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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
JHONPADI WALE AUR ANYA KAHANIYAN
प्रमुख रोमानियाई कथाकार मिहाइल सादौवेन्यू द्वारा लिखित झोंपड़ी वाले तथा अन्य कहानियाँ बीसवीं सदी के आरंभ के रोमानियाई ग्रामीणों के जीवन पर आधारित है। इनमें यूरोप की उत्कट गरीबी का चित्रण है और ग्रामीणों के भोले-भाले स्वभाव का। कल-कारखानों के आने से पहले साधारण मनुष्य का जीवन भले कठिन था लेकिन कितना कलुष-रहित, इसका सटीक अंकन इन कथाओं में है। निर्मल वर्मा ने प्राग में रहते हुए इन रोमानियाई कहानियों का अनुवाद किया था। पहली बार ये साहित्य अकादमी के प्रकाशन से सन् 1966 में सामने आईं थीं।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Kala Ka Jokhim
निर्मल वर्मा के निबन्ध-संग्रहों के सिलसिले में कला का जोखिम उनकी दूसरी पुस्तक है, जिसका पहला संस्करण लगभग बीस साल पहले आया था। स्वयं निर्मलजी इस पुस्तक को अपने पहले निबन्ध-संग्रह शब्द और स्मृति तथा बाद वाले ढलान से उतरते हुए शीर्षक संग्रह के बीच की कड़ी मानते हैं जो इन दोनों पुस्तकों में व्यक्त चिन्ताओं को आपस में जोड़ती है। निर्मल वर्मा के चिन्तक का मूल सरोकार ‘आधुनिक सभ्यता में कला के स्थान’ को लेकर रहा है। मूल्यों के स्तर पर कला, सभ्यता के यांत्रिक विकास में मनुष्य को साबुत, सजीव और संघर्षशील बनाये रखनेवाली भावात्मक ऊर्जा है, किन्तु इस युग का विशिष्ट अभिशाप यह है कि जहाँ कला एक तरफ मनुष्य के कार्य-कलाप से विलगित हो गयी, वहाँ दूसरी तरफ वह एक स्वायत्त सत्ता भी नहीं बन सकी है, जो स्वयं मनुष्य की खण्डित अवस्था को अपनी स्वतन्त्रा गरिमा से अनुप्राणित कर सके। साहित्य और विविध देश-कालगत सन्दर्भों से जुडे़ ये निबन्ध लेखक की इसी मूल पीड़ा से हमें अवगत कराते हैं। अपनी ही फेंकी हुई कमन्दों में जकड़ी जा रही सभ्यता में कला की स्वायत्तता का प्रश्न ही ‘कला का जोखिम’ है और साथ ही ज़्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि ‘वही आज रचनात्मक क्रान्ति की मूल चिन्ता का विषय’ बन गया है। इन निबन्धों के रूप में इस चिन्ता से जुड़ने का अर्थ एक विधेय सोच से जुड़ना है और कला एक ज़्यादा स्वाधीन इकाई के रूप में प्रतिष्ठित हो सके, उसके लिए पर्याप्त ताकत जुटाना भी।
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Vani Prakashan, कहानियां
KALJAYEE SUR : PANDIT BHIMSEN JOSHI
पंडित भीमसेन जोशी की संगीत यात्रा को बताती ये पुस्तक कई रौचक तथ्य हमारे सामने पेश करती है। भारतीय सिनेमा दुनिया में गीत संगीत एवं नृत्य की प्रधानता के कारण एक अलग पहचान रखती है| इसके नीव में ही संगीत रही है| मूक दौर में भी भारतीय सिनेमा संगीत से अलग नहीं था| जब बोलना शुरू किया तो यह विधा मुखर रूप से विस्तार लिया| सांगीतिक रोचकता और रौनकता प्रदान करने में सलिल चौधरी, सी रामचंद्रन, मदन मोहन, नौशाद जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है| हालाँकि आज के फ़िल्मी संगीत में वह तासीर नहीं बची है, जिस संगीत से भारतीय सिनेमा की पहचान थी| गीत संगीत एवं नृत्य भारतीय सिनेमा की पहली पहचान है|
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Kavve Aur Kala Pani
निर्मल वर्मा के भाव-बोध में एक खुलापन निश्चय ही है-न केवल ‘रिश्तों की लहूलुहान पीड़ा’ के प्रति, बल्कि मनुष्य के उस अनुभव और उस वृत्ति के प्रति भी, जो उसे ‘ज़िन्दगी’ के मतलब की खोज’ में प्रवृत्त करती है। उनके जीवन-बोध में दोनों स्थितियों और वृत्तियों के लिए गुंजाइश निकल आती है और यह ‘रिश्तों की उस लहूलुहान पीड़ा’ के एकाग्र अनुभव और आकलन का अनिवार्य प्रतिफलन है…तब इन कहानियों का अनिवार्य सम्बन्ध न केवल मानव-व्यक्तियों की मूलभूत आस्तित्विक वेदनाओं से हमें दिखाई देने लगता है, बल्कि हमारे अपने समाज और परिवेश के सत्य की- हमारे मध्यवर्गीय जीवनानुभव के दुरतिक्राम्य तथ्यों की भी गूँज उनमें सुनाई देने लगती है। बाँझ दुख की यह सत्ता, अकेली आकृतियों का यह जीवन-मरण हमें तब न विजातीय लगता है, न व्यक्तिवादी पलायन, न कलावादी जीवनद्रोह। -रमेशचंद्र शाह
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
KHEL-KHEL MEIN
अनुवादक – निर्मल वर्मा तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी ‘प्राग’ अर्थात् देहरी। एक तरह से प्राग नगर यूरोप का प्रयाग रहा है- पूर्व और पश्चिम की सांस्कृतिक धाराओं का पवित्र संगम-स्थल। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में वह यहूदी विद्वानों, जर्मन लेखकों और रूसी क्रान्तिकारियों का शरण-स्थल रह चुका है। उन दिनों उसमें शायद पेरिस या वियेना या बर्लिन की चकाचौंध नहीं थी, लेकिन एक अनूठी गरिमा और संवेदनशीलता अवश्य थी, जिसने वहाँ बसने वाले जर्मन और यहूदी लेखकों की मनीषा को एक बिरले रंग और लय में ढाला था। आज भी बीसवीं शती के जर्मन और यहूदी साहित्य को प्राग से अलग करके देख पाना असम्भव लगता है। इसी प्राग नगर में साठ के दशक में हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार श्री निर्मल वर्मा ने अपने युवा वर्ष गुजारे थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ के निमन्त्रण पर वहाँ रह कर न केवल चेक भाषा सीखी, बल्कि तत्कालीन चेक साहित्य से हिन्दी जगत को सीधे परिचित करवाया। हिन्दी पाठकों के लिए यह दिलचस्प तथ्य होगा कि चेक साहित्य के गणमान्य मूर्धन्य लेखकों- कारेल चापेक, बोहुमिल हराबाल- के अलावा तब के युवा लेखकों, मिलान कुन्देरा और जोसेफ़ श्कवोरस्की की रचनाएँ हिन्दी में उस समय आयीं जब यूरोप में वे अभी अल्पज्ञात थे। यही इस संग्रह की ऐतिहासिक भूमिका है। प्रस्तुत कहानियाँ इससे पहले ‘इतने बड़े धब्बे’ नाम से 1966 में संकलित हो चुकी हैं।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Lal Teen Ki Chhat
हिन्दी कहानी को निर्विवाद रूप से एक नयी कथा-भाषा प्रदान करने वाले अग्रणी कथाकार निर्मल वर्मा की साहित्यिक संवेदना एक ‘जादुई लालटेन’ की तरह पाठकों के मानस पर प्रभाव डालती है। प्रायः सभी आलोचक इस बात पर एकमत हैं कि समकालीन कथा-साहित्य को उन्होंने एक निर्णायक मोड़ दिया। ‘लाल टीन की छत’ उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फोकस किया है। ‘बचपन के अन्तिम कगार से किशोरावस्था के रूखे पाट पर बहता हुआ समय, जहाँ पहाड़ों के अलावा कुछ भी स्थित नहीं है।’
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां
Maa Ka Dulaar
मैं उसके हस्तक्षेप से थक चुकी थी। मैं बोली, ‘ठीक है, मुझे इस बारे में सोचने दीजिए। हम बाद में बात करते हैं।’
अगले दिन उसने फिर मुझे फोन किया। ‘मैडम, हमारी फैक्टरी में लंबे लोग भी हैं। क्या मैं आपको अलग-अलग सूची भेज दूँ, ताकि आप उनके लिए अधिक कपड़ा खरीद सकें?’
‘सुनिए, मेरे पास संशोधनों के लिए समय नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकती।’
‘साड़ियों और कपड़ों का रंग क्या होगा?’
‘एक ही मूल्य के कपड़ों में हम अलग-अलग रंग ले लेंगे।’
‘अरे, आप ऐसा नहीं कर सकतीं। कुछ लोगों को अपने उपहारों के रंग पसंद आ सकते हैं और कुछ को बिलकुल भी नहीं आ सकते तो वे बहुत दुःखी हो जाएँगे।’
‘ऐसा है तो मैं एक ही रंग सभी को दे दूँगी।’
‘नहीं मैडम, ऐसा मत कीजिएगा। वे सोचेंगे कि आप उन्हें एक यूनिफॉर्म दे रही हैं।’
थककर मैं बोली, ‘तो आपका क्या सुझाव है?’SKU: n/a -
Rajpal and Sons, कहानियां
Maalgudi Ki Kahaniyaan
अपने उपन्यास ‘गाइड’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित तथा पद्मविभूषण द्वारा अलंकृत उपन्यासकार आर.के. नारायण विश्वस्तरीय रचनाकार गिने जाते हैं। उनके उपन्यास ‘गाइड’ पर बनी फिल्म ने उन्हें लोकप्रियता का एक और आयाम दिया, जिसे आज भी याद किया जाता है। ‘मालगुडी की कहानियां’ आर.के. नारायण की अद्भुत रोचक कहानियां समेटे हुए पुस्तक है। अपने दक्षिण भारत के प्रिय क्षेत्र मैसूर और चेन्नई में घूमते हुए उन्होंने आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच यहां-वहां ठहरते साधारण चरित्रों को देखा और उन्हें अपने असाधारण कथा-शिल्प के ज़रिये, अपने चरित्र बना लिये। ‘मालगुडी के दिन’ पर दूरदर्शन ने धारावाहिक बनाया जो दर्शक आज तक नहीं भूले हैं। दशकों बाद भी ‘मालगुडी के दिन’ की कहानियां उतनी ही जीवंत और लोकप्रिय हैं, जितनी पहले कभी थीं। यही उनकी खूबी है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Meri Priya Kahaniyaan
प्रतिभा राय की गिनती भारत के अग्रणी लेखकों में होती है। अभी तक इनके सत्रह उपन्यास, आठ यात्रा-वृत्तांत और तीन सौ से अधिक कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। लिखती यह अपनी मातृभाषा उड़िया में हैं, लेकिन इनकी कृतियाँ कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं जिन में से प्रमुख है ‘द्रौपदी’। इनके लेखन में उस सामाजिक न्याय और विकास की तलाश रहती है जिस में धर्म, जात, प्रांत, भाषा का कोई भेदभाव नहीं और पुरुष-स्त्री दोनों का समान दर्जा है। इस पुस्तक में उन्होंने उन बारह कहानियों को चुना है जो उन्हें विशेष प्रिय हैं।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Nani Ki Kahani
लेखक आर.के. नारायण की पड़नानी, बाला, के जीवन पर आधारित है यह पुस्तक। सात साल की मासूम बाला का विवाह दस वर्षीय विश्वा से होता है। एक दिन विश्वा कुछ तीर्थयात्रियों के साथ यात्रा पर निकल जाता है और वर्षों तक उसकी कोई खबर नहीं मिलती। रिश्तेदारों, पास-पड़ोस के तानों से परेशान होकर बाला पति को खोजने खुद ही निकल पड़ती है और पूना में उसे ढूँढ लेती है। अपने पति को किसी तरह वापस घर आने के लिए मना लेती है। परदेस में बाला को कैसी-कैसी कठिनाइयों से दो-चार होना पड़ता है, कैसे रोमांचक और खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं, पढि़ये इस पुस्तक में…. नानी की कहानी आर.के. नारायण की पड़नानी के जीवन पर लिखी रचना है जो उन्होंने अपनी नानी से सुनी। ज्यों-ज्यों उनकी नानी यह कहानी बताती हैं त्यों-त्यों लेखक की रचना भी विस्तार लेती है। जीवन्त चरित्रों और रोज़मर्रा की जि़न्दगी की छोटी-छोटी बातों पर पैनी नज़र से कलम चलाना आर.के. नारायण की विशेषता थी जिसकी झलक इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर मिलती है।
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