राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
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Garuda Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Had Sardar Patel Been The First Prime Minister
Garuda Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रHad Sardar Patel Been The First Prime Minister
When a nation begins to pine for a person from its past, wishing he remained at the helm for longer, it indicates that the path taken by that nation is not the correct one. With Sardar Patel, especially vis-a-vis Nehru, the Indian nation still mourns the fact that the former did not become the first Prime Minister of India. This book, written by Justice (retd.) S N Aggarwal, author of “Nehru’s Himalayan Blunders”, establishes the real reasons why we still pine for Patel’s longer presence at the horizon of our national leadership. The book, quoting from authentic sources, also gives ample insight into the views and understanding of the affairs of the nation, which Sardar not only preached but also practiced. Usually, Sardar Patel, the “Iron Man” that he was, is lauded for his role in the unification of post-independent India. With Nehru botching up the only princely state he handled – namely, Jammu and Kashmir – Patel’s contribution in unifying more than 500 princely states in the Indian union becomes all the more laudable. However, this book goes beyond. “Had Sardar Patel been the first Prime Minister, the country would have been fully armed to defend herself, there could have been no danger from outside. By following the principles of patriotism, moral values and high character and discipline, there would have been no internal problem,” writes the author. And, like the case of Kashmir, in these matters too, Nehru’s conduct makes one wish all the more strongly that Sardar should have been the first Prime Minister of India.
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Hindi Books, Hindu Janajagruti Samiti, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Halal Jihad (PB)
Hindi Books, Hindu Janajagruti Samiti, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Halal Jihad (PB)
हलाल जिहाद ? (भारतीय अर्थव्यवस्थापर नया आक्रमण ?)
शरीयत आधारित ‘इस्लामिक बैंक’का अनेक देशोंने विरोध किया; परन्तु ग्राहक अधिकारोंके कारण तथा कट्टर धर्मपालनके आग्रहवश ‘हलाल अर्थव्यवस्था’ आज फलती-फूलती दिखाई दे रही है । मुसलमान प्रत्येक पदार्थ और वस्तु इस्लाम अनुसार वैध अर्थात ‘हलाल’ हो, इसकी मांग कर रहे हैं । इसके लिए ‘हलाल सर्टिफिकेट’ अनिवार्य हो गया ।
‘सेक्युलर’ भारतमें ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण’ (FSSAI) जैसी सरकारी व्यवस्था होते हुए भी ‘हलाल सर्टिफिकेट’ देनेवाली इस्लामी संस्थाओंकी क्या आवश्यकता है ?
इस पृष्ठभूमिपर यह ग्रन्थ किसी समाजकी धार्मिक श्रद्धाके विषयमें अथवा उनके धार्मिक अधिकारोंके विषयमें प्रश्न करनेके लिए अथवा उनका अपमान करनेके लिए नहीं; अपितु भारतके १०० करोड हिन्दू ग्राहकोंके अधिकारोंका सम्मान करनेके लिए, उन्हें उनके ग्राहक अधिकारों का भान दिलानेके लिए तथा राष्ट्रके सामने आसन्न एक संकटकी जानकारी देनेके लिए संकलित किया गया है !
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Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Hindu TerrorInsider account of Ministry of Home Affairs 2006-2010(PB)
-15%Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Hindu TerrorInsider account of Ministry of Home Affairs 2006-2010(PB)
Chilling account of a man who was almost traded for release of Ajmal Kasab What role did ministers like Shivraj Patil, P Chidambaram, A R Antulay, Digvijay Singh and officials like Chitkala Zutshi, Dharmendra Sharma, Hemant Karkare, R V Raju play in the Hindu Terror narrative?
Here is a version of a man who almost was taken captive and was to be traded for elease of Ajmal Kasab, but saved by sheer providence.
In his insider account, author RVS Mani discloses how the country’s internal security establishment functioned in the period of 20042014 when India faced some of the bloodiest terrorist carnages. This former Home Ministry official posted in the Internal Security Division between 20062010 also poses several questions which the nation should seek answers to.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Hindutva (PB)
‘हिंदुत्व’ एक ऐसा शब्द है, जो संपूर्ण मानवजाति के लिए आज भी अपूर्व स्फूर्ति तथा चैतन्य का स्रोत बना हुआ है। इस शब्द से संबद्ध विचार, महान् ध्येय, रीति-रिवाज तथा भावनाएँ कितनी विविध तथा श्रेष्ठ हैं। ‘हिंदुत्व’ कोई सामान्य शब्द नहीं है। यह एक परंपरा है। एक इतिहास है। यह इतिहास केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेक बार ‘हिंदुत्व’ शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है। वैसे यह इतिहास मात्र नहीं है, वरन् एक सर्वसंग्रही इतिहास है। ‘हिंदू धर्म’, यह शब्द ‘हिंदुत्व’ से ही उपजा उसी का एक रूप है, उसी का एक अंश है।
‘हिंदुत्व’ शब्द में एक राष्ट्र, हिंदूजाति के अस्तित्व तथा पराक्रम के सम्मिलित होने का बोध होता है। इसीलिए ‘हिंदुत्व’ शब्द का निश्चित आशय ज्ञात करने के लिए पहले हम लोगों को यह समझना आवश्यक है कि ‘हिंदू’ किसे कहते हैं। इस शब्द ने लाखों लोगों के मानस को किस प्रकार प्रभावित किया है तथा समाज के उत्तमोत्तम पुरुषों ने, शूर तथा साहसी वीरों ने इसी नाम के लिए अपनी भक्तिपूर्ण निष्ठा क्यों अर्पित की, इसका रहस्य ज्ञात करना भी आवश्यक है।
प्रखर राष्ट्रचिंतक एवं ध्येयनिष्ठ क्रांतिधर्मा वीर सावरकर की लेखनी से निःसृत ‘हिंदुत्व’ को संपूर्णता में परिभाषित करती अत्यंत चिंतनपरक एवं पठनीय पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Hindutva Ek Jeevan Shaili
आज भारत के राजनीतिक परिवेश में चारों ओर संकट दिखाई दे रहा है। देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। धर्म-जाति के नाम पर वोट पाने हेतु राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि दी जा रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता के नाम पर संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आज के इस कलुषित वातावरण में हिंदुत्व की अप्रतिम जीवन-शैली को अपनाकर ही समाज में एक जन-जागरण पैदा किया जा सकता है, जिससे अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके।
जीवनपर्यंत राष्ट्रवाद की राजनीति के आदर्शों पर चलनेवाले वरिष्ठ राजनेता पं. कलराज मिश्र ने हिंदुत्व की परंपराओं, वेद, पुराणों और स्मृतियों के माध्यम से सभी समस्याओं का हल खोजने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में सम्मिलित अनेक आध्यात्मिक गुरुओं, राजनेताओं, लेखकों के मर्मस्पर्शी लेख बालविवाह, जातिप्रथा, टूटते परिवार, भ्रष्टाचार, महिलाओं के प्रति दुराचार जैसी बुराइयों को दूर करने में अवश्य सफल होंगे।
हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा, उसकी अप्रतिम जीवन-शैली, उसकी संस्कृति का दिग्दर्शन कराती एक श्रेष्ठ कृति।SKU: n/a -
Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
India’s Secularism
Voice of India, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)India’s Secularism
The ideology Secularism had taken shape during the European Enlightenment (18-19 centuries). Pandit Jawaharlal Nehru who had never used the term in his pre-independence writings or speeches simply picked up a prestigious world form the Western political parlance and made it mean the opposite of what it meant in the West. The outcome of this perversion proved disastrous for the newly independent nation, as it became more than obvious in due course. In pre-independent India, the ‘Muslim minority’ had exercised a veto on who was to be hailed as ‘nationalist’ and who was to be denounced as ‘Hindu communalist’. Now the same ‘minority’ reacquired the same veto on who was to be applauded as ‘secularist’ and who was to be hounded out as ‘communalist’. In short, the term ‘secularism’ in the post-independence period has been and remains no more than a euphemism for Hindu-baiting. The word ‘India’s’ instead of ‘Indian’ has been used in the title of this book because there is nothing Indian about Nahruvian Secularism. In fact, the term ‘secularism’ in its original Western sense had remained unknown to Indian political parlance because Indians had never envisaged or experienced a theocratic dispensation before the advent of Islam and its state apparatus in this country. Even today, traditional Indian scholars do not understand what theocracy means, and how Secularism in the Western sense stands opposed to it. And this ‘secularism’ has not been defined as Nahruvian because it is shared in common by all political parties including the Bharatiya Janata Party.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Indira Files (PB)
“लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों?
आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है।एक तरफ पाकिस्तान के दो टुकड़े करके इंदिरा गांधी ने भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया, तो दूसरी तरफ गांधारी की तरह बेटे को अंधा प्रेम कर ‘संजय की मम्मी, बड़ी निकम्मी’ जैसा नारा भी झेला।
एक तरफ सिक्किम विलय में अहम भूमिका निभाई तो दूसरी तरफ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का दाग उनकी मौत भी नहीं मिटा पाई।
एक तरफ परमाणु परीक्षण कर भारत की ताकत और हिम्मत को पर लगा दिए तो दूसरी तरफ पहली ऐसी प्रधानमंत्री बनीं, जिनको हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री पद से ही हटने का आदेश जारी कर दिया।यह पुस्तक किसी भी जागरूक पाठक, शोधार्थी, पत्रकार, नेता, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए काफी तथ्यात्मक हो सकती है। कुछ मुद्दे जो इस पुस्तक में लिखे गए हैं, वे और ज्यादा जगह माँगते थे, लेकिन ज्यादा विषयों को लेने की रणनीति के चलते उन्हें सीमित जगह ही दी गई। शोधार्थी इसको आधार बनाकर और गहन अध्ययन कर सकते हैं।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Janiye Sangh Ko
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिकसांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन है। देश में जब भी आपदा आई है, इस संगठन ने उल्लेखनीय कार्य किया है। जीवन के हर क्षेत्र में इस संगठन की उपस्थिति ध्यानाकर्षण करनेवाली है। इसी कारण सबको ऐसे विलक्षण संगठन को जाननेसमझने की आकांक्षा रहती है।
इस विश्वव्यापी संगठन की शुरुआत सन् 1925 में विजयादशमी के दिन हुई और इसको साकार किया डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने, जिनका बोया बीज आज एक विशाल वटवृक्ष बन गया है। शिक्षा, सेवा, चिकित्सा, विज्ञान, विद्यार्थी, मजदूर, अधिवक्ता, राजनीति आदि समाज के प्रमुख क्षेत्रों में इसकी सार्थक उपस्थिति है।
संघ की ऊर्जा का मूल स्रोत हैं ‘दैनिक शाखा’। प्रस्तुत पुस्तक में बड़े ही संक्षेप में यह बताया गया है कि संघ का सूत्रपात कब हुआ, इसका स्वरूप कैसा है, शाखा क्या है, भगवा ध्वज का क्या महत्त्व है, प्रचारक कौन बनते हैं, इसके विभिन्न शिविरों की संकल्पना क्या है, संघ की प्रार्थना का महत्त्व और उसका अर्थ क्या है आदि। संघ के सरसंघचालकों से संबंधित रोचक व तथ्यात्मक जानकारी भी इस पुस्तक में दी गई है।
दैनंदिन जीवन में राष्ट्रवाद, देशभक्ति, आदर्श जीवनमूल्य और समर्पित भाव से ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मूलमंत्र को अभिसिंचित कर राष्ट्रनिर्माण के लिए प्रतिबद्ध संगठन की व्यावहारिक हैंडबुक है यह पुस्तक जो आमजन में संघ को लेकर प्रचारित भ्रांतियों को दूर करने में सहायक होगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Jihadi Aatankwad
कट्टरता और इस्लाम के नाम पर आज आतंक चारों ओर फैल रहा है, जिसमें हज़ारों निरपराध, असहाय, स्त्री-पुरुषों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा है और जिसे रोकने के लिए अनेक देशों के सम्मिलित प्रयास भी पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसी समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरता से विचार करते हुए यह पुस्तक सामयिक भी है और महत्त्वपूर्ण भी।
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Harf Media Private Limited, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Jo Bhi Kahoonga Sach Kahoonga (PB)
Harf Media Private Limited, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Jo Bhi Kahoonga Sach Kahoonga (PB)
प्रस्तुत पुस्तक अजीत भारती की चौथी पुस्तक है। व्यंग्य की विधा में ‘बकर पुराण’ से अपनी अलग पहचान बना चुके लेखक ने दोबारा उसी विधा में वापसी की है। ‘जो भी कहूँगा, सच कहूँगा’ राजनैतिक व्यंग्य संग्रह है जिसमें भारत की न्यायिक व्यवस्था, नेताओं और पार्टियों समेत चौथे स्तंभ मीडिया पर चुभते हुए कटाक्ष हैं। जज और न्यायालयों पर उनके द्वारा लिखे कटाक्ष से सरकार इतनी हिल गई कि भारत के अटॉर्नी जनरल ने लेखक पर सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कन्टेम्प्ट) का केस चलाने की अनुमति दे दी। उनकी अन्य पुस्तकों में एक लघु उपन्यास ‘घरवापसी’ और एक कथा संग्रह (अंग्रेजी में) ‘There Will Be No Love’ शामिल हैं। अजीत भारती 12 वर्षों से पत्रकारिता और साहित्यिक लेखन करते रहे हैं। वर्तमान में वो ‘DO Politics’ के सह-संस्थापक और संपादक के रूप में पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
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Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Kahani Communisto Ki: Khand 1 (1917-1964)
-10%Kapot Prakashan, Sandeep Deo Books, Suggested Books, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Kahani Communisto Ki: Khand 1 (1917-1964)
THE AUTHOR
संदीप देवसंदीप देव मूलतः समाज शास्त्र और इतिहास के विद्यार्थी हैं | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक (समाजशास्त्र) करने के दौरान न केवल समाजशास्त्र, बल्कि इतिहास का भी अध्ययन किया है । मानवाधिकार से परास्नातक की पढ़ाई करने के दौरान भी मानव जाति के इतिहास के अध्ययन में इनकी रुचि रही है । वीर अर्जुन, दैनिक जागरण, नईदुनिया, नेशनलदुनिया जैसे अखबारों में 15 साल के पत्रकारिता जीवन में इन्होंने लंबे समय तक क्राइम और कोर्ट की बीट कवर किया है । हिंदी की कथेतर (Non-fiction) श्रेणी में संदीप देव भारत के Best sellers लेखकों में गिने जाते हैं । इनकी अभी तक 9 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । संदीप देव भारत में Bloombury Publishing के पहले मौलिक हिंदी लेखक थे, लेकिन वैचारिक कारणों से इन्होंने Bloombury से अपनी अब तक प्रकाशित सभी पुस्तकें वापस ले ली हैं । ऐसा करने वाले वो देश के एक मात्र लेखक हैं | इसके उपरांत कपोत प्रकाशन को पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। वर्तमान में संदीप देव हिंदी के एकमात्र लेखक हैं, जिनकी पुस्तकों ने बिक्री में लाख के आंकड़ों को पार किया है | संदीप देव indiaspeaksdaily.com के संस्थापक संपादक हैं ।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kashmir Aur Hyderabad
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKashmir Aur Hyderabad
‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था।
हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटले समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निजाम द्वारा बाह्य मामले तथा रक्षा एवं संचार मामले भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अंततः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे.एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र काररवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अंततः 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीर और हैदराबाद के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति पर प्रामाणिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।SKU: n/a -
Akshaya Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
KASHMIRI PANDITS through Fire and Brimstone
-10%Akshaya Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)KASHMIRI PANDITS through Fire and Brimstone
On 15 August 1947 India attained independence but the Hindus of the State of Jammu and Kashmir, particularly those in the valley lost it for two reasons. One was the Pakistan sponsored tribal attack on 22 October 1947, and the second was the incorporation of a clause of Special Status for J&K in the Indian Constitution. Incorporation of this clause was tantamount to writing the death warrant of the minuscule Kashmiri Hindu (Pandit) religious minority of the valley. New Delhi snatched J&K from the hands of a benign secular ruler and gave into the hands of a rabid despot, who, through dubious maneuvering and machinations established his dynastic rule over J&K with the patronage of the contemporary Sultans of Delhi.
The book in hand is a sordid saga of the atrocities, discrimination, blackmail and repression unleashed by fanatical and fundamentalist Kashmir Valley leadership moving about wearing a mask of “secular democracy” for seven long decades, of course with the sadistic patronage of New Delhi. Few communities in the world have suffered what the Kashmiri Hindus suffered viz. discrimination, suppression, ethnic cleansing, genocide and exile. They are refugees in their own country. And what is more, 73 years have gone by and no state or central government, no human rights organization, no NGO and no international organization ever demanded an impartial inquiry into this huge human tragedy that has resulted in the genocide of nearly two thousand people and the extirpation of the entire community of about five hundred thousand souls from their five thousand years old homes and hearths in Kashmir, The contents of this volume will make one understand what religious bigotry and persecution mean. The authors have been an eye witness to the entire saga, nay, they have been part of this sordid narrative and a such nothing can be more authentic than what they have recorded.
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Prabhat Prakashan, पाठ्य-पुस्तक, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kautilya Arthshastra (HB)
‘अर्थशास्त्र’ कौटिल्य यानी चाणक्य द्वारा रचित संस्कृत वाड्.मय का एक अद्भुत ग्रंथ है। इसका पूरा नाम ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ है।
चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। उन्होंने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। यह मुख्यतः सूत्र-शैली में लिखा हुआ है। यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने योग्य सरल शब्दों में रचा गया है।
‘अर्थशास्त्र’ में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। अभी तक इस विषय के जितने भी ग्रंथ उपलब्ध हैं, वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण उनमें यह सबसे अधिक मूल्यवान् है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन तथा पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है।
राजनीतिक, आर्थिक, विधि आदि सिद्धांतों को जानने-समझने और व्यवहार में लाने के लिए एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kautilya ke Arthshastra ka Rajnitik evam Sanskritik Adhyayan
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रKautilya ke Arthshastra ka Rajnitik evam Sanskritik Adhyayan
कौटिल्य के अर्थशास्त्र का राजनितिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन : सन् 1905 में तन्जौर के एक ब्राह्मण ने ‘अर्थशास्त्र’ की एक हस्तलिखित पाण्डुलिपि मैसूर रियासत के प्राच्य पुस्तकालयाध्यक्ष श्री आर. शामशास्त्री को भेंट की और तब शामशास्त्री जी के विशेष प्रयत्नों से सन् 1909 में इस ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हुआ। बीसवीं सदी के दूसरे दशक में ‘अर्थशास्त्र’ का आंग्ल विद्वानों द्वारा अनुवाद किया गया और फिर इसका अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। वहाँ इस ग्रन्थ को बेहद रुचि के साथ पढ़ा गया। विदेशों में प्रतिष्ठित होने के बाद ही भारतीय विद्वानों का ध्यान ‘अर्थशास्त्र’ की तरफ गया। फलस्वरूप टी. गणपति शास्त्री, प्राणनाथ विद्यालंकार, रामतेज शास्त्री, उदयवीर शास्त्री, आर.पी. कांग्ले, वाचस्पति गैरोला एवं श्रीभारतीय योगी आदि सहित अनेक विद्वानों द्वारा ‘अर्थशास्त्र’ का अनुवाद किया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से कौटिल्य ई.पू. चैथी सदी के आचार्य थे। विश्वप्रसिद्ध तक्षशिला विश्ववि़द्यालय के शिक्षक कौटिल्य की गणना समकालीन भारत के महानतम आचार्यों में की जाती थी, उन्हें समाज, धर्म, दर्शन, राजनीति, अर्थ आदि के साथ ही शस्त्र विद्या का असाधारण ज्ञान था। उनका प्रमुख एवं प्रिय कार्य अध्यापन था, किन्तु परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में भाग लेने के लिए बाध्य किया और अपनी प्रतिभा के बल पर वे तत्कालीन भारतीय राजनीति की धुरी सिद्ध हुए।
कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ समस्त विश्व का एक अद्भुत ग्रन्थ है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ की विषय सामग्री में पूर्व प्रचलित ज्ञान की सभी धाराओं का समावेश करके इसे एकांगी होने से बचाकर बहुआयामी बनाया है। इसीलिए शताब्दियों तक शासकों ने अर्थशास्त्र का उपयोग एक शासन संहिता के रूप में करके अपने साम्राज्यों को अक्षुण्ण बनाए रखा। वर्तमान की शासकीय समस्याओं का समाधान भी अर्थशास्त्र के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीन भारत का यह एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है, जो सदैव भारतीयों को गौरवान्वित करता रहेगा।SKU: n/a