Nonfiction Books
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Purushottam
Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताPurushottam
पुरुषोत्तम
ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं को आधुनिक सन्दर्भ प्रदान करने में सिद्धहस्त, बहुचर्चित लेखक की यह नवीनतम औपन्यासिक कृति अपनी भाषा के माधुर्य एवं शिल्पगत सौष्ठव द्वारा पाठक को मुग्ध किए बिना नहीं रहेगी। ‘पहला सूरज’, एवं ‘पवन पुत्र’ जैसी बहुचर्चित कृतियों के पश्चात् श्रीकृष्ण जीवन के उत्तरार्ध पर आधारित यह बृहत् उपन्यास डॉ. मिश्र की लेखकीय यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है जो केवल अपनी आधुनिक दृष्टि ही नहीं अपितु विचारों की नवोन्मेषता और मौलिकता के कारण भी विशिष्ट है।
डॉ. मिश्र शिल्पकार पहले हैं और उपन्यासकार बाद में, यही कारण है कि पुस्तक अथ से इति तक पाठक के मन को बाँधने में सक्षम है और श्रीकृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व के जटिलतम प्रसंग भी बोधगम्य एवं सहज सरल बन आए हैं।
श्रीकृष्ण को लेखक ने पुरुषोत्तम के रूप में ही देखा है और उसकी यह दृष्टि इस कृति को प्रासंगिक के साथ-साथ उपयोगी भी बना जाती है। विघटनशील मानवीय मूल्यों के इस काल में आदर्शों एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना के सफल प्रयास का ही नाम है ‘पुरुषोत्तम’।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास
Quran To Hai Par Musalaman Koi Nahin
-12%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहासQuran To Hai Par Musalaman Koi Nahin
जो लोग इस्लाम की आड़ में ‘लॉ लेसनेस’ करते हैं, वे स्वयं इस्लाम के आधारभूत स्तंभों का पालन नहीं करते। अतः कुरान हदीस के अनुसार उन्हें मोमिन नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोग तो वस्तुतः बनावटी मुसलमान है। इस्लाम इनके लिए अवैध आपराधिक कार्यों के लिए एक ढाल भर है, इनको इस्लाम में कोई आस्था नहीं है। कुरान के अनुसार, उन्हें इस्लाम के नाम पर मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, मजार, दरगाह आदि पर और उनके प्रबंध पर कोई भी हक नहीं है।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
R.U.R
आर यू आर यानी रोसुम युनिवर्सल रोबोज़। कारेल चापेक द्वारा सन् 1920 में लिखे गये इस नाटक में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया। एक ऐसा यन्त्र मानव-गुलाम या दास, जो मनुष्य को उसके सब बोझिल कामों से छुटकारा दिला दे। चापेक ने यह शब्द गढ़ा चेक भाषा के शब्द रोबोटा से, जिसका अर्थ है, बेगार या बंधुआ मज़दूरों से कराया गया काम। सन् 1920 में लिखे इस नाटक में कारेल चापेक ने, जब वैज्ञानिकों को रोबोट बनाने का विचार भी नहीं आया था, कल्पना की थी कि एक फ़ैक्टरी ने रोबोट बनाने की विधि ईजाद कर ली है, उसके पास जल्दी ही हज़ारों-लाखों में दुनिया भर से ऑर्डर आने लगे हैं, और फिर रोबोट इतने बढ़ जाते हैं और बलशाली हो जाते हैं कि एक दिन मानवता के खिलाफ़ विद्रोह करके पूरी मानव जाति को ही नष्ट कर देते हैं। इस नाटक का मूल चेक भाषा से हिन्दी अनुवाद निर्मल वर्मा ने अपने चेकोस्लोवाकिया प्रवास (1959-1968) से लौट कर किया था। सन 1972 में यह अनुवाद- आर यू आर- पहली बार साहित्य अकादमी के तत्त्वाधान में प्रकाशित हुआ था।
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Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Raaz Mahal: The Palace of Secrets
-16%Garuda Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRaaz Mahal: The Palace of Secrets
आगरा, भारत — ताज महल का शहर। ब्यूरो ऑफ़ आर्कियॉलजी को सूचना का अधिकार अधिनियम अर्थात् आरटीआई ऐक्ट के अन्तर्गत एक विचित्र याचिका प्राप्त होती है, जिसमें ब्यूरो से वर्ल्ड हेरिटेज स्मारक के कथानक के पीछे के प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्यों का खुलासा करने को कहा जाता है। रहस्यमयी मौतें और इण्टरपोल की एक चेतावनी मामले को और उलझा देते हैं। विजय कुमार सत्य की खोज में एक अन्तरराष्ट्रीय शोध-यात्रा पर निकलता है, जहाँ वह अपने अतिरिक्त किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकता। क्या वह सच का पर्दाफ़ाश कर पाएगा, या फिर … क्या यह सदैव के लिए एक रहस्य ही रह जाएगा… राज़?
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RABINDRANATH TAGORE AMONG SAINTS
-10%English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRABINDRANATH TAGORE AMONG SAINTS
In the eyes of the world, Rabindranath Tagore is celebrated as the illustrious bard of Bengal, a name that resonates globally. His literary works and philosophy have touched the hearts of generations, leaving an enduring legacy. Yet, hidden behind the timeless verses and laurels lies a lesser-known truth. Throughout his life, Tagore sought the company of saints, a quest that profoundly enriched his spirit. These personal encounters with India’s spiritual luminaries, however, remained concealed in silence, unspoken and unwritten. It was Bipul Kumar Gangopadhyay, a renowned figure in India’s spiritual and literary realms, whose determination and relentless research culminated in Sadhu Sannidhey Rabindranath, a Bengali masterpiece that reveals Tagore’s intimate experiences with nineteen sages. Rabindranath Tagore Among Saints is the first-ever English translation of these sacred encounters. This book illuminates the profound spirituality that shaped the sage poet’s journey, offering readers a fresh perspective on the man revered as Gurudev by Mahatma Gandhi. It invites you on a spiritual pilgrimage to the inner sanctum of a literary giant’s soul.
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Hindi Books, Pustak Mahal, इतिहास, उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rahasyamaya Girnar
अध्यात्म की कोख में पली-बढ़ी, अघोर परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। अघोर परंपरा आज भी पूर्ण चेतना के साथ विद्यमान है। उसकी गूढ़ बातों में अनेक रहस्य छुपे होते हैं। उसके मंत्र-तंत्र के मूल रहस्यों में अनेकानेक गूढ़ार्थ छुपे होते हैं, जो साधु-परंपरा को एक अलग ही ऊँचाई पर रखते हैं। ‘रहस्यमय गिरनार’ पुस्तक इसी अघोर परंपरा के अध्यात्मपूर्ण रहस्य के नजदीक हमें ले जाती है। अध्यात्म क्षेत्र में हमारी अघोर परंपरा में आज भी सैकड़ों सिद्ध साधु-योगी अपने तपोबल से एक चुंबकीय प्रभाव पैदा करते रहते हैं। हमारी इस अघोर परंपरा में कैसी अद्भुत शक्ति छिपी है, यह पढ़कर पाठक अचंभित हो जाएँगे। अघोर परंपरा के अनेक अप्रकट रहस्य इस पुस्तक द्वारा हमारे सामने प्रकट होंगे। कुछ गुप्त बातें साधु परंपरा की मर्यादा में रहकर इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आती हैं। अघोर परंपरा के कुछ रहस्य हमें चमत्कार जैसे लगेंगे, मगर वे चमत्कार नहीं वरन् वास्तव में सिद्ध साधुओं के अध्यात्म-अघोर शक्ति का प्रगटीकरण है— यह बात कुछ लोगों की समझ के परे है। पाठकों को योग क्रिया, ध्यान, समाधि इत्यादि परंपरा की अनुभूति पुस्तक पढ़ते समय होती रहेगी।
भारत के प्राण इस संस्कृति और अध्यात्म शक्ति में छिपे हैं और ऐसी अध्यात्म परंपरा ने ही तो भारत को मृत्युंजयी रखा है—यह गौरवबोध करानेवाली रोचक-रोमांचक कृति।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Raj Darbar aur Raniwas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRaj Darbar aur Raniwas
पुस्तक ‘राज दरबार और रनिवास’ में नगर परिक्रमा की उस सामग्री का समावेश है, जिसमें जयपुर के राजमहलों, छत्तीस कारखानों, मंदिरों और जनानी ड्योढ़ी का सविस्तार वर्णन है। जयपुर के राजमहल अपने आप में वास्तुकला के नमूने हैं और शेष नगर से पूर्णतः भिन्न एवं स्वतंत्र इकाई के रूप में विद्यमान हैं। जयपुर रियासत के शासकों का सम्पूर्ण कार्य-क्षेत्र, शासकीय एवं व्यक्तिगत, इस दायरे में आ जाता है। रियासत के शासन में तब छत्तीस कारखानों का अपना महत्त्व था। पुस्तक राज-दरबार और रनिवास में उनके कार्यकलाप का समावेश है। जनानी ड्योढ़ी अभी तक पर्दे में ही रही है, जिस पर पहली बार नगर-परिक्रमा में इतना प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक में कुछ अन्य सामग्री के साथ संदर्भ में कतिपय तथ्य ऐसे हैं, जिनका अभी तक कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Raj Kahani – Avnindranath Thakur krit
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRaj Kahani – Avnindranath Thakur krit
श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा मूल बांग्ला में लिखित ‘राज काहिनी’ का हिन्दी अनुवाद है। नौ आलेखों के इस संकलन में मेवाड़ इतिहास के प्रमुख चरित्रों का चित्रण हुआ है:- शिलादित्य, गोह, बाप्पादित्य, पड्डिनी, हम्मीर, हम्मीर का राज्य लाभ, चण्ड, राणा कुंभा और संग्रामसिंह। किशारों के लिए लिखी गई इस पुस्तक का बंग समाज में बड़ा स्वागत हुआ था। अब तक इसका हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ था।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Raja Bhoj Ki Kathayen
भारतीय इतिहास में सर्वािधक लोकप्रिय राजाओं की अग्रिम पंक्ति में
अपनी पहचान बनानेवाले राजा भोज को भला कौन नहीं जानता! सहनशीलता, दयालुता, न्यायिप्रय, प्रजापालक, वीर, प्रतापी आदि गुणों के स्वामी राजा भोज की वीरता, साहस और न्यायप्रियता की कहानियाँ आज केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राजा भोज अपने काल के लोकनायक के रूप में भी विख्यात हो चुके थे। उनके जीवन से जुड़ी कहावत ‘कहाँ राजा भोज-कहाँ गंगू तेली’ बहुत लोकप्रिय है। इस कहावत के पीछे राजा भोज के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthan Gyan Kosh
राजस्थान ज्ञान कोश : राजस्थान ज्ञान कोश की चर्चा राजस्थान के हर उस युवा की जुबान पर है जो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए अच्छी पुस्तको की तलाश में रहते हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता, राजस्थान के उन चुनिंदा लेखकों में से हैं, जिन्होंने युवा पीढ़ी के मन में अपने लिए विशेष स्थान बनाया है। Rajasthan Gyan Kosh
यह कहना दुरूस्त होगा कि डॉ. गुप्ता प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले युवाओं के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिये राजस्थान ज्ञान कोश में प्रत्येक संस्करण के साथ निखार आता गया है। यही कारण है कि राज्य के युवाओं को इसके नए संस्करण की प्रतीक्षा रहती है।
राजस्थान ज्ञान कोश ने पिछले एक दशक के अपने सफर में राजस्थान के युवाओं के बीच लोकप्रियता का सराहनीय पायदान छुआ है। यही कारण रहा कि वर्ष 2007 से वर्ष 2016 की संक्षिप्त अवधि में पुस्तक के तेरह संस्करण प्रकाशित करने पडे़। मेरी दृष्टि में यह पुस्तक न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों के लिए, अपितु समाज के हर उस पाठक के लिये उपयोगी है, जो राजस्थान के बारे में विस्तार से जानने की इच्छा रखता है। Rajasthan Gyan Kosh
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthan ka Itihas
राजस्थान का इतिहास : राजस्थान की प्राकृतिक स्थिति में विविधता होते हुए भी एकसूत्रता दिखायी देती है। पर्वत-श्रेणी का सिलसिला, नदियों का बहाव तथा मरुस्थल का फैलाव इसके एक कोने से दूसरे कोने तक प्रसारित होने से समूचे प्रदेश को एकसूत्र में बाँधता है। प्राचीनकाल के राष्ट्रीय संगठन के तत्त्व तथा मध्यकालीन युग का स्वातन्त्र्य-प्रेम राजस्थान के जनजीवन के मुख्य अंग इसीलिए बन पाये कि यहाँ भाषा, धर्म, आचार-विचार के बन्धन दृढ़ रहे और जनजीवन को संकीर्ण दृष्टि से ऊपर उठाने में सफल हुए। सबसे बड़ी विशेषता भौगोलिक और राजनीतिक सम्बन्ध में यह है कि भौगोलिक स्थिति राजनीतिक सीमाओं के निर्माण में बड़ी सहायक रही है।
पृथ्वीराज चौहान में एक वीर, साहसी और विलक्षण शासक के गुण थे। अपने राज्यकाल के आरम्भ से लेकर अन्त तक वह युद्ध लड़ता रहा जो उसके एक अच्छे सैनिक और सेनाध्यक्ष होने को प्रमाणित करता है। सिवाय तराइन के दूसरे युद्ध के वह सभी युद्धों में विजयश्री का भागी बना जो कम गौरव की बात नहीं है। तराइन के दूसरे युद्ध में वह पराजित हुआ परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि युद्धस्थल में वह बड़े लम्बे समय तक लड़ता रहा। बन्दी बन जाने पर भी उसने आत्म-सम्मान को ध्यान में रखते हुए आश्रित शासक बनने की अपेक्षा मृत्यु को प्राथमिकता दी।
आज भी महाराणा प्रताप के वीर कार्यों की कथाएँ और गीत प्रत्येक राजपूत के हृदय में उत्तेजना पैदा करते हैं। महाराणा का नाम न केवल राजपूताने में अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यन्त आदर और श्रद्धा से लिया जाता है। जब तक महाराणा का उज्ज्वल और अमर नाम लोगों को सुनाई पड़ता रहेगा तब तक वह स्वतन्त्रता और देशाभिमान का पाठ पढ़ाता रहेगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Rajasthan Ka Samriddh Lok Sahitya
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहासRajasthan Ka Samriddh Lok Sahitya
राजस्थान का समृद्ध लोक साहित्य :
गांवों में सहकार की भावना को सतत रूप से जिंदा रखने के लिए भी ‘राम-भणत’ सहायक तत्व है। सहकार भाव को सार्थक करने वाली परंपरा का नाम है ‘ल्हास’। उल्लास से ही ल्हास शब्द बना है। ल्हास ऐसे सामूहिक श्रम का नाम है, जो दूसरे की मदद के लिए निशुल्क किया जाता है। गांवों में किसी के घर में गमी हो जाए, कोई लंबी बीमारी हो जाए, ऐसी स्थिति में गांव के चारपांच मौजीज व्यक्ति अपनी ओर से पहल करके पूरे गांव से उस परिवार की मदद के लिए गुहार लगाते हैं तथा प्रत्येक घर से एक-एक आदमी निशुल्क उस जरूरतमंद के खेत में काम करने नियत दिवस पर आता है। पूरे गांव के सामूहिक श्रम और उसके पीछे सहयोग की पवित्र भावना के कारण लोग खूब मेहनत से काम करते हैं। अपनी ओर से अपने मन से किसी के सहयोगार्थ उल्लास के साथ किया जाने वाला यह सामूहिक श्रम ‘ल्हास’ कहलाता है। ल्हास आदि के समय गांव के सभी भणत गायक एक खेत में होते हैं। उस दिन सबकी कला एवं कंठ की परीक्षा होती है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Aitihasik Durg
राजस्थान के ऐतिहासिक दुर्ग : राजस्थान का अर्थ है राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र। रियासती काल में छोटे से छोटे राजा के पास कम से कम एक दुर्ग का होना अनिवार्य था, जहाँ वह अपने परिवार एवं राजकोष को सुरक्षित रख सकता था। राजस्थान में महाराणा कुंभा जैसे राजा भी हुए हैं, जिसके राज्य में सर्वाधिक 84 दुर्ग थे। एक अनुमान के अनुसार राजस्थान में लगभग प्रत्येक 10 मील पर एक दुर्ग स्थित था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में सर्वाधिक 656 दुर्ग महाराष्ट्र में, 330 दुर्ग मध्यप्रदेश में तथा 250 दुर्ग राजस्थान में थे। राजस्थान के 33 जिलों में शायद ही कोई ऐसा है, जिसमें 5-10 दुर्ग अथवा उनके अवशेष नहीं हों। राजाओं के राज्य समाप्त हो जाने के बाद अधिकतर दुर्ग असंरक्षित छोड़ दिये गये, जिसके कारण ये तेजी से खण्डहरों में बदलते जा रहे हैं। बहुत कम दुर्गों को राज्य अथवा केन्द्र सरकार अथवा निजी क्षेत्र के न्यासों द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक राजस्थान में कालीबंगा सभ्यता से लेकर, उत्तरवैदिक काल, महाभारत काल, मौर्य काल, शुंग काल, गुप्त काल, राजपूत काल एवं पश्चवर्ती काल में बने दुर्गों को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। इनमें से कुछ दुर्ग अब पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, तो कुछ दुर्ग अब भी मौजूद हैं। प्रत्येक दुर्ग को उसके मूल निर्माता राज्यवंश के क्रम में जमाया गया है, ताकि इनका इतिहास शीशे की तरह स्पष्ट हो सके। वस्तुतः इन दुर्गों का इतिहास ही राजस्थान का वास्तविक इतिहास है, जिसे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा प्रचुर शोध के पश्चात् लिखा गया है। डॉ. गुप्ता की लेखन शैली रोचक, भाषा कसी हुई और जन-जन की जिह्वा पर चढ़ने वाली है। एक बार यदि आप इस पुस्तक को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो पूरी करके ही उठेंगे।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthan ke Aitihasik Durlabh Granthon ka Anushilan
राजस्थान के एतिहासिक दुलर्भ ग्रंथों का अनुशीलन राजस्थान का इतिहास यहां के विशिष्ठ साहित्य, संस्कृति, कला और रोमांचकारी राजनीतिक घटनाओं के फलस्वरूप् विश्वविख्यात रहा। यही कारण है कि यहाँ के आधारभूत स्त्रोतों की खोज, सर्वेक्षण और इतिहास लेखन हेतु विदेशी विद्वान आकृष्ट हुए और आज भी शोध कार्य जारी है। राजस्थान की प्राचीन कला-राशि हस्तलिखित ग्रंथो, पटटे-परवानों, पुरालेखीय बहियों और शिलालेखों के रूप में यत्र-तत्र बिखरी हुई प्राप्त होती है। इसके अध्ययन हेतु खोज, सर्वेक्षण, परिक्षण, सम्पादन किये जाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए लेखक ने हजारों हस्तलिखित ग्रंथो (राजस्थानी) का न केवल खोजन का कार्य किया बल्कि ग्रंथो के सर्वेक्षण, परिक्षण और अनेक दुर्लभ ग्रंथो का सम्पादन के साथ ही इतिहास लेखन को नूतन आयाम दिये है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक के 40 वर्ष की अनवरत शोध साधना के परिणामस्वरूप प्रकाशित 72 पुस्तकों का विवेचन संजोया गया है, जिससे मेवाड, मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर आदि राज्यों के इतिहास सम्बन्धी आधारभूत स्त्रोत, विभिन्न जातियों, योद्धाओं के साथ ही भक्ति-साहित्य तथा राजस्थानी भाषा साहित्य पर जहां सर्वथा नया प्रकाश पड़ा है वही राजस्थान के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास सम्बन्धी अनेक तथ्य प्रकट हुए है। प्राचीन आयुर्वेद प्रणाली और ज्योतिष विद्या के बारे में महत्वपूर्ण सूत्र उजागर हुए है। पुस्तक इतिहास अनुशीलन के साथ ही राजस्थानी भाषा साहित्य की दृष्टि से उपयोग सिद्ध होगी।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Lok Geet
राजस्थान के लोक गीत : राजस्थान के लोक गीत अपने सौन्दर्य में निराले हैं परन्तु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़कर दिनोंदिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षण के लिये यदि हम लोग अभी से प्रयत्नशील न हुए, तो अपनी इस अमूल्य निधि से हम शीघ्र ही हाथ धो बैठेंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राजस्थानी लोक गीतों का संग्रह किया गया है। लगभग 1000 सुन्दर–सुन्दर गीतों में 230 गीत इस संकलन में रखे गये हैं। अभी तक राजस्थानी गीतों का कोई ऐसा संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ, जिसमें चुने हुए गीत पर्याप्त संख्या में हो और जो आधुनिक ढंग से टीका–टिप्पणियाँ तथा भावार्थ आदि सहित संपादित हो। आशा है यह संकलन इस कमी को बहुत कुछ पूरी कर सकेगा।
संकलन को तैयार करते समय इस बात पर ध्यान नहीं रखा गया है कि केवल सर्वश्रेष्ठ गीत ही दिये जायँ किन्तु ध्यान यह रखा गया है कि यथासंभव अधिकाधिक विषयों के गीत दिये जायँ। इसी प्रकार इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि केवल लोक गीत न देकर अन्यान्य लोक गीतों के भी कुछ नमूने दिये जायँ। फिर भी संकलन के अधिकांश गीत लोक गीत ही हैं।
इस कार्य ने राजस्थानी महिला-समाज का महान् उपकार किया है। नारी-हृदय के भाव इन गीतों में अपने वास्तविक रूप में व्यक्त हुए है और गार्हस्थ जीवन एवं उसके सुख–दुःख, प्रेम-कलह, आमोद-प्रमोद, आचार-विचार के अनेकों मनोरम चित्र इनमें उतारे गये हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Prachin Abhilekh
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajasthan ke Prachin Abhilekh
राजस्थान के प्राचीन अभिलेख डा श्रीकृृष्ण जुगनु मेवाड़ प्रदेश अपने अंक में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बीज को अक्षुण्ण रखे हुए हैं । यहां आदिम समुदायों सहित लोकजन और अभिजात्य तीनों ही स्तर के समाजों के दर्शन होते हैं । पारियात्र अथवा अरावली की पहाडि़यों ने इसे कुदरतन रक्षित और पोषित किया है तो आगंूचा, दरीबा और जावर जैसी खदानों ने इसे आर्थिक रूप से समृद्धि प्रदान की है । इस दृष्टि से यह देश में प्राचीनतम समृऋि प्रदाता क्षेत्र रहा है । इस पर्वतमाला से निकली नदियांे ने यहां कृषि कार्य को सबल किया । यहां गणों से लेकर अनेक राजवंशों ने अपने शासक का सूत्र संचालित किया । अश्वमेध, एकषष्टिरात्र जैसे वैदिक सत्र-यज्ञ यहां हुए और शासकों ने जलाशयों के निर्माण के साथ जल-संसाधन के सुदीर्घ संरक्षण की परम्परा का प्रवर्तन किया ।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Rajasthan Ke Pramukh Katha Geet
राजस्थान के प्रमुख कथा गीत : लोक संस्कृति में निहित हर विधा लोक की अपनी समय की देन है। इसलिए उसमें काव्यानुसाशन, शास्त्रीयता या छन्दोबद्धता ढूंढना व्यर्थ है। हवा के झोंकों की तरह इनकी अपनी गति व खुशबू है। फिर किसी भी प्रकार की शास्त्रीस अनुशासन की कैद से मुक्त इनका अपना अस्तित्व है। इन्हीं में से एक अनूठी लोक विधा है ‘लोक गाथा’ (Balled)
लोक गाथाएं लोक गीतों का ही एक प्रकार है जो परम्परा, शौर्य, धर्म, संस्कारों और संस्कृति को समेटे हुए हैं। पड्डश्री डाॅ. सीताराम लालस ने लोक गाथा शब्द को अंग्रेजी शब्द Balled का रूपान्तरण माना है। इस हेतु डाॅ. लालस ने डाॅ. श्री कृष्णदेवराय उपाध्याय का हवाला भी दिया है।
Balled की उत्पति लेटिन शब्द Ballure से मानी गई है। ठंससनतम का मूल अर्थ नाचना होता है। राॅबर्ट ग्रेम्स के अनुसार बेलेड में संगीत व नृत्य दोनों की प्रधानता होती है। डाॅ. मरे के अंग्रेजी शब्द कोश में बेलेड का अर्थ ऐसी उतेजना पूर्ण व स्पूर्तिदायक कविता, जिसमें कोई लोकप्रिय आख्यान का सजीव वर्णन हो दिया है। संसार की लगभग सभी भाषाओं में लोकगाथा जैसी विधाएं किसी न किसी रूप में मिलती हैं। अंग्रेजी के The Best of Robinhood से राजस्थानी के ढोला-मारू तक लोक गाथाएं सदियों से जनप्रिय विधा के रूप में आमजन की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती आई हैं। विचार करने पर लोक-गाथा लोक गीत व लोक नाट्य का मिश्रण प्रतीत होता है, जिसमें किसी ऐतिहासिक, आख्यानिक, लौकिक या भक्तिपरक धार्मिक घटना की कलापूर्ण अभिव्यक्ति होती है।
किसी जमाने में चैपालों की शोभा रही लोक गाथाएं व़ातपोसी के रूप में लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन थी। ‘पाबूजी की पड़’ से लेकर ‘मूमल’ की दर्द भरी कथा या ‘बगड़ावतों’ की उदारता सभी कुछ लोक गाथाओं में समाहित था, जिनमें गायन, दृश्य या नाट्य का सहारा अभिव्यक्ति हेतु लिया जाता था। व़ातपोसी के कलाकार इन लोक गाथाओं की सजीव अभिव्यक्ति के लिए पाबूजी की पड़ के समान चित्रपट का प्रयोग भी करते हैं अन्यथा सभी तरह की दृश्यावली को सजीव करने के लिए ये कलाकार एकाभिनय यानि मोनोएक्टिंग तथा मिमिक्री तक का सहारा लेकर उसे मनोरंजक और सजीव बना देते हैं। इनका विडियो रिकाॅर्डिंग भी पड्डभूषण श्री कोमल कोठारी ने स्पायन संस्थान में किया था, जो वहां अब भी उपलब्ध है।
राजस्थानी व हिंदी के विद्वान लेखक श्री कैलासदांन लालस ने काफी मेहनत से राजस्थानी लोक गाथाओं का विवेचना ही नहीं की बल्कि लोक गाथाओं का तर्कसंगत वर्गीकरण भी किया। इस प्रकार ‘राजस्थानी के प्रमुख कथा गीत’ शीर्षक से निबंध माला राजस्थानी के इतिहास संस्कृति व साहित्य पर शोध के विद्यार्थियों व जन-जन के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक बनेगी। इसके प्रकाशन से सभी लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Rajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
राजस्थान के प्रमुख संत एवं लोक देवता : राजस्थान के मध्यकालीन कवि ईसरदास की ‘परमेसरा’ के रूप में पूजा और साथ ही वीर-योद्धाओं की ‘जूंझारजी’ के रूप में अर्चना इस ‘धोरा-धरती’ की लेखनी एवं खड्ग के सामर्थ्य की साक्षी है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति ने इसे एकान्तिक साधना एवं मौलिक चिन्तन की एक समृद्ध परम्परा प्रदान की है। धर्म-अध्यात्म की एक ऐसी अविरत धारा को प्रवाहित किया, जिसका रसास्वादन युगों से होता रहा है। अधिकांश अध्येताओं को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति इस आध्यात्मिक पक्ष की अपेक्षा शौर्य-गाथाओं के विवरण अधिक आकर्षित करते रहे है। राजस्थान की आध्यात्मिक संस्कृति के अध्ययन की आवश्यकता के दृष्टिकोण से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया।
राजस्थान की धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के सृजन एवं संवर्द्धन का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहिचान है। इस सर्वग्राही समष्टिवादी प्रवृति का अपना मूल्य है। इस दृष्टि से इस संस्कृति के प्रणेताओं तथा उनकी विचार-वृति का अध्ययन न केवल अपेक्षित है प्रत्युत अनिवार्य भी है। इसकी समसामयिक तथा साम्प्रतिक प्रासंगिकता तथा उपयोगिता भी सर्वथा प्रमाणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत-लोक देवता संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। आशा है कि विद्धान पाठकों के लिए यह उपादेय सिद्ध होगा।SKU: n/a