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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Aitihasik Durg
राजस्थान के ऐतिहासिक दुर्ग : राजस्थान का अर्थ है राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र। रियासती काल में छोटे से छोटे राजा के पास कम से कम एक दुर्ग का होना अनिवार्य था, जहाँ वह अपने परिवार एवं राजकोष को सुरक्षित रख सकता था। राजस्थान में महाराणा कुंभा जैसे राजा भी हुए हैं, जिसके राज्य में सर्वाधिक 84 दुर्ग थे। एक अनुमान के अनुसार राजस्थान में लगभग प्रत्येक 10 मील पर एक दुर्ग स्थित था। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में सर्वाधिक 656 दुर्ग महाराष्ट्र में, 330 दुर्ग मध्यप्रदेश में तथा 250 दुर्ग राजस्थान में थे। राजस्थान के 33 जिलों में शायद ही कोई ऐसा है, जिसमें 5-10 दुर्ग अथवा उनके अवशेष नहीं हों। राजाओं के राज्य समाप्त हो जाने के बाद अधिकतर दुर्ग असंरक्षित छोड़ दिये गये, जिसके कारण ये तेजी से खण्डहरों में बदलते जा रहे हैं। बहुत कम दुर्गों को राज्य अथवा केन्द्र सरकार अथवा निजी क्षेत्र के न्यासों द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक राजस्थान में कालीबंगा सभ्यता से लेकर, उत्तरवैदिक काल, महाभारत काल, मौर्य काल, शुंग काल, गुप्त काल, राजपूत काल एवं पश्चवर्ती काल में बने दुर्गों को केन्द्र में रखकर लिखी गई है। इनमें से कुछ दुर्ग अब पूरी तरह नष्ट हो गये हैं, तो कुछ दुर्ग अब भी मौजूद हैं। प्रत्येक दुर्ग को उसके मूल निर्माता राज्यवंश के क्रम में जमाया गया है, ताकि इनका इतिहास शीशे की तरह स्पष्ट हो सके। वस्तुतः इन दुर्गों का इतिहास ही राजस्थान का वास्तविक इतिहास है, जिसे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा प्रचुर शोध के पश्चात् लिखा गया है। डॉ. गुप्ता की लेखन शैली रोचक, भाषा कसी हुई और जन-जन की जिह्वा पर चढ़ने वाली है। एक बार यदि आप इस पुस्तक को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो पूरी करके ही उठेंगे।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajasthan ke Lok Geet
राजस्थान के लोक गीत : राजस्थान के लोक गीत अपने सौन्दर्य में निराले हैं परन्तु आधुनिक तथाकथित सभ्यता और शिक्षा के प्रवाह में पड़कर दिनोंदिन विस्मृति के गर्भ में विलीन होते जा रहे हैं। उनके उद्धार और रक्षण के लिये यदि हम लोग अभी से प्रयत्नशील न हुए, तो अपनी इस अमूल्य निधि से हम शीघ्र ही हाथ धो बैठेंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर राजस्थानी लोक गीतों का संग्रह किया गया है। लगभग 1000 सुन्दर–सुन्दर गीतों में 230 गीत इस संकलन में रखे गये हैं। अभी तक राजस्थानी गीतों का कोई ऐसा संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ, जिसमें चुने हुए गीत पर्याप्त संख्या में हो और जो आधुनिक ढंग से टीका–टिप्पणियाँ तथा भावार्थ आदि सहित संपादित हो। आशा है यह संकलन इस कमी को बहुत कुछ पूरी कर सकेगा।
संकलन को तैयार करते समय इस बात पर ध्यान नहीं रखा गया है कि केवल सर्वश्रेष्ठ गीत ही दिये जायँ किन्तु ध्यान यह रखा गया है कि यथासंभव अधिकाधिक विषयों के गीत दिये जायँ। इसी प्रकार इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि केवल लोक गीत न देकर अन्यान्य लोक गीतों के भी कुछ नमूने दिये जायँ। फिर भी संकलन के अधिकांश गीत लोक गीत ही हैं।
इस कार्य ने राजस्थानी महिला-समाज का महान् उपकार किया है। नारी-हृदय के भाव इन गीतों में अपने वास्तविक रूप में व्यक्त हुए है और गार्हस्थ जीवन एवं उसके सुख–दुःख, प्रेम-कलह, आमोद-प्रमोद, आचार-विचार के अनेकों मनोरम चित्र इनमें उतारे गये हैं।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Rajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
राजस्थान के प्रमुख संत एवं लोक देवता : राजस्थान के मध्यकालीन कवि ईसरदास की ‘परमेसरा’ के रूप में पूजा और साथ ही वीर-योद्धाओं की ‘जूंझारजी’ के रूप में अर्चना इस ‘धोरा-धरती’ की लेखनी एवं खड्ग के सामर्थ्य की साक्षी है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति ने इसे एकान्तिक साधना एवं मौलिक चिन्तन की एक समृद्ध परम्परा प्रदान की है। धर्म-अध्यात्म की एक ऐसी अविरत धारा को प्रवाहित किया, जिसका रसास्वादन युगों से होता रहा है। अधिकांश अध्येताओं को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति इस आध्यात्मिक पक्ष की अपेक्षा शौर्य-गाथाओं के विवरण अधिक आकर्षित करते रहे है। राजस्थान की आध्यात्मिक संस्कृति के अध्ययन की आवश्यकता के दृष्टिकोण से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया।
राजस्थान की धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के सृजन एवं संवर्द्धन का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहिचान है। इस सर्वग्राही समष्टिवादी प्रवृति का अपना मूल्य है। इस दृष्टि से इस संस्कृति के प्रणेताओं तथा उनकी विचार-वृति का अध्ययन न केवल अपेक्षित है प्रत्युत अनिवार्य भी है। इसकी समसामयिक तथा साम्प्रतिक प्रासंगिकता तथा उपयोगिता भी सर्वथा प्रमाणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत-लोक देवता संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। आशा है कि विद्धान पाठकों के लिए यह उपादेय सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ke Veer Jujhar
राजस्थान के वीर जुझार : यह मान्यता भी प्राचीन ग्रन्थों में स्थापित मिलती है कि निरन्तर युद्ध लड़ते रहने वाले ऐसे वीर हमारे यहां हुए हैं कि वे रणस्थल नहीं छोड़ते, सिर कट जाने पर भी युद्ध करते रहते हैं। जीते जी तो युद्धरत रहते ही हैं किन्तु ऐसे वीर सिर गिर जाने पर भी शस्त्र न छोड़कर शत्रुओं का संहार कर देते हैं। बिना सिर वाले (नीचे वाले) शरीर को संस्कृत में ‘कबन्ध’ कहा जाता है। राहु और केतु की कथा सुविदित है, राहु केवल सिर हैं, केतु नीचे वाला शरीर। रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रन्थों के बाद प्राकृत, अपभ्रंश, लोकभाषाओं के आदि के काव्यों में भी ऐसे वर्णन हमें इसी कारण प्राप्त होते हैं, जिनमें युद्ध में (अथवा राहु केतु वाली किसी अन्य घटना के फलस्वरूप) कबन्ध अर्थात् धड़ भी कुछ समय तक लड़ता रहा अथवा प्राण सहित रहा। बाद में ऐसे योद्धाओं के अभिलेख भी रचे गए, जिन्होंने शिरच्छेद के बाद भी युद्ध किया। ऐसे योद्धाओं को जो नाम दिए गए, उनमें एक नाम है ‘जुझार या जूंझार’। जुझारू का अर्थ होता है योद्धा यह सुविदित है। ऐसे योद्धाओं की जो रोमांचक कथाएं रामायण, महाभारत आदि से लेकर मध्यकाल के काव्य ग्रन्थों और इतिहास ग्रन्थों में भी उपलहध होती है, वे दिल दहला देने वाली होती है, यह तो स्पष्ट ही है। ऐसे योद्धाओं में से अनेकों को समाज देवता मानकर पूजने भी लगा था। कुछ योद्धा लोकदेवताओं के मन्दिर, पूजास्थल या स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं। राजस्थान में ऐसे जुझारों की गाथाएँ कुछ शताब्दियों से पाई जाती हैं। आज के प्रबुद्ध पाठक की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस बात की तलाश की जाए कि कबन्धों या जुझारों की ऐसी प्रमुख गाथाएं कहां हैं, उनका क्या स्वरूप है, क्या उनके आधार पर कोई महल, मन्दिर, चित्र या अभिलेख भी तैयार हुए हैं आदि।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ki Sanskriti mein Nari
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRajasthan ki Sanskriti mein Nari
“इस संसार में यदि नारी न होती तो सभ्यता और संस्कृति न होती। इसीलिए किसी समाज के सांस्कृतिक विकास का मानदण्ड नारी की मर्यादा है।” – हजारी प्रसाद द्विवेदी
राजस्थान की संस्कृति में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। कुल मर्यादाओं व परम्पराओं के निर्वाह में यहाँ की नारी ने अद्वितीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं। वीरांगना, सती और प्रेमिका के रूप में इस प्रदेश की नारी की अपनी निजी विशेषताएँ रही हैं।
संस्कारों के निर्माण में यहाँ की नारी की जो महती भूमिका रही है, वह इस प्रदेश की संस्कृति में अविस्मरणीय है। वैयक्तिक व पारिवारिक आदर्शों की स्थापना, कुल परम्पराओं का निर्वाह तथा सामाजिक व धार्मिक जीवन की समृद्धि और विकास में यहाँ की नारी के अनूठे योगदानों से इस प्रदेश की संस्कृति गरिमामय और जाज्वल्यमान बनी। संस्कृति के निर्माण और इसके संवर्धन में यहाँ की नारी सदा सचेष्ट रही है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Rajasthan mein Rajshahi ka Ant
राजस्थान में राजशाही का अन्त : जिस समय राजपूताना रियासतों को भारत में मिलाया गया था, उस समय राजाओं को यह विश्वास दिलाया गया था कि भावी लोकतंत्र में छोटी रियासतों को उनकी निकटवर्ती रियासतों में मिलाकर बड़ी प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण किया जाएगा तथा बड़ी रियासतों को भारत के भीतर, स्वतंत्र रियासत के रूप में बने रहने दिया जाएगा, किंतु देश की आजादी के बाद रियासतों में उत्तरदायी शासन की मांग के लिए प्रजामण्डल आंदोलन चले, जिनके कारण रियासतों में बेचैनी फैल गई तथा लगभग दो वर्ष के बहुपक्षीय संघर्ष के पश्चात भारत सरकार को ये रियासतें राजस्थान में मिलानी पड़ी और राजस्थान का वर्तमान स्वरूप सामने आया। इस दौरान विभिन्न रियासतों में बहुत सी घटनाएं घटी। रियासती संविधानों का निर्माण हुआ, लोकप्रिय सरकारें बनीं किंतु जन-आक्रोश के समक्ष रियासतें टिक नहीं सकीं। जब रियासतों का विलोपन होने लगा तब सरदार पटेल पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने राजाओं के साथ धोखा किया है। इस पुस्तक में उस ऐतिहासिक युग की घटनाओं को विस्तार एवं विश्वसनीयता के साथ लिखा गया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajpurohit Jati ka Itihas (Vol. 1, 2)
राजपुरोहित जाति का इतिहास (भाग 1, 2) :
अनुक्रमणिका
युगयुगीन राजपुरोहित इतिहास : प्रो. जहूरखां मेहर
अपनी बात : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
भूमिका : डॉ. प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
राजपुरोहित वंश परिचय : प्रस्तावना
राजपुरोहितों के गोत्र प्रवर
राजपुरोहितों की समस्त उपजाति, खांपें
भारद्वाज गोत्रिय राजगुरु पुरोहित सोढा
वशिष्ठ गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
पीपलाद
गौतम गोत्रिय राजगुरु राजपुरोहित
पारसर गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
शांडिल्य गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
उदालिक गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
कश्यप गोत्रिय राजगुरु पुरोहित
बाल वशिष्ठ गोत्र
सेवड़ों का संक्षिप्त परिचय
सेवड़ वंश के बाबत पौराणिक तथा प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार
सेवड़ राजपुरोहितों का आदिनारायण से लेकर अद्यावधि तक वंशवृक्ष विशेष जानकारी
सेवड़ राजगुरु पुरोहित का राव सीहा के साथ कन्नौज से मारवाड़ आना……….SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Shakhaon ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का त्याग कर आने वाले क्षत्रियों और वेदोद्धार के लिये किये गये कुमारिल एवं आदि शंकराचार्य के प्रयासों का उल्लेख करके कई क्षत्रिय वंशों के विषय में प्रचलित कतिपय भ्रामक मतों का खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थकार की सराहनीय उपलब्धि है। इस प्रकार विद्वान लेखक ने हमारे इतिहास को लिखने के लिये सांस्कृतिक गहराई में जाने की जो प्रेरणा प्रदान की है उसके लिये वह हम सब की बधाई के पात्र हैं। आशा है कि उनका इस प्रकार अध्ययन और लेखन निरन्तर जारी रहेगा। भारतीय संस्कृति के प्रेमी सज्जनों के लिये और इतिहास-लेखन में रुचि रखने वाले प्रत्येक भारतीय के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है, क्योंकि इसमें किसी संकुचित जातिवाद की अभिव्यक्ति के स्थान पर उस व्यापक राष्ट्रवादी क्षात्र धर्म के बीज दृष्टिगत होते हैं, जो अथर्ववेदीय ‘बृहत् संवेश्यं राष्ट्रम्’ की कल्पना में प्रस्फुटित हुआ। इसीलिये यह ग्रन्थ वैदिक वर्ण व्यवस्था को महिमा मण्डित करते हुए स्पष्ट कहता है कि, ‘उस समय कोई जाति प्रथा नहीं थी, अपितु गुणों और कर्मों के अनुसार चार वर्णों की रचना होती थी।’ क्षत्रियों अथवा राजपूतों के इतिहास पर अब तक लिखे गये ग्रन्थों में श्री देवीसिंह मंडावा की प्रस्तुत पुस्तक ‘राजपूत शाखाओं का इतिहास’ सर्वाधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक के व्यापक अध्ययन और अनुशीलन के पश्चात् लिखा गया यह ग्रन्थ राजपूतों के विषय में प्रचारित अनेक भ्रमों का निवारण करता है। इस पुस्तक में जो निष्कर्ष दिये गये हैं, वे सभी अनेक ऐसे प्रमाणों पर आश्रित हैं, जिन्हें प्रस्तुत करने के लिये लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक अनुसंधान कार्य किया है। विशेषत: राजपूतों को शकों, कुशानों या हूणों की सन्तान कहने वाले इतिहासकारों का खण्डन करने के लिये जो अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, उसके लिये श्री सिंह साधुवाद के पात्र है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Vanshawali
राजपूत वंशावली | Rajpoot Vanshawali : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। राजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRajputane ki Rochak evam Aitihasik Ghatnayen
राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ : अंग्रेजों ने भारत को दो तरह की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत रखा। पहली तरह की व्यवस्था में भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियत्रंण था। इसे ब्रिटिश भारत कहा जाता था, जिसे उन्होंने 11 ब्रिटिश प्रांतों में विभक्त किया। दूसरी तरह की व्यवस्था के अन्तर्गत भारत के लगभग 565 देशी रजवाड़े थे, जिनकी संख्या समय-समय पर बदलती रहती थी। देशी राज्यों को रियासती भारत कहते थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इन रजवाड़ों के साथ अधीनस्थ सहायता के समझौते किए, जिनके अनुसार राज्यों का आंतरिक प्रशासन देशी राजा व नवाब के पास रहता था और उसके बाह्य सुरक्षा प्रबन्ध अंग्रेजों के नियंत्रण में रहते थे। इस पुस्तक में अंग्रेज शक्ति के राजपूताने की रियासतों में प्रवेश करने से लेकर वापस लौटने तक की अवधि में हुई रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाओं को लिखा गया है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Rathore Rajvansh ke Riti-Riwaz
राठौड़़ राजवंश के रीति-रिवाज : ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर मारवाड़ के राठौड़ राजवंश की संस्कृति न केवल प्राचीन है, अपितु शोध जगत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भी है। जोधपुर राजवंश अनेक ऐतिहासिक कालचक्रों का साक्षी रहा है। शोथ के लिए सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से जोधपुर राजघराने के नीति-रिवाज एवं परम्पराओं का अध्ययन अत्यधिक रुचिकर एव जिज्ञासापूर्ण है। यहाँ सतत् रूप से राजवंश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का विकास होता रहा है।
यह पुस्तक जयनारायण व्यास विश्वविधालय, जोधपुर द्वारा सन् 1993 में स्वीकृत शोथ प्रबन्ध जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों का सामजिक एवं आर्थिक अध्ययन (1600-1850ई.) का आशिक संशोधित संस्करण है। इस ग्रन्थ में जोधपुर राजवंश के रीति-रिवाजों विशेषकर राजपरिवार एवं जनाना ड्योढ़ी के नियम-कायदों, धार्मिक परम्पराओं, प्रमुख संस्कारों, राजदरबार के समसामयिक आयोजनों, शिष्टाचारों एवं विशिष्ट उत्सवों से संबंधित सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का विश्लेषण किया गया है, जो कि अप्रत्यक्ष रूप से मारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत को ही इंगित करता है।
शोध की दिशा में विषय सर्वथा नवीन एवं मौलिक रहा है। विषय सामग्री का चयन विभिन्न शोध संस्थाओं में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों, अप्रकाशित ख्यातों, बहियों, वंशावलियों आदि में से किया गया है। सम्पादित पुस्तक मध्यकालीन राजस्थान के राजवंशों में रुचि रखने वाले शोधोत्सुक अध्ययनार्थियों, इतिहासवेत्ताओं एवं कला संस्कृतिविज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी एवं संगृहणीय सिद्ध हो सकेगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Samrat Prithviraj Chauhan
सम्राट पृृथ्वीराज चौहान : भारतीय अन्तिम हिन्दू सम्राट भारतेश्वर पृथ्वीराज चौहान के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डालने वाले पृथ्वीराज रासो और पृथ्वीराज विजय दो काव्य ग्रंथ उपलब्ध है। इतिहास के अध्येताओं ने पृथ्वीराज रासो की तो तिथि की असंगति के कारण उसे भट्ट भणन्त की संज्ञा देकर दूर फेंक दिया और पृथ्वीराज विजय का सम्यक् अध्ययन मनन नहीं किया गया। इस प्रकार भारतीय और विदेशी विद्वानों ने पृथ्वीराज के साथ न्याय नहीं किया और वह इतिहास के पटल पर एक उपेक्षित चरित्र बनकर रह गया। वस्तुतः सम्राट पृथ्वीराज एक महामानव, उत्कृट योद्धा, कुशल सेनानायक और बहुभाषा तथा कलाओं का मर्मज्ञ विद्वान था। ऐसे पुरुष का सही परिप्रेक्ष्य में अध्ययन और मूल्यांकन इतिहास के विद्वानों के लिए उपेक्षित है। हमने उनके उक्त गुणों की ओर विद्वानों के लिए ‘भारतेश्वर पृथ्वीराज’ नामक इस पुस्तक में विचार किया है।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Sant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांSant Jambhoji tatha Bishnoi Darshan
संत जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन : सन्त जाम्भोजी तथा बिश्नोई दर्शन द्वारा अनुप्राणित विश्नोई धर्म के सिद्धान्तों को विश्व-स्तर पर प्रायोजित करने हेतु यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। लेखक ने सन्त जाम्भोजी के आध्यात्मिक तात्विक, नैतिक एवं सांसारिक आदर्शों को प्रस्तुत करने हेतु पुस्तक में सन्त जाम्भोजी का परिचय, विश्नोई धर्म के 29 नियम, विश्नोई धर्म की धार्मिक एवं नैतिक मान्यता, विश्नोई धर्म के दार्शनिक विचार एवं अहिंसा सम्मिलित की है तथा विश्नोई धर्म की वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख कर इसे सम्पूर्ण किया है। सन्त जाम्भोजी व विश्नोई धर्म के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जो प्रत्येक पुस्तकालय के लिए सग्रहणीय है।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Sikar ka Itihas
सीकर का इतिहास : राजस्थान के शेखावटी प्रान्त का कोई श्रृंखलाबद्ध इतिहास नहीं है। राजस्थान इतिहास के लेखक कर्नल टाॅड ने प्रसंग के क्रम से आमेर के इतिहास में शेखावाटी का यत् किंचित विवरण दिया है। किन्तु वह पर्याप्त नहीं है। शेखावाटी का अतीत कालीन इतिहास बड़ा समुज्ज्वल है। शेखावतों ने स्व. बाहुबल से अपनी सत्ता स्थापित की थी। शेखावाटी के शासक शेखावतों की वीरता तो उल्लेखनीय है ही साथ ही शेखवाटी के कवियों, परोपकारी उदार सज्जनों, विद्वानों और साुध महात्माओं के चरित्र भी वर्तमान समय की पीढ़ी के लिए शिक्षणीय है।
खेतड़ी नरेश राजा अजितसिंहजी एवं उनके परम मेधावी पुत्र राजा जयसिंह जी दोनों पिता पुत्र की इच्छा शेखावाटी का सर्वांगपूर्ण इतिहास तैयार कराने की थी किन्तु असमय ही कालकवलित हो गये। उनके आग्रह पर पं. झाबरमल शर्मा ने 15 वर्ष तक इसके लिए अन्वेषण कर ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर सीकर का इतिहास लिखा।
पं. झाबरमल्ल जी के अन्वेषण और अनुशीलन से युक्त तथ्यों पर आधारित यह शेखावाटी का इतिहास आकार में छोटा होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण एंव उपयोगी है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), बाल साहित्य
Suno Vidhyarthi
सुनो विद्यार्थी : यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान परिवार, विद्यालय, शिक्षा व शिक्षक का महत्त्व समझ सके, उचित समय पर अपने लक्ष्य का निर्धारण कर सके, समय की कीमत व मेहनत का महत्त्व जान सके, श्रेष्ठ नित्यकर्म, स्वास्थ्यकर भोजन, शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति के पथ को अपना सके, महाविनाशक कुसंगति व सर्वनाशक नशे के दलदल से बच जाए, विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य को अखण्ड रखकर आसनादि से शरीर बलिष्ठ, ऊर्जावान व पुष्ठ बनाए, स्वाध्याय, अनुशासन व आत्म अवलोकन के द्वारा अपनी क्षमताओं का सर्वांगीण विकास करे, भाग्य, कर्म, व्यक्तित्व व अभिप्रेरणा को भली-भाँति समझ जाए, रोजगार संबंधी जानकारी से सम्पन्न होकर बेरोजगारी की विकराल समस्या में न उलझे, श्रेष्ठ मित्रों का साथ करे, भटकाव के हर मार्ग से बचकर आदर्श जीवन तथा सच्चे जीवन-आनन्द की प्राप्ति के साथ घर, परिवार, समाज और राष्ट्र को गौरवान्वित करें, तो आपको चाहिए कि इन सभी विषयों पर अपनी संतान का समय-समय पर उचित मार्गदर्शन करें। इस पुस्तक के माध्यम से इन तमाम विषयों पर स्वतंत्र रूप से अलग-अलग अध्यायों के द्वारा इसी मार्गदर्शन का प्रयास किया गया है…
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