Prabhat Prakashan
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Azad Hind Fauz
‘आजाद हिंद फौज’ आज भी लाखों भारतवासियों के दिलों में अपना स्थान बनाए हुए है। आजाद हिंद फौज ने सन् 1944 में अंग्रेजों से आमने-सामने युद्ध किया और कोहिमा, पलेल आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 22 सितंबर, 1944 को ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ किंतु दुर्भाग्यवश द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलटा और जर्मनी ने हार मान ली, साथ ही जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में इन देशों ने आजाद हिंद फौज की मदद करने से इनकार कर दिया। इसी समय अंग्रेजों ने नेताजी पर नकेल कसने की रणनीति बनाई। इस वजह से नेताजी को टोक्यो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आजाद हिंद फौज भारत के गौरवशाली और क्रांतिकारी इतिहास को सुनहरे अक्षरों में कैद किए हुए है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के सच्चे इतिहास से रूबरू कराती है यह पुस्तक। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन और राष्ट्रभक्त हुतात्माओं के बलिदान की प्रेरणागाथा बताती अत्यंत पठनीय पुस्तक।.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Azadi @ 75 : Krantikariyon Ki Shauryagatha
भारतीय स्वाधीनता संग्राम रूपी यज्ञ में अनेक वीरों ने अपनी आहुति दे दी। वे कठिनतम परिस्थितियों में भी अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहे, किंतु भारतीय इतिहास का यह दुर्भाग्य रहा कि हम कुछ ही वीरों की शौर्यगाथाओं को जनमानस में प्रचारित कर पाए। ‘आजादी ञ्च 75 क्रांतिकारियों की शौर्यगाथा’ पुस्तक संपूर्ण भारतवर्ष के सुने-अनसुने क्रांतिवीरों के जीवनचरित्र पर आधारित है, जो अपने महान् योगदान के बावजूद स्थानीय स्तर पर ही कहीं खोकर रह गए।
इसमें ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना से प्रेरित होकर उत्तर से लेकर दक्षिण एवं पूरब से लेकर पश्चिम तक क्रांति की अलख जगानेवाले क्रांतिकारियों को सम्मिलित किया गया है, ताकि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक समन्वित एवं समायोजित इतिहास की पृष्ठभूमि जन-मानस तक पहुँच सके।
इस पुस्तक का आधार केवल जानकारियों का एकत्रीकरण व संग्रहण न होकर हमारे शूरवीरों के दर्शन व तत्कालीन परिस्थितियों में उनके द्वारा किए गए धार्मिक, सामाजिक व शैक्षिक आंदोलनों का वर्णन करना है, ताकि हमारी भावी पीढ़ी उनसे प्रेरित होकर वर्तमान मुद्दों का हल निकाल सके और इस प्रकार जाति व्यवस्था रहित, महिला समानता आदि उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित एक ‘नए भारत’ का सृजन कर सके। इसी से भारत को विश्वगुरु के रूप में पुनः प्रतिस्थापित किया जा सकेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Azadi Ke Aranya Senani
“आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक अरण्य नायकों की गौरव-गाथा का स्मरण है। इसमें भारत के जनजातीय समुदायों के सत्रह स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और उनके बलिदान की कहानी है। वनों, बीहड़ों, पर्वतों और वनांचलों में बसनेवाले सामान्य ग्रामवासी किस तरह अपने समाज और भारत की आजादी के लिए आगे बढ़े, शक्तिशाली ब्रिटिश राज से टक्कर ली और अपना उत्सर्ग किया। इस पुस्तक में स्वातंत्र्यचेता अरण्य सेनानियों के संघर्ष को स्वर दिया गया है। आजादी के ये सत्रह मतवाले भारत के विभिन्न प्रांतों से हैं। इनकी जनजातियाँ भिन्न हैं। इनकी पृष्ठभूमि और संस्कृतियाँ अलग-अलग हैं, फिर भी आजादी की उत्कट अभिलाषा इन सबके हृदय में समान रूप से करवटें लेती है। यह पुस्तक इन्हीं अभिलाषाओं का प्रतिरूपण है।
‘आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक की यह विशेषता है कि इसे शुष्क इतिहास की तरह नहीं बल्कि एक भावात्मक गाथा की तरह लिखा गया है। ऐसी गाथा, जो पाठकों के मन में इन बलिदानियों का चित्र खींच देती है और उनके भीतर राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय अस्मिता का अनहद नाद गूँजने लगता है।
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इस पुस्तक का प्रणयन आजादी की लड़ाई में भारत की जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की भूमिका को सशक्त एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का संकल्प लेकर किया गया है। यह पुस्तक तत्संबंधी संकल्प की प्रस्तुति है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Banda Singh Bahadur
बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे।
महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं।
वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batla House Encounter Ka Sach(PB)
“सितम्बर 2008: एक के बाद एक अनेक बम धमाकों ने दिल्ली
को दहलाकर रख दिया। जाँच-पड़ताल
के बाद दिल्ली पुलिस की एक विशेष टीम ने बाटला हाउस के फ्लैट नं. 108 पर छापा मारा।
टीम को स्पष्ट निर्देश दिए गए
थे कि फ्लैट पर छापा मारकर संदिग्ध आतंकवादियों को जिंदा गिरफ्तार करना है। इसके बाद जो हुआ, उसने एक मुठभेड़ का रूप धारण कर लिया और राजनीतिक गलियारे में तूफान ला दिया। यह घटना आज भी मीडिया-जगत् में उग्र एवं विवादास्पद मुद्दा बनी हुई है।
बाटला हाउस
इस ऑपरेशन का नेतृत्व कर्मठ एवं जुझारू पुलिस अधिकारी कर्नल सिंह ने किया था। देश को झकझोर देनेवाली इस मुठभेड़ की पल-पल की घटनाओं का वह स्वयं यहाँ वर्णन कर रहे हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो से मिली सूचनाओं, भारत के विभिन्न शहरों में घटी घटनाओं, भिन्न-भिन्न पहलुओं तथा स्थानीय संदेशवाहकों व गुप्तचरों द्वारा प्राप्त विशेष खबरों के आधार पर उन्होंने इस मुठभेड़ की घटनाओं को सिलसिलेवार जोड़कर एक कहानी का रूप दिया है, जिसने गुप्त और खूँखार इंडियन मुजाहिद्दीन के अंत की शुरुआत को चिह्नित किया है। आतंकवाद और आतंकियों को शह देनेवाले राष्ट्रघातकों
मुठभेड़ का जीवंत दस्तावेज है यह पुस्तक ‘बाटला हाउस’।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(PB)
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Beyond 370 : Jammu and Kashmir Spreads its Wings
Beyond 370: Jammu and Kashmir spreads its Wings’ is a comprehensive book that delves into the changes post-abrogation of Article 370 in 2019 and its profound impact on the development and progress of Jammu and Kashmir. The book offers an in-depth exploration of the region’s transformative journey as it navigates a new path towards growth and empowerment.
Through meticulous research and on-the-ground accounts, ‘Beyond 370’ delves into the multi- faceted aspects of development in Jammu and Kashmir. It highlights numerous government initiatives and policies aimed at fostering economic growth, infrastructural development, and job creation. The book also assesses the impact of these measures on the lives of the region’s residents, exploring the socio-economic changes that have unfolded.
‘Beyond 370’ is a balanced and insightful account that provides readers with a comprehensive understanding of how Jammu and Kashmir has progressed in the wake of Article 370’s abrogation. It acknowledges the complexities and aspirations of the region while offering a glimpse into the transformative changes that have propelled Jammu and Kashmir towards a promising future.
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Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bhagat Singh Jail Diary
माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bhagat Singh Jail Diary (English)
Great son of India, Shaheed Bhagat Singh was executed by the Britishers on V 23rd March, 1931. He dedicated his life to free motherland frOm the cruel clutches of the British.
His Jail Diary was handed over, along with other belongings to his father, Sardar Kishan Singh after his execution. After Sardar Kishan Singh’s death, the notebook, along with other papers of Bhagat Singh, was passed on to his another son, Shri Kulbir Singh. After his death, it has passed to his son, Shri Babar Singh. It was the dream of Shri Babar Singh that the Indian masses get to know through this historical diary what were the actual thoughts of Shaheed Bhagat Singh. Also general people can also see the original writings of Bhagat Singh because he is the hero of every caste, religion, poor, rich, farmers, labourers and everyone who loves Bharat.
Bhagat Singh’s deep thinking and vision, love for mankind can be seen by his these words, “Our political parties consist of men who have but one idea, i.e. to fight against the alien rulers. That idea is quite laudable, but cannot be termed a revolutionary idea. We must make it clear that revolution does not merely mean an upheaval or a sanguinary. strife. Revolution necessarily implies the programme of systematic reconstruction of society on new and better adapted basis, after complete destruction of the existing state of affairs (i.e. regime).”
Publication of this Jail Diary is a befitting tribute to the hero of India’s freedom struggle since it will infuse feeling of nationalism, patriotism and dedication among the readers.
About the Author
Yadvinder Singh Sindhu (Grandson ofShaheed Bhagat Singh) President, Shaheed Bhagat Singh Brigade and Vice Chairman, All India Shaheed Bhagat Singh Memorial Trust.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature
Bhaktiyog (PB)
निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को ‘भक्तियोग’ कहते हैं। इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान्् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। जब मनुष्य इसे प्राप्त कर लेता है, तो सभी उसके प्रेमपात्र बन जाते हैं। वह किसी से घृणा नहीं करता; वह सदा के लिए संतुष्ट हो जाता है। इस प्रेम से किसी काम्य वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि जब तक सांसारिक वासनाएँ घर किए रहती हैं, तब तक इस प्रेम का उदय ही नहीं होता। भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।’’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan
ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्। यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुँचे।
भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है। हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है। इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया।
भारत को जानना है तो इस संस्कृति
के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा। इसे ‘सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट’ जैसी पाश्चात्य या ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता, जो देश की स्वाधीनता के बाद भी सत्ता का संरक्षण पाकर औपनिवेशिक मानसिकता को पाल-पोसकर भारतीयता के विरुद्ध खड़ा करने में लगी रही हों। यह पूरी जमात ‘लोग आते गए, कारवाँ बनता गया’ जैसे जुमलों की आड़ में भारत की सांस्कृतिक पहचान को ही मिटाने का कुचक्र रचती रही है। जबकि विश्वविख्यात विद्वान् अर्नाल्ड टायन्बी अपनी पुस्तक ‘द स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में भारत के इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों को विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को बचाने का विकल्प मानते हैं।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
BHARAT 2020 AUR USKE BAAD- DR APJ ABDUL KALAM & YS RAJAN
Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBHARAT 2020 AUR USKE BAAD- DR APJ ABDUL KALAM & YS RAJAN
परिवर्तन का समय अभी है। विकल्प स्पष्ट और भयानक है। अगर हम वर्तमान ढर्रे पर ही चलते रहे तो विश्व के अन्य लोग हमसे आगे निकल जाएँगे। गरीबी व बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ जाएगी, जो हमारे समाज को अंतर्विस्फोट की ओर ले जाएगी। और अगर हम बदलाव लाएँगे तो हम वास्तविक प्रगति कर पाएँगे—गरीबी से समृद्धि की ओर, गतिरोध से तीव्र विकास की ओर।’
भारत अभी भी एक दशक के भीतर ही विकसित देशों की सूची में शामिल हो सकता है। ‘भारत 2020 और उसके बाद’ नामक यह पुस्तक इस रूपांतरण के लिए एक पूरी कार्ययोजना प्रदान करती है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Bharat Bhagya Vidhata (PB)
2014 में भारत में 16वीं लोकसभा का चुनाव हुआ। देशभर के मतदाताओं ने शासन और चुनावों से जुडे़ मुद्दों पर बहस की। यह पुस्तक ऐसे व्यक्ति ने लिखी है, जिसने राष्ट्रीय राजनीति को बहुत निकट से देखा है। यह पुस्तक ऐसा वैचारिक कथन है, जो हर नागरिक को पढ़ना और समझना चाहिए।
भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति, वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीविद्, शिक्षक और विचारक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने देशभर का गहन दौरा किया है और करीब 1 करोड़ 70 लाख नौजवान भारतीयों से बात की है। उन्होंने अपने विस्तृत अनुभव और ब्योरों की बारीक जानकारी के आधार पर शासन के विभिन्न आयामों पर चर्चा की है और भारत के लिए एक विजन दिया है, जिसे साकार करने के लिए हर भारतीय ईमानदार और नैतिक रूप से श्रेष्ठ बने तथा कड़ा परिश्रम करे, ताकि हम विकसित भारत का लक्ष्य हासिल कर सकें।
डॉ. कलाम ने भ्रष्टाचार, शासन और जवाबदेही के मुद्दों केव्यावहारिक और चरणबद्ध समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। आशावादी, प्रगतिशील और सकारात्मक सोच के साथ उन्होंने ऐसे भारत का स्वप्न देखा है, जो हर नागरिक के समग्र विकास से ही हासिल हो सकता है। इसमें विकास की समयबद्ध कार्ययोजना बताई गई है, जिसे हर नागरिक को आत्मसात् करना चाहिए। इससे वह अपने मताधिकार का इस्तेमाल सोच-समझ एवं विश्लेषणात्मक ढंग से करके भारत में वास्तविक परिवर्तन ला सकता है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharat Darshan (HB)
-20%Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharat Darshan (HB)
विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है।
स्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है।
‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है।
भारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bharat Darshan (PB)
-20%Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBharat Darshan (PB)
विश्व में अपने वैभव के लिए ख्यातिप्राप्त किसी भी राष्ट्र के उस वैभव की प्राप्ति के लिए किए हुए प्रयत्नों का अध्ययन ऐसे वैभव की चाह रखनेवाले सभी राष्ट्रों को बहुत बोधप्रद होता ही है। ऐसे उपलब्ध सभी अध्ययन (एक बोध) निरपवाद रूप से प्रदान करते हैं कि राष्ट्र की वैभवप्राप्ति, राष्ट्र के भाग्योदय की शिल्पकार सदा ही उस राष्ट्र की सामान्य प्रजा होती है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, विचार एवं तत्त्वज्ञान, राजतंत्र और नेतागण, मान्यताएँ आदि बातें केवल सहायक ही होती हैं, जबकि सामान्य जनमानस का पुरुषार्थ ही राष्ट्र के भाग्योदय का प्रमुख माध्यम होता है।
स्व की जागृति के बिना व्यक्ति और समाज के पुरुषार्थ का उदय नहीं हो सकता है। हमें अपने राष्ट्र का भूगोल, प्राकृतिक संसाधन, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विशेषताएँ, गौरवशाली इतिहास एवं पूर्वजों के पुरुषार्थ-समर्पण आदि का वास्तविक ज्ञान होने से ही व्यक्ति एवं समाज को विरासत में मिले संसाधन एवं क्षमताएँ वर्तमान स्थिति की कारण बनीं। अपने गुणों की परंपराओं को जानने से ही राष्ट्र के भाग्योदय का पथ तथा दृढ़तापूर्वक उस पथ पर चलकर ध्येय प्राप्त करने का संकल्प, विजिगीषा वृत्ति तथा आत्मविश्वास एवं संबल प्राप्त होता है।
‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में देवस्तुति, नम्र निवेदन, भौगोलिक स्थिति, पुण्य स्थलों का स्मरण, प्राचीन वाङ्मय, धार्मिक पंथ एवं दर्शन, उन्नत विज्ञान, प्राचीन परंपराएँ, भुवनकोश एवं वैदिक-कालीन, रामायणकालीन, महाभारतकालीन विश्व रचना एवं संस्कृति, भारतवर्ष के दिग्विजयी राजाओं एवं राज्यों का विस्तार, संघर्षकालीन इतिहास, ध्येय समर्पित पूर्वजों का स्मरण, वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य एवं राजनीतिक राजव्यवस्था, साथ ही अविस्मरणीय उपलब्धियाँ एवं पुनः संकल्प आदि का इस ‘भारत दर्शन’ ग्रंथ में समीचीन रूप से विवेचन उपलब्ध है।
भारत की प्राचीन एवं अर्वाचीन गौरवशाली परंपराओं एवं वैज्ञानिक स्वप्रमाण तथ्यों का यह सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक ग्रंथ है। वस्तुतः भारत राष्ट्र को समझना है तो ‘भारत दर्शन’ का अध्ययन करना ही होगा।SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat First
Bharat first’ is in many sense a trendsetting book. As a pioneering text, it deals with the transparent vision of one of the chief architects of the nation Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar with authentic evidences. The wholistic panorama of the then Bharat in logically embroidered chapterisation with Persnickety precision breaks the conventional barriers raised against the real personality of Dr. Ambedkar. The book is among the very few books that explores versatile character of Dr. Babasaheb Ambedkar with proper evidences and arguments. For future researchers, these well examined articles would play the role of foundational stones in the search of real personality of Constitutional architect of ‘BHARAT, that is India’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Ka Ankaha Itihas
“इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे एक अहिंसक तानाशाह को, जिसने नियमों को हमेशा ताक पर रखा। कहानी कम्युनिज्म के नशे में चूर एक युवा नेता की, जिसने यहाँ तक कह दिया कि “सोवियत की जेलों में रहना बेहतर है, बजाय भारत की किसी फैक्टरी में काम करने से !” कहानी एक ऐसे संगठन की, जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मान कर भारतीय अस्मिता की रक्षा के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहा। साथ ही हम जानेंगे, आखिर कैसे रचा गया खालिस्तान का षड्यंत्र ? कितनी बार हुआ कश्यप की धरती पर उन्हीं के वंशजों का पलायन ? हम बात करेंगे इतिहास के मिथ्याकरण की, जिसमें कपटपूर्ण चालों से झूठ को सच बताया गया।
आप पढ़ेंगे एक ऐसे वीर को, जिसके साहस के आगे समुद्र को भी अपनी रफ्तार धीमी करनी पड़ी और फ्रांस जैसे सशक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति को त्यागपत्र तक देना पड़ा।आज आवश्यकता है इतिहास के पुनरावलोकन की, ताकि हम स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले सच्चे वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें एवं उनसे प्रेरणा लेकर भविष्य की चुनौतियों का हल निकालने का प्रयास करते हुए स्वाधीनता की 100वीं वर्षगाँठ पर भारत को एक विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित कर सकें |”
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Bharat Ka Dalit-Vimarsh
दलित हिंदू ही हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत के पिछड़ा, आदि यानी सभी मध्यम जातियाँ हिंदू हैं और ठीक वैसे ही जैसे भारत की सभी सवर्ण जातियाँ हिंदू ही हैं। भारत के हिंदू समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। वे किसी भी आधार पर हिंदू से अलग, पृथक् कुछ भी नहीं हैं, फिर वह आधार चाहे भारत के जीवन-दर्शन का हो, भारत की अपनी विचारधारा का हो या भारत के इतिहास का हो, भारत के समाज का हो, भारत की संपूर्ण संस्कृति का हो। इस समग्र विचार-प्रस्तुति का अध्ययन होना ही चाहिए। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के आह्वान का सम्मान करते हुए सारा भारत, जिसमें हमारे जैसे लिखने-पढ़ने वाले लोग भी यकीनन शामिल हैं, अब उस वर्ग को ‘दलित’ कहता है, जिसे वैदिक काल से ‘शूद्र’ कहा जाता रहा है। प्राचीन काल से शूद्र तिरस्कार के, उपेक्षा के या अवमानना के शिकार कभी नहीं रहे। हमारे द्वारा दिया जा रहा यह निष्कर्ष हमारी इसी पुस्तक में प्रस्तुत किए गए शोध और तज्जन्य विचारधारा पर आधारित है। इस विचारधारा को हमने अपनी ही पुस्तकों ‘भारतगाथा’ और ‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’ में विस्तार से तर्क और प्रमाणों के साथ देश के सामने रख दिया है। दलितों का पूर्व नामधेय शूद्र था। जाहिर है कि इसका अर्थ खराब कर दिया गया। पर सभी शूद्र उसी वर्ण-व्यवस्था का, ‘चातुर्वर्ण्य’ का हिस्सा थे, जिस वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा वे तमाम ऋषि, कवि, साहित्यकार, मंत्रकार, उपनिषद्कार, पुराणकार और लेखक थे, जिनमें स्त्री और पुरुष, सभी शामिल रहे, जिन्होंने वैदिक मंत्रों की रचना ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र, सभी वर्णों के विचारवान् लोगों ने की; रामायण, महाभारत, पुराण जैसे कथा ग्रंथ लिखे; ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषद् साहित्य तथा समस्त निगम साहित्य की रचना की। ब्राह्मणों ने भी की और शूद्रों ने भी की। स्त्रियों ने की और पुरुषों ने भी की। सभी ने की।
दलितों के सम्मान और गरिमा की पुनर्स्थापना करने का पवित्र ध्येय लिये अत्यंत पठनीय समाजोपयोगी कृति।
भारत के हिंदू समाज में आए इन विविध परिवर्तनों और परिवर्तन ला सकनेवाले अभियानों-आंदोलनों के परिणामस्वरूप देश में जो नया वातावरण बना है, जो पुनर्जाग्रत समाज उभरकर सामने आया है, जो नया हिंदू समाज बना है, उस पृष्ठभूमि में, इस सर्वांगीण परिप्रेक्ष्य में हिंदू उठान और इसलिए पूरे भारत में आए दलित उठान, उसका मर्म और परिणाम समझ में आना कठिन नहीं। भारत चूँकि हिंदू राष्ट्र है, वह न तो इसलामी देश है और न ही क्रिश्चियन देश है, और भारत कभी इसलामी राष्ट्र या क्रिश्चियन राष्ट्र बन भी नहीं सकता, इसलिए भारत में दलित विमर्श, दलित समाज का स्वरूप और दलितों के उठान में इस अपने हिंदू समाज की, भारत के हिंदू राष्ट्र होने के सत्य की अवहेलना कर ही नहीं सकते। भारत का हिंदू आगे बढ़ेगा तो भारत का दलित भी आगे बढ़ेगा और भारत का दलित आगे बढ़ेगा, तो भारत का हिंदू भी आगे बढ़ेगा। उसे वैसा लक्ष्य पाने में भारत का हिंदू राष्ट्र होना ही अंततोगत्वा अपनी एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।SKU: n/a -
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BHARAT KA ITIHAS
वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक माहौल में हम अपने इतिहास को नजरअंदाज करने लगे हैं। आज निचले वर्ग केपाठ्यक्रम में भी इतिहास एक स्वतंत्र विषय के रूप में नहीं रह गया। उसे सामाजिक विज्ञान का एक छोटा सा अंश बना दिया गया है। फलतः छात्रों को अपने देश के इतिहास से पूरा परिचय नहीं हो पाता। वे अपने पूर्वजों की आन, बान और शान से, उनके त्याग व बलिदान से उनकी शूरता एवं वीरता से परिचित नहीं हो पा रहे हैं। उनमें राष्ट्रीयता की भावना का लोप होने लगा है। यह स्थिति चिंताजनक है। सरकार, शिक्षक सबका दायित्व है कि वे छात्रों में इतिहास प्रेम जगाने का प्रयास करें।
भारतीय इतिहास की यह पुस्तक मैंने इसी भावना से प्रेरित होकर लिखी है। मैंने इसमें मुख्य रूप से मुगलकालीन एवं ब्रिटिशकालीन भारत की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दशाओं पर प्रकाश डालने का एक छोटा सा प्रयास किया है। मैंने छात्रों को यह बताने का प्रयास किया है कि हमारे इतिहास ने कहाँ-कहाँ चूक की है, जिसका लाभ उठाकर विदेशियों ने कितनी बार हमारे सोने की चिडि़या के पर कुतरने की कोशिश की है। फिर भी हम अपनी अस्मिता को बचाए रखे हैं। पुस्तक की सफलता या विफलता तो पाठकों के निर्णय पर है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharat Ka Samvidhan
संविधान का राष्ट्रीय लोक-विमर्श आज भी लगभग पूरी तरह अंग्रेजी भाषा का मुखापेक्षी है। इस विमर्श में आम आदमी की छवि एवं उनके सरोकार तो नजर आते हैं, किंतु आम आदमी की भाषा सुनाई नहीं देती। इस ग्रंथ में हिंदी में विवेकसंगत एवं संतुलित संविधान-विमर्श के साथ ही आम आदमी की समझ में आनेवाली भाषा प्रयोग की गई है। संविधान-रचना की पृष्ठभूमि और व्याख्या की दृष्टि से यह ग्रंथ हिंदी भाषा में संविधान-साहित्य को एक अमूल्य और बेजोड़ उपहार है।
प्रस्तुत ग्रंथ में संविधान के विविध पक्षों पर सरल एवं सुबोध भाषा में प्रकाश डाला गया है। इसमें संविधान के उलझे हुए प्रश्नों के विवेचन के साथ-साथ संविधान के विषयों का अनुच्छेद-आधारित उल्लेख भी है। संविधान की रचना की पृष्ठभूमि देते हुए बताया गया है कि कई ‘अर्धवैधानिक’ नियम भी संविधान एवं शासन प्रबंध की व्यावहारिकता में महत्त्वपूर्ण होते हैं। उन सबको लेकर एक सांगोपांग एवं सर्वतोमुखी संवैधानिक विवेचन इस ग्रंथ में समाविष्ट है, जिसमें इतिहास है, राजनीति है, समाजशास्त्र है।
इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह सरल, सुबोध एवं सुव्यवस्थित होने के साथ-साथ अध्ययनशील स्पष्टता, प्रामाणिकता एवं गुणवत्ता से भी संपन्न है। —डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवीSKU: n/a