Fiction Books
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, उपन्यास
Andhvishwas : Prshnchihn Aur Purnviram
चमत्कारी कहलानेवाले बाबा क्या सच में चमत्कार करते हैं? आखिर क्या कारण है कि विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के इतने प्रसार के बाद भी समाज में अंधविश्वासों की जगह बची हुई है? क्यों लोग आज भी अपने दु:खों का, अपनी बीमारियों का इलाज ढूँढ़ने गुरुओं-साधुओं की शरण में जाते हैं? वशीकरण और सम्मोहन क्या वास्तव में होते हैं? कुछ लोग भूतों को देखने तक का दावा करते हैं, इसका आधार क्या है? देवी-देवता या भूतों का संचार ज्यादातर स्त्रियों में ही होता है, ऐसा क्यों? पुनर्जन्म की सच्चाई क्या है? मृतात्मा का आह्वान क्या बला है? और ज्योतिष जिस पर तर्कपरायण लोग भी विश्वास करते पाए जाते हैं, वह क्या है?
‘अंधविश्वास उन्मूलन आन्दोलन’ के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर की यह किताब इन सभी सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर देती है। प्रश्नोत्तर शैली में तैयार इस पुस्तक में उन प्रश्नों को संकलित किया गया है, जो साधारण लोगों ने अलग-अलग संवाद शिविरों और व्याख्यान-सत्रों के दौरान प्रस्तुत किए। उन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में यह पुस्तक तैयार हुई इसमें हमें अंधविश्वासों के कारण और निवारण, दोनों प्राप्त होते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Antas
‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है।
मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच…एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, उपन्यास
Antim Aranya
अन्तिम अरण्य यह जानने के लिए भी पढ़ा जा सकता है कि बाहर से एक कालक्रम में बँधा होने पर भी उपन्यास की अन्दरूनी संरचना उस कालक्रम से निरूपित नहीं है। अन्तिम अरण्य का उपन्यास-रूप न केवल काल से निरूपित है, बल्कि वह स्वयं काल को दिक् में-स्पेस में-रूपान्तरित करता है। उनका फॉर्म स्मृति में से अपना आकार ग्रहण करता है- उस स्मृति से जो किसी कालक्रम से बँधी नहीं है, जिसमें सभी कुछ एक साथ है -अज्ञेय से शब्द उधार लेकर कहें तो जिसमें सभी चीज़ो का ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ है। यह ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ क्या काल को दिक् में बदल देना नहीं है?… यह प्राचीन भारतीय कथाशैली का एक नया रूपान्तर है। लगभग हर अध्याय अपने में एक स्वतन्त्र कहानी पढ़ने का अनुभव देता है और साथ ही उपन्यास की अन्दरूनी संरचना में वह अपने से पूर्व के अध्याय से निकलता और आगामी अध्याय को अपने में से निकालता दिखाई देता है। एक ऐसी संरचना जहाँ प्रत्येक स्मृति अपने में स्वायत्त भी है और एक स्मृतिलोक का हिस्सा भी। यह रूपान्तर औपचारिक नहीं है और सीधे पहचान में नहीं आता क्योंकि यहाँ किसी प्राचीन युक्ति का दोहराव नहीं है। भारतीय कालबोध-सभी कालों और भुवनों की समवर्तिता के बोध-के पीछे की भावदृष्टि यहाँ सक्रिय है। -नन्दकिशोर आचार्य
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
AULESYA TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की ‘ओलेस्या तथा अन्य कहानियाँ’ पुस्तक की कथा जंगल में रहने वाली एक समाज-बहिष्कृत सुंदर लड़की और उसकी दादी की है,जिन्हें गाँव वाले डायनें समझते हैं। कथानक उस अल्प- परिचित, अलप-उद्घघाटित विषय का है, जिस पर आज भी बहुत कम सहीतियक रचनाएँ सारे यूरोप- अमेरिका में मिलती हैं। कुप्रीन, और चेखव की ही परंपरा में,रूसी साहित्य के उस स्वर्ण-काल के लेखक हैं जिनके पास समाज के हर तबके के पात्र के लिए के अचूक अंतर्दृष्टि थी।
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Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Aur Jamana Badal Gaya
Jamana Badal gaya series-4
भारत के विषय में भी हमारा कहना यही है। सन् 1857 से लेकर 1947 तक के सतत संघर्ष से हमने भारत से अंग्रेजो को निकाल दिया, परन्तु इसे निकालने के प्रयास में हमने भारत की आत्मा की हत्या कर दी है। हमने अंग्रेजों को निकाल कर अपनी गर्दन नास्तिक अभारतीयों और मूर्खों के हाथ में दे दी है। जहाँ देश के दोनों द्वार भारत विरोधियों (पाकिस्तानियों) के हाथ में दे दिये हैं, वहाँ भारत का राज्य ऐसे नेताओं के हाथ में सौंप दिया है, जो धर्म-कर्म विहीन हैं और कम्यूनिस्टों के पद-चिह्नों पर चलने लगे हैं।
द्वितीय विश्व-व्यापी युद्ध का इतिहास लिखने वाले एक विज्ञ लेखक ने लिखा है कि वह युद्घ तो जीत लिया गया था, परन्तु शान्ति के मूल्य पर उसके शब्द हैं-‘We won war but lost peace’। उस लेखक ने इसका कारण भी बताया है। उसके कथन का अभिप्राय यह है कि मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं ने और जनता ने तो अतुल साहस और शौर्य का प्रमाण दिया था, परन्तु युद्ध-संचालन करने वाले राजनीतिज्ञ भूल-पर-भूल करते रहे। उनकी भूलों ने हिटलर को हटाकर, उसके स्थान पर स्टालिन को स्थापित कर दिया।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Aur Panchhi Ud Gaya
यशस्वी साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की बहुप्रतीक्षित आत्मकथा…साथ ही पूरी एक सदी के साहित्यिक जीवन तथा समाज और देश का चारों ओर दृष्टि डालता आईना और दस्तावेज़। विष्णु प्रभाकर अपने सुदीर्घ जीवन में साहित्य के अतिरिक्त सामाजिक नवोदय तथा स्वतंत्रता-संग्राम से भी पूरी अंतरंगता से जुड़े रहे-रंगमंच, रेडियो तथा दूरदर्शन सभी में वे आरंभ से ही सक्रिय रहे। शरत्चन्द्र चटर्जी के जीवन पर लिखी उनकी बहुप्रशंसित कृति ‘आवारा मसीहा’ की तरह यह भी अपने ढंग की विशिष्ट रचना है। यह आत्मकथा तीन खंडों में प्रकाशित है : पंखहीन (प्रथम खंड), मुक्त गगन में (द्वितीय खंड), और पंछी उड़ गया (तृतीय खंड)
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Rajpal and Sons, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Awara Masiha
मूल हिन्दी में प्रकाशन के समय से ‘आवारा मसीहा’ तथा उसके लेखक विष्णु प्रभाकर न केवल अनेक पुरस्कारों तथा सम्मानों से विभूषित किए जा चुके हैं, अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और हो रहा है। ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ तथा ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’ के अतिरिक्त बंग साहित्य सम्मेलन तथा कलकत्ता की शरत् समिति द्वारा प्रदत्त ‘शरत् मेडल’, उ.प्र. हिन्दी संस्थान, महाराष्ट्र तथा हरियाणा की साहित्य अकादमियों और अन्य संस्थाओं द्वारा उन्हें हार्दिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। अंग्रेज़ी, बंगला, मलयालम, पंजाबी, सिन्धी और उर्दू में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथा तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। शरतचन्द्र भारत के सर्वप्रिय उपन्यासकार थे जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएँ लाँघकर सच्चे मायनों में अखिल भारतीय हो गया। उन्हें बंगाल में जितनी ख्याति और लोकप्रियता मिली, उतनी ही हिन्दी में तथा गुजराती, मलयालम तथा अन्य भाषाओं में भी मिली। उनकी रचनाएं तथा रचनाओं के पात्र देश-भर की जनता के मानो जीवन के अंग बन गए। इन रचनाओं और पात्रों की विशिष्टता के कारण लेखक के अपने जीवन में भी पाठक की अपार रुचि उत्पन्न हुई परन्तु अब तक कोई भी ऐसी सर्वांगसम्पूर्ण कृति नहीं आई थी जो इस विषय पर सही और अधिकृत प्रकाश डाल सके। इस पुस्तक में शरत् के जीवन से संबंधित अन्तरंग और दुर्लभ चित्रों के सोलह पृष्ठ भी हैं जिनसे इसकी उपयोगिता और बढ़ गई है। बंगला में भी यद्यपि शरत् के जीवन पर, उसके विभिन्न पक्षों पर बीसियों छोटी-बड़ी कृतियां प्रकाशित हुईं, परन्तु ऐसी समग्र रचना कोई भी प्रकाशित नहीं हुई थी। यह गौरव पहली बार हिन्दी में लिखी इस कृति को प्राप्त हुआ है।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Azad Bachpan Ki Ore
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Azad Bachpan Ki Ore
अस्सी के दशक के बाद से विगत कुछ वर्षों तक लिखे गए मेरे लेखों ने बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार, बाल दासता, यौन उत्पीड़न, अशिक्षा आदि विषयों को सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधार दिया। जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये बच्चों के अधिकारों से संबंधित विषयों पर लिखे गए सबसे शुरुआती लेख हैं। मैं आपको विनम्रतापूर्वक बताना चाहूँगा कि ये लेख ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जिन्होंने भारत में ही नहीं, दुनिया भर में बाल अधिकारों के आंदोलन को जन्म दिया। साधारण लोगों से लेकर बुद्धिजीवियों, कानून निर्माताओं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हलचल पैदा की। मैंने पैंतीस सालों में इन्हीं विचारों की ताकत को संगठनों व संस्थाओं के निर्माणों, सरकारी महकमों के गहन शोध प्रबंधों, br>
‘कॉरपोरेट जगत् की नीतियों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सरकारी बजटों में परिवर्तित होते देखा है। —br>—कैलाश सत्यार्थी.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Azad Hind Fauz
‘आजाद हिंद फौज’ आज भी लाखों भारतवासियों के दिलों में अपना स्थान बनाए हुए है। आजाद हिंद फौज ने सन् 1944 में अंग्रेजों से आमने-सामने युद्ध किया और कोहिमा, पलेल आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 22 सितंबर, 1944 को ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ किंतु दुर्भाग्यवश द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलटा और जर्मनी ने हार मान ली, साथ ही जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में इन देशों ने आजाद हिंद फौज की मदद करने से इनकार कर दिया। इसी समय अंग्रेजों ने नेताजी पर नकेल कसने की रणनीति बनाई। इस वजह से नेताजी को टोक्यो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आजाद हिंद फौज भारत के गौरवशाली और क्रांतिकारी इतिहास को सुनहरे अक्षरों में कैद किए हुए है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के सच्चे इतिहास से रूबरू कराती है यह पुस्तक। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन और राष्ट्रभक्त हुतात्माओं के बलिदान की प्रेरणागाथा बताती अत्यंत पठनीय पुस्तक।.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Azadi Ke Aranya Senani
“आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक अरण्य नायकों की गौरव-गाथा का स्मरण है। इसमें भारत के जनजातीय समुदायों के सत्रह स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और उनके बलिदान की कहानी है। वनों, बीहड़ों, पर्वतों और वनांचलों में बसनेवाले सामान्य ग्रामवासी किस तरह अपने समाज और भारत की आजादी के लिए आगे बढ़े, शक्तिशाली ब्रिटिश राज से टक्कर ली और अपना उत्सर्ग किया। इस पुस्तक में स्वातंत्र्यचेता अरण्य सेनानियों के संघर्ष को स्वर दिया गया है। आजादी के ये सत्रह मतवाले भारत के विभिन्न प्रांतों से हैं। इनकी जनजातियाँ भिन्न हैं। इनकी पृष्ठभूमि और संस्कृतियाँ अलग-अलग हैं, फिर भी आजादी की उत्कट अभिलाषा इन सबके हृदय में समान रूप से करवटें लेती है। यह पुस्तक इन्हीं अभिलाषाओं का प्रतिरूपण है।
‘आजादी के अरण्य सेनानी’ पुस्तक की यह विशेषता है कि इसे शुष्क इतिहास की तरह नहीं बल्कि एक भावात्मक गाथा की तरह लिखा गया है। ऐसी गाथा, जो पाठकों के मन में इन बलिदानियों का चित्र खींच देती है और उनके भीतर राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय अस्मिता का अनहद नाद गूँजने लगता है।
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में इस पुस्तक का प्रणयन आजादी की लड़ाई में भारत की जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की भूमिका को सशक्त एवं प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का संकल्प लेकर किया गया है। यह पुस्तक तत्संबंधी संकल्प की प्रस्तुति है।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Azadi Ki Khoj
आज़ादी इन्सान का सबसे बड़ा सपना रही है। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं? आज़ादी और ज़िम्मेदारी का सह-संबंध क्या है? जो कुछ हमने जाना है, अनुभव किया है, जो धारणाएं हमने संजो रखी हैं, जो शास्त्र-प्रमाण हमने अपने भीतर गढ़ लिए हैं, क्या उस सबसे आज़ाद हुए बिना सृजन संभव है? ‘आज़ादी की खोज’ इन्हीं प्रश्नों की व्यापक विमर्श-यात्रा है। जे. कृष्णमूर्ति आज़ादी की अर्थवत्ता को नए आयाम देते हैं, और उसे हमारे दैनिक जीवन से जोड़ देते हैं। तब यह यात्रा केवल बुद्धिविलास बन कर नहीं रह जाती, प्रायोगिक धर्म बन जाती है जिसे हर कदम पर आज़माया जा सकता है, आज़माया जाना चाहिए।
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bachpan
बचपन टॉलस्टॉय का आत्मकथात्मक लघु उपन्यास है, जो उन्होंने सन् 1852 में लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में लिखा था। एक दस वर्ष के बाल-नायक के ज़रिये इसमें न केवल उन्होंने बचपन के भोलेपन को, उसकी अविश्वसनीय सादगी की नाटकीयता को छुआ है, उन रहस्यों की ओर भी इशारा किया है, जो वय-संधि की देहरी पर खड़े हर बाल-मन को अपनी ओर बरबस खींचते हैं। बचपन का यह परिवेश इसलिए भी अलौकिक है कि इसे टॉलस्टॉय जैसे मर्मज्ञ ने छुआ है। सन् 1955 के आसपास इसका अनुवाद निर्मल वर्मा ने किया था, छद्म नाम से, अपने मित्र जगदीश स्वामीनाथन के लिए, जो उन दिनों पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस में काम करते थे। यह राज़ निर्मल जी ने स्वयं ही अपने मित्रों को बताया था।
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Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Badal Raha Hai Jamana
Jamana Badal gaya series-3
भारत के विषय में भी हमारा कहना यही है। सन् 1857 से लेकर 1947 तक के सतत संघर्ष से हमने भारत से अंग्रेजो को निकाल दिया, परन्तु इसे निकालने के प्रयास में हमने भारत की आत्मा की हत्या कर दी है। हमने अंग्रेजों को निकाल कर अपनी गर्दन नास्तिक अभारतीयों और मूर्खों के हाथ में दे दी है। जहाँ देश के दोनों द्वार भारत विरोधियों (पाकिस्तानियों) के हाथ में दे दिये हैं, वहाँ भारत का राज्य ऐसे नेताओं के हाथ में सौंप दिया है, जो धर्म-कर्म विहीन हैं और कम्यूनिस्टों के पद-चिह्नों पर चलने लगे हैं।
द्वितीय विश्व-व्यापी युद्ध का इतिहास लिखने वाले एक विज्ञ लेखक ने लिखा है कि वह युद्घ तो जीत लिया गया था, परन्तु शान्ति के मूल्य पर उसके शब्द हैं-‘We won war but lost peace’। उस लेखक ने इसका कारण भी बताया है। उसके कथन का अभिप्राय यह है कि मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं ने और जनता ने तो अतुल साहस और शौर्य का प्रमाण दिया था, परन्तु युद्ध-संचालन करने वाले राजनीतिज्ञ भूल-पर-भूल करते रहे। उनकी भूलों ने हिटलर को हटाकर, उसके स्थान पर स्टालिन को स्थापित कर दिया।SKU: n/a -
Hindi Sahitya Sadan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Badalte Jamane Ka Aagaaz
Jamana Badal gaya series-2
इस उपन्यास के प्रथम भाग की भूमिका में हमने संक्षिप्त रूप में यह बताने का यत्न किया था कि भारत की दासता का कारण एक ओर तो बौद्ध-जैन मीमांसा तथा दूसरी ओर नवीन वेदान्त है। जहाँ बौद्ध-जैन मतावलम्बी भारत के जन-मानस को वेदों से पृथक् करने के लिए यत्नशील रहे, वहाँ नवीन वेदान्तियों ने जन-मानस को वेदों से दूर तो नहीं किया, परन्तु वेदों को जन-मानस से दूर कर दिया। हमारा अभिप्राय यह है कि वेदों के स्थान पर उपनिषद और गीता को लाकर प्रतिष्ठित कर दिया। यह एक विडम्बना-सी प्रतीत होती है कि स्वामी शंकराचार्यजी ने अपने प्रस्थानत्रयी के भाष्य में अनेक स्थलों पर वेद-संहिताओं को कर्मकाण्ड की पुस्तकें कह कर उन्हें केवल अज्ञानियों के लिए स्वर्गारोहण के निमित्त बताया है। परन्तु किसी भी स्थल पर संहिताओं का प्रमाण नहीं दिया। एक ढंग से चारों वेदों को, जिनका नव-संकलन श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यासजी ने किया था, उन्होंने अनादर की वस्तु बना कर केवल उपनिषदों को ही परम ज्ञान की वस्तु सिद्ध करने का ही प्रयास किया है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Badi Begum | बड़ी बेगम
आचार्य चतुरसेन हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं जिन्होंने सैकड़ों कहानियाँ और कई चर्चित उपन्यास लिखे हैं। उनका रचनात्मक फलक बहुत विशाल था जिसमें उन्होंने धर्म, राजनीति, समाजशास्त्र, स्वास्थ्य और चिकित्सा आदि विषयों पर लिखा। उनकी 150 से अधिक प्रकाशित रचनाएँ हैं जो अपने में एक कीर्तिमान है। ऐतिहासिक उपन्यासों के लेखक के रूप में उनकी विशेष प्रतिष्ठा है। बड़ी बेगम की कई कहानियों में भी मुगलकाल के इतिहास की झलक मिलती है। उनकी पहली कहानी ‘सच्चा गहना’, जो इस पुस्तक में भी सम्मिलित है, उस समय की लोकप्रिय मासिक पत्रिका गृहलक्ष्मी में 1917-1918 में प्रकाशित हुई थी। उनकी बहुआयामी प्रतिभा और भाषा पर पकड़ उनके लेखन को विशेष पहचान देती है।
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