Ashtavakra Mahageeta
Showing all 10 results
-
Osho Media International, ओशो साहित्य
Ashtavakra Mahagita Vol. 7
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
महाशय को कैसा मोक्ष!
पतंजलि पूरे होते हैं समाधि पर; और अष्टावक्र की यात्रा ही शुरू होती है समाधि को छोड़ने से। जहां अंत आता है पतंजलि का वहीं प्रारंभ है अष्टावक्र का। अष्टावक्र आखिरी वक्तव्य हैं। इससे ऊपर कोई वक्तव्य कभी दिया नहीं गया। यह इस जगत की पाठशाला में आखिरी पाठ है। और जो अष्टावक्र को समझ ले, उसे फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता। उसने सब समझ लिया। और जो अष्टावक्र को समझ कर अनुभव भी कर ले, धन्यभागी है। वह तो फिर ब्रह्म में रम गया। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
Ashtavakra Mahagita, Vol.05
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
सहज ज्ञान का फल है तृप्ति
यह भी समझने जैसा है–स्वच्छेन्द्रिय! फर्क को खयाल में लेना। अक्सर तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं: ‘इंद्रियों की दुश्मनी। तोड़ो, फोड़ो, इंद्रियों को दबाओ, मिटाओ! किसी भांति इंद्रियों से मुक्त हो जाओ!’ अष्टावक्र का वचन सुनते हो: स्वच्छेन्द्रिय! इंद्रियां स्वच्छ हो जाएं, और भी संवेदनशील हो जाएंगी। ज्ञान का फल! यह वचन अदभुत है। नहीं, अष्टावक्र का कोई मुकाबला मनुष्य-जाति के इतिहास में नहीं है। अगर तुम इन सूत्रों को समझ लो तो फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता है। इन एक-एक सूत्र में एक-एक वेद समाया है। वेद खो जाएं, कुछ न खोएगा; अष्टावक्र की गीता खो जाए तो बहुत कुछ खो जाएगा। स्वच्छेन्द्रिय! ज्ञान का फल है: जिसकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं; जिसकी आंखें साफ हैं! ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.1
अष्टावक्र कोई दार्शनिक नहीं हैं, और अष्टावक्र कोई विचारक नहीं हैं। अष्टावक्र तो एक संदेशवाहक हैं–चैतन्य के, साक्षी के। शुद्ध साक्षी! सिर्फ देखो! दुख हो दुख को देखो, सुख हो सुख को देखो! दुख के साथ यह मत कहो कि मैं दुख हो गया; सुख के साथ यह मत कहो कि मैं सुख हो गया। दोनों को आने दो, जाने दो। रात आए तो रात देखो, दिन आए तो दिन देखो। रात में मत कहो कि मैं रात हो गया। दिन में मत कहो कि मैं दिन हो गया। रहो अलग-थलग, पार, अतीत, ऊपर, दूर! एक ही बात के साथ तादात्म्य रहे कि मैं द्रष्टा हूं, साक्षी हूं। ओशो
SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.2
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
‘दुख का मूल द्वैत, उसकी औषधि कोई नहीं।’ इससे तुम थोड़े चौंकोगे भी, घबड़ाओगे भी। क्योंकि तुम बीमार हो और औषधि की तलाश कर रहे हो। तुम उलझे हो और कोई सुलझाव चाहते हो। तुम परेशानी में हो, तुम कोई हल खोज रहे हो। तुम्हारे पास बड़ी समस्याएं हैं, तुम समाधान की तलाश कर रहे हो। इसलिए तुम मेरे पास आ गए हो। और अष्टावक्र की इस गीता में जनक का उदघोष है कि औषधि कोई नहीं! इसे समझना। यह बड़ा महत्वपूर्ण है। इससे महत्वपूर्ण कोई बात खोजनी मुश्किल है। और इसे तुमने समझ लिया तो औषधि मिल गई। औषधि कोई नहीं, यह समझ में आ गया, तो औषधि मिल गई। जनक यह कह रहे हैं कि बीमारी झूठी है। अब झूठी बीमारी का कोई इलाज होता है? झूठी बीमारी का इलाज करोगे तो और मुश्किल में पड़ोगे। झूठी बीमारी के लिए अगर दवाइयां लेने लगोगे, तो बीमारी तो झूठ थी; लेकिन दवाइयां नई बीमारियां पैदा कर देंगी। इसलिए पहले ठीक-ठीक निर्णय कर लेना जरूरी है कि बीमारी सच है या झूठ? ओशो
SKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.3
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
स्वतंत्रता की झील: मर्यादा के कमल
महागीता का मौलिक संदेश एक है कि चुनाव संसार है। अगर तुमने संन्यास भी चुना, तो वह भी संसार हो गया। जो तुमने चुना, वह परमात्मा का नहीं है; जो अपने से घटे, वही परमात्मा का है। जो तुमने घटाना चाहा, वह तुम्हारी योजना है; वह तुम्हारे अहंकार का विस्तार है। तो महागीता कहती है: तुम चुनो मत–तुम सिर्फ साक्षी बनो। जो हो, होने दो। बाजार हो तो बाजार; अचानक तुम पाओ कि चल पड़े जंगल की तरफ, चल पड़े–नहीं चुनाव के कारण; सहज स्फुरणा से–तो चले जाओ। सहज स्फुरणा से चले जाना जंगल एक बात है; चेष्टा करके, निर्णय करके, साधना करके, अभ्यास करके जंगल चला जाना बिलकुल दूसरी बात है। महागीता कहती है: चुनो मत! क्योंकि चुनोगे तो अहंकार से ही चुनोगे न? चुनोगे तो ‘मैं’ करने वाला हूं–कर्ता हो जाओगे न! महागीता कहती है: न कर्ता, न भोक्ता–तुम साक्षी रहो। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.4
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
मनुष्य है एक अजनबी
अष्टावक्र के ये सूत्र उस अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव-स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से समझना। ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो, कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि गुनोगे तो ही सुना। ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेंगी, अकेले कान में नहीं, तो ही पहुंचेंगी तुम तक। तो बहुत मौन से, बहुत ध्यान से…। इन बातों में कुछ मनोरंजन नहीं है। ये बातें तो उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन मूढ़ता है। ये बातें तो उनके लिए हैं जो प्रौढ़ हो गए हैं; जिनका बचपना गया; अब जो घर नहीं बनाते हैं; अब जो खेल-खिलौने नहीं सजाते; अब जो गुड्डा-गुड्डियों के विवाह नहीं रचाते; अब जिन्हें एक बात की जाग आ गई है कि कुछ करना है, कुछ ऐसा आत्यंतिक कि अपने से परिचय हो जाए। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे। अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.6
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना
ये जो अष्टावक्र के सूत्र हैं, इन्हें तुम ऐसा मत समझ लेना कि कुछ थोड़ी जानकारी बढ़ गई, समाप्त हुई बात। नहीं, इससे तुम्हारा जीवन बढ़े, जानकारी नहीं, तुम्हारा अस्तित्व बढ़े, तो ही समझना कि तुमने सुना। तुम्हारा अस्तित्व फैले। तुम विराट हो, तुम्हें उसकी याद आए। यह सारा आकाश तुम्हारा है: तुम्हें उसकी स्मृति आए। तुम सम्राट हो। उसका बोधमात्र–और सारा भिखमंगापन सदा के लिए समाप्त हो जाता है। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.8
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
निराकार, निरामय साक्षित्व
अष्टावक्र का यह पूरा संदेश द्रष्टा की खोज है। कैसे हम उसे खोज लें जो सबका देखने वाला है। तुम अगर कभी परमात्मा को भी खोजते हो, तो फिर एक दृश्य की भांति खोजने लगते हो। तुम कहते हो, संसार तो देख लिया झूठ, अब परमात्मा के दर्शन करने हैं। मगर दर्शन से तुम छूटते नहीं, दृश्य से तुम छूटते नहीं। धन देख लिया, अब परमात्मा को देखना है। प्रेम देख लिया, संसार देख लिया, संसार का फैलाव देख लिया, अब संसार के बनाने वाले को देखना है; मगर देखना है अब भी। जब तक देखना है तब तक तुम झूठ में ही रहोगे। तुम्हारी दुकानें झूठ हैं। तुम्हारे मंदिर भी झूठ हैं, तुम्हारे खाते-बही झूठ हैं, तुम्हारे शास्त्र भी झूठ। जहां तक दृश्य पर नजर अटकी है वहां तक झूठ का फैलाव है। जिस दिन तुमने तय किया अब उसे देखें जिसने सब देखा, अब अपने को देखें, उस दिन तुम घर लौटे। उस दिन क्रांति घटी। उस दिन रूपांतरण हुआ। द्रष्टा की तरफ जो यात्रा है वही धर्म है। ओशोSKU: n/a -
Osho Media International, ओशो साहित्य
ASHTAVAKRA MAHAGITA, VOL.9
पहुंचना हो तो रुको
अष्टावक्र के इन सारे सूत्रों का सार-निचोड़ है–श्रवणमात्रेण। जनक ने कुछ किया नहीं है, सिर्फ सुना है। न तो कोई साधना की, न कोई योग साधा, न कोई जप-तप किया, न यज्ञ-हवन, न पूजा-पाठ, न तंत्र, न मंत्र, न यंत्र, कुछ भी नहीं किया है। सिर्फ सुना है। सिर्फ सुन कर ही जाग गए। सिर्फ सुन कर ही हो गया–श्रवणमात्रेण। अष्टावक्र कहते हैं कि अगर तुमने ठीक से सुन लिया, तो कुछ और करना जरूरी नहीं। करना पड़ता है, क्योंकि तुम ठीक से नहीं सुनते। तुम कुछ का कुछ सुन लेते हो। कुछ छोड़ देते हो, कुछ जा़ेड लेते हो; कुछ सुनते हो कुछ अर्थ निकाल लेते हो, अनर्थ कर देते हो। इसलिए फिर कुछ करना पड़ता है। कृत्य जो है, वह श्रवण की कमी के कारण होता है, नहीं तो सुनना काफी है। जितनी प्रगाढ़ता से सुनोगे, उतनी ही त्वरा से घटना घट जाएगी। देरी अगर होती है, तो समझना कि सुनने में कुछ कमी हो रही है। ऐसा मत सोचना कि सुन तो लिया, समझ तो लिया, अब करेंगे तो फल होगा। वहीं बेईमानी कर रहे हो तुम। वहां तुम अपने को फिर धोखा दे रहे हो। अब तुम कह रहे हो कि अब करने की बात है, सुनने की बात तो हो गई। ओशोSKU: n/a