जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Showing 265–288 of 334 results
-
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shaheed-E-Watan Rajguru
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी शिवराम हरि राजगुरु का जन्म सन् 1908 में पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही पिता का निधन हो जाने के कारण बहुत छोटी उम्र में ही वे विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने वाराणसी आ गए थे। वहीं उन्होंने हिंदू धर्म-ग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही, ‘लघुसिद्धांत कौमुदी’ जैसा क्लिष्ट ग्रंथ बहुत कम समय में कंठस्थ कर लिया था। राजगुरु को कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के वे बड़े प्रशंसक थे।
वाराणसी में राजगुरु का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ। वे चंद्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए। आजाद के संगठन के अंदर उन्हें ‘रघुनाथ’ के छद्म नाम से जाना जाता था। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। सांडर्स का वध करने में उन्होंने भगतसिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया, जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भाँति उन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की।
23 मार्च, 1939 को भारत माँ के वीर सपूत राजगुरु भगतसिंह व सुखदेव के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में फाँसी पर झूलकर मातृभूमि पर बलिदान हो गए।SKU: n/a -
Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
SHASTRI KE SAATH KYA HUA THA?
Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रSHASTRI KE SAATH KYA HUA THA?
जब ललिता शास्त्री ने अपने पति का पार्थिव शरीर देखा, तो ऐसा नहीं लगा कि वो कुछ घंटे पहले ही स्वर्ग सिधारे थे। उनका चेहरा सूजा हुआ था और नीला पढ़ गया था। शरीर बुरी तरह फूल गया था। पेट और गर्दन पर कटने के निशान थे। कपडे और चद्दर खून से सने हुए थे, लेकिन परिजनों के शक जताते ही किसी ने अचानक से आकर शास्त्री जी के चेहरे पर चन्दन का पीला लेप लगा दिया। यह सब करने के बाद भी शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े संदेहों को छुपाया नहीं जा सका। क्या उनकी मृत्यु प्राकृतिक थी या उन्हें जहर दिया गया था? आने वाले वक्त में अमेरिकी और सोवियत रूसी खुफिया विभाग के साथ कुछ भारतीय भी सवालों के घेरे में आए।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shastriji Ke Prerak Prasang
कथा-कहानियाँ सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य का मार्ग-दर्शन करती रही हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ प्राचीन काल से हमारा मार्गदर्शन करती चली आ रही हैं।
प्रत्येक कहानी के लिए कथावस्तु का होना अनिवार्य है, क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहानी में केवल मनोरंजन ही नहीं होता, उसमें कोई उद्देश्य और संदेश भी निहित होता है।
जीवन में सादगी और सरलता का बहुत महत्त्व है। हमारी परंपरा में वर्णित है ‘सादा जीवन, उच्च विचार’। सादगी हमारे व्यक्तित्व को जो आभा प्रदान करती है, वह आडंबर या दिखावा नहीं। यह सादगी हमें आत्मविश्वास, शक्ति और आत्मबल देती है। इन्हीं जीवनमूल्य को समेटे, सादगी की महत्ता बताती प्रेरणाप्रद कहानियों का संकलन।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shatabdi Ke Dhalte Varshon Mein
प्रश्नाकुल अनुभव से जन्मे निर्मल वर्मा के ये निबन्ध पिछले चार दशकों के दौरान लिखे गये निबन्धों और लेखों का स्वयं उनके द्वारा किया गया चयन है। इनमें स्वयं अपने बारे में और साथ ही सांस्कृतिक अस्मिता के बारे में रचनाकार के आत्ममंथन की प्रक्रिया ने रूपाकार ग्रहण किया है। एक ऐसी पीड़ित किन्तु अपरिहार्य प्रक्रिया जो ‘अन्य’ के सम्पर्क में आने पर ही शुरू होती है।…ये निबन्ध ‘अन्य’ से कायम किये गये उस नये रिश्ते की भी पहचान कराते हैं, जिसमें आत्मनिर्वासन की जगह आत्मबोध रहता है। समाज, संस्कृति और धर्म आदि शुद्ध साहित्यिक प्रश्नों के अलावा कुछ विशिष्ट रचनाकारों पर भी निर्मल वर्मा ने दृष्टि केन्द्रित की है। जीवन जगत के इतने कगारों को उनकी व्यापकता में छूते हुए ये निबन्ध अपने पाट की चौड़ाई से ही नहीं, मोती निकाल लाने की लालसा में गहरे डूबने के प्रयास से भी पाठक को आकर्षित और प्रभावित करते हैं। बीसवीं शताब्दी के वैचारिक उतार-चढ़ावों को पारदर्शी दृष्टि से अंकित करने वाले ये निबन्ध स्वयं निर्मल वर्मा की लम्बी चिन्तन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को पहली बार एक सम्पूर्ण संकलन में समेटने का प्रयास हैं।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shivaji-Guru Samarth Ramdas
मुगल शासनकाल में समर्थ गुरु रामदास मुगलों के अत्याचार, अनाचार और अराजकता से आहत थे। जब वे चौबीस वर्ष के थे, तब भारत भ्रमण के लिए निकले; उस समय पूरा उत्तर भारत औरंगजेब के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें यह एहसास हुआ कि ‘धर्म-संघटन और लोक-संघटन’ होगा तब ही राष्ट्र परतंत्रता से मुकाबला कर सकता है। धर्म-संघटन के लिए ईश्वर संकीर्तन और उसपर श्रद्धा अटूट रखनी होगी; और लोकसंघटन करके लोकशक्ति जाग्रत् करनी होगी।
रामदास स्वामी भारत भ्रमण करके महाराष्ट्र पहुँचे तो उन्हें सुखद समाचार मिला। शहाजी राजा तथा जीजाबाई के सुपुत्र शिवाजी ने महाराष्ट्र में दो-चार किले मुसलिमों से जीतकर स्वराज्य का शुभारंभ किया था।
रामदास स्वामी योद्धा संन्यासी थे। श्री समर्थ रामदास स्वामी प्रभु श्रीराम के परम भक्त थे। उन्होंने राम-राज्य की कल्पना मन में ठान ली थी। शिवाजी महाराज के रूप में वह कल्पना सत्य हो रही थी। लोक जागृति करने का महान् कार्य करते समय उन्होंने राष्ट्रधर्म, हिंदूधर्म और स्वराज्य की भावना लोगों में जाग्रत् की। उन्होंने ग्यारह सौ मठों की स्थापना की। चौदह सौ महंतों को दीक्षा दी। 1632 से 1644 तक वे भारत भ्रमण कर रहे थे। वे हिमालय से कन्याकुमारी तथा लंका तक गए।
समर्थ गुरु रामदास के त्यागमय, प्रेरणाप्रद, तपस्वी जीवन का दिग्दर्शन कराता पठनीय उपन्यास, हमारी सुप्त सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत् करने में समर्थ होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shivkamini Mahadevi Ahilyabai(PB)
दिव्य मातृशक्ति, वीर माताओं, आध्यात्मिक नारियों व वीरांगनाओं कीअग्रणी पंक्ति को आलोकित करने वाली देवी अहिल्याबाई होल्कर की सोचकी व्यापकता ही तो थी, जो उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी भारतभर के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों, पवित्र नदी घाट, कुओं और बावड़ियों का निर्माणकरवाया, मार्ग बनवाए व उनका पुनर्निर्माण कराया, भूखों के लिए अन्नक्षेत्रखोले, प्यासों के लिए प्याऊ लगाए, मंदिरों में शास्त्रों के मनन-चिंतन औरप्रवचन हेतु विद्वानों की नियुक्ति की तथा आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याणकरके सदा न्याय करने का प्रयास अपने आखिरी क्षणों तक करती रहीं । अपनेजीवनकाल में ही जनता इन्हें देवी मानकर पूजने लगी थी |
धर्मानुराणी व प्रजावत्सल लोकमाता अहिल्याबाई के यशस्वी जीवन कीगौरवणाथा है यह पुस्तक |
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shri Guruji : Prerak Vichar (Hindi)
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Shri Ramakrishna Paramhansa
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांShri Ramakrishna Paramhansa
There was a priest in Kali Maa’s temple at Dakshineshwar, who remained immersed in divine devotion during his entire lifetime. This book presents his life-story and teachings.
From his childhood till the time that he left his mortal body, his life was replete with various incidents that convey the depth of devotion. These incidents have been narrated with their deeper connotation in this book. This book relates the saga of how human life can go through highs and lows to attain its highest potential.
Written in a simple and lucid manner, this book reveals the hidden deep knowledge behind the conversations between the master, Shri Ramakrishna Paramhansa and his disciples that paved the way to the formation of the Ramakrishna Mission.
Shri Ramakrishna’s honest attitude and his pristine wisdom have the power of awakening devotion in people even today. This book unravels the mysteries behind his peculiar ways, bringing forth the profound wisdom hidden behind his idiosyncrasies.
Let us read the life of this epitome of divine devotion and awaken the thirst for the truth and faith in the divine essence.SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Shuttle Ki Rani P.V. Sindhu Ki Biography
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणShuttle Ki Rani P.V. Sindhu Ki Biography
चिडि़यों की उड़ान नौ साल की उम्र में पी.वी. सिंधु ने खेल-खेल में एक विजिटिंग
कार्ड डिजाइन किया था, जिस पर लिखा था—बैडमिंटन अर्जुन अवार्डी। चौबीस साल की
उम्र में उन्होंने अपनी अलमारी में सन् 2020 के ओलंपिक स्वर्ण पदक के लिए एक
स्थान खाली रखा था। ‘शटल की रानी’, इन दो चरणों के बीच उनके सफर की कहानी
है।
जब वह रेलवे कॉलोनी से प्रशिक्षण मैदान तक प्रतिदिन पचास
किलोमीटर से अधिक की यात्रा करती थीं, तो सिंधु का एक ही सपना था—भारत की
सर्वश्रेष्ठ बैडमिंटन खिलाड़ी बनना। वॉलीबॉल, जो उनके माता-पिता का खेल था, उसकी
चर्चा डिनर टेबल पर हुआ करती थी, लेकिन स्पोर्ट्स आइकन पुलेला गोपीचंद उनके
आदर्श थे। ऐसे समय में जब साइना नेहवाल एक उभरती हुई स्टार थीं, सिंधु भी उन्हीं
की अकादमी में शामिल हुई और इस फैसले ने उनकी जिंदगी बदल दी। आज वह एक ओलंपिक
रजत पदक विजेता, पद्मभूषण और फोर्ब्स द्वारा जारी दुनिया की सबसे अधिक पैसा
कमाने वाली एथलीटों की सूची में शामिल होनेवाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं।
उन्होंने भारी पराजय के झटके और जोश भरने वाली जीत के साथ विश्वप्रसिद्ध
प्रतिद्वंद्विता भी देखी। फिर भी वह एक ऐसी लड़की हैं, जिन्हें फिल्मों, शरारतों
और मैसूर पाक से प्यार है।
‘शटल की रानी’ पुस्तक बताती है कि
कैसे दिग्गज बैडमिंटन खिलाडि़यों की हताशा युवा पीढ़ी के लिए एक परिवर्तनकारी
बदलाव लेकर आई; क्यों भारत में खेल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एक ही शहर हैदराबाद
से आते हैं और इन सबसे बढ़कर, कितने परिश्रम, त्याग और संघर्ष के बाद एक
विश्व-विजेता खिलाड़ी तैयार होता है।
SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Sidharth
1946 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक हरमन हेस का यह विश्वप्रसिद्ध उपन्यास है। अनेक भाषाओं में अनूदित इस छोटे-से उपन्यास का विश्व साहित्य में बहुत बड़ा दर्जा है। खुद को खोजने की अन्तरयात्रा की यह कहानी भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। कहानी है गौतम बुद्ध के ज़माने में सिद्धार्थ नामक युवक की जो ज्ञानोदय की तलाश में अपने घर-बार को छोड़कर निकल जाता है। इस यात्रा के दौरान सिद्धार्थ को किस प्रकार के अलग-अलग अनुभव होते हैं यही सब इस उपन्यास में दर्शाया गया है। मूलतः जर्मन भाषा में लिखा यह उपन्यास 1960 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुआ।
SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Subhash Chandra Bose
स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिदूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था।
बचपन से ही सुभाष पढ़ाई में बड़े कुशाग्र बुद्धि के थे। इंग्लैंड से पढ़ाई करके लौटने पर सुभाष कलकत्ता के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ काम करना चाहते थे। उन दिनों गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ रखा था। उनके साथ सुभाष बाबू उस आंदोलन में सहभागी हो गए और जल्द ही देश के एक महत्त्वपूर्ण युवा नेता बन गए।
सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो कलकत्ता में सुभाष बाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष बाबू गांधीजी और कांग्रेस के तौर-तरीकों से असहमत थे। गांधीजी के विरोध के बावजूद वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, पर कार्यकारिणी का सहयोग न मिलने पर उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया। नजरबंदी में ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर वे जापान पहुँचे और आजाद हिंद फौज की स्थापना की। उन्होंने नारा दिया—‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’ उन्होंने भारत की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। सुभाष की राष्ट्रभक्ति बेमिसाल है। उनकी मृत्यु के बारे में अभी तक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि 23 अगस्त, 1945 को उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। राष्ट्रनायक सुभाष बाबू आज भी अदम्य प्रेरणा के स्रोत हैं।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Subhash Chandra Bose Ki Adhoori Atmkatha
सुभाषचंद्र बोस की ‘भारत की खोज’; जवाहरलाल नेहरू की तुलना में उनके जीवन में काफी पहले ही हो गई; यानी उन दिनों वे अपनी किशोरावस्था में ही थे। वर्ष 1912 में पंद्रह वर्षीय सुभाष ने अपनी माँ से पूछा था; ‘स्वार्थ के इस युग में भारत माता के कितने निस्स्वार्थ सपूत हैं; जो अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर इस आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं? माँ; क्या तुम्हारा यह बेटा अभी तैयार है?’’ 1921 में भारतीय सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर वह आजादी की लड़ाई में कूदने ही वाले थे कि उन्होंने अपने बड़े भाई शरत को पत्र लिखा; ‘‘केवल बलिदान और कष्ट की भूमि पर ही हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।’’ दिसंबर 1937 में बोस ने अपनी आत्मकथा के दस अध्याय लिखे; जिसमें 1921 तक की अपनी जीवन का वर्णन किया था और ‘माई फेथ-फिलॉसोफिकल’ शीर्षक का एक चिंतनशील अध्याय भी था। सदैव ऐसा नहीं होता कि जीवन के बाद के समय में लिखे संस्मरणों को शुरुआती; बचपन के दिनों की प्राथमिक स्रोत की सामग्री के साथ पढ़ा जाए।
बोस के बचपन; किशोरावस्था व युवावस्था के दिनों के सत्तर पत्रों का एक आकर्षक संग्रह इस आत्मकथा को समृद्ध बनाता है। इस प्रकार यह ऐसी सामग्री उपलब्ध कराता है; जिसकी सहायता से उन धार्मिक; सांस्कृतिक; नैतिक; बौद्धिक तथा राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है; जिनसे भारत के इस सर्वप्रथम क्रांतिधर्मी राष्ट्रवादी के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Super 30 Anand Ki Sangharsh-Gatha
पटना में एक निम्न मध्यम परिवार में जनमे आनंद कुमार को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है। उनकी ‘सुपर 30’ नाम की संस्था गरीब बच्चों को आई.आई.टी. प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाती है। ‘सुपर 30’ की स्थापना वर्ष 2002 में हुई और अब तक 390 में से 333 विद्यार्थी आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा में सफल रहे। चाहे दिहाड़ी मजदूर का बेटा हो या फिर ऑटो ड्राइवर की बच्ची, बिजली मिस्त्री का बेटा हो या फिर फेरी लगानेवाले की बेटी, निर्धन-से-निर्धन परिवार के विद्यार्थियों को भी आई.आई.टी. में प्रवेश दिलाने का श्रेय आनंद कुमार को जाता है।
‘सुपर 30’ के विद्यार्थियों को वे अपने साथ रखते हैं और वे उनसे कोई फीस नहीं लेते बल्कि उनके रहने-खाने का खर्च भी खुद ही वहन करते हैं। आनंद कुमार ‘सुपर 30’ के लिए कोई भी सरकारी एवं गैर सरकारी वित्तीय मदद नहीं लेते। अब तक देश-विदेश के बड़े-से-बड़े उद्योगपतियों ने उन्हें आर्थिक मदद की बात कही, लेकिन उन्होंने आदरपूर्वक मना कर दिया।
उन्हें अनेक देशी-विदेशी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इन्होंने एम.आई.टी., हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, टोकियो, ब्रिटिश कोलंबिया जैसे कई बड़े विश्वविद्यालयों के अलावा देश-विदेश के बड़े संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं। उन पर अनेक वृत्तचित्र और फिल्में बनाई गई हैं। बावजूद इसके अहंकार आनंद को छू भी नहीं पाया है। जीवन के आरंभ से ही चुनौतियों से जूझनेवाले आनंद कुमार आज भी स्वयं आगे बढ़कर चुनौतियों को चुनते हैं और अपनी जिजीविषा, अदम्य इच्छाशक्ति और सादगी के बल पर उन्हें पार भी कर लेते हैं। अभी हाल में ही ‘क्वीन’ फेम फिल्म निर्देशक विकास बहल ने उनके जीवन पर एक फिल्म बनाने की घोषणा की है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Swarkokila Lata Mangeshkar
स्वर सामाज्ञी, स्वरकोकिला, नाइटिंगेल ऑफ इंडिया और संगीत की देवी के रूप में प्रसिद्ध लता मंगेशकर की आवाज का पूरी दुनिया में कोई सानी नहीं। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत लता मंगेशकर की आवाज में भारत का दिल धड़कता है। विदाई गीत हो या ममता भरी लोरी, मंगल वेला हो या मातमी खामोशी, उन्होंने हर भावना को अपने सुरों में ढालकर लोगों के मन की गहराईयों को छुआ है। उनकी आवाज में माँ की ममता, नवयौवना की चंचलता, प्रेम की मादकता, विरह को टीस, बाल-सुलभ निश्छलता, भक्त की प्रुकार और स्त्री के तमाम रुपों के दर्शन होते हैं।
जीते जी किंवदंती बन चुकी लता मंगेशकर ने 36 भाषाओं में 30,000 से अधिक जीत गाए हैं। उनका यह जलवा मधुबाला, नर्गिस से लेकर जीनत अमान, काजोल और माधुरी दीक्षित तक बरकरार रहा। उन्होंने शास्त्रीय, सुगम, भजन, गजल, पॉप-सभी प्रकार के गायन में अपने सुरों का लोहा मनवाया।
उनकी आवाज की यह खूबी है कि वे सुरों के तीनों सप्तकों-मंद्र, मध्य और तार में बड़ी सहजता से गा लेती हैं। उनकी लोकप्रियता देश की सीमा लाँघ विदेश तक भी जा पहुँची है। इसका कारण यह है कि वे जो भी गाती हैं, दिल से गाती हैं हर गीत में वे ऐसी आत्मा भर देती हैं, जो सीधे दिल में उतर जाता है। एक वाक्य में कहें तो-भारत के लिए ईश्वर का वरदान हैं लता मंगेशकर।
इस पुस्तक में स्वरकोकिला लता मंगेशकर की संगीतमय जीवन-यात्रा का वर्णन है, जिसमें अथक संघर्ष है और सफलता के शिखर तक पहुँचने की कहानी भी।
रोचक शैली में लिखी गई यह जीवन-जाथा पठनीय तो है ही, प्रेरणा देनेवाली भी है।
SKU: n/a