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Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Srimad Bhagwat Mahapuran Set Of 9 Vols
-15%Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिSrimad Bhagwat Mahapuran Set Of 9 Vols
Acharya Shiv Prasad Dvivedi
Srimad Bhagwat Mahapuran (श्रीमद्भागवतमहापुराण) विस्तृत भूमिका,मूलश्लोक,अन्वय,हिंदीटीका,श्रीधरस्वामी कृत भावार्थदीपिका (श्रीधरी) टीका एवं श्रीधरी की हिंदीव्याख्या एवं अकारादिश्लोकनुक्रामनिका सहितSKU: n/a -
Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Srimad Devi Bhagwat Mahapuran with Hindi translation (Volume-2) Dwitiya Khand Code-1898
Gita Press, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताSrimad Devi Bhagwat Mahapuran with Hindi translation (Volume-2) Dwitiya Khand Code-1898
यह पुराण परम पवित्र वेद की प्रसिद्ध श्रुतियों के अर्थ से अनुमोदित, अखिल शास्त्रों के रहस्य का स्रोत तथा आगमों में अपना प्रसिद्ध स्थान रखता है। यह सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंशानुकीर्ति, मन्वन्तर आदि पाँचों लक्षणों से पूर्ण हैं। पराम्बा भगवती के पवित्र आख्यानों से युक्त यह पुराण त्रितापों का शमन करने वाला तथा सिद्धियों का प्रदाता है।
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Sturdy Sikhs Of Ganganagar
Sturdy Sikhs Of Ganganagar (Dimension Of their Growth) : This is the Maiden authentic research work on the multidimensional activities of the Sturdy Sikhs of the Gang Canal division of Sriganganagar. The monograph, being of immense historical significance, is entirely based on the archival material preserved in the Rajasthan State Archives, Bikaner. The book is intended to serve as an important reference work for all those interested in the Sikh history of Rajasthan.
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Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Subhash Chandra Bose
स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिदूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था।
बचपन से ही सुभाष पढ़ाई में बड़े कुशाग्र बुद्धि के थे। इंग्लैंड से पढ़ाई करके लौटने पर सुभाष कलकत्ता के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काम करना चाहते थे। उन दिनों गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ रखा था। उनके साथ सुभाष बाबू उस आंदोलन में सहभागी हो गए और जल्द ही देश के एक महत्त्वपूर्ण युवा नेता बन गए।
सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो कलकत्ता में सुभाष बाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष बाबू गांधीजी और कांग्रेस के तौर-तरीकों से असहमत थे। गांधीजी के विरोध के बावजूद वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, पर कार्यकारिणी का सहयोग न मिलने पर उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया। नजरबंदी में ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर वे जापान पहुँचे और आजाद हिंद फौज की स्थापना की। उन्होंने नारा दिया—‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’ उन्होंने भारत की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। सुभाष की राष्ट्रभक्ति बेमिसाल है। उनकी मृत्यु के बारे में अभी तक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि 23 अगस्त, 1945 को उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। राष्ट्रनायक सुभाष बाबू आज भी अदम्य प्रेरणा के स्रोत हैं।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), बाल साहित्य
Suno Vidhyarthi
सुनो विद्यार्थी : यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान परिवार, विद्यालय, शिक्षा व शिक्षक का महत्त्व समझ सके, उचित समय पर अपने लक्ष्य का निर्धारण कर सके, समय की कीमत व मेहनत का महत्त्व जान सके, श्रेष्ठ नित्यकर्म, स्वास्थ्यकर भोजन, शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति के पथ को अपना सके, महाविनाशक कुसंगति व सर्वनाशक नशे के दलदल से बच जाए, विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य को अखण्ड रखकर आसनादि से शरीर बलिष्ठ, ऊर्जावान व पुष्ठ बनाए, स्वाध्याय, अनुशासन व आत्म अवलोकन के द्वारा अपनी क्षमताओं का सर्वांगीण विकास करे, भाग्य, कर्म, व्यक्तित्व व अभिप्रेरणा को भली-भाँति समझ जाए, रोजगार संबंधी जानकारी से सम्पन्न होकर बेरोजगारी की विकराल समस्या में न उलझे, श्रेष्ठ मित्रों का साथ करे, भटकाव के हर मार्ग से बचकर आदर्श जीवन तथा सच्चे जीवन-आनन्द की प्राप्ति के साथ घर, परिवार, समाज और राष्ट्र को गौरवान्वित करें, तो आपको चाहिए कि इन सभी विषयों पर अपनी संतान का समय-समय पर उचित मार्गदर्शन करें। इस पुस्तक के माध्यम से इन तमाम विषयों पर स्वतंत्र रूप से अलग-अलग अध्यायों के द्वारा इसी मार्गदर्शन का प्रयास किया गया है…
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Super 30 Anand Ki Sangharsh-Gatha
पटना में एक निम्न मध्यम परिवार में जनमे आनंद कुमार को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है। उनकी ‘सुपर 30’ नाम की संस्था गरीब बच्चों को आई.आई.टी. प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाती है। ‘सुपर 30’ की स्थापना वर्ष 2002 में हुई और अब तक 390 में से 333 विद्यार्थी आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा में सफल रहे। चाहे दिहाड़ी मजदूर का बेटा हो या फिर ऑटो ड्राइवर की बच्ची, बिजली मिस्त्री का बेटा हो या फिर फेरी लगानेवाले की बेटी, निर्धन-से-निर्धन परिवार के विद्यार्थियों को भी आई.आई.टी. में प्रवेश दिलाने का श्रेय आनंद कुमार को जाता है।
‘सुपर 30’ के विद्यार्थियों को वे अपने साथ रखते हैं और वे उनसे कोई फीस नहीं लेते बल्कि उनके रहने-खाने का खर्च भी खुद ही वहन करते हैं। आनंद कुमार ‘सुपर 30’ के लिए कोई भी सरकारी एवं गैर सरकारी वित्तीय मदद नहीं लेते। अब तक देश-विदेश के बड़े-से-बड़े उद्योगपतियों ने उन्हें आर्थिक मदद की बात कही, लेकिन उन्होंने आदरपूर्वक मना कर दिया।
उन्हें अनेक देशी-विदेशी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इन्होंने एम.आई.टी., हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, टोकियो, ब्रिटिश कोलंबिया जैसे कई बड़े विश्वविद्यालयों के अलावा देश-विदेश के बड़े संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं। उन पर अनेक वृत्तचित्र और फिल्में बनाई गई हैं। बावजूद इसके अहंकार आनंद को छू भी नहीं पाया है। जीवन के आरंभ से ही चुनौतियों से जूझनेवाले आनंद कुमार आज भी स्वयं आगे बढ़कर चुनौतियों को चुनते हैं और अपनी जिजीविषा, अदम्य इच्छाशक्ति और सादगी के बल पर उन्हें पार भी कर लेते हैं। अभी हाल में ही ‘क्वीन’ फेम फिल्म निर्देशक विकास बहल ने उनके जीवन पर एक फिल्म बनाने की घोषणा की है।
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Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Surya Siddhant (2 Volumes)
-10%Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनSurya Siddhant (2 Volumes)
सूर्य सिद्धान्त
(1 व 2 भाग, मूल व रंगनाथ की टीका सहित,
उपयोगी संस्करण)
भाष्यकार – श्री महावीरप्रसाद श्रीवास्तव
विश्व को भारत की अप्रतिम देन है गणित। इसमें भी ग्रह-गणित का कोई सानी नहीं। ज्योतिष के मूख्य अंग के रूप में गणित का जो महत्व रहा है, वह सूर्य सिद्धांत से आत्मसात् किया जा सकता है। वर्तमान में सूर्य सिद्धान्त 6 वीं शताब्दी में बहुत प्रमाणिक रूप से गणित के बहुत से सिद्धान्त और अनेक विषयों को सामने लेकर आया है। हालांकि इसका स्वरूप बाद का है।
मय- सूर्य सम्वाद रूप इस ग्रंथ में मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, त्रिप्रश्नाधिकार, चन्द्रग्रहणाधिकार, सूर्यग्रहणाधिकार, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुत्यधिकार, उदयास्ताधिकार, चन्द्रश्रृंगोन्नत्यधिकार, पाताधिकार, भूगोलाध्यायाधिकार आदि 14 अधिकार ओर 500 श्लोक हैं। यह ग्रन्थ खगोल की अनेक घटनाओं के अध्ययन और अध्यापन के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है और इस पर अनेक टीकाएँ प्रकाशित होती रही हैं।
प्रस्तुत् ग्रंथ की टीका सुप्रसिद्ध गणितज्ञ महावीर प्रसाद श्रीवास्तव ने किया है। इसमें भाष्यकार ने आधुनिक गणित के साथ समन्वय करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि इस सिद्धान्त में जो गणित की गहराइयाँ हैं, वो आधुनिक गणित से अलग नहीं हैं। वेधादि में जो मामूली सा अंतर आता है, वह सूक्ष्मता के कारण है किन्तु मौलिक सिद्धान्त नहीं बदलता है।
इसमें रंगनाथ की गूढ़ प्रकाशटीका को भी सम्मलित किया है। यह ग्रंथ विद्यार्थियों ओर शोधार्थियों के लिए परम उपयोगी है। इसे आर्यावर्त संस्कृति संस्थान ने प्रकाशित किया है और मुझे इसकी भूमिका, समीक्षा का अवसर दिया है।
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Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Swami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, अन्य कथेतर साहित्य, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिSwami Dayanand Sarswati Ka Vedic Darshan
पुस्तक का नाम – स्वामी दयानन्द का वैदिक दर्शन
अनुवादक का नाम – ड़ॉ. स्वरुपचन्द्र दीपक
महर्षि दयानन्द जी एक युगपुरुष थे। सत्य, विद्या, योग, तप, ईश्वरभक्ति, देशभक्ति, प्रेम, सेवा, धर्म और दर्शन की दृष्टि से वे किसी से कम न थे। उनके दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी नें एक अंग्रेजी पुस्तक “ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ द फिलॉसफी ऑफ दयानन्द” लिखी थी। वह पुस्तक ज्ञान की दर्जनों विधाओं को आत्मसात् करती एक मूल्यवान् पुस्तक है। उसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शनशास्त्र के गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। इस पुस्तक का अथक परिश्रम से हिन्दी अनुवाद डॉ. रुपचन्द्र दीपक जी ने किया ताकि इस पुस्तक का लाभ जनसामान्य भी उठा सके।
प्रस्तुत पुस्तक स्वामी सत्यप्रकाश जी की पुस्तक का हिन्दी रुपान्तरण है। इस पुस्तक में जो-जो विषय सम्मलित किये गये हैं उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है –
इस पुस्तक में अध्यायों का 15 भागों में विभाजन किया गया है।
प्रथम अध्याय आप्त जीवन की पृष्ठभूमि के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है।
द्वितीय अध्याय वैदिक दर्शन के नाम से है। इसमें वेदमन्त्रों का अन्तःभाव प्रकट किया गया है। स्वामी दयानन्द प्रतिपादित एकेश्वरवाद की व्याख्या की गई है। एकतत्त्ववाद और त्रेतवाद में अन्तर स्पष्ट किया है। सृष्टि उत्पत्ति और मोक्ष के स्वरुप को इस अध्याय में समझाया गया है।
तृतीय अध्याय भारतीय षड्दर्शनों में समन्वय के नाम से है। इसमें स्वामी दयानन्द जी का दर्शनों पर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
चतुर्थ अध्याय दयानन्द की ज्ञानमीमांसा नाम से है। इसमें बौद्ध, जैन, रामानुज, शङ्कर आदि के दर्शनों की समीक्षा की गई है तथा उनकी स्वामी दयानन्द जी के दर्शन से तुलना की गई है।
पञ्चम अध्याय ईश्वर मीमांसा पर है। इसमें नास्तिकों की युक्तियों का खण्डन किया गया है।
षष्ठं अध्याय जीवात्मा के विषय पर है। इसमें जीवों के अनेकत्व का प्रतिपादन किया है तथा जीवधारियों की कृत्रिम उत्पत्ति के प्रयासों का खड़न किया गया है।
सप्तं अध्याय कार्य कारण सिद्धान्त पर आधारित है। कार्य-कारण सिद्धान्त की इसमें दार्शनिक मीमांसा की गई है।
अष्टम अध्याय में निमित्त और उपादान कारणों की समीक्षा की गई है तथा इस सम्बन्ध में स्वामी दयानन्द जी का मन्त्वय दर्शाया गया है।
नवम अध्याय मूल प्रकृति पर है। इस अध्याय में दर्शनों में प्रकृति और शंकराचार्य के मत में प्रकृति और स्वामी दयानन्द के मत में प्रकृति के उपादान, मूलकारणों पर समीक्षा की गई है।
दशम अध्याय में मन, चित्त, चेतना, योग आदि सूक्ष्म विषयों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
एकादश अध्याय में पुनर्जन्म मीमांसा की गई है। जिसके अन्तर्गत जैन-बौद्ध के पुनर्जन्म विषयक मान्यताओं की समीक्षा की गई है। स्वामी दयानन्द जी के पारलौकिक सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है।
द्वादश अध्याय में मोक्ष के स्वरुप और मोक्ष के पश्चात् पुनरावर्ती पर विचार प्रकट किया गया है।
त्रयोदश और चतुर्दश अध्याय में जीवन के प्रतिदृष्टिकोँण और आचार शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है।
पञ्चदश अध्याय में स्वामी दयानन्द जी के मन्तव्य-अमन्तव्य को प्रस्तित किया गया है।
इस कृति के द्वारा वैदिक दार्शनिक सिद्धान्तों का पाठकों को पूर्ण रस प्राप्त करना चाहिए।
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक । A Critical Study of the Philosophy of Dayanand ज्ञान की दर्जन विधाओं को आत्मसात करती एक मूल्यवान पुस्तक है। इसमें वेद, विज्ञान, उपनिषद् एवं दर्शन शास्त्र गम्भीरतम तत्त्व अनुस्यूत हैं। विद्वानों को इसके अनुवाद की दशको से अपेक्षा थी।
महर्षि दयानन्द के दर्शन पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित उक्त पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई प्रथम मौलिक पुस्तक थी।
किसी लेखक को पढ़ने का पूर्ण रस तो उसकी मूल कृति में ही मिलता है।
उसकी सामग्री पाठकों को उनकी भाषा में मिल सके, अनुवादक का यही प्रयास रहा है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Swami Vivekananda Ka Yuva Jagran
“भारत की आध्यात्मिकता तथा पश्चिम की विज्ञान और तकनीक—इन दोनों के समन्वय से आनेवाले समय में एक नए भारत का निर्माण होगा, इस दिशा में महान् युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद ने जोर दिया। ऐसा करना है, तो युवा और आनेवाली पीढ़ी के मानस में परिवर्तन करना होगा।
अगर भारत वर्ष का उत्थान करना है तो सबसे पहले भारत के विभिन्न घटकों पर विश्वास आवश्यक है—अपनी धरती पर, अपनी परंपराओं पर, अपनी संस्कृति पर, अपने गौरवशाली अतीत पर।
यह एक प्रखर संदेश हमें स्वामीजी से प्राप्त होता है। एक बात उन्होंने हमेशा कही कि एक नया भारत खड़ा हो रहा है।
स्वामी विवेकानंद ने युवकों से यह भी अपेक्षा रखी थी—क्या तुम्हें अपने देश से प्रेम है? यदि हाँ, तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग पर प्रयत्नशील हों। पीछे मुडक़र, मत देखोSKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Swaraj Ka Shankhnaad : Ekal Abhiyan
किसी भी राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति की पूँजी होती है समाज के सामान्य व्यक्ति की समझ, जिसमें शिक्षा की भूमिका का महत्त्वपूर्ण होना स्वयंसिद्ध है। हिंदुस्तान की जनसंख्या को यदि दो भागों में विभक्त करें तो एक बड़ा वर्ग उन ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है जहाँ न सरकार की पहुँच है, न सड़क है, न समाज; शक्ति के रूप में दिखता है और न ही पहुँच है साफ जल की। जो प्रकृति एवं धरती के जितना निकट, वही सांस्कृतिक मूल्यों का धनी है और जो इससे जितना दूर है वही नैतिक गिरावट का साम्राज्य है। किंतु यह विडंबना? जहाँ शिक्षा एवं वैभव है, वहाँ संस्कृति नहीं; और जहाँ नैतिकता है, वहाँ निरक्षरता एवं गरीबी में जीवन जीने को बाध्य हैं। अतः समाधान का मार्ग भी यही है। दोनों वर्गों को आत्मीयता के सेतु से जोड़ दें तो एक की आर्थिक गरीबी दूर होगी तो दूसरे की सांस्कृतिक। और इसी उद्देश्य के समर्पित है एकल अभियान; जिसे सही अर्थों में ‘ग्राम शिक्षा मंदिर’ कहा जाता है।
शिक्षा-संस्कृति-स्वराज को समर्पित एक महाअभियान ‘एकल’ की गौरवगाथा है यह पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Swatantrata Sangram Ke Andolan
भारत की स्वतंत्रता के लिए नरम-गरम, खट्टे-मीठे हर तरह के आंदोलन हुए। कबीलाई लोगों ने अपने अस्तित्व और अस्मिता को बचाए रखने के लिए अपने पारंपरिक अस्त्र-शस्त्रों से हिंसक आंदोलन किए किसानों ने अन्याय का मुकाबला कभी नरमी और कभी गरमी से किया। कामगारों ने सामूहिक एकता से माहौल अपने पक्ष में किया। सन् 1 8 5 7 का स्वातंत्र्य समर इस दौर में मील का पत्थर साबित हुआ। इस चिनगारी को योद्धा मंगल पांडे ने अपनी शहादत देकर हवा दी और इसकी लपटों में नाना साहेब, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बहादुरशाह जफर आदि आजादी के अग्रणी सेनानियों ने अपनी आहुतियाँ दीं।
कूका आंदोलन, भील आंदोलन, प्लासी का युद्ध, बक्सर का युद्ध, ‘बंग-भंग’ आंदोलन, होमरूल आंदोलन, जलियाँवाला कांड, काकोरी कांड, दांडी-यात्रा आदि ऐसे कुछ आंदोलन हैं जिनमें लाखों-लाख भारतीयों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी शहादत दी-और अंततः हमें आजादी मिली।
प्रस्तुत पुस्तक में देश की स्वतंत्रता से जुड़े कुछ प्रमुख आंदोलनों का जिक्र है, जो आजादी के महत्त्वपूर्ण आंदोलनों के एक लघु दस्तावेज जैसे हैं। इन्हें संकलित करने का उद्देश्य यही है कि आज की युवा पीढ़ी को एक ही स्थान पर भारत के सभी महत्त्वपूर्ण स्वाधीनता आंदोलनें की पूरी जानकारी मिल जाए। भारती स्वातंत्र्य संग्राम के प्रेरणाप्रद बलिदानों का पुण्य स्मरण कराती महत्त्वपूर्ण कृति।SKU: n/a -
Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Taittiriyopanishad 0071
Gita Press, Hindi Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिTaittiriyopanishad 0071
कृष्णयजुर्वेदीय तैत्तिरीयारण्यक के प्रपाठक सात से नौ तक वर्णित इस उपनिषद् के सप्तम प्रपाठक शिक्षावल्ली में गुरु-शिष्य परम्परा तथा भृगुवल्ली और ब्रह्मानन्दवल्ली में ब्रह्मज्ञान का सविधि निरूपण है। सानुवाद, शांकरभाष्य।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Tattvadarshan Sunderkand-Ratnamani
-13%Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासTattvadarshan Sunderkand-Ratnamani
सनातम धर्म का आधार वेद, उपनिषद्, पुराण, शास्त्र हैं। ‘रामचरितमानस’ श्रीराम का अयन है। इसमें चार विषय हैं—कर्म क्या है ? ज्ञान क्या है ? भक्ति क्या है ? शरणागति क्या है ? सुंदरकाण्ड पंचम सोपान है, इसमें इन चारों प्रश्नों का उत्तर सुंदर भावों में प्रकट होता है।
हनुमानजी ने रावण को चार चीजों का उपदेश दिया— भक्ति, वैराग्य, विवेक और नीति। भगवान् की प्रेमपूर्वक सेवा का नाम भक्ति है जो हनुमानजी ने सुंदर भावरूप में प्रकट किया है। भक्तिरूपी वृक्ष भावरूपी बीज से ही पैदा होता है। भगवत् चरणों का आश्रय मानव जीवन को कुशल बना देता है; भक्त भगवान् में जीता है, यही शरणागति है।
‘सुंदरकाण्ड’ वर्तमान युग में एक औषधि है, जो मानव जीवन के तापों को शांत करता है, शक्ति प्रदान करता है और सबको विषम परिस्थितियों में भी जीना सिखाता है। जो इसका पाठ नित्य करते हैं, वे अनुभव करते हैं कि श्रीहनुमानजी के चरित्र में कितना विश्वास, प्रताप, तेज और भक्ति है। जब पाठ में इतना बल है तो उसके एक-एक शब्द के अर्थ को जब जानेंगे, पहचानेंगे तो कितना आनंद होगा, इसकी गहराई को अनुभव करने के लिए यह ग्रंथ पाठकों के लिए अत्यंत कल्याणकारी सिद्ध होगा।
इसी अटूट विश्वास के साथ यह ग्रंथ आपके अध्ययन हेतु प्रस्तुत है; आप सभी इसका लाभ प्राप्त करें और अपने जीवन को सुंदर बना सकें, यही इसके लेखन-प्रकाशन की सार्थकता है।
जय श्रीराम ! जय हनुमान !”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य
Teen Din, Do Raten
इतना सुख है जीवन में! इतना कुछ है मेरे मन में! और अब तक मैं इससे वंचित था, अनजान था! भारतीय मध्यवर्ग में बढ़ती बाजारवाद, उपभोक्तावाद और भोगवाद की प्रवृत्तियों के संदर्भ में इससे बेहतर स्वीकारोक्ति नहीं हो सकती। लालसाएँ आदमी को घेरे रहती हैं, कुछ प्रत्यक्ष रूप में सामने आती हैं, तो कुछ अंतस में दबी रहती हैं और अनुकूल अवसर पाते ही पूर्ति हेतु सिर उठाने लगती हैं। लगता है जैसे आधुनिकतम महानगरीय मध्यवर्ग अपनी सभी लालसाओं की पूर्ति के लिए बेताब है। इसमें दो फाड़ की नौबत आ चुकी है। एक जो खुलकर इस खुलेपन को जी रहा है और दूसरे के पास आर्थिक संसाधन कम पड़ रहे हैं। ऐसे में उसे जब मौका मिलता है तो वह इसे जीने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ता। बाजार इस वर्ग की मजबूरी और इच्छाओं को समझते हुए हमेशा चारा फेंकने की जुगत में रहता है। वह गैर-जरूरी चीजों के प्रति भी भ्रमपूर्ण लगाव पैदा कर भावनाओं का दोहन करने से नहीं चूकता। एक नई उपभोक्ता संस्कृति साकार ही नहीं हो रही, दिन-ब-दिन विकराल भी होती जा रही है। कुशल व्यवसायी सिर्फ माल नहीं बेच रहे, बड़ी चालाकी से विचार भी प्रत्यारोपित कर रहे हैं। उदारवाद के पीछे की चालाकी और चतुराई को उजागर करना नितांत आवश्यक हो गया है।
‘तीन दिन, दो रातें’ एक इनामी किस्से की कथा के बहाने इसी ज्वलंत समस्या को परत-दर-परत बेनकाब करता है। प्रसिद्ध लेखक वीरेंद्र जैन की यह खासियत है कि वे अपनी चुटीली भाषा-शैली के जरिए कथानक को चरम पर ले जाते वक्त भी यथार्थ को सहेजते हैं। इसीलिए उनका यह उपन्यास भौतिकवाद के विनाशकारी परिणामों का पुख्ता दस्तावेज बन पड़ा है।SKU: n/a -
Aryan Books International, इतिहास
THE BATTLE FOR RAMA: CASE OF THE TEMPLE AT AYODHYA
For over two decades, a handful of Left historians have strenuously endeavoured to stymie the Ramjanmabhumi movement. From questioning the antiquity of Rama worship and the identity of ancient Ayodhya, they have also challenged the widely held belief that Babri Masjid was built on the site of the Janmabhumi temple. Scholars have, however, traced the antiquity of the Rama Katha as far back as sixth-fifth century bce, when ancient ballads (akhyanas) transmitted Rama?s story orally. Valmiki?s Ramayana itself has been dated to the fourth-third century bce. Over the centuries, Rama?s story has been re-told in many vernaculars of the country. Rama is the exemplar of moral values for Hindu society and epitomises its aspirations of artha, kama, and above all, dharma. The proceedings of the Allahabad High Court have exposed the vulnerabilities of Left historians. They could proffer no evidence of continued Muslim presence at Babri Masjid, while the unwavering commitment of Hindu devotees to the site has been attested by several sources. Babri Masjid was not mentioned in the revenue records of the Nawabi and British periods, nor was any Waqf ever created for its upkeep. No Muslim filed an FIR or complained of dispossession or obstruction in his alleged use of the Masjid when the image of Sri Rama was placed under the central dome on 23rd December 1949. The Sunni Central Waqf Board entered litigation on 18th December 1961, just five days before the twelfth anniversary of the placement of the image in the Masjid, on which date any claim would have become time-barred. The Board did not file a suit for possession; instead it sought a declaration on the status of the property. Further, excavations of the ASI revealed uninterrupted occupation of the site since the 13th century bce. They also exposed remnants of the temple on which Babri Masjid was erected. The assertions of Left historians on Babri Masjid have all been found to be erroneous; yet there has been no public retraction. Indeed, they continue to peddle their discredited theories despite the mounting evidence against them.
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
The Castes of Marwar (Census Reprot of 1891)
It is always interesting to know something about the people with whom we have to deal and to learn their ways, manners, and customs is an amusing task. The want of a book containing descriptions of the various tribes and castes of Marwar was long felt. No attempt has hitherto been made to undertake the work on account of a great many difficulties that attended its achievement. But the census of Marwar for 1891, the charge of which was entrusted to the undersigned, made the way clear and easy. The Darbar sanctioned the publication of such a work, and the census tours made throughout the country for the purpose of inspecting the preliminary arrangements of the districts afforded suitable opportunities for the collection of the required material. The census Supervisors and Inspectors, as well as the Pargana Hakims, were provided with a set of questions dealing with the chief points to enable them to collect information regarding the ways and other social circumstances of the people, but a good many facts were investigated through personal inquiries from trustworthy representatives of various communities. Many valuable references were also obtained from the Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. Tod. the Punjab Census Report of 1881 by Mr. Danziel Ibbetson, the Hindu tribes, and castes by the Revd. M. A. Sherring, the Races of the North-Western Provinces by Sir Henry Elliot, the Memoir of Central India by Sir John Malcolm, the Indian castes by John Wilson, also the Gazetteers of Rajputana and several other publications, to the authors of all of which the undersigned owes a good deal of obligation.
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English Books, Parimal Publications, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
The Complete Mahabharata Set Of 9
-10%English Books, Parimal Publications, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताThe Complete Mahabharata Set Of 9
The Mahabharata is a curious mixture of history and mythology, though the former aspect is the subject of grave doubts in the minds of the professional historians. This is called the fifth Veda and it is universally acknowledged to be of pre-eminent importance. It extols its greatness itself in the following words: yad ihasti tad anyatra yan nehasti na tat kvacit (whatever is here is also elsewhere; whatever is not here is extant nowhere). It contains not only the celebrated Gita but also a large number of other texts, which are themselves independent treatises. It is a valuable product of the ancient Indian literature of the post-Vedic age and seems to go back to the prehistoric stage of the human society.
This is first time that English translation with Sanskrit text is being published. The translation is based on M.N. Dutta, which is very lucid and accurate according to the Sanskrit text. It was translated according to that time available text of Kolkata edition. However, this text is not available now and we have arranged it through the text of Chitrashala Press, Pune, which is an authentic and complete text of the Mahabharata. And according to this, sometimes, we do not find the translation of many slokas, that translation has been completed by the editors.
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Gita Press, Suggested Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
The Complete Mahabharata – (Six Volumes) | महाभारत सटीक (छ: खण्डो में)
Gita Press, Suggested Books, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताThe Complete Mahabharata – (Six Volumes) | महाभारत सटीक (छ: खण्डो में)
विश्व के उत्कृष्ट विचारकों, तत्त्वान्वेषकों, समालोचकों द्वारा भारतीय ज्ञान के विश्वकोश के रूप में समादृत महाभारत की महिमा का कोई पार नहीं है। इसमें ज्ञान, वैराग्य, भक्तियोग, नीति, सदाचार, प्राचीन इतिहास, राजनीति, कूटनीति आदि-मानव जीवनोपयोगी विविध विषयों का समावेश है। यह शास्त्रों में पंचम वेद की मान्यता से अलंकृत है।
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