Hindi Books
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, रामायण/रामकथा
Ramayana Ki Kahaniyan- Harish Sharma
‘रामायण’ भारतीय पौराणिक ग्रंथों में सबसे पूज्य एवं जन-जन तक पहुँच रखनेवाला ग्रंथ है। रामकथा की पावन गंगा सदियों से हिंदू जन-मानस में प्रवाहित होती रही है। भारत ही नहीं, संसार भर में बसनेवाले हिंदू रामायण के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं।
रामकथा का प्रसार और प्रभाव इतना व्यापक है कि इससे संबंधित कथाओं-उपकथाओं की चर्चा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। रामकथा इतनी रसात्मक है कि बार-बार सुनने-जानने को मन सदैव उत्सुक रहता है।
विद्वान् लेखक ने पुस्तक को इस उद्देश्य के साथ लिखा है कि हमारी नई पीढ़ी भारतीय संस्कार, आदर्श एवं जीवन-मूल्यों को आत्मसात् कर सके। इन कहानियों में पर्वतों, नदियों, नगरों, योद्धाओं के पराक्रम, शस्त्रास्त्रों एवं दिव्यास्त्रों, मायावी युद्धों के साथ-साथ ऋषियों, महर्षियों एवं राजर्षियों के पावन चरित्रों का वर्णन अत्यंत सरल भाषा में किया गया है।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर इसके आदर्शों, सदाचारों एवं सद्गुणों का अपने जीवन में अनुकरण-अनुसरण करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, Rajkamal Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Ramkatha : Father Kamil Bulke
Hindi Books, Lokbharti Prakashan, Rajkamal Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथाRamkatha : Father Kamil Bulke
सुयोग्य लेखक ने इस ग्रन्थ की तैयारी में कितना परिश्रम किया है, यह पुस्तक के अध्ययन से ही समझ में आ सकता है। रामकथा से सम्बन्ध रखनेवाली किसी भी सामग्री को आपने छोड़ा नहीं है। ग्रन्थ चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा सम्बन्धी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का सम्बन्ध ‘रामकथा की उत्पत्ति’ से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ-जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारम्भिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रन्थ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले, दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जानेवाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाए जानेवाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अन्तिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक्-पृथक् विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ काण्ड-क्रम से ली गई हैं अत: यह भाग सात काण्डों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता, प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Ramkatha Aaram
‘जातस्य हि धु्रवोर्मृत्यु ध्रुवजन्म मृतस्य च’, अर्थात् जिसकी मृत्यु निश्चित है, उस मृतक का जन्म भी निश्चित है। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार व चिंतक-विचारक डॉ. विवेकी राय इस विधान से बाहर कैसे रह सकते थे।
उनके सृजन-संसार का विपुल भंडार साहित्य-जगत् को उपलब्ध है। हालाँकि उनके रचना-कर्म की अमूल्य गठरी में अभी बहुत कुछ है, जिसे लोकमानस तक पहुँचाया जाना शेष है। उसकी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है बाबूजी की शुचिता और संबंधों के बीच रचना विधान का लोकसृजन करती यह कृति ‘रामकथा आराम’। उनकी यह धरोहर पाठक तक पहुँचे, जिससे साहित्य की विपुल संपदा को और समृद्धि मिले।
सोलह रचनाशिल्पियों की विधागत दक्षता को पन्नों पर उकेरती यह कृति न सिर्फ ऋषि-परंपरा की साहित्यिक विपुलता को आम पाठक वर्ग तक संप्रेषित करेगी बल्कि विविध विधाओं में रचे विधान को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर एक नई दृष्टि का सूत्रपात करेगी।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, रामायण/रामकथा
Ramkatha Ke naye Aayam
हिंदी में रामकथा पर बहुत कुछ काम हुआ है। इसमें सर्वाधिक विस्तृत संपूर्ण सर्वेक्षण फादर कामिल बुल्के (रामकथा) का है। रामचरितमानस और आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित रामचरितों का तुलनात्मक अध्ययन कई विद्वानों ने किया है। अभी तक गुजराती, मराठी, बँगला, तेलुगु एवं तमिल आदि भाषाओं के प्रमुख रामचरित काव्यों और उनमें उपलब्ध रामकथा का तुलसी के मानस के साथ तुलनात्मक अध्ययन हो चुका है। परंतु बलरामदास की दांडी रामायण और मानस की रामकथा का तुलनात्मक अध्ययन कम ही हुआ है।
प्रसिद्ध समालोचक एवं अनुवादक डॉ. शंकरलाल पुरोहित ने बलरामदास के राम-संबंधी दृष्टिकोण के मूल में जगन्नाथ और तुलसी के राम-संबंधी दर्शन के मूल में ब्रह्म की बात को ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी है।
रामकथा जहाँ भी, जिस रूप में भी कही गई है, उसके मूल में भक्तिधारा रही है। तुलसी और बलराम की रामकथा-धारा में अवगाहन कर हम इसी निष्कर्ष पर पहँुचते हैं और यह भक्तिधारा मानव मंगल तथा जनकल्याण के लिए एक विराट् फलक पर उत्कीर्ण हुई है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rani Durgavati
कैसा विचित्र समय था? जब हिंदू राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बारे में विचार करना ही त्याग दिया था। वे सीधे शरणागत हो रहे थे। रानी दुर्गावती की दृढ़ता, शासन करने की शैली तथा प्रजा-रंजन बादशाह अकबर को भी चिढ़ाता था। एक विधवा रानी का सुयोग्य शासन उसे खटक रहा था। अकबर ने संदेश भेजा—रानी, पिंजरे में कैद हो जाओ, तभी सुरक्षित रहोगी और वह पिंजरा होगा, मुगल बादशाह अकबर का। सोने का ही सही, पर पिंजरा तो पिंजरा होता है। गुलामी तो गुलामी होती है। कितना निकृष्ट संदेश रहा होगा? रानी दुर्गावती ने इस संदेश के उत्तर में अकबर को उसकी औकात बता दी। रानी संस्कृति की पूजक थीं, ‘गीता’ रानी का प्रिय ग्रंथ था। वह पंडितों से नियमित गीता प्रवचन सुनती थीं। रानी जीना भी जानती थीं और मृत्यु का वरण करना भी। उन्हें पुनर्जन्म पर भी विश्वास था। वह देशाभिमान भी जानती थीं और युद्ध के मैदान में रणचंडी बनना भी। ऐसी मनस्विनी रानी अकबर की नौकरानी कैसे बन सकती थीं?
दुर्गावती की गाथा गोंडवाना की लोककथाओं में जीवित है, उन्हें जन-जन पूजता है। महारानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र को अनेक लेखकों ने लिखा है। दुर्गावती के बलिदान स्थल से जन्म स्थल तक अनेक अभिलेख, आलेख तथा पुरातत्त्व के अवशेष मिल जाते हैं। दुर्गावती शोध संस्थान, जबलपुर ने रानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र और उनके रेखांकित स्थलों पर अनुसंधान भी किया है। दुर्गावती का जीवनवृत्त सुना, समझा और पढ़ा जा रहा है।
देशाभिमानी, निर्भीक, साहसी क्षत्राणी और विदुषी रानी दुर्गावती का प्रामाणिक जीवन-चरित है यह उपन्यास।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rashtra Dharma Aur Sanskriti (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासRashtra Dharma Aur Sanskriti (PB)
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवालजी के समूचे चिंतन-लेखन की धुरी राष्ट्र का गौरव और मातृभूमि की महिमा है। वे राष्ट्रभक्त मनीषी थे।
वैष्णव स्वभाव और कर्मनिष्ठा के साथ अंतिम साँस तक वे अपनी अविचल राष्ट्र-भक्ति और अविरल ज्ञान-साधना में निमग्न रहे। वे भारत के मृण्मय स्वरूप पर अत्यंत मुग्ध थे; पर उसके चिन्मय स्वरूप को उद्घाटित करने का यत्न करने में ही उन्होंने अपने भौतिक जीवन को निःशेष कर दिया ।
चिन्मय भारत का विग्रह धर्मस्वरूप है। वैदिक ऋषियों ने जिस सनातन सृष्टि-तत्त्व को ऋत कहा था, वही धर्म है और धर्म ही संस्कृति है, जो नाना रूपों में अभिव्यक्त होती है और हमारे आचरण या कि चरित्र में परिलक्षित होती है। इस तरह भारत राष्ट्र का निर्माण धर्म और संस्कृति की भित्ति पर हुआ है।
इसीलिए इस संचयन का नाम ‘राष्ट्र, धर्म और संस्कृति’ रखा गया है। इसमें द्वीपांतर से लेकर ईरान और मध्य एशिया तक तथा आसेतुहिमाचल मृण्मय भारत और चिन्मय भारत से संबद्ध वासुदेवजी के निबंध संगृहीत हैं । चिन्मय भारत सहस्र – सहस्र वर्षों से प्रवाहित अजस्त्र धारा का सनातन प्रवाह है; यही इन निबंधों की टेक है; प्रतिपाद्य है ।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रRashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दी प्रेस की भूमिका
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में जन-चेतना के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हिन्दी प्रेस एवं अनेक पत्र-पत्रिकाओं की हैं। मानव जीवन के विकास की प्रक्रिया में पत्र-पत्रिकाएँ सहायक रही हैं। भारतीय बुद्धिजीवियों ने जागरूकता के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाओं को एक साधन के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया। Rashtriya Aandolan Hindi Press
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को आगे बढ़ाने में बुद्धिजीवियों को इन पत्र-पत्रिकाओं से मदद मिल रही थी। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय महिलाओं के द्वारा निकाले जा रहे पत्र-पत्रिकाओं का राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका एवं सामाजिक समस्याओं आदि का वर्णन किया गया है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Rashtriya Itihas Mein Rathore
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Rashtriya Itihas Mein Rathore
राष्ट्रीय इतिहास में राठौड़
जंग जीत्या केई जबर, ज्यांरी हुवे न किणसूं हौड़।
भागा न कोई भिड़ंत में, जीणसूं रणबंका राठौड़।।
कवि की इन पंक्तियों से राठौड़ों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के ऐतिहासिक महत्व का सहज रूप से ही अनुमान लगाया जा सकता है। शौर्य व बल प्रताप के धनी राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्व के बहुआयामी अध्ययन हेतु महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र की ओर से 24वीं राष्ट्रीय संगोष्ठी 6-7 अक्टूबर 2018 को आयोजित की गई थी। Rashtriya Itihas Mein Rathoreयह राष्ट्रीय संगोष्ठी महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई जिसका विषय “राठौड़ शासकों का भारतीय इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व” है। so इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य मारवाड़ के राठौड़ शासकों का भारत के राष्ट्रीय इतिहास में जो ऐतिहासिक महत्व एवं योगदान है उसे अधिकाधिक प्रकाश में लाना है। surely राठौड़ शासकों का राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक इतिहास में तो महत्त्वपूर्ण स्थान रहा ही, साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है, जिन पर अभी तक विस्तृत रूप से अध्ययन का अभाव है।
Rashtriya Itihas Mein Rathore
also ऐसे क्षेत्र है – सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासनिक, आर्थिक, कला, साहित्य, स्थापत्य, जन कल्याणकारी कार्य, जल प्रबंधन व्यवस्था, पर्यावरण, व्यापार वाणिज्य, उद्योग धंधे, कृषि, भूमि सुधार, अकाल, सिंचाई की व्यवस्थाएँ इत्यादि अनेकोनक विषय है जिन पर अधिकाधिक शोध की आवश्यकता है। अतः इन विषयों पर शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर उन्हें इतिहास जगत के पटल पर रखकर राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्त्व को उजागर करना ही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।
देश के ख्याति प्राप्त इतिहासज्ञों, विद्वानों व शोधार्थियों ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने शोधपरक पत्रों का वाचन कर भारतीय इतिहास में राठौड़ शासकों के सर्वांगीण ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। all in all इस विषय विशेष से संबंधित महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों की प्रस्तुति से अनेक नवीन जानकारियाँ इतिहास में दर्ज हुई जो हमारे आने वाले इतिहास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigveda Complete (4 Volumes)
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिRigveda Complete (4 Volumes)
ग्रन्थ का नाम – ऋग्वेद संहिता
भाष्यकार – स्वामी दयानन्द सरस्वती जी एवम् आर्य मुनि जी
वेद परमात्मा प्रदत्त ज्ञान राशि है। समस्त आर्ष ग्रन्थ इस बात की घोषणा करते हैं कि वेद अपौरुषेय वाक् है जो सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा द्वारा ऋषियों के हृदय में प्रकाशित होता हैं। महाभारत इतिहास ग्रन्थ में वेदव्यास जी लिखते हैं –
“अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः।।’’ – शान्तिपर्व अ. 224/55
अर्थात् परमात्मा प्रदत्त यह वेदवाणी नित्य हैं, इसी वेदमयी दिव्यवाक् के कारण सारा जगत् अपने कार्यों में प्रवृत्त है। यह प्राचीनकाल से विश्व के मार्गदर्शक रहे हैं, इसलिए महर्षि मनु ने – “वेदश्चक्षुः सनातनम्” कहा है।
वेदों में ऋग्वेद का विषय वस्तु ज्ञान है। महर्षि दयानन्द जी का उपदेश है कि ऋग्वेद में प्रकृति से ब्रह्माण्ड पर्यन्त तत्वों का मूल ज्ञान निहित है तथा महर्षि अपनी बनाई भाष्यभूमिका में यह भी लिखते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त कराना है।
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 85 अनुवाक्, 1028 सूक्तों के सहित 10521 मंत्र हैं। मंत्रों को ऋचाएँ भी कहा जाता है।
ऋग्वेद पर स्कन्द, नारायण, सायण, हरदत्त आदि विद्वानों नें भाष्य किया है। लेकिन अधिकांश भाष्य कर्मकांड परक और ऐतिहासिक परक हैं, जिससे वेदों का गूढार्थ प्रकट नहीं होता है। विडंबना है कि आचार्य सायण अपनी ऋग्भाष्य भूमिका में वेदों में इतिहास होने का प्रबल खंडन करके नैरुक्त पक्ष की स्थापना करते हैं लेकिन अपने वेदभाष्य में वे नैरुक्त पक्ष को दर्शानें मे असफल रहे और अधिकतर ऐतिहासिक अर्थ ही करते रहे। किन्तु महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक शब्दों को यौगिक मानकर नैरुक्त पक्ष से अर्थ किए हैं, जिससे वेदों का नित्यत्व स्थापित होता है। स्वामी जी ने ऋग्वेद के मंडल 7 और सूक्त 61 तक भाष्य किया था। ये भाष्य वेदांगों, ब्राह्मणग्रंथों के प्रमाणों से युक्त होने से प्राचीन आर्षशैली पर आधारित हैं। सायणादि द्वारा वेद भाष्य करने में निरूक्तादि की उपेक्षा करके अर्थ करने के कारण उनके किए भाष्य में अंधविश्वास, पशुवध, मांसाहारादि दोष परिलक्षित होते हैं वहीं ऋषि दयानन्द द्वारा वेद भाष्य में निरूक्त, छंद, आदि का ध्यान रखा गया है जिसके कारण उनका भाष्य इन सब दोषों से मुक्त और सृष्टि के उच्चतम आध्यात्मिक विज्ञान से युक्त है। जहां अन्य वेदभाष्य विग्रहवादी बहुदेवों की उपासना की शिक्षा से युक्त हैं वही स्वामी जी का भाष्य एक निराकार सत्ता की उपासना की स्थापना करता है। इस प्रकार अनेको विशेषताओं से युक्त होने के कारण ऋषि दयानन्द कृत वेदभाष्य में अनेक गुणों का परिलक्षण होता है।
प्रस्तुत् वेदभाष्य 7 मंडल और 61 सूक्त तक महर्षि दयानन्दकृत है, जिसकी विशेषताएँ वर्णित की जा चुकी हैं तथा शेष भाग 10 मंडल तक सम्पूर्ण आर्यमुनि जी कृत हैं। आर्यमुनि जी ने वेदार्थ में स्वामी दयानन्द जी की वेदभाष्य शैली का ही अनुसरण किया है। अतः यह वेदभाष्य दर्शन, धर्म, नीति, लौकिक ज्ञान-विज्ञान आदि मानवहितों से युक्त है और दोष-रूपी अंधविश्वास, बहुदेववाद, हिंसादि की कल्पनाओं से परे है। ये भाष्य चार खंडों में प्रकाशित हैं, जिसकी छपाई आकर्षक और सुन्दर है। इसमें अन्त में परिशिष्ट रूप में सम्पूर्ण वेद मंत्रों की अनुक्रमणिका भी दी गई हैं जिससे कोई भी मंत्र आसानी से खोजा जा सकता है।
वेदों के अध्ययन द्वारा ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म की लहरों में स्वयं को डुबोने के लिए, इस वेदभाष्य को अवश्य प्राप्त करके चिंतन एवम् मनन सहित स्वाध्याय करें और अपने जीवन को दिव्य बनावें।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rigvedadibhashyabhumika
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चारों वेदों के भाष्य की भूमिका, स्वामी दयानन्द सरस्वती चारों वेदों का जो भाष्य रचना चाहते थे, उस भाष्य के आधारभूत 35 विषयों का इस भूमिका में निरूपण किया है। इसलिए ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका को अच्छी प्रकार से पढ़े बिना स्वामी दयानन्द सरस्वती का वेद-भाष्य यथावत् समझ में नहीं आ सकता। -पं. युधिष्ठर मीमांसक
वेद की उत्पत्ति, रचना, प्रामाण्य-अप्रामाण्य, वेदोक्त धर्म आदि अनेक विषयों पर इस ग्रन्थ में स्पष्ट विचार किया गया है। पूर्व के वेदभाष्यकारों के अनेक अनार्ष मतों का विवेचन करके सप्रमाण वैदिक आर्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। वेद के सिद्धान्तों को समझने के लिए यह ग्रन्थ अपूर्व है।
-श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्यायमहर्षि ने इस भूमिका में पहले इस प्रष्न का उत्तर दिया है कि वेद क्या हैं और वेदोत्पत्ति का अत्यन्त सूक्ष्म विषय, सारगर्भित रीति से, निरूपण करने के पष्चात् वेदमन्त्रों के प्रमाणों से वेदों के विषयों को दर्षाते हुए, वेदों के सच्चे महत्व का बोधन कराया है। वेदों को वे सूर्यवत् स्वतःप्रमाण और शेष समस्त ग्रन्थों को परतःप्रमाण ठहराते हैं। -पं. लेखराम
महर्षि दयानन्द ने अपनी योगदृष्टि द्वारा वैदिक तत्त्वों को साक्षात् कर वेदभाष्यों के रचने का संकल्प किया। जिन नियमों और सिद्धान्तों के आधार पर महर्षि वेदभाष्य करना चाहते थे, उनका विस्तृत वर्णन ऋग्वेदादीभाष्यभूमिका ग्रन्थ में किया गया है। -प्रो. विष्वनाथ विद्यालंकार
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, रामायण/रामकथा
Rom-Rom Mein Ram (HB)
लगभग पांच सौ साल पहले अयोध्या में रामजी का मंदिर तोड़ दिया गया था। उस जगह पर एक ढांचा बनाकर उसे मस्जिद का नाम दिया गया। हमारे देवताओं की मूर्तियां टुकड़े-टुकड़े करके उसके फर्श और सीढ़ियों में गाड़ दी गईं। पराजित हिंदू जाति इसको रोक नहीं सकी, पर मंदिर टूटने की पीड़ा एक बुरे सपने की तरह पूरे समाज के मन में जलती रही। इस पीड़ा में 74 संघर्ष हो गए। लाखों लोगों ने प्राण दे दिए। कोर्ट में भी 70 सालों तक मामला उलझा रहा।
अब सपना नहीं सत्य है कि मंदिर बन गया है। यह भव्य है। एक हजार साल से अधिक आयु का है। इसमें जन्मस्थान पर रामजी विराजेंगे। आगे राम राज्य की ओर बढ़ना है। समाज के जीवन में और राज्य की संस्थाओं में मर्यादा, शील और पराक्रम लाना है। सभी धर्माधारित जीवन जीएँ। सबको रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार मिले। भारत परम वैभव को प्राप्त करे। इस सबका समय आ रहा है।
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Ruko Mat, Aage Badho
“स्वामी विवेकानंद के जीवन का तो हर प्रसंग ही प्रेरक है। जहाँ अपने ओजस्वी उद्बोधन से उन्होंने देश- विदेश में ख्याति अर्जित की और भारत का नाम रोशन किया, वहीं अपनी ओजस्वी वाणी से अपने देशवासियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया, जन-जन को जागरूक किया और उनमें मानवता का संचार किया।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाओं का संकलन प्रस्तुत है, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को रोचक भी लगेंगी और प्रेरणादायी भी। वे इन घटनाओं को अपने जीवन से जुड़ा हुआ भी महसूस करेंगे। देशभक्ति से लेकर मानवता, शिक्षा, लक्ष्य-प्राप्ति, धर्म- अध्यात्म, चरित्र-निर्माण, गुरु-शिष्य परंपरा, महिला सशक्तीकरण आदि कई सामाजिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। ये प्रेरक कथाएँ आपमें आत्मविश्वास उत्पन्न करेंगी और संघर्षों से निपटने का साहस भी प्रदान करेंगी,
क्योंकि स्वामी विवेकानंद का जीवन केवल गेरुए वस्त्र में सिमटे एक सन्यासी तक ही सीमित नहीं था, वरन् मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था। तभी तो उनके जीवन की हर घटना हमें हार न मानने की शक्ति देती है। इसीलिए इतने वर्षों बाद भी वे युवाओं के लिए प्रेरणास्नोत हैं। स्वामी विवेकानंद के प्रेरक, अनुकरणीय और श्लाघनीय जीवन के ऐसे प्रसंग जो हर पाठक के जीवन को प्रकाशमान कर देंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Saanjh ke Deep
साँझ के दीप : वृद्धावस्था मानव जीवन का अंतिम सत्य है, जीवन का यह पड़ाव अनेक सीखों-अनुभवों-उपदेशों से युक्त एक चलती-फिरती पाठशाला है। वह परिवार सचमुच भाग्यशाली हैं, जिन पर वृद्धों की छत्र-छाया है, लेकिन वर्तमान में क्या यही सत्य है।
कड़वी सच्चाई तो यही है कि परिवार-समाज की यह महत्वपूर्ण इकाई आज हाशिए पर रहने को मजबूर हो चुकी है। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे अनेकों दृष्टांत देखने को मिल ही जाते हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर देने वाले होते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में सम्मिलित प्रत्येक कहानी एक नया संदेश देती हुई नजर आती है। जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह कहानियाँ कई बार उन बच्चों को प्रायश्चित करवाती नजर आती हैं, जिन्होंने वृद्ध माँ-बाप को जीवन के अंतिम मोड़ पर घर से बेघर कर दिया हो, तो कहीं पर अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए दृढ़ वृद्धजन, कहीं पर अंतिम साँस ले रहे माँ-बाप की जुबाँ पर औलाद का नाम, कहीं पर जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत को चरितार्थ किया गया है। कहीं समाज की दृष्टि में कम पढ़े-लिखे माँ-बाप, किन्तु उनकी सीख आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्तम दर्ज की दिखलाई पड़ती है, तो कहीं वृद्ध हो चुके पति-पत्नी के बीच के मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत भले ही हो जाएं, लेकिन अंतिम क्षण तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ‘अप्प दीपो भवः’ के सिद्धान्त पर चल कर वह स्वयं के जीवन में तो प्रकाश भर ही रहे हैं, अपितु अन्य के जीवन को भी आलोढ़ित कर रहे हैं।SKU: n/a -
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Saat Chiranjeevi
एक सहज और स्वाभाविक प्रश्न है, क्या मनुष्य अमर हो सकता
है? इसका जवाब इतना आसान नहीं है, क्योंकि आज भी मनुष्य उन सीमाओं के पार नहीं पहुँच सका है, जो उसे अमर बना दें। हाँ, कभी-कभी कुछ विशेष व्यक्तियों के लिए प्रकृति ने अपने नियम जरूर बदले हैं। ऐसे ही विशेष महामानव हैं-सात चिरंजीवी। ये सात चिरंजीवी इसलिए कहलाए, क्योंकि सातों जीवन-मृत्यु के चक्र से ऊपर उठकर अमर हो गए। इन सात चिरंजीवियों में परशुराम, बलि, विभीषण, हनुमान, महर्षि वेदव्यास, कृपाचार्य और अश्वत्थामा हैं।
इन चिरंजीवियों में से कुछ के बारे में गलत धारणाएँ भी प्रचलित हैं, जैसे परशुराम का नाम सुनते ही हमारी आँखों के सामने एक ऐसे ऋषि की तसवीर उभरती है, जो बेहद क्रोधी स्वभाव के हैं। लेकिन उन्होंने अत्याचारी और अन्यायी राजाओं के खिलाफ ही शत्र उठाए। एक आदर्शवादी और न्यायप्रिय राजा के रूप में राम से मिलने के पश्चात् वे महेंद्र गिरि पर्वत पर तपस्या करने चले गए। परशुराम भगवान् विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। आज्ञाकारी पुत्र के रूप में वे अद्भुत हैं।SKU: n/a -
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Saath Ke Hemant
“पत्रकार-लेखक-समाजधर्मी हेमंत शर्मा शोख, शरारती, संजीदा, हँसमुख, मिलनसार हैं, साथ ही दायित्वपूर्ण लेखन के अप्रतिम उदाहरण भी । उनका लेखन उत्प्रेरक है, उद्देगजनक भी है और अनुरंजक भी। संवेदना और भाषा के इन अलग-अलग गुण-स्वभाव के लेखक हिंदी में हैं, मगर इन सबका एकत्र संयोग हमें हेमंत में ही दिखाई देता है। हेमंत की शरारत में जो गहरी आत्मीयता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। हेमंत का लेखन जादूगर के तमाशे की तरह है, जो लोगों को अपने काम के रास्ते जाते हुए से बिलमाकर रोक लेता है, बाँध लेता है, विस्मय में डाल देता है, अपने कौशल के लिए वाहवाही निकलवा लेता है।
हेमंतजी अपने सक्रिय जीवन के साठ साल पूरे करने जा रहे हैं। बिना किसी सीढ़ी का सहारा लिये, बिना किसी के कंधे पर चढ़े उन्होंने जीवन में स्पृहणीय ऊँचाई प्राप्त की है। इसके पीछे उनकी अथक मेहनत, गहरी सूझ, अटल संकल्प और व्यावहारिक कुशलता का बेजोड़ सम्मिलन है। उन्होंने ख्याति और समृद्धि के ऊँचे शिखर पर आसन जमाया है। हेमंत की उपलब्धियाँ विलक्षण हैं। उनकी प्रतिभा विस्मथघजनक है। उनका व्यवहार विमुग्धकारी है।
मीडिया, कला-जगत्, राजनीति और विभिन्न भावभूमि की प्रमुख विभूतियों से उनके नितांत अनौपचारिक और गहरे संबंध हैं। यह कृति उनके ऐसे ही अपनों और आत्मीयों के उनके विषय में व्यक्त भावों का पठनीय संकलन है।”
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Sabhi Ke Liye Kanoon
आज हमारे पारिवारिक, सामाजिक एवं दिन-प्रतिदिन के जीवन में कानून की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है। कानून एक ऐसा विषय है, जिसके संबंध में प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य जानकारियाँ होनी ही चाहिए। कानून के संबंध में विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ सभी नागरिकों की आवश्यकता बन गई है।
यह पुस्तक अपने पाठकों को सामान्य कानूनों की भरपूर जानकारी प्रदान करेगी। इसमें सरल व सुगम भाषा में तथ्यों को वर्णित किया गया है। इस पुस्तक को पढ़कर पाठकगण—अदालतों के प्रकार, एफ.आई.आर. दर्ज कराने के तरीके, जमानतों के तरीके, अपील के तरीके, सड़क दुर्घटना का मुआवजा, विवाह एवं तलाक, उपभोक्ता कानून, प्रोपर्टी ट्रांसफर, बीमा, टैक्स, चेक के अनादरण, श्रमिक कानून, दहेज, अपराधों के प्रकार और हमारे कानून का संक्षेप में इतिहास—आदि के संबंध में जानकारियाँ प्राप्त करेंगे। इसके माध्यम से पाठक भारतीय दंड संहिता की प्रमुख धाराओं के अंतर्गत शामिल अपराधों और उनकी सजाओं के बारे में भी जान सकेंगे। हमें विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को कानून संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण व उपयोगी जानकारियों से समृद्ध करेगी।SKU: n/a -
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Sadhvi Ritambhara Aur Shriramjanmabhoomi Andolan
प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसी बालिका की कहानी है, जिसका बाल्यकाल अपने आसपास की घटनाओं को देखकर बहुत गहराई तक प्रभावित हुआ। माता-पिता के संस्कार और सामाजिक वर्जनाओं से गुजरते हुए उसकी तरुणाई एक ऐसी राह पर चल पड़ी, जिसके विभिन्न पड़ाव अविस्मरणीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ बनते चले गए ।
यह पुस्तक पंजाब के लुधियाना जिले के दोहारा गाँव में रहने वाली बालिका निशा की ऐसी कहानी है, जिसमें उसका घर से अचानक लापता हो जाना, उसके बिछोह में परिवारजनों का अंतहीन मानसिक वेदनाओं से गुजरना, गंगातट हरिद्वार से उसका जीवन-प्रवाह अध्यात्म-धारा की ओर मुड़ जाना, भाई द्वारा आश्रम से पुनः गाँव लाया जाना, उसके फिर आश्रम लौटने की जिद में पारिवारिक ऊहापोह, येन-केन-प्रकारेण उसका पुनः अपने गुरुदेव की शरण में आश्रम पहुँचना, निशा से ‘ज्ञानज्योति’ और फिर ‘साध्वी ऋतंभरा’ के रूप में समाज के सामने आना तथा सनातन धर्म- प्रचार में उनके द्वारा स्वयं को झोंक देने जैसे अनेक मार्मिक और भावपूर्ण प्रसंग अत्यंत रोचकता के साथ प्रस्तुत हैं ।
अयोध्या में श्रीरामलला की जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त करके मुगल आक्रांताओं द्वारा बलात् निर्मित बाबरी ढाँचे से मुक्ति के लिए हिंदू समाज के लगभग पाँच सौ वर्षों तक चले संघर्ष और उसमें तेजस्वी हिंदू प्रवक्ता साध्वी ऋतंभराजी की भूमिका एक क्रांतिकारी अध्याय है। इस पुस्तक में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन और उसमें साध्वी ऋतंभराजी के संघर्षरूपी योगदान को प्रामाणिक घटनाओं के रूप में क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया गया है।
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