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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature
Yoddha Sannyasi : Vivekanand
”उठिए, जागिए, मेरे देशबंधुओ! आइए, मेरे पास आइए। सुनिए, आपको एक ज्वलंत संदेश देना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं कोई अवतार हूँ। ना-ना, मैं अवतार तो नहीं ही हूँ। कोई दार्शनिक अथवा संत भी नहीं हूँ। मैं हूँ, एक अति निर्धन व्यक्ति, इसीलिए सारे सर्वहारा मेरे दोस्त हैं। मित्रो! मैं जो कुछ कह रहा हूँ, उसे ठीक से समझ लीजिए। समझिए, आत्मसात् कीजिए और उसे जनमानस तक पहुँचाइए। घर-घर पहुँचाइए मेरे विचार। मेरे विचार-वृक्ष के बीजों को दुनिया भर में बोइए। तर्क की खुरदुरी झाड़ू से अंधविश्वास के जालों को साफ करने का अर्थ है शिक्षा। संस्कृति और परंपरा, दोनों एकदम भिन्न हैं, इसे स्पष्ट करने का नाम है शिक्षा।’ ’
स्वामी विवेकानंद के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में उपर्युक्त कथन के बाद यहाँ कुछ अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा की समस्या, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज-सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, भारत का भविष्य आदि-आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुन: प्राप्त करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामीजी के विचारों का अवगाहन करना होगा।
मूल स्रोतों और शोध पर आधारित यह पुस्तक ‘योद्धा संन्यासी’ हर आम और खास पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Yoga and Pranayam
Yogasan Aur Pranayam- Swami Akshya Atmanand (HB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Yoga and PranayamYogasan Aur Pranayam- Swami Akshya Atmanand (HB)
इस पुस्तक को सभी प्रकार के लोग पढ़ेंगे । योगासन से सम्बन्धित यह पुस्तक न तो पहली है और न अद्भुत; परन्तु यह पुस्तक परम्पराओं से हटकर अवश्य है । पाठकों को यह इसलिए भी रुचिकर लगेगी, क्योंकि वे इस पुस्तक के माध्यम से बिना किसी गुरु के ही ‘ योगासन ‘ और ‘ प्राणायाम ‘ सीख सकेंगे । अन्य उपलब्ध पुस्तकों से कुछ अधिक जानकारी, अधिक सहजता और अधिक सावधानियां इस पुस्तक में दी जा रही है । सरलतम और अत्यावश्यक योगासन ही इसमें दिये जा रहे हैं ।
अधिक विस्तृत जानकारियां सभी स्तर के पाठकों को ध्यान में रखकर ही दी जा रही हैं, जिससे आपको कम-से-कम परेशानी हो और आप अधिक-से- अधिक लाभ प्राप्त कर सकें; चिकित्सक और रोगी इन जानकारियों का लाभ ले सकें ।
– इसी पुस्तक से
अति सरल भाषा, विशिष्ट शैली, गम्भीरतम वैज्ञानिक विश्लेषण और सुबोध व्याख्या स्वामी अक्षय आत्मानन्दजी की पुस्तकों की ऐसी विशेषता है कि पाठक उनकी योग सम्बन्धी पुस्तकों की बार-बार मांग करते हैं । आप भी एक बार यदि किसी एक ग्रन्थ को पढ़ लेंगे तो सदैव स्वामी जी का साहित्य ही मांगेंगे । हमें विश्वास है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप भी योग विद्या में स्वयं काा प्रवीण कर सकेंगे।SKU: n/a -
English Books, Parimal Publications, Yog Ayurvedic books
Yogasutras of Patanjali
The yogasutra of Patanjali is an original work , as accepted by scholars and a matchless masterpiece with very profound meaning. These sutras on which the Indian Yoga Philosophy is’ based were written by Patanjali and also served to develop Samkhya Philosophy. There are commentaries on these sutras, one Yoga-Vairtika by Rajanfartanda by Rama Ramga Malla.
The present book incorporates the yogasutra of Patanijali with Bhojavrtti called Rajamartanda bcing an English version. The book is divided into four padas-samadhipada, Thanapada, vibhatipcida and kaivalyapada. In the first padp the nature of Yoga with its divisions, aim, mind and its actions have been delineated. The second pada describes the advices of meditation, its cause and practices. There are means of the accomplishment produced from the practice of Yoga as is explained in the’ third pada. In the last pada mention has been made of nirmanacitta for five types of accomplishment. The present attempt is ; made even more useful as it contains a comprehensive introduction by Prof. Asoke Chatterjee, an appendix and an index.
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Yuddh – 1 (Hindi, Narendra Kohali)
युद्ध-1
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
Yuddh – 2 (Hindi, Narendra Kohali)
युद्ध-2
‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ तथा ‘युद्ध’ के अनेक सजिल्द, अजिल्द तथा पॉकेटबुक संस्करण प्रकाशित होकर अपनी महत्ता एवं लोकप्रियता प्रमाणित कर चुके हैं। महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में इसका धारावाहिक प्रकाशन हुआ है। उड़िया, कन्नड़, मलयालम, नेपाली, मराठी तथा अंग्रेज़ी में इसके विभिन्न खण्डों के अनुवाद प्रकाशित होकर प्रशंसा पा चुके हैं। इसके विभिन्न प्रसंगों के नाट्य रूपान्तर मंच पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर चुके हैं तथा परम्परागत रामलीला मण्डलियाँ इसकी ओर आकृष्ट हो रही हैं। यह प्राचीनता तथा नवीनता का अद्भुत संगम है। इसे पढ़कर आप अनुभव करेंगे कि आप पहली बार एक ऐसी रामकथा पढ़ रहे हैं, जो सामयिक, लौकिक, तर्कसंगत तथा प्रासंगिक है। यह किसी अपरिचित और अद्भुत देश तथा काल की कथा नहीं है। यह इसी लोक और काल की, आपके जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर केन्द्रित एक ऐसी कथा है, जो सार्वकालिक और शाश्वत है और प्रत्येक युग के व्यक्ति का इसके साथ पूर्ण तादात्म्य होता है।SKU: n/a -
Vani Prakashan, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास
Yuddh-Yatra
यद्ध के मैदान में वीर सैनिकों तथा सैनिक अफसरों के साथ स्वयं लेखक धर्मवीर भारती उपस्थित रहे है। युद्ध का आखों देखा वर्णन रिपोर्ताज के रूप में विश्व साहित्य में पहली बार प्रस्तुत है। -प्रकाशक / 1971 के युद्ध की रोमांचक एवं लोमहर्षक दास्तान प्रख्यात लेखक एवं सम्पादक धर्मवीर भारती की कलम से, जहाँ उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के मध्य हुए इस ऐतिहासिक युद्ध का आँखों देखा हाल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इस ऐतिहासिक पुस्तक में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम एवं पाकिस्तानी पराभव की पल-पल की कथा रिपोर्ताज शैली में दर्ज की गयी है। भारतीय शूरवीरों के पराक्रम एवं कूटनीति का एक तथ्यपरक मर्मस्पर्शी एवं विश्वसनीय लेखाजोखा जो हिन्दी साहित्य के एक कालजयी लेखक द्वारा स्वयं युद्धभूमि में मौजूद रह कर लिखा गया है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में यह युद्ध-रिपोर्ताज अपने विशद् विवरण, रचनात्मक भाषा एवं विश्वसनीय तथ्यों की वजह से अपने आप में अद्वितीय है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Yuddha Mein Ayodhya (HB)
अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
क्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणक्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय, भारतीय काल गणना, भारतीय इतिहास, आर्यों की वर्ण व्यवस्था, सूर्य वंश, सोमवंश, चन्द्रवंश, महाभारत की युगीन जनपद, राजपूतों की उत्पत्ति, कछवाहा, राठौड़, गुहिलोत, चौहान, देवड़ा, प्रतिहार, कुमार (कमाष) जेठवा राजवंश, निंकुभ राजवंश, हुल राजवंश, चालुक्य (सोलंकी) राजवंश, तोमर राजवंश, तंवर, गोहिल, गुर्जर, कलचूरी, राष्ट्रकूट, परमार, चावड़ा, यादव, यौधय, मकवाना, शिलाहार, चन्देल, गौड़, कटोच, राजपूत, मुस्लिम राजपूत एवं अन्य राजवंश आदि के राजवंश, राज्य एवं खांपें और ठिकाने, भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्र भारत में राजपूत जाति का संगठन, आन्दोलन एवं योगदान, विभिन्न क्षेत्रों में राजपूतों को राजनैतिक योगदान एवं विश्वविख्यात व्यक्तित्व, राजपूतों के विवाह सम्बंध एवं गोत्र प्रवरादि संस्कार, लोकदेवता तंवर शिरोमणि बाबा रामदेव जी का वंशक्रम आदि और भी बहुत कुछ…
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
चारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिचारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
सभी वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। वेद संतप्त मानवों को अपूर्व शांति प्रदान करते हैं। आधि-व्याधि और वासनाओं से विक्षुब्ध मानव-हृदय वेद-मंत्रों का उच्चारण करते हुए आनंदसागर में निमग्न हो जाता है।
वेद क्या हैं-वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है और संपूर्ण विश्व के द्वारा वरणीय है। वेद ज्ञान-विज्ञान के अक्षय कोष हैं। वेद संपूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राण हैं। वेदों में तेज, ओज, और वर्चस्व की राशि है। वेदों में दिग्दिगंत को पावन करने वाले दिव्य उपदेश हैं, मानवता को झकझोरनेवाले अनुपम आदेश और संदेश हैं। वेद में आधिभौतिक उन्नति की चरम सीमा है, आधिदैविक अभ्युदय की पराकाष्ठा है और आध्यात्मिक आरोहण का सवोत्तम रूप है।
हम वेद क्यों पढ़ें-वेद उत्तम मनुष्य बनने और उत्तम संतान पैदा करने का आदेश देते हैं। ऋग्वेद में कहा है-‘मनुर्भव जनया दैव्यं जनम‘। वेद के स्वाध्याय से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में यह बात भली-भाँति बैठ जाती है कि यह संसार परमात्मा द्वारा रचा गया है, जो अद्वितीय है। उससे बड़ा तो क्या उसके बराबर भी कोई नहीं है। वह परमात्मा न्यायकारी है। मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है-यह विचार मनुष्य को पुण्यात्मा, सदाचारी, दयालु, परोपकारी, न्यायकारी, पर-दुःखकातर, निर्भय और मानवता के गुणों से सुभूषित बना देता है।
वेद हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, परमात्मा के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है-इस सबका ज्ञान हमें वेद से ही प्राप्त होगा। वर्णाश्रम धर्मों का प्रतिपादन भी वेद में सुंदररूप में प्रस्तुत किया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन सभी वर्गों के तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास-इन सभी आश्रमवासियों के कर्तव्यकर्मों का सदुपदेश वेद में विद्यमान है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य का जीवन उदात्त भावनाओं से पूर्ण, नियमित, संयमित और संतुलित बन जाता है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने के लिए वेद का अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य और कुछ पढ़े या न पढ़े, वेद तो उसे पढ़ना ही चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्यों का परमधर्म बतलाया है। हम उनके इसी आदेश का पालन करते हुए वेदों का प्रकाशन किया गया है ताकि वेदों का प्रचार और प्रसार होता रहे।
यह संस्करण कम्प्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, मजबूत जिल्द, सुन्दर स्पष्ट टाईप, कुल 10400 पृष्ठों में, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित आठ खण्डों में उपलब्ध है। ऋग्वेद-महर्षि दयानन्द तथा अन्य वैदिक विद्वानों द्वारा, यजुर्वेद-महर्षि दयानन्द, सामवेद-पं. रामनाथ वेदालंकार तथा अथर्ववेद-पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी का भाष्य है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणचित्तौड़ की रानी पद्मिनी | Chittore ki Rani Padmini
मेवाड़ के शीर्ष-पुरुषों की कीर्तिपूजा अपने शब्द-सुमनों से करने के उपरान्त और भक्त-शिरोमणि मीरां की श्रद्धांजलि समर्पित करने मे बाद भी, इन सबकी पंक्ति में प्रथम स्थान प्राप्त, मेवाड़ में इतिहास-लेखन-परम्परा प्रारम्भ करने वाले और अपनी कीर्ति में अपना, मेवाड़ में सबसे उत्तंग कीर्ति-स्तम्भ निर्मित कराने वाले, जो अब भारत की श्रेष्ठता का द्योतक बना हुआ है, महाराणा कुंभा से 100 वर्ष पहले होने वाली, अनेक प्रकार से अनुपम, जिनकी सौन्दर्य-सिद्धि के लिए समुद्रपार सिंहल द्वीप में उनका उद्गम उल्लिखित हुआ है और जिन्होंने चित्तौड़ में जौहर प्रणाली का प्रारम्भ करके उसकी ज्वालाओं से अपने पति का आत्मोसर्ग मार्ग आलोकित किया, उन राजरानी पद्मिनी की चारित मेरी लेखनी की परिधि से बाहर अब तक क्यों रहा, इसका कारण मुझसे अब तक नहीं बन पड़ा है, सिवाय इसके कि उनकी गाथा उनके समय में अब तक पद्मिनी की कोई क्रमबद्ध जीवनी नहीं है। मुनि जिनविजय जैसे अध्येता और उद्भट विद्वान को भी प्रश्न उठाना पड़ा है : “यह एक आश्चर्य सा लगता है, कि हेमरतन आदि राजस्थानी कवियों ने पद्मिनी के जीवन के अन्तिम रहस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा?” इस अवधि में ही आता है साका और जौहर, जो राजस्थानी वीर परम्परा के ऐसे अंत रहे, जिसे भावी पंक्तिया प्रेरणा प्राप्त करती रहीं। इसकी परिपूर्ति करने का साहस मुझ जैसे मेवाड़ से दूर बैठकर अध्ययन और अभिव्यक्ति करने वाले अल्पज्ञ का नहीं हो सकता। फिर भी पद्मिनी चरित के अधूरे अंशों को शब्दों से ढकने का प्रयत्न मैंने इस पुस्तक में किया है।
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Govindram Hasanand Prakashan, रामायण/रामकथा
बाल्मीकि रामायण- Valmiki Ramayana
स्वामी जगदीष्वरानन्द सरस्वती आर्य जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान्, निरन्तर साहित्य साधना में संलग्न, रामायण के समालोचक एवं मर्मज्ञ लेखक थे।
इस पुस्तक द्वारा आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन का अध्ययन, प्राचीन राज्यव्यवस्था का स्वरुप देख सकते हैं।
यदि आप भ्रातृ-प्रेम नारी-गौरव आदर्ष सेवक, आदर्ष मित्र, आदर्ष राज्य, आदर्ष पुत्र के स्वरुपों का अवलोकन या आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं तो यह रामायण अवष्य पढ़ें।
यह ग्रन्थ सैकड़ों टिप्पणियों से समलंकृत सम्पूर्ण रामायण 7000 श्लोकों में पूर्ण हुआ है।
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Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
राजपूतों की गौरव गाथा | Rajputon ki Gaurav Gatha
ये ठाकुर रघुबीरसिंहजी के बड़े पुत्र है। इनकी शिक्षा सेन्ट जेवियर स्कूल जयपुर तथा सादूल पब्लिक स्कूल बीकानेर में हुई है। ये डूँगर कॉलेज बीकानेर छात्र संघ के महासचिव रहे और ग्वालियर राजमाता सिंधिया से छात्रसंघ का उदघाटन करवाया। कॉलेज में महाराजा डूंगरसिंह की प्रतिमा लगाकर केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महाराजा डॉ. करणसिंह कश्मीर से उसका अनावरण करवाया। इन्होंने बीकानेर में वीर दुर्गादास राठौड़ का स्मारक बनाया, जिसका प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर ने 05.04.1991 ई. को अनावरण किया। 1975ई. में ये राजस्थान सरकार के एक उपक्रम में अधिकारी लगे और इसी साल इन्होंने भगवान बुद्ध का गुरुदेव गोयनका जी द्वारा उपदेशित धर्म ग्रहण किया और 1986 में विपश्यनाध्यान के आचार्य बने। इन्होंने गोयनका जी और संघ के साथ भगवान बुद्ध के सभी तीर्थ किए एवं 2004ई. में बर्मा म्यान्मार देश की पूज्य गुरुदेव गोयनका जी के संघ के साथ 13 दिन की धर्म यात्रा की वहाँ World Buddhist Summit में भाग लिया इन्होंने निम्न पुस्तकें लिखी :-
1. बीदावत राठौड़ों का इतिहास 1987ई.
2. राजपूतों की गौरवगाथा
3. Dhamma Ashok
4. बीदावत राठौड़ का बृहत-इतिहासSKU: n/a -
RAMAKRISHNA MATH, संतों का जीवन चरित व वाणियां, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
श्रीरामकृष्ण वचनामृत
भगवान् श्रीरामकृष्ण परमहंसदेव का जीवन नितान्त आध्यात्मिक था। ईश्वरीय भाव उनके लिए ऐसा ही स्वाभाविक था जैसा किसी प्राणी के लिए श्वास लेना। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण मनुष्य-मात्र के लिए आदेशप्रद कहा जा सकता है तथा उनके उपदेश विशेष रूप से अध्यात्म-गर्भित हैं और सार्वलौकिक होते हुए मानव-जीवन पर अपना प्रभाव डालने में अद्वितीय हैं।
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