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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Col. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
-10%Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिCol. James Tod krit Rajasthan ka Puratatva evam Itihas (vol. 1, 2, 3)
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और उसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रूचि रखते है।
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Rajasthani Granthagar, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, बाल साहित्य
Danveer Bhamashah
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को ओसवाल परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम भारमल था।वो रणथंभौर के किलेदार थे भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया। महाराणा प्रताप को दी गई उनकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।
भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहाँ संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Deshbhakt Durgadas Rathore
देशभक्त दुर्गादास राठौड़ : मारवाड़ के शौर्यपुत्र दुर्गादास राठौड़ में अनेकानेक गुणों का समावेश था। निर्भिकता, स्वामिभक्ति, त्याग, निर्लोभ भावना, सत्यता, सहिष्णुता, शीघ्र निर्णय, संगठन, वीरता सर्वस्व न्यौछावर भावना, धर्मरक्षण, शरणागतत्सलता, स्वाभिमान एवं राष्ट्रीयता के साथ उच्च चरित्र एवं निष्काम भावना जैसे अनेक प्रण उसके सामने थे और किसी रियासत का राजा न होकर एक साधारण सामन्त के नाते दुर्गादास राठौड़ ने अपने जीवन में इन सभी गुणों को एक साथ निभाया, यही उसके चरित्र की विशेषता रही है। राजस्थान की भूमि वीर-प्रसविनी वसुन्धरा रही है जिसमें मरुधरा का विशेष महत्व है। इसी तरह दुर्गादास राठौड़ का औरंगजेब के खिलाफ किया गया दीर्घकालन संघर्ष उसे चरित्र का एक गौरपूर्ण अध्याय है।
औरंगजेब के अत्याचारों की कहानी से जनमानस संतप्त था,उस समय उसकी महान शक्ति से टक्कर लेकर भारतीय लोक जीवन केमनोबल को बनाये रखने में वीर दुर्गादास का तीस वर्षों का लम्बा संघर्ष अपने आप में एक आदर्श है। यह संघर्ष सत्ता हथियाने के लिए प्राणोत्सर्ग करने का संकल्प नहीं था वरन् अत्याचार के विरुद्ध अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए अनुपम अनुष्ठान था। वीर दुर्गादास राठौड़ का एक महत्तम शक्ति सम्पन्न बादशाह के खिलाफ किया गया दीर्घकालीन संघर्ष निष्काम भावना से मात्र प्रण-पालनार्थ राठौड़ की विजय ही नहीं हुई अपितु मुगल वंश की साम्राज्य सत्ता का ही पराभव प्रारम्भ हो गया था। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ एक स्तुत्य प्रयास है। वास्तव में यह ग्रन्थ आज के राजनीतिज्ञों एवं कल की भावी सन्तान के लिए पठन एवं मनन योग्य है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Gogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांGogadev Chauhan – Parampara aur Itihas
गोगादेव चौहान – परम्परा और इतिहास : राजस्थान को लोक संस्कृति में अनेक अद्भुत विशेषताएं विद्यमान हैं। यहाँ के लोक देयता पौराणिक देवताओं से भिन्न हैं और उनमें अपनी अनेक विशिष्टताएं हैं। डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने ‘गोगादेव चौहान – इतिहास एवं परम्परा’ में विशुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लोक देवता गोगाजी से सम्बन्धित परम्पराओं के मूल में निहित गहरे से गहरे सत्य को अपनी विश्लेषणात्मक मर्मज्ञता और ऐतिहासिक सूझ के आधार पर उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया है। रामदेवजी के भारत प्रसिद्ध रामदेवरा मेले के समकक्ष गोगामेड़ी में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने वाले मेले के नायक गोगाजी से सम्बन्धित प्रामाणिक साधनों पर आधारित सामग्री के कारण इस सम्बन्ध में प्रचलित अनेक रूढियों का बोधगम्य सत्य उजागर करने का श्रेय प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक को प्राप्त है। गोगादेव चौहान के महमूद गजनबी से संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के मध्य विरोधाभास रहा है, डॉ. बिन्ध्यराज चौहान ने महमूद गजनबी के सोमनाथ पर आक्रमण के समय हुए गोगा से संघर्ष, घग्घर के निकट हुए संघर्ष आदि से सम्बन्धित साधनों का विस्तार से विवेचन कर यह विश्वसनीय रूप से सिद्ध कर दिया है कि यह युद्ध थानेश्वर के निकट हुआ था।
रामसा पीर की भांति पीर (जाहर पीर) के रूप में विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य गोगाजी के जीवनवृत्त का अत्यंत ही प्रामाणिक विवरण न केवल अनेक भ्रांतियों के निवारण में सक्षम होगा अपितु इतिहास के गहन-गंभीर अध्येताओं के साथ ही साधारण पाठकों के लिए भी सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा। गोगाजी में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह ग्रंथ नि:सन्देह अद्वितीय निधि के रूप में ख्याति अर्जित करेगा।SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hadoti va Tonk ke Muslim Smarak
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिHadoti va Tonk ke Muslim Smarak
प्रस्तुत पुस्तक “हाड़ौती व टोंक के मुस्लिम स्मारक” राजस्थान के ऐतिहासिक स्मारकों की स्थापत्य शैली एवं इतिहास में एक नवीन अध्याय जोड़ने का अभिनव प्रयास है।
प्रस्तुत सचित्र संदर्भयुक्त ग्रन्थ हाड़ौती एवं टोंक के मुस्लिम स्मारकों पर केंद्रित है, जिनमें प्रत्येक स्मारक से जुड़ी मौलिक जानकारियों का समावेश किया गया है। राजस्थान के दक्षिण पूर्वी हाड़ौती क्षेत्र की तीन रियासतों कोटा, बूंदी एवं झालावाड़ व राजस्थान की एकमात्र पठान रियासत टोंक विभिन्न कालखंडों में निर्मित मस्जिदों, मकबरों, दरगाहों, खानकाहों, कुओं व बावड़ियों के स्थापत्य से अत्यंत समृद्ध हैं।
विभिन्न कालखंडों में निर्मित इन स्मारकों के निर्माण में सल्तनतकाल व मुगलकाल की मुस्लिम स्थापत्य शैलियों के स्थानीय राजपूत व आधुनिक काल की ब्रिटिश स्थापत्य शैलियों के मिश्रण से जन्मी अनोखी स्थापत्य शैली की विशिष्टता एवं ऐतिहासिकता को उजागर करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास है यह कृति।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Haldighati ka Yuddh aur Maharana Pratap
हल्दीघाटी का युद्ध और महाराणा प्रताप : उनके पुरखे जलजला ला देने वाली ताकत के मालिक थे और वे आठ सौ सालों से तलवार चला रहे थे। उनकी सेनाओं ने बगदाद और खुरासान से चलकर, हिन्दूकुश पर्वत पार कर लिया था और अब वे गंगा-जमुना के मैदानों पर राज कर रहे थे, किंतु गुहिलों का अरावली पहाड़ अब तक उनकी पहुंच से बाहर था। खुरासान से आया बादशाह अकबर, अरावली के गर्वित मस्तक को झुकाने के लिये कृतसंकल्प था। आठ सौ सालों से खुरासानियों से मोर्चा ले रहे गुहिल भी तैयार थे। हल्दीघाटी में एक अवसर था जब, गुहिल इस लड़ाई को उसके अंतिम परिणाम तक पहुंचा देते, किंतु स्थितियां तब विषम हो गई, जब सदियों से गुहिलों के अधीन रहकर देश के शत्रुओं से लड़ते आ रहे उत्तर भारत के क्षत्रिय राजाओं ने अकबर की चाकरी स्वीकार कर ली। वे भी अकबर की सहायता के लिए महाराणा प्रताप के विरुद्ध अपनी तलवारें ले आए थे। महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी। वह लड़ा और तब तक लड़ता रहा जब तक उसने अकबर से मेवाड़ का चप्पा-चप्पा नहीं छीन लिया। पढ़िये रोंगटे खड़े करने वाले इस युद्ध का इतिहास, आधुनिक समय के सबसे चर्चित इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्ता की लेखनी से।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hindu Sabhyata mein Nariyon ki Isthiti
विश्वविश्रुत भारतीय इतिहासकार प्रो. (डाॅ.) ए. ऐस. अल्तेकर महोदय द्वारा रचित “The Position of Women in Hindu Civilisation” नामक उत्कृष्ट और अद्वितीय ग्रन्थ का ”हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति“ शीर्षक से युक्त यह हिन्दी अनुवाद इतिहासविदों, भारतीय इतिहास के विद्यार्थियों, अँगरेज़ी भाषा से अनभिज्ञ हिन्दीभाषी और हिन्दीभाषाविद् सामान्य तथा प्रबुद्ध पाठकों के अध्ययनार्थ प्रकाशित है। उपर्युक्त मूल ग्रन्थ का सुदीर्घ कालावधि के पश्चात् हिन्दी में यह अनुवाद पहली बार प्रस्तुत है। यद्यपि किसी एक ऐतिहासिक कालावधि, किसी एक पक्ष तथा किसी एक बृहद् ग्रन्थ को आधार बना कर हिन्दू नारीजाति की स्थिति के निरूपण से सम्बन्धित ग्रन्थ विद्यमान हैं, तथापि प्रागैतिहासिक कालावधि से लेकर वर्तमान काल (1956) तक हिन्दू नारीजाति के जीवन से सम्बन्धित सम्पूर्ण अवस्थाओं और पक्षों का तुलनात्मक, समीक्षात्मक और विशद विवेचन करने के कारण प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर का ग्रन्थ सर्वातिशायी, अतिविशिष्ट और अद्वितीय है।
इस ग्रन्थ के प्रथम से एकादश तक अध्यायों में हिन्दू नारियों की बाल्यावस्था और शिक्षा, विवाह और विवाह-विच्छेद, विवाहित जीवन, विधवा की स्थिति (दो भागों में), नारियाँ और लोक-जीवन, नारियाँ और धर्म, पत्याश्रय की अवधि में मालिकाना अधिकार, मालिकाना अधिकार-उत्तराधिकार और संविभाग, वेश तथा आभूषण, नारियों के प्रति सामान्य अभिवृत्ति का प्रागैतिहासिक कालावधि से वर्तमान काल तक क्रमशः विस्तृत विवेचन किया गया है। विधवा की स्थिति – प्रथम भाग में सतीप्रथा का विस्तृत वर्णन किया गया है। अन्तिम द्वादश अध्याय में चार युगों में हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति का समग्र रूप से सर्वेक्षण करते हुए महत्त्वपूर्ण सुझावपूर्वक भावी प्रत्याशा का निरूपण किया गया है।
वैदिक वाङ्मय, रामायण, महाभारत, पुराणशास्त्र, प्रमुख धर्म- शास्त्रीय ग्रन्थों, स्मृतिग्रन्थों, कौटिलीय अर्थशास्त्र, कामसूत्र, श्रेण्य संस्कृत साहित्य, बौद्ध तथा जैन धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों से यथाप्रसंग मूल उद्धरण तथा सन्दर्भ प्रस्तुत करने के कारण प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर महोदय का ग्रन्थ सर्वथा शास्त्रान्वित, मौलिक तथा प्रामाणिक है। उन्होंने तत्तत् ग्रन्थकारों तथा विचारकों के मतों का तुलनात्मक दृष्टि से समीक्षात्मक विवेचन करते हुए उनके औचित्य तथा अनौचित्य का भी संकेत किया है। अपिच, प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर महोदय ने विदेशी यात्रियों के विवरणों, पुरातात्त्विक ग्रन्थों आदि तथा समस्त अपेक्षित ग्रन्थसामग्री से भी यथाप्रसंग सन्दर्भ प्रस्तुत कर उनका विवेचन किया है। यह अनुवादमय ग्रन्थ अँगरेज़ी भाषा न जानने वाली हिन्दीभाषी महिलाओं के लिए विशेष रूप से पठनीय है। इसकी भाषा परिष्कृत, प्रवाहमयी तथा सुबोध है। अनुवादक ने हिन्दी अनुवाद में मूल ग्रन्थ के प्रतिपाद्य को इतना सुस्पष्ट कर दिया है कि अनुवाद मूल जैसा प्रतीत होता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hindu Shreshthata – Harvilas Sharda Krit Sampurn Vishva ke Maapdand
-10%Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिHindu Shreshthata – Harvilas Sharda Krit Sampurn Vishva ke Maapdand
हिन्दू श्रेष्ठता – हरविलास शारदा कृत सम्पूर्ण विश्व के मापदण्ड : विश्व के लगभग सभी बड़े देशों का इतिहास विस्मृति के कुहासे में लुप्त है, सभी देशों में बाह्य एवं आन्तरिक समाघातों और संघर्षों के कारण जीवन की परिस्थितियां बहुत बदली हैं। किन्तु व्यापक मानवता के लिए यही हितकारी है कि प्रत्येक महान् जाति के सुदूर अतीत तक का अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त हो सके। इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है कि यह पुस्तक।
‘भारत वह स्त्रोत है जहां से न केवल शेष एशिया अपितु सारे पश्चिम जगत ने अपना ज्ञान और धर्म प्राप्त किए।’ – प्रोफेसर हीरेन
‘पृथ्वी पर रहने के लिए भारत सबसे अधिक रुचिकर स्थान है और विश्व का सबसे आनन्ददायक प्रदेश है।’ – अब्दुला वासफवर्तमान भला कैसे फलप्रद हो सकता है या भविष्य कैसे आशा दिला सकता है, यदि उनकी जड़े दृढ़ता से अतीत में गड़ी हुई न हो। प्रस्तुत पुस्तक में भारत देश के उस अतीतकालिक सभ्यता की एक झलक दिखाने का प्रयास है, जो अद्भुत, अतुलनीय एवं सर्वप्रकारेण आकर्षक थी। इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि प्राचीन हिन्दुओं के उदात्त चरित्र और अपूर्व उपलब्धियों का परिचय कराके मनुष्य को हिन्दू सभ्यता की श्रेष्ठता का मूल्यांकन करने में समर्थ बनाया जाए।
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Rajasthani Granthagar, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Hindu Vivah Sanskar
विवाह-शादी-मैरिज: एक ऐसा शब्द है, जो सम्पूर्ण विश्व में स्त्री-पुरुष के एक विशेष पारस्परिक सम्बन्ध को सूचित करता है। किन्तु भारतीय सन्दर्भ में विवाह का अर्थ अत्यन्त शोभनीय, स्पृहणीय तथा पवित्र सम्बंध है। यह एक पवित्र संस्कार है, जिसकी परिकल्पना भारतीय मनीषियों ने वैदिक युग में ही कर ली थी और शीघ्र ही यह संस्कार भारत के सम्पूर्ण विस्तार में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बन गया। कारण स्पष्ट है कि इस संस्कार की विचारणा मनोवैज्ञानिक स्तर पर सामाजिक अनुशासन और स्त्री-पुरुष के जीवन में स्थिरता, सौख्य और सामरस्य के लिए की गई थी।
वैदिक युग से आज तक इस संस्कार का मूल स्वरूप तो यथावत् है किन्तु सम्पूर्ण विश्व के हस्तामलकवत् हो जाने पर स्वभावतः ही अन्य देशों में प्रचलित विवाह प्रथाओं का प्रभाव भारतीय संस्कार पर भी पड़ा। विवाह की वैदिक सरलता सूत्र युग में जटिल हो गई और वर्तमान युग में पवित्रता के स्थान पर आडम्बर आ बैठा। जो विवाह एक अविच्छेद्य सम्बंध था, वह अब शासनादेश से विच्छेद्य भी बन गया… आदि।
प्रस्तुत पुस्तक वैदिक युग से सूत्र युग तक विवाह संस्कार पर विशिष्ट शोध है; किन्तु साथ ही वर्तमान युग में इससे सम्बद्ध ढेरों अधिनियमों और उनकी आवश्यकता एवं प्रभाव का भी इसमें आकलन हुआ है। इस रूप में यह सुधी पाठकों, जिज्ञासुओं तथा शोधार्थी छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, अन्य कथा साहित्य
Hindustani Sangeet Paddhati Kramik Pustak Malika (Vol. 1)
हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक मालिका (भाग 1) : क्रमिक पुस्तक मालिका भाग एक का हिन्दी अनुवाद संगीत के सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। मूल प्रस्तुत मराठी भाषा में हैं। यह भाग विधार्थियों में स्वर, लय और ताल की नींव निर्माण करने में यह पुस्तक बहुत लाभप्रद है। इस पुस्तक में सर्वप्रथम स्वर-बोध खण्ड के अन्तर्गत स्वराभास की प्रारम्भिक विधि बताई गई है। फिर बीस अलंकारों की रूप रेखा दी गई है। पाठ 7 से 9 तक शुद्ध और विकृत स्वरों का अभ्यास-क्रम सोदाहरण समझाया गया है। स्वरों के अभ्यास क्रम में मनोवैज्ञानिक शिक्षण के आधार पर पहले एक विकृत स्वर और उसके बाद धीरे-धीरे विकृत स्वरों की संख्या बढ़ाकर उदाहरण दिये गये है। दसवें पाठ में मात्रा और मात्रांश की शिक्षा, विद्यार्थियों को किस प्रकार की जाय, बताई गई है। पुस्तक का द्वितीय खण्ड राग-बोध है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)
Indra Vijay
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति, सही आख्यान (True narrative)Indra Vijay
An Old and Rare Book
पण्डित मधुसूदन ओझा ग्रन्थमाला 6 – इन्द्रविजयः – पण्डित मधुसूदन ओझा शोध प्रकोष्ठ | Pandit Madhusudan Ojha Granthamala 6 – Indravijay – Pt. Madhusudan Ojha Research CellSKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jaat Itihas
लेखक की मान्यता है कि काला सागर के समीप प्रथम मानव का उद्भव हुआ। प्राकृतिक प्रकोपों के कारण वहां से लोग इधर-उधर चले गए। एक समुदाय भारत की ओर भी आया, वह आर्यों के नाम से जाना गया। कालान्तर में, भारतीय आर्य वर्ण एवं जातियों में विभाजित हो गए। जाटों का प्रादुर्भाव भी इसी वर्गकरण का प्रतिफल था। जाटों ने संघबद्ध जीवन पद्धति को बनाए रखा और धार्मिक-सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त रहे। फलतः पुरोहित तथा राजा के गठबंधन से उनको संघर्ष करना पड़ा। संघर्ष में उनकी जीतें भी हुई और हारें भी। विवशतावश, वे पुनः एशिया और यूरोप के देशों की ओर गए और बड़े राज्यों का ध्वन्स करके अपने उपनिवेश स्थापित किए।
विरोधी परिस्थितियों के कारण वे फिर भारत की ओर आए और सिन्ध, पंजाब, मालवा, गुजरात और गंगा-यमुना के क्षेत्रों में बस गए। कालान्तर में उन्होंने हूणों को देश से बाहर भगाया और प्रायः प्रत्येक आक्रमणकारी का प्रतिरोध करके भारत की राजनीतिक स्थिति के निर्माण में योगदान दिया। जाटों ने, ईसापूर्व से लेकर ईसा की अठारहवीं शती तक विदेशी आक्रमणकारियों के साथ इतनी तलवार बजाई कि उसकी समता भारतीय इतिहास में नहीं मिलती। वे लेखनी से अपना इतिहास लिखने की ओर से उदासीन रहे, अतः उनकी राष्ट्रीय एवं ऐतिहासिक महत्त्व की भूमिका अंधकार में पड़ गई। यह इतिहास-ग्रंथ जाटों का ऐतिहासिक महत्त्व के राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक कार्यों पर प्रकाश डालता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Jati Bhaskar
जाति भास्कर : हमारे देश में वर्ण, जाति, गोत्र, अवटंक, शाखा-प्रशाखादि की मान्यताएं बहुत पुराने समय से रही हैं। प्रत्येक समुदाय में इस तरह की मान्यताएं विदेशी अध्येताओं के लिए बहुत रोचक विषय रही। वर्ण और जाति का विचार कब जागा, स्पष्ट कहा नहीं जा सकता, लेकिन 1847 में रौथ ने आर्य और आर्येतर समाजों के सम्बन्ध में जिस विचार को रखा तो वैदिक सन्दर्भों को टटोला जाने लगा और ज्ञात हुआ कि आर्यों के देवता इन्द्र दासों के विजेता रहे। इन्द्र ने दस्युओं का विनाश किया और आर्यवर्ण की सुरक्षा की। वर्ण की रक्षा का भाव बहुत बाद में गीता जैसे ग्रंथ में भी आता है। आरम्भ में आर्यों का समुदाय आधारित जीवन था और गण, सभा, समिति सहित विदथ जैसी सामुदायिक संस्थाएं होती थीं, जिनके माध्यम से यज्ञादि कार्यों पर विचार होता और पशुधन आदि की चिंता को अभिव्यक्त किया जाता था। प्रारम्भिक पुराणकाल में समाज में चतुर्वर्ग की व्यवस्था का प्रतिपादन किया गया है। जातियों का वर्गीकरण कठिन है और फिर जातियों के उद्भव और विकास को पहचान पाना भी बड़ा जटिल है। आक्रमणों के बावजूद अविच्छिन्नता व टिके रहना भारतीयों का जातीय गुण रहा, पवित्रता व अपवित्रता जैसे भाव और उनका अनुकरण व्यवहार्य रहा, कुलों के अन्दर ही सर्वप्रकारेण व्यवहार रुचिकर रहा, पेशों का पक्ष और श्रम की बुनियाद अक्षुण्ण रही- ऐसे कई कारण हैं जिनके फलतः जातियों का अस्तित्व बना रहा। हालांकि विदेशी अध्येताओं ने जहाँ विदेशियों के सम्मिश्रण सम्बन्धी मत दिए हैं, वहीं भारतीयों ने अपने ढंग से यहाँ की जातिगत पहचान को स्थिरीकृत करने का प्रयास किया है। विश्वास सबके अपने-अपने हैं। न जाने कितनी सदियाँ गुजरी और अभी और गुजरेगी।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियां
Kahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, कहानियांKahawati Kathayen (Kahawaton ke sath Kathayen)
कहावती कथाएँ (कहावतों के साथ कथाएँ) : कहावतों के महत्त्व के सम्बन्ध में अनेक बातें कही जा सकती है। यह पिछली पीढ़ियों के अनमोल अनुभवों का भण्डार है। कहावतें भाषा का श्रृंगार है, इनके प्रयोग से भाषा में सजीवता का संचार होता है। कहावतें झूठ नहीं बोलती, वे मानव के अनुभव की सन्तान है। कहावतें और मुहावरे लोगों की सम्पूर्ण सामाजिक और ऐतिहासिक अनुभूतियों के संक्षिप्त रूप है। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध और सुविख्यात दार्शनिक अरस्तू कहावतों के प्रभाव को स्वीकार कर इनका बहुलता से प्रयोग करते थे।
प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री विजयदान देथा जी राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के विद्वान थे और उनका यह अद्वितीय शोध ग्रन्थ अथक परिश्रम तथा गहन गम्भीर सोच का प्रतिफल है, जो भावी पीढ़ियों के लिये उपयोगी बना ही रहेगा। प्रस्तुत ग्रन्थ कहावतों के संकलन मात्र तक सीमित नहीं है। श्री विजयदान देथा ने राजस्थानी कहावतों की समाजशास्त्रीय, सांस्कृतिक साहित्यिक तथा भाषागत सारगर्भित विवेचना की है तथा कहावत से सम्बन्धित कथा का विवरण भी प्रस्तुत किया है। श्री विजयदान देथा ने कहावतों का रूपात्मक और विषयानुार वर्गीकरण कर अपने शोध ग्रन्थ को स्थाई महत्त्व प्रदान कर दिया है।SKU: n/a -
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar
Kavi Gang Rachanawali
कवि गंग रचनावली : भक्ति कालीन हिंदी कवियों में कवि गंग का स्थान अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। उनके कवित्तर शताब्दियों पश्चात् आज भी जन-कंठों में स्थायी आसन जमाये हुए हैं। यह प्रसिद्ध है कि अकबर कालीन इस कवि के एक कवित्त से प्रभावित होकर रहीम खानखाना ने उस काल में कवि को 36 लाख रुपये प्रदान किए थे। अकबर के दरबार में जिस प्रकार राजा बीरबल हास्य विनोद के प्रतीक माने जाते हैं, उसी प्रकार शृंगार के क्षेत्र में कोई अनोखी सूझ व्यक्त करनी हो, तो कवि गंग का आश्रय ले लिया जाता है। जैसे नीति के दोहों के बीच ‘कहे कबीर सुनो भई साधो’ का प्रचलन है, वैसे ही कवित्त और सवैयों के बीच ‘कहे कवि गंग’ अथवा ‘गंग कहै सुन शाह अकबर’ की प्रसिद्धि है। निर्भिक उक्तियों के लिए कवि गंग अद्वितीय माने जाते हैं।
प्रारंभ में कवि गंग के कवित्त लोगों में प्रचलित थे कि यदि उन्हें जनकवि कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ‘कवि गंग रचनावली’ इस प्रसिद्ध कवि की समस्त ज्ञात रचनाओं को अपने कलेवर में संजोये हुए हैं। संपादक बटे कृष्ण ने यत्नपूर्वक प्रामाणिक गंग-रचनाओं को एकत्र कर सराहनीय कार्य किया है। इसलिए हिंदी साहित्य के गंभीर अध्येताओं के साथ ही यह ग्रन्थ सामान्य कवि रसिकों के लिए भी रुचिकर तथा सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Khetri Naresh aur Vivekanand
खेतड़ी नरेश और विवेकानन्द : पुनीत बालुकामयी राजपूताने की मरूभूमि में कुछ ऐसी ज्योतिर्मयी शक्ति है कि समय-समय पर उस रक्त-रंजित स्थल में वह शक्ति लोगों के हितार्थ मानव रूप धारण किया करती है। स्वर्गीय राजा अजीतसिंह भी उस शक्ति के एक प्रतिबिंब थेे। स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह उस सृजनहार शक्ति के दो निकटतम रूप थे, जो इस संसार में उस शक्ति की प्रेरणा से आए थे और अपना कर्तव्य-पालन कर उसी में लीन हो गए। स्वामी जी ने अपने आध्यात्मिक बल से अमेरिका में वेदांत-पताका फहराकर भारतवर्ष और हिंदू जाति का गौरव बढ़ाया था। वस्तुतः स्वामी तरूण भारत के स्फर्ति-स्त्रोत थे। अमेरिका में जाकर उन्होंने भारत के लिए जितने आंदोलन किए इतने कदाचित् किसी ने आज तक नहीं किए। इस आंदोलन में खेतड़ी-नरेश राजा अजीत सिंह जी का बड़ा योगदान था। स्वयं स्वामी जी की उक्ति है- “भारतवर्ष की उन्नति के लिए थोड़ा-बहुत मैनें किया है, वह खेतड़ी-नरेश के न मिलने से सम्भव न हो पाता”। प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी विवेकानंद जी द्वारा किए गए देश-हित के कार्यों में खेतड़ी-नरेश भी किस रूप में सहायक बनें, उसका विस्तृत वर्णन है। समाज-कार्यों के लिए प्रोत्साहन करने वाली एक अद्भूत कृति। राजस्थान-शेखावाटी के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि वहां राजा अजीत सिंह जी के समान धर्मात्मा पुरूष हुए। उनके समय में न केवल खेतड़ी में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना हुई बल्कि स्वामी जी ने विविदिषानंद से विवेकानंद नाम राजा अजीत सिंह जी के प्रेमानुरोध से धारण किया था।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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