Gorakh Vedant
गोरख वेदान्त
Rs.325.00
Gorakh Vedant
गोरख वेदान्त
Weight | .495 kg |
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Dimensions | 8.66 × 5.57 × 1.57 in |
Author : Anubhavnath Shivyogi
Language : Hindi
Edition : 2021
ISBN : 9789390179411
Publisher : RG GROUP
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छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अलौकिक है। उसमें अदम्य साहस और नेतृत्व के विरले गुण अभिव्यक्त होते हैं। वर्तमान समय में यह महान् व्यक्तित्व और भी सामयिक हो चला है। शिवाजी के स्वराज्य की संकल्पना के मूल तत्त्व यदि आज लागू किए जाएँ तो भारत निस्संदेह विश्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकता है।
‘छत्रपति शिवाजी : विधाता हिंदवी स्वराज्य का’ लिखने का मुख्य उद्देश्य महान् शिवाजी के जीवन-मूल्यों को युवा पीढ़ी से परिचित करवाना और वरिष्ठजनों के लिए उस स्वर्णिम कालखंड की स्मृति ताजा करना है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य एवं साहस से परिपूर्ण तेजस्वी जीवन का विहंगम दिग्दर्शन कराती सबके लिए पठनीय कृति।
यह आम धारणा है कि सरदार पटेल कांग्रेस के तीन दिग्गजों-महात्मा गांधी, पं. नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के खिलाफ थे। किंतु यह मात्र दुष्प्रचार ही है। हाँ कुछ मामलों में-खासकर सामरिक नीति के मामलों में-उनके बीच कुछ मतभेद जरूर थे, पर मनभेद नहीं था। परंतु जैसा कि इस पुस्तक में उद्घाटित किया गया है, सरदार पटेल ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिए जाने के प्रस्ताव पर गांधीजी का विरोध नहीं किया था; यद्यपि वह समझ गए थे कि ऐसा करने की कीमत चुकानी पड़ेगी। इसी तरह उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में पं. नेहरू के प्रति भी उपयुक्त सम्मान प्रदर्शित किया। उन्होंने ही भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में शामिल करने के लिए पं. नेहरू को तैयार किया था; यद्यपि नेहरू पूरी तरह इसके पक्ष में नहीं थे। जहाँ तक सुभाष चंद्र बोस के साथ उनके संबंधों की बात है, वे सन् 1939 में दूसरी बार सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के खिलाफ थे। सुभाषचंद्र बोस ने जिस प्रकार सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल-जिनका विएना में निधन हो गया था-के अंतिम संस्कार में मदद की थी, उससे दोनों के मध्य आपसी प्रेम और सम्मान की भावना का पता चलता है।
अपने समय के चार दिग्गजों के परस्पर संबंधों और विचारों की झलक देती महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Vinayak Damodar Savarkar
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1909 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंत:करणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा? भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
मूलत: यह पुस्तक ‘स्वान्त: सुखाय’ ही लिखी गई है। एक और लक्ष्य भी रहा है। वह है भारत तथा विदेशों में रहती भारत-मूल की युवा पीढ़ी को प्राचीन भारतीय पारंपरिक ज्ञान से परिचित कराना।
रामचरितमानस ज्ञान का भंडार है। इस ‘दोहा शतक’ में रामचरितमानस से मूलत: ऐसे दोहों या चौपाइयों का चयन किया गया है, जो साधारण मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन दोहों-चौपाइयों को हिंदी में दिया गया है, साथ-साथ उनका अंग्रेजी में अनुवाद भी दिया गया है। इस कारण जो पाठक हिंदी से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, उन्हें भी इन दोहो-चौपाइयों में छिपे ज्ञान का लाभ मिल सके। विद्वान् लेखक ने अपने सुदीर्घ अनुभव और अध्ययन के बल पर अपनी टिप्पणी भी लिखी है, जिन्हें पाठकगण अपने जीवन-अनुभवों व विचारों के अनुसार उन्हें आत्मसात् कर सकते हैं।
मानस के विशद ज्ञान को सरल-सुबोध भाषा में आसमान तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास।
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