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Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
लेखक – डॉ. बी. आर. आंबेड़कर
आजकल भारत में मुख्य मुद्दा सवर्ण-दलित का है। इसमें कुछ बामसेफी, भीमसेना, सांभाजी ब्रिग्रेड़ वाले हिन्दू विरोधी गतिविधियों में भाग लेते है। इनका साथ मुस्लिम और ईसाई मिशनरी देते हैं। आजकल प्रचलित एक नेशनल दस्तक चैनल भी दलित-मुस्लिमों द्वारा सम्यक रुप से प्रसारित किया जाता है। नेशनल दस्तक से अतिरिक्त अन्य मंचों पर भी जैसे कि सोशल नेटवर्किंग साईटों, पत्र एवं पत्रिकाओं में भी दोनों मिलकर आपस में हिन्दु समाज के विरोध में अपने लेखों का सम्पादन करते है। वैदिक संस्कृति को आपस में मिलकर नष्ट करना चाहते हैं। यहां दलितों को सोचना चाहिए कि मुस्लिम उनकें साथ इसलिये नहीं है कि वे दलितों का उत्थान चाहते हैं बल्कि इसलिए है कि सवर्ण दलितों में फूट हो और हम लोग उसका फायदा उठाकर इससे लाभ उठायें।
दलित समाज जिन अम्बेड़कर जी को मानता है, वे स्वयं मुस्लिम कट्टरता और मुस्लिम धर्म ग्रन्थों के बहुत विरोध में थे। डॉ. अम्बेडकर किसी के मुस्लिम हो जाने पर मात्र मतपरिवर्तन नहीं मानते थे बल्कि वे इसे संस्कृति और सभ्यता परिवर्तन भी मानते थे। उनका कथन था कि विदेशी मत को अपनाने से व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता को नष्ट कर देता है और जिस विदेशी मत को उसने ग्रहण किया है उसी देश की राष्ट्रीयता का अनुयायी बन जाता है। यहीं कारण है कि डॉ. अम्बेडकर जी ने मतान्तरण में किसी विदेशी मुस्लिम और ईसाई मत न ग्रहण करके मात्र बौद्धमत अपनाया था।
ड़ॉ. अम्बेड़कर इस्लाम तुष्टिकरण के भी खिलाफ थे, उन्होनें कांग्रेस आदि के मुस्लिम तुष्टिकरण से अनेकों बार असंन्तुष्टि दर्शाई है किन्तु उनके आजकल के अनुयायी स्वयं मुस्लिम तुष्टिकरण के पक्ष में है। ड़ॉ. अम्बेड़कर नें तुष्टिकरण पर कुछ प्रश्न किये थे जो आज भी प्रासंगिक है –
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता ही एकमात्र भारत की राजनीतिक अभियोत्थान हेतु आवश्यक थी?
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता तुष्टीकरण या समझौते के माध्यम से प्राप्त की जा सकती थी।
- यदि एकता तुष्टिकरण से प्राप्त की जाती, वे कौन सी नई सुविधाएं हैं जो मुस्लिमों को दी जानी चाहिए।
- यदि समझौता विकल्प है तो समझौते की शर्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन है अथवा दो संविधान और सभाओं और सेवाओं में 50% भागेदारी?
- क्या दोनों सम्प्रदायों का एक मान्य संविधान हो सकता है?
- बगैर भौगोलिक एकता के हमेशा सीमा विवाद रहेंगे?
- क्या शान्ति से विभाजन नहीं हो सकता था?
इस प्रकार कई प्रश्न थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के सख्त विरोध में दृष्टिगोचर होते है। इन्हीं सब कथनों को लेते हुए, उन्होनें एक पुस्तक Thoughts on Pakistan लिखी थी, इसी पुस्तक का द्वितीय संस्करण Pakistan or Partition of India नाम से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में डॉ. अम्बेड़कर के जो इस्लाम पर मन्तव्य थे, वे प्रत्येक हिन्दू और नवबौद्ध को अवश्य पढ़नें चाहिए –
१. हिन्दू काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं-”मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं, और एक काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है, और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासनहो, वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी सति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।” (पृ. ३०४)
२. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वासहै। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।”
३. एक साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय मुसलमान में अन्तर देख पाना मुश्किल-”लीग को बनाने वाले साम्प्रदायिक मुसलमानों और राष्ट्रवादी मुसलमानों के अन्तर को समझना कठिन है। यह अत्यन्त संदिग्ध है कि राष्ट्रवादी मुसलमान किसी वास्तविक जातीय भावना, लक्ष्य तथा नीति से कांग्रेस के साथ रहते हैं, जिसके फलस्वरूप वे मुस्लिम लीग् से पृथक पहचाने जाते हैं। यह कहा जाता है कि वास्तव में अधिकांश कांग्रेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है, और कांग्रेस के अन्दर राष्ट्रवादी मुसलमानों की स्थिति साम्प्रदायिक मुसलमानों की सेना की एक चौकी की तरह है। यह धारणा असत्य प्रतीत नहीं होती। जब कोई व्यक्ति इस बात को याद करता है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के नेता स्वर्गीय डॉ. अंसारी ने साम्प्रदायिक निर्णय का विरोध करने से इंकार किया था, यद्यपिकांग्रेस और राष्ट्रवादी मुसलमानों द्वारा पारित प्रस्ताव का घोर विरोध होने पर भी मुसलमानों को पृथक निर्वाचन उपलब्ध हुआ।” (पृ. ४१४-४१५)
४. भारत में इस्लाम के बीज मुस्लिम आक्रांताओं ने बोए-”मुस्लिम आक्रांता निस्संदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो यह वरदान माना जाता। वे ऐसे नकारात्मक परिणाम मात्र से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने इस्लाम का पौधा लगाते हुए एक सकारात्मक कार्य भी किया। इस पौधे का विकास भी उल्लेखनीय है। यह ग्रीष्म में रोपा गया कोई पौधा नहीं है। यह तो ओक (बांज) वृक्ष की तरह विशाल और सुदृढ़ है। उत्तरी भारत में इसका सर्वाधिक सघन विकास हुआ है। एक के बाद हुए दूसरे हमले ने इसे अन्यत्र कहीं को भी अपेक्षा अपनी ‘गाद’ से अधिक भरा है और उन्होंने निष्ठावान मालियों के तुल्य इसमें पानी देने का कार्य किया है। उत्तरी भारत में इसका विकास इतना सघन है कि हिन्दू और बौद्ध अवशेष झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं; यहाँ तक कि सिखों की कुल्हाड़ी भी इस ओक (बांज) वृक्ष को काट कर नहीं गिरा सकी।” (पृ. ४९)
५. मुसलमानों की राजनीतिक दाँव-पेंच में गुंडागर्दी-”तीसरी बात, मुसलमानों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है। दंगे इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि गुंडागिर्दी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है।” (पृ. २६७)
६. हत्यारे धार्मिक शहीद-”महत्व की बात यह है कि धर्मांध मुसलमानों द्वारा कितने प्रमुख हिन्दुओं की हत्या की गई। मूल प्रश्न है उन लोगों के दृष्टिकोण का, जिन्होंने यह कत्ल किये। जहाँ कानून लागू किया जा सका, वहाँ हत्यारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली; तथापि प्रमुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की। इसके वपिरीत उन्हें ‘गाजी’ बताकर उनका स्वागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आन्दोलन शुरू कर दिए गए। इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरिस्टर मि. बरकत अली का, जिसने अब्दुल कयूम की ओर से अपील दायर की। वह तो यहाँ तक कह गया कि कयूम नाथूराम की हत्या का दोषी नहीं है, क्योंकि कुरान के कानून के अनुसार यह न्यायोचित है। मुसलमानों का यह दृष्टिकोण तो समझ में आता है, परन्तु जो बात समझ में नहीं आती, वह है श्री गांधी का दृष्टिकोण।”(पृ. १४७-१४८)
७. हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्रजातियां-”आध्याम्कि दृष्टि से हिन्दू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या सम्प्रदाय नहीं हैं जैसे प्रोटेस्टेंट्स और कैथोलिक या शैव और वैष्णव, बल्कि वे तो दो अलग-अलग प्रजातियां हैं।” (पृ. १८५)
८. हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्यों रही ?-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की विफलता का मुखय कारण इस अहसास का न होना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो भिन्नताएं हैं, वे मात्र भिन्नताएं ही नहीं हैं, और उनके बीच मनमुटाव की भावना सिर्फ भौतिक कारणों से ही नहीं हैं इस विभिन्नता का स्रोत ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दुर्भावना है, और राजनीतिक दुर्भावना तो मात्र प्रतिबिंब है। ये सारी बातें असंतोष का दरिया बना लेती हैं जिसका पोषण उन तमाम बातों से होता है जो बढ़ते-बढ़ते सामान्य धाराओं को आप्लावित करता चला जाता हैं दूसरे स्रोत से पानी की कोई भी धारा, चाहे वह कितनी भी पवित्र क्यों न हो, जब स्वयं उसमें आ मिलती है तो उसका रंग बदलने के बजाय वह स्वयं उस जैसी हो जाती हैं दुर्भावना का यह अवसाद, जो धारा में जमा हो गया हैं, अब बहुत पक्का और गहरा बन गया है। जब तक ये दुर्भावनाएं विद्यमान रहती हैं, तब तक हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता की अपेक्षा करना अस्वाभाविक है।” (पृ. ३३६)
९. हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की निरर्थकता को प्रगट करने के लिए मैं इन शब्दों से और कोई शबदावली नहीं रख सकता। अब तक हिन्दू-मुस्लिम एकता कम-से-कम दिखती तो थी, भले ही वह मृग मरीचिका ही क्यों न हो। आज तो न वह दिखती हे, और न ही मन में है। यहाँ तक कि अब तो गाँधी जी ने भी इसकी आशा छोड़ दी है और शायद अब वह समझने लगे हैं कि यह एक असम्भव कार्य है।” (पृ. १७८)
(सभी उद्धरण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २००० से लिए गए हैं)
इस पुस्तक की आज के समय उपयोगिता देखते हुए, इसे हमारे मंच से भी उपलब्ध करवाया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति इसे पढ़े और विशेषकर नवबौद्ध समाज भी और समझे कि दलित-मुस्लिम एकता सब प्रकार से असम्भव है। इस पुस्तक को यदि विभिन्न नेता बिना पक्षपात के पढ़गें तो वे भी मुस्लिम तुष्टिकरण को गलत ही पायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा में होने से सामान्य पाठक भी डॉ. अम्बेडकर के मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लाम पर विचारों से परिचित हो सकता है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Pakistan-Bangladesh : Aatankvad Ke Poshak
पिछले बीस वर्षों में भारत में आतंकवादी हिंसा में 60 हजार से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं। उनमें बूढ़े व जवान,स्त्रियाँ व बच्चे और गरीब व निस्सहाय भी शामिल हैं; और यह सब जेहाद के नाम पर हो रहा है। ऐसी कौन सी बात है, जो अल्लाह के वफादारों को ‘हत्यारे’ के रूप में तैयार कर रही है? पाकिस्तान के ‘गैर-मजहबी’ स्कूलों व मदरसों में शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के मन-मस्तिष्क में क्या घोला जा रहा है? पाकिस्तान में शासन कर रही संस्थाओं का इसलाम-पसंद पार्टियों और आतंकवादी संगठनों के साथ क्या संबंध है? क्या हमें पाकिस्तान के राष्ट्रीय और सामाजिक स्वरूप पर नजर डालनी चाहिए?
भारत के एक बड़े हिस्से पर बँगलादेशी घुसपैठियों ने अपना डेरा जमाया हुआ है। देश की सुरक्षा पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है? हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी और इसलामिक संगठनों को कौन जोड़ रहा है? बँगलादेश में तेजी से बढ़ रही कट्टरवादिता से क्या खतरा उत्पन्न हुआ है? आतंकवाद से निपटने में हम कहाँ चूके और इससे हमने क्या-क्या सबक सीखे हैं?
ऐसे और भी अनेक गंभीर प्रश्न हैं, जिनके उत्तर वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री अरुण शौरी की यह पुस्तक देती है। इसमें पाकिस्तान व बँगलादेश का आतंकवादी चेहरा तो बेनकाब हुआ ही है, उनकी करतूतों का कच्चा चिट्ठा भी खुला है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, कहानियां, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Panch Pandav
प्रस्तुत पुस्तक पाँच पांडवों के व्यक्तित्व तथा उनके जीवन पर आधारित है। महाभारत के अनुसार पाँचों पांडव राजा पांडु के पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर, भीमसेन तथा अर्जुन पांडु की पहली पत्नी रानी वुंक्तती से उत्पन्न हुए तथा नकुल और सहदेव राजा पांडु की दूसरी रानी माद्री के पुत्र थे। पाँचों पांडवों का लालन-पान रानी वुंक्तती ने ही किया था। बचपन से ही पाँचों पांडव शूरवीर, बलशाली, नीतिवान, बुद्धिमान तथा विवेकी थे। महाभारत में पाँचों पांडवों के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनके माध्यम से इनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।
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Hindi Books, Hindi Sahitya Sadan, इतिहास
Panjab Samasya Tatha Samadhan
यह पुस्तक अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद मात्र नहीं है। यह मौलिक रचना है जिसमें मैंने समस्या के सम्बन्ध में तथ्यों को बिना लाग लपेट के पेश किया है और उसके समाधान के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। मेरा उद्देश्य जन साधारण को इस दुर्भाग्यपूर्ण समस्या के सम्बन्ध में शिक्षित करना और नीति निर्धारकों को दिशा दिखाना है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां
Panther’s Moon
एक खूंखार आदमखोर तेंदुआ जिसने पास के गाँव में अपना खौफ बना रखा है, खतरनाक चीता और एक लड़के के बीच कैसे भरोसे का अनोखा-सा रिश्ता बन जाता है, मसखरे बन्दरों की टोली जो फूल उगाने वाली औरत से बदला लेने पर उतारू है, कौवा जो वास्तव में सोचता है कि मनुष्य कितने बेवकूफ होते हैं…. ये मनोरंजक कहानियाँ एक ऐसी दुनिया दर्शाती हैं जिसमें पशु और मानव एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते लेकिन साथ रहकर आपस में टकराते रहते हैं। भारत के अत्यन्त लोकप्रिय कहानीकार रस्किन बान्ड की ये पशु-पक्षी प्रधान कहानियाँ पाठक को अपने रस से मन-मुग्ध कर देंगी।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Paramhans Ek Khoj
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांParamhans Ek Khoj
युगावतार श्री श्री रामकृष्ण की लीलाकथा को केंद्रित करते हुए उन्नीसवीं सदी के अंतिम पर्व से लेकर अनेक जीवनी, कथामृत, पुस्तक, काव्य, नाटक, यात्रा, चलचित्र इत्यादि की रचना की गई है।
इतिहास की मर्यादा को पूरी तरह अक्षुण्ण रखकर, मृत्युंजयी साहित्य सृजनकर्ताओं के मार्गदर्शन, कल्पना और सत्य घटनाओं पर आधारित इस उपन्यास की रचना की है इस युग के प्रिय लेखक शंकर ने, जिनकी पूर्व प्रकाशित कृतियों को पाठकों की भरपूर सराहना मिली।
इस रहस्य उपन्यास में कई काल्पनिक चरित्रों का समावेश किया गया है, कई चरित्र इतिहास से जुड़े हैं, विशेषकर वे भाग्यशाली पुरुष जो 16 अगस्त, 1886 में श्रीरामकृष्ण के समाधि पर्व में काशीपुर उद्यान वाटी में उपस्थित थे। इनमें कई लोगों की दुर्लभ तसवीरों ने इस गं्रथ का महत्त्व और भी बढ़ा दिया है।
रामकृष्ण-विवेकानंद की भावधारा के रूप में शंकर की पहली पहचान बनी सन् 1942 में, जिसके 40 साल पहले बेलूर में विद्रोही, विप्लवी, जन-गण-मन विवेकानंद महासमाधि में लीन हुए थे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Paramveer Albert Ekka- 1971 Ke Nayak
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणParamveer Albert Ekka- 1971 Ke Nayak
“सन 1971 के मार्च महीने से लेकर दिसंबर तक के नौ महीनों के मुक्तियुद्ध का परिणाम है बांग्लादेश। मार्च के महीने में ही स्थितियाँ बिगडऩी शुरू हो गई थीं। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच कड़वाहट और तेज हो गई थी।
यह कहानी उसी अल्बर्ट एक्का की है, जिस अल्बर्ट ने 1962 के चीन के साथ युद्ध में भाग लिया और 1971 के युद्ध में भी, लेकिन 1971 के युद्ध में वे शहीद हो गए। 44 साल बाद उनकी मिट्टी उनके गाँव आई और 46 साल बाद उनकी कथा लिपिबद्ध की जा रही है। इस दीर्घावधि सालों में शंख और महानंदा में न जाने कितना पानी बह गया। परमवीर के संगी-साथी उनके बचपन की यादें-बातें बताने को रहे नहीं। गाँव वैसा ही है, जैसा वे छोड़ गए थे। परमवीर का परिवार संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता रहा।
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. शिवप्रसाद सिंह का एक लेख, डॉ. धर्मवीर भारती का चर्चित यात्रा-वृत्तांत और एक रिपोर्ट भी है। इनके साथ ही विष्णुकांत शास्त्रीजी का एक रिपोर्ताज भी यहाँ दिया जा रहा है। इन रचनाओं से गुजरते हुए पाठक उस समय के कराह, द्वंद्व, संघर्ष और नरसंहार को भीतर तक महसूस कर सकेंगे। एक ही धर्म के माननेवाले कैसे एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। दुनिया में यह अकेला युद्ध था, जिसकी पृष्ठभूमि में धर्म नहीं, भाषा थी।
धर्म के आधार पर बँटा यह देश भाषा के कारण अलग हो गया। 1971 के युद्ध के हीरो, बांग्लादेश बनाने में सहायक रहे जाँबाज परमवीर अल्बर्ट एक्का की रोमांचक और प्रेरक कहानी।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Parashuram (Epic)
कविवर श्यामनारायण पाण्डेय आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक श्रेष्ठ वीर काव्य प्रणेता के रूप में विख्यात थे। ‘हल्दीघाटी’ और ‘जौहर’ जैसे वीर-रस प्रधान प्रबन्ध काव्यों की रचना करके आपने प्रभूत यश अॢजत किया। प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य परशुराम इसी परम्परा में रचित एक उत्कृष्ट कृति है। कवि ने तेईस सर्गों के इस सांस्कृतिक महाकाव्य में भृगुवंशावतंस भगवान् परशुराम को नायक के रूप में अवतरित किया है, प्रतिनायक है हैहय वंशी प्रतापी सम्राट सहस्रार्जुन। सहस्रार्जुन को कवि ने एक धर्म-विध्वंसक, अनाचार-रत, लोक-पीड़क, मदान्ध एवं निरंकुश शासक के रूप में चित्रित किया है। हैहयवंशी सहस्रार्जुन शक्तिमद से उन्मत्त होकर आश्रम संस्कृति प्रधान आर्य धर्म को समूल विनष्ट करने पर तुला हुआ था। भृगुवंशी परशुराम ने बिखरी हुई आश्रम-शक्ति को संघटित किया और अपने नेतृत्व में अत्याचारी सहस्रार्जुन का वध करके आर्य-धर्म की ध्वजा फ हरायी।
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां
Parinde
निर्मल वर्मा की कहानियों के प्रभाव के पीछे जीवन की गहरी समझ और कला का कठोर अनुशासन है। बारीकियाँ दिखाई नहीं पड़ती हैं तो प्रभाव की तीव्रता के कारण अथवा कला के सघन रचाव के कारण। एक बार दिशा-संकेत मिल जाने पर निरर्थक प्रतीत होने वाली छोटी-छोटी बातें भी सार्थक हो उठती हैं, चाहे कहानी हो चाहे जीवन। कठिनाई यह है कि दिशा-संकेत निर्मल की कहानी में बड़ी सहजता से आता है और प्रायः ऐसी अप्रत्याशित जगह जहाँ देखने के हम अभ्यस्त नहीं। क्या जीवन में भी सत्य इसी प्रकार अप्रत्याशित रूप से यहीं कहीं साधारण से स्थल में निहित नहीं होता? निर्मल ने स्थूल यथार्थ की सीमा पार करने की कोशिश की है। उन्होंने तात्कालिक वर्तमान का अतिक्रमण करना चाहा है, उन्होंने प्रचलित कहानी-कला के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश की है, यहाँ तक कि शब्द की अभेद्य दीवार को लाँघकर शब्द के पहले के ‘मौन जगत्’ में प्रवेश करने का भी प्रयत्न किया है और वहाँ जाकर प्रत्यक्ष इन्द्रिय-बोध के द्वारा वस्तुओं के मूल रूप से पकड़ने का साहस दिखलाया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Parivartansheel Vishwa Mein Bharat Ki Ranneeti
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर वर्ष 2020 के कोरोना महामारी तक का दशक वैश्विक व्यवस्था में एक वास्तविक परिवर्तन का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियादी प्रकृति और नियम हमारी नजरों के सामने बदल रहे हैं।
भारत के लिए इसके मायने अपने लक्ष्यों को सर्वश्रेष्ठ तरीके से आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को सर्वोत्कृष्ट करने से है। हमें अपने नजदीकी व विस्तारित पड़ोस में भी एक दृढ़ और गैर-पारस्परिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एक वैश्विक पहचान, जो भारत की वृहद् क्षमता और प्रासंगिकता के साथ इसके विशिष्ट प्रवासी समुदाय का लाभ उठाए, अभी बनने की प्रक्रिया में है। वैश्विक उथल-पुथल का यह युग भारत को एक नेतृत्वकारी शक्ति बनने की राह पर ले जाते हुए इससे और अधिक अपेक्षाओं की जरूरत पर बल देता है।
‘परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति’ में भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने इन्हीं चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए संभावित नीतिगत प्रतिक्रियाओं की व्याख्या की है। ऐसा करते समय वे भारत के राष्ट्रीय हित के साथ अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का संतुलन साधने में अत्यंत सतर्क रहे हैं। इस चिंतन को वे इतिहास और परंपरा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं, जो कि एक ऐसी सभ्यतागत शक्ति के लिए, जो वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को पुनः हासिल करने की तलाश में है, सर्वथा उपयुक्त है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Parivrajak: Meri Bhraman Kahani
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनParivrajak: Meri Bhraman Kahani
“स्वामी विवेकानंद ने भारत में उस समय अवतार लिया, जब हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। हिंदू धर्म में घोर आडंबर और अंधविश्वासों का बोलबाला हो गया था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म को एक पूर्ण पहचान प्रदान की। इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्न छोटे-छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म संसद् में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलाई।
प्रस्तुत पुस्तक ‘परिव्राजक: मेरी भ्रमण कहानी’ में स्वामीजी ने अपनी यूरोप यात्रा के माध्यम से सरल शब्दों में तत्कालीन इतिहास, कला, समाज, जीवन-दर्शन इत्यादि का अत्यंत रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। इनके माध्यम से व्यक्ति अपने तत्कालीन ज्ञान-दर्शन को सहज ही प्रशस्त कर सकता है। स्वामी विवेकानंद की यात्रा-वृत्तांत की यह पुस्तक हमें सांस्कृतिक-सामाजिक यात्रा का आनंद देगी।”
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, इतिहास
Parsai Ka Man (PB)
“हरिशंकर परसाई हिन्दी साहित्य में व्यंग्य के सबसे बड़े स्तम्भ हैं। सौ वर्ष पहले जन्मे परसाई का लेखन आज भी बेहद लोकप्रिय और मौजूँ है। उनके लेखन में आखिर ऐसा क्या है कि हर पीढ़ी और वर्ग के पाठक उनकी रचनाओं को हाथोंहाथ लेते हैं। इसका कुछ सुराग ‘परसाई का मन‘ के पन्नों में मिलता है। इस पुस्तक में परसाई के 17 साक्षात्कार प्रस्तुत हैं जो उन्होंने हिन्दी साहित्य के सुपरिचित लेखकों और पत्रकारों को दिये। इनमें हिन्दी साहित्य, लेखन-प्रक्रिया, व्यंग्य के स्रोत, रोज़मर्रा के जीवन-संघर्ष, समाज, राष्ट्र, राजनीति – सभी मुद्दों पर उनके विचार और दुनिया को देखने का दृष्टिकोण मिलता है। इन साक्षात्कारों को पढ़ना परसाई के दिलो-दिमाग में झाँकने जैसा है।
विष्णु नागर प्रतिष्ठित कवि, कथाकार, व्यंग्यकार, जीवनीकार हैं। पेशे से वह पत्रकार हैं। ‘नवभारत टाइम्स‘, ‘हिन्दुस्तान‘, ‘नई दुनिया‘ आदि दैनिकों में विशेष संवाददाता सहित विभिन्न पदों पर रहे। कादम्बिनी मासिक तथा शुक्रवार साप्ताहिक के संपादक रहे और अनेक पुस्तकों का भी संपादन किया। विष्णु नागर मूर्धन्य गद्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग्य पर लगातार काम करते रहे हैं। इसी प्रक्रिया में है यह पुस्तक परसाई का मन । “SKU: n/a