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Vivek-Choodamani (HB)


‘ब्रह्म सत्यं’ जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्र्चयः,
सोअयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः।
—20
काव्यानुवाद—चौपाई छंद में

ब्रह्म सत्य और जगत है मिथ्या।
यहि दृढ़ अटल सत्य है तथ्या॥
अथ निश्चय दृढ़ अविचल एका। नित्यानित्यं वस्तु विवेका॥

आत्म-अनात्म विवेक, नित्य-अनित्य विवेक, सत्य-असत्य विवेक सारा ज्ञान द्वैतात्मक है—विलोम की स्थिति के बिना कैसे दूसरे पक्ष को जाना जा सकता है। संसार, शरीर और अनात्म विषयों में उलझे मन यह भूल जाते हैं कि यथार्थ साधना अंतःकरण में संपन्न होती है। आत्मा नित्य है, अतः इसका कोई मूल तत्त्व या उपादान कारण नहीं है, आत्मा को आत्म-तत्त्व से ही जान पाना संभव है। परम तत्त्व का अनुसंधान, ब्रह्म विषयक ज्ञान, उस असीम को ससीम से जान पाना संभव नहीं। अंतर्वर्ती अंतश्चेतना का जागरण करते हुए, जीव-जगत्-जन्म में अनावश्यक आसक्ति के प्रति सजग रहते हुए, सर्वत्र शुद्ध भगवद्-दृष्टि पाकर सर्वथा जीवन्मुक्त अवस्था से कैवल्य पाना ही सर्वोत्तम सिद्धि है, जिसका ज्ञान और प्राप्ति ही ‘विवेक-चूड़ामणि’ का कथ्य विषय है।

Rs.599.00 Rs.700.00

  •  Dr. Mridul Kirti
  •  9789353221461
  •  Hindi
  •  Prabhat Prakashan
  •  1st
  •  2019
  •  360
  •  Hard Cover
Weight 0.850 kg
Dimensions 8.7 × 5.57 × 1.57 in

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