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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthani Lok Jeevan Ar Sugan Parampara
राजस्थानी लोक जीवन अर सुगन परम्परा
surely राजस्थान री लोक संस्कृति अर परम्परा लूंठी ने अनुठी है। अठै री जिया- जूण नै आप जितरी जाणन री खैचल करौला, उत्तौ ही इणरौ नूवों रूप दीठमान हुवतौ रैसी, न्यारी-न्यारी परम्परावां में ‘सुगन-विचार’ री जकी रीत अर दीठ है वां घणी जूनी अर लोक री चावी अर महताऊ परम्परा है। also ‘सुगन- विचार’ फगत अंक विश्वास, आस्था या परम्परा ई नीं ओ ओक लोक-विग्यान है जिणने आधार बणा र ई लोक मांय, यात्रा, मुहुरत, सुभ-असुभ, फळा-फळ तौ बरसात अर खेती रौ ग्यान करिजतौ, पण जोग दुजोग सूं आ विद्या अर इणनै जाणन वाळा सँ अलोप हुवता जा रैया है, इण पौथी मांय इणी’ज लोक विग्यान री परम्परा, साहित्य अर अनाण, परिणाम माथै विरोळ करीजी है, सागै ई सुगनां री महत्ता, लोक री जरूत, परियावरण संतुलन अर आज रै बगत में ‘सुगन विचार’ री ठौड़ रौ अध्ययन करिज्यौ है। Rajasthani Lok Jeevan Ar Sugan Parampara
all in all पौथी ने छह अध्यायां मांय बांट’र न्यारां-न्यारां बिन्दुवां नै लैय’र लोक में ‘सुगन- विचार’ बाबत बात करीजी है। लोक रै अरथ, तत्व अर मानस सूं बात सरू कर आधुनिक जुग मांय सुगनां री प्रासंगिकता बतावण तांई रौ प्रयास करियौ। पौथी में लोक-गीतां, साहित्य, बातां, दोहा, छंदा, ख्यातां में आयां, सुगनां रा प्रसंग, उणरा प्रभाव अर सुगन समझण-बूझण री मैतव नै बताया है। Rajasthani Lok Jeevan Ar Sugan Parampara
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthani Sahitya Mein Shakti Upasana
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajasthani Sahitya Mein Shakti Upasana
राजस्थानी साहित्य में शक्ति उपासना
भारतीय लोकमानस देवी-देवताओं की संकल्पना से ओत-प्रोत है। यद्यपि सृष्टि के संचालन के रूप में एक ही मूलशक्ति की सम्पृक्ति मानी गई है तथापि यह मूल चेतना अग्नि के अनेक स्फुर्लिंगों की तरह नाना देवी-देवताओं के रूप में लोक में विचरित होकर आशीर्वाद देती रही है। Rajasthani Sahitya Shakti Upasana
surely राजस्थान वीरों, संतों और लोक देवी-देवताओं की तपोभूमि रही है। यहां रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी, मेहाजी, देव नारायणजी जैसे अनेकानेक लोक देवताओं की तरह सच्चियाय माता, करणी माता, लटियाल माता, आवड़ माता, शीतला माता, आशापुरा माता, राणी भटियाणी, सकराय माता, नारायणी माता, जीण माता, पथवारी माता जैसी महान लोक देवियाँ भी अवतरित हुई हैं। इन देवियों ने मानव रूप में अवतार लेकर असाधारण एवं लोक कल्याणकारी कार्यों द्वारा लोकमानस को व्यापक धरातल पर प्रभावित किया है। इसलिए स्थानीय लोग इन्हें देव तुल्य मानकर भाव-विभोर होकर पूजा-अर्चना करते हैं। इन देवियों ने समय-समय पर सामाजिक विषमताओं व अनेकानेक समस्याओं से लड़ते हुए लोगों के उद्धार का कार्य किया। इसलिए इन लोक देवियों को जहां एक ओर जगत् जननी का दर्जा मिला वहीं दूसरी ओर लोक में इनके देवत्व को स्थापित किया गया।
Rajasthani Sahitya Shakti Upasana
सामाजिक रूपान्तरण व लोगों के अन्तकरण की शुद्धि के लिए राजस्थान की लोक देवियों को आदर के साथ याद किया जाता है। भारत के अन्य स्थानों की तरह राजस्थान भी विषमताओं का गढ़ रहा है। ऐसे में लोक देवियों ने जाति-पांति, ऊंच-नीच व छुआ-छूत को भुलाकर पीड़ित मानवता के उद्धार के लिए अपने आप को उत्सर्ग कर दिया। all in all इन लोक देवियों में जहां एक ओर ममता, वात्सल्य, करूणा, दया आदि भाव परिलक्षित होते हैं। वहीं दूसरी ओर इनमें दृढ़ता, शूरवीरता, दानवीरता, धैर्य, सहिष्णुता जैसे भाव पुरजोर रूप में मिलते हैं। इन्हीं भावों के कारण ये देवियाँ अतिमानवी रूप में लोकमानस में पूज्य हैं। यहां की कई देवियाँ शक्तिपीठों में भी अपना स्थान रखती हैं।
लोक देवियों के अलौकिक एवं लोक कल्याणकारी कार्यों के कारण उनकी कीर्ति में कई गीत, भजन व हरजस गाए जाते हैं, जो मौखिक और लिखित दोनों रूपों में उपलब्ध हैं।
accordingly यह पुस्तक के रूप में सुधी पाठकों के हाथ में है। इस पुस्तक के प्रकाशन से जहां हमें एक ओर राजस्थान की लोक देवियों की गौरवगाथा व उनके लोक कल्याणकारी कार्यों से परिचय प्राप्त होगा व दूसरी ओर हमें उनकी कीर्ति से युक्त लोक साहित्य का भी परिचय प्राप्त होगा। हमें इन देवियों की गौरवगाथा को जीवन में उतारना हैं, भावावेश में किसी भी तरह के अंधविश्वास को ओढ़ना देवियों के बताये मार्ग से पदच्युत होना है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
राजस्थानी विरासत का वैभव
राजस्थानी लेखन की अलग-अलग विधाओं में लिखते-पढ़ते बहुत से रचनाकारों को पिछले वर्षों में हुए अच्छे सृजन के मुकाबले अगर आलोचना का पक्ष कुछ कमजोर नजर आता है तो इस पर अफसोस करने की बजाय उसके कारणों को जानने-समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। also अपने बहुविध रचनाकर्म में कविता को चित्त के अधिक करीब पाने के बावजूद अन्य विधाओं के साथ मेरा वैसा ही आत्मीय रिश्ता रहा है। Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
हर रचना अनुभव की पुनर्रचना का पर्याय मानी जाती है, लेकिन अपने तंई उस संवेदन को पूरी सघनता के साथ व्यक्त करना रचना की अपनी जरूरत होती है। कविता में अक्सर चीजों के साथ हमारे रिश्ते बदल जाते हैं। यह बदला हुआ रिश्ता हमें उनके और करीब ले जाता है। so यही प्रयत्न कविता को दूसरी विधाओं से अलग करता है। यह काव्यानुभव जितना व्यंजित होकर असर पैदा करता है, उतना मुखर होकर नहीं। इस सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के लिए मेरा मन अपनी मातृभाषा राजस्थानी में अधिक रमता है। यद्यपि अभिव्यक्ति के बतौर हिन्दी और राजस्थानी दोनों मेरे लिए उतनी ही सहज और आत्मीय हैं और दोनों में समानान्तर रचनाकर्म जारी रखते हुए मुझे कभी कोई दुविधा नहीं होती।
Rajasthani Virasat Ka Vaibhav
संसार की किसी भाषा के साहित्य की उसके पिछले- अगले या मौजूदा समय की दूसरी साहित्य विधाओं के साथ कोई प्रतिस्पर्धा या तुलना नहीं हो सकती और न यह करना उचित ही है। all in all प्रत्येक भाषा और साहित्य का अपना विकासक्रम है, उसकी अपनी कठिनाइयां हैं और उनसे उबरने के उपाय भी उन्हीं को खोजने हैं। लोक-भाषा जन-अभिव्यक्ति का आधार होती है।
प्रत्येक जन-समुदाय अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में जो भाषा अर्जित और विकसित करता है, in the same way वही उसके सर्जनात्मक विकास की सारी संभावनाएं खोलती है। उसकी उपेक्षा करके कोई माध्यम जनता के साथ सार्थक संवाद कायम नहीं कर सकता। इस आधारभूत सत्य के साथ ही लोक- भाषाओं को अपनी ऊर्जा को बचाकर रखना है। साहित्य का काम अपने उसी लोक-जीवन के मनोबल को बचाये रखना है। in fact दरअसल भाषा, साहित्य और संवाद के यही वे सूत्र हैं, जिन्हें जान-समझ कर ही शायद हम किसी नये सार्थक सृजन की कल्पना कर पाएं।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Shakhaon ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का त्याग कर आने वाले क्षत्रियों और वेदोद्धार के लिये किये गये कुमारिल एवं आदि शंकराचार्य के प्रयासों का उल्लेख करके कई क्षत्रिय वंशों के विषय में प्रचलित कतिपय भ्रामक मतों का खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थकार की सराहनीय उपलब्धि है। इस प्रकार विद्वान लेखक ने हमारे इतिहास को लिखने के लिये सांस्कृतिक गहराई में जाने की जो प्रेरणा प्रदान की है उसके लिये वह हम सब की बधाई के पात्र हैं। आशा है कि उनका इस प्रकार अध्ययन और लेखन निरन्तर जारी रहेगा। भारतीय संस्कृति के प्रेमी सज्जनों के लिये और इतिहास-लेखन में रुचि रखने वाले प्रत्येक भारतीय के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है, क्योंकि इसमें किसी संकुचित जातिवाद की अभिव्यक्ति के स्थान पर उस व्यापक राष्ट्रवादी क्षात्र धर्म के बीज दृष्टिगत होते हैं, जो अथर्ववेदीय ‘बृहत् संवेश्यं राष्ट्रम्’ की कल्पना में प्रस्फुटित हुआ। इसीलिये यह ग्रन्थ वैदिक वर्ण व्यवस्था को महिमा मण्डित करते हुए स्पष्ट कहता है कि, ‘उस समय कोई जाति प्रथा नहीं थी, अपितु गुणों और कर्मों के अनुसार चार वर्णों की रचना होती थी।’ क्षत्रियों अथवा राजपूतों के इतिहास पर अब तक लिखे गये ग्रन्थों में श्री देवीसिंह मंडावा की प्रस्तुत पुस्तक ‘राजपूत शाखाओं का इतिहास’ सर्वाधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक के व्यापक अध्ययन और अनुशीलन के पश्चात् लिखा गया यह ग्रन्थ राजपूतों के विषय में प्रचारित अनेक भ्रमों का निवारण करता है। इस पुस्तक में जो निष्कर्ष दिये गये हैं, वे सभी अनेक ऐसे प्रमाणों पर आश्रित हैं, जिन्हें प्रस्तुत करने के लिये लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक अनुसंधान कार्य किया है। विशेषत: राजपूतों को शकों, कुशानों या हूणों की सन्तान कहने वाले इतिहासकारों का खण्डन करने के लिये जो अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, उसके लिये श्री सिंह साधुवाद के पात्र है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Vanshawali
राजपूत वंशावली | Rajpoot Vanshawali : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। राजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Rajputane Ka Prachin Itihas
राजपूताने का प्राचीन इतिहास : सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का ‘राजपूताने का इतिहास’ राजस्थान के इतिहास की दृष्टि से एक अनुपम ग्रन्थ है। इसमें ओझाजी ने राजपूताना नाम, उसका भूगोल, राजपूत शब्द की व्याख्या तो की ही है, प्राचीन भारतीय राजवशों से राजपूताना के सम्बन्धों का विवेचन कर ग्रन्थ के महत्त्व को द्विगुणित कर दिया हैं। मराठों, अंगे्रजों आदि से सम्बन्धों का विस्तृत विवेचन भी प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्यमान हैं। ग्रन्थ का परिशिष्ट इसलिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है कि इसमें क्षत्रियों के नामों के साथ लगे हुए ‘सिंह’ शब्द का युगयुगीन विवेचन प्रस्तुत किया गया है। पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का अत्यन्त प्रसिद्ध आलेख ‘क्षत्रियों के गौत्र’ भी परिशिष्ट में समाहित हैं। वर्तमान राजस्थान के प्राचीन राजवंशों के इतिहास के साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थ में ओझाजी ने प्राचीन भारतीय राजवंशों-मौर्य, गुप्त,हर्ष आदि तथा मध्यकालीन सुल्तानों व मराठों व अंगे्रजों से राजस्थान के सम्बन्धों का विवेचन कर भावी शोधकर्ताओं का मार्ग प्रशस्त कर दिया है; अपने विवरण में ओझाजी ने नाग, यौधेय, तंवर, दहिया, डोडिया, गोड़ आदि राजवंशों का विवरण प्रस्तुत कर ग्रन्थ के महत्त्व में श्रीवृद्धि कर दी। प्रस्तुत ग्रन्थ राजस्थान के इतिहास का एक अद्वितीय ग्रन्थ है जो गहन गंभीर अध्येताओं तथा इतिहास के सामान्य जिज्ञासुओं के लिए समान रूप से सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ : अंग्रेजों ने भारत को दो तरह की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा। पहली तरह की व्यवस्था में भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियत्रंण था। इसे ब्रिटिश भारत कहा जाता था, जिसे उन्होंने 11 ब्रिटिश प्रांतों में विभक्त किया। दूसरी तरह की व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के लगभग 565 देशी रजवाड़े थे, जिनकी संख्या समय-समय पर बदलती रहती थी। देशी राज्यों को रियासती भारत कहते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन रजवाड़ों के साथ अधीनस्थ सहायता के समझौते किए, जिनके अनुसार राज्यों का आंतरिक प्रशासन देशी राजा व नवाब के पास रहता था और उसके बाह्य सुरक्षा प्रबन्ध अंग्रेजों के नियंत्रण में रहते थे। इस पुस्तक में अंग्रेज शक्ति के राजपूताने की रियासतों में प्रवेश करने से लेकर वापस लौटने तक की अवधि में हुई रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को लिखा गया है।
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Govindram Hasanand Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Rajrishi Manu aur unki Manusmiri
राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति
राजर्षि मनु भारतीय सास्ंकृतिक गगन में हमारे दीपस्तम्भ हैं। भारतीय समाज का ढाँचा उन्हीं के अमर बीजमन्त्रों पर टिका हुआ है। उनकी विचारधारा गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित है।
विषय के विषेषज्ञ अनेक वैदिक विद्वानों के लेख इसमें ऐसे संकलित हैं जैसे किसी हार में मोतियाँ पिरोई होती हैं। इन विद्वानों के मनु और मनुस्मृति-सम्बन्धी चिन्तन से पाठक लाभान्वित हो सकेंगे।
यह पुस्तक मनु और मनुस्मृति-विषयक भ्रान्तियों को दूर करने में सहायक सिद्ध होगी तथा उन भ्रान्तियों के विस्तार को रोकेगी।
एक ही स्थान पर, एक विषय पर, अनेक विचारकों के विचार एकत्र मिलना कठिन होता है। सबको सब पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पातीं, अतः अध्ययन-मनन में पाठकों को सुविधा-लाभ होगा।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature
Rajyog (PB)
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे। यदि तुम खगोलशास्त्रज्ञ होना चाहते हो, तो तुम्हें वेधशाला में जाकर दूरबीन की सहायता से तारों और ग्रहों का पर्यवेक्षण करके उनके विषय में आलोचना करनी होगी, तभी तुम खगोलशास्त्रज्ञ हो सकोगे।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Rakta Ka Kan-Kan Samarpit
विश्व के शीर्ष राष्ट्रों में शुमार भारतवर्ष को देखकर आज किस भारतीय का सीना चौड़ा नहीं होता होगा; लेकिन आज बराबरी और सम्मान के जिस मुकाम पर हम खड़े हैं, वहाँ हम यों ही नहीं पहुँचे हैं। इसके लिए हमें अनगिनत कुरबानियाँ देनी पड़ी हैं, लाखों जवानियाँ काल-कोठरी के पीछे खुशी- खुशी कैद हुई हैं। उनमें से कुछ को ही हम जानते हैं और बाकियों की स्मृति कस्बों एवं गाँवों में सिमटकर रह गई है।
यह पुस्तक ऐसे ही गुमनाम स्वातंत्र्य साथकों के बारे में है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारतमाता की स्वाधीनता के लिए हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया, पर वे इतिहास की नामचीन क्या, साधारण सी पुस्तकों का भी हिस्सा नहीं बन सके। वैसे यह उनको इच्छा भी नहीं थी कि उनका नाम हो, लेकिन आज को युवा पीढ़ी और स्कूली बच्चों को उनके बारे में जानना आवश्यक है कि वे कौन महापुरुष थे। ‘जरा याद उन्हें भी कर लो’ इसी उद्देश्य को लेकर कहानी-दर-कहानी मजबूती से आगे बढ़ती है। चिरंजीव सिन्हा की पुस्तक ‘ रक्त का कण-कण समर्पित” उत्तर प्रदेश के गुमनाम स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरक गाथाओं का पठनीय संकलन है।”
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Yash Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Raktanchal Bengal ki Raktcharitra Rajniti
पुस्तक के बारे मै
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा बंद होने की संभावना जताई गई थी। ममता बनर्जी के राज में हर चुनाव में विरोधी दलों की राजनीतिक हिंसा की आशंका सच साबित हुईं हैं। पुस्तक में 2014 के लोकसभा और 2016 के विधानसभा चुनाव के साथ उपचुनावों में हिंसा व धांधली की घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। 2011 से 2018 तक राजनीतिक कारणों से हत्या और संघर्षों की विस्तृत जानकारी दी गई है। पुस्तक बताती है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता कटमनी, सिंडीकेट को लेकर संघर्ष, ठेके कब्जाने के लिए खूनखराबा, रंगदारी वसूलने और अवैध धंधों पर कब्जा करने के लिए किस तरह एक-दूसरे को काटते रहे और बमों से उड़ाते रहे। वर्चस्व बनाए रखने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने आंतक फैलाने के लिए माकपा, कांग्रेस और फिर भाजपा के कार्यकर्ताओं का किस तरह कत्ल किया। विरोधियों को सबक सिखाने के लिए महिलाओं के साथ बलात्कार, बच्चों की पिटाई और घरों को आग लगाने की घटनाओं के उदाहरण के साथ बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति का पुस्तक में पूरी बेबाकी और निष्पक्षता से खुलासा किया गया है। राजनीतिक हिंसा पर मुख्यमंत्री का राज्यपालों से टकराव पर सटीक विश्लेषण के साथ ममता बनर्जी के जीवन और राजनीति पर गहराई से आकलन किया गया है।
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Yash Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Raktranjit Bengal Loksabha Chunav 2019
पुस्तक में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले, मतदान के दौरान और मतदान के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तार से वर्णन किया गया है। 2019 में राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों और घायलों के उदाहरण रक्तरंजित बंगाल के प्रमाण दे रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में आतंक फैलाने के लिए कैसे जगह-जगह घरों को फूंका गया। राजनीतिक संघर्ष को लेकर हुई बमबाजी और गोलीबारी से शहर और गांवों के लोग कैसे पूरे साल दहलते रहे। बढ़ती राजनीतिक हिंसा के साथ ही पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता जनाधार, वामदलों के साथ कांग्रेस का सिमटता आधार और तृणमूल कांग्रेस की वोटों के लिए तुष्टीकरण नीति का गहराई से आकलन किया गया है। राजनीति में अवैध हथियारों और काला धन के बढ़ते प्रभाव को उजागर किया गया है। राजनीति चमकाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार, राज्यपालों, चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों पर हमलों का सटीक विश्लेषण।
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Garuda Prakashan, Hindi Books, रामायण/रामकथा
Ram Katha Sitaron Se Suniye
राम कथा सितारों से सुनिए पुस्तक में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित श्रीराम की मूल जीवन गाथा में दिए गए घटनाक्रम को बताते हुए उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की वास्तविक तिथियों के समय देखे गए आकाशीय दृश्यों को इस प्रकार बुन दिया गया है कि वो चरितावली में अंतर्निहित हो गए।
पाठक यह देखकर आनंदित हो सकते हैं कि जब श्रीराम का जन्म हुआ था तो पांच ग्रहों को अपने अपने उच्च स्थान में दर्शाते हुए आकाश किस प्रकार सुंदर और चमकदार दिखाई दे रहा था।पढ़ें बाबड़ी मस्जिद के नीचे मिले प्राचीन भव्य राम मंदिर के प्रमाण, चित्रों सहित 7000 वर्ष पुराने ताम्बे के वाणाग्र सोने चाँदी के आभूषण बहुमूल्य पत्थरों व मोतियों के गहने टैराकोटा के बर्तन व अन्य वस्तुएँ तथा विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे व फसलों के चित्र भी इस पुस्तक में शामिल हैं। रामसेतु के विषय में कुछ अद्भुत तथ्य भी जानें।
यह पुस्तक सरोज बाला तथा दिनेश अग्रवाल जी का सराहनीय प्रयास है। पढ़ने में आनंद अवश्य आएगा ।
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Diamond Books, Hindi Books, इतिहास
RAM KI AYODHYA
प्रस्तुत पुस्तक ‘राम की अयोध्या’ आज अत्याधिक प्रासंगिक है, क्योंकि अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर कई दशकों से विवाद चल रहा था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने खत्म कर दिया है। यह पुस्तक राम मंदिर निर्माण में आने वाली तमाम राजनीतिक और कानूनी दाव-पेचों को पाठकों तक पहुंचाने का काम करेगी। यह पुस्तक पाठकों की समझ बढ़ाएगी, क्यों राम मंदिर विवाद पैदा हुआ? अयोध्या नगरी का निर्माण कैसे हुआ? इतने वर्षों तक विवाद क्यों और कैसे चला? किन सबूतों के आधार पर राम मंदिर निर्माण का फैसला हुआ? यह पुस्तक श्री राम की अयोध्या को सम्पूर्ण रूप से समझने में पाठकों की मदद करेगी। गत दो दशकों में अपने समसामयिक लेखन के बल पर श्री सुदर्शन भाटिया ने एक नई पहचान बनाई है। यह इस बात से भी सिद्ध हो जाता है कि इन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद अपना सारा समय लेखन में लगा दिया और पिछले दस-पन्द्रह वर्षो में अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘अन्ना की जंग’ और ‘प्रणव मुखर्जी की जीवन गाथा’ बहुत चर्चित हुईं।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Ram Manohar Lohia: Jeevan Aur Vyaktitva
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Ram Manohar Lohia: Jeevan Aur Vyaktitva
“इतिहास अध्ययन का वह स्त्रोत है, जो मानव जीवन, उसका लक्ष्य तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किए गए विभिन्न प्रयासों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करता है। 1917 से 1947 तथा उसके बाद का कालखंड भारतवर्ष के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इस युग में कई ऐसे महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने अपनी कृतियों के द्वारा इतिहास में स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया।
ऐसे ही महापुरुषों में डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम स्तुत्य है, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में, उसके आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोहिया का दर्शन शाश्वत है, जो देश व काल की परिधि से ऊपर है। उनके विचारों को हम विश्व-राजनीति में परिलक्षित होते देख रहे हैं। भारतीय राजनीतिज्ञ उनके चिंतन-वर्धन से अत्यधिक प्रभावित तो हैं ही, साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनके समाजवादी आंदोलन ने जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला है। ऐसे बहुआयामी राम मनोहर लोहिया पर यह पुस्तक पाठकों और भावी पीढिय़ों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगी।”SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, रामायण/रामकथा
Ram Phir Laute (HB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, रामायण/रामकथाRam Phir Laute (HB)
राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है। कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है, वह राम है।
ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं। अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में, जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिंदू समाज को संघर्ष करना पड़ा। यह मंदिर सनातनी आस्था का शिखर है।
‘राम फिर लौटे’ राममयता के विराट् संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास के पड़ावों की यात्रा करते हुए यह पुस्तक राम के उन मूल्यों को नए संदर्भों में विचारती है, जिनके कारण मंदिर राम की चेतना का नाभिकीय केंद्र बनेगा। यह उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का आधार होगा, जो तोड़ते, नहीं जोड़ते हैं।
अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अंतसंबंधों को समझने का नया गवाक्ष खोला है। ‘राम फिर लौटे’ इसी गवाक्ष से रामतत्त्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता तो नए संदर्भों में देखती है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, रामायण/रामकथा
Ram Phir Laute (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, रामायण/रामकथाRam Phir Laute (PB)
राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। मानव चरित्र की श्रेष्ठता और उदात्तता का सीमांत राम से बनता है। कष्ट और नियति चक्र के बाद भी राम का सत्यसंध होना भारतीयों के मनप्राण में गहरे तक बसा है। हर व्यक्ति के जीवन में हर कदम पर जो भी अनुकरणीय है, वह राम है।
ऐसे राम अयोध्या में फिर लौट आए हैं। अपने भव्य, दिव्य और विशाल मंदिर में, जिसके लिए पाँच सौ साल तक हिंदू समाज को संघर्ष करना पड़ा। यह मंदिर सनातनी आस्था का शिखर है।
‘राम फिर लौटे’ राममयता के विराट् संसार के समकालीन और कालातीत संदर्भों का पुनर्मूल्यांकन है। राम मंदिर आंदोलन के इतिहास के पड़ावों की यात्रा करते हुए यह पुस्तक राम के उन मूल्यों को नए संदर्भों में विचारती है, जिनके कारण मंदिर राम की चेतना का नाभिकीय केंद्र बनेगा। यह उन उदात्त भारतीय जीवन मूल्यों का आधार होगा, जो तोड़ते, नहीं जोड़ते हैं।
अयोध्या के राममंदिर ने राम और भारतीयता के गहरे अंतसंबंधों को समझने का नया गवाक्ष खोला है। ‘राम फिर लौटे’ इसी गवाक्ष से रामतत्त्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता तो नए संदर्भों में देखती है।
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