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Gita Press, Hindi Books, कहानियां
Adarsh Kahaniya 1093
कहानियों के माध्यम से उपदेशात्मक सूत्रों की व्याख्या भारत की प्राचीन कला है। कहानियों के द्वारा पारमार्थिक एवं लौकिक शिक्षा सरलता से दी जा सकती है। इस पुस्तक में स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों से संकलित तत्त्व-ज्ञानकी प्रेरणास्रोत 32 कहानियों का सुन्दर संग्रह है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां, बाल साहित्य
Amar Bal Kahaniyan
देवी बलिदान माँग रही है, जो सिर देना चाहे वह आगे बढ़े! बढ़ो!! बढ़ो!!”
एक सिख बढ़ता है! यह कौन? अरे-यह तो वह आदमी है, जिसे कल तक हम छोटी जाति का होने के कारण अपने से छोटा समझ रहे थे।
वह आगे बढ़ा, तंबू के भीतर गया। तलवार का ‘छप’ सा शब्द हुआ, फिर खून की धारा तंबू के भीतर से निकलकर बाहर की जमीन को सींचने लगी।
“हाँ-हाँ, देवी बलिदान माँग रही है, दूसरा कौन है,—वह आगे बढ़े—बढ़ो! बढ़ो!!”
एक दूसरा बढ़ा, उसी की तरह का मामूली आदमी। फिर तंबू में ‘छप-छप’ शब्द, फिर खून की लाल धारा।
फिर गुरु की ललकार—तीसरा बढ़ा, चौथा बढ़ा, पाँचवाँ बढ़ा, छठा बढ़ा, सातवाँ बढ़ा—तंबू से निकली खून की धारा मोटी होती जा रही है—सामने की जमीन लाल-लाल हो रही है।
“बस अब नहीं—देवी खुश हो गई। बोलो—सत्य श्री अकाल। वाहे गुरुजी का खालसा, वाह गुरुजी की फतह!” और यह क्या, वे सातों शहीद वीर भी तंबू से बाहर खड़े मुसकरा रहे हैं। क्या ये जी उठे? हाँ, जी उठे! आओ, सभी अमृत पीओ। शहादत का अमृत पीओ, सिंह बनो, सिंह।
आज से सभी सिंह कहलाएँगे! सिंह-सिंह के सामने कोई आदमी क्या खाकर टिक सकता है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, उपन्यास
Antim Aranya
अन्तिम अरण्य यह जानने के लिए भी पढ़ा जा सकता है कि बाहर से एक कालक्रम में बँधा होने पर भी उपन्यास की अन्दरूनी संरचना उस कालक्रम से निरूपित नहीं है। अन्तिम अरण्य का उपन्यास-रूप न केवल काल से निरूपित है, बल्कि वह स्वयं काल को दिक् में-स्पेस में-रूपान्तरित करता है। उनका फॉर्म स्मृति में से अपना आकार ग्रहण करता है- उस स्मृति से जो किसी कालक्रम से बँधी नहीं है, जिसमें सभी कुछ एक साथ है -अज्ञेय से शब्द उधार लेकर कहें तो जिसमें सभी चीज़ो का ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ है। यह ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ क्या काल को दिक् में बदल देना नहीं है?… यह प्राचीन भारतीय कथाशैली का एक नया रूपान्तर है। लगभग हर अध्याय अपने में एक स्वतन्त्र कहानी पढ़ने का अनुभव देता है और साथ ही उपन्यास की अन्दरूनी संरचना में वह अपने से पूर्व के अध्याय से निकलता और आगामी अध्याय को अपने में से निकालता दिखाई देता है। एक ऐसी संरचना जहाँ प्रत्येक स्मृति अपने में स्वायत्त भी है और एक स्मृतिलोक का हिस्सा भी। यह रूपान्तर औपचारिक नहीं है और सीधे पहचान में नहीं आता क्योंकि यहाँ किसी प्राचीन युक्ति का दोहराव नहीं है। भारतीय कालबोध-सभी कालों और भुवनों की समवर्तिता के बोध-के पीछे की भावदृष्टि यहाँ सक्रिय है। -नन्दकिशोर आचार्य
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
AULESYA TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की ‘ओलेस्या तथा अन्य कहानियाँ’ पुस्तक की कथा जंगल में रहने वाली एक समाज-बहिष्कृत सुंदर लड़की और उसकी दादी की है,जिन्हें गाँव वाले डायनें समझते हैं। कथानक उस अल्प- परिचित, अलप-उद्घघाटित विषय का है, जिस पर आज भी बहुत कम सहीतियक रचनाएँ सारे यूरोप- अमेरिका में मिलती हैं। कुप्रीन, और चेखव की ही परंपरा में,रूसी साहित्य के उस स्वर्ण-काल के लेखक हैं जिनके पास समाज के हर तबके के पात्र के लिए के अचूक अंतर्दृष्टि थी।
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bachpan
बचपन टॉलस्टॉय का आत्मकथात्मक लघु उपन्यास है, जो उन्होंने सन् 1852 में लगभग सत्ताईस वर्ष की अवस्था में लिखा था। एक दस वर्ष के बाल-नायक के ज़रिये इसमें न केवल उन्होंने बचपन के भोलेपन को, उसकी अविश्वसनीय सादगी की नाटकीयता को छुआ है, उन रहस्यों की ओर भी इशारा किया है, जो वय-संधि की देहरी पर खड़े हर बाल-मन को अपनी ओर बरबस खींचते हैं। बचपन का यह परिवेश इसलिए भी अलौकिक है कि इसे टॉलस्टॉय जैसे मर्मज्ञ ने छुआ है। सन् 1955 के आसपास इसका अनुवाद निर्मल वर्मा ने किया था, छद्म नाम से, अपने मित्र जगदीश स्वामीनाथन के लिए, जो उन दिनों पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस में काम करते थे। यह राज़ निर्मल जी ने स्वयं ही अपने मित्रों को बताया था।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Beech Bahas Mein
निर्मल वर्मा की करुणा आत्मदया नहीं है, यह एक समझदार और वयस्क करुणा है। यह करुणा जीवन में विसंगतियों को देखती है और उन्हें समझती है, गोकि कुछ करती नहीं। निर्मल वर्मा की कहानियों के पात्र एक-दूसरे को भीतर से समझते हैं, इसलिए उनमें आपस में कोई विरोध या संघर्ष नहीं है, वे एक-दूसरे को काटते नहीं, एक-दूसरे के अस्तित्व की प्रतिज्ञाओं को तोड़ते नहीं। एक अर्थ में वे यथास्थितिवादी हैं। वे अपने केन्द्र पर अपनी अनुभूति की पूरी सजीवता से डोलते हुए सिर्फ स्थिर रहना चाहते हैं, न अपने आपको, न अपने परिवेश को और न इन दोनों के सम्बन्ध को ही बदलना चाहते हैं। -मलयज बीच बहस में एक मौत हुई थी। लगा था कि दिवंगत के साथ ही उसके साथ होने वाली बहस भी समाप्त हो गयी। पर बहस समाप्त हुई नहीं। हो भी कैसे? बहस केवल उससे तो थी नहीं, जो चला गया। वह तो अपने आप से है, उनसे है जो बच रहे हैं। और जो मौत भी हुई है, वह कोई टोटल, सम्पूर्ण मौत तो है नहीं। क्यों कोई मौत टोटल होती है? -सुधीर चंद्र
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Vani Prakashan, कहानियां
Bhartiya Sangeet Kosh
‘भारतीय संगीत कोश’ श्री विमलाकांत रॉयचौधरी के दीर्घ सांगीतिक जीवन का सुफल है। शास्त्रीय संगीत विषयक इस प्रकार का कोशाभिधान भारतीय भाषा में संभवतः सर्वप्रथम है। यह ऐसा एक ग्रंथ है जो स्वयं संपूर्ण है और जो केवल संगीत-शिक्षार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि संगीतज्ञों के लिए भी अपरिहार्य है। यह कोश दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की सभी परिभाषाओं का संज्ञार्थ निर्देश और विवरण वर्णानुक्रमानुसार दिया गया है। लेखक ने विभिन्न विचारणीय विषयों पर अपनी युक्तिसम्मत मननशीलता द्वारा विज्ञानसम्मत ढंग से प्रकाश डालने की चेष्टा की है। आलाप और श्रुति संबंधित आलोचना, विभिन्न तालों और वाद्यों का परिचय, प्रयोजन के अनुसार पाश्चात्य संगीत के साथ भारतीय संगीत की तुलनात्मक आलोचना आदि असंख्य विषय इस ग्रंथ को समद्ध करते हैं। संगीत विषयक ऐसी कोई जानकारी नहीं जो अपेक्षित हो और यह ग्रंथ न दे सके। ग्रंथ के द्वितीय भाग में लेखक एक साहसिक कार्य की ओर अग्रसर हुए हैं। इस भाग में गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार उत्तर भारत के प्रायः सभी संगीत-घरानों की तालिकाएँ दी गई हैं। यह निःसंदेह एक मूल्यवान् संयोजन है। इस प्रकार की विशद और प्रामाणिक जानकारी अन्यत्र दुर्लभ है। यह एक उच्च कोटि का प्रामाणिक निर्देशक ग्रंथ है, जो संगीत-कला और शास्त्र के लिए निरपवाद रूप से उपयोगी और आवश्यक है। भारतीय संगीत कोश का पहली बार बँगला में प्रकाशन 1965 में हुआ। 1971 में इस ग्रंथ को संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार मिला। 1975 में भारतीय ज्ञानपीठ ने इसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया। लंबे अर्से के बाद यह ग्रंथ संशोधित एवं परिवर्धित रूप में पुनः प्रकाशित हुआ है।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Cheeron Par Chandani
निर्मल वर्मा के गद्य में कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्त और डायरी की समस्त विधाएँ अपना अलगाव छोड़कर अपनी चिन्तन-क्षमता और सृजन-प्रक्रिया में समरस हो जाती हैं…आधुनिक समाज में गद्य से जो विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं, वे यहाँ सब एकबारगी पूरी हो जाती हैं। -डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी / निर्मल वर्मा के यहाँ संसार का आशय सम्बन्धों की छाया या प्रकाश में ही खुलता है, अन्यथा नहीं। सम्बन्धों के प्रति यह उद्दीप्त संवेदनशीलता उन्हें अनेक अप्रत्याशित सूक्ष्मताओं में भले ले जाती हो, उनको ऐसा चिन्तक-कथाकार नहीं बनाती जिसका चिन्तन अलग से हस्तक्षेप करता चलता हो। वे अर्थों के बखान के नहीं, अर्थों की गूंजों और अनुगूगूँजों के कथाकार हैं।
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