ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Mein Rashtrapati Pranali
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharat Mein Rashtrapati Pranali
एक महान् समाज दुर्बल हो रहा है। भारत के नागरिक जीवन की दयनीय स्थिति और अप्रतिष्ठित सरकारी संस्थाओं से जूझ रहे हैं। इसका परिणाम है, वे नैतिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे हैं। इस स्थिति पर शोक मनाने या केवल टिप्पणी करने के बजाय मैंने कुछ ठोस करने का निर्णय लिया। अमरीका में लगभग दो दशक रहने के बाद मैं भारत लौटा और उस प्रदेश के लिए एक दैनिक समाचार-पत्र आरंभ किया, जहाँ मैं रहने जा रहा था। सोच रहा था कि मेरे अखबार में, जो विचार और विवरण सामने आएँगे, वे जनता की राय बदलेंगे। संभवतया ऐसा हुआ भी, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि दोष महज जागरूकता की कमी से कहीं अधिक गहरा था। इसने मेरा संकल्प और मजबूत कर दिया और उसी मंथन का परिणाम है यह पुस्तक। भारत मेरा एकमात्र ध्येय है। मेरी कोई राजनीतिक, वैचारिक या दलगत संबद्धता नहीं है।
यह पुस्तक भारत को बचाने का एक प्रयास है। हर गुजरते दिन, भारत में सरकार की मौजूदा प्रणाली लोगों के आत्मबल और नैतिक चरित्र को नष्ट कर अपूरणीय क्षति पहुँचा रही है। यह पुस्तक मात्र रोग ही नहीं बताती, इलाज सुझाती है। यह भारत को इसके कष्टों से छुटकारा दिलाने का हृदयस्पर्शी प्रयास है।SKU: n/a -
Akshaya Prakashan, Hindi Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiy Sanskrti Ka Kshitij
“भारतीय संस्कृति के क्षितिज दो विदुषियों के लेखों का संग्रह है। इसके प्रमुख विषय मंगोलिया, जापान, तिब्बत, इंडोनीसिया तथा यूरोप के देशों के साथ के सांस्कृतिक संबंध हैं। इन लेखों के माध्यम से अनेक देशों में विद्यमान भारतीय ज्ञान परम्पराओं पर विदेशी भाषाओं में अनूदित संस्कृत ग्रंथों के अथाह सागर का सिंहावलोकन एवं शताब्दियों से स्थापित सांस्कृतिक संबंधों के विराट स्वरूप के दर्शन होते. हैं। मंगोलिया एवं तिब्बत के विहारों में बौद्ध धर्म से सारा वातावरण जीवंत हो उठता है। इंडोनीसिया एवं अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में पुष्पित एवं पल्लवित संस्कृति, वहां व्याप्त भारतीय दर्शन, विभिन्न प्रकार की कलाएं एवं संस्कार आदि विषयों के अतिरिक्त, प्रणव एवं चेतना जैसे गहन दार्शनिक तत्वों का विवरण भी इस ग्रंथ में प्रस्तुत है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Gram
भारत के ग्राम समुदायों में तेजी से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। सन 1947 में स्वतन्त्रता मिलने के बाद से आधुनिकीकरण की दिशा में देश ने महत्त्वपूर्ण चरण उठाये हैं: बहु-उद्देशीय नदी-घाटी योजनाएँ, कृषि को यंत्रीकृत करने की योजनाएँ और नये उद्योगों को विकसित करने के कार्यक्रम सम्बन्धी कई राष्ट्रीय योजनाएँ कार्यान्वित हुईं जिन्होंने कुछ ही दशाब्दियों में ग्रामीण भारत का स्वरूप बदल दिया। भारतीय ग्राम समुदायों के परम्परागत जीवन और उनमें दीख पड़ने वाली सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन न केवल समाज के अध्येताओं के लिए, वरन् योजनाकारों, प्रशासकों और उन सबके लिए जिनकी मानव कल्याण और सामाजिक परिवर्तन में रुचि है, महत्त्व का है। यह पुस्तक एक भारतीय ग्राम की सामाजिक संरचना और जीवन-विधि का वर्णन प्रस्तुत करती है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharatiya Rahasyavad
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBharatiya Rahasyavad
प्रो० राधेश्याम दूबे मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के अध्येता हैं। भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं का अध्ययन करते समय लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को ध्यान में रखा है। वस्तुत: भारतीय अध्यात्मविद्या अथवा ब्रह्मïविद्या ही भारतीय रहस्यवाद है। प्राचीन भारतीय वाङ्मय में रहस्यवाद के अर्थ में अध्यात्मविद्या, ब्रह्मïविद्या, उपनिषद्, गुह्यïविद्या, गुह्यïमार्ग आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। योग, भक्ति, कर्म और ज्ञान – ये भारतीय अध्यात्मसाधन के प्रधान उपाय हैं। अत: साधन की दृष्टि से विचार करते हुए लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को चार भेदों में विभक्त कर (जैसे-योगपरक, रहस्यवाद, भक्तिपरक रहस्यवाद, ज्ञानपरक, रहस्यवाद, कर्मपरक रहस्यवाद) उनकी व्याख्या की है। भारतीय रहस्यवाद का विकासात्मक स्वरूप प्रस्तुत करते हुए विद्वान लेखक ने उसके तात्त्विक स्वरूप की विवेचना की है। इस प्रकार इस ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा रहस्यवाद अथवा भारतीय रहस्यवाद के सन्दर्भ में हिन्दी के पाठकों के मन में जो भ्रम की स्थिति बनी रहती है, वह दूर हो जाती है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Rashtravad : Swaroop Aur Vikas
विषय-सूची 1. सम्पादकीय : कृष्णदत्त द्विवेदी / 2. भारतीय राष्ट्रीयता का विकास और भारतीय संविधान : प्रोफेसर आर० के० मिश्र / 3. भारतीय राष्ट्रवाद का स्वरूप : डॉ० पीताम्बर दत्त कौशिक / 4. राष्ट्रवाद : सम् प्रत्ययात्मक विश्लेषण : डॉ० श्यामधर ङ्क्षसह / 5. राष्ट्रवाद की वैचारिकी एवं भारतीय राष्ट्रवाद -समाज ऐतिहासिक विश्लेषण : डॉ० जयकान्त तिवारी / 6. परिवर्तन के परिवेश में राष्ट्रीय चरित्र की समस्या : डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव एवं० डॉ० प्रदीप कुमार ङ्क्षसह / 7. शिक्षा राष्ट्रीयता और महामना मालवीय : डॉ० कृष्णदत्त तिवारी / 8. साम्प्रदायिकता – भारतीय राष्ट्रवाद का कटु पक्ष : डॉ० जे० एन० ङ्क्षसह एवं डॉ० आनन्द प्रकाश ङ्क्षसह / 9. भारतीय राष्ट्रवाद : निर्माण प्रक्रिया एवं समस्याएँ -शिवदत्त त्रिपाठी / 10. भारतीय राष्ट्रवाद एवं अस्मिता के संकट की चुनौतिया : डॉ० पी० एन० पाण्डेय / 11. राष्ट्रीय निर्माण और भारतीयकरण-संकल्पना : डॉ० जनार्दन उपाध्याय 12. भारतीय राष्ट्रवाद -अध्ययन दृष्टिकोण और प्रवृत्तियाँ : राधेश्याम त्रिपाठी / 13. सुभाषचन्द्र बोस और उग्र राष्ट्रवाद : डॉ० कौशल किशोर मिश्र / 14. भारतीय राष्ट्रवाद -कुछ विचारणीय तथ्य : डॉ० शिव बहादुर ङ्क्षसह / 15. राष्ट्रमण्डल में नेहरू का भारत : डॉ० शेफाली बनर्जी / 16. भारत में उपराष्ट्रवादी आन्दोलन : डॉ० अरविन्द कुमार जोशी
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Sanskriti
भारतीय संस्कृति एक ओर जहाँ सत्य की सतत खोज में रत है और इस खोज के निमित्त जहाँ वे केवल आडंबरों का ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के हर नाम व रूप के संपूर्ण विसर्जन की पक्षधरता करती है, वहीं दूसरी ओर इस संस्कृति में जैसा अद्भुत समन्वय है वह मानवता के लिए एक श्रेष्ठतम देन है। इस संस्कृति की विशेषता ही यह है कि वह हर बात, हर पक्ष के लिए राजी है तथा और तो और, असत्य को भी परमात्मा की छाया के रूप में मान्यता देती है; क्योंकि लक्ष्य है सत्य और असत्य से ऊपर उठकर, उसका अतिक्रमण करके यह जानने की चेष्टा कि पूर्णत्व है क्या?
—इसी पुस्तक से
प्रखर चिंतक व विचारक नरेंद्र मोहन का भारतीय धर्म, संस्कृति, कला व साहित्य के प्रति विशेष अनुराग रहा। उनके उसी अनुराग ने उनकी लेखनी को यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति के सभी पक्षों पर एक सार्थक चर्चा की है। विश्वास है कि यह कृति भारतीय जनमानस में समाहित भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा को और प्रबल करेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Vastu Shastra
जीवन को सुख-समृद्धि और मानसिक शांति के आलोक से अलंकृत करना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का परम उरभीष्ट होता है । इस दृष्टि से मानव जीवन को प्रभावित करनेवाले अनेक पहलुओं का महत्त्व है । इन महत्त्वपूर्ण पहलुओं में ‘ वास्तु विज्ञान ‘ की स्वीकार्य भूमिका है । यह प्राच्य विद्या वस्तुत: विज्ञान है जिसके सिद्धांतों, नियमों एवं विश्लेषणों का वैज्ञानिक आधार है । वर्तमान युग में इसके महत्त्व को समझा गया है । वास्तु शास्त्र विज्ञान एवं ज्योतिष का अनुपम संगम है ।
वास्तु शास्त्र के सिद्धांत और नियम जनसाधारण के जीवन में उपयोगी बनकर उनके जीवन को प्रगतिशील, समृद्धियुक्त एवं शांतिमय बना सकें, लेखक के इस लघु प्रयास का यही लक्ष्य है । विषय सामग्री सर्वग्राह्य बने, इस हेतु पुस्तक में सरलतम भाषा का प्रयोग किया गया हैं । दिशा एवं कोण वास्तु शास्त्र के अनिवार्य अंग हैं । समग्र भूमंडल की स्थिति का भौगोलिक ज्ञान भी इसी पर आधारित है । व्यक्ति का प्रत्यक्ष संबंध उसके अपने भूखंड से होता है, जिसपर वह अपना जीवन व्यतीत करता है । प्रस्तुत पुस्तक में इसी दृष्टि से भूखंड की मृदा, स्थिति, दिशा, कोण, क्षेत्रफल इत्यादि बिंदुओं का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है ।
पुस्तक में स्थान-स्थान पर दिए गए चित्र विषय की रोचकता को बढ़ाते हैं और उसे और अधिक सुगम व सुग्राह्य बनाते हैं । विश्वास है, ‘ भारतीय वास्तु शास्त्र ‘ अपने इस स्वरूप में पाठकों को और भी पसंद आएगी ।SKU: n/a -
Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
-10%Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharatvarsh Ka Brihad Itihas (A Set of Two Books)
पुस्तक का नाम – भारतवर्ष का बृहद इतिहास
लेखक – पंडित भगवद्दत्त जी
भारतीयों का एक प्राचीन ,गौरवशाली इतिहास रहा है | इस इतिहास का संकलन प्राचीन शास्त्रों ,शिलालेखो , सिक्को , विदेशी यात्रियों के वृतान्तो पर है | इनके दुरपयोग और दुर्विश्लेष्ण से अनेको इतिहासकारो ने भारतीय इतिहास ,भारतीय ऋषियों ,महापुरुषो पर मिथ्यारोप किये और काल गणना को अशुद्ध निकाला | भारत का इतिहास अर्वाचीन सिद्ध करने की कोशिस की |
पंडित भगवद्दत्त जी ने अथक प्रयास और अनेको स्थानों के भ्रमण ,अनेको पांडुलिपियों के अध्ययन से भारतवर्ष का बृहद इतिहास नाम पुस्तक लिखी इसके प्रथम भाग में –
प्रथम अध्याय में – इतिहास आदि उन्नीस शब्दों का यथार्थ अर्थ प्रदर्शित किया है | जिससे ज्ञात होगा कि भारत में प्राचीन काल से इतिहास का सम्मान था |
द्वितीय अध्याय में – ब्रह्मा ,नारद ,उशना आदि के काव्यो द्वारा भारत में इतिहास का असाधारण आदर दिखाया है | प्राचीन काल में इतिहास ग्रंथो की विपुलता का परिचय इस अध्याय में मिलेगा | पाश्चात्य लोगो ने तिथि निर्धारण में जो मनमानी कल्पनाये की है उनका आभास भी यहा मिलेगा |
तृतीय अध्याय में – इतिहास के विकृति के कारण पर प्रकाश डाला है |
चतुर्थ अध्याय में – भारतीय इतिहास के स्त्रोत निर्देशित है |
पंचम अध्याय में – प्राचीन वंशावलियो की सत्यता प्रमाणिक की गयी है |
षष्ठ अध्याय में – दीर्घजीवी पुरुष कौन थे ? मानव ऋषि देव आयु का रहस्य खोला गया है |
सप्तम अध्याय में – पुरातन काल मान का संक्षिप्त वर्णन है | सतयुग ,द्वापर,त्रेता कलियुग आदि युगों की शंकाओं का समाधान है |
अष्टम अध्याय में – ब्राह्मण ग्रन्थ और इतिहास का मतैक्य प्रदर्शित किया है |
नवम अध्याय में – वैदिक ग्रंथो एवं महाभारत के रचनाक्रम का स्पष्टीकरण है |
दशम अध्याय में – भारतीय इतिहास को संसार इतिहास की तालिका सिद्ध किया है | कालडिया ,मिश्र ,ईरान ,आदि देशो ने भारत से क्या क्या सीखा यह सब बताया है |
एकादश अध्याय में – भारतीय इतिहास की तिथि गणना के मूलाधार स्तम्भों का उलेख है | विंटर्निटज , जवाहरलाल नेहरु , बट श्रीकृष्ण घोष आदि की कल्पनाओं को अपास्त किया है |
द्वादश अध्याय में –“मिथ “ शब्द पर विचार किया है | पाश्चात्य इतिहासकार द्वारा मिथ बताये जाने वाले इतिहास की वास्तविकता दिखलाई है |
द्वितीय भाग में –
प्रथम अध्याय में – जलपल्लवन की घटना का उलेख किया है |
द्वितीय अध्याय में – पार्थिव उत्पति का क्रम दर्शाया है |
तृतीय अध्याय में – उद्भिज सृष्टि का प्रदुर्भाव बताया है |
चतुर्थ अध्याय में – स्वाम्भुव मन्वन्तर , ब्रह्मा आदि और सतयुग पर प्रकाश डाला है |
पंचम अध्याय में – आदियुग ,स्वाम्भुव मनु उनका राजपाठ ,मनुस्मृति आदि विषयों पर लिखा है |
षष्टम अध्याय में – पितृयुग ,मानुष नामकरण , सप्त ऋषियों की उत्पति को बताया है |
सप्तम अध्याय में – जम्बूदीप का वर्षविभाग ,भारतवर्ष ,भारत की प्रजा ,भारत का विस्तार दर्शाया है |
अष्टम अध्याय में – चाक्षुष मन्वन्तर और वेन पुत्र राजा पृथु का इतिहास बताया है |
नवम अध्याय में – सतयुग के अंत में असुरो का प्रभाव ,देवयुग ,बारह आदित्यो का परिचय .आदि विषय पर लेखन किया है |
दशम अध्याय में – दक्ष प्रजापति का जीवन वृंत लिखा है |
एकादश अध्याय में –मनु की सन्तान और भारतीय राजवंशो का विस्तार बताया है |
द्वादश अध्याय में – ऐल वंश का परिचय ,विस्तार दिया है |
त्र्योदश अध्याय में – इक्ष्वाकु से ककुत्स्थ तक वंश परिचय है |
चतुर्दश अध्याय में- ऐल पुरुरवा से पुरु तक के वंश का इतिहास है |
पंचदश अध्याय में – बृहस्पति और उशना के काव्यो का परिचय और उनमे इतिहास सामग्री का उलेख दिखाया है |
षोडश अध्याय में – कोसल जनपद अंतर्गत अनेना से मान्धाता तक वंशो का राजकाल बताया है |
सप्तदश अध्याय में –जनमजेय से मतिनार पर्यन्त तक राजाओं की वंशावली तथा ऐतिहासिकता को बताया है |
अष्टादश अध्याय में- चक्रवती शशबिंदु ,मरुत का वर्णन किया है |
एकोनविंश अध्याय में – आनवकुल ,पुरातन पंजाब का स्वरूप बताया है |
विशतित अध्याय में – ऋग्वेद सम्बन्धित लेख
एकविशतितं अध्याय में – मतिनारपुत्र तंसु से अजमीढ पर्यन्त ,चक्रवती भरत , चक्रवती सुहोत्र का इतिहास है |
द्वाविश अध्याय में – पुरुकुत्स से हरिश्चंद पर्यन्त इतिहास है |
त्रयोविश अध्याय में – यादव वंशज हैहय अर्जुन के बारे में है |
चतुर्विश अध्याय में – रोहित से श्री रामचन्द्र पर्यन्त इतिहास है | त्रेता द्वापर संधि का क्रम और इतिहास दर्शाया है |
पंचविशति अध्याय में – त्रेता के अंत की घटनाओं का उलेख है वाल्मीक आदि मुनियों का जीवनवृंत ,रचनाओं का उलेख किया है |
षडविशति अध्याय में – अजमीढ पुत्र ऋक्ष से कुरुपर्यन्त इतिहास है |
सप्तविशति अध्याय में – रामपुत्र कुश से भारतयुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टाविशति अध्याय में – कुरु से भारतयुद्ध पर्यन्त वृतातं और कुरुसालव युद्ध का दर्शन कराया है |
ऊनत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध से लगभग सौ वर्ष पूर्व आर्यदेश की स्थिति का उलेख है |
त्रिशत अध्याय में – विचित्रवीर्य से भारत युद्ध पर्यन्त इतिहास का लेखा जोखा है |
एकत्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध कालीन भारत देश, उदीच्य देश , मध्यदेश , प्राच्य जनपद , विन्ध्य जनपद ,दक्षिण जनपद आदि जनपदों का विस्तार की जानकारी दी हुई है |
द्वात्रिशत अध्याय में – भारत युद्ध का काल लगभग ३००० विक्रम पूर्व सिद्ध किया है |
त्रियस्त्रियशत अध्याय में – भारतयुध्द के आसपास लिखे वांगमयो का परिचय है |
चतुस्त्रिशत अध्याय में – भारतयुद्ध के पश्चात से आर्षकाल तक के अंत तक का ऐतिहासिक वृत्तांत लिखा है |
पंचत्रिशत अध्याय में – युद्धिष्टर के राजपाठ का उलेख है |
षटत्रिशत अध्याय में – चौबीस इक्ष्वाकु राजाओ का वर्णन है |
सप्तत्रिशत अध्याय में – दीर्घ सत्र से गौतम बुद्ध पर्यन्त इतिहास है |
अष्टात्रिशत अध्याय में – गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी आदि के काल और जीवनी का उलेख है |
नवत्रिशत अध्याय में – अवन्ति के राजवंश का उलेख किया है |
चत्वारिशत अध्याय में – वत्सराज उदयन के राजवंश का वर्णन है |
एकचत्वारिशत अध्याय में – बुद्ध से नन्दवंश तक का इतिहास है |
द्विचत्वारिशत अध्याय में –तत्कालीन अन्य राजवंशो का परिचय दिया है |
त्रिचत्वारिशत अध्याय में – नन्द राज्य का दिग्दर्शन कराया है |
चुतुश्चत्वारिशत अध्याय में –मौर्य वंश के उद्गम और राज्य का उलेख किया है |
पंचचत्वारिशत अध्याय में – शुंग राज्य वंश का उलेख है |
षटचत्वारिशत अध्याय में –यवन राज्य आक्रमण आदि समस्याओ का वर्णन है |
सप्तचत्वारिशत अध्याय में – काण्व साम्राज्य का वर्णन किया है |
अष्टचत्वारिशत अध्याय में – आंध्र साम्राज्य और उनके राजाओं का उलेख किया है |
नवचत्वारिशत अध्याय में – विक्रामादित्य प्रथम का राजवंश बताया है |
पंचाशत अध्याय में – आन्ध्रपुरीन्द्रसेन के साम्राज्य का वर्णन है |
एकपंचाशत अध्याय में – अभी तक वर्णित राज्यवंशो का कुल काल निर्धारण किया गया है |
द्विपंचाशत अध्याय में – अभीर , शक , यवन ,तुषार आदि जातियों का इतिहास लिखा है |
त्रिपंचाशत अध्याय में – गुप्त काल का काल निर्धारित किया है |
चतु पंचाशत अध्याय में – गुप्त राजकाल की अवधि बताई है |
पंचपञ्चाशत अध्याय में – गुप्त साम्राज्य का विस्तार ,वंशावली का वर्णन है |
प्रस्तुत पुस्तक इतिहास के शोधार्थियों और इतिहास विशेषज्ञों को नई दिशा प्रदान करेगी |
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatvarsh Ka Itihas
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भारत की सर्वप्रथम सभ्यता तो वैदिक सभ्यता ही थी, जिससे भारतवर्ष का इतिहास प्रारम्भ होता है। भारतीय इतिहास के प्रथम स्रोत भी वैदिक ग्रन्थ ही हैं, जैसे वेदों की वे शाखाएँ जिनमें ब्राह्मण-पाठ सम्मिलित हैं, ब्राह्मण ग्रन्थ, कल्प सूत्र, आरण्यक और उपनिषद् ग्रन्थ!
भारत युद्ध-काल के सहस्रों वर्ष पूर्व की अनेक ऐतिहासिक घटनाएँ वर्णित हैं। भारतीय वाङ्मय में स्थान-स्थान पर इतिहास की घटनाओं का वर्णन भरा पड़ा है, लेखक ने उन घटनाओं को क्रमबद्ध करने का संक्षिप्त प्रयास किया है। भारतीय इतिहास को बहुत विकृत कर दिया गया है। सत्य को असत्य प्रदर्शित किया जाता है और असत्य को सत्य बनाने का यत्न किया गया।
इसके भयंकर दुष्परिणाम हुए-भारतीय अपना भूत ही भूल गए वे इन मिथ्या कल्पनाओं को ही सत्य समझने लगे। लेखक ने अपने अध्ययन काल में ही निश्चय कर लिया था कि वह अपना सारा जीवन भारतीय संस्कृति और इतिहास के पाठ तथा स्पष्टीकरण में लगाएंगे। आशा है इतिहास के लेखक और पाठक उनके इस परिश्रम से लाभान्वित होंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Kala evam Sanskriti : Vividh Aayam
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भारतीय कला एवं संस्कृति : विविध आयाम – प्रकृति को समस्त कलाओं की जननी माना गया है। प्रकृति की छटा देखकर और उसकी सृष्टि के रहस्यों को समझकर ही मानव कलाकार अपनी कला को प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित हुआ है। समस्त मानवीय क्रियाएँ, ज्ञान-विज्ञान और कलाएँ इसी प्रकृति के सृष्टिकारक रहस्यों को समझने, उनका उपभोग करने और उन्हीं के आधार पर पुनः सृष्टि करने में ही प्रस्फुटित हुई हैं। प्रकृति के मूल में जो सृष्टिकारक शक्ति है वही मानव को आकृष्ट कर उसे भी सृजन-निमित्त प्रेरणा प्रदान करती है। मनुष्य ने आदि सृष्टि-कारक ब्रह्म की कल्पना की। कालान्तर में यही, ब्रह्म प्राप्ति एवं कला का लक्ष्य भी बनी। प्रकृति के रहस्यमय स्वरूप के कारण उसके अनेक प्रतीकात्मक अंकन हुए। संस्कृति जीवन को परिष्कृत करने की एक प्रक्रिया है। यह व्यक्ति के आचरण में निहित होती है। संस्कृति एक गत्यात्मक तथ्य है जो अपनी परम्परा की पृष्ठभूमि में विकसित होती है और युग और उसकी चेतना के अनुसार अपने स्वरूप को परिवर्तित करती है। भारतीय संस्कृति का शान्ति, अहिंसा एवं विश्व-बन्धुत्व का आदर्श आज युद्ध की विभिषिका से त्रस्त मानव के लिए आशा की एक किरण है। ऐसी परिस्थिति में इस महान् संस्कृति के स्वरूप और गौरवपूर्ण योगदान को भली प्रकार समझना नितान्त आवश्यक है। इसी उद्देश्य को लेकर लेखिका ने समय-समय पर अनेक संगोष्ठियों में भाग लेकर कला एवं संस्कृति के विविध आयामों पर शोध-पत्र वाचन किए, जो राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। ग्रन्थकार ने यथास्थान चित्रों द्वारा विषय को अधिक सुबोध, रोचक एवं उपयोगी बनाने की चेष्टा की है। पारिभाषिक शब्दों के देवनागरी रूपान्तर द्वारा विषय को अधिकाधिक बोधगम्य बनाने का भी प्रयास किया गया है।
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Rajasthani Granthagar, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Sangeet Ke Puratattvik Sandarbh
Rajasthani Granthagar, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBhartiya Sangeet Ke Puratattvik Sandarbh
भारतीय संगीत के पुरातात्विक संदर्भ : वैदिक संहिताओं, पौराणिक-तांत्रिक व बौद्ध-जैनाचार्यों की परंपराओं, राज्याश्रय, मंदिर तथा मठ एवं संगीताचार्यों के मत-मतान्तर से बने विभिन्न सम्प्रदायों के माध्यम से संगीत के शास्त्र और प्रायोगिक पक्ष के क्रमिक विकास के इतिहास को जानने के लिये भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली की सीनीयर फैलोशिप के अन्तर्गत अभिलेखीय एवं साहित्य-संदर्भों की अन्वेषणा के फलस्वरूप उपलब्ध हुए महत्वपूर्ण संदर्भों की इस पुस्तक में प्रस्तुत की गयी चर्चा भारतीय संगीत का बृहत् इतिहास लिखने के लिये भूमिका सिद्ध होगी। शास्त्र ग्रंथों की रचना, सम्प्रदायों का आविष्कार, श्रुति-मूर्छना-गमक एवं रागों के बदलते स्वरूप, सप्तक की स्थापना, प्रबंध और आलापी, जनाश्रयी लोककलाओं, व्यावसायिक और अव्यावसायिक साधना आदि विभिन्न आयामों के अध्ययन के लिये यह चर्चा आधारशिला होगी। वर्तमान हिन्दुस्तानी संगीत, किसी विदेशी परंपरा का मुखापेक्षी न होकर अपनी ही पूर्व-परंपरा का अधुनातन विकसित रूप है, यह जानने के लिये प्रयास उपयोगी होगा।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Sanskriti
भारतीय संस्कृति : सहस्त्राब्दियों से भारत भूमि की परम्पराओं, विश्वासों, आस्थाओं तथा विचारधाराओं और सुनियोजित संस्थाओं की एकत्र पूंजीभूत भारतीय संस्कृति में भारतीय मानस का समग्र स्वरूप सहज ही प्रतिबिम्बित होता है। समय के अजस्त्र तथा परिवर्तनशील प्रवाह में भी निरन्तर जीवन्त भारतीय संस्कृति की स्फूर्त प्राणवत्ता ने आधुनिक विचारकों को आश्चर्यचकित और मुग्ध कर रखा है। यही कारण है कि सम्पूर्ण बीसवीं शती में अनेकानेक सुधी विद्वानों ने भारतीय संस्कृति को अपनी लेखनी का विषय बनाया। उन शाताधिक रचनाओं के मध्य प्रस्तुत पुस्तक का कुछ निजी वैशिष्टय है
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhartiya Sanskriti Ka itihas
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBhartiya Sanskriti Ka itihas
वैदिक संस्कृति-वाड्मय की चर्चा हो या संस्कृत साहित्य की या इन्हीं जैसे किसी विषय पर संगोष्ठी हो या लिखना हो तो पण्डित भगवद्दत्त जी के नाम का उल्लेख होना ही होना है।
वैदिक भारतीय संस्कृति का इतिहास उनकी प्रसिद्व रचना है। पण्डित जी ने इसमें वैदिक भारतीय संस्कृति का इतिहास खंगाला है और गहरे पानी पैठ की भांति उन्होंने इसमें संस्कृति के मूल तत्वों का विस्तार से विवेचन किया हैं।
भारतीय परम्परा का ज्ञान भुला सा जा रहा है, अतः लेखक ने उसके पुनर्जीवन का यह प्रयास किया है। इस इतिहास में भूमि सृजन से आरम्भ करके उत्तरोत्ततर-युगों के क्रम से घटनाओं का उल्लेख है।
अति विस्तृत विषय को यहां थोडे़ स्थान में ही लिपिबद्व किया गया है, अतः यह पुस्तक भारतीय संस्कृति का दिग्दर्षन मात्र है। इसे पढ़कर साधारण छात्र और विद्वान दोनों लाभ उठा सकेंगे।
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Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Bhartiya Sanskriti ka Pravah
Govindram Hasanand Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनBhartiya Sanskriti ka Pravah
लेखक ने इस पुस्तक में भारत की संस्कृति के जीवन की गाथा सुनाने का यत्न किया है। भारत युग-युगांतरों के परिवर्तनों, क्रांतियों और तूफानों में से निकलकर आज भी उसी संस्कृति का वेष धारण किए विरोधी शक्तियों की चुनौतियों का उत्तर दे रहा है।
यद्यपि सदियों से काल चक्र हमारा शत्रु रहा है, तो भी हमारी हस्ती नहीं मिटी। इसकी तह में कोई बात है, वह बात क्या है? लेखक ने इन प्रश्नों का उत्तर देने का यत्न किया है।
यदि अतीत का अनुभव भविष्य का सूचक हो सकता है तो हमें आशा रखनी चाहिए की भविष्य में जो भी अंधड़ आयेंगे वह हमारी संस्कृति की हस्ती को न मिटा सकेंगे।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bhojraj
धाराधीश राजा भोज भारतीय ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और इतिहास के मानदण्ड हैं। उन्होंने तलवार के क्षेत्र में कभी समझौता नहीं किया, पर लेखनी के क्षेत्र में सदा समन्वय का मार्ग स्वीकार किया। अपने 55 वर्ष 7 मास 3 दिन के शासन काल में वे वीरता और विद्वत्ता के प्रमाण बन गये। साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, कोश, व्याकरण, राजनीति, धर्मशास्त्र, शिल्प, दर्शन, विज्ञान, रसायन आदि अपने युग के प्राय: सभी ज्ञात विषयों पर भोज ने साधिकार जो अनेक ग्रन्थ रचे उनमें से 80 से अधिक के नाम ज्ञात हैं। इनमें से प्राय: आधे ग्रन्थ सुलभ भी हैं। उनमें से उनकी कतिपय पुस्तकें ही प्रकाशित और उनमें से भी बहुत कम सुलभ हैं। राजा भोज के ताम्रपत्र, शिलालेख, भवन, मन्दिर, मूर्तियाँ आदि पुरा प्रमाण प्राप्त होते हैं। भारतीय परमपरा में विक्रमादित्य के बाद राजा भोज का ही सर्वाधिक स्मरण किया जाता है। राजा भोज न केवल स्वयं विद्वान अपितु विद्वानों के आश्रयदाता भी थे। इतिहास-पुरुष होने पर भी वे अपनी अपार लोकप्रियता के कारण मिथक पुरुष हो गये। भारतीय परमपरा के ऐसे शलाका पुरुष का प्रामाणिक परिचय इस भोजराज ग्रन्थ में संक्षेप में दिया जा रहा है। हिन्दी में यह पहली पुस्तक है जिसमें साहित्य और संस्कृति के प्रकाश स्त?भ राजा भोज को पूरी तरह से पहचानने की कोशिश की गयी है। वाग्देवी के आराधक तथा असि और मसि के धनी भोज को समझने के लिए यह ग्रन्थ सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Buddhakaleen Samajik Arthik Jeevan
प्राचीन भारत के इतिहास में महात्मा बुद्ध का उदय सामाजिक तथा धार्मिक परिवर्तन का काल था। पालि, त्रिपिटक बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बुद्ध काल के सामाजिक, आॢथक, धाॢमक जीवन का विस्तृत विवरण है। सुत्तपिटक में बुद्ध के प्रवचनों का संग्रह है। इस पुस्तक में सुत्तपिटक के आधार पर तत्कालीन भौगोलिक परिवेश, ग्रामीण तथा नगरीय जीवन, भवन, व्यवसाय-वाणिज्य, कृषि एवं पशुपालन आदि का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। बुद्ध के समय बौद्ध धर्म मुख्यत: उत्तर भारत के पूर्वी भाग में प्रचलित था। बुद्ध ने उत्तर भारत के लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, राजगीर, (राजगृह), सांकश्य (संकिस्मा), वैशाली, श्रावस्ती आदि स्थानों की यात्राएँ कीं, उपदेश दिए। वे सभी त्रिपिटक में संगृहीत हुए। इन ग्रन्थों में तत्कालीन ग्रामीण और नगरीय जीवन, उनके भवन, उनके निर्माण की कला, उनके निर्माण में लगे लोग, उनके उपकरण, उनके वस्त्र, आभूषण, उनके व्यवसाय, उनके आहार-विहार, बौद्ध भिक्षुओं की दिनचर्या आदि का विस्तृत विवरण है, जिसकी झलक आज भी देखने को मिलती है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bundelkhand Ki Sanskrtik Nidhi
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBundelkhand Ki Sanskrtik Nidhi
“वैसे तो देश में हजारों बोलियाँ बोली जाती हैं और इन सब बोलियों का अपना-अपना महत्त्व अपनी-अपनी जगह है | मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में भी बुंदेलखंडी बोली बोली जाती है, जिसका अपना एक अंदाज है | किसी भी बोली को अलंकृत करने, मोहक और ज्ञानवर्धक बनाने के लिए उस बोली में पहेलियों, कहावतों, मुहावरों, कहानियों और अहानों का विशेष महत्त्व होता है।
बुंदेलखंडी बोली में लोक-स्मृति में आज भी ऐसी पहेलियाँ, कहावतें, कहानी, अहाने और मुहावरे सुरक्षित एवं संरक्षित हैं | यह सब पुरानी पीढ़ी के पास ही है, ऐसी लोक-स्मृतियों को एक जगह समेटने में आज तक कोई प्रयास नहीं हुआ है, संभवत ‘बुंदेलखंड की सांस्कृतिक निधि’ एकमात्र ऐसी पुस्तक है, जिसे लेखक ने लोक स्मृतियों से निकालकर साहित्य के रुप में संरक्षित किया है। इतना ही नहीं, बुंदेलखंड की सांस्कृतिक निधि पुस्तक बच्चों, युवाओं और सभी आयु वर्ण के लोगों को बुंदेलखंड के रीति-रिवाज, बुंदेली बोली के गूढ़ रहस्यों, पहेलियों, कहावतों, कहानियों, मुहावरों और अहान से परिचित कराने में मील का पत्थर है।
निश्चित रूप से आज की चकाचौंध भरी दुनिया में ऐसे ज्ञानमयी साहित्य की आवश्यकता है, जिसे लेखक ने इस पुस्तक में बखूबी सजाया है|”SKU: n/a -
Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chanakya Aur Chandragupt
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास और राजनीति का वर्णन अधूरा है। भारत में तो चाणक्य नीति को ही वास्तविक राजनीति माना जाता है और मगध नरेश के महामंत्री कौटिल्य की कूटनीति जगप्रसिद्ध है। चाणक्य ने मगध के राजदरबार में हुए अपमान के कारण नंदवंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की, और षड्यंत्र रच कर मगध नरेश धनानन्द एवं उसके आठ पुत्रों की हत्या कराने के पश्चात चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान करा दिया। हरिनारायण आप्टे ने अपने इस उपन्यास में इतिहास के इस काल का दर्शन कराते हुए चाणक्य और चन्द्रगुप्त के बारे में कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं जिनसे इस पुस्तक की रोचकता बढ़ी है।
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Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Ke Management Sootra
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रChanakya Ke Management Sootra
चाणक्य कूटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक अर्थशास्त्री भी थे। उनके ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में एक राज्य के आदर्श अर्थतंत्र का विशद विवरण है और उसी में राजशाही के संविधान की रूपरेखा भी है। शायद विश्व में चाणक्य का ‘अर्थशास्त्र’ विधि-विधानपूर्वक लिखा गया राज्य का पहला संविधान है।
चाणक्य ने राजनीति को अर्थ दिया, कूटनीति का समावेश किया, दाँव-पेंच के गुर सिखाए, समाज को एक दिशा दिखाई तथा नागरिकों को आचार-संहिता दी। टुकड़ों में बँटे देश को एक विशाल साम्राज्य बनाया तथा सिकंदर के विश्व-विजय के सपने को भारत में ही दफना दिया और एक साधारण व्यक्ति को राह से उठाकर मगध का सम्राट् बनाकर देश की समृद्धि में श्रीवृद्धि की।
चाणक्य विश्व के प्रथम मैनेजमेंट गुरु थे। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में कुशल प्रबंधन का रास्ता दिखाया। उनके बताए सूत्रों और जीवन-मंत्रों के आधार पर आज भी कैसे अपने जीवन का सही प्रबंधन करके हम सफल हो सकते हैं, इसी बात को इस पुस्तक के जरिए बताने का प्रयास किया गया है। शासन, राज्य, परिवार, समाज, वित्त, सुरक्षा—सभी विषयों पर प्रस्तुत हैं महान् आचार्य चाणक्य के मैनेजमेंट सूत्र, जो आपकोे जीवन के संघर्षों से जूझने की शक्ति प्रदान करेंगे।
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Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti (Eng)
Prabhat Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रChanakya Neeti (Eng)
Chanakya was an Indian teacher, philosopher and royal advisor. He managed the first Maurya emperor Chandragupta’s rise to power at a young age. He is widely credited for having played an important role in the establishment of the Maurya Empire, which was the first empire in archaeologically recorded history to rule most of the Indian subcontinent.Chanakya is traditionally identified as Kautilya or Vishnu Gupta, who authored the ancient Indian poltical treatise called Arthasastra. As such, he is considered as the pioneer of the field of economics and political science in India, and his work is thought of as an important precursor to Classical Economics.Chanakya Neeti is a treatise on the ideal way of life, and shows Chanakya’s deep study of the Indian way of life. Chanakya also developed Neeti-Sutras (aphorisms—pithy sentences) that tell people how they should behave. Of these well-known 455 sutras, about 216 refer to rajaneeti (the do,s and don’ts of running a kingdom). Apparently, Chanakya used these sutras to groom Chandragupta and other selected disciples in the art of ruling a kingdom.
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