Vani Prakashan
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Vani Prakashan, उपन्यास
PRITHWIVALLABHA
प्रख्यात गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी रचित ‘पृथ्वीवल्लभ’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका समय दसवीं सदी ईस्वी का अन्तिम दशक-994 ई.-है। यह वह समय है जब आन्ध्र प्रदेश के मान्यखेट को केन्द्र बनाकर चालुक्यवंशी तैलप अपना विशाल साम्राज्य खड़ा करने के लिए जी-जान से जुटा था और इधर ‘पृथ्वीवल्लभ’ के विरुद से विभूषित परमारवंशी मुंज अवंती को केन्द्र बनाकर मालव साम्राज्य खड़ा करने के लिए प्रयत्नशील था। स्वाभाविक ही दोनों सामन्तों का टकराव होना था और वह हुआ। तैलप की समस्या यह थी कि चोल, चेदि, पांचाल और राष्ट्रकूट राजाओं को अपने अधीन करके तथा गुजरात तक साम्राज्य विस्तार करके भी वह मालवराज मुंज को दबा नहीं पा रहा था। सोलह बार उसे मुंज से पराजित होना पड़ा था। किन्तु सत्रहवीं बार?…इतिहास में किसी ‘किन्तु का कोई सीधा उत्तर नहीं होता। युद्धक्षेत्रों, राजमार्गों, कारागारों, सुरंगों के रास्ते महत्वाकांक्षाएँ परस्पर टकराती हैं, दुरभिसंधियाँ, प्रतिशोध, प्रेम और घृणा जैसी मानवीय प्रवृत्तियाँ अपने विविध रूप दिखाती हैं। कभी प्रेम की विजय होती है और कभी घृणा से आवेष्ठित महत्वाकांक्षा की। इतिहास चक्र इसी तरह गतिमान रहता है। कलेवर में छोटा दिखते हुए भी प्रस्तुत उपन्यास ‘पृथ्वीवल्लभ’ नानारूप मानवचरित्रों और स्वभाव-छवियों को उनकी सम्पूर्ण सम्भावनाओं के साथ प्रस्तुत करता हुआ एक अद्भुत-रोमांचक इतिहास रस की सृष्टि करता है। पृथ्वीवल्लभ’ की लोकप्रियता से प्रेरित होकर, अपने समय के मशहूर फ़िल्मकार सोहराब मोदी ने, 1950 के आसपास, इस पर आधारित इसी नाम से एक फ़िल्म बनाई थी।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan, उपन्यास
Priya Taslima Nasrin
धार्मिक कट्टरपंथियों के आंदोलन, हत्या की धमकी और सरकारी गिरफ्तारी के आदेश से विवश होकर तसलीमा नसरीन को भूमिगत होने के लिए देश छोड़ना पड़ा। प्रतिक्रियाशील संगठनों के आंदोलनों के साथ-साथ दुनिया के प्रगतिवादी खेमों में एक और आंदोलन का सूत्रपात हुआ। तसलीमा नसरीन के समर्थन में विभिन्न देशों के विभिन्न भाषाओं के लेखकों ने ‘प्रिय तसलीमा नसरीन’ शीर्षक से पत्र-पत्रिकाओं में खुली चिट्ठी लिखना शुरू किया। कट्टरपंथियों के विरोध में लिखी गयी विचारोत्तेजक चिट्ठियों में से चुनी गयी चिट्ठियों का यह संकलन-प्रिय तसलीमा नसरीन !
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
R.U.R
आर यू आर यानी रोसुम युनिवर्सल रोबोज़। कारेल चापेक द्वारा सन् 1920 में लिखे गये इस नाटक में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया। एक ऐसा यन्त्र मानव-गुलाम या दास, जो मनुष्य को उसके सब बोझिल कामों से छुटकारा दिला दे। चापेक ने यह शब्द गढ़ा चेक भाषा के शब्द रोबोटा से, जिसका अर्थ है, बेगार या बंधुआ मज़दूरों से कराया गया काम। सन् 1920 में लिखे इस नाटक में कारेल चापेक ने, जब वैज्ञानिकों को रोबोट बनाने का विचार भी नहीं आया था, कल्पना की थी कि एक फ़ैक्टरी ने रोबोट बनाने की विधि ईजाद कर ली है, उसके पास जल्दी ही हज़ारों-लाखों में दुनिया भर से ऑर्डर आने लगे हैं, और फिर रोबोट इतने बढ़ जाते हैं और बलशाली हो जाते हैं कि एक दिन मानवता के खिलाफ़ विद्रोह करके पूरी मानव जाति को ही नष्ट कर देते हैं। इस नाटक का मूल चेक भाषा से हिन्दी अनुवाद निर्मल वर्मा ने अपने चेकोस्लोवाकिया प्रवास (1959-1968) से लौट कर किया था। सन 1972 में यह अनुवाद- आर यू आर- पहली बार साहित्य अकादमी के तत्त्वाधान में प्रकाशित हुआ था।
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Vani Prakashan, उपन्यास
RAJADHIRAJ
‘गुजरात गाथा’ उपन्यास-शृंखला की अन्तिम कड़ी है ‘राजाधिराज’ । 942 ई. में जिस गुर्जर सोलंकी राजवंश की नींव मूलराज सोलंकी ने रखी थी उसे अखण्ड चक्रवर्ती साम्राज्य का पद मिला सन् 1111 में छठवीं पीढ़ी के इतिहास नायक सिद्धराज जयसिंह देव के हाथों। अपने पिता कर्णदेव के निधनोपरान्त जयसिंह सन् 1094 में जब राज्य सिंहासन पर आसीन हुए तब उनकी उम्र थी मात्र 16 वर्ष और शासन की स्थिति बहुत सुदृढ़ नहीं थी। अवंती के मालवराज तो सिर पर सवार ही थे, पाटन के बाहर गुजरात में भी छोटे-छोटे अनेक राजवंश विद्रोही तेवर अपनाये हुए थे। उस सबसे पार पाना आसान नहीं था। किन्तु जयसिंह ने राजमाता मीनल और महामाता मुंजाल के संरक्षण व कुशल मार्गदर्शन में न केवल सभी बाधाओं पर विजय पाई, बल्कि सम्पूर्ण गुजरात को एकसूत्र में बाँधने के साथ-साथ मालव और अजमेर को भी अपनी अधीनता में आने को बाध्य किया। और यह सब मात्र 14 वर्ष की अवधि में। और संवत् 1169 (ई. सन् 1111) की आषाढ़ सुदी प्रतिपदा के शुभ दिन परमभट्टारक महाराजाधिराज जयसिंहदेव वर्मा ने सोमनाथ भगवान के मन्दिर पर कलश चढ़ाया, ‘त्रिभुवन-गंड’ की पदवी धारण की और ‘सिंह’ संवत्सर स्थापित हुआ। ‘राजाधिराज’ इस समग्र अभियान के समापन वर्ष का घटनाबहुल अवलोकन है, जिसमें इतिहास और कल्पना को परस्पर इस तरह गूंथा गया है कि मानव-स्वभाव के, गुणात्मक-ऋणात्मक, सभी रूप साकार होकर पाठकों के मन आलोड़ित कर उठते हैं। इतिहास और संस्कृति के परम विद्वान और महान साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने गुजरात के मध्यकालीन इतिहास का सबसे स्वर्णिम अध्याय ‘राजाधिराज’ में रूपायित किया है।
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Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Rang Parampara
अत्यन्त समृद्ध नाट्य-परंपरा और सक्रिय आधुनिक नाट्य स्थिति के बावजूद न सिर्फ़ हिन्दी बल्कि भारत की किसी भी भाषा में समकक्ष रंगालोचना विकसित नहीं हो पायी है। नये रंगविचार की रोशनी में अपनी रंग परम्परा को खोजने और उसके पुनराविष्कार के अनेक प्रयत्न रंगमंच पर हुए हैं और उन्हें अपनी परम्परा में अवस्थित कर आलोचनात्मक दृष्टि से समझने की कोशिश कम ही हो पायी है। वरिष्ठ साहित्यकार नेमिचन्द्र जैन पिछली लगभग अर्द्धशती से हिन्दी और समूचे भारतीय रंगमंच के सजग और प्रबुद्ध दर्शक और समीक्षक रहे हैं। हिन्दी में तो उन्हें रंग समीक्षा का स्थपति ही माना जाता है। उनमें परम्परा, उसके पुनराविष्कार और उसके रंगविस्तार की गहरी समझ और उसकी बुनियादी उलझनों की सच्ची पकड़ है। उन्होंने आलोचना की एक रंगभाषा खोजी और स्थापित की है। उसी रंगभाषा और उसमें समाहित एक गतिशील और आधुनिक रंगदृष्टि से उन्होंने हमारी रंग परम्परा का गहन विश्लेषण किया है। दृष्टि का ऐसा खुलापन, समझ का ऐसा चौकन्ना सयानापन और समग्रता का ऐसा आग्रह हिन्दी में ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है। अगर पिछले पचास वर्ष के भारतीय रंगमंच को, उसकी बेचैनी और जिजीविषा को, उसकी सीमाओं और सम्भावनाओं को, उसकी शक्ति और विफलता को समझना हो तो यह पुस्तक एक अनिवार्य सन्दर्भ है। सबके लिए, फिर वह दर्शक हो, या रंगकर्मी, नाटककार या समीक्षक।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RATN KANGAN TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की रत्न-कंगन तथा अन्य कहानियाँ की शीर्षक-कथा रत्न-कंगन एकतरफ़ा प्रेम का मार्मिक आख्यान है, जिस पर 1965 में सोवियत संघ में एक फ़िल्म भी बनी थी। इस अभिशप्त कहानी के केंद्र में एक राजसी महिला से एकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया एक साधारण क्लर्क है। जानी-पहचानी सामाजिक स्थिति, जिसमें क्लर्क हास्यास्पद है और राजसी परिवार के हर सदस्य को उसका उपहास उड़ाने का अधिकार है, देखते-देखते उदात्त प्रेम पर लंबे चिंतन के आख्यान में बदल जाती है। अपनी अनेक कहानियों में कुप्रीन ने प्रेम के इस सामाजिक पक्ष – आर्थिक ऊँच-नीच – को बड़ी संवेदनशीलता से छुआ है और हालाँकि लगभग हमेशा ही उनके कथानक में समाज की, बलवान की जीत होती है, यह जीत हमेशा के लिए प्रश्नांकित होने से नहीं बचती। पाठकों के लिए यह तथ्य रोचक होगा कि 1954 में जब युवा लेखक निर्मल वर्मा ने इन कहानियों का अनुवाद किया था, तो उनका अपना देश भी स्वतंत्रता के बाद एक संक्रमण-काल के सम्मुख नियति की पहचान कर रहा था।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
Reminiscence of Ram Rajya in Mordern Law
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)Reminiscence of Ram Rajya in Mordern Law
The purpose of writing the present book is to find out and indicate the righteous conduct or law in Ram Rajya during the period of Shri Ram in modern jurisprudence. A number of statutory provisions, opinions of sociologists, judgments of Supreme Court of India and passages from the articles of western jurists referred to in the present book go a long way to establish the fact that whatever the modern world possesses at present is the off-shoot of ‘Ram Rajya’, at play not only in this country but all over the world. Culture, civilisation and equal treatment in Ram Rajya were superb and were at its highest pinnacle. Deceits or lies seems to not existed in civilized society. Truth was the foundation of Ram Rajya. To exemplify, when a Brahmin beggar hurt the dog, he fearlessly appeared and confessed his guilt fearlessly before King Ram leaving it open to Shri Ram to award any punishment he deserves, includes death penalty. Study of life history of Rama by Balmiki, Raghuvansh by Kalidas, Ramayan by Kamban, Ramcharit Manas by Tulsidas and bunch of other authors indicates that law or righteousness was propped up by conduct & fairness. When Sita, the paragon of virtue, says that there are three formidably dangerous evils towards the observance of Dharma or righteous conduct i.e. uttering a falsehood (speaking a lie), desiring to possess the wife of another man (molestation, rape and concubine, etc.) and hurting someone without offending anyone is not righteous in any manner, it does not seem to have relation with the religion as understood today. It was purely undesirable human conduct in tune with today’s principle that no one should be punished without commission of crime and without providing an opportunity to defend for the crime committed.
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Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rigveda : Parichaya(PB)
Religious & Spiritual Literature, Vani Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRigveda : Parichaya(PB)
ऋग्वेद आदिम मानव सभ्यता के बाद का विकास है। लेकिन इसमें तत्कालीन सभ्यता के पहले के भी संकेत हैं। ऋग्वेद में इतिहास है, ऋग्वेद इतिहास है। प्राचीनतम काव्य है। प्राचीनतम दर्शन है। प्राचीनतम विज्ञान है। इसमें प्राचीनतम कला और रस-लालित्य है। प्राचीनतम सौन्दर्यबोध भी है। अतिरिक्त जिज्ञासा है। सुख आनन्द की प्यास है। ऋग्वेद में भरापूरा इहलोकवाद है और आध्यात्मिक लोकतन्त्र भी है। भारत के आस्तिक मन में यह ईश्वरीय वाणी है और अपौरुषेय है। वेद वचन अकाट्य कहे जाते हैं। अन्य विश्वासों की तरह यहाँ ईश्वर के अविश्वासी नास्तिक नहीं हैं। नास्तिक-आस्तिक के भेद वेद विश्वासअविश्वास से जुड़े हैं। जो वेद वचनों के निन्दक हैं, वे नास्तिक हैं। वेद वचनों को स्वीकार करने वाले आस्तिक हैं। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। विश्व मानवता का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख है। प्रायः इसे रहस्यपूर्ण भी बताया जाता है। इसके इतिहास पक्ष की चर्चा कम होती है। इसका मूल कारण इतिहास की यूरोपीय दृष्टि है। भारत में इतिहास संकलन की पद्धति यूरोप से भिन्न है। स्थापित यूरोपीय दृष्टि से भिन्न दृष्टि काल मार्क्स ने भी अपनायी थी। इस दृष्टि से ऋग्वेद का विवेचन भारतीय मार्क्सवादी विद्वानों ने भी किया है। ऋग्वेद साढ़े दस हज़ार मन्त्रों वाला विशालकाय ग्रन्थ है। आधुनिक अन्तर्ताना-इंटरनेट तकनीकी से बेशक इसकी सुलभता आसान हुई है लेकिन इसका सम्पूर्ण अध्ययन परिश्रम साध्य है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
ROMEO JULIET AUR ANDHERA
द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में किशोर वय के प्रेमियों की कोमल-करुणहाथा शुरू होती है, जिसमे ईसाई लड़का एक यहूदी लड़की को अपने पढ़ने की कोठरी में छिपा देता है,ताकि वह कन्संट्रेशन केंप भेजे जाने से बच जाए। धीरे-धीरे कोठरी के बाहर का जीवन कोठरी के भीतर के जीवन से इतना घुल-मिल जाते हैं। कि एक ही प्रश्न बचा रहता है- स्वतन्त्रता क्या है? पृथ्वी पर जीवन कि मनी क्या है? प्रेम कि यात्रा को रोचक ढंग से पेश करता ये उपन्यास पाठक को कई ऐसे रंग दिखाता चलता है जो उसने पहले कभी देखे नहीं होंगे।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Sagar-Manthan
नरेन्द्र कोहली
इस उपन्यास का नाम कुछ पौराणिक-सा लगता है किन्तु यह तनिक भी पौराणिक नहीं है। यह नरेन्द्र कोहली का पहला उपन्यास है, जो समकालीन है और विदेशी धरती पर लिखा गया है। विदेशी धरती ही नहीं, इसमें अनेक महाद्वीपों के लोगों के परस्पर गुँथे होने और एक नया संसार गढ़ने की कथा है। परिणामतः उनके हृदय में और परस्पर सम्बन्धों में अनेक विरोध भी हैं और अनेक विडम्बनाएँ भी। जहाँ इतिहास है, वहाँ उस ऐतिहासिक काल की कड़वाहट भी है, जिसे न आप भूल सकते हैं, न उसके कारणों को दूर कर सकते हैं। जहाँ वर्तमान है, वहाँ अपने मूल देश के प्रति प्रेम भी है और छिद्रान्वेषण भी। न स्वयं को अपने देश से असम्पृक्त कर सकते हैं और न उसको उसकी त्रुटियों के साथ स्वीकार कर सकते हैं। न देश के अपने हो पाये, न पराये। न उसे स्वीकार कर पाये, न अस्वीकार। इसके चरित्र व्यक्ति नहीं हैं, वे प्रवृत्तियाँ हैं, जो अभी स्थिर नहीं हो पायी हैं। वे परिवर्तन की चक्की में पिस रहे हैं और अपने वास्तविक रूप को जानने का प्रयत्न कर रहे हैं। अपने देश को स्मरण भी करते हैं और उसे भूल भी जाना चाहते हैं। जिनके प्रति प्रेम है, उन्हें भूलना चाहते हैं; और जिन्हें प्रेम नहीं करते, उन्हें अपनाना चाहते हैं। उनसे मिलना भी चाहते हैं और उनसे दूर भी रहना चाहते हैं। कुल मिलाकर यह परिवर्तन और नये निर्माण की कथा है। कहा नहीं जा सकता कि वह नया निर्माण कैसा होगा।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sahitya Ka Aatm-Satya
हिन्दी के अग्रणी रचनाकार के साथ-साथ देश के समकालीन श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में गिने जानेवाले निर्मल वर्मा ने जहाँ हिन्दी को एक नयी कथाभाषा दी है वहीं एक नवीन चिन्तन भाषा के विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनका साहित्य और चिन्तन न केवल उत्तर-औपनिवेशिक समाज में कुछ बहुत मौलिक प्रश्न और चिन्ताएँ उठाता है, बल्कि एक लेखक की गहरी बौद्धिक और आध्यामिक विकलता को भी व्यक्त करता है। अपने पाठकों को भारतीय परम्परा और पश्चिम की चुनौतियों के द्वन्द्व की नयी समझ भी देता है। इतिहास और स्मृति निर्मल वर्मा के प्रिय प्रत्यय हैं। उनके चिन्तन में इतिहास के ठोस और विशिष्ट अनुभव हैं। वे सवाल उठाते हैं कि यदि हम वैचारिक रूप से स्वयं अपनी भाषा में सोचने, सृजन करने की सामर्थ्य नहीं जुटा पाते तो हमारी राजनैतिक स्वतन्त्रता का क्या मूल्य रह जाएगा? निर्मलजी के निबन्धों के चिन्तन के केन्द्र में मात्रा साहित्य ही नहीं है बल्कि, उसमें उत्तर-औपनिवेशिक भारतीय समाज, उसका नैतिक-सांस्कृतिक विघटन और मनुष्य का आध्यात्मिक मूल स्वरूप, भारतीय संस्कृति का बहुकेन्द्रित सत्य आदि महत्त्वपूर्ण सवाल समाहित हैं जो पाठकों के रचनात्मक चिन्तन को एक नया आयाम देते हैं।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Sairandhri
नरेन्द्र कोहली
पाण्डवों का अज्ञातवास महाभारत कथा का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और मार्मिक स्थल है । कहा जाये कि यह एक वर्ष ही उनकी असली परीक्षा का काल था । जब उन्हें अपना नैसर्गिक रूप त्याग कर अलग और हीनतर रूप धारण करने पड़ते हैं । सवाल उठता है दुर्योधन की गिध्द-दृष्टि से पाण्डव कैसे बचे रह सकें ? अपने अज्ञातवास के लिए पाण्डवों ने विराट नगर को ही क्यों चुना ? पाण्डवों के शत्रुओं में प्रछन्न मित्र कहाँ थे ? और मित्रों में प्रछन्न शत्रु कहाँ पनप रहे थे ? बदली हुई भूमिकाओं से तालमेल बैठाना पाण्डवों के लिए कितना सुकर या दुष्कर था ? अनेक प्रश्न हैं जो इस प्रसंग में उठते हैं । लेकिन पाण्डवों से भी ज्यादा मार्मिक है द्रौपदी का रूपान्तरण । पाण्डवों को तो किसी-न किसी रूप में भेष बदलने का वरदान मिला हुआ था या उनमें यह गुण स्वाभाविक रूप से मौजूद था। अर्जुन को अगर उर्वशी का श्राप था तो युधिष्ठिर को द्यूत प्रिय होने के नाते कंक बनने में सुविधा थी । भीम वैसे ही भोजन भट्ट और मल्ल विद्या में पारंगत थे। समस्या तो द्रौपदी की थी, जो न केवल सुन्दरी होने के नाते सबके आकर्षण का केंद्र थी बल्कि जिसने कभी सेवा-टहल का काम नहीं किया था। सुदेष्णा जैसी रानियाँ तो उसकी सेवा-टहल करने के योग्य थीं । ऐसी स्थिति में उस एक वर्ष को सैरंध्री बनकर काटना द्रौपदी के लिए कैसी अग्नि परीक्षा रही होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है । द्रौपदी के सौन्दर्य को लेकर सुदेष्णा का भय और विराट की आशंका या फिर वृहन्नला और द्रौपदी की अपनी-अपनी व्यथाएँ । उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली ने इस उपन्यास में की । इसके साथ-साथ अनेक प्रश्नों को छुआ है, इन सबको नरेन्द्र कोहली ने अपनी सुपरिचित शैली में बड़ी सफलता से चित्रित किया है ।
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Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Samay Aur Sanskriti
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
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Vani Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
SAMPOORNA CHANAKYA NEETI EVAM CHANAKYA SOOTRA
Vani Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSAMPOORNA CHANAKYA NEETI EVAM CHANAKYA SOOTRA
‘चाणक्य नीति’ आचार्य चाणक्य के विश्वविश्रुत ग्रन्थ ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ का संक्षिप्त संस्करण है, जिसमें धर्म, समाज तथा राजनीति के गूढ़ तत्त्वों को अत्यन्त सरल शैली में प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाला व्यक्ति धर्मशास्त्रों में निरूपित सभी करणीय-अकरणीय कर्मों की जानकारी प्राप्त करके सत्कर्मों का अनुष्ठान कर सकता है । एक पद्य में तो यह भी कहा गया है – येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रतिपद्यते । अर्थात इसे जानने वाला व्यक्ति राजनीति का पूर्ण विद्वान बन जाता है । संस्कृत भाषा में लिखा गया यह ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें लोकव्यवहार, धर्म तथा राजनीति से सम्बन्धित ऐसी अनेक शिक्षाप्रद व उपयोगी जानकारी का समावेश हैं, जिसे जानकर कोई भी व्यक्ति, जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है ।
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