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Smriti
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Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (Chapter II) Tattva-Bodhini
(श्रीकुल्लूकभट्ट प्रणीत ‘मन्वर्थ मुक्तावलीÓ तथा मेधातिथि प्रणीत अनुभाष्य सहित) भारत एक धर्मप्राण देश है। इस धर्म का प्रतिपादक मनुस्मृति एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी लोकप्रियता ही इसकी उपयोगिता को प्रकट करती है। हमारे प्राचीनकाल के महॢष अपने गम्भीर चिन्तन एवं गहन अनुशीलन के लिए विख्यात रहे हैं। महॢष मनु उसी शृंखला में एक कड़ी है जिनकी सुप्रसिद्ध कृति है—मनुस्मृति। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य अपना आध्यात्मिक एवं नैतिक बल खो चुका है। उसके चरित्र-बल का ह्रïास हो चुका है और वह अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय कत्र्तव्यों के प्रति प्रमादग्रस्त हो गया है। अत: मानव को सच्चे अर्थ में मनुष्य की कोटि में लाने के लिए, उसे सदाचार-बल का सम्बल देने के लिए, सामाजिक कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए, मातृ-पितृ एवं आचार्य के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराने के लिए, आत्मस्वरूप से परिचित कराकर मोक्ष लाभ के लिए, पुरुषार्थ चतुष्ट्य का सम्पादन कराने के लिए, पातकों से मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं आत्मस्वरूप से परिचित होने के लिए, मानसिक सुख-शान्ति के लिए एक आदर्श मानव-समाज एवं राज्य की स्थापना के लिए आज मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ के परिशीलन की महती अपेक्षा है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Smritiyon Mein Rajneeti Aur Arthashastra
स्मृतियां वेदों की व्याख्या हैं, अत: हिन्दू-जनमानस में इन्हें वेदों जैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। आचार, व्यवहार और प्रायश्चित खण्डों में विभक्त स्मृतियाँ हिन्दू-जीवन के आचार-शास्त्र के रूप में समादृत रहीं हैं। स्मृतियों के आचार-पक्ष पर तो शोध और स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में पर्याप्त कार्य विद्वानों ने सम्पन्न किया है, पर व्यवहारपक्ष पर, जिसका सम्बन्ध विशेषत: राजनीति और अर्थशास्त्र से है, अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया गया है। जबकि स्मृतियों में निरूपित राजनीतिक, आर्थिक-सिद्धान्त हजारों वर्ष तक भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के मेरुदण्ड रहे हैं। यही नहीं, इन सिद्धान्तों को यत्किंचित परिवर्तन-संशोधन के साथ वर्तमान युग में अपनाना श्रेयस्कर ही नहीं, अपितु भारतीयता को पृथक पहचान के लिए आवश्यक भी है।
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