Fiction Books
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Vani Prakashan, अन्य कथा साहित्य, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास
Patna Khoya Hua Shahar
अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले बुद्ध ने पाटलिपुत्र की महानता की भविष्यवाणी की थी। कालान्तर में पाटलिपुत्र मगध, नन्द, मौर्य, शुंग, गुप्त और पाल साम्राज्यों की राजधानी बनी। पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात प्राचीन पटना की स्थापना 490 ईसा पूर्व में मगध सम्राट अजातशत्रु ने की थी। गंगा किनारे बसा पटना दुनिया के उन सबसे पुराने शहरों में से एक है जिनका एक क्रमबद्ध इतिहास रहा है। मौर्य काल में पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया था। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्यों के वक़्त से ही विदेशी पर्यटक पटना आते रहे। मध्यकाल में विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई। यह वह वक़्त था जब पटना की शोहरत देश की सरहदों को लाँघ विदेशों तक पहुँच गयी थी। यह मुग़ल काल का स्वर्णिम युग था। पटना उत्पादन और व्यापार के केन्द्र के रूप में देश में ही नहीं विदेशों में भी जाना जाने लगा। 17वीं सदी में पटना की शोहरत हिन्दुस्तान के ऐसे शहर के रूप में हो गयी थी, जिसके व्यापारिक सम्बन्ध यूरोप, एशिया और अफ्रीका जैसे महादेशों के साथ थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ब्रिटिश इण्डिया में पटना और उसके आसपास के इलाकों में शोरा, अफीम, पॉटरी, चावल, सूती और रेशमी कपड़े, दरी और कालीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। पटना के दीघा फार्म में तैयार उत्पादों की जबरदस्त माँग लन्दन के आभिजात्य लोगों के बीच थी। विदेशी पर्यटक और यात्री कौतूहल के साथ पटना आते। उनके संस्मरणों में तत्कालीन पटना सजीव हो उठता है। इस पुस्तक में उनके संस्मरण और कई अन्य रोचक जानकारियाँ मिलेंगी।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Paul Ki Tirth Yatra
ऐसी क्या खासियत है पति पत्नी के रिश्ते में जो दोनों के जीवन में इंद्रधनुषी रंगों की बहार तो बिखेरती है , लेकिन भारतीय मूल की नीना और उसके डेनिस पति , पॉल ,डेनमार्क में अपना सुखी जीवन व्यतीत कर रहे होते है . जब अचानक ……ऐसी ही परतो , यादो और साथ सहे सुख दुःख के ताने बाने को बुनता यह दिल को छु लेने वाला उपन्यास बहुत लम्बे समय तक पाठको के मन में मीठी टीस छोड़ता है .
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Rajpal and Sons, उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Pawan Putra
देश में महाबली हनुमान के मंदिर बिखरे पड़े हैं और सभी भारतीय ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ भी करते हैं परन्तु कितने हैं जो उनके जीवन तथा इतिहास से ज़रा भी परिचित हैं? यह उपन्यास उनके जीवन को बहुत विस्तार से प्रस्तुत करता है और इसमें वह सब कुछ उपलब्ध है जो हनुमानजी के सम्बन्ध में किसी भी धर्मग्रन्थ में लिखा गया है। अपने विषय का अकेला आदि से अन्त तक पठनीय उपन्यास।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Peetambara
यह उपन्यास मीरा के जीवन के विविध रूपों और आयामों को अत्यन्त रोचकता से चित्रित करता है। कृष्णदीवानी मीरा पर आधारित यह उपन्यास प्रचलित भ्रान्तियों का निवारण करने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करता है। उपन्यास में जो कुछ लिखा गया है वह इतिहास ही है जिसमें चरित्रों एवं घटनाओं को यथासम्भव सही परिप्रेक्ष्य में रखा गया है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
Pehla Sanatan Hindu (PB)
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)Pehla Sanatan Hindu (PB)
Pehla Sanatan Hindu “”पहला सनातन हिंदू”” Book in Hindi- Ratneshwar
हम कौन हैं ? हमारे पूर्वज कौन थे ? हमनेकब, कैसे और किसकी प्रार्थना शुरूकी ? पहला सनातन हिंदू कौन है ? ये कुछसहज सवाल हमारे मन में उठते रहते हैं । हालके दिनों में गल्फ ऑफ खंभात (गुजरात) कीगहराइयों में हिमयुग के समय की बत्तीसहजार साल पुरानी कुछ सभ्यता-सामग्री केऐसे अवशेष मिले, जिससे हमें अपने प्रश्नों केजवाब मिलते दिखने लगे। विज्ञानियों-पुराविदों के नबीन शोध और खोज को केंद्र मेंरखकर महायुग उपन्यास-त्रयी लिखी गई है।“पहला सनातन हिंदू” तीन उपन्यासों कीश्रृंखला का तीसरा उपन्यास है।
उन दिनों संसार में साभ्यतिक-सांस्कृतिक विकास के साथ कई नवीन प्रयोगहुए । संसार में इन्हीं लोगों ने पहली बार पत्थरोंका घर, नौका, हिमवाहन के साथ विविधआग्नेय-अस्त्रों का निर्माण किया । पहली बारईश्वर की अवधारणा के साथ प्रार्थना शुरू हुई ।पहले प्रेम के साथ संसार का पहला ग्रंथ उन्हींदिनों लिखा गया। परिवार की अवधारणा केसाथ संसार के पहले राज्य की स्थापना हुईऔर संसार को पहला सम्राट मिला ।
परग्रहियों ने होमोसेपियंस के डी.एन.ए.का पुनर्लेखन किया। कुछ विज्ञानियों औरपुराविदों ने क्रोनोवाइजर सिद्धांत के आधार परसमुद्र की गहराइयों से जीरो पॉइंट फील्ड मेंसंरक्षित ध्वनियों को संगृहीत कर उन्हें फिल्टरकिया। कड़ी मेहनत के बाद उनकी भाषा कोडिकोड किया गया और उसे इंडस अल्ट्राकंप्यूटर पर चित्रित किया गया। उनकीआवाजों से ही बत्तीस हजार साल पहले कीपूरी कहानी सामने आई।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Pheriwala Rachnakar
आत्मकथा ईमानदारी माँगती है, जिसे यहाँ बखूबी निभाया गया है। जहाँ-जहाँ इस लेखक में कमजोरियाँ नजर आईं, पूरी ईमानदारी से उसने स्वीकार किया। लेखकीय जीवन के वे राज भी बयाँ हुए हैं, जिन्हें एक उम्र तक कलम की नोक तले दबाकर रखा गया। ‘कृष्ण की आत्मकथा’ का यह रचनाकार अपनी आत्मकथा में भी उन्हीं योगेश्वर के आशीर्वाद की प्रतिध्वनि सुनता नजर आया है, वरना अपनी आँखों से उस युग की तस्वीर कैसे देख सकता था, जिसे कृष्ण ने भोगा था। उस संत्रास का कैसे अनुभव कर सकता था, जिसे उस युग ने झेला था। उस मथुरा को कैसे समझ पाता, जो भगवान् कृष्ण के अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर सिर्फ एक पैर से चली। उस दुखी ब्रज के प्रेमोन्माद को कैसे महसूस करता, जो कृष्ण के वियोग में विरहाग्नि बिखेर रही थी।
जिंदगी के इस महाभारत में लेखक जयी हुआ या पराजित, इसका उत्तर सिर्फ समय के पास है। मगर यह आत्मकथा इस बात की गवाह है कि यह लड़ाई उन्होंने पूरी शिद्दत, ईमानदारी और पराक्रम से लड़ी।
मनु शर्मा की यह आत्मकथा फेरीवाला रचनाकार कृष्ण तथा अन्य चरित्रों की आत्मकथाओं की तरह पाठकों के हृदय में स्थान बनाएगी। पूरी शिद्दत और आत्मीयता के साथ पढ़ी जाएगी, इसमें कोई संशय नहीं है। आत्मकथाओं की शृंखला में एक और पठनीय आत्मकथा।मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Phoolon Ki Boli
सिद्ध : ताँबे के चूर्ण को मल्लिका की आँच यानी अपनो सखो माया की सहायता से किसी बड़ी आँच में पिघलाकर पलाश के पत्तों के रस से मिला दिया जाय और फिर मुचकुंद का संयोग किया जाय तो चोखा सोना बन जाएगा।
कामिनी : मुचकुंद का संयोग क्या और कैसा?
सिद्ध : बस, स्वर्ण-रसायन में इतनी ही पहेली और है, थोड़ी देर में बतलाता हूँ; परंतु सोचता हूँ पहले हीरे-मोती बना दूँ। अपना सारा स्वर्ण लाओ।
दोनों : बहुत अच्छा।
( दोनों जाती हैं और थोड़ी देर में अपना सब गहना लेकर आ जाती हैं।)
सिद्ध : (गहनों को देखकर) तुम्हारे गहनों में कोई हीरे तो नहीं जड़े हैं?
कामिनी : नहीं, सिद्धराज।
माया : नहीं, महाराज।
सिद्ध : कोई मोती?
कामिनी : बहुत थोड़े से।
माया : मेरे पास तो बिलकुल नहीं हैं।
सिद्ध : कुमुदिनी, तुम अपने मोती गिन लो।
-इस पुस्तक से
स्वर्ण-रसायन के मोह और लोभ में हमारे देश के कुछ लोग कितने अंधे हो जाते हैं और सोना बनवाने के फेर में किस तरह अपने को लुटवा डालते हैं, यह बहुधा सुनाई पड़ता रहता है। वर्माजी ने उज्जैन के नगरसेठ व्याडि तथा कुछ अन्य के स्वर्ण-मोह और एक ठग सिद्ध एवं उसके शिष्य की कथा को आधार बनाकर यह नाटक लिखा है। निश्चय ही यह कृति पाठकों का भरपूर मनोरंजन करेगी।SKU: n/a -
Vani Prakashan, कहानियां
Pichhli Garmiyon Mein
निर्मल वर्मा बार-बार अपनी रचना-संवेदना के परिचित दायरों की ओर वापस लौटते हैं। हर बार चोट की एक नयी तीव्रता के साथ लौटते हैं और जितना ही लौटते हैं, उतना ही वह कुछ जो परिचित है और भी परिचित, आत्मीय और गहरा होता जाता है। अनुभव के ऊपर की फालतू परतें छिलती जाती हैं और रचना अपनी मूल संवेदना के निकट अधिक पारदर्शी होती जाती है। निर्मल वर्मा की रचना की पारदर्शी चमड़ी के नीचे आप उस अनुभव को धड़कते सुन सकते हैं, छू सकते हैं। यह अनुभव बड़ा निरीह और निष्कवच है। आपको लगता है कि यह अपनी कला की पतली झिल्ली के बाहर की बरसती आग और बजते शोर की जरब नहीं सह पाएगा। – मलयज
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
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Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Pratham Aur Antim Mukti
प्रथम और अंतिम मुक्ति’ में जे. कृष्णमूर्ति की अंतर्दृष्टियों का व्यापक व सारगर्भित परिचय तथा उनमें सहभागिता का चुनौती-भरा निमंत्रण प्राप्त होता है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के विविध सरोकारों का समावेश इस एक पुस्तक में उपलब्ध है जो अंग्रेज़ी पुस्तक ‘द फस्र्ट एंड लास्ट फ्रीडम’ का अनुवाद है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1954 में हुआ था लेकिन आज भी यह पुस्तक कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है। कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के सघन अध्ययन में एक और आयाम जुड़े, इसी अभिप्राय से यह संस्करण प्रस्तुत है।
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Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Prem Kya Hai, Akelapan Kya Hai
जिसे हम प्रेम कहते-समझते हैं, क्या वह सच में प्रेम है? क्या अकेलेपन की वास्तविक प्रकृति वही है जिसका अनुमान हमें डराता है और हम उससे दूर भागते रहते हैं, और इस कारण जीवन में कभी भी उस एहसास से हमारी सीधे-सीधे मुलाकात नहीं हो पाती? दैनिक जीवन के निकष पर इन दो सर्वाधिक आवृत प्रतीतियों के अनावरण का सफर है: ‘प्रेम क्या है? अकेलापन क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति के शब्दों में अधिष्ठित निःशब्द से रहस्यों के धुँधलके सहज ही छँटते चलते हैं, और जीवन की उजास में उसकी स्पष्टता सुव्यक्त होती जाती है। ‘मन जब किसी भी तरकीब का सहारा लेकर पलायन न कर रहा हो, केवल तभी उसके लिए उस चीज़ के साथ सीधे-सीधे संपर्क-संस्पर्श में होना संभव है जिसे हम अकेलापन कहते हैं, अकेला होना। किंतु, किसी चीज़ के साथ संस्पर्श में होने के लिए आवश्यक है कि उसके प्रति आपका स्नेह हो, प्रेम हो।’
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