Religious & Spiritual Literature
Showing 889–912 of 925 results
-
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें
Vivek-Choodamani (HB)
‘ब्रह्म सत्यं’ जगन्मिथ्येत्येवंरूपो विनिश्र्चयः,
सोअयं नित्यानित्यवस्तुविवेकः समुदाहतः।
—20
काव्यानुवाद—चौपाई छंद मेंब्रह्म सत्य और जगत है मिथ्या।
यहि दृढ़ अटल सत्य है तथ्या॥
अथ निश्चय दृढ़ अविचल एका। नित्यानित्यं वस्तु विवेका॥आत्म-अनात्म विवेक, नित्य-अनित्य विवेक, सत्य-असत्य विवेक सारा ज्ञान द्वैतात्मक है—विलोम की स्थिति के बिना कैसे दूसरे पक्ष को जाना जा सकता है। संसार, शरीर और अनात्म विषयों में उलझे मन यह भूल जाते हैं कि यथार्थ साधना अंतःकरण में संपन्न होती है। आत्मा नित्य है, अतः इसका कोई मूल तत्त्व या उपादान कारण नहीं है, आत्मा को आत्म-तत्त्व से ही जान पाना संभव है। परम तत्त्व का अनुसंधान, ब्रह्म विषयक ज्ञान, उस असीम को ससीम से जान पाना संभव नहीं। अंतर्वर्ती अंतश्चेतना का जागरण करते हुए, जीव-जगत्-जन्म में अनावश्यक आसक्ति के प्रति सजग रहते हुए, सर्वत्र शुद्ध भगवद्-दृष्टि पाकर सर्वथा जीवन्मुक्त अवस्था से कैवल्य पाना ही सर्वोत्तम सिद्धि है, जिसका ज्ञान और प्राप्ति ही ‘विवेक-चूड़ामणि’ का कथ्य विषय है।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vivekanand Granthawali
विवेकानन्द ग्रन्थावली : यह शक्ति क्या है जो हमारे शरीर में व्यक्त होती है ? यह हम सब लोगों को प्रकट है कि वह चाहे जो शक्ति हो, वह परमाणुओं को जोड़ बटोर कर हमारे और तुम्हारे शरीर की रचना करने नहीं आता। मैंने यह नहीं देखा कि खाए कोई और तृप्ति हो मुझे। मैं ही अन्न खाकर उसे पचाता हूँ और उसके रस को लेकर रक्त, माँस, मज्जा और अस्थि रूप में उसे परिणत करता हूँ। यह कौन अदभुत शक्ति है ? भूत और भविष्य का भाव ही कितनों के कलेजे को हिला देता है। कितनों का तो केवल कल्पना मात्र जान पड़ते है। वर्तमान काल ही को ले लीजिए। वह कौन सी शक्ति है, जो हमारे भीतर काम कर रही है। हमें यह भी ज्ञात है कि सारे प्राचीन साहित्य में यह शक्ति, शक्ति की यह अभिव्यक्ति जो एक अत्यन्त उज्जवल व प्रकाशमय पदार्थ मानी गई थी, इसी शरीर के आकार प्रकार की थी और इस शरीर के पंचतत्व प्राप्त होने पर रह जाती थी। इसके पीछे धीरे-धीरे यह उच्च गति बदला करती थी। ऐसे लोग जो अपने साथ संसार में बहुत सी आकर्षण शक्ति लेकर आते है, जिनकी आत्मा सैकड़ों और सहस्त्रों में काम करती है, जिनके जीवन दूसरों में आध्यात्मिक अग्नि प्रज्वलित कर देते है, ऐसे लोगो का आश्रय हम सदा से देखते आ रहे है, वही धर्म था। उनमें संचालन शक्ति धर्म के लिए सबसे बड़ा संचालक बल है और उसका प्राप्त करना ही प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्व स्वत्व और स्वभाव है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Vivekanand Ke Sapanon Ka Bharat
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature, इतिहासVivekanand Ke Sapanon Ka Bharat
गुरुभाइयों में सम्मानपूर्वक ‘स्वामीजी’ संबोधन प्राप्त करनेवाले नरेंद्रनाथ दत्त ने ऊहापोह की स्थिति में मठ छोड़कर भारत-भ्रमण करने का मन बनाया। अपने गुरुभाइयों को भी स्पष्ट निर्देश दिया कि अपना झोला उठाकर भारत का मानचित्र अपने साथ लो और भारत-भ्रमण के लिए निकल पड़ो। भारत को जानना एवं भारतवासियों को भारत की पहचान करा देना, यही हमारा प्रथम कार्य है। स्वामीजी ने धीर-गंभीर होकर कहा कि योगी बनना चाहते हो तो पहले उपयोगी बनो, भारतमाता के दुःख व कष्ट को समझो। उसे दूर करने के लिए अपने आपको उपयोगी बनाओ, तभी तो योगी बन पाओगे।
आज की वर्तमान पीढ़ी भी वर्ष 2020 तक विश्व को नेतृत्व प्रदान करनेवाले भारत को अपने हाथों सँवारना चाहती है। भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन, गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, कालेधन की वापसी, राममंदिर-रामसेतु आदि मानबिंदुओं के सम्मान की रक्षा के आंदोलन, आसन्न जल संकट, पर्यावरण, कानून, सीमा-सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द, संस्कार-युक्त शिक्षा, संस्कृति रक्षा, राष्ट्रवादी साहित्य, महिला गौरवीकरण आदि के लिए हो रही गतिविधियाँ भारत निर्माण की छटपटाहट का ही प्रकटीकरण हैं। इन सभी क्रियाकलापों को नेतृत्व प्रदान करनेवाले लोग कम या अधिक मात्रा में स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा पाकर उनके सपनों का भारत बनाने में लगे हैं।
स्वामी विवेकानन्द के सपनों के स्वावलंबी, स्वाभिमानी, शक्तिशाली, सांस्कृतिक, संगठित भारत के निर्माण को कृत संकल्प कृति।SKU: n/a -
RAMAKRISHNA MATH, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vivekananda: Ek Jivani
In the list of biographies of Swami Vivekananda published by us, we have one which extensively narrates his life, and also one which presents him very briefly. The present book stands midway between these extremes. Herein the readers will find his life described in a short compass, without sacrificing the essential details. This is a masterly presentation of his life from the pen of a scholar of repute. A worthy book for all those who want to study Vivekananda in brief without loosing the crucial aspects of his life.
SKU: n/a -
RAMAKRISHNA MATH, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Vivekananda: Ek Sachitra Jivani
RAMAKRISHNA MATH, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांVivekananda: Ek Sachitra Jivani
A wonderful biographical album printed in hight-quality art paper. Contains 233 photographs, arranged chronologically with a life-sketch of Swami Vivekananda, chronological table, write-ups and quotations from Swamiji for each photograph, etc. It includes almost all the available pictures of Swamiji, separate and in group, and many pictures of places and persons connected with him.
SKU: n/a -
English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Waiting for Shiva: Unearthing the Truth of Kashi’s Gyan Vapi
-10%English Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासWaiting for Shiva: Unearthing the Truth of Kashi’s Gyan Vapi
About the Book: Waiting For Shiva: Unearthings The Truth Of Kashis Gyan Vapi Few places in the world carry the heavy burden of history as effortlessly as Kashi, or Varanasi, has. The holy city embodies the very soul of our civilization and personifies the resilience that we have displayed over centuries in the face of numerous adversities and fatal attacks. Waiting for Shiva: Unearthing the Truth of Kashi’s Gyan Vapi recreates the history, antiquity and sanctity of Kashi as the abode of Bhagwan Shiva in the form of Vishweshwara, or Vishwanath. Shiva himself assured his devotees of salvation if they leave their mortal coils in the city.
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Ya Devi Sarvabhuteshu (PB)
दुर्गा सप्तशती तंत्र का मेरुदंड है। इस पुस्तक के सभी मंत्र अमोघ हैं। सुरथ एवं समाधि की कहानी से शुरू हो रही सप्तशती वस्तुतः तेरहवें अध्याय के अंतमें यह बताती है कि दुर्गा का पूजन, उनके माहात्म्य का जप पुण्यदायी है-इहलोक, परलोक सुधारने वाला है। दुर्गा के माहात्म्य को श्रद्धापूर्वक सुनने का परिणाम था कि राजा सुरथ सूर्य के अंश से सावर्णि नामक मनु के रूप में उत्पन्न हुए।
तेरह अध्यायों में शक्ति के भिन्न- भिन्न स्वरूपों का ध्यान किया गया है। ऋग्वेद में अपना परिचय देते हुए शक्ति कहती हैं- अहम् ब्रह्म स्वरूपिणी । शक्ति ब्रह्म से भिन्न नहीं हैं, और उनको समझना उतना ही दुष्कर हैं, जितना ब्रह्म को, पर दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। निःसंदेह शक्ति ही स्वयं में संतुष्ट और कामनाओं से परे ब्रह्म को क्रियाशील करती हैं, अन्यथा शिव निश्चल रहते हैं-
जहाँ भी रचना हो रही है. या विलय हो रहा है, वहाँ शक्ति अवश्य क्रियारत है। निखिल मंत्र विज्ञान में शक्ति के दिग्दर्शन की ओर प्रत्येक साधक को ले जाना हमारा ध्येय है और पुनीत कर्तव्य भी। दुर्गा सप्तशती में निहित आध्यात्मिक रहस्य को यह पुस्तक पाठकों के सम्मुख ‘या देवी सर्वभूतेषु’ के माध्यम से प्रस्तुत करने का विनीत प्रयास है, इस आशा के साथ कि इसे पढ़ने के बाद आप सभी साधकों और पाठकों के मन में शक्ति से संबंधित छाया भ्रमजाल छिन्न-भिन्न हो जाएगा।
SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Yadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणYadavon ka Brihat Itihas (Vol. 1, 2)
यादवों का बृहत इतिहास : “भाग 1 में यादव वंश का उद्भव, हैहय वंश का विस्तार, सूर्य एवं चन्द्र वंशों का प्रसार, आर्यों का निवास स्थान, वैदिक एवं वैदिकोत्तर काल, त्रेता और द्वापर में यादव, श्रीकृष्ण और उनका युग, महाभारत युद्ध का काल, यादव और गणतन्त्र प्रणाली, यादवों का वृज्जि अथवा वज्जि गणराज्य, यादवों का कलिंग साम्राज्य, यादवों का कलचुरि राजवंश, कलचुरिओं का कर्नाटक राज्य, राष्ट्रकुटों (यादवों) का कन्नौज और बदायूं पर शासन, राष्ट्रकूट यादवों का दक्षिण भारत में शासन, सातवाहन यादव, पल्लव यादव : उनका उद्भव, आन्ध्रप्रदेश के पल्लव यादव, केरल के चेर (यादव) शासक, अय व मुषिक और कुलशेखर यादव, यादवों का ट्रावनकोर राज्य, यादवों की सामाजिक स्थिति, दक्षिण भारत में यादव, यादवों का पांड्य वंश, यादवों का होयसल वंश, यादवों की देवगिरी राज्य, यादवों का विजयनगर साम्राज्य, वडियार यादवों का मैसूर राज्य आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
भाग 2 में यादव और आभीर एवं अहीर : व्युत्पति एवं सम्बन्ध, यादव वंश की शाखाएं, श्री कृष्ण के पुत्रों के वंशज, गुजरात के यादव शासक (1472-1947 ई.), यादवों का गुप्तवंश, मौखरी/मौखरिया/महांखरियां वंश : उत्पत्ति एवं राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मांखरिया, मौखरी सम्राट यशोवर्मन और उसके उत्तराधिकारी, यादवों का पाल राजवंश (625-1150 ई.), यादवों का सैहपुर अथवा सिंहपुर का राजवंश, यादवों का जाजम/जादौं/भाटी राजवंश, जैसलमेर राज्य की स्थापना, राज्य का उत्कर्ष और अन्त, यादवों के करौली और ब्रज जनपद राज्य, अहीरों का रेवाड़ी राज्य, यादव जो जाट हो गए, अहीरों का आवास और विस्तार, धार्मिक विश्वास और रीति रिवाज, विभिन्न राज्यों में प्रमुख यादवगण, समकालीन यादव और राजनीति, यादवों की संस्कृति एवं इतिहास को देन आदि शीर्षकों पर जानकारी प्रदान की गई है।
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Yajurveda
यजुर्वेद का मुख्य विषय मानवोचित कर्म को बताना है तथापि यह नहीं कहा जा सकता कि इस वेद में कर्म के अत्यरिक्त कोई अन्य विषय व्याख्यात नहीं हुआ है। यजुर्वेद में इनसे पृथक् ईश्वर, जीव, प्रकृति, सृष्टि-रचना, जीवन-मृत्यु आदि दार्शनिक विषयों पर गहन चिंतन प्राप्त होता है। दार्शनिक तत्व के साथ-साथ समाज शास्त्र जिसमें मनुष्यों के सर्वहितकारी नियम, वर्ण और आश्रम व्यवस्था, नारी सम्मान आदि का मूल, बीज रुप में उल्लेखित है। राष्ट्र भावना का और राष्ट्र में मनुष्यों के योगदान पर यजुर्वेद प्रकाश डालता है और राष्ट्र को सबल बनाने का उपाय बताता है। यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व और उसकी सुरक्षा पर भी उपदेश करता है। यजुर्वेद का मन्त्र “द्यौः शान्तिः.-यजु.36-17” अनेक स्थानों पर दृष्टिगोचर होता है जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड सभी के लिए शान्तिदायक हो ऐसी प्रार्थना की गयी है। यहां शान्तिदायक ब्रह्माण्ड तभी होगा जब इनका संतुलन बना रहे और ये प्रदूषणादि दोषों से पृथक रहें। इस प्रकार यजुर्वेद पर्यावरण के महत्व पर उपदेश करता है। इस वेद में अनेक विषयों का उपदेश है, जैसे औषधिशास्त्र का “सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु”- ऋ.6.22 आदि। गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त पर, जैसे – आकृष्णेन रजसा वर्तमानो..-ऋ.33.43 आदि।
कृषि विद्या पर भी कृषन्तु भूमिं शुनं – यजु.12.69 आदि अनेक मन्त्र हैं। पशुपालन और गौरक्षा का “यजमानस्य पशुन् पाहि”-यजु.1.1 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश हैं। गणित विद्या पर “एका च मे तिस्त्रश्च मे तिस्त्रश्च.”- यजु.18.24 आदि मन्त्रों द्वारा उपदेश है। यजुर्वेद के 18वें अध्याय में अनेक खनिजों के नामों को बताया गया है।
प्रस्तुत भाष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती रचित है। इस भाष्य में ऊपर वर्णित सभी विषयों के अतिरिक्त अन्य विषयों का भी समावेश है। यह भाष्य नैरुक्त प्रक्रिया से सम्पन्न विज्ञान और दर्शनों की कसौटियों पर खरा उतरता है। जहां अन्य भाष्य केवलमात्र कर्मकांड युक्त है, वहीं ये भाष्य लौकिक, अलौकिक आदि ज्ञान-विज्ञान से युक्त है। इस भाष्य में व्यवहारिक ज्ञान की प्रचुरता है। भाष्यकार ने भाष्य में अर्थ प्रमाण की दृष्टि से निरूक्त, अष्टाध्यायी, तैत्तरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण का प्रमाण दिया है, जिससे भाष्य की शैली की प्रमाणिकता सिद्ध होती है। सभी मन्त्रों का उत्तम और जीवन में उपयोगी विषयों के अनुरूप यह भाष्य है। इस भाष्य के अध्ययन करने पर आप स्वयं कह उठेंगे कि “सर्वज्ञानमयो हि सः।
भाष्यकार : महर्षि दयानन्द सरस्वती
सम्पूर्ण यजुर्वेद भाष्य प्रथम बार कंप्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम डिजिटल छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, सुंदर टाइप, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित एक खण्ड में प्रस्तुत |
यजुर्वेद का विषय केवल कर्मकाण्ड ही नहीं है, बल्कि इसमें वर्णित है अध्यात्म एवं दर्शन ,सृष्टि-रचना तथा मोक्ष, नैतिक तथा आचारमूलक शिक्षाएं , मनोविज्ञान बुद्धिवाद, समाज दर्शन , राष्ट्र भावना, पर्यावरण का संरक्षण। काव्य तत्व के अतिरिक्त यजुर्वेद में विद्यमान है, विश्व मानव की एकता जैसे उपयोगी विषय ।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Religious & Spiritual Literature
Yoddha Sannyasi : Vivekanand
”उठिए, जागिए, मेरे देशबंधुओ! आइए, मेरे पास आइए। सुनिए, आपको एक ज्वलंत संदेश देना है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं कोई अवतार हूँ। ना-ना, मैं अवतार तो नहीं ही हूँ। कोई दार्शनिक अथवा संत भी नहीं हूँ। मैं हूँ, एक अति निर्धन व्यक्ति, इसीलिए सारे सर्वहारा मेरे दोस्त हैं। मित्रो! मैं जो कुछ कह रहा हूँ, उसे ठीक से समझ लीजिए। समझिए, आत्मसात् कीजिए और उसे जनमानस तक पहुँचाइए। घर-घर पहुँचाइए मेरे विचार। मेरे विचार-वृक्ष के बीजों को दुनिया भर में बोइए। तर्क की खुरदुरी झाड़ू से अंधविश्वास के जालों को साफ करने का अर्थ है शिक्षा। संस्कृति और परंपरा, दोनों एकदम भिन्न हैं, इसे स्पष्ट करने का नाम है शिक्षा।’ ’
स्वामी विवेकानंद के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में उपर्युक्त कथन के बाद यहाँ कुछ अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा की समस्या, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज-सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, भारत का भविष्य आदि-आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुन: प्राप्त करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामीजी के विचारों का अवगाहन करना होगा।
मूल स्रोतों और शोध पर आधारित यह पुस्तक ‘योद्धा संन्यासी’ हर आम और खास पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।SKU: n/a -
Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, Yoga and Pranayam, ध्यान, योग व तंत्र, बाल साहित्य
Yog Aur Bachpan
Patanjali-Divya Prakashan, Yog Ayurvedic books, Yoga and Pranayam, ध्यान, योग व तंत्र, बाल साहित्यYog Aur Bachpan
This is one of the unique creations of Acharya Balkishna ji which is published after the insistence of teachers, students and guardians of children of each age group from India and abroad. This book is published with beautiful and attractive pictures for children to create interest for yoga and includes the easy steps of yoga asana, pranayama, suryanamaskar and yogic jogging.
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Yogeshwar Krishan
पुस्तक का नाम – योगेश्वर कृष्ण
लेखक – पं. चमूपति जी
वर्तमान समय में हमारे जिस महापुरूष के चरित्र का सर्वाधिक विरूपण स्वयं हमारे समाज के लोगों द्वारा किया गया है वह योगेश्वर कृष्ण हैं। विधर्मियों द्वारा सदियों पूर्व शंका और विष का जो बीज पुराणों की रचना द्वारा बोया गया था उसकी विषबेल आज सबल हो चुकी है जिसके उन्मूलन का कार्य हमारे द्वारा उन महान आत्माओं के वास्तविक चरित्र का अध्ययन और हमारे निकट प्रियजनों, सम्बन्धियों के मध्य उसके प्रचार द्वारा ही संभव है। विभिन्न पुस्तकों और ग्रन्थों का ध्यान-मनोयोग से अध्ययन किया जावे तो किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति को ज्ञात हो जाता है कि योगेश्वर कृष्ण के संबंध में ब्रह्मवैवर्त पुराणादि में उल्लेखित भ्रांतियाँ तथा इसके माध्यम से लोगों में फैली आम जनधारणा निराधार ही है। किन्तु आज जब लोग समयाभाववश ऐसा अध्ययन नहीं कर पा रहे हैं तो योगेश्वर कृष्ण के चरित्र को जानने के लिए यह पुस्तक वर्तमान समय में पढ़ने और प्रचारित करने योग्य हो जाती है। योगेश्वर कृष्ण के वास्तविक चरित्र चित्रण का भरसक प्रयास पं. चमूपति जी द्वारा किया गया है।
प्रस्तुत् पुस्तक में श्री कृष्ण के जीवन चरित्र का चित्रण किया है। इसमें कृष्ण जी की बचपन से लेकर मृत्यु-पर्यन्त घटनाओं का लेखनी के माध्यम से चित्रण किया गया है। कई स्थलों पर महाभारत के प्रमाण देकर कृष्ण चरित्र को प्रामाणिकता प्रदान की है।
आज भारत राष्ट्र के जनमानस को इस प्रकार के सदाचार शिक्षा की आवश्यकता है कि जिससे राष्ट्र का चारित्रिक स्तर ऊँचा उठे, उसे सदाचार की शिक्षा सत्पूरुषों के चरित्र-चित्रण से ही सम्भव है, और उन सत्पुरुषों में मानदंड की भाँति दो ही व्यक्ति आदर्श हैं– मर्यादा पुरुषोत्तम राम और योगेश्वर कृष्ण।
पुराणों में कल्पना का प्रयोग करके श्री कृष्ण जी का चरित्र चित्रण विपरीत कर दिया गया है किन्तु महाभारत तथा अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध तथ्यों के प्रकाश में उनका यह चित्रण कोरी कल्पनाएँ ही प्रतीत होता है। अतः पुस्तक में पुराणोक्त कथाओं के काल्पनिक होने के कारण त्याज्य मानकर उन्हे सम्मिलित नहीं किया गया है। श्रीकृष्ण के यज्ञमयी जीवन चरित्र को जानने के लिए यह पुस्तक प्रकाश स्तंभ का कार्य करती है। इस पुस्तक को vedrishi.com वेबसाईट से प्राप्त किया जा सकता है।
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Yogiraj Shrikrishn
जिस प्रकार श्रीकृष्ण नवीन साम्राज्य-निर्माता तथा स्वराज्यस्रष्टा युगपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए, उसी प्रकार अध्यात्म तथा तत्व-चिंतन के क्षेत्र में भी उनकी प्रवृतियाँ चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुकी थीं। सुख-दुःख को समान समझने वाले, लाभ और हानि, जय और पराजय, जैसे द्वंदों को एक-सा मानने वाले, अनुद्विग्न, वीतराग तथा जल में रहने वाले कमलपत्र के समान सर्वथा निर्लेप, स्थितप्रज्ञ व्यक्ति को यदि हम साकार रूप में देखना चाहें तो वह कृष्ण से भिन्न अन्य कौन-सा होगा?
महाभारत पर आधारित श्रीकृष्ण के महान् लोकहित विधायक जीवन का भव्य चित्रण लालाजी की समर्थ लेखनी से निकला है। पुराणोंवत श्रीकृष्ण चरित की विकृतियों को पृथक् रखकर द्वापर के उस युग विधायक तथा महाभारत के सूत्रधार श्रीकृष्ण कि यह जीवन झांकी आज की परिस्थितियों में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले रही है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
क्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणक्षत्रिय राजवंश | Kshatriya Rajvansh
सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय, भारतीय काल गणना, भारतीय इतिहास, आर्यों की वर्ण व्यवस्था, सूर्य वंश, सोमवंश, चन्द्रवंश, महाभारत की युगीन जनपद, राजपूतों की उत्पत्ति, कछवाहा, राठौड़, गुहिलोत, चौहान, देवड़ा, प्रतिहार, कुमार (कमाष) जेठवा राजवंश, निंकुभ राजवंश, हुल राजवंश, चालुक्य (सोलंकी) राजवंश, तोमर राजवंश, तंवर, गोहिल, गुर्जर, कलचूरी, राष्ट्रकूट, परमार, चावड़ा, यादव, यौधय, मकवाना, शिलाहार, चन्देल, गौड़, कटोच, राजपूत, मुस्लिम राजपूत एवं अन्य राजवंश आदि के राजवंश, राज्य एवं खांपें और ठिकाने, भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन, ब्रिटिशकाल, स्वतंत्र भारत में राजपूत जाति का संगठन, आन्दोलन एवं योगदान, विभिन्न क्षेत्रों में राजपूतों को राजनैतिक योगदान एवं विश्वविख्यात व्यक्तित्व, राजपूतों के विवाह सम्बंध एवं गोत्र प्रवरादि संस्कार, लोकदेवता तंवर शिरोमणि बाबा रामदेव जी का वंशक्रम आदि और भी बहुत कुछ…
SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
चारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
-10%Govindram Hasanand Prakashan, Hindi Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिचारों वेद भाष्य (8 भागों में) – A Complete Set of All Four Vedas in Sanskrit-Hindi
सभी वेदों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। वेद संतप्त मानवों को अपूर्व शांति प्रदान करते हैं। आधि-व्याधि और वासनाओं से विक्षुब्ध मानव-हृदय वेद-मंत्रों का उच्चारण करते हुए आनंदसागर में निमग्न हो जाता है।
वेद क्या हैं-वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है और संपूर्ण विश्व के द्वारा वरणीय है। वेद ज्ञान-विज्ञान के अक्षय कोष हैं। वेद संपूर्ण वैदिक वाङ्मय का प्राण हैं। वेदों में तेज, ओज, और वर्चस्व की राशि है। वेदों में दिग्दिगंत को पावन करने वाले दिव्य उपदेश हैं, मानवता को झकझोरनेवाले अनुपम आदेश और संदेश हैं। वेद में आधिभौतिक उन्नति की चरम सीमा है, आधिदैविक अभ्युदय की पराकाष्ठा है और आध्यात्मिक आरोहण का सवोत्तम रूप है।
हम वेद क्यों पढ़ें-वेद उत्तम मनुष्य बनने और उत्तम संतान पैदा करने का आदेश देते हैं। ऋग्वेद में कहा है-‘मनुर्भव जनया दैव्यं जनम‘। वेद के स्वाध्याय से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में यह बात भली-भाँति बैठ जाती है कि यह संसार परमात्मा द्वारा रचा गया है, जो अद्वितीय है। उससे बड़ा तो क्या उसके बराबर भी कोई नहीं है। वह परमात्मा न्यायकारी है। मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है-यह विचार मनुष्य को पुण्यात्मा, सदाचारी, दयालु, परोपकारी, न्यायकारी, पर-दुःखकातर, निर्भय और मानवता के गुणों से सुभूषित बना देता है।
वेद हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। हमारा अपने प्रति क्या कर्तव्य है, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, परमात्मा के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है-इस सबका ज्ञान हमें वेद से ही प्राप्त होगा। वर्णाश्रम धर्मों का प्रतिपादन भी वेद में सुंदररूप में प्रस्तुत किया गया है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन सभी वर्गों के तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास-इन सभी आश्रमवासियों के कर्तव्यकर्मों का सदुपदेश वेद में विद्यमान है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य का जीवन उदात्त भावनाओं से पूर्ण, नियमित, संयमित और संतुलित बन जाता है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने के लिए वेद का अध्ययन अनिवार्य है। मनुष्य और कुछ पढ़े या न पढ़े, वेद तो उसे पढ़ना ही चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना आर्यों का परमधर्म बतलाया है। हम उनके इसी आदेश का पालन करते हुए वेदों का प्रकाशन किया गया है ताकि वेदों का प्रचार और प्रसार होता रहे।
यह संस्करण कम्प्यूटर द्वारा मुद्रित, शुद्धतम् सामग्री, नयनाभिराम छपाई, आकर्षक आवरण, उत्तम कागज, मजबूत जिल्द, सुन्दर स्पष्ट टाईप, कुल 10400 पृष्ठों में, शब्दार्थ व मन्त्रानुक्रमणिका सहित आठ खण्डों में उपलब्ध है। ऋग्वेद-महर्षि दयानन्द तथा अन्य वैदिक विद्वानों द्वारा, यजुर्वेद-महर्षि दयानन्द, सामवेद-पं. रामनाथ वेदालंकार तथा अथर्ववेद-पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी का भाष्य है।SKU: n/a -
Govindram Hasanand Prakashan, रामायण/रामकथा
बाल्मीकि रामायण- Valmiki Ramayana
स्वामी जगदीष्वरानन्द सरस्वती आर्य जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान्, निरन्तर साहित्य साधना में संलग्न, रामायण के समालोचक एवं मर्मज्ञ लेखक थे।
इस पुस्तक द्वारा आप अपने प्राचीन गौरवमय इतिहास की झांकी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन का अध्ययन, प्राचीन राज्यव्यवस्था का स्वरुप देख सकते हैं।
यदि आप भ्रातृ-प्रेम नारी-गौरव आदर्ष सेवक, आदर्ष मित्र, आदर्ष राज्य, आदर्ष पुत्र के स्वरुपों का अवलोकन या आप रामायण का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं तो यह रामायण अवष्य पढ़ें।
यह ग्रन्थ सैकड़ों टिप्पणियों से समलंकृत सम्पूर्ण रामायण 7000 श्लोकों में पूर्ण हुआ है।
SKU: n/a