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Hind Yugm, Literature & Fiction, उपन्यास
Bakar Puran (PB)
बकर पुराण’ हर उस बैचलर लड़के की ज़िंदगी की किताब है जो घर छोड़कर दिल्ली जैसे शहरों में पढ़ने आता है और फिर उन शहरों का हिस्सा हो जाता है। इसके पन्नों पर हर उस लड़के की कहानी है जिसने कभी प्रेम किया हो, मूर्खता की हो, चाय की दुकानों पर भारत की विदेश नीति पर परिचर्चा की हो।
‘बकर पुराण’ बैचलर लौंडों का इतिहास, वर्तमान और न बदलने वाला भविष्य है। इसकी भाषा और शैली वही है जो बैचलरों के कमरे में होती है, कोई सजावट या अभिजात्यता का ढोंग नहीं। जो है, बस वही है।
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Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Bal Chitramay BuddhaLeela 0537
भगवान् बुद्ध का चरित्र परम पवित्र और उदार है। इस पुस्तक में भगवान् बुद्ध की विभिन्न लीलाओं के 48 चित्र दिये गये हैं। प्रत्येक चित्र के नीचे कविता में चित्र में दर्शायी गयी लीला का वर्णन दिया गया है। यह पुस्तक बालक-बालिकाओं को भगवान् बुद्धके त्याग एवं वैराग्यसे सम्पन्न चरित्र का परिचय देने की दृष्टिसे विशेष उपयोगी है।
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Rajpal and Sons, कहानियां, बाल साहित्य
Bandar Bant
लोकप्रिय हिन्दी फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन के पाँचवें जन्मदिन पर उनके दादा प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंशराय बच्चन ने ये कविताएँ और एक छोटा-सा नाटक लिखा था जो कि इस पुस्तक में सम्मिलित है। कवि के रूप में बच्चन जी की हिन्दी साहित्य जगत में अपनी एक पहचान है। उनकी कविताएँ, चाहे बड़ों के लिए हों या फिर बच्चों के लिए, मन को छू जाती हैं।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bapa Rawal
बापा रावल | Baapa Rawal : भारतीय इतिहास की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के विवरण में मेवाड़ के बापा रावल का नाम चिरपरिचत है। बापा ने अपनी प्रतिभा से एक राज्य की पहचान ही नहीं बनाई बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की सुरक्षा के जो प्रयास किये वो कोई तीन-चार शताब्दियों तक भारत की बाहरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण रहे। बापा का नाम इतिहास में राज्य विस्तार के रूप में ही नहीं बल्कि एक स्थायी शासन व्यवस्था के मार्गदर्शक के रूप में भी है। बापा द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं का मेवाड़ क्षेत्र में लम्बे समय तक निर्वहन होता रहा, जिससे जनता व शासकों में आपसी समन्वय बना रहा। डॉ. मोहब्बतसिंह राठौड़ ने बापा रावल नामक पुस्तक में शोधपरक जानकारी को उजागर करने का प्रयास शोधार्थियों, इतिहास पाठकों व युवा पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगा।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Bargad Ke Ped Tale
बरगद के पेड़ तले भारत के श्रेष्ठ कहानीकार आर.के. नारायण के प्रिय काल्पनिक शहर, मालगुडी, की अमूल्य धरोहर में एक अनूठे नग की तरह है जिसमें सौदागर, भिखारी, साधु-सन्त, अध्यापक, चरवाहे, ठग जैसे अलग-अलग चरित्रों की दिलचस्प कहानियाँ हंै। कहीं तो है एक विद्रोही नवयुवक जो पैतृक मन्दिर में अपने माता-पिता की ली गई प्रतिज्ञा का पालन करने से साफ इनकार कर देता है, तो वहीं सीधा-सादा दुकानदार एक अजनबी की मनमोहक बातों में आकर दिवालिया हो जाता है, और एक छोटा-सा लड़का अपना साहस दिखाने के लिए रात को अकेले ही चोर को पकड़ दिखाता है। ऐसी ही अट्ठाईस रोचक कहानियाँ हैं बरगद के पेड़ तले में। कहानीकार आर.के. नारायण शब्दों के जादूगर थे जो अपने शब्दों के मायाजाल और जीवन्त चित्राण से पाठकों को मोह लेते हैं। कहानी का विषय कैसा भी हो, पात्रा कितना भी क्रूर क्यों न हो, परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो, लेकिन आर.के. नारायण की शालीन कलम हर स्थिति को मानवीय नजरिये से पेश करती है।
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Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
BASU RAI FROM THE STREETS OF KATHMANDU
A little boy climbs down the stairs and runs out of his house. Most little ones do that. But this little boy has no one to stop him. He does not have a name. He only has the memory of a story his father has told him over and over again, from the time he was just six months old until his dying day, when the child was about four years old. It is the story of his father’s love affair with his mother and betrayal.
From the streets of Kathmandu, this is the story of a child who names himself Basu Rai, and who travels the corridors of the world, takes part in the Global March against child labour and arrives finally in the country he identifies as his own—India. Though Basu has found his country, his quest for a family is not over. His search for identity begins with his book which maps the step by step progress of a reticent toddler from a well-to-do family through being a violent street child and a child labourer returning from the jaws of death several times, to his fights to go to school, being school captain and finally at 26, with the telling of his story in a book.
This is an inspirational story which tells about nurturing by a father. It is also a story that tells us here was a case for nurturing by the state, which was completely missing. It, instead, points to the loopholes in the systems in place, the social welfare systems, the education systems and the family systems that the subcontinent so boasts about, but in reality, does not exist. It directs us to the vacuum children are often forced to grow up in. To get an enlightened and educated young citizen from nothing is nothing short of a miracle.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batla House Encounter Ka Sach(PB)
“सितम्बर 2008: एक के बाद एक अनेक बम धमाकों ने दिल्ली
को दहलाकर रख दिया। जाँच-पड़ताल
के बाद दिल्ली पुलिस की एक विशेष टीम ने बाटला हाउस के फ्लैट नं. 108 पर छापा मारा।
टीम को स्पष्ट निर्देश दिए गए
थे कि फ्लैट पर छापा मारकर संदिग्ध आतंकवादियों को जिंदा गिरफ्तार करना है। इसके बाद जो हुआ, उसने एक मुठभेड़ का रूप धारण कर लिया और राजनीतिक गलियारे में तूफान ला दिया। यह घटना आज भी मीडिया-जगत् में उग्र एवं विवादास्पद मुद्दा बनी हुई है।
बाटला हाउस
इस ऑपरेशन का नेतृत्व कर्मठ एवं जुझारू पुलिस अधिकारी कर्नल सिंह ने किया था। देश को झकझोर देनेवाली इस मुठभेड़ की पल-पल की घटनाओं का वह स्वयं यहाँ वर्णन कर रहे हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो से मिली सूचनाओं, भारत के विभिन्न शहरों में घटी घटनाओं, भिन्न-भिन्न पहलुओं तथा स्थानीय संदेशवाहकों व गुप्तचरों द्वारा प्राप्त विशेष खबरों के आधार पर उन्होंने इस मुठभेड़ की घटनाओं को सिलसिलेवार जोड़कर एक कहानी का रूप दिया है, जिसने गुप्त और खूँखार इंडियन मुजाहिद्दीन के अंत की शुरुआत को चिह्नित किया है। आतंकवाद और आतंकियों को शह देनेवाले राष्ट्रघातकों
मुठभेड़ का जीवंत दस्तावेज है यह पुस्तक ‘बाटला हाउस’।SKU: n/a -
English Books, Vitasta Publishing, इतिहास
BATTLEFIELD JAFFNA: ABANDONED, THEY FOUGHt
On the night of 12 October 1987, in a Special Heliborne Operation, 150 soldiers of the Indian Peace Keeping Force (IPKF) were trapped inside Jaffna University, Sri Lanka, surrounded by fighters of the Liberation Tigers of Tamil Eelam (LTTE). As the rest of the IPKF force desperately tried to break through the well-entrenched LTTE defences, the soldiers found themselves slowly bleeding to death. Miserably behind schedule, outnumbered and outgunned with ammunition and supplies fast dwindling and no reinforcements in sight—the rescuers fought with their backs, literally, to the wall. With the politicians playing their own games and the Indian spy agencies supporting the LTTE against them, the IPKF fought to determine who was friend and foe. Battlefield Jaffna takes you into the heart of the struggle, right in the middle of the most brutal, intense and dirty battle fought in Sri Lanka. It is a story of men without bullets—of men with only their courage left to defend themselves as the battle wore on.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(PB)
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bauddha Kapalika Sadhana Aura Sahitya
हिन्दी के आदिकालीन साहित्य और भक्तिकालीन साहित्य की भूमिका प्रस्तुत करनेवाली बौद्ध सिद्धों की अपभ्रंश रचनाओं का अध्ययन केवल हिन्दी ही नहीं सम्पूर्ण समकालीन साहित्य, किंबहुना तत्कालीन समग्र धर्मदार्शनिक एवं साधनात्मक जीवन के अध्ययन के लिए उपयोगी है; क्योंकि तंत्रदर्शन एवं साधना का अति व्यापक एवं गंभीर प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। इसी दृष्टि से बहुत पहले १९५८ में तांत्रिक बौद्ध साधना और साहित्य की रचना की गई थी। यह ग्रन्थ उस अध्ययन के एक पक्ष का विस्तार है। बहुत पहले आचार्य डॉ० हजारीप्रसाद जी द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ में जालंधर पाद और कान्हुपा के कापालिक साधन और ‘बामारग’ की चर्चा नाथ सम्प्रदाय के परिप्रेक्ष्य में ही की थी। दूसरे उस समय बौद्धों के कापालिक साधन और दर्शन से सम्बन्धित किसी शास्त्रीय ग्रन्थ की सहायता नहीं ली गई थी। अत: बौद्धों के कापालिक तत्त्वों, साधनों, दार्शनिक सिद्धान्तों की मीमांसा भी नहीं हो पाई। यहाँ तक कि श्री स्नेलग्रोव ने हेवज्रतंत्र और उसकी टीका हेवज्रपंजिका का संपादन करके भी उसके कापालिक तत्त्वों का विस्तृत विवेचन नहीं किया और न एक पृथक् बौद्ध साधनाधारा के रूप में इसे प्रस्तुत ही किया। यह ग्रंथ बौद्ध साधना और साहित्य के अनेक अछूते, विस्मृत, तिरस्कृत और महत्त्वपूर्ण सूत्रों को एकत्रित कर उनका व्यवस्थापन करते हुए बौद्धों के कापालिकतत्त्व का स्वरूप प्रस्तुत करता है। सामान्यतया केवल शैवों में ही कापालिकों की स्थिति माननेवालों को इस ग्रंथ से नया प्रकाश, नई सूचनाएँ एवं भारतीय कापालिक साधना का एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। कापालिक साधना के विषय में फैली अनेक भ्रांतियों का निराकरण भी होगा, इसमें संदेह नहीं।
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English Books, Garuda Prakashan, इतिहास
BBC’s True Lies
“True Lies” exposes undisclosed aspects of the BBC, challenging its status as the ultimate purveyor of authentic information. The book sheds light on the intricately crafted facade of the BBC’s ‘independence and impartiality’ on a global stage, revealing its historical and modern ties to British security and intelligence. Despite public funding through mandatory licenses and state grants, the BBC avoids being labeled ‘state-controlled media.’ The narrative unravels a common thread in BBC reporting that exacerbates fault lines in the developing world. A global examination of the BBC’s role, this critical analysis empowers readers to approach media outlets with discernment, fostering a more thoughtful interaction with potentially biased information. Featuring insights from figures like Margaret Thatcher and Hamid Dabashi, the book invites readers worldwide to question and engage with matters of global importance.
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Beech Bahas Mein
निर्मल वर्मा की करुणा आत्मदया नहीं है, यह एक समझदार और वयस्क करुणा है। यह करुणा जीवन में विसंगतियों को देखती है और उन्हें समझती है, गोकि कुछ करती नहीं। निर्मल वर्मा की कहानियों के पात्र एक-दूसरे को भीतर से समझते हैं, इसलिए उनमें आपस में कोई विरोध या संघर्ष नहीं है, वे एक-दूसरे को काटते नहीं, एक-दूसरे के अस्तित्व की प्रतिज्ञाओं को तोड़ते नहीं। एक अर्थ में वे यथास्थितिवादी हैं। वे अपने केन्द्र पर अपनी अनुभूति की पूरी सजीवता से डोलते हुए सिर्फ स्थिर रहना चाहते हैं, न अपने आपको, न अपने परिवेश को और न इन दोनों के सम्बन्ध को ही बदलना चाहते हैं। -मलयज बीच बहस में एक मौत हुई थी। लगा था कि दिवंगत के साथ ही उसके साथ होने वाली बहस भी समाप्त हो गयी। पर बहस समाप्त हुई नहीं। हो भी कैसे? बहस केवल उससे तो थी नहीं, जो चला गया। वह तो अपने आप से है, उनसे है जो बच रहे हैं। और जो मौत भी हुई है, वह कोई टोटल, सम्पूर्ण मौत तो है नहीं। क्यों कोई मौत टोटल होती है? -सुधीर चंद्र
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Yash Publication, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Bengal Voto Ka Khuni Loottantra
पुस्तक के बारे मै
पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद पनपने के बाद पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक हिंसा से पूरी तरह परिचित कराती पहली पुस्तक। 1967 में किसानों के आंदोलन, उद्योगों में बंद और हड़ताल, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में बमों के धमाके तथा रिवाल्वरों से निकलती गोलियों के साथ अराजकता भरे आंदोलनों की जानकारी। 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दमनचक्र के बाद 1977 में वाम मोर्चे की सरकार के गठन के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तृत विवरण। माकपा ने त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू करने के बाद किस तरह राजनीतिक हिंसा के सहारे सत्ता पर पकड़ बनाए रखी। 1978 से 2018 तक हुए नौ पंचायत चुनावों के दौरान हत्याओं और हिंसा का पूरी जानकारी के साथ 2013 और 2018 में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस द्वारा पंचायत चुनाव में वोटों की खूनी लूट का पुस्तक में खुलासा किया गया है।
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