प्राचीन भारत का इतिहास (प्रारम्भ से 1200 ई. तक) : भारत के विश्वविद्यालयों में इतिहास विषय के स्नातक विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में प्राचीन भारत का इतिहास सम्मिलित किया जाता है। इस कालखण्ड में मानव सभ्यता के उदय से लेकर मुस्लिम शासकों द्वारा दिल्ली में अपना शासन स्थापित करने से पहले तक का इतिहास आता है। भारतीय इतिहास का यह कालखण्ड अत्यंत रोचक, पठनीय और रोमांचकारी है। घटनाओं का एक चिंरतन प्रवाह इसमें उत्सुकता का संचार करता है किंतु यह आश्चर्य की ही बात है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही अधिकांश पुस्तकों में इसे अत्यंत जटिल और कठिन बनाकर प्रस्तुत किया गया है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने विश्वविद्यालयी विद्यार्थियों के लिये इस पुस्तक का लेखन इस प्रकार किया है कि स्नातक पाठ्यक्रम की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी यह समान रूप से उपयोगी सिद्ध हो सके। प्रस्तुत है इस पुस्तक का द्वितीय एवं परिवर्द्धित संस्करण।
Nonfiction Books
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English Books, Rupa Publications India, इतिहास
Potraits of Hindutva: From Harappa to Ayodhya
In Portraits of Hindutva: From Harappa to Ayodhya, the author traces the growth of what has today become a deeply polarizing issue. He recounts events which shaped the phenomenon and personalities that were its torchbearers and explores the evolution of Hindutva from religious to spiritual to political, spanning a period beginning from the Indus-Saraswati civilization, and rounding it off with the demolition of the Babri Masjid in Ayodhya.
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Prachin Bhakt 0177
प्राचीनकाल में ऐसे अनेक संत और भक्त हुए हैं, जिन्होंने अपना सब कुछ भगवान को अर्पण कर अपनी आत्मा को प्रभुमय बना लिया और अपने जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को चरितार्थ कर जीवन का सर्वोत्कृष्ट लाभ प्राप्त किया। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही उत्कृष्ट भक्त मार्कण्डेय मुनि, राजा शंख, मुनि उतंक, विष्णुदास, राजा चित्रकेतु आदि चौदह भक्तों के सुन्दर चरित्र हैं।
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Pratham Vishwa Yuddha
औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे, जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें तथा मशीनों से बनाई हुई वस्तुएँ बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्क ड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया की। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। प्रारंभ में जर्मनी की जीत हुई। 1917 में जर्मनी ने अनेक व्यापारी जहाजों को डुबोया। इससे अमरीका ब्रिटेन की ओर से युद्ध में कूद पड़ा, किंतु रूसी क्रांति के कारण रूस महायुद्ध से अलग हो गया। सन् 1918 में ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका ने जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित किया। जर्मनी और ऑस्ट्रिया की प्रार्थना पर 11 नवंबर, 1918 को युद्ध की समाप्ति हुई।
युद्धों से कभी किसी का भला नहीं हुआ। ये तो विनाश-सर्वनाश के कारण हैं। किसी भी सभ्य समाज में युद्धों का कोई स्थान नहीं है; और इन्हें किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। इस पुस्तक का उद्देश्य भी यही है कि विश्वयुद्धों की विभीषिका से सीख लेकर हम युद्धों से तौबा कर लें और ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न होने दें, जो युद्धों का जन्म दें। मानवीय संवेदना और मानवता को बचाए रखने का विनम्र प्रयास है यह पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Sasta Sahitya Mandal, इतिहास
Prathvi Putra (HB)
पृथिवी पुत्र हिन्दी के विद्वान लेखक और पुरातत्त्ववेत्ता श्री वासुदेवशरण अग्रवाल के समय-समय पर लिखे हुए उन लेखों और पत्रों का संग्रह है। जिनमें जनपदीय दृष्टिकोण की सहायता से साहित्य और जीवन के संबंध में विचार प्रकट किए गए हैं। उनके वैचारिक दृष्टिकोण की मूल प्रेरणा पृथिवी या मातृभूमि है। उसके साथ जीवन के सभी सूत्रों को मिला देने से जीवन का स्वर फूटता है। यह मार्ग लोकान्मुख है, साहित्यिक कुतूहल नहीं, भावना का जन्म होता है। यह जीवन का धर्म है। जीवन की आवश्यकताओं के भीतर से पृथिवी पुत्र भावना का जन्म होता है।
इन पुस्तक के लेखों में उन्होंने जनपदीय लोक जीवन के अध्ययन के लिए दिशा निर्देश किया है और पाठकों से अपेक्षा रखी है कि वे जनपदों में कदम कदम पर बिखरी उस मल्यवान सामग्री को नष्ट होने से बचाएँ जिसके आधार पर हमारा जन जीवन अब तक टिका रहा है और आगे भी राष्ट्र के। नवनिर्माण में हम जिसकी उपेक्षा बिना अपनी हानि किए, नहीं कर सकते ।। | हमें विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत लेख हिन्दी साहित्य के लिए एक नवीन देन है। पाठक इससे अवश्य लाभान्वित होंगे।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Pratiharon ka Mool Itihas
प्रतिहारों का मूल इतिहास : भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का बड़ा प्रसार किया। कुछ वंशों ने, जिनको जिस धर्म में आस्था थी, उसको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके अलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे। भारत के महान सम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे, उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे, जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था, जिससे वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी, जो किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आंकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Pratirodh: The Resistance
“Cast in the backdrop of the Mughal era during the reigns of Aurangzeb and his successors, Pratirodh is a saga of the relentless resistance by a few brave men against a seemingly invincible Empire to protect their honour and way of life. In response to the rather partisan policies of Mughal emperors, a number of personalities came forward in different parts of Hindustan, to lead people in resisting the tyranny.
Though the geographical dispersion precluded any visible unified approach, they were indirectly benefitted by each other. When Aurangzeb got cowed down in Rajputana against the unified resistance of Marwar and Mewar, it provided much needed succour to the great Shivaji and Guru Govind Singh to regroup and consolidate forces in their respective areas. The credit for tying down the Mughals for the longest period in history goes to the Marathas; this also acted as a lifeline to the Sikhs, Rajputs, Bundelas and Jats. Rajputs and Sikhs repaid their debt to Marathas by keeping the Mughals, post Aurangzeb, completely embroiled in Punjab and Rajputana, and indirectly paving the way for an almost unchallenged rise of the Marathas.
The prolonged resistance witnessed the supreme sacrifices of numerous unsung heroes of medieval history. Through unmatched grit and determination, they succeeded in bringing down the mighty Empire to its knees, eventually leading to its demise.
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Literature & Fiction, Vani Prakashan, इतिहास
Pratyancha : Chhatrapati Shahooji Maharaj Ki Jeevangatha
Literature & Fiction, Vani Prakashan, इतिहासPratyancha : Chhatrapati Shahooji Maharaj Ki Jeevangatha
राजनीतिक गुलामी से भी त्रासद होती है सामाजिक गुलामी। कुछ इसे मानते हैं, कुछ नहीं। जो मानते हैं उनमें भी इसका उच्छेद करने की पहल करने का नैतिक साहस बहुधा नहीं होता। औरों की तरह शाहूजी के जीवन में भी यह त्रासदी प्रकट हुई। राजा थे, चाहते तो आसानी से इससे पार जाने का मानसिक सन्तोष पा सकते थे। मगर नहीं, उन्होंने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को सामूहिक त्रासदी में देखा और मनुष्य की आत्मा तक को जला और गला देने वाली इस मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदल देने का संकल्प लिया।
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
Prayagraj Aur Kumbh: Sanskritik Vaibhav Ki Abhinav Gatha
-10%Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहासPrayagraj Aur Kumbh: Sanskritik Vaibhav Ki Abhinav Gatha
प्रयागराज और कुम्भ : सांस्कितक वैभव की अभिनव गाथा
प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया है। यह भारत का सर्वप्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने के साथ ही भारतीय सात्त्विकता का सर्वोत्तम प्रतीक भी है। यह हिन्दू-आस्था का एक महान केन्द्र तो है ही, यह हमारे देश की धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना का केन्द्रबिन्दु भी है। प्रयागराज के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मत्स्य, पद्म और कूर्म पुराण के कई अध्यायों में मिलता है।
कुम्भ के दौरान संगम तीर्थ पर एक स्नान-दिवस पर भक्तिभाव से कई बार इतने लोग जमा हो जाते हैं कि उनकी संख्या दुनिया के कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक होती है। उन श्रद्धालुओं को कभी कोई निमंत्रण नहीं देता, वे श्रद्धा और भक्ति की एक अदृश्य डोर में बँधकर वहाँ खिंचे चले आते हैं। हमारी सनातन सस्कृति का यह चुम्बकीय आकर्षण अनादिकाल से यथावत् बना हुआ है। श्रद्धा और आस्था का यह आवेग सदियों से चली आ रही हमारी परम्परा का हिस्सा है। यह परम्परा हमें अपनी मूल संस्कृति से जोड़े रखने के साथ ही सांस्कृतिक एकीकरण का पथ भी प्रशस्त करती है। स्वाभाविक रूप से प्रयागराज और कुम्भ के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानना-समझना एक सुखद अनुभूति है।
बहरहाल, अभिलेखीय और साहित्यिक स्रोतों के आधार पर प्रयागराज और कुम्भ के गौरवशाली इतिहास को इस पुस्तक में बहुत ही सरस ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रामाणिकता और रोचकता का मणि-कांचन संयोग है। यह पुस्तक हमारे देश के सांस्कृतिक वैभव की एक अभिनव गाथा लेकर आई है।
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Rajpal and Sons, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Prernatmak Vichar
विश्वभर में गुरुदेव के नाम से विख्यात रवीन्द्रनाथ टैगोर कवि, लेखक और चित्रकार होने के साथ-साथ दार्शनिक और विचारक भी थे। वह सही मायनों में पूर्वी और पश्चिमी संस्कृति के अद्भुत संगम थे। अपने काव्य-संग्रह ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले भारतीय थे। इस प्रेरणात्मक पुस्तक में दिए गए टैगोर के विचार उनकी गहन अंतर्दृष्टि और संवेदनशीलता की झलक प्रस्तुत करते हैं।
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Prithviraj Chauhan and His Times
-15%English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणPrithviraj Chauhan and His Times
Prithviraj Chauhan and His Times : My aim in writing this book is to study the struggle of Prithviraj Chauhan III against the Turks and to highlight the cultural activities of that period. The scholars stress exclusively on the chronicles of the Muslim-Court annalists who familiarized us with the invader’s version of conquest. The heroic resistance offered by the Chauhan rulers and other Rajputs residing on the border areas has not so far been studied in correct perspective. The Goverdhan and other memorial inscriptions are very important. These were engraved in order to commemorate the heroic deeds of those brave persons, who gave away their lives while fighting against the invaders in order to rescue “cows women and religious shrines”. good number of such inscriptions are still available on the border areas of Rajasthan. I have utilised some of these inscriptions for the first time.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Prithviraj Raso Set Of 4
पृथ्वीराज रासो
महाकवि चन्द बरदाई कृत
रासो साहित्य में महाकवि चन्द बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है। उसके लिये यह कहना उचित ही होगा कि उसका स्वरूप समय-समय पर परिवर्द्धित होता रहा है, जिससे भाषा के आधार पर उसके रचनाकाल का निर्णय करने में अनेक उलझने उत्पन्न होती है। इतना होते हुए भी काव्य की दृष्टि से वह बहुत ही प्रौढ़ रचना है। ऐसे महत्त्वपूर्ण महाकाव्य का अनुवाद और संपादन का कार्य कविराव मोहनसिंह जैसे विद्वत व्यक्तित्व वाला व्यक्ति ही कर सकता था। कविराव मोहनसिंह ने न केवल ग्रंथ का संपादन किया बल्कि शब्दार्थ तथा हिन्दी अनुवाद कर ग्रंथ को आम पाठकों तक चार खण्डों में सुलभ कराया। Prithviraj Chauhan, Rajput (Prithviraj Raso Chand Bardai)
इस पुस्तक को पढ़ने में चौहान जाति को अपने पूर्वजों के कृत्यों पर गौरव का अनुभव होगा, अन्य लोगों को भी चौहान जाति को जानने का मौका मिलेगा।
in fact उल्लेखनीय है कि आज भी गजनी शहर में बादशाह गौरी की कब्र के साथ सम्राट पृथ्वीराज तथा कवि चंद बरदाई की समाधियाँ मौजूद है, जो उस ऐतिहासिक घटना की मूक गवाह हैं।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Prithviraj Vijay Mahakavyam
महाकवि श्रीजयानक रचित : पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् (हिन्दी) : संस्कृत भाषा में विरचित जीवनीपरक ऐतिहासिक महाकाव्यों की श्रृंखला में काश्मीर निवासी महाकवि श्री जयानक द्वारा प्रणीत पृथ्वीराजविजय महाकाव्यम् शीर्षक ग्रन्थ अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भूर्जपत्र पर लिखित इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि की पहली खोज डॉ. जी. बूह्लर द्वारा सन् 1876 में की गई थी, जब वे संस्कृत की प्राचीन पाण्डुलिपियों का पता लगाने के लिए काश्मीर गये थे। उन्होंने तत्सम्बद्ध सम्पूर्ण सामग्री ‘डेक्कन कॉलेज, पुना’ को सुपुर्द कर दी, जिनका विवरण उस कॉलेज की सन् 1875-76 की 150वीं संख्या पर उल्लिखित है। डॉ. बूह्लर ने अपनी शोधयात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करते समय इस बात पर हार्दिक दुःख प्रकट किया है कि संस्कृत के अमर ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों की वर्तमान दुर्दशा निस्संदेह हमारे लिए दुर्भाग्य की सूचक है।
डॉ. बूह्लर की समग्र रिपोर्ट का गम्भीर अध्ययन करने के पश्चात् स्वर्गीय पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने और पूर्वतः म.म.पं. गौरीशंकर ओझा ने तदनंतर ‘पृथ्वीराजविजय महाकाव्य’ का सुसम्पादित संस्करण वि. संवत् 1995 में वैदिक यंत्रालय, अजमेर से प्रकाशित कराया, जिसमें जोनराज विरचित ‘विवरणोपेत टीका’ भी जोड़ दी गई थी। इस प्रकार यह ग्रंथ साहित्यप्रेमीयों और इतिहासविदों के समक्ष प्रथम बार आ सका, जो इस समय पर लुप्तप्राय सा हो चुका है। उसे पुनः प्रकाशित करने के उद्देश्य से ही हमने पुनर्मुद्रण का यह उपक्रम किया है।
‘पृथ्वीराज विजय महाकाव्य’ प्रथमवार हिन्दी भावानुवाद के साथ प्रकाशित किया जा रहा है। इस महाग्रन्थ का प्रामाणिक अनुवाद किया है, संस्कृत के ख्यातिप्राप्त अनुवादक एवं अधिकारी विद्वान प्रो. पं. मदनमोहन शर्मा (शाण्डिल्य) ने, जिससे यह ग्रन्थ अध्येताओं के लिए और अधिक उपयोगी हो गया है। डॉ. ओझा ने पुस्तक के ‘आमुख’ में ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किये हैं, जिनसे इस महाकाव्य की महत्ता और उपयोगिता प्रकट होती है।SKU: n/a -
Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Pseudo-Secularism Christian Missions and Hindu Resistance
Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Pseudo-Secularism Christian Missions and Hindu Resistance
This book forms the Introduction to a bulkier publication, Vindicated By Time: The Niyogi Committee Report On Christian Missionary Activities, which carries a report of the complete Niyogi Committee Report published in 1956. The Constitution of independent India adopted in January 1950 made things quite smooth for the Christian missions. They surged forward with renewed vigour. Nationalist resistance to what had been viewed as an imperialist incubus during the Struggle for Freedom from British rule, broke down when the very leaders who had frowned upon it started speaking in its favour. Voices which still remained ‘recalcitrant’ were sought to be silenced by being branded as those of ‘Hindu communalism’. Nehruvian Secularism had stolen a march under the smokescreen of Mahatma Gandhi’s sarva-dharma-sambhava. The Christian missionary orchestra in India after independence has continued to rise from one crescendo to another with the applause of the Nehruvian establishment manned by a brood of self-alienated Hindus spawned by missionary-macaulayite education.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Pulwama Attack Paperback
बीते सात वर्षों में हमारे देश में जो बड़ी घटनाएँ घटीं, उन्होंने न सिर्फ देश के लोगों का, बल्कि दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा है। राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीति से जुड़ी घटनाओं और तमाम हलचलों के दौर में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो, जिसकी बात जनसामान्य ने अपनी दैनिक वार्त्ताओं में न की हो। इन घटनाओं में दुश्मन देश की क्रूरता भी दिखी तो देश के जाँबाज वीरों की वीरता भी; शूरवीरों के बलिदान ने देश को झकझोरा भी और बदले में हुई काररवाई ने गर्व करने के क्षण भी दिए।
पुलवामा में हमारी सेना के 40 जवानों पर हुए हमले ने देश को झकझोरकर रख दिया था। विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी के लिए हर देशवासी प्रार्थना कर रहा था। देश की सीमाओं पर आए दिन पाकिस्तान की ओर से कोई कायराना हरकत की जाती थी और भारत की ओर से उसका कड़ा जवाब भी बराबर दिया जाता रहा है।
पुलवामा और उसके इर्द-गिर्द हुई घटनाओं के बाद भारत ने जवाबी काररवाई में बालाकोट में आतंकियों के बेस को नेस्तनाबूत कर दिया और उसके बाद जम्मू-कश्मीर को संवैधानिक राज्य का दर्जा देते हुए धारा 370 को हटाया। ये सभी वे बड़ी घटनाएँ थीं जिनकी उम्मीद देशवासियों को भारत सरकार से थी।
ऐसी ही तमाम घटनाओं का संकलन है ‘पुलवामा अटैक’, जिसे विकास त्रिवेदी और स्मिता अग्रवाल ने वास्तविक घटनाओं को काल्पनिक आधार पर प्रस्तुत किया है।SKU: n/a -
Harf Media Private Limited, Hindi Books, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
PUNYA PATH
सर्वेश लोक अस्मिता के लेखक हैं। भारत और भारतीयता की उंगली थामे ये एक ऐसे साहित्यकार हैं जो इस कर्तव्यबोध के साथ लिखते हैं कि, लोक की पीड़ा पर षड्यन्त्रकारी चुप्पी के कालखण्ड में, बोलना ही धर्म है। वे विवादग्रस्त होने के भय से सत्य का उद्घाटन करना नहीं छोड़ते। जैसे उनका संकल्प हो कि वे धर्म के मार्ग को आलोकित करते रहने के लिए, हर वांछनीय अवांछनीय हस्तक्षेप करते रहेंगे। सर्वेश का पहला उपन्यास ‘परत’ बेस्टसेलर रहा है।
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Purushottam
Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताPurushottam
पुरुषोत्तम
ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं को आधुनिक सन्दर्भ प्रदान करने में सिद्धहस्त, बहुचर्चित लेखक की यह नवीनतम औपन्यासिक कृति अपनी भाषा के माधुर्य एवं शिल्पगत सौष्ठव द्वारा पाठक को मुग्ध किए बिना नहीं रहेगी। ‘पहला सूरज’, एवं ‘पवन पुत्र’ जैसी बहुचर्चित कृतियों के पश्चात् श्रीकृष्ण जीवन के उत्तरार्ध पर आधारित यह बृहत् उपन्यास डॉ. मिश्र की लेखकीय यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है जो केवल अपनी आधुनिक दृष्टि ही नहीं अपितु विचारों की नवोन्मेषता और मौलिकता के कारण भी विशिष्ट है।
डॉ. मिश्र शिल्पकार पहले हैं और उपन्यासकार बाद में, यही कारण है कि पुस्तक अथ से इति तक पाठक के मन को बाँधने में सक्षम है और श्रीकृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व के जटिलतम प्रसंग भी बोधगम्य एवं सहज सरल बन आए हैं।
श्रीकृष्ण को लेखक ने पुरुषोत्तम के रूप में ही देखा है और उसकी यह दृष्टि इस कृति को प्रासंगिक के साथ-साथ उपयोगी भी बना जाती है। विघटनशील मानवीय मूल्यों के इस काल में आदर्शों एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना के सफल प्रयास का ही नाम है ‘पुरुषोत्तम’।
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