Kabir
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Osho Media International, ओशो साहित्य
Kasturi Kundal Basai
धर्म क्या है? शब्दों में, शास्त्रों में, क्रियाकांडों में या तुम्हारी अंतरात्मा में, तुममें, तुम्हारी चेतना की प्रज्वलित अग्नि में? धर्म कहां है? मंदिरों में, मस्जिदों में, गुरुद्वारों में? आदमी के बनाए हुए मंदिर-मस्जिदों में धर्म हो कैसे सकता है? धर्म तो वहां है जहां परमात्मा के हाथ की छाप है। और तुमसे ज्यादा उसके हाथ की छाप और कहां है? मनुष्य की चेतना इस जगत में सर्वाधिक महिमापूर्ण है। वहीं उसका मंदिर है; वहीं धर्म है। धर्म है व्यक्ति और समष्टि के बीच प्रेम की एक प्रतीति–ऐसे प्रेम की जहां बूंद खो देती है अपने को सागर में और सागर हो जाती है; जहां सागर खो देता है अपने को बूंद में और बूंद हो जाता है; व्यक्ति और समष्टि के बीच ध्यान का ऐसा क्षण, जब दो नहीं बचते, एक ही शेष रह जाता है; प्रार्थना का एक ऐसा पल, जहां व्यक्ति तो शून्य हो जाता है; और समष्टि महाव्यक्तित्व की गरिमा से भर जाती है। इसलिए तो हम उस क्षण को ईश्वर का साक्षात्कार…। व्यक्ति तो मिट जाता है, समष्टि में व्यक्तित्व छा जाता है; सारी समष्टि एक महाव्यक्तित्व का रूप ले लेती है।
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MERA MUJHMEIN KUCHH NAHIN -मेरा मुझमें कुछ नहीं
करो सत्संग गुरुदेव से
अंधेरा नया नहीं, अति प्राचीन है। और ऐसा भी नहीं है कि प्रकाश तुमने खोजा न हो। वह खोज भी उतनी ही पुरानी है, जितना अंधेरा। क्योंकि यह असंभव ही है कि कोई अंधेरे में हो और प्रकाश की आकांक्षा न जगे। जैसे कोई भूखा हो और भोजन की आकांक्षा पैदा न हो। नहीं, यह संभव नहीं है।भूख है तो भोजन की आकांक्षा जगेगी।
प्यास है तो सरोवर की तलाश शुरू होगी।
अंधेरा है तो आलोक की यात्रा पर आदमी निकलता है।
अंधेरा भी पुराना है, आलोक की आकांक्षा भी पुरानी है; लेकिन आलोक मिला नहीं। उसकी एक किरण के भी दर्शन नहीं हुए। भटके तुम बहुत, खोजा भी तुमने बहुत, लेकिन परिणाम कुछ हाथ नहीं आया। बीज तो तुमने बोए, लेकिन फसल तुम नहीं काट पाए।SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
Suno Bhai Sadho
सुनो भई साधो – Suno Bhai Sadho
सत्य जब बोलता है तो कोहराम मच जाता है अंधेरे तलघरों में। सत्य पर प्रहार होते हैं कि वह मुखर न हो सके–और इस सबके बीच सत्य और महिमामंडित होकर खिलता है। यह पुस्तक रेखांकन है इसी जीवंत घटना का|…..,”कबीर अनूठे हैं। और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। क्योंकि कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है। और अगर कबीर पहुंच सकते हैं, तो सभी पहुंच सकते हैं। कबीर निपट गंवार हैं, इसलिए गंवार के लिए भी आशा है; बे-पढ़े-लिखे हैं, इसलिए पढ़े-लिखे होने से सत्य का कोई भी संबंध नहीं है। “— ओशो
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