Urvashi Agrawal ‘Urvi’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Vyatha Kahe Panchali (Hindi)
“पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे।
खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे।काश विशेधी हो जाती मैं।
थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं।काश न मेरे हिस्से होते।
शुरू नहीं फिर किस्से होते।काश वर्ण को वर लेती मैं।
वाणी वश में कर लेती मैं।कर्ण अगर ना होता शायद।
तो संग्राम न होता शायद।दुःशासन मतिमंद न होता।
रिश्तों में फिर द्वंद न होता।जो दुर्योधन क्रुद्ध न होता।
तो शायद ये युद्ध न होत।यूँ ना काश विभाजन होता।
अर्जुन ही बस साजन होता।खुले अगर ये बाल न होते।
श्वेत् पृष्ठ फिर लाल न होतेयदि मेरा अपमान न होता।
गिद्धों का जलपान न होता।मौन अगर गुरुदेव न होते।
रण आँगन में प्राण न खोते।काश सत्य का साथ निभाते।
और बड़े भी कुछ कह पाते।सत्य यही जो समर न होता।
कुरुक्षेत्र फिर अमर न होता।नारी का अपमान न होता।
कुरुक्षेत्र शमशान न होता।SKU: n/a