Author – Hridaynarayan Dikshit
ISBN – 9788194939849
Lang. – Hindi
Pages – 356
Binding – Paperback
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Atharvved Ka Madhu
अथर्ववेद की मधु अभीप्सा गहरी है। यह सम्पूर्ण विश्व को मधुमय बनाना चाहती है। सारी दुनिया में मधु अभिलाषा का ऐसा ग्रन्थ नहीं है। कवि अथर्वा वनस्पतियों में भी माधुर्य देखते हैं। कहते हैं, “हमारे सामने ऊपर चढ़ने वाली एकलता है। इसका नाम मधुक है। यह मधुरता के साथ पैदा हुई है। हम इसे मधुरता के साथ खोदते हैं। कहते हैं कि आप स्वभाव से ही मधुरता सम्पन्न हैं। हमें भी मधुर बनायें।” स्वभाव की मधुरता वाणी में भी प्रकट होती है। प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा के मूल व अग्र भाग में मधुरता रहे। आप हमारे मन, शरीर व कर्म में विद्यमान रहें। हम माधुर्य सम्पन्न बने रहें। यहाँ तक प्रत्यक्ष स्वयं के लिए मधुप्यास है। आगे कहते हैं, “हमारा निकट जाना मधुर हो। दूर की यात्रा मधुर हो। वाणी में मधु हो। हमको सबकी प्रीति मिले।” जीवन की प्रत्येक गतिविधि में मधुरता की कामना अथर्ववेद का सन्देश है।
Rs.399.00
Weight | .350 kg |
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Dimensions | 8.57 × 5.51 × 1.57 in |
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