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Rani Durgavati


कैसा विचित्र समय था? जब हिंदू राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बारे में विचार करना ही त्याग दिया था। वे सीधे शरणागत हो रहे थे। रानी दुर्गावती की दृढ़ता, शासन करने की शैली तथा प्रजा-रंजन बादशाह अकबर को भी चिढ़ाता था। एक विधवा रानी का सुयोग्य शासन उसे खटक रहा था। अकबर ने संदेश भेजा—रानी, पिंजरे में कैद हो जाओ, तभी सुरक्षित रहोगी और वह पिंजरा होगा, मुगल बादशाह अकबर का। सोने का ही सही, पर पिंजरा तो पिंजरा होता है। गुलामी तो गुलामी होती है। कितना निकृष्ट संदेश रहा होगा? रानी दुर्गावती ने इस संदेश के उत्तर में अकबर को उसकी औकात बता दी। रानी संस्कृति की पूजक थीं, ‘गीता’ रानी का प्रिय ग्रंथ था। वह पंडितों से नियमित गीता प्रवचन सुनती थीं। रानी जीना भी जानती थीं और मृत्यु का वरण करना भी। उन्हें पुनर्जन्म पर भी विश्वास था। वह देशाभिमान भी जानती थीं और युद्ध के मैदान में रणचंडी बनना भी। ऐसी मनस्विनी रानी अकबर की नौकरानी कैसे बन सकती थीं?
दुर्गावती की गाथा गोंडवाना की लोककथाओं में जीवित है, उन्हें जन-जन पूजता है। महारानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र को अनेक लेखकों ने लिखा है। दुर्गावती के बलिदान स्थल से जन्म स्थल तक अनेक अभिलेख, आलेख तथा पुरातत्त्व के अवशेष मिल जाते हैं। दुर्गावती शोध संस्थान, जबलपुर ने रानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र और उनके रेखांकित स्थलों पर अनुसंधान भी किया है। दुर्गावती का जीवनवृत्त सुना, समझा और पढ़ा जा रहा है।
देशाभिमानी, निर्भीक, साहसी क्षत्राणी और विदुषी रानी दुर्गावती का प्रामाणिक जीवन-चरित है यह उपन्यास।

 

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Shankar Dayal Bhardwaj

शंकर दयाल भारद्वाज
जन्म : 1957 में।
शिक्षा :  एम.ए.  (संस्कृत, दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, हिंदी), बी.एड.।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘कामदगिरि’, ‘राष्ट्रीय बाल पहेलियाँ’, ‘तुम चंदन, हम पानी’, ‘जीवनमूल्य’, ‘नन्हा वीर’, ‘पावन प्रसंग’, ‘हमारे छत्रसाल’, ‘परमवीर छत्रसाल’।
संपादन : प्रेरणा हिंदी द्विमासिक 1999 से 2009; सृजन, समरसता विशेषांक तथा अन्य पत्रिकाएँ।
संप्रति :  प्राचार्य,  सरस्वती विद्यापीठ (आवासीय विद्यालय), सतना (म.प्र.)।

Weight 0.350 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in
  •  Shankar Dayal Bhardwaj
  •  9789386054999
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  Ist
  •  2020
  •  160
  •  Hard Cover

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