक ढंग से इस पुराने शहर की परम्परा और संस्कृति को नये सन्दर्भों में देखने का एक रीडर या गाइड सरीखा है, जिसे हम ‘सांस्कृतिक-गज़ेटियर’ की तरह भी बरत सकते हैं। यह पुस्तक जो पूरी तरह इतिहास में प्रवेश करके वर्तमान तक लौटती है, इसमें तमाम ऐसे रास्ते और पगडण्डियाँ आसानी से देखी जा सकती हैं, जिनसे होकर हम अपनी सभ्यता में रचे-बसे पुराने शहर का कोई ऐतिहासिक पाठ बना सकते हैं। ऐसा पाठ, जो वर्तमान और अतीत के किसी निर्णायक बिन्दु पर आपकी जवाबदेही तय करता है। फ़ैज़ाबाद को यह गौरव हासिल रहा है कि इस शहर ने नवाबी संस्कृति के आगाज़ और यहीं से उसके प्रस्थान का बदलता हुआ दौर देखा है। यह वह शहर है, जहाँ अपने सारे गंगा-जमुनी प्रतीकों के साथ रहते हुए, हिन्दुओं की आस्था-नगरी व सप्तपुरियों में से एक अयोध्या भी स्थित है। यह फ़ैज़ाबाद ही है, जिसने 1857 ई. के पहले स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए बड़ी सार्थक ज़मीन उपलब्ध करायी है और बाद में आज़ादी की लड़ाई के दौर में क्रान्तिकारियों के रूप में हमें अधिसंख्य नायक दिये हैं।
‘शहरनामा फ़ैज़ाबाद’ को लेकर कुछ प्रमुख बिन्दुओं की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिसके आधार पर ही इस पूरे ग्रन्थ का निर्माण किया गया है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि फ़ैज़ाबाद शहर का जो ऐतिहासिक मूल्यांकन किया गया है, उसके लिए इतिहास-निर्धारण की तिथि वहाँ से ली गयी है, जब नवाब सआदत ख़ाँ ‘बुरहान-उल-मुल्क’, 1722 ई. में इस शहर की आधारशिला अवध की राजधानी के तौर पर रखते हैं। अतः इस पुस्तक में विवेचित सामग्री, उसी वर्ष से अपना अस्तित्व पाती है।SKU: n/a -
Patanjali-Divya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Vegetation Survey of Morni Hills. Panchkula, Haryana (English)
Patanjali-Divya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिVegetation Survey of Morni Hills. Panchkula, Haryana (English)
Morni Hills in Panchkula district of Haryana, is a part of Shivalik Hills and is very rich in Floristic diversity. A Team of 25 scientist from Herbal Research Department of Patanjali Research Foundation Trust has done a detailed vegetational survey and study including socio-economic aspect of the area in 2017-2018. The aim of the research is to provide an overview on the status of vegetational composition and various types of forest resources and its conservation in Morni Hills. All the findings of the survey are presented in the form of a book entitled Vegetation Survey of Morni Hills, Panchkula, Haryana.
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