AUTHOR :Premchand
PUBLISHER : Prabhat Prakashan
LANGUAGE : Hindi
ISBN : 9789384344122
BINDING :HardCover
PAGES : 160
Weight | .450 kg |
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Dimensions | 7.50 × 5.57 × 1.57 in |
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Prabhat Prakashan, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Chanakya Neeti
0 out of 5(0)Acharya Chanakya
विष्णुगुप्त चाणक्य एक असाधारण बालक थे। उनके पिता चणक एक शिक्षक थे। वह भी शिक्षक बनना चाहते थे। उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशात्र की शिक्षा ग्रहण की। इसके पूर्व वेद, पुराण इत्यादि वैदिक साहित्य का उन्होंने किशोर वय में ही अध्ययन कर लिया था।
उनकी कुशाग्र बुद्धि और तार्किकता से उनके साथी तथा शिक्षक भी प्रभावित थे; इसी कारण उन्हें ‘कौटिल्य’ भी कहा जाने लगा। अध्ययन पूरा करने के बाद तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही चाणक्य अध्यापन करने लगे। इसी दौर में उत्तर भारत पर अनेक विदेशी आक्रमणकारियों की गिद्धदृष्टि पड़ी, जिनमें सेल्यूकस, सिकंदर आदि प्रमुख हैं। परंतु चाणक्य भारतवर्ष को एकीकृत देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तक्षशिला में अध्यापन-कार्य छोड़ दिया और राष्ट्रसेवा का व्रत लेकर पाटलिपुत्र आ गए।
चाणक्य का जीवन कठोर धरातल पर अनेक विसंगतियों से जूझता हुआ आगे बढ़ा। कुछ लोग सोच सकते हैं कि उनका जीवन-दर्शन प्रतिशोध लेने की प्रेरणा देता है; लेकिन चाणक्य का प्रतिशोध निजी प्रतिशोध न होकर सार्वजनिक प्रतिशोध था। उन्होंने जनता के दुख-दर्द को देखा और स्वयं भोगा था। उसी की फरियाद लेकर वे राजा से मिले थे। घनानंद चूँकि प्रजा का हितैषी नहीं था, इसलिए चाणक्य ने उसे खत्म करने का प्रण किया।
उन्होंने ‘चाणक्य नीति’ जैसा नीतियों का एक अनमोल खजाना दुनिया को दिया, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है।SKU: n/a -
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Hamare Shri Guruji – Hindi (PB)
0 out of 5(0)मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मेरी पुस्तक ‘हमारे गुरुजी’ को ‘अखिल भारतीय विष्णु प्रभाकर पुरस्कार’ प्रदान किया गया है। इसके लिए साहित्य अकादमी और मध्यप्रदेश सरकार का हृदय से धन्यवाद।
धन्यवाद उन पाठकों और दर्शकों का भी जिनके स्नेह के कारण यह पुस्तक एक लंबी यात्रा तय कर सकी। मैं अपना यह पुरस्कार मेरे सभी सुधी पाठकों को समर्पित करता हूं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन् 1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी, लेकिन इसे वैचारिक आधार द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने प्रदान किया था।
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Mera Aajeevan Karavas (PB)
0 out of 5(0)भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में स्वातंत्रवीर विनायकदामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य औरउत्कट देशभक्ति का पर्याय है। अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होंने जेल-जीवन की भीषण यातनाओं- ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुँचने पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का कूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अमानवीय शारीरिक यातनाएँ यथा-कोडे लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित करदेनेवाला है। विषम परिस्थितियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पड़ाने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यो को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होंने अपनी खुफिया गतिविधियों चलाई आदि का सच्चा इतिहास वर्णित है।
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