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Vyatha Kahe Panchali (Hindi)


“पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे।
खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे।

काश विशेधी हो जाती मैं।
थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं।

काश न मेरे हिस्से होते।
शुरू नहीं फिर किस्से होते।

काश वर्ण को वर लेती मैं।
वाणी वश में कर लेती मैं।

कर्ण अगर ना होता शायद।
तो संग्राम न होता शायद।

दुःशासन मतिमंद न होता।
रिश्तों में फिर द्वंद न होता।

जो दुर्योधन क्रुद्ध न होता।
तो शायद ये युद्ध न होत।

यूँ ना काश विभाजन होता।
अर्जुन ही बस साजन होता।

खुले अगर ये बाल न होते।
श्वेत्‌ पृष्ठ फिर लाल न होते

यदि मेरा अपमान न होता।
गिद्धों का जलपान न होता।

मौन अगर गुरुदेव न होते।
रण आँगन में प्राण न खोते।

काश सत्य का साथ निभाते।
और बड़े भी कुछ कह पाते।

सत्य यही जो समर न होता।
कुरुक्षेत्र फिर अमर न होता।

नारी का अपमान न होता।
कुरुक्षेत्र शमशान न होता।

Rs.1,020.00 Rs.1,200.00

  •  Urvashi Agrawal ‘Urvi’
  •  9789390923045
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  1st
  •  2022
  •  648
  •  Soft Cover
Weight 0.850 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

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