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अन्य कथेतर साहित्य
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Bhartiya Swatantrta Sangram me Arya Samaj ka 80% Yogdaan
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहासBhartiya Swatantrta Sangram me Arya Samaj ka 80% Yogdaan
निष्चित रूप से ब्रिटिष शासन से भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए आर्य समाज ओदोलन के सदस्यों द्वारा प्रमुख (80 प्रतिषत) भूमिका निभाई गई।
यह पुस्तक आर्य समाज के उन वीर सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती की राष्ट्रीय प्रेरणाओं को अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और तत्कालीन आर्य समाज के वीर पुरुषों और महिलाओं के सदस्यों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
इन्होंने अपनी आजीविका और पारिवारिक सुखों को छोड़ कर अंडमान द्वीप में सेलुलर जेल (काला पानी जेल) सहीत विभिन्न जेलों की यातनाएं सहीं जिन्हें अपनों के कल्याण की कोई चिन्ता नहीं थी।
कोई भी देष अपने नागरिकों के व्यापक समर्थन के बिना इतनी बड़ी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और अन्यों ने शेष 20 प्रतिषत के लिए काम किया लेकिन ऐसा लगता है कि अल्पसंख्यक 20 प्रतिषत ही भारत के स्वतंत्रता का पूरा श्रेय लेते हैं और आर्य समाज आंदोलन के बहुमत (80 प्रतिषत) प्रतिभागियों का कोई उल्लेख नहीं किया जाता। यह क्या उचित है?
हमने आर्य समाज द्वारा निभाई गई बहुमत की भूमिका को साबित करने के लिए अब तक के उपलब्ध महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्र किया है।
हम ईमानदारी से भारत का वर्तमान सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस लंबे समय तक अनदेखे सत्य तथ्य को उचित मान्यता दें और आर्य समाज आंदोलन के सदस्यों को उपकृत करें।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Aur Jeene Ki Kala
चाणक्य की नीतियों में राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म और नैतिक मूल्य सबकुछ समाहित है। वे शासक को सही सलाह देनेवाले सच्चे राष्ट्रभक्त थे, उनके लिए मातृभूमि सर्वोपरि थी। वे कुशल नीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री और समर्पित राष्ट्राभिमानी थे उनकी सलाह और कथन सारगर्भित होते थे, जो समाज-कल्याण और राष्ट्रोत्थान का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपने चिंतन के दायरे में रखा और सबके लिए यथोचित आदर्श आचरण एवं व्यवहार का एक खाका प्रस्तुत किया ।शासक, व्यापारी, कर्मचारी, महिलाएँ, धर्मभिक्षु-सब उनकी दृष्टि में थे।
चाणक्य के विशद ज्ञान के इस विराट् पुंज को संकलित करने का एक विनम्र प्रयास है यह पुस्तक, जिसमें उनके विभिन्न श्लोकों का अर्थ उचित उदाहरणों के माध्यम से आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है।
आचार्य चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375-ईसापूर्व 283) चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे ‘कौटिल्य’ नाम से भी विख्यात हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान् ग्रंथ है।’कौटिल्य अर्थशास्त्र’ मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथों में भी उनकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य के शिष्य कामंदक ने अपने नीतिसार’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने बुद्धिबल से अर्थशास्त्र रूपी महोदधि को मथकर नीतिशास्त्र रूपी अमृत निकाला। प्रकारांतर में विद्वानों ने चाणक्य के नीति ग्रंथों से घटा-बढ़ाकर वृद्धचाणक्य, लघुचाणक्य, बोधिचाणक्य आदि कई नीतिग्रंथ संकलित कर लिये। ‘विष्णुगुप्त सिद्धांत’ नामक उनका एक ज्योतिष का ग्रंथ भी मिलता है। कहते हैं, आयुर्वेद पर भी उनका लिखा’ वैद्यजीवन’ नामक एक ग्रंथ है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Tum Laut Aao
भारतीय ऐतिहासिक संस्कृति की पुरातनता तथा भारत की सांस्कृतिक ऐतिहासिकता की प्राचीनता पर पाश्चात्य विद्वान् साहित्यकारों, यथा—‘विलियम जोंस’ प्रभृति जानकारों ने अपनी धार्मिक वर्चस्वता का भारत की ऐतिहासिक प्राचीनता पर जिस रूप में हमला बोलने का अत्युक्तिप्रद प्रयास किया, भारतीय विद्वान् साहित्यकारों को कदापि सह्य न हुआ। विद्वान् साहित्यकार डॉ. शिवदास पांडेय के प्रस्तुत उपन्यास ‘चाणक्य, तुम लौट आओ’ में तथा इसके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों—‘द्रोणाचार्य’, ‘गौतम गाथा’ के प्राक्कथनों में उसकी नितांत अध्ययनशीलता की सीरिज उरेही जा सकती है। इन प्राक्कथनों में पाश्चात्यों के हमलों के मुँहतोड़ व्यक्त-अव्यक्त प्रत्युत्तर गौर करने योग्य हैं।
डॉ. शिवदास पांडेयजी की औपन्यासिक दक्षता पुरातन ऐतिहासिक इमारतों के टूटे-फूटे रूप को अपने अद्वितीय कौशल से प्रशंस्य साहित्यिक शिल्पी के स्वरूप ढालने में है। इन्होंने अद्वितीय, अपूर्व रूप में अपने सत्कार्य स्वरूप की सफल सिद्धि की है।
लेखक ने अपनी सृजन शक्ति की कल्पनात्मक डोर से सघन कथात्मक धूमिलताओं के बीच गहरे गड़े जिस अद्वितीय कौशल से प्रकाश का आँगन उकेरा, संयुक्त सूत्रात्मक बंधन में बाँधा, इस अभिनव बौद्धिक विशेषता को अपनी सविशेष सोच से अशेष-गौरव उन्हें स्वतः प्राप्त हो जाता है।
इतिहास जब साहित्य-मुख से अपने को अभिव्यक्त करता है तो निजी अविरामता में ‘द्रोण’ और ‘चाणक्य’ सदृश सरस्वती ही अपना नया उद्भव प्राप्त करती हैं। निश्चय ही, डॉ. शिवदासजी ने अपने ‘चाणक्य, तुम लौट आओ’ उपन्यास के जरिए भारतीय पुरातन क्षितिज के अनेक गौरवशील ध्रुव तारों के जो अभिनव परिचय कराए हैं, वैश्विक धरातल पर मानव-समाज की वे नूतन संस्कारगत लब्धि कहे जा सकते हैं।
—डॉ. सियाराम शरण सिंह ‘सरोज’
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Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, अन्य कथेतर साहित्य
Chandra Nighantu (Hindi)
It is an important ancient creation of Vaidh Shiromani Chandra Nandan. This book is published first time on the basis of ancient manuscripts with Hindi translation. It is suitable for the people eager to learn more about Ayurveda, scholars and teachers as it includes the complete vocabulary of terms related to Ayurveda and detailed description of Ayurvedic medicines
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Cheeron Par Chandani
निर्मल वर्मा के गद्य में कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्त और डायरी की समस्त विधाएँ अपना अलगाव छोड़कर अपनी चिन्तन-क्षमता और सृजन-प्रक्रिया में समरस हो जाती हैं…आधुनिक समाज में गद्य से जो विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं, वे यहाँ सब एकबारगी पूरी हो जाती हैं। -डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी / निर्मल वर्मा के यहाँ संसार का आशय सम्बन्धों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा नहीं। सम्बन्धों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अनेक अप्रत्याशित सूक्ष्मताओं में भले ले जाती हो, उनको ऐसा चिन्तक-कथाकार नहीं बनाती जिसका चिन्तन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो। वे अर्थों के बखान के नहीं, अर्थों की गूंजों और अनुगूगूँजों के कथाकार हैं।
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chhatrapati Shivaji
मराठा वीर शिवाजी ने किस प्रकार औरंगजेब की कट्टरवादी-संकीर्ण नीतियों का विरोध किया और अपने समकालीन स्वच्छाचारी शासकों से लोहा लिया, इसे लालाजी ने ऐतिहासिक तथ्यों से प्रमाणित किया है। महाकवि भूषण के शब्दों में-हिंदू, हिंदी और हिंद के रक्षक शिवाजी महाराज की स्फूर्तिदायक जीवनी के लेखन की पात्रता लालाजी जैसे देशभक्त में ही थी।
छत्रपति शिवाजी के इस जीवन चरित का ऐतिहासिक महत्व तो है ही जिसकी समीक्षा तो मराठा इतिहास के प्रमाणिक विद्वान् ही करेंगे, तथापि सर्वसाधारण को शिवाजी महाराज की एक सुंदर झांकी भी मिलेगी, इस विश्वास के साथ इस ग्रंथ को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Chhuachhoot Mukta Samras Bharat
-10%Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्यChhuachhoot Mukta Samras Bharat
भारत प्राचीन काल में विश्वगुरु रहा है, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व कल्याण हेतु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उद्घोष किया। किंतु लंबे समय तक भारत विदेशी आक्रांताओं द्वारा शोषित और शासित रहा। इसी कालखंड में उन्होंने भारत की शिक्षा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। जो जाति व्यवस्था कर्म आधारित थी, वह धीरे-धीरे जन्म आधारित हो गई। कुछ जातियों को अमानवीय स्थिति में डालकर अस्पृश्य घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के बाद कानून बनाकर अस्पृश्यता, यानी छुआछूत को दंडनीय अपराध घोषित किया गया, तो कुछ राहत मिली। इसके पूर्व भी हमारे संतों व समाज-सुधारकों ने इस जाति-पाँति आधारित भेदभाव का खंडन और विरोध किया था।
आधुनिक संदर्भ में जाति-पाँति, रंग, भाषा, क्षेत्र, लिंग आदि पर आधारित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त कर एक समरस समाज के निर्माण की नितांत आवश्यकता है। सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी समतामूलक समरस समाज ही स्वस्थ और सुखी समाज हो सकता है। सशक्त व अखंड राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता अनिवार्य है। चूँकि सबके साथ से ही सबका विकास एवं सबका विश्वास संभव है। देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरंभ से ही इस चुनौती को स्वीकार कर समरस व जातिविहीन समाज के निर्माण का संकल्प लिया था। समरसता हेतु चल रहे इस महायज्ञ में एक आहुति के रूप में यह पुस्तक ‘छुआछूत मुक्त समरस भारत’ प्रस्तुत है।
• जाति का सबसे बुरा पक्ष है कि वह प्रतियोगिता को दबाती है और वास्तव में प्रतियोगिता का अभाव ही राजनीतिक अवनति और विदेशी जातियों द्वारा उसके पराभूत होते रहने का कारण सिद्ध हुआ है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chitthiyon Ke Din
निर्मल वर्मा जितना मौन पसन्द थे, उतना ही संवाद-प्रिय- इसे मानने के पर्याप्त कारण हैं, विशेषकर उनके पत्रों की इस तीसरी पुस्तक के अवसर पर। एक आत्मीय स्पेस में लिखे गये ये पत्र अलग-अलग व्यक्तियों को लिखे जाने के बावजूद पारिवारिक ऊष्मा लिये हुए हैं। निस्संग रहते हुए भी निर्मल कितना दूसरों के संग थे, उनकी व्यावहारिक परिस्थितियों से लेकर उनकी सर्जनात्मक आकुलता तक, ये पत्र इसके साक्षी हैं। अधिकतर ये पत्र, विशेषकर रमेशचन्द्र शाह और ज्योत्स्ना मिलन के नाम, सन् अस्सी के दशक में लिखे गये पत्र हैं। यह वह दूसरी दुनिया थी, जो देखने पर बाहर से दिखायी नहीं देती। इसमें उनका अकेलापन था और अपनी व्यक्तिगत लेखकीय नियति का सामना करने की तैयारी। निर्मल वर्मा आज यदि अलग दिखते हैं, तो अपने जीने या सहने में नहीं। इस सब जंजाल के जो अर्थ वह अपने लेखन से दे पाये उसमें। दूसरों से संवाद में ही जीवन का यह अति-यथार्थ सँभल पाता है, सहनीय हो पाता है ये पत्र इसका दस्तावेज़ है। निर्मल वर्मा के शोधार्थियों और पाठकों को इन पत्रों में उनके रचना-संसार के कई नये अन्तःसूत्र मिलेंगे, ऐसा निश्चित है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, इतिहास
Deshbhakti Ke Pavan Teerth (PB)
यह पुस्तक समावेश है यात्रा-वृत्तांत और वीरों से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का, जिसमें लेखक ने प्रयास किया है कि वे अत्यंत रोचक तरीके से आज की पीढ़ी को हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवाएँ। इस पुस्तक की शुरुआत 1857 की क्रांति से जुड़े स्थानों जैसे की बैरकपुर (पश्चिम बंगाल), वेल्लोर (तमिलनाडु) और मेरठ से की गई, जहाँ से आजादी की लौ प्रज्वलित हुई थी। भारत में इन जगहों के इतिहास पर तो आपको कई पुस्तकें मिल जाएँगी, पर यात्रा-वृत्तांत के साथ इतिहास के इस अनूठे मेल पर ऐसी पुस्तक शायद पहली बार प्रकाशित हो रही है। लेखक पाठक को 1857 के क्रांति स्थलों से लेकर 1999 के कारगिल युद्ध से जुड़े स्थानों पर लेकर गए हैं। इसके अलावा सेल्लुलर जेल, हुसैनीवाला, सियाचिन और जलियावाला बाग पर भी अध्याय हैं। इस पुस्तक के द्वारा लेखक ने हमारे देशभक्त और जांबाज सैनिकों और देश के लिए अपना सर्वस्व लुटानेवाले अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की है। लेखक का प्रयास है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और वीरों की अमर गाथा और उनसे जुड़े स्थानों का ज्ञान आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाया जाए, ताकि उनमें देश में राष्ट्रघाती ताकतें, जो समय-समय पर सिर उठाती रहती हैं, उनका दमन करने की शक्ति मिले और देशभक्ति की लौ को तीव्र गति से प्रज्वलित किया जा सके। भारत माँ के वीर सपूतों का पुण्य-स्मरण कर उनके प्रति विनम्र आदरांजलि है यह पुस्तक।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dhalaan Se Utarte Hue
कला सिखाती नहीं, ‘जगाती’ है। क्योंकि उसके पास ‘परम सत्य’ की ऐसी कोई कसौटी नहीं, जिसके आधार पर वह गलत और सही, नैतिक और अनैतिक के बीच भेद करने का दावा कर सके. …तब क्या कला नैतिकता से परे है? हाँ, उतना ही परे जितना मुनष्य का जीवन व्यवस्था से परे। यहीं कला की ‘नैतिकता’ शुरू होती है… कोई अनुभव झूठा नहीं, क्योंकि हर अनुभव अद्वितीय है….झूठ तब उत्पन्न होता है, जब हम किसी ‘मर्यादा’ को बचाने के लिए अपने अनुभव को झुठलाने लगते हैं। सीता के अनुभव के सामने राम की मर्यादा कितनी पंगु और प्राणहीन जान पड़ती है… इसलिए नहीं कि उस मर्यादा में कोई खोट या झूठ है, बल्कि इसलिए कि राम अपनी मर्यादा बचाने के लिए अपनी चेतना को झुठलाने लगते हैं… जब हम कोई महान उपन्यास या कविता पढ़ते हैं, किसी संगीत-रचना को सुनते हैं, किसी मूर्ति या पेंटिंग को देखते हैं तो वह उन सब अनुभवों की याद दिलाती है, जो न सिर्फ़ हमें दूसरी कलाकृतियों से प्राप्त हुए हैं, बल्कि जो कला के बाहर हमारे समूचे अनुभव-संसार को झिंझोड़ जाता है…वह एक टूरिस्ट का निष्क्रिय अनुभव नहीं, जिसे वह अपनी नोटबुक में दर्ज करता है…वह हमें विवश करता है कि उस कलाकृति के आलोक में अपने समस्त अनुभव-सत्यों की मर्यादा का पुनर्मूल्यांकन कर सकें… -निर्मल वर्मा निर्मल वर्मा के निबन्धों की सार्थकता इस बात में है कि वे सत्य को पाने की सम्भावनाओं के नष्ट होने के कारणों का विश्लेषण करते हुए उन्हें पुनः मूर्त करने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। निर्मल वर्मा लिखते हैं कि समय की उस फुसफुसाहट को हम अक्सर अनसुनी कर देते हैं, जिसमें वह अपनी हिचकिचाहट और संशय को अभिव्यक्त करता है क्योंकि वह फुसफुसाहट इतिहास के जयघोष में डूब जाती है-निर्मल वर्मा के ये निबन्ध इतिहास के जयघोष के बरअक्स समय की इस फुसफुसाहट को सुनने की कोशिश हैं। -नन्दकिशोर आचार्य
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dhundh Se Uthati Dhun
‘धुन्ध से उठती धुन’ एक ऐसे ही ‘समग्र, समरसी गद्य’ का जीवन्त दस्तावेज़ है, निर्मल वर्मा के ‘मन की अन्तःप्रक्रियाओं’ का चलता-फिरता रिपोर्ताज, जिसमें पिछले वर्षों के दौरान लिखी डायरियों के अंश, यात्रा-वृत्त, पढ़ी हुई पुस्तकों की स्मृतियाँ और स्मृति की खिड़की से देखी दुनिया एक साथ पुनर्जीवित हो उठते हैं। एक तरफ़ जहाँ यह पुस्तक उस ‘धुन्ध’ को भेदने का प्रयास है, जो निर्मल वर्मा की कहानियों के बाहर छाई रहती है, वहीं दूसरी तरफ़ यह उस ‘धुन’ को पकड़ने की कोशिश है, जो उनके गद्य के भीतर एक अन्तर्निहित लय की तरह प्रवाहित होती है।/
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dusri Duniya
बोलना, निर्मल वर्मा के वहाँ कथन (स्टेटमेंट) नहीं है। वक्ता का ज़ोर बावजूद इसके कि उसमें ‘सच’ और ‘झूठ’ और ‘पाप’ जैसे मूल्याविष्ट प्रत्यय बार-बार आते हैं, बोले हुए की ‘टुथ-वैल्यू’ पर उतना नहीं, जितना खुद को ‘उच्चरित’ करने पर है…दरअसल उनके पात्र भाषा से तदात्म हस्तियाँ हैं। भाषा के जल में उठती हुई लहरें। भाषा में उत्पन्न नये अर्थ…वे साँचे हैं जो अब नहीं हैं लेकिन जिनके कभी होने का पता हमें उस भाषा से चलता है जो इन साँचों में ढली है, जो हमारे सामने है…यह भाषा अपने ‘टैक्सचर’ की पर्याप्त प्रांजलता के बावजूद अपने ‘स्ट्रक्चर’ में अत्यन्त अर्थगर्भी और जटिल है: लगभग एक कूट की भाँति… निर्मल वर्मा का हर पात्र कथा के एकान्त में एक ‘देह’ है: एक गुप्तचर की तरह अपने कोड (केट) में विचित्र सन्देश देती हुई; ‘अपने अतीत, अपनी यातनाओं के बारे में’ निर्मल वर्मा स्वयं किसी तरह की तर्कणा या परिपृच्छा से उसे पुकार कर या झिंझोड़ कर उसका एकान्त भंग नहीं करते। वे इस कूटबद्ध देह (वाक्य) के लिए एक अवकाश रचते हैं अपनी कथा के माध्यम से; ऐसा ‘घना सन्नाटा’ जहाँ इस देह के ‘विचित्र सन्देश’ ग्रहण किए जा सकें, जहाँ उसकी ‘गुप्त गवाही का गवाह’ हुआ जा सके…उनके यहाँ मनुष्य का सत्व भाषा में रूपायित है। – मदन सोनी
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
There are many commentaries on the Gita which generally lack in the Vedic thought. This work, not only presents the Vedic but also the thought of the entire Mahabharata in its interpretation of the Gita by Anirvan, a great scholar of Vedas and Vedic literature.
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