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Hind Yugm, Literature & Fiction, उपन्यास
Ghar Wapasi (PB)
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Gharaunda
मनु शर्मा के तीन उपन्यासों की कड़ी में यह पहला उपन्यास है। ‘घरौंदा’ का कालखंड लगभग 1930 से आरंभ होता है। कथा एक पाँच-छह वर्ष के बालक का पीछा करती है। इस उपन्यास में एक गरीब परिवार कड़कड़ाते जाड़े को कैसे भोगता है, टूटी चारपाई और फटी गुदड़ी केनीचे पड़े एक खाँसते-कूँखते व्यक्ति का उसके इकलौते बालक पर क्या प्रभाव पड़ता है, दिल को छूनेवाला इसका वृत्तांत उपन्यास में है।
घरौंदे बनाने और मिटाने वाले बालक जग्गू को क्या मालूम कि उसके सामने एक घरौंदा टूट रहा है। जग्गू इस उपन्यास का नायक है, जो आगे चलकर काल की ठोकरें खाता हुआ ‘जयनाथ’ बन जाता है।
वह जीवन के अनेक परिवर्तनों के साथ समाज के बदलते परिवेश का भी साक्षी बनता है—आजाद भारत का सपना, अंग्रेजों का अत्याचारी कुशासन और सांप्रदायिक दंगे।
जग्गू के शैशव का प्रतीक यह ‘घरौंदा’ बाल सुलभ जिज्ञासाओं, कुतूहल और एक माँ के लाचारी मन को गहरे तक उद्वेलित करता है।
तो क्या यह ऐतिहासिक उपन्यास है? नहीं। ऐतिहासिक उपन्यास में घटनाएँ और चरित्रों के केवल नाम सच होते हैं, बाकि सब काल्पनिक। उसमें कल्पना से परिवेष्ठित सच होता है, इसमें सत्य से परिवेष्ठित कल्पना। तो यह ग्रंथ इतिहास भी है और उपन्यास भी। काव्य के विविध उपाख्यानों के साथ आधी शताब्दी का महाख्यान है—‘घरौंदा’।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Ghumantu Janjatiya – Samaj Ka Upekshit Varg
घुमंतू जनजातियाँ – समाज का उपेक्षित वर्ग
प्रस्तुत पुस्तक भारत की घुमंतू जनजातियों के ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सिनेमापरक विभिन्न आयामों का संकलन है। Ghumantu Janjatiya (Nomadic Tribes)
घुमंतू जनजातियों की चेतना को समर्पित यह पुस्तक घुमंतू जनजातियों के लोक गीत, लोक कथा, लोक नाट्य की परम्परागत संस्कृति का परिचय प्रदान करने वाली हिन्दी में अपनी तरह की एक अनूठी पुस्तक है।
accordingly यह पुस्तक घुमंतू जनजातियों के समकालीन जीवन-संदर्भ तथा भूमण्डलीकृत भारत में उनकी यथार्थ स्थिति को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। निसंदेह घुमंतू जनजातीय जीवन में रूचि रखने वाले तथा उनके जीवन पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक बेहद उपयोगी सिद्ध होगी।
Ghumantu Janjatiya (Nomadic Tribes)
additionally भारत में जनजातियों की परिकल्पना मुख्य रूप से वृहत भारतीय समाज से उनके भौगोलिक और सामाजिक अलगाव के रूप में की जाती है और इसमें उनके सामाजिक रूपांतरण के चरण को ध्यान में नहीं रखा जाता है। यही वजह है कि सामाजिक रूपांतरण के विभिन्न स्तरों पर समूहों और समुदायों का एक विस्तृत दायरा जनजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया।
also एक पुरानी कहावत है – रमता जोगी, बहता पानी। इनका कहीं ठहराव नहीं होता। चलते या बहते रहना इनकी नियति है, लेकिन हमारे विशाल देश में करोड़ों ऐसे लोग भी हैं, जिनकी नियति भी कुछ ऐसी ही है। एक से दूसरे स्थानों पर भटकते रहना। कभी इस गांव तो कभी उस शहर। इसमें अधिकत्तर लोग विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों से संबंधित है।
आखिर कौन है विमुक्त जनजातियां इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिन लोगों ने लोहा लिया था। ब्रिटिश हुकूमत ने उन कट्टर सशस्त्र विद्रोही समुदायों को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के तहत जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था और भारत सरकार ने आजादी के 5 वर्ष बाद 31 अगस्त 1952 को ब्रिटिश हुकूमत के इस काले कानून क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट से मुक्त कर दिया था, काले के कानून से मुक्त होने के बाद अब वे विमुक्त जनजातियां कहलाती हैं।
specifically यह बहुत ही विचारणीय बिंदु है कि विश्व के लगभग 53 देशों में अंग्रेजों का शासन था, लेकिन क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट केवल भारत में ही क्यों लागू किया गया था। अंग्रेजों द्वारा घोषित की गई अपराधी जनजातियों या विमुक्त जनजातियों (Ex-Criminal Tribes) के बारे में आज भी तथाकथित अभिजात्य वर्ग एवं जन सामान्य की सोच यह है कि यह चोरी-चकारी जैसे आपराधिक कृत्य में संलिप्त जातियां हैं। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है।
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Vani Prakashan, कहानियां
GIRIJA
गिरिजा देवी का संगीत रचना सुनते हुए मन की उसाँस किसी अँधेरेी गह्वर गुफ़ा से निकलकर एक बिम्ब विधान रचती है, यह एक कला का दूसरी कला के प्रति अपने गहन आभार का स्तुतिगान भी है। संगीत के असीम कुहासे और मौन को भेदता हुआ एक भित्ति चित्र। यतीन्द्र मिश्र की यह पुस्तक एक बार पुनः इस बात की पुष्टि करती है कि हर कला संगीत के सर्वोपरि शिखर पर पहुँचने का स्वप्न देखती है। कविता के भीतर से उठता हुआ संगीत का स्वप्न…किसी संगीतकार की कला को संगीत में बाँधना कुछ वैसा ही दुष्कर कार्य है, जितना बहते झरने की कलकल धारा को अपनी मुट्ठी में समो पाना। किन्तु जितनी बूँदें भी हाथ लगती हैं, उनमें समूचे ‘सम्पूर्ण’ का रोमांचित स्वर अनुगूँजित हो जाता है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Girnar ke Siddha Yogi
अनंत दास संघ शिविर में तथा संघ शिक्षा वर्ग में ‘बौद्धिक कक्ष’ में सेवारत होने के कारण संघ साधना के तपस्वी और ऋषितुल्य प्रचारकजी के संग रहे हैं। राष्ट्रभावना के संस्कार उनमें दृढ़ हो गए। महापुरुषों-तपस्वियों के जीवन चरित्रों का वाचन, लेखन, चिंतन और पूर्वाश्रम के संस्कारों के कारण भी वे कभी-कभी स्वयं का जूनागढ़ गिरनार के प्रति अतिशय आकर्षण होना बताते हैं। समय मिलते ही वे यदा-कदा गिरि-कंदराओं में जाकर साधु-संतों के संपर्क में रहते थे; वे गिरनार के प्रति गैबी-प्रेरणा का तीव्र आकर्षण बताते थे और सच ही सेवानिवृत्ति के बाद अनंत दादा ने गिरनार का पथ पकड़कर, गिरनार में निवास करने वाले श्रेष्ठ तपस्वियों, आदर्श साधु-संतों और आश्रमों में रहकर तप, साधना, विचार, वाचन, चिंतन, अनुभव एवं चमत्कारी अनुभूतियाँ प्राप्त की हैं। उनके परिणामस्वरूप और किसी गैबी शक्ति की प्रेरणा से ‘अमृत फल स्वरूप’, ‘गिरनार के सिद्ध योगी’ पुस्तक का सृजन हुआ है।
यथार्थ में, पुस्तक में ‘गिरनार’ के सूक्ष्म स्वरूप का दर्शन करवाकर सभी आध्यात्ममार्गियों की श्रद्धा को पुष्ट किया है और सद्गुरु चरित्र का सटीक वर्णन करके समाज में साधु-संतों की सुंदर पहचान करवाई है। यह पुस्तक लंबे समय तक अध्यात्ममार्गियों का मार्गदर्शन करती रहेगी, इसमें कोई शंका नहीं है।SKU: n/a -
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gita Prashnottari
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGita Prashnottari
“गीता’ वह ईश्वरीय वाणी है, जिसमें धर्म संवाद के माध्यम से—मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अंत है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा? मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा, इन सभी के प्रश्नों के उत्तर भगवान् श्रीकृष्ण ने बड़े सहज ढंग से दिए हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वभावगत कर्म में लगे रहने को ‘श्रेष्ठ योग’ कहा है। उनके अनुसार, कर्म अवश्यंभावी है। बिना कर्म के मुक्ति पाना तो दूर, मनुष्य बनना भी कठिन है। स्वाभाविक कर्म करते हुए बुद्धि का अनासक्त होना सरल है।
इस प्रकार, ‘गीता’ ज्ञान का भंडार है। इसमें सात सौ श्लोक और अठारह अध्याय हैं। इसके उपदेश को सरलता और सहजता से समझाने के लिए मैंने इसे अध्याय-दर- अध्याय प्रश्नोत्तरी फॉरमेट में प्रस्तुत किया है, ताकि बड़ों के साथ-साथ स्कूल- कॉलेज के विद्यार्थी भी क्विज प्रतियोगिता के माध्यम से इसके संदेश को खेल-खेल में ही ग्रहण कर लें।”
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Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
GITA SADHAK SANJEEVANI (Code 6)
गीता-साधक-संजीवनी—ब्रह्म लीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजने गीतोक्त जीवनकी प्रयोगशालासे दीर्घकालीन अनुसन्धानद्वारा अनन्त रत्नोंका प्रकाश इस टीकामें उतार कर लोककल्याणार्थ प्रस्तुत किया है, जिससे आत्मकल्याणकामी साधक साधनाके चरमोत्कर्षको आसानीसे प्राप्त कर आत्मलाभ कर सकें। इस टीकामें स्वामीजीकी व्याख्या विद्वत्ता-प्रदर्शनकी न होकर सहज करुणासे साधकोंके लिये कल्याणकारी है। विविध आकार-प्रकार, भाषा, आकर्षक साज-सज्जामें उपलब्ध यह टीका सद्गुरुकी तरह सच्ची मार्गदॢशका है।
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Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gita-Darpan (0008)
सरल-से-सरल शैली में गीतोक्त जीवन-कला के संवाहक श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी द्वारा प्रणीत इस ग्रंथरत्न के स्वाध्याय से अनेक भावुक भक्त गीता रूपी दर्पण के द्वारा आत्मपरिष्कार कर चुके हैं। इसमें गीता को सुबोध रूप में प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत किया गया है तथा गीता को विभिन्न दृष्टियों से विचार की कसौटी पर कसते हुए प्रधान-प्रधान विषयों को विशद व्याख्या से समलंकृत किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें गीता-व्याकरण एवं छन्द-सम्बंधी ज्ञान से भी परिचित कराया गया है।
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
There are many commentaries on the Gita which generally lack in the Vedic thought. This work, not only presents the Vedic but also the thought of the entire Mahabharata in its interpretation of the Gita by Anirvan, a great scholar of Vedas and Vedic literature.
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Bhartiya Vidya Bhavan, English Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Glimpses of Indian History & Culture
Bhartiya Vidya Bhavan, English Books, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिGlimpses of Indian History & Culture
The book gives readers a glimpse of Indian history and culture in brief. Various episodes, writeups of well known Indians , heroes, epic characters and prehistoric ones are included in the book
As the author has said, this book is for the lay person
who does not want to be cluttered with dates and names of kings and the like. Bhim, Sindhuputra, Rama Krishna, Buddha, Ashoka, Shankaracharya, Akbar are all included in the book.
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Rajpal and Sons, उपन्यास, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gobind Gatha
“सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के आदर्शपूर्ण जीवन और उनकी वीरता, धीरता तथा संघर्ष की लोमहर्षक अमरगाथा उपन्यास के रूप में। गुरु के बहुआयामी व्यक्तित्व का चित्रात्मक विवरण जिसमें औपन्यासिकता और इतिहास की प्रमाणिकता दोनों का मनोहर संगम मिलता है- सम्मोहक और प्रवाहपूर्ण शैली में। यह उपन्यास लेखक की पूर्व कृति ‘का के लागू पाँव’ की दूसरी तथा अंतिम कड़ी है। यूं दोनों उपन्यास अपने में स्वतंत्र हैं जहाँ। ‘का काके लागू पाँव’ में उनकी नौ वर्ष तक की आयु की कथा थी, वहीं इसमें उससे आगे की गाथा है, निर्वाण तक की। उपन्यास प्रारंभ से लेकर अंत तक पाठक के मन को अपनी मोहिनी में बांधे रखता है। भगवतीशरण मिश्र की नवीनतम औपन्यासिक कृति।”
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांGogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
गोगादेव चौहान – परम्परा और इतिहास : राजस्थान को लोक संस्कृति में अनेक अद्भुत विशेषताएं विद्यमान हैं। यहाँ के लोक देयता पौराणिक देवताओं से भिन्न हैं और उनमें अपनी अनेक विशिष्टताएं हैं। डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने ‘गोगादेव चौहान – इतिहास एवं परम्परा’ में विशुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोक देवता गोगाजी से सम्बन्धित परम्पराओं के मूल में निहित गहरे से गहरे सत्य को अपनी विश्लेषणात्मक मर्मज्ञता और ऐतिहासिक सूझ के आधार पर उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया है। रामदेवजी के भारत प्रसिद्ध रामदेवरा मेले के समकक्ष गोगामेड़ी में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने वाले मेले के नायक गोगाजी से सम्बन्धित प्रामाणिक साधनों पर आधारित सामग्री के कारण इस सम्बन्ध में प्रचलित अनेक रूढियों का बोधगम्य सत्य उजागर करने का श्रेय प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक को प्राप्त है। गोगादेव चौहान के महमूद गजनबी से संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के मध्य विरोधाभास रहा है, डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय हुए गोगा से संघर्ष, घग्घर के निकट हुए संघर्ष आदि से सम्बन्धित साधनों का विस्तार से विवेचन कर यह विश्वसनीय रूप से सिद्ध कर दिया है कि यह युद्ध थानेश्वर के निकट हुआ था।
रामसा पीर की भांति पीर (जाहर पीर) के रूप में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य गोगाजी के जीवनवृत्त का अत्यंत ही प्रामाणिक विवरण न केवल अनेक भ्रांतियों के निवारण में सक्षम होगा अपितु इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं के साथ ही साधारण पाठकों के लिए भी सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा। गोगाजी में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह ग्रंथ नि:सन्देह अद्वितीय निधि के रूप में ख्याति अर्जित करेगा।SKU: n/a -
English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Gokarn Across Bharat
Gokarn as an aspect of Lord Shiva finds mention in ancient Sanskrit texts of Ramayana, Mahabharat, Shrimad Bhagwat, and several Puranas including Skand Purana’s Sahyadri Khand, Gokarn Purana, Shiv Purana, Linga Purana, etc. As a form of the Atmalingam of Lord Shiva in Mount Kailash, Gokarn finds mention in similar forms across the sacred geography of ancient Bharatvarsha. This book is a search for ‘Gokarn’ and the ancient historical, cultural, spiritual and religious linkages that span several millennia and is an attempt to discover and collate this expanse of literature across Bharat in a single book. Great persons such as Lord Rama, Parshurama, Kadambas, Cholas, Adi Shankaracharya, Chalukyas, Krishnadeva Raya, Chhatrapati Shivaji Maharaj, Rani Ahilyabai Holkar and several Rishis and sages across millennia have influenced Gokarn. Several foreign travellers have visited Gokarn and coastal Kanara and left accounts of their times which this book features and brings out the profound cultural, spiritual, political and historical landscape of our heritage.
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Goli (PB)
गोली : हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित उपन्यास ‘गोली’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। इस उपन्यास में शास्त्री जी ने राजस्थान के राजा-महाराजाओं और उनके महलों के अंदरूनी जीवन को बड़े ही रोचक, मार्मिक तथा मनोरंजन के साथ पेश किया है। उन्होंने ‘गोली’ उपन्यास के माध्यम से दासियों के संबंधों को उकेरते हुए समकालीन समाज को रेखांकित किया है। ‘गोली’ एक बदनसीब दासी की करुण-व्यथा है जिसे जिन्दगीभर राजा की वासना का शिकार होना पड़ा, जिसकी वजह से उसके जीवनसाथी ने भी उसे छूने का साहस नहीं किया। यही इस उपन्यास का सार है। इसी कारण ‘गोली’ को हमेशा एक प्रामाणिक दस्तावेज माना जाएगा। शास्त्रीजी ने ‘गोली’ उपन्यास में अपनी समर्थ भाषा शैली की वजह से अद्भुत लोकप्रियता हासिल की तथा वे जन साहित्यकार बने।
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