History
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English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Winds of Change : Propelling Change in the Indian Judiciary
-10%English Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Winds of Change : Propelling Change in the Indian Judiciary
“Nyaya-Winds: Propelling Change in the Indian Judiciary” delves into crucial legal and societal issues. Chapter I focuses on corporate law amendments for reduced litigation and heightened compliance. Chapter II explores the balance between experience and renewal in retirement age. Chapter III tackles juvenile crimes, emphasizing mental health in rehabilitation. Chapter IV navigates the controversy of legalizing sex work. Chapter V champions integrity in the fight against corruption. Chapter VI advocates for political change with qualifications and accountability. Chapter VII revisits the term “Deshdrohi” in the context of democracy. Chapter VIII scrutinizes the delicate balance between VIP privileges and public welfare. Chapter IX introduces legal insurance for societal empowerment. Chapter X challenges reservation paradigms for equity and meritocracy. Chapter XI strikes a balance between human rights, animal welfare, and public safety. Chapter XII strengthens governance through whistleblower initiatives. Chapter XIII addresses the overwhelmed judiciary and delayed justice. Chapter XIV unveils the shadows of governance and power dynamics. Chapter XV concludes by emphasizing mandatory provisions under the Companies Act. Each chapter provides deep analysis and recommendations for India’s governance challenges.
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English Books, MANAS PUBLICATIONS, इतिहास
Winning Strategies Serving With A Smile
We did a scanning of catalogues of all publishing houses, libraries and books stores and discovered that there is NOT a single, soft-skill training books catering specifically to the needs of students, aspiring to get into the aviation and hospitality industries. This book fils that vital gap.
When Air Hostes Academy (AHA) launched its first training institute at Delhi’s Amar Colony, there was not a single institute of its kind offering customised training for the aviation and hospitality sectors. The programme became popular since there was a great demand for it because of its usefulness in the industry.SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Ya Devi Sarvabhuteshu (PB)
दुर्गा सप्तशती तंत्र का मेरुदंड है। इस पुस्तक के सभी मंत्र अमोघ हैं। सुरथ एवं समाधि की कहानी से शुरू हो रही सप्तशती वस्तुतः तेरहवें अध्याय के अंतमें यह बताती है कि दुर्गा का पूजन, उनके माहात्म्य का जप पुण्यदायी है-इहलोक, परलोक सुधारने वाला है। दुर्गा के माहात्म्य को श्रद्धापूर्वक सुनने का परिणाम था कि राजा सुरथ सूर्य के अंश से सावर्णि नामक मनु के रूप में उत्पन्न हुए।
तेरह अध्यायों में शक्ति के भिन्न- भिन्न स्वरूपों का ध्यान किया गया है। ऋग्वेद में अपना परिचय देते हुए शक्ति कहती हैं- अहम् ब्रह्म स्वरूपिणी । शक्ति ब्रह्म से भिन्न नहीं हैं, और उनको समझना उतना ही दुष्कर हैं, जितना ब्रह्म को, पर दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। निःसंदेह शक्ति ही स्वयं में संतुष्ट और कामनाओं से परे ब्रह्म को क्रियाशील करती हैं, अन्यथा शिव निश्चल रहते हैं-
जहाँ भी रचना हो रही है. या विलय हो रहा है, वहाँ शक्ति अवश्य क्रियारत है। निखिल मंत्र विज्ञान में शक्ति के दिग्दर्शन की ओर प्रत्येक साधक को ले जाना हमारा ध्येय है और पुनीत कर्तव्य भी। दुर्गा सप्तशती में निहित आध्यात्मिक रहस्य को यह पुस्तक पाठकों के सम्मुख ‘या देवी सर्वभूतेषु’ के माध्यम से प्रस्तुत करने का विनीत प्रयास है, इस आशा के साथ कि इसे पढ़ने के बाद आप सभी साधकों और पाठकों के मन में शक्ति से संबंधित छाया भ्रमजाल छिन्न-भिन्न हो जाएगा।
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Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
YOUR PRIME MINISTER IS DEAD
Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रYOUR PRIME MINISTER IS DEAD
When Lalita Shastri saw her husband’s body, it did not appear he had been dead only a few hours. His face was dark bluish and swollen. The body was bloated and it bore strange cut marks. The sheets, pillows and the clothes were all soaked in blood. As the family members raised doubts, suddenly sandal paste was smeared on Lal Bahadur Shastri’s face. And yet, the controversy whether or not India’s second prime minister’s death was really due to a heart attack, couldn’t be contained. Allegations of the KGB’s, the CIA’s or an insider’s hand in the death of Lal Bahadur Shastri emerged in time.
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Govindram Hasanand Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Yug-Pravartak Swami Dayananad
लालाजी ने स्वयं स्वीकार किया था की-‘आर्यसमाज मेरी माता है‘ जिसने उन्हें देशभक्ति का पाठ पढ़ाया और ‘महर्षि दयानंद मेरे धर्म पिता हैं‘, जिनके विचारों से प्रेरणा लेकर उन्होंने स्वदेश को पराधीनता की बेड़ियों से छुटकारा दिलाने का प्रयास किया।
उसी नवजागरण के सूत्रधार ऋषि दयानंद के जीवन चरित को लालाजी ने लिखा है। स्वामी दयानंद के आविर्भाव की परिस्थितियों की विवेचना तथा महर्षि के जीवन की प्रमुख घटनाओं एवं उनके विचारों की विस्तृत जानकारी देने वाला यह ग्रंथ, स्वामी दयानंद के जीवन चरितों की श्रृंखला में अपना एक पृथक् महत्व रखता है।
लाला लाजपतराय कि यह अनुपम कृति पाठकों को उस महापुरुष के जीवन एवं कार्य से परिचित कराएगी जिसने न केवल देश के इतिहास को ही प्रभावित किया, अपितु जिसके द्वारा मानव के सर्वांगीण कल्याण की समग्र कल्पना भी की गई थी।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणचित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
मेवाड़ के शीर्ष-पुरुषों की कीर्तिपूजा अपने शब्द-सुमनों से करने के उपरान्त और भक्त-शिरोमणि मीरां की श्रद्धांजलि समर्पित करने मे बाद भी, इन सबकी पंक्ति में प्रथम स्थान प्राप्त, मेवाड़ में इतिहास-लेखन-परम्परा प्रारम्भ करने वाले और अपनी कीर्ति में अपना, मेवाड़ में सबसे उत्तंग कीर्ति-स्तम्भ निर्मित कराने वाले, जो अब भारत की श्रेष्ठता का द्योतक बना हुआ है, महाराणा कुंभा से 100 वर्ष पहले होने वाली, अनेक प्रकार से अनुपम, जिनकी सौन्दर्य-सिद्धि के लिए समुद्रपार सिंहल द्वीप में उनका उद्गम उल्लिखित हुआ है और जिन्होंने चित्तौड़ में जौहर प्रणाली का प्रारम्भ करके उसकी ज्वालाओं से अपने पति का आत्मोसर्ग मार्ग आलोकित किया, उन राजरानी पद्मिनी की चारित मेरी लेखनी की परिधि से बाहर अब तक क्यों रहा, इसका कारण मुझसे अब तक नहीं बन पड़ा है, सिवाय इसके कि उनकी गाथा उनके समय में अब तक पद्मिनी की कोई क्रमबद्ध जीवनी नहीं है। मुनि जिनविजय जैसे अध्येता और उद्भट विद्वान को भी प्रश्न उठाना पड़ा है : “यह एक आश्चर्य सा लगता है, कि हेमरतन आदि राजस्थानी कवियों ने पद्मिनी के जीवन के अन्तिम रहस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा?” इस अवधि में ही आता है साका और जौहर, जो राजस्थानी वीर परम्परा के ऐसे अंत रहे, जिसे भावी पंक्तिया प्रेरणा प्राप्त करती रहीं। इसकी परिपूर्ति करने का साहस मुझ जैसे मेवाड़ से दूर बैठकर अध्ययन और अभिव्यक्ति करने वाले अल्पज्ञ का नहीं हो सकता। फिर भी पद्मिनी चरित के अधूरे अंशों को शब्दों से ढकने का प्रयत्न मैंने इस पुस्तक में किया है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास | Pratapgarh Rajya ka Itihas
प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा है। उसके शासक उसी राजवंश की एक प्रमुख शाखा के रूप में अपनी परम्पराएँ विकसित करते चले हैं। इस राजवंश की स्थापना आज से प्रायः पाँच सौ वर्ष पूर्व की गई थी। महाराणा कुंभा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल इस राज्य के संस्थापक शासक थे। बागड़, मालवा और मेवाड़ की सीमाओं से जुड़ा हुआ होने के कारण यह राज्य ‘कांठल’ के नाम से भी पुकारा जाता है। यहाँ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भीलों और मीणों की बस्तियों की अधिकता पाई जाती है। प्रतापगढ़ राज्य के इतिहास को पूर्णतः प्रकाश में लाने की दृष्टि से ही इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसके विद्वान् लेखक ने इसे सात अध्यायों में विभक्त कर प्रथमतः उसका भौगोलिक विवरण दिया है जिससे उस राज्य के नाम, स्थान, क्षेत्रफल, सीमा, पर्वतश्रेणियों, नदियों, झीलों तथा वनप्रदेशों आदि की पूरी जानकारी मिल जाती है। प्रथम अध्याय का सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रतापगढ़ रियासत के इतिहास का सम्यक् बोध करने के पूर्व उसकी भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझने की दृष्टि से परम उपयोगी है।
ग्रंथ के दूसरे अध्याय में सिसोदियों के पूर्व के राजवंशों का क्रमागत परिचय दिया गया है जिनकी परम्परा रघुवंशी प्रतिहारों, परमार और सोलंकी राजाओं तथा मुसलमान शासकों की भी गणना की गई है। तृतीय अध्याय महारावत क्षेमकर्ण से विक्रमसिंह तक की राज्यघटनाओं का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत करता है तो चौथे अध्याय में महारावत तेजसिंह से प्रतापसिंह तक के शासनकाल की उपलब्धियाँ गिनाई गई हैं। ऐतिहासिक विवरण का यह क्रम महारावत पृथ्वीसिंह, सामंतसिंह, दलपतसिंह तथा महारावत सर रामसिंह तक चलता रहा है जिसमें उन शासकों के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं तथा उनकी राजवंशीय परम्पराओं आदि का भी विवरण सम्मिलित किया गया है। ग्रंथ के अंत में जोड़े गये, परिशिष्ट, अनुक्रमणिका एवं चित्रसूची के अध्ययन, अवलोकन तथा आकलन द्वारा प्रतापगढ़ राज्य की ऐतिहासिक सामग्री के उसे प्रपूरक भाग का भी प्रर्याप्त ज्ञान हो जाता है जो उस राज्य के निर्माण और विकास में सहायक सिद्ध हुई थी। कुल मिलाकर यह ग्रंथ प्रतापगढ़ राज्य का प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे सही ढंग से खोज निकालने के लिए विद्वान लेखक को वर्षो तक अथक प्रयास करना पड़ा था। अपने क्षेत्र में इस ग्रंथ को लेखक की महान् उपलब्धि कहा जा सकता है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास
बांसवाड़ा राज्य का इतिहास | Banswara Rajya ka Itihas
दक्षिणी राजस्थान के पहाड़ी भू-भाग में स्थित बांसवाड़ा राज्य का देश के मध्यकालीन इतिहास में उत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। तेरहवीं शताब्दी के मध्य मेवाड़ के अधिपति महाराणा सामंत सिंह ने वागड़ प्रदेश में गुहिलवंशी राज्य की स्थापना की थी। संवत् 1518 के आस-पास अनेक घटनाओं के परिणामस्वरूप बांसवाड़ा राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व बना किन्तु अनेक कारणों से उसकी ऐतिहासिक सामग्री की प्रामाणिक खोज नहीं की गई। आवागमन की असुविधाओं एवं राजनीतिक हलचलों के प्रभाववश इस राज्य का इतिहास अनेक वर्षों तक अंधकारग्रस्त रहा। इस राज्य के शासकों तथा निवासियों ने भी उसे प्रकाश में लाने का कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया। ‘वीर विनोद’ में उसका सामान्य उल्लेख अवश्य हुआ है किन्तु ज्ञात तथा अज्ञात सामग्री के यत्र-तत्र बिखरे हुए होने के कारण उसका क्रमबद्ध इतिहास नहीं लिखा गया।
प्रस्तुत ग्रंथ बांसवाड़ा राज्य के गौरवशाली इतिहास-लेखन की दिशा में एक मौलिक प्रयास है। इसके विद्वान् लेखक ने उस राज्य की भौगोलिक स्थिति का विस्तृत विवरण देने के पश्चात् सर्वप्रथम उस पर गुहिलवंश के अधिकार के पूर्व की परिस्थितियों का सामान्य लेखा-जोखा किया है। तदुपरांत सामंतसिंह के शासनकाल से लेकर आज तक के प्रमुख घटनाक्रमों के संदर्भ में महारावल जगमाल, समरसिंह, कुशलसिंह, उम्मेदसिंह, भवानीसिंह और महारावल सर पृथ्वीसिंह के शासनकाल की उपलब्धियों की प्रामाणिक सामग्री जुटाई गई है। ऐसा करते समय लेखक के पुरातत्व विज्ञान से सम्बन्धित शिलालेखों, ताम्रपत्रों, ऐतिहासिक ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, दानपत्रों, बहीखातों, प्राचीन राजकीय सनदों, फरमानों, बड़वे भाटों, राणीमंगों एवम् अन्य व्यक्तियों द्वारा लिखित दस्तावेजों का भी प्रचुर आधार लिया है। संस्कृत, हिन्दी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में लिखित पुस्तकें भी इस कार्य के सम्पादन में उसके लिए सहायक सिद्ध हुई हैं। ग्रंथ का परिशिष्ट मुख्यतः गुहिल से लगाकर वागड़ प्रदेश के शासकों की क्रमबद्ध वंशावली के साथ-साथ उन विक्रम संवतों से भी उपवृंहित है, जिनमें इस राज्य की प्रमुख घटनाएँ घटित हुई थीं। परिशिष्ट का अंतिम भाग तथा उसकी ‘अनुक्रमणिका’ लेखक के शोधपूर्ण अध्यवसाय तथा इतिहासप्रेम के द्योतक कहे जा सकते हैं। कुल मिलाकर यह ग्रंथ सभी दृष्टियों से संग्रहणीय, पठनीय एवं ऐतिहासिक तथ्यों के ‘विचारणीय संदर्भों से ओत-प्रोत’ है, जिसमें लेखक की शोधप्रज्ञा प्रदर्शित हुई है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास
बीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
Rajasthani Granthagar, इतिहासबीकानेर राज्य का इतिहास (भाग – 1, 2) | Bikaner Rajya ka Itihas (vol. – 1, 2)
राजस्थान के इतिहास में बीकानेर राज्य का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है। बीकानेर राज्य के राठौड़ो की युद्धवीरता, दानवीरता, विद्याप्रेम, नीति-चातुर्य और सदाशयता प्रसिद्ध रही है। यहां के नरेशों का इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रहा है। राव बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। राव बीका से पूर्व का इस प्रदेश का जो इतिहास रहा वह प्रारंभ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है। इसके साथ दिया गया इस राज्य की भूगोल सम्बंधी वर्णन भी उल्लेखनीय है। बीकानेर राज्य के इतिहास लेखन में इसके विद्धान लेखक डाॅ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने शिलालेखों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, ख्यातों, प्राचीन वंशावलियों, संस्कृत, फारसी, मराठी और अंग्रेजी पुस्तकों, शाही फरमानों तथा राजकीय पत्रों का भरपूर प्रयोग करके इसे वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है। स्थानीय स्त्रोता को अपने इतिहास लेखन में विशेष महत्व दिया है।
बीकानेर के संस्थापक राव बीका से लेकर महाराजा प्रतापसिंह तक बीकानेर राज्य के नरेशों का प्रथम खण्ड में विस्तार से वर्णन किया गया है। बीकानेर राज्य के इतिहास के द्वितीय खण्ड में महाराजा सूरतसिंह से लेकर महाराजा गंगासिंह तक सविस्तार वर्णन किया है। अन्तिम अध्याय में बीकानेर राज्य के सरदारों और प्रतिष्ठित घरानों पर प्रकाश डाला है। पांच परिशिष्टों के अन्तर्गत दी गई ऐतिहासिक सामग्री से इस ग्रंथ का महत्व और बढ़ गया है। डाॅ. ओझा का इतिहास बोध और इतिहास दर्शन सभी इतिहासज्ञों को प्रभावित करने वाला है। अतः उनका यह इतिहास ग्रन्थ सभी शोधार्थियों और इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है।SKU: n/a -
Hindi Sahitya Sadan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
स्वाधीनता के पथ पर : SVADHEENATA KE PATH PAR
टन……टन……टन……..टन……..। मन्दिर का घण्टा बज रहा था। देवता की आरती समाप्त हो चुकी थी। लोग चरणामृत पान कर अपने-अपने घर जा रहे थे। श्रद्धा, भक्ति, नमृता और उत्साह में लोग आगे बढ़कर, दोनों हाथ जोड़, मस्तक नवा, देवता को नमस्कार करते और हाथ की अंजुली बना चरणामृत के लिए हाथ पसारते थे। पुजारी रंगे सिर, बड़ी चोटी को गाँठ दिये, केवल रामनामी ओढ़नी ओढे़, देवता के चरणों के निकट चौकी पर बैठा अरघे से चरणामृत बाँट रहा था।
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