इतिहास
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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, इतिहास
BHARAT KE ATEET KI KHOJ
भारत के अतीत की खोज
भारतीय धर्म ग्रंथ यह स्पष्ट संदेश देते हैं कि आधुनिक इतिहासकार जिन्हें भारतीय आर्य कहते हैं वे प्रथमत: हिमालय के उस पार के पर्वतीय अंचल में रहते थे। सीमित संसाधन और बढ़ते जन-घनत्व के कारण यहाँ के लोग हिमालय के इस पार आने और बसने लगे। ये लोग मुख्य रूप से दो शाखाओं में बँटकर दो भिन्न कालों में आये। एक शाखा कश्मीर में (हिमालय के आर-पार) बसी और दूसरी शाखा सरस्वती एवं सिन्धु के मैदानी भागों में जगह-जगह आबाद हुई। इन्हीं लोगों ने तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता को जन्म दिया।
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार 3200-3100 ई.पू. में कश्मीर मंडल में एक महाप्रलय आया और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए। उनमें से एक समूह सरस्वती के पार कुरुक्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किये। समय के साथ इनका राज्य पूरे भारत में फैल गया। इन्हीं लोगों ने सर्वप्रथम अपने को आर्य घोषित किया और इसी वंश के एक प्रतापी राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। इस प्रकार आर्य और भारत दोनो समानार्थी शब्द हैं।
अतएव शब्द आर्य भारत की शाब्दिक सम्पत्ति है, इसे भारतीयों ने जन्म दिया, कभी प्रजाति के अर्थ में प्रयोग नहीं किया, इसे केवल श्रेष्ठता के अर्थ में प्रयोग किया जाता रहा है और इतिहास को इसी अर्थ में इसे संरक्षित करना चाहिए। इसलिए किसी अन्य देश का इसपर कोई दावा नहीं बनता है और न ही किसी इतिहासकार द्वारा किसी भी अन्य देश में आर्यों के मूल स्थान को ढूँढ़ने का आधार प्रदान करता है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Bharat Ke Jaat Ratna
भारत के जाट रत्न
भारत में ऐसे अनेक महापुरुष व विभूतियां पैदा हुई हैं जिन्होंने एक समय में भारत का नेतृत्व किया और लोगों के दिलों में छाप छोड़कर अमर हो गये, उसके भी कृत्यों का लिपिबद्ध किया जाए। also इस कड़ी में प्रथम प्रयास में यहां ‘भारत के जाट रत्न’ नामक पुस्तक में जाट कौम में हुए महापुरुषों के कृत्यों का वर्णन किया गया है, जिनमें लोकदेवता वीरवर तेजाजी, महान् संत धन्ना भक्त, जाट कौम के महान् शासक महाराजा सूरजमल, महाराजा जवाहरसिंह, महारानी किशोरी, महाराजा रणजीतसिंह, गरीबों व किसानों के संरक्षक चौधरी सर छोटूराम, दानवीर चौधरी सेठ छाजूराम, देश की आजादी के लिये मर मिटने वाले रणबांकुरे बाबा शाहमल व राजा नाहरसिंह तथा देश के लिये सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राजा महेन्द्रप्रताप तथा भगतसिंह प्रमुख हैं।
ऐसे महापुरुषों के कृत्य भावी पीढ़ी में त्याग, सामाजिक मूल्यों के प्रति आस्था तथा जातीय गौरव की भावना पैदा करने में मददगार साबित होते है। indeed अतः कौम में ऐसे भाव पैदा करने के लिए आवश्यक है कि ऐसे महापुरुषों के कृत्यों को लिपिबद्ध किया जाए और उसे समाज के सामने प्रस्तुत किया जाए, ताकि उसे पढ़कर आगे आने वाली पीढ़ियां अपने पुरखों पर गर्व कर सकें और यद्यपि ऐसे महान् पुरुष किसी एक जाति विशेष की सम्पत्ति न होकर समूचे राष्ट्र के गौरव होते हैं, but फिर भी इससे कौम में जातीय अतीत के इतिहास में अभिरूचि एवं स्वयं को अपने ऊपर गौरव करने की भावना पैदा होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक में भारत के कुछ महान् नायकों के कृत्यों को लेखबद्ध करके इतिहास के रूप में आपके सम्मुख प्रस्तुत किया है।
accordingly इस पुस्तक को लिखने में प्रामाणिक स्रोतों का ही उपयोग किया है और इसे यथासम्भव पूर्ण प्रामाणिक बनाने का प्रयास किया है। इस पुस्तक को पढ़ने से न केवल हमारी वर्तमान पीढ़ी में गौरव पैदा होगा, बल्कि भावी पीढ़ी में भी उत्साह जागृत होने के साथ ही प्रेरणा मिलेगी और आने वाली संतानें अपने इन पूज्यों को सराहेंगी।
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Hindi Books, Occam (An Imprint of BluOne Ink), इतिहास
Bharat Ke Janjaatiya Krantiveer
भारतवर्ष को दासता के चंगुल से मुक्त कराने व स्वराज की स्थापना करने के लिए देश के असंख्य वीर सेनानियों व क्रांतिकारियों ने अपना जीवन भारत माता के चरणों में समर्पित किया है। किन्तु दुर्भाग्यवश, उनमें से बहुत-से योद्धा ऐसे हैं, जिन्हे मानक इतिहास पुस्तकों में किसी कारणवश उनका यथोचित स्थान नहीं मिल सका। यह बात देश के विभिन्न जनजातीय समुदायों से आने वाले क्रान्तिवीरों के योगदान के विषय में और भी सटीकता से लागू होती है। यह पुस्तक ऐसे ही जनजातीय क्रान्तिवीरों की अल्पज्ञात अमरगाथाओं का यशोगान कर उन्हें जनसामान्य के समक्ष रखने एक छोटा-सा प्रयास है। अदम्य साहस, अतुलनीय शौर्य व अटूट स्वाभिमान से भरी ये कथाएँ न केवल ज्ञानवर्धक हैं, अपितु सभी देशवासियों के लिए महान प्रेरणास्रोत भी हैं। यह पुस्तक मातृभूमि के प्रति निष्ठा व अपने पराक्रम से क्रांति की ज्वाला को अनवरत प्रज्वलित रखने वाले तथा स्वाधीनता की यज्ञवेदी पर अपने प्राणों को होम कर देने वाले महान् जनजातीय क्रान्तिवीरों के प्रति एक विनम्र श्रद्धासुमन है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharat Ke Mahan Swatantrata Senani
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bharat Ke Mahan Swatantrata Senani
“जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ले पा रहे हैं, अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए कुछ कर पा रहे हैं, इसमें कहीं-न-कहीं उन सभी के बलिदान की सुगंध है। इसलिए इन हुतात्माओं को कोटि-कोटि वंदन- अभिनंदन !
शहीदों से जुड़े स्थानों पर जाना, उनको समय-समय पर याद करना व उनको श्रद्धांजलि देना, यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए। आनेवाली पीढ़ियों को अपने गौरवमयी अतीत व हमारे शूरवीरों के महान् जीवन से परिचय करवाना हम सबका धर्म बनता है।
राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करनेवाले हुतात्माओं की एक लंबी श्रृंखला है। उनमें से 50 अमर सपूतों के प्रेरणाप्रद जीवन से पाठकों को परिचित कराने का यह उपक्रम है, जो निश्चित रूप से हर भारतीय को पढ़ना ही चाहिए।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Bharat Ke Pavitra Teerthsthal
तीर्थ का अभिप्राय है पुण्य स्थान, अर्थात् जो अपने में पुनीत हो, अपने यहाँ आनेवालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। तीर्थों के साथ धार्मिक पर्वों का विशेष संबंध है और उन पर्वों पर की जानेवाली तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व होता है। यह माना जाता है कि उन पर्वों पर तीर्थस्थल और तीर्थ-स्नान से विशेष पुण्य प्राप्त होता है, इसीलिए कुंभ, अर्धकुंभ, गंगा दशहरा तथा मकर संक्रांति आदि पर्वों को विशेष महत्त्व प्राप्त है। पुण्य संचय की कामना से इन दिनों लाखों लोग तीर्थयात्रा करते हैं और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों—पवित्र तीर्थस्थलों—का रोचक वर्णन है। ये न केवल आपकी आस्था और विश्वास में श्रीवृद्धि करेंगे, बल्कि आपको मानव जीवन के मर्म का सार भी बताएँगे। पढ़ते हुए आपको साक्षात् उस तीर्थ का दर्शन हो, यह इस पुस्तक की विशेषता है। यदि आपका मन निर्मल है, और हमें विश्वास है कि वह है, तो आप घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य-लाभ प्राप्त करेंगे।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास
Bharat Ke Pratapi Samrat (PB)
Maj (Dr.) Parshuram Gupt
“पुराणों में दिग्विजयी सम्राटों के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। विभिन्न रूपों में आज भी उनके जीवित प्रमाण भारत सहित विश्वभर में बिखरे पड़े हैं। इनकी गौरव गाथाएँ जन-सामान्य की आस्था के केंद्र हैं, जो पग-पग पर उनका मार्गदर्शन भी करती हैं।इस पुस्तक में भगवान बुद्ध के बाद के उन विशिष्ट भारतीय सम्राटों की चर्चा की गई है, जिनकी गौरव-गाथाओं ने काल के कपाल पर अनेक गरिमामय अभिलेख अंकित किए हैं। उनकी दिग्विजयी सेनाओं ने भारत की सीमाओं के बाहर जाकर भी विजय के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन विजयों में धम्म विजय महत्त्वपूर्ण है। सम्राट् अशोक और कनिष्क जैसे सम्राटों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई। विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य,समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, हर्षवर्धन, बप्पा रावल, ललितादित्य, मिहिर भोज, महाराणा प्रताप, महाराणा साँगा, परमार भोज, अनंगपाल, राजेंद्र चोल प्रथम, हेमचंद्र विक्रमादित्य व सम्राट् कृष्णदेव राय की अपनी-अपनी गौरव गाथाएँ हैं।इन्होंने जहाँ अपने भुजबल से संपूर्ण भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बाँधने काप्रयास किया, वहीं इनके घोड़ों के टापों की धमक पेकिंग से लेकर गांधार तक अनुभव की गई। सम्राट् राजेंद्र चोल प्रथम के नौसैनिक बेड़े श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशियाके कई भागों तक पहुँचे और वहाँ भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बने।
भारत के प्रतापी सम्राटों के शौर्य, प्रराक्रम, प्रजावत्सलता, सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का दिग्दर्शन करवाकर गौरवबोध जाग्रत करनेवाली प्रेरक पुस्तक।”
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Hindi Books, Vitasta Publishing, इतिहास
Bharat Ki Shaikshik Dharohar
यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना से बहुत पहले भारत में ज्ञानार्जन के बहु-विषयक केंद्र थे जिन्होंने विश्व भर में ज्ञान क्रांति को बढ़ावा दिया। यह पुस्तक भारत की महान शैक्षिक विरासत को कालक्रमानुसार दर्शाने की आवश्यकता को पूरा करती है। यह पुस्तक उस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करती है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि गुरुओं और आचार्यों द्वारा पीढ़ियों तक छात्रों को ज्ञानार्जन का सौभाग्य मिलता रहे। जैसा लेखिका कहती हैं, “जब तलवारों ने रक्त से अपनी प्यास बुझाई और अकाल ने भूमि को तबाह कर दिया, तब भी भारतीय अपनी प्रज्ञा पर टिके रहे कि ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है।” लेखिका ने वाचिक इतिहास, स्थानीय विद्या, यात्रा वृतांत, उत्तरजीवी साहित्य, शिलालेख, संरक्षित पांडुलिपियों और विद्वानों व जनसाधारण के जीवन वृत्तान्त से जानकारी एकत्र की है। ऐतिहासिक रूप से, यह पुस्तक प्राचीन भारत की परंपराओं से लेकर इसकी विरासत के जानबूझकर विनाश करने तक के एक वृहत् काल को अंकित करती है। यह विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा की वर्तमान संरचना में प्राचीन शिक्षण प्रणालियों के सबसे प्रासंगिक पहलुओं को सम्मिलित करने के लिए आज उठाए जा सकने वाले कदमों की रूपरेखा से भी अवगत कराती है।
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Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat ki Yaadgaar Ghatnayen
एक सभ्यता के नजरिए से भले ही डेढ़ सौ वर्षों की अवधि छोटी लग सकती है, लेकिन जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो दंग रह जाते हैं कि इन डेढ़ सौ वर्षों में हमारे देश को कितने नाटकीय परिवर्तन से होकर गुजरना पड़ा है! इस पुस्तक में इतिहास के ऐसे ही उत्थान-पतन, विजय और त्रासदी को समेटने का प्रयास किया गया है। इस पुस्तक में डेढ़ सौ वर्षों के यादगार लम्हों को प्रस्तुत किया गया है। पाठकों का परिचय ऐसे किरदारों से होगा, जिन्होंने हमारे देश का निर्माण किया। विश्वकप क्रिकेट की विजय से लेकर आर्थिक उदारीकरण तक, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन तक तमाम मील के पत्थरों को इस पुस्तक में समेटा गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Mein Rashtrapati Pranali
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिBharat Mein Rashtrapati Pranali
एक महान् समाज दुर्बल हो रहा है। भारत के नागरिक जीवन की दयनीय स्थिति और अप्रतिष्ठित सरकारी संस्थाओं से जूझ रहे हैं। इसका परिणाम है, वे नैतिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे हैं। इस स्थिति पर शोक मनाने या केवल टिप्पणी करने के बजाय मैंने कुछ ठोस करने का निर्णय लिया। अमरीका में लगभग दो दशक रहने के बाद मैं भारत लौटा और उस प्रदेश के लिए एक दैनिक समाचार-पत्र आरंभ किया, जहाँ मैं रहने जा रहा था। सोच रहा था कि मेरे अखबार में, जो विचार और विवरण सामने आएँगे, वे जनता की राय बदलेंगे। संभवतया ऐसा हुआ भी, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि दोष महज जागरूकता की कमी से कहीं अधिक गहरा था। इसने मेरा संकल्प और मजबूत कर दिया और उसी मंथन का परिणाम है यह पुस्तक। भारत मेरा एकमात्र ध्येय है। मेरी कोई राजनीतिक, वैचारिक या दलगत संबद्धता नहीं है।
यह पुस्तक भारत को बचाने का एक प्रयास है। हर गुजरते दिन, भारत में सरकार की मौजूदा प्रणाली लोगों के आत्मबल और नैतिक चरित्र को नष्ट कर अपूरणीय क्षति पहुँचा रही है। यह पुस्तक मात्र रोग ही नहीं बताती, इलाज सुझाती है। यह भारत को इसके कष्टों से छुटकारा दिलाने का हृदयस्पर्शी प्रयास है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास
BHARAT VIBHAJAN
स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री और ‘लौह पुरुष’ की उपाधि प्राप्त सरदार पटेल कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य थे। पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वतंत्रता आदोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनके संपूर्ण राजनीतिक जीवन में भारत की महानता और एकता ही उनका मार्गदर्शक सितारा रहा। सरदार पटेल दो समुदायों के बीच आंतरिक मतभेद उत्पन्न करके ‘बाँटो और राज करो’ की ब्रिटिश नीति के कट्टर आलोचक थे।
भारत की एकता को बनाए रखना उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को अपनी योजना घोषित की। इसमें बँटवारे के सिद्धांत को स्वीकृति दी गई। इस योजना को कांग्रेस और मुसलिम लीग ने स्वीकार किया। सरदार पटेल ने कहा कि उन्होंने विभाजन के लिए सहमति इसलिए दी, क्योंकि वह विश्वसनीय रूप से समझते थे कि ‘(शेष) भारत को संयुक्त रखने के लिए इसे अब विभाजित कर दिया जाना चाहिए। ‘
सरदार पटेल के विस्तृत पत्राचार के आधार पर प्रस्तुत पुस्तक में भारत विभाजन किन परिस्थितियों में और किन-किन कारणों से हुआ, भारतीय नेताओं की मनःस्थिति तथा तत्कालीन समाज की मन :स्थिति का साक्ष्यों के प्रकाश में विस्तृत वर्णन किया गया है । भारत विभाजन के काले अध्याय का सप्रमाण इतिहास वर्णित करती एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Vibhajan Aur Pakistan Ke Shadyantra
इतिहास बताता है कि ऐसे राष्ट्र:: जो अपने हालिया अतीत को याद नहीं रखते:: उनके यहाँ उसी त्रासदी की पुनरावृत्ति का खतरा उत्पन्न हो जाता है:: जिसके दौर से कोई पीडि़त राष्ट्र गुजर चुका होता है। इसीलिए कहा गया है कि वर्तमान परिदृश्य को सही ढंग से समझने के लिए इतिहास में झाँकना जरूरी है। हम देश विभाजन की विभीषिका को कभी भूल नहीं सकते। दरअसल भारत विभाजन भारत की आजादी से भी बड़ी घटना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत को तो देर-सवेर आजाद होना ही था।
अंग्रेजों के महाषड्यंत्र की उपज पाकिस्तान ने वजूद में आते ही भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। पाकिस्तान ने भारत के साथ आमने-सामने की लड़ाइयों में कामयाबी नहीं मिलने पर जनरल जिया की रणनीति के अनुसार भारत को हजार जख्मों से लहूलुहान करने की नीति अपनाई:: जिसका वह आज भी अनुसरण कर रहा है। लेकिन नफरत और खूंरेजी से उत्पन्न यह मुल्क उसी नफरत और खून-खराबे का शिकार हो गया है:: जिसमें उसका जन्म हुआ था। षड्यंत्ररचनाशास्त्र और आतंकवाद में पाकिस्तान के आकाओं ने जो महारथ हासिल की है:: उसकी तह में जाने की जरूरत है।
तथ्यान्वेषण पर आधारित यह पुस्तक पाकिस्तान की सोच और उसकी कारस्तानियों को समझने में उपयोगी सिद्ध होगी। इससे यह भी पता चलेगा कि किस प्रकार पाकिस्तान अपने ही कपाल पर हथौड़ा मार रहा है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Bharat Vibhajan Ka Dansh
“14 अगस्त, 1947 को विभाजन का दंश एक कभी न भरनेवाला घाव दे गया। भारतभूमि का ही एक टुकड़ा लेकर ‘पाकिस्तान’ नामक इसलामिक राष्ट्र घोषित करनेवाले कट्ïटरपंथी नेताओं ने उस भूखंड पर बहुत समय पहले से ही रहते चले आए भारतीयों को, विशेषकर हिंदुओं और सिखों को जबरदस्ती भारत भेजने का फरमान सुना दिया। उनके सामान लूट लिये गए, जमीनें वहीं छूट गईं, स्त्रियों-बच्चियों के साथ पापाचार हुए; पुरुषों, स्त्रियों की हत्या करके उनके शव ट्रेनों में भरकर भारत की ओर रवाना कर दिए गए।
भारत के विभाजन ने मानवता की ही हत्या नहीं की थी, विचारों की भी हत्या की थी। यदि 15 अगस्त को मिली आजादी एक ऐतिहासिक घटना है तो 14 अगस्त को विभाजन की त्रासदी एक ऐतिहासिक दुर्घटना है।‘भारत-विभाजन का दंश’ रोंगटे खड़े कर देनेवाली, भीतर तक उद्वेलित और आंदोलित कर देनेवाली मार्मिक औपन्यासिक कृति है, जिसके लेखन का एक उद्देश्य यह भी है कि आगे आनेवाली पीढिय़ाँ समझें कि किस तरह से आदमी से आदमी के रिश्ते को उन्माद और आतंक रौंदता आ रहा है। जब नई पीढिय़ाँ उस आतंक और उन्माद को समझेंगी, तभी उनके उन्मूलन का स्थायी मार्ग भी मिलेगा; विभाजन का सच भी पता चलेगा और विभाजन की व्यर्थता भी। तभी पता चलेगा आक्रांताओं के साथ संबंध का ऐतिहासिक झूठ भी और तभी बढ़ उठेंगे पग घर वापसी की ओर भी।”
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Harper Collins, Hindi Books, इतिहास
Bharat Vikhandan
भारत विखण्डन एक पुस्तक है जो भारत और इसकी विविध संस्कृति के भीतर अव्यक्त क्षमता के पक्ष में बोलती है। यह तर्क देता है कि तीन प्रमुख पश्चिमी संस्कृतियों द्वारा देश की अखंडता को पतला किया जा रहा है और इस प्रक्रिया के परिणाम पर चर्चा करता है। यह पुस्तक प्रसिद्ध द्रविड़ आंदोलन की उत्पत्ति की जांच करती है जिसने हमारे देश की विशाल संस्कृति को आकार दिया, जबकि दलित पहचान और इसकी वर्तमान स्थिति पर भी ध्यान दिया। यह भी कहा गया है कि पुस्तक मुख्य रूप से स्वतंत्र भारत के अधीनता, निगरानी और तोड़फोड़ पर केंद्रित है। भारत विखण्डन आधुनिक भारत में बदलते रुझानों को बारीकी से देख रहा है और इसके विकास और अंततः कमजोर पड़ने के कारणों पर सवाल उठा रहा है। हमारी प्राथमिकताओं और निष्ठाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करते हुए राष्ट्र के लिए एक वेकअप कॉल है। इसकी ऐतिहासिक और संघर्षपूर्ण सामग्री के लिए प्रशंसा की गई है, जबकि उन कठोर सच्चाइयों से इनकार करने से इनकार किया जाता है, जिन पर चर्चा करने की आवश्यकता है।
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Bharat-Pak Sambandh
भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में कुछ अनुमान अकसर लगाए जाते हैं-पहला, भारत व पाकिस्तान में आम लोग एक- दूसरे के संपर्क में आना चाहते हैं, लेकिन सरकारें इसे रोकती हैं; दूसरा, भारतीयों और पाकिस्तानियों की नई पीढ़ी पुराने पूर्वाग्रहों को तोड़ सकती है; तीसरा, सांस्कृतिक व बौद्धिक संपर्क के समर्थन से सामान्य आर्थिक व तकनीकी सहयोग आपसी संबंधों में सुधार ला सकता है ।
यह पुस्तक इन अनुमानों की उपयुक्तता की जाँच करने का महत् प्रयास करती है । अब तक विभाजन की यादें धुँधली होती नहीं दिखीं, न ही पूर्वग्रहों से मुक्ति मिली है । पाकिस्तान भारत के साथ आर्थिक संबंधो के बारे में गंभीर आशंकाओं से ग्रस्त है, क्योंकि उसे डर है कि एक बड़े पड़ोसी द्वारा उसका शोषण किया जा सकता है और उसे दबाया जा सकता है । यह अनुमान लगाना तार्किक होगा कि सूचना-क्रांति तथा आर्थिक भूमंडलीकरण पाकिस्तान और भारत को अपनी प्रवृत्तियाँ व नीतियों बदलने के लिए विवश कर सकते हैं ।
किंतु ये पूर्वानुमान 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के बाद नाटकीय तरीके से बदल गए । दो माह बाद भारतीय संसद् पर आक्रमण के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव चरम सीमा पर पहुँच गया । अब जनरल मुशर्रफ एक दुविधापूर्ण स्थिति में हैं । यदि उन्हें सत्ता में रहना है तो वह अपने देश में इसलामी कट्टरपंथियों का एक सीमा से अधिक विरोध नहीं कर सकते । दूसरी ओर, उन्हें धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद से खुद को अलग करने के अमेरिका के नेतृत्ववाले अंतरराष्ट्रीय दबाव का ध्यान भी रखना है । अत: प्रतीत होता है, भारत-पाकिस्तान संबंध एक और जबरदस्त घुमाववाले मोड़ पर पहुँच चुके हैं ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Bharatbodh: Sanatan Aur Samayik
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Bharatbodh: Sanatan Aur Samayik
“भारत केवल भौगोलिक रचना या भूखंड मात्र नहीं है, न तो भारतबोध मात्र इतिहास से बनता है । वस्तुत: भारतबोध एक सनातनबोध की प्रक्रिया है, जो नित्य और निरंतर, इन दोनों के साथ गुंफित होता है। नित्यता से शाश्वत मूल्य आते हैं तो निरंतरता से समय के साथ उनका समंजन होता है। भारतबोध राष्ट्रीयता है, संस्कृति है और धर्म भी है। भारतबोध पद से जो अर्थ अभिहित होता है–वह सनातन और निरंतर सभ्यता की जीवन-प्रणाली की अभिव्यंजना है।
भारतीयता का विचार, भारतबोध का प्रश्न इस रूप में समझा जा सकता है कि यह कृतज्ञता की संस्कृति है और कृतज्ञता का प्रारंभ इस मान्यता, इस विश्वास के साथ होता है कि हम कुछ ऋणों के साथ उत्पन्न हुए हैं । हमने इस धरती में जन्म लेने के साथ ही समाज का, धरती का, परिवार का, शिक्षकों का, आचार्यों का ऋण प्राप्त किया है और वास्तविक मुक्ति हमें तब होगी, जब हम इन ऋणों से मुक्त होंगे; और इससे ऋण मुक्ति का तरीका इतना ही है कि हमें मनुष्य बनना है; न तो यह सभ्य बनने की प्रणाली है और न ही यह जीनियस बनने की । भारत धर्म भी है और यह धर्म उपासना-पंथों से परे भी । यह धर्म मानवीय मूल्यों का पुंज है।
भारतबोध की दृष्टि से इस पुस्तक में कुछ सूत्रों की चर्चा है और कुछ सूत्रों का आज के परिप्रेक्ष्य में पल्ल्वन भी है। समकाल के भारत की भूमिका को उभारने की कोशिश की गई है और समकाल के भारत के लिए, भारत में जन्म लिये हुए लोगों को किस प्रकार की जीवन प्रणाली को स्वीकार करना है; किस मूल्य-व्यवस्था को स्वीकार करना है, इस पर किंचित् विवेचन किया गया है.”
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BHARATIYA GYAN KA KHAZANA
दविंची कोड और एंजल्स एंड डेमन्स जैसे विश्वप्रसिद्ध उपन्यास लिखनेवाले डेन ब्राउन का एक उपन्यास है—द लॉस्ट सिंबल। इसमें उपन्यास का नायक अपने विद्वान् और वयोवृद्ध प्राध्यापक से प्रश्न पूछता है—मानव जाति ज्ञान हासिल करने के पीछे लगी है। यह ज्ञान प्राप्त करने का आवेग प्रचंड है। यह प्रवास हमें कहाँ लेकर जाएगा? अगले पचास-सौ वर्षों में हम कहाँ होंगे? और कौन सा ज्ञान हम प्राप्त करेंगे?
वे प्राध्यापक, उपन्यास के नायक को उत्तर देते हैं—यह ज्ञान का प्रवास, जो आगे जाता दिख रहा है, वह वास्तव में आगे नहीं जा रहा है। यह तो अपने पूर्वजों द्वारा खोजे हुए समृद्ध ज्ञान को ढूँढ़ने का प्रयास है। अपने पास प्राचीन ज्ञान का इतना जबरदस्त भंडार है कि आगे जाते हुए हमें वही ज्ञान प्राप्त होनेवाला है। वे प्राध्यापक इस संदर्भ में भारतीय ज्ञान परंपरा का उल्लेख करते हैं।
और फिर पीछे मुड़कर जब हम देखते हैं, तो ज्ञान की जो बची-खुची शलाकाएँ दिखती हैं, उन्हें देखकर मन अचंभित सा हो जाता है। इतना समृद्ध ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था…!
उसी अद्भुत और रहस्यमयी ज्ञान के कपाट खोलने का छोटा सा प्रयास है यह पुस्तक ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’।SKU: n/a