Hindi Literature
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Pather Panchali
सत्यजित राय की विश्वप्रसिद्ध फिल्म, पथेर पांचाली, लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। यह उपन्यास बंगाल के निश्चिन्दिपुर गाँव में रहने वाले अपू और उसकी बड़ी बहन दुर्गा की कहानी है। अपू और दुर्गा गरीबी की कड़वी सच्चाई से अनजान अपने बचपन की अल्हड़ शैतानियों में मस्त अपना जीवन बिताते हैं। इस उम्मीद से कि शायद अधिक आमदनी हो पाए उनके पिता काशी चले जाते हैं। पीछे परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि अपू को समय उसे पहले ही अपने परिवार की देख-भाल का बोझ उठाना पड़ता है। लड़कपन से जवानी तक का यह उपन्यास पथेर पांचाली सबसे पहले एक पत्रिका में धारावाहिक रूप में, और 1929 में पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। 1944 में पुस्तक के नये संस्करण के लिए सत्यजित राय को इसकी तस्वीरें बनाने की जि़म्मेदारी सौंपी गई और तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह इस पर फिल्म अवश्य बनाएंगे। पथेर पांचाली पर बनी सत्यजित राय की फिल्म को देश-विदेश में अनेक सम्मान मिले। आधुनिक बंगला साहित्य के जाने-माने लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय का जन्म 12 सितम्बर 1894 में बंगाल के 24 परगना क्षेत्र मंे हुआ। उन्होंने अपने जीवन में कई उपन्यास लिखे जिनमें पथेर पांचाली और उसी कड़ी की अगली कृति अपराजितो सबसे लोकप्रिय हैं। उनके उपन्यास इच्छामति के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1951 में ‘रबीन्द्र पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Raj Kahani – Avnindranath Thakur krit
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिRaj Kahani – Avnindranath Thakur krit
श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा मूल बांग्ला में लिखित ‘राज काहिनी’ का हिन्दी अनुवाद है। नौ आलेखों के इस संकलन में मेवाड़ इतिहास के प्रमुख चरित्रों का चित्रण हुआ है:- शिलादित्य, गोह, बाप्पादित्य, पड्डिनी, हम्मीर, हम्मीर का राज्य लाभ, चण्ड, राणा कुंभा और संग्रामसिंह। किशारों के लिए लिखी गई इस पुस्तक का बंग समाज में बड़ा स्वागत हुआ था। अब तक इसका हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ था।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Rani Durgavati
कैसा विचित्र समय था? जब हिंदू राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बारे में विचार करना ही त्याग दिया था। वे सीधे शरणागत हो रहे थे। रानी दुर्गावती की दृढ़ता, शासन करने की शैली तथा प्रजा-रंजन बादशाह अकबर को भी चिढ़ाता था। एक विधवा रानी का सुयोग्य शासन उसे खटक रहा था। अकबर ने संदेश भेजा—रानी, पिंजरे में कैद हो जाओ, तभी सुरक्षित रहोगी और वह पिंजरा होगा, मुगल बादशाह अकबर का। सोने का ही सही, पर पिंजरा तो पिंजरा होता है। गुलामी तो गुलामी होती है। कितना निकृष्ट संदेश रहा होगा? रानी दुर्गावती ने इस संदेश के उत्तर में अकबर को उसकी औकात बता दी। रानी संस्कृति की पूजक थीं, ‘गीता’ रानी का प्रिय ग्रंथ था। वह पंडितों से नियमित गीता प्रवचन सुनती थीं। रानी जीना भी जानती थीं और मृत्यु का वरण करना भी। उन्हें पुनर्जन्म पर भी विश्वास था। वह देशाभिमान भी जानती थीं और युद्ध के मैदान में रणचंडी बनना भी। ऐसी मनस्विनी रानी अकबर की नौकरानी कैसे बन सकती थीं?
दुर्गावती की गाथा गोंडवाना की लोककथाओं में जीवित है, उन्हें जन-जन पूजता है। महारानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र को अनेक लेखकों ने लिखा है। दुर्गावती के बलिदान स्थल से जन्म स्थल तक अनेक अभिलेख, आलेख तथा पुरातत्त्व के अवशेष मिल जाते हैं। दुर्गावती शोध संस्थान, जबलपुर ने रानी दुर्गावती के जीवन-चरित्र और उनके रेखांकित स्थलों पर अनुसंधान भी किया है। दुर्गावती का जीवनवृत्त सुना, समझा और पढ़ा जा रहा है।
देशाभिमानी, निर्भीक, साहसी क्षत्राणी और विदुषी रानी दुर्गावती का प्रामाणिक जीवन-चरित है यह उपन्यास।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Report Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिReport Mardum Shumari Raj Marwar 1891 E.
रिपोर्ट मरदुम शुमारी राज मारवाड़ 1891 ई. (Marwar Census Report 1891) :
रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह, अधीक्षक जनगणना राज मारवाड़ और उनके इतिहासकार के रूप में विख्यात सहयोगी मुंशी देवीप्रसाद के निर्देशन में संकलित ‘रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891’ मारवाड़ में निवास करने वाली 462 जातियों का ज्ञान कोश है। मारवाड़ की यही जातियाँ समूचे राजस्थान के गाँव-गाँव में निवास करती है। अतः इसे राजस्थान की जातियों का ज्ञान कोश कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 में उपलब्ध सामग्री का आधार विभिन्न क्षेत्रों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा भेजे गये आंकड़े, जाति पंचों से साक्षात्कार, प्रचलित परम्पराएं तथा भाटों की बहियां रही। समग्र रूप से प्रस्तुत ग्रन्थ की सामग्री को अद्वितीय कहा जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक जाति की उत्पत्ति, उस जाति के व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक सभी रीति रिवाजों और संस्कारों के साथ ही व्यवसाय आदि के गहराई से किये गये वर्णन के कारण यह ग्रन्थ इतिहासकारों, समाजशास्त्रियों, संस्कृति प्रेमियों और अर्थशास्त्रियों के लिये समान रूप से उपयोगी बना रहेगा। हिन्दी भाषा के इतिहास में रुचि रखने वाले विद्वानों के लिये भी यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हिन्दी की 19वीं शताब्दी की अवस्था के दर्शन होते हैं। रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 पश्चिमी राजस्थान की जातियों के इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों, व्यवसायों तथा मरुस्थलीय जन जीवन के विविध आयामों का प्रमाणिक सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय इतिहास है।SKU: n/a -
Hindi Books, Manoj Publication, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
SANKSHIPT MAHABHARAT(Hindi)
प्रकृति के जिन तत्वों से हमें कुछ प्राप्त होता है, जो हमारी सुख, शांति, सम्पन्नता और आध्यात्मिक उन्नति के स्रोत हैं, उन्हें ‘देवता’ कहते हैं। जबकि इनकी शक्तियां ‘देवियां’ कहलाती हैं। किसी देवी-देवता की आराधना और उपासना कैसे करें, इसकी सटीक संक्षिप्त और प्रामाणिक जानकारी देती हैं हमारी ये पुस्तकें।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Shri Nathdwara Jagir ka Itihas
श्री नाथद्वारा जागीर का इतिहास :
आचार्य वल्लभ द्वारा प्रदत्त शुद्धादैत दर्शन के तहत पुष्टि सेवा को आराध्य प्रभु श्रीनाथजी के माध्यम से जनसामान्य तक पहुंचाने का कार्य मेवाड़ में महाराण राजसिंह के शासन काल में श्रीनाथद्वारा जागीर से आरम्भ हुआ।
मेवाड़ रियासत सहित अन्य रियासतों ने प्रभु श्रीनाथजी की सेवार्थ यहां के तिलकायतों को समय-समय पर जागीर के रूप में अनेक गांव भेंट किये। शनैः शनैः श्रीनाथद्वारा एक समृद्ध जागीर के रूप में विकसित हुआ ही साथ सगुण भक्ति परम्परा के अनुयायी वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ स्थल भी बन गया।
पुस्तक में श्रीनाथद्वारा में मेवाड़ व ब्रज की संस्कृति के समन्वय से निर्मित नवीन समावेशी मिश्रित संस्कृति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए श्रीनाथद्वारा के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व प्रशासनिक आयामों का विस्तार से विवेचन पुस्तक ‘श्रीनाथद्वारा जागीर का इतिहास’ में प्रस्तुत किया गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, उपन्यास
Vinayak Sahasra Siddhai
भारतीय जनमानस में विनायक को लेकर जैसी श्रद्धा व विश्वास है, वही उसे लोक नायक बनाने के लिए पर्याप्त है। वह सामाजिक दृष्टि से रूढि़ग्रस्त समाज को दिशा देता है और सामाजिक सरोकारों से जुड़कर लोक-कल्याण को सर्वोपरि मानता है। भारत में आर्यावर्त के समय से ही या यों कहें, उससे पूर्व से ही गणेश, गणपति, गणनायक एक ऐसे नायक रहे हैं, जो अपने श्रेष्ठ कार्यों के कारण घर-घर में वंदनीय रहे। मानव समाज उन्हीं की वंदना करता है, जो सेवा के बदले कोई अपेक्षा नहीं करते।
विघ्नहर्ता-मंगलमूर्ति-लंबोदर गणेशजी पर केंद्रित इस औपन्यासिक कृति का लेखन इसी वर्ष में पूर्ण हुआ, जिसका आधार मार्कंडेयपुराण, अग्निपुराण, शिवपुराण और गणेशपुराण सहित अनेक संदर्भ ग्रंथों का अध्ययन है।
विनायक एक सामान्य विद्यार्थी से लेकर समाज के पथ-प्रदर्शक के रूप में पल-पल पर संघर्ष करता है और प्रतिगामी शक्तियों से मुकाबला करता है। विनायक ने हर उस घटना, कार्य और यात्रा को सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ा है, जिनसे वह गुजरता है। अपने मित्रों पर उसे अटूट विश्वास है। उसके पास अद्भुत संगठन क्षमता है। विनायक एक साधारण नायक से महानायक तक की यात्रा तय करता है; लेकिन मानव होने के नाते सारे गुण-अवगुण अपने भीतर समेटे हुए है। ‘विनायक त्रयी’ का यह भाग ‘विनायक सहस्र सिद्धै’ एक ऐसा ही उपन्यास है।
अत्यंत रोचक व पठनीय उपन्यास।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Vishwamanav Rabindranath Tagore
आलौकिक प्रतिभा-संपन्न, साक्षात् प्रतिभासूर्य, भारतमाता के एक महान् सुपुत्र रवींद्रनाथ टैगोर। साहित्य, संगीत, कला— इन सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान देनेवाले गुरुदेव टैगोर सर्वार्थों में युगनिर्माता थे। आज के भूमंडलीकरण के युग में कई दशक पहले पूर्व-पश्चिम संस्कृतियों को मिलाकर दुनिया में एक नई अक्षय संस्कृति निर्माण होने का सपना देखनेवाले द्रष्टा एवं विश्वमानव!
रवींद्रनाथ की लोकोत्तर प्रतिभा, उनकी बहुश्रुतता, संवेदनशीलता, उनके अनुभवों की समृद्धि और उन अनुभवों को साहित्य, संगीत, कला के माध्यम से व्यक्त करने की असामान्य क्षमता रखनेवाले गुरुदेव वंदनीय हैं, अभिनंदनीय हैं। रवींद्र-साहित्य और रवींद्र-संगीत प्रभावशाली तथा लुभावने हैं। रवींद्रनाथ का साहित्य एक बार पढ़ा तो फिर भूल नहीं सकते। वह आपके मन में बार-बार गूँजता रहता है।
रवींद्रनाथ का पूरा जीवन काव्य-संगीत का, शब्द-सुरों का, कलाओं का महोत्सव है, आनंदोत्सव है। वैश्वीकरण के दौर में पली-बढ़ी नई पीढ़ी को रवींद्रनाथ का परिचय मिले तो कैसे?
इस उपन्यास में युगनिर्माता विश्वमानव रवींद्रनाथ टैगोर अलौकिक साहित्य रचना का, उनके सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के महान् कार्यों का अधिक परिपूर्ण ढंग से अध्ययन करने का मार्ग खुलेगा और पाठक ‘रवींद्र रंग’ में रँग जाएँगे।
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