Rajasthani Granthagar
Showing 169–192 of 232 results
-
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
राजस्थानी विरासत का वैभव
राजस्थानी लेखन की अलग-अलग विधाओं में लिखते-पढ़ते बहुत से रचनाकारों को पिछले वर्षों में हुए अच्छे सृजन के मुकाबले अगर आलोचना का पक्ष कुछ कमजोर नजर आता है तो इस पर अफसोस करने की बजाय उसके कारणों को जानने-समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। also अपने बहुविध रचनाकर्म में कविता को चित्त के अधिक करीब पाने के बावजूद अन्य विधाओं के साथ मेरा वैसा ही आत्मीय रिश्ता रहा है। Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
हर रचना अनुभव की पुनर्रचना का पर्याय मानी जाती है, लेकिन अपने तंई उस संवेदन को पूरी सघनता के साथ व्यक्त करना रचना की अपनी जरूरत होती है। कविता में अक्सर चीजों के साथ हमारे रिश्ते बदल जाते हैं। यह बदला हुआ रिश्ता हमें उनके और करीब ले जाता है। so यही प्रयत्न कविता को दूसरी विधाओं से अलग करता है। यह काव्यानुभव जितना व्यंजित होकर असर पैदा करता है, उतना मुखर होकर नहीं। इस सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के लिए मेरा मन अपनी मातृभाषा राजस्थानी में अधिक रमता है। यद्यपि अभिव्यक्ति के बतौर हिन्दी और राजस्थानी दोनों मेरे लिए उतनी ही सहज और आत्मीय हैं और दोनों में समानान्तर रचनाकर्म जारी रखते हुए मुझे कभी कोई दुविधा नहीं होती।
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
संसार की किसी भाषा के साहित्य की उसके पिछले- अगले या मौजूदा समय की दूसरी साहित्य विधाओं के साथ कोई प्रतिस्पर्धा या तुलना नहीं हो सकती और न यह करना उचित ही है। all in all प्रत्येक भाषा और साहित्य का अपना विकासक्रम है, उसकी अपनी कठिनाइयां हैं और उनसे उबरने के उपाय भी उन्हीं को खोजने हैं। लोक-भाषा जन-अभिव्यक्ति का आधार होती है।
प्रत्येक जन-समुदाय अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में जो भाषा अर्जित और विकसित करता है, in the same way वही उसके सर्जनात्मक विकास की सारी संभावनाएं खोलती है। उसकी उपेक्षा करके कोई माध्यम जनता के साथ सार्थक संवाद कायम नहीं कर सकता। इस आधारभूत सत्य के साथ ही लोक- भाषाओं को अपनी ऊर्जा को बचाकर रखना है। साहित्य का काम अपने उसी लोक-जीवन के मनोबल को बचाये रखना है। in fact दरअसल भाषा, साहित्य और संवाद के यही वे सूत्र हैं, जिन्हें जान-समझ कर ही शायद हम किसी नये सार्थक सृजन की कल्पना कर पाएं।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Shakhaon ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का त्याग कर आने वाले क्षत्रियों और वेदोद्धार के लिये किये गये कुमारिल एवं आदि शंकराचार्य के प्रयासों का उल्लेख करके कई क्षत्रिय वंशों के विषय में प्रचलित कतिपय भ्रामक मतों का खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थकार की सराहनीय उपलब्धि है। इस प्रकार विद्वान लेखक ने हमारे इतिहास को लिखने के लिये सांस्कृतिक गहराई में जाने की जो प्रेरणा प्रदान की है उसके लिये वह हम सब की बधाई के पात्र हैं। आशा है कि उनका इस प्रकार अध्ययन और लेखन निरन्तर जारी रहेगा। भारतीय संस्कृति के प्रेमी सज्जनों के लिये और इतिहास-लेखन में रुचि रखने वाले प्रत्येक भारतीय के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है, क्योंकि इसमें किसी संकुचित जातिवाद की अभिव्यक्ति के स्थान पर उस व्यापक राष्ट्रवादी क्षात्र धर्म के बीज दृष्टिगत होते हैं, जो अथर्ववेदीय ‘बृहत् संवेश्यं राष्ट्रम्’ की कल्पना में प्रस्फुटित हुआ। इसीलिये यह ग्रन्थ वैदिक वर्ण व्यवस्था को महिमा मण्डित करते हुए स्पष्ट कहता है कि, ‘उस समय कोई जाति प्रथा नहीं थी, अपितु गुणों और कर्मों के अनुसार चार वर्णों की रचना होती थी।’ क्षत्रियों अथवा राजपूतों के इतिहास पर अब तक लिखे गये ग्रन्थों में श्री देवीसिंह मंडावा की प्रस्तुत पुस्तक ‘राजपूत शाखाओं का इतिहास’ सर्वाधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक के व्यापक अध्ययन और अनुशीलन के पश्चात् लिखा गया यह ग्रन्थ राजपूतों के विषय में प्रचारित अनेक भ्रमों का निवारण करता है। इस पुस्तक में जो निष्कर्ष दिये गये हैं, वे सभी अनेक ऐसे प्रमाणों पर आश्रित हैं, जिन्हें प्रस्तुत करने के लिये लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक अनुसंधान कार्य किया है। विशेषत: राजपूतों को शकों, कुशानों या हूणों की सन्तान कहने वाले इतिहासकारों का खण्डन करने के लिये जो अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, उसके लिये श्री सिंह साधुवाद के पात्र है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Vanshawali
राजपूत वंशावली | Rajpoot Vanshawali : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। राजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajputane Ka Prachin Itihas
राजपूताने का प्राचीन इतिहास : सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का ‘राजपूताने का इतिहास’ राजस्थान के इतिहास की दृष्टि से एक अनुपम ग्रन्थ है। इसमें ओझाजी ने राजपूताना नाम, उसका भूगोल, राजपूत शब्द की व्याख्या तो की ही है, प्राचीन भारतीय राजवशों से राजपूताना के सम्बन्धों का विवेचन कर ग्रन्थ के महत्त्व को द्विगुणित कर दिया हैं। मराठों, अंगे्रजों आदि से सम्बन्धों का विस्तृत विवेचन भी प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्यमान हैं। ग्रन्थ का परिशिष्ट इसलिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है कि इसमें क्षत्रियों के नामों के साथ लगे हुए ‘सिंह’ शब्द का युगयुगीन विवेचन प्रस्तुत किया गया है। पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का अत्यन्त प्रसिद्ध आलेख ‘क्षत्रियों के गौत्र’ भी परिशिष्ट में समाहित हैं। वर्तमान राजस्थान के प्राचीन राजवंशों के इतिहास के साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थ में ओझाजी ने प्राचीन भारतीय राजवंशों-मौर्य, गुप्त,हर्ष आदि तथा मध्यकालीन सुल्तानों व मराठों व अंगे्रजों से राजस्थान के सम्बन्धों का विवेचन कर भावी शोधकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त कर दिया है; अपने विवरण में ओझाजी ने नाग, यौधेय, तंवर, दहिया, डोडिया, गोड़ आदि राजवंशों का विवरण प्रस्तुत कर ग्रन्थ के महत्त्व में श्रीवृद्धि कर दी। प्रस्तुत ग्रन्थ राजस्थान के इतिहास का एक अद्वितीय ग्रन्थ है जो गहन गंभीर अध्येताओं तथा इतिहास के सामान्य जिज्ञासुओं के लिए समान रूप से सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ : अंग्रेजों ने भारत को दो तरह की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा। पहली तरह की व्यवस्था में भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियत्रंण था। इसे ब्रिटिश भारत कहा जाता था, जिसे उन्होंने 11 ब्रिटिश प्रांतों में विभक्त किया। दूसरी तरह की व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के लगभग 565 देशी रजवाड़े थे, जिनकी संख्या समय-समय पर बदलती रहती थी। देशी राज्यों को रियासती भारत कहते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन रजवाड़ों के साथ अधीनस्थ सहायता के समझौते किए, जिनके अनुसार राज्यों का आंतरिक प्रशासन देशी राजा व नवाब के पास रहता था और उसके बाह्य सुरक्षा प्रबन्ध अंग्रेजों के नियंत्रण में रहते थे। इस पुस्तक में अंग्रेज शक्ति के राजपूताने की रियासतों में प्रवेश करने से लेकर वापस लौटने तक की अवधि में हुई रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को लिखा गया है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रRashtriya Aandolan Mein Hindi Press Ki Bhumika
राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दी प्रेस की भूमिका
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में जन-चेतना के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हिन्दी प्रेस एवं अनेक पत्र-पत्रिकाओं की हैं। मानव जीवन के विकास की प्रक्रिया में पत्र-पत्रिकाएँ सहायक रही हैं। भारतीय बुद्धिजीवियों ने जागरूकता के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाओं को एक साधन के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया। Rashtriya Aandolan Hindi Press
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को आगे बढ़ाने में बुद्धिजीवियों को इन पत्र-पत्रिकाओं से मदद मिल रही थी। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय महिलाओं के द्वारा निकाले जा रहे पत्र-पत्रिकाओं का राष्ट्रीय आन्दोलन में भूमिका एवं सामाजिक समस्याओं आदि का वर्णन किया गया है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Rashtriya Itihas Mein Rathore
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Rashtriya Itihas Mein Rathore
राष्ट्रीय इतिहास में राठौड़
जंग जीत्या केई जबर, ज्यांरी हुवे न किणसूं हौड़।
भागा न कोई भिड़ंत में, जीणसूं रणबंका राठौड़।।
कवि की इन पंक्तियों से राठौड़ों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के ऐतिहासिक महत्व का सहज रूप से ही अनुमान लगाया जा सकता है। शौर्य व बल प्रताप के धनी राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्व के बहुआयामी अध्ययन हेतु महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र की ओर से 24वीं राष्ट्रीय संगोष्ठी 6-7 अक्टूबर 2018 को आयोजित की गई थी। Rashtriya Itihas Mein Rathoreयह राष्ट्रीय संगोष्ठी महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई जिसका विषय “राठौड़ शासकों का भारतीय इतिहास में ऐतिहासिक महत्त्व” है। so इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य मारवाड़ के राठौड़ शासकों का भारत के राष्ट्रीय इतिहास में जो ऐतिहासिक महत्व एवं योगदान है उसे अधिकाधिक प्रकाश में लाना है। surely राठौड़ शासकों का राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक इतिहास में तो महत्त्वपूर्ण स्थान रहा ही, साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है, जिन पर अभी तक विस्तृत रूप से अध्ययन का अभाव है।
Rashtriya Itihas Mein Rathore
also ऐसे क्षेत्र है – सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्रशासनिक, आर्थिक, कला, साहित्य, स्थापत्य, जन कल्याणकारी कार्य, जल प्रबंधन व्यवस्था, पर्यावरण, व्यापार वाणिज्य, उद्योग धंधे, कृषि, भूमि सुधार, अकाल, सिंचाई की व्यवस्थाएँ इत्यादि अनेकोनक विषय है जिन पर अधिकाधिक शोध की आवश्यकता है। अतः इन विषयों पर शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर उन्हें इतिहास जगत के पटल पर रखकर राठौड़ शासकों के राष्ट्रीय इतिहास में महत्त्व को उजागर करना ही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।
देश के ख्याति प्राप्त इतिहासज्ञों, विद्वानों व शोधार्थियों ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने शोधपरक पत्रों का वाचन कर भारतीय इतिहास में राठौड़ शासकों के सर्वांगीण ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। all in all इस विषय विशेष से संबंधित महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों की प्रस्तुति से अनेक नवीन जानकारियाँ इतिहास में दर्ज हुई जो हमारे आने वाले इतिहास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rathore Rajvansh ke Riti-Riwaz
राठौड़़ राजवंश के रीति-रिवाज : ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की संस्कृति न केवल प्राचीन है, अपितु शोध जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भी है। जोधपुर राजवंश अनेक ऐतिहासिक कालचक्रों का साक्षी रहा है। शोथ के लिए सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर राजघराने के नीति-रिवाज एवं परम्पराओं का अध्ययन अत्यधिक रुचिकर एव जिज्ञासापूर्ण है। यहाँ सतत् रूप से राजवंश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का विकास होता रहा है।
यह पुस्तक जयनारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर द्वारा सन् 1993 में स्वीकृत शोथ प्रबन्ध जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों का सामजिक एवं आर्थिक अध्ययन (1600-1850ई.) का आशिक संशोधित संस्करण है। इस ग्रन्थ में जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों विशेषकर राजपरिवार एवं जनाना ड्योढ़ी के नियम-कायदों, धार्मिक परम्पराओं, प्रमुख संस्कारों, राजदरबार के समसामयिक आयोजनों, शिष्टाचारों एवं विशिष्ट उत्सवों से संबंधित सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत को ही इंगित करता है।
शोध की दिशा में विषय सर्वथा नवीन एवं मौलिक रहा है। विषय सामग्री का चयन विभिन्न शोध संस्थाओं में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों, अप्रकाशित ख्यातों, बहियों, वंशावलियों आदि में से किया गया है। सम्पादित पुस्तक मध्यकालीन राजस्थान के राजवंशों में रुचि रखने वाले शोधोत्सुक अध्ययनार्थियों, इतिहासवेत्ताओं एवं कला संस्कृतिविज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं संगृहणीय सिद्ध हो सकेगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Rathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यासRathoron ki Kuldevi Shri Nagnechiyan Mata
राठौड़़ों की कुलदेवी श्री नागणेचियाँ माता : दो शब्द भारत में शक्ति की उपासना प्राचीनकाल से ही अनवरत चली आरही है। अभिलेखीय प्रमाणों से शक्ति की उपासना के अनगिनत प्रमाण मिलते है। मध्यकाल में, जीवन में युद्व और भय का वातावरण बना रहने से सूरवीर शक्ति के अवतार दुर्गा को अपनी आराध्या मानते थे। युद्व के समय योद्वा ‘जय माताजी’ का उद्घोष्ष किया करते थे। वैदिक युग से ही शक्तिपुजा का बड़ा महत्व रहा है। शक्ति के विविध अवतारों की पुजा-अर्चना का उल्लेख महाभारत काल में ही मिलता है। मूलतः बल और बुद्वि-प्रदाता के रूप में शक्ति की उपासना युगो-युगों से होती आई है और आज भी शकित के विविध रूपों की आराधना कर मनुष्ष्य अपने मनोवांछित फल प्राप्त करने की चेष्ष्टा करता रहा है। यह सर्वविदित है कि प्रत्येक कुल या जाति की एक कुलदेवी होती है, जो उस कुल-जाति की रक्षा करती है। राठौड़ वंश में कुलदेवी के रूप में नागणेचियां माताजी पूजित है। परम्परा से पूर्व में राठेश्वरी, चक्रेश्वरी, पंखिणी आदि नामों से राठौड़ों द्वारा पूजी जाती रही है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Saanjh ke Deep
साँझ के दीप : वृद्धावस्था मानव जीवन का अंतिम सत्य है, जीवन का यह पड़ाव अनेक सीखों-अनुभवों-उपदेशों से युक्त एक चलती-फिरती पाठशाला है। वह परिवार सचमुच भाग्यशाली हैं, जिन पर वृद्धों की छत्र-छाया है, लेकिन वर्तमान में क्या यही सत्य है।
कड़वी सच्चाई तो यही है कि परिवार-समाज की यह महत्वपूर्ण इकाई आज हाशिए पर रहने को मजबूर हो चुकी है। यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे अनेकों दृष्टांत देखने को मिल ही जाते हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर देने वाले होते हैं।
प्रस्तुत कहानी संग्रह में सम्मिलित प्रत्येक कहानी एक नया संदेश देती हुई नजर आती है। जीवन की कड़वी सच्चाई को उजागर करती यह कहानियाँ कई बार उन बच्चों को प्रायश्चित करवाती नजर आती हैं, जिन्होंने वृद्ध माँ-बाप को जीवन के अंतिम मोड़ पर घर से बेघर कर दिया हो, तो कहीं पर अपने स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए दृढ़ वृद्धजन, कहीं पर अंतिम साँस ले रहे माँ-बाप की जुबाँ पर औलाद का नाम, कहीं पर जैसी करनी वैसी भरनी की कहावत को चरितार्थ किया गया है। कहीं समाज की दृष्टि में कम पढ़े-लिखे माँ-बाप, किन्तु उनकी सीख आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों से उत्तम दर्ज की दिखलाई पड़ती है, तो कहीं वृद्ध हो चुके पति-पत्नी के बीच के मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
कुछ कहानियों को पढ़ कर लगता है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत भले ही हो जाएं, लेकिन अंतिम क्षण तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। ‘अप्प दीपो भवः’ के सिद्धान्त पर चल कर वह स्वयं के जीवन में तो प्रकाश भर ही रहे हैं, अपितु अन्य के जीवन को भी आलोढ़ित कर रहे हैं।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Sampurn Chanakya Neeti
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSampurn Chanakya Neeti
सम्पूर्ण चाणक्य नीति : चाणक्य – भारतीय इतिहास के एक युग पुरुष ! असंभव को संभव कर दिखाने वाले ऐसे शास्त्रविहीन योद्धा, जिन्होनें अपनी नीतियों के बल पर ही भारत के इतिहास को एक सुनहरा मोड़ दिया। समाज, राजनीति, धर्म और कर्म का खुला विवेचन किया है, चाणक्य ने इन नीतियों में, ये नीतियां जीवन की अंधेरी राहों में सूर्य किरणों सा मार्गदर्शन करती हैं। जीवन की अति गूढ़तम गुत्थिओं को सुलझाने वाली सुस्पष्ट नीतियों की अभूतयपूर्व प्रस्तुति।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samrat Prithviraj Chauhan
सम्राट पृृथ्वीराज चौहान : भारतीय अन्तिम हिन्दू सम्राट भारतेश्वर पृथ्वीराज चौहान के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डालने वाले पृथ्वीराज रासो और पृथ्वीराज विजय दो काव्य ग्रंथ उपलब्ध है। इतिहास के अध्येताओं ने पृथ्वीराज रासो की तो तिथि की असंगति के कारण उसे भट्ट भणन्त की संज्ञा देकर दूर फेंक दिया और पृथ्वीराज विजय का सम्यक् अध्ययन मनन नहीं किया गया। इस प्रकार भारतीय और विदेशी विद्वानों ने पृथ्वीराज के साथ न्याय नहीं किया और वह इतिहास के पटल पर एक उपेक्षित चरित्र बनकर रह गया। वस्तुतः सम्राट पृथ्वीराज एक महामानव, उत्कृट योद्धा, कुशल सेनानायक और बहुभाषा तथा कलाओं का मर्मज्ञ विद्वान था। ऐसे पुरुष का सही परिप्रेक्ष्य में अध्ययन और मूल्यांकन इतिहास के विद्वानों के लिए उपेक्षित है। हमने उनके उक्त गुणों की ओर विद्वानों के लिए ‘भारतेश्वर पृथ्वीराज’ नामक इस पुस्तक में विचार किया है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sanskratik Rajasthan
सांस्कृतिक राजस्थान
रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत की कहानियों में जिस प्रकार राजस्थान की आत्मा का असली चित्र उभर कर सामने आता है उसी प्रकार उनके निबन्धों में राजस्थानी संस्कृति के हृदयस्पर्शी शब्द चित्र समाहित है। accordingly ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ अनुभव के ठोस सत्य के आधार पर लिखी गई पुस्तक है, जैसा कि स्वयं लेखिका ने स्पष्ट किया है “जो कुछ लिखा है उसका बहुत कुछ हिस्सा मेरा देखा हुआ है। मैं उसमें से गुजरी हूँ। बहुत बड़ा हिस्सा वह है जो मेरे परिजनों के अपने अनुभव है, बाकी का हिस्सा वह है जो हमें बचपन में शिक्षा के आधार पर सिखाया गया, समझाया गया।” Sanskratik Rajasthan Laxmi Kumari (Cultural Rajasthan)
प्रस्तुत ग्रंथ की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है लेखिका रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत का निष्पक्ष लेखन “बिना लाग-लपेट के पक्षपातहीन होकर सत्य के रूप में लिखा है और तथ्यों को तथ्य की भांति।” ठोस आधार और निष्पक्ष भाव से लिखे गये ‘सांस्कृतिक राजस्थान’ के हमारे त्यौहार, रजवाड़ी गीत, बात और बात कहने की कला, सांस्कृतिक धरोहर, हमारे आमोद-प्रमोद, लोकगीत मानव जीवन में अमृत के समान तथा राजस्थान की समन्वित संस्कृति, निबन्ध नवीन शोध जैसे प्रभावशाली है।
रानी लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत की ये पुस्तकें राजस्थान तथा राजस्थानी की कहानियाँ, कथाएँ, बातां, कला, संस्कृति व परम्परा को जानने का एक सुगम स्रोत हैं। राजस्थान में ‘बात’ (कहानी) कहने की अपनी शैली है। वह शैली अनूठी है और परम्पराओं से परिपूर्ण है।
भारत में राजस्थान रो जो महत्वपूर्ण स्थान है वस्यो ही स्थान भारतीय भासावां में राजस्थानी भाषा रो है। as well as राजस्थानी रा एक एक सबद रे लारे एक एक रणखेत बोले, पीढियां रो पराकरम झांके। राजस्थानी भासा राजस्थान री धरती अर इतिहास री तरै हीज सबळ नै क्षमतावान है। लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत री कहाणियां री अेक खास घसक आ क उणां मे राजस्थान रै कण कण री आतमा पलका मारै।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांSant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
संत जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन : सन्त जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन द्वारा अनुप्राणित विश्नोई धर्म के सिद्धान्तों को विश्व-स्तर पर प्रायोजित करने हेतु यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। लेखक ने सन्त जाम्भोजी के आध्यात्मिक तात्विक, नैतिक एवं सांसारिक आदर्शों को प्रस्तुत करने हेतु पुस्तक में सन्त जाम्भोजी का परिचय, विश्नोई धर्म के 29 नियम, विश्नोई धर्म की धार्मिक एवं नैतिक मान्यता, विश्नोई धर्म के दार्शनिक विचार एवं अहिंसा सम्मिलित की है तथा विश्नोई धर्म की वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख कर इसे सम्पूर्ण किया है। सन्त जाम्भोजी व विश्नोई धर्म के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो प्रत्येक पुस्तकालय के लिए सग्रहणीय है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Sukhramdas
संत सुखरामदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : जिसने सत् रूपी परमतत्त्व को अनुभूति कर ली एवं जो अपने लौकिक स्वरूप तथा व्यक्तित्व से ऊपर उठकर उस परमात्मा से तद्गूप हो गया है, ऐसा आदर्श एवं मर्यादामय व्यक्ति संत कहलाने का अधिकारी है। राजस्थान प्रदेश में ऐसे महापुरुषों एवं संतों की समृद्ध परम्परा है। ऐसे संतों की दृष्टि में परमात्मत्तत्व एवं जीवतत्त्व अविच्छेद्य है। अपनी वृत्ति को बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी करने में सक्षम ऐसे राजस्थानी संतों की परम्परा में स्वनामधन्य संत श्री सुखरामदास जी नाम आदर के साथ लिया जाता है। डॉ. वीणा जाजड़ा ने अनथक परिश्रम करके संत श्री की कीर्तिस्तंभ कृति ‘अणभैवाणी’ का इस शोध ग्रंथ में विशद् सर्वांगीण एवं सम्यक् विवेचन किया है। डॉ. जाजड़ा ने इस ग्रंथ में यह सोदाहरण प्रमाणित किया है कि संत शिरोमणि सुखरामदासजी सामाजिक सरोकारों के लब्ध प्रतिष्ठ संत कवि हैं। आपने युगीन एवं समसामयिक सामाजिक धार्मिक विद्रूपताओं एवं विसंगतियों का काव्य के माध्यम से विरोध कर कबीर को भांति अपना समाज सुधारक का दायित्व-निर्वाह किया है। संत सुखरामदास जी ने बाह्याडंबरों को हेय ठहराकर स्वानुभूति एवं सदाचार की श्रेष्ठता पर बल दिया। आपके प्रदेय को राजस्थानी और हिन्दी साहित्य में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
भविष्य में संत-साहित्य पर शोध-कार्य करने वाले अनुसंधित्सुओं के लिए यह ग्रंथ मार्गदर्शक स्वरूप सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Satrangi Sanskriti
सतरंगी संस्कृति (राजस्थानी निबंध संग्रै)
accordingly ‘सतरंगी संस्कृति’ सिरैनाम वाळो ओ निबंध संग्रै सुधी समालोचक संग्राम सिंह सोढा रै ऊंडै अनुभव, गहन चिंतन, सतत स्वाध्याय अर सोझीवान दीठ सूं गूंथीज्योड़ो इसो गुण – गजरो जिणमें न्यारी-न्यारी भांत रा 13 निकेवळा सुमनां री सोरम सुधी – पाठक रै अंतस में आणंद उपजावै। आपरी मायड़ भाषा सं अणहद हेत राखणियां कवि, निबंधकार अर समालोचक श्री सोढा बडी खामचाई सूं भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक, परंपरा, विकास, वैभव अर अणगिण उदाहरणां सूं आपरी बात नै पुख्ताऊ अंजाम देवै। Satrangi Sanskriti
निबंध-संग्रै री विषै सामग्री इण बात री साख भरै कै रचनाकार आपरै लोक अर साहित्य री वाचिक परंपरा सूं गैरो जुड़ाव राखै। निबंधकार आपरी हरेक थापना नैं किणी न किणी, लोकप्रसिद्ध कैबत या दूहै सूं प्रमाणित करै। श्री सोढा आछी तरियां जाणै कै राजस्थानी साहित्यकारां उत्कृष्ट रै अभिनंदन अर निकृष्ट रै निंदण री आखड़ी पाळी है। इण साहित्य रौ प्रयोजन अकदम साफ रैयो है कै जको स्वतंत्रता से पुजारी है, स्वाभिमानी है, नीति- न्याय रो पखधर है, अनीति अर अन्याय रो विरोधी धरम रो रखवाळो है, उणरी सोभा सवाई हुणी चाईजै।
SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Shri Karni Mata Ka Itihas
श्री करणी माता का इतिहास
प्रस्तुत पुस्तक में करणी माता से जुड़ी राजनीतिक एवं धार्मिक घटनाओं से अधिक उनकी मानवतावादी दृष्टिकोण, गौ रक्षा संस्कृति, मातृभूमि प्रेम, सर्वधर्म समभाव, नारी उत्थान एवं पर्यावरण संरक्षण आदि के क्षेत्र में उनका अतुलनीय योगदान, करणी माता से जुड़ी सभी घटनाओं के साथ-साथ इतिहास के पन्नों में छिपी उनकी शिक्षाओं एवं संदेशों आदि को नए रूप में प्रस्तुत किया। जिसके कारण करणी माता लोक देवी के रूप में प्रतिस्थापित हुई। Shri Karni Mata Itihas
SKU: n/a