PHILOSOPHY
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bauddha Kapalika Sadhana Aura Sahitya
हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी। यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अत: बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया। यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bharatiya Rahasyavad
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रBharatiya Rahasyavad
प्रो० राधेश्याम दूबे मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के अध्येता हैं। भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं का अध्ययन करते समय लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को ध्यान में रखा है। वस्तुत: भारतीय अध्यात्मविद्या अथवा ब्रह्मïविद्या ही भारतीय रहस्यवाद है। प्राचीन भारतीय वाङ्मय में रहस्यवाद के अर्थ में अध्यात्मविद्या, ब्रह्मïविद्या, उपनिषद्, गुह्यïविद्या, गुह्यïमार्ग आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। योग, भक्ति, कर्म और ज्ञान – ये भारतीय अध्यात्मसाधन के प्रधान उपाय हैं। अत: साधन की दृष्टि से विचार करते हुए लेखक ने भारतीय रहस्यवाद को चार भेदों में विभक्त कर (जैसे-योगपरक, रहस्यवाद, भक्तिपरक रहस्यवाद, ज्ञानपरक, रहस्यवाद, कर्मपरक रहस्यवाद) उनकी व्याख्या की है। भारतीय रहस्यवाद का विकासात्मक स्वरूप प्रस्तुत करते हुए विद्वान लेखक ने उसके तात्त्विक स्वरूप की विवेचना की है। इस प्रकार इस ग्रन्थ के अध्ययन द्वारा रहस्यवाद अथवा भारतीय रहस्यवाद के सन्दर्भ में हिन्दी के पाठकों के मन में जो भ्रम की स्थिति बनी रहती है, वह दूर हो जाती है।
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Akshaya Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Buddhiyoga of The Gita and Other Essays
The present volume contains nine essays, the first on Buddhiyoga being the most considerable. In these essays, Sri Anirvan covers a wide area and touches upon most of the salient points of Hindu spirituality, directly and indirectly. He roams through the vast territory of Hindu philosophical and;theosophical thought with ease and familiarity. He combines scholarship with sadhana supported by an intellect which is analytic as well as synthetic.
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Gitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताGitanuvachan: Gita par Swami Satyanand ki jijnasaom ka Srimat Anirvan dwara samadhan
There are many commentaries on the Gita which generally lack in the Vedic thought. This work, not only presents the Vedic but also the thought of the entire Mahabharata in its interpretation of the Gita by Anirvan, a great scholar of Vedas and Vedic literature.
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Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan
Hindu Shaddarshan [PB]
प्रख्यात महाग्रन्थ ‘जपसूत्रम्’ के प्रणेता महान् दार्शनिक, गणितज्ञ तथा मनीषी स्वामी प्रत्यगात्मानन्द प्रणीत ‘हिन्दू षड्दर्शन’ के भाषानुवाद का प्रस्तुतिकरण इस प्रसंग की सूक्ष्म विवेचना न होकर इसका दिशानिर्देश-मात्र है, जो सूत्ररूप से ग्रथित है। साथ ही षड्दर्शन का साररूप है। जो विशाल कलेवरयुक्त गूढ़ तत्त्व समावृत षड्दर्शन का समग्र अध्ययन नहीं कर सकते, तथापि इस विषय के प्रति जिज्ञासु हैं, उनके लिए यह ग्रन्थ एक पथ-प्रदीप के समान है। स्वनामधन्य ग्रन्थकार का पूर्वनाम था प्रमथनाथ मुखोपाध्याय, तत्पश्चात् संन्यासाश्रम में ये स्वामी प्रत्यगात्मानन्द सरस्वती के नाम से विख्यात हो गये। दर्शनशास्त्र का अध्यापक होने पर भी इन्होंने गणित तथा विज्ञान में उतनी ही दक्षता प्राप्त करके दीर्घकालपर्यन्त शिक्षण-कार्य भी किया था। कालान्तर में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल महोदय के निर्देशानुसार आयोजित विश्वतन्त्र सम्मेलन का इन्हें अध्यक्ष भी मनोनीत किया गया था। महान् विद्वान सर जॉन वुडरफ, महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराज भी इनके प्रति श्रद्धावान् थे। 96 वर्ष की आयु में दिनांक 20-10-1973 ई० को इन्होंने इस धराधाम का त्याग करके अनन्त की यात्रा का वरण किया था। यह ग्रन्थ केवल वागविलास न होकर इन मनीषी की गहन अनुभूति एवं चिन्तना पर आधारित होने के कारण अत्यन्त उपयोगी है। प्रत्यक्ष ज्ञानयुक्त है। अत: पठनीय है।
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, सही आख्यान (True narrative)
RELIGION AS KNOWLEDGE: The Hindu Concept
Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, सही आख्यान (True narrative)RELIGION AS KNOWLEDGE: The Hindu Concept
Summary: This book is a serious attempt at informing the average Indian, and particularly the Hindu, of his philosophy, culture and heritage. Description: This book consists of 20 chapters apart from the Introduction. The chapters are, A Brief Historical Background, Sanatana Dharma, Veda, Upanishad, Smriti, Purana, Ramayana, Mahabharata, Bhagavad Gita, Arthasastra, Kamasastra, Karma,m Chaturvarna, The Six Philosophical Systems etc.
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