Aparwad (Tippani Anuwad Sahit)
अपरवाद (टिप्पणनुवादसाहित)
पण्डित मधुसूदन ओझा ग्रन्थमाला – 3
Aparwad (Tippani Anuwad Sahit)
अपरवाद (टिप्पणनुवादसाहित)
पण्डित मधुसूदन ओझा ग्रन्थमाला – 3
Weight | .289 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
Author : Madhusudan Ojha, Ganeshilal Suthar
Language : Sanskrit, Hindi
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पुस्तक के बारे मै
पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद पनपने के बाद पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक हिंसा से पूरी तरह परिचित कराती पहली पुस्तक। 1967 में किसानों के आंदोलन, उद्योगों में बंद और हड़ताल, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में बमों के धमाके तथा रिवाल्वरों से निकलती गोलियों के साथ अराजकता भरे आंदोलनों की जानकारी। 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दमनचक्र के बाद 1977 में वाम मोर्चे की सरकार के गठन के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तृत विवरण। माकपा ने त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू करने के बाद किस तरह राजनीतिक हिंसा के सहारे सत्ता पर पकड़ बनाए रखी। 1978 से 2018 तक हुए नौ पंचायत चुनावों के दौरान हत्याओं और हिंसा का पूरी जानकारी के साथ 2013 और 2018 में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस द्वारा पंचायत चुनाव में वोटों की खूनी लूट का पुस्तक में खुलासा किया गया है।
अनंत विजय की पुस्तक का शीर्षक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ एक बार पाठक को चौंकाएगा। क्षणभर के लिए उसे ठिठक कर यह सोचने पर विवश करेगा कि कहीं यह पुस्तक मार्क्सवादी आलोचना अथवा मार्क्सवादी सिद्धान्तों की कोई विवेचना या उसकी कोई पुनव्र्याख्या स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है। मगर पुस्तक में जैसे-जैसे पाठक प्रवेश करता जायेगा उसका भ्रम दूर होता चला जायेगा। अन्त तक आते-आते यह भ्रम उस विश्वास में तब्दील हो जायेगा कि मार्क्सवाद की आड़ में इन दिनों कैसे आपसी हित व स्वार्थ के टकराहटों के चलते व्यक्ति विचारों से ऊपर हो जाता है। कैसे व्यक्तिवादी अन्तर्द्वन्द्वों और दुचित्तेपन के कारण एक मार्क्सवादी का आचरण बदल जाता है। पिछले लगभग एक दशक में मार्क्सवाद से। हिन्दी पट्टी का मोहभंग हुआ है और निजी टकराहटों के चलते मार्क्सवादी बेनकाब हुए हैं, अनंत विजय ने सूक्ष्मता से उन कारकों का विश्लेषण किया है, जिसने मार्क्सवादियों को ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल हो गया है कि विचारधारा बड़ी है या व्यक्ति। व्यक्तिवाद के बहाने अनंत विजय ने मार्क्सवाद के ऊपर जम गयी उस गर्द को हटाने और उसे समझने का प्रयास किया है। ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य’ दरअसल व्यक्तिवादी कुण्ठा और वैचारिक दम्भ को सामने लाता है, जो प्रतिबद्धता की आड़ में सामन्ती, जातिवादी और बुर्जुआ मानसिकता को मज़बूत करता है। आज मार्क्सवाद को उसके अनुयायियों ने जिस तरह से वैचारिक लबादे में छटपटाने को मजबूर कर दिया है, यह पुस्तक उसी निर्मम सत्य को सामने लाती है।
पुस्तक में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले, मतदान के दौरान और मतदान के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तार से वर्णन किया गया है। 2019 में राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों और घायलों के उदाहरण रक्तरंजित बंगाल के प्रमाण दे रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में आतंक फैलाने के लिए कैसे जगह-जगह घरों को फूंका गया। राजनीतिक संघर्ष को लेकर हुई बमबाजी और गोलीबारी से शहर और गांवों के लोग कैसे पूरे साल दहलते रहे। बढ़ती राजनीतिक हिंसा के साथ ही पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता जनाधार, वामदलों के साथ कांग्रेस का सिमटता आधार और तृणमूल कांग्रेस की वोटों के लिए तुष्टीकरण नीति का गहराई से आकलन किया गया है। राजनीति में अवैध हथियारों और काला धन के बढ़ते प्रभाव को उजागर किया गया है। राजनीति चमकाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार, राज्यपालों, चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों पर हमलों का सटीक विश्लेषण।
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