Vishwavidyalaya Prakashan
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kashi Ke Vidyaratna Sanyasi [PB]
काशीस्थ मनीषियों ने वेदान्त के प्रसार तथा प्रचार के निमित्त जो कार्य किया, वह वेदान्त के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित करने योग्य है। तथ्य तो यह है कि वेदान्त की सार्वभौम मौलिक रचनाओं के निमित्त दार्शनिक समाज काशी के विद्वानों का चिरऋणी रहेगा। इस अभिनव प्रयास में विरक्त संन्यासियों तथा अनुरक्त गृहस्थों, दोनों का स?िमलित योगदान सदैव श्लाघनीय तथा स्मरणीय रहेगा। विद्वान् संन्यासियों के रचनाकलाप का अनुशीलन करने से एक विशिष्ट तथ्य की अभिव्यक्ति होती है और वह है ज्ञानमार्गी ग्रन्थों के प्रणयन के साथ ही भक्तिमार्गी ग्रन्थों का निर्माण। आदि शङ्कïराचार्य ने काशी को अपनी कर्मस्थली बनाकर उसे गौरव ही प्रदान नहीं किया, अपितु उस प्राचीन पर?परा का भी अनुसरण किया जो विद्वानों से अपने सिद्धान्तों के परीक्षण तथा समीक्षण के लिए काशी में आने के लिए आग्रह करती थी। काशीस्थ विद्वानों का अद्वैत के प्रति दृढ़ आग्रह और अद्वैतविषयक ग्रन्थों के प्रणयन के प्रति नैसॢगक निष्ठा बोधग?य है। यहाँ विशिष्ट वेदान्त-तत्त्वज्ञ संन्यासियोंं का ही संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है—श्री गौड़ स्वामी, श्री तैलंग स्वामी, स्वामी भास्करानन्द सरस्वती, स्वामी मधुसूदन सरस्वती, श्री देवतीर्थ स्वामी, स्वामी महादेवाश्रम, स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती, स्वामी ज्ञानानन्द, स्वामी करपात्रीजी, दतिया के स्वामीजी, स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती। ‘अद्वैतसिद्धि’ के प्रणेता श्री मधुसूदन सरस्वती एक साथ ही प्रौढ़ दार्शनिक तथा सहृदय भक्त दोनों थे। ‘अद्वैतसिद्धि’ जैसे प्रमेयबहुल ताॢकक ग्रन्थ के निर्माण का श्रेय जहाँ उन्हें प्राप्त है, वहीं ‘भक्तिरसायन’ जैसे भक्तिरस के प्रतिष्ठापक ग्रन्थ की रचना का गौरव भी उन्हें उपलब्ध है। चतुर्दशशती के वेदान्तज्ञ संन्यासियों में स्वामी ज्ञानानन्द का विशिष्ट स्थान था। आज भी करपात्रीजी महाराज की, जहाँ कट्टïर अद्वैत के प्रतिपादन में ताॢकक बुद्धि का विलास मिलता है, वहीं ‘रासपञ्चाध्यायी’ के विशद अनुशीलन में तथा ‘भक्तिरसार्णव’ जैसे भक्तिरस के संस्थापक ग्रन्थ के निर्माण में उनका भक्तिरसाप्लुत स्निग्ध हृदय भी अभिव्यक्त होता है। काशी के अद्वैती संन्यासियों की यह परमपरा आज भी जागरूक है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (Chapter II) Tattva-Bodhini
(श्रीकुल्लूकभट्ट प्रणीत ‘मन्वर्थ मुक्तावलीÓ तथा मेधातिथि प्रणीत अनुभाष्य सहित) भारत एक धर्मप्राण देश है। इस धर्म का प्रतिपादक मनुस्मृति एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी लोकप्रियता ही इसकी उपयोगिता को प्रकट करती है। हमारे प्राचीनकाल के महॢष अपने गम्भीर चिन्तन एवं गहन अनुशीलन के लिए विख्यात रहे हैं। महॢष मनु उसी शृंखला में एक कड़ी है जिनकी सुप्रसिद्ध कृति है—मनुस्मृति। आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य अपना आध्यात्मिक एवं नैतिक बल खो चुका है। उसके चरित्र-बल का ह्रïास हो चुका है और वह अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय कत्र्तव्यों के प्रति प्रमादग्रस्त हो गया है। अत: मानव को सच्चे अर्थ में मनुष्य की कोटि में लाने के लिए, उसे सदाचार-बल का सम्बल देने के लिए, सामाजिक कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक बनाने के लिए, मातृ-पितृ एवं आचार्य के प्रति अपने दायित्वों का बोध कराने के लिए, आत्मस्वरूप से परिचित कराकर मोक्ष लाभ के लिए, पुरुषार्थ चतुष्ट्य का सम्पादन कराने के लिए, पातकों से मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं मुक्त होकर विशुद्ध जीवन जीने के लिए, पाशविक बन्धन से मुक्त होने एवं आत्मस्वरूप से परिचित होने के लिए, मानसिक सुख-शान्ति के लिए एक आदर्श मानव-समाज एवं राज्य की स्थापना के लिए आज मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ के परिशीलन की महती अपेक्षा है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, अन्य कथा साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Meghadoot : Kalidas
कवि कालिदास की काव्य-कृतियों में मेघदूत काव्य को विशेष महत्त्व प्राप्त है। इसमें करुण-रस का अनुपम सौन्दर्य है। मन्दाक्रान्ता छन्द में लिखे गये इस काव्य को दो खण्डों में विभाजित किया गया है—पूर्वमेघ और उत्तरमेघ। पूर्वमेघ में काव्य-सौन्दर्य के साथ ही भारत का भौगोलिक-सौन्दर्य भी प्रकाशित है। प्रकृति का मनोरम चित्र, कवि की सूक्ष्म दृष्टि, भावुकता और कल्पना का संयोग पूर्वमेघ की विशेषता है। उत्तरमेघ का कथ्य अत्यत मर्मस्र्पशी है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Neeb Karoli Ke Baba
घोर कलियुग की इस बीसवी शताब्दी मे भी भारत भूमि पर अनेक ऐसे सत –महात्माओं ने जन्म लिया जिनका मूल उद्देश्य सभवत मानव समाज का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपकार करना ही था । ऐसे संत –महात्माओं को इसीलिए अवतारी पुरुष कह सकते हैं क्योकि इन्होने भगवान राम और कृष्ण की ही तरह पृथ्वी का भार हल्का किया और अपने भक्तो का असीम उपकार किया ।
वैसे तो बाबा का विराट् स्वरूप है इनके लीला –कौतुक भी अगणित है, इन पर साहित्य भी प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है तो भी हमे बाबा की जिस छवि के दर्शन हुए तथा इसके फलस्वरूप जो सुख प्राप्त हुआ उसका कुछ अंश ही सही अपने पाठको तक पहुँचाने के लिए हम् प्रयत्नशील है ।
सिद्धि माँ की असीम कृपा की अनुभूति हम इस क्षण प्रत्यक्ष रूप रवे कर रहे हैं । उन्हीं के आशीर्व्राद से यह प्रयास सभव हुआ है ।
हम उन महानुभावो के प्रति भी आभार व्यक्त करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं जिनके संस्मरणों का उल्लेख हमने इस पुस्तिका मे किया है ।
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Parashuram (Epic)
कविवर श्यामनारायण पाण्डेय आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक श्रेष्ठ वीर काव्य प्रणेता के रूप में विख्यात थे। ‘हल्दीघाटी’ और ‘जौहर’ जैसे वीर-रस प्रधान प्रबन्ध काव्यों की रचना करके आपने प्रभूत यश अॢजत किया। प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य परशुराम इसी परम्परा में रचित एक उत्कृष्ट कृति है। कवि ने तेईस सर्गों के इस सांस्कृतिक महाकाव्य में भृगुवंशावतंस भगवान् परशुराम को नायक के रूप में अवतरित किया है, प्रतिनायक है हैहय वंशी प्रतापी सम्राट सहस्रार्जुन। सहस्रार्जुन को कवि ने एक धर्म-विध्वंसक, अनाचार-रत, लोक-पीड़क, मदान्ध एवं निरंकुश शासक के रूप में चित्रित किया है। हैहयवंशी सहस्रार्जुन शक्तिमद से उन्मत्त होकर आश्रम संस्कृति प्रधान आर्य धर्म को समूल विनष्ट करने पर तुला हुआ था। भृगुवंशी परशुराम ने बिखरी हुई आश्रम-शक्ति को संघटित किया और अपने नेतृत्व में अत्याचारी सहस्रार्जुन का वध करके आर्य-धर्म की ध्वजा फ हरायी।
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Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Sankshipt Hindi Shabdakosh
‘संक्षिप्त हिन्दी शब्दकोश’ संक्षिप्त होते हुए भी बहुत उपयोगी है। शब्दों की संख्या बड़े कोशों से कम है, परन्तु इससे कोश की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती। शब्दकोश की सभी अपेक्षाओं को यह पूरा करता है। प्रख्यात कोशकार डॉ० हरदेव बाहरी के ‘हिन्दी शब्दकोश’ का प्रस्तुत संक्षिप्त संस्करण इसी उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है। इसमें वे सभी हज़ारों शब्द अकारादि क्रम में प्राप्त हो जाएंगे जिनका प्रतिदिन जीवन में उपयोग होता है। इनके सभी प्रचलित अर्थ सरल भाषा में तथा उनसे बचने वाले मुहावरे इत्यादि भी दिए गए हैं। अन्त में अनेक उपयोगी परिशिष्ट हैं जिनकी निरन्तर आवश्यकता पड़ती रहती है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोश
Siddharth Students Paryayvachi Evam Viparyay Kosh
Vishwavidyalaya Prakashan, भाषा, व्याकरण एवं शब्दकोशSiddharth Students Paryayvachi Evam Viparyay Kosh
छात्रों के दृष्टिïकोण को ध्यान में रखकर यह कोश बनाया गया है। चाहे निबंध लेखन हो, चाहे काव्य रचना हो और चाहे अंत्याक्षरी प्रतियोगिता हो, हर समय हर छात्र को उपयुक्त पर्यायों की तलाश रहती ही है। उसका काम जब किसी सरल या सीधे-सादे शब्द से नहीं चलता तो वह ङ्क्षककर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह कोश उसके सम्मुख उपयुक्त पर्याय प्रस्तुत करता है, जिनमें से वह इच्छानुरूप किसी को चुन सकता है।
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Vishwavidyalaya Prakashan, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Smritiyon Mein Rajneeti Aur Arthashastra
स्मृतियां वेदों की व्याख्या हैं, अत: हिन्दू-जनमानस में इन्हें वेदों जैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। आचार, व्यवहार और प्रायश्चित खण्डों में विभक्त स्मृतियाँ हिन्दू-जीवन के आचार-शास्त्र के रूप में समादृत रहीं हैं। स्मृतियों के आचार-पक्ष पर तो शोध और स्वतंत्र पुस्तकों के रूप में पर्याप्त कार्य विद्वानों ने सम्पन्न किया है, पर व्यवहारपक्ष पर, जिसका सम्बन्ध विशेषत: राजनीति और अर्थशास्त्र से है, अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया गया है। जबकि स्मृतियों में निरूपित राजनीतिक, आर्थिक-सिद्धान्त हजारों वर्ष तक भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के मेरुदण्ड रहे हैं। यही नहीं, इन सिद्धान्तों को यत्किंचित परिवर्तन-संशोधन के साथ वर्तमान युग में अपनाना श्रेयस्कर ही नहीं, अपितु भारतीयता को पृथक पहचान के लिए आवश्यक भी है।
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Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tibbat Ka Agyat Gupt Matha
Religious & Spiritual Literature, Vishwavidyalaya Prakashan, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियांTibbat Ka Agyat Gupt Matha
प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त रहस्यमय योगिसिद्ध विभूति श्री शंकर स्वामी जी की अनुभूति का उनके ही शब्दों में अवतरित वाङ्मय स्वरूप है। वे इस जागतिक आयाम के निवासियों को इस ग्रंथ के माध्यम से उस इन्द्रियातीत जगत् की ओर उन्मुख होने का एक संदेश दे रहे हैं। इस ग्रन्थ में जो कुछ अंकित है, वह उनके प्रत्यक्ष (मंदार महल में लेखक श्रीमत् स्वामीजी के कायाशोधन संस्कार, नागार्जुन कृत आत्मिक गवेषणागार, प्राय: दो हजार वर्ष प्राचीन सिद्धाश्रम के पारिजात महल में युत्सुंग लामाजी का काया परित्याग एवं श्रीमत् स्वामीजी की आत्मा के त़ड़ित वेग से भूलोक की परिधि दिक्मंडल को पार कर नक्षत्रलोक की ओर धावमान के वृत्तांत आदि ) पर आधारित है। इसमें किञ्चित भी कल्पना का लेश नहीं है। आशा है कि वे इसी तरह अपने अलौकिक अनुभवों को ग्रंथरूप में सँजोकर भारत तथा विश्व के जिज्ञासुओं एवं सत्यान्वेषी लोगों को अनुप्राणित करते रहेंगे।
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Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tibbat Ka Rahasyamayi Yog wa Alaukik Gyanganj
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, बौद्ध, जैन एवं सिख साहित्य, संतों का जीवन चरित व वाणियांTibbat Ka Rahasyamayi Yog wa Alaukik Gyanganj
बौद्ध इस स्थान को ‘शम्भाला’ कहते हैं। तिब्बत के लामाओं द्वारा निदेर्शित / संचालित सामान्य मानवीय ज्ञान, अनुभव, तर्क, समझ से परे भावातीत, लोकोत्तर इस शान्तिदायक घाटी को पश्चिम में ‘शांग्री-ला’ के नाम से जाना जाता है। भारतीयों के लिए यह ज्ञानपीठ ‘ज्ञानगंज’ है-अनश्वर, शाश्वत, अमर सत्ता (लोगों) की रहस्मयात्मक, अद्भुत, आश्चर्यजनक आध्यात्मिक दुनिया।
श्रीमत् शंकर स्वामीजी द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक अपने आप में अतुलनीय, अनुपम, अद्वितीय है क्योंकि आज तक अनेकानेक आध्यात्मिक महात्माओं ने इस अद्भुत स्थान का भ्रमण किया है किन्तु किसी ने भी अपने भ्रमणोपरान्त अनुभव के आधार पर ऐसा विलक्षण यात्रावृत्तान्त नहीं लिखा जैसा श्रीमत् शंकर स्वामी जी ने लिखकर इस पुस्तक के रूप प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक ‘ज्ञानगंज’ व तत्सम्बन्धी योग पर जिज्ञासु पाठकों की अतृप्त जिज्ञासा को किंचित् शान्त कर सकेगी।‘अलौकिक’, इस शब्द का अर्थ तो बहुत से लोग जानते होंगे, लेकिन ऐसे लोग बिरले ही होंगे, जिन्होंने इसे अनुभव किया हो। इस जगत् में ऐसे व्यक्तियों की संख्या भी कम होगी, जो अलौकिक शब्द की गूढ़ता और उसके रहस्य को अनुभव न करना चाहते हो। उत्तराखण्ड के वारणावत शिखरधाम स्थित आश्रम के महाराज श्रीमत् शंकर स्वामी महाराज ने अपनी इस पुस्तक में कई बार इस बात का उल्लेख किया है कि उन्होंने अस्वाभाविक परिस्थितयों में अपनी चेतना को विलुप्त होता पाया। चेतना तभी लौटी, जब वे उन परिस्थितयों से बाहर आ चुके थे। अपने साथ घटित घटनाओं को जब उन्होंने शब्दों में पिरोना शुरू किया तो उनके अन्तर्मन के वे भाव भी मानों साकार होते चले गये, जिन्हें उन्होंने ज्ञानपीठ ज्ञानगंज की सम्पूर्ण यात्रा के दौरान अनुभव किया था। यही वजह है कि शान्त और गहन वातावरण में गम्भीरतापूर्वक इस पुस्तक का अध्ययन करने पर हमारे अन्तर्मन में वे शब्द उतरने लगते है और उनमें निहित अलौकिकता का आभास दे जाते है।
जो भी व्यक्ति अलौकिक जगत् के प्रभाव, उनके एहसास का अनुभव करना चाहते है, उन्हें श्रीमत् शंकर महाराज की इस पुस्तक का अध्ययन, मनन-चिन्तन अवश्य करना चाहिए। महाराज ने वही लिखा है, जो उनके साथ घटित हुआ है, जिसे उन्होंने अनुभव किया है, यही कारण है कि उनका लेखन पढ़ने के दौरान हमारी आँखों के सामने चलचित्र सा दिखलाई पड़ता है। लगता है कि हम पुस्तक नहीं पढ़ रहे हैं, पुस्तक में वर्णित घटनाओं में प्रवेश कर रहे हैं।
यह ग्रन्थ स्वनामधन्य शंकर स्वामी की तिब्बत यात्रा का एक आभास मात्र कहा जा सकता है। उनकी यह यात्रा ऐसी अलौकिक तथा रहस्यमयी रही है, जिस पर सामान्य बुद्धि हठात् विश्वास नहीं कर सकती, तथापि जो तत्त्ववेत्ता हैं तथा रहस्यमयी घटनाओं से दो-चार हो चुके है, उनकी विमल प्रज्ञा में ऐसी घटनायें प्रकृति की ही एक लीला के रूप में मान्य एवं विश्वस्त रूप से प्रकट होती रहती है। उनको इस सम्बन्ध में कोई आश्चर्य तथा संशय का तनिक भी आभास नहीं होता। युग-युगान्तर से यह सब होता चला आया है, आगे भी होता रहेगा। प्रकृति की अनन्त क्रीड़ा में प्रतिक्षण ऐसे विस्मय तथा आश्चर्य का उन्मेष होता रहता है। इनको संशयात्मक दृष्टिकोण से न देख कर अनुसंधान तथा विज्ञान के अन्वेषक के रूप में देखना उचित होगा।प्रस्तुत पुस्तक में तिब्बत के रहस्यमय मठ ज्ञानगंज का वर्णन है। इस सम्बन्ध में किंचित् प्रकाश प्रक्षेपण मैंने अपने ग्रन्थ ‘रहस्मयमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान’ में किया था, तथापि वह सुनी-सुनाई तथा यत्र-तत्र से संकलित बातों पर आधारित था। यह पुस्तक पूर्णत: ‘आंखिन की देखी’ पर आधारित यथार्थपरक है। इस ज्ञानगंज के सम्बन्ध में पूज्य गुरुदेव महामहोपाध्याय डा. गोपीनाथ जी कविराज से मैंने सुना था।
पूज्य स्वामी जी द्वारा वर्णित ज्ञानगंज कोई कपोल कल्पना नहीं है। वह यथार्थ तथा प्रामाणिक स्थल है, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन करके पूज्य स्वामीजी ने इस पुस्तक के रूप में वहाँ का घटनाक्रम जनसाधारण हेतु प्रस्तुति किया है। यह श्लाघनीय प्रयत्न स्तुत्य भी है।SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, ध्यान, योग व तंत्र
Tibbat Ki Wah Rahasyamayi Ghati
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, ध्यान, योग व तंत्रTibbat Ki Wah Rahasyamayi Ghati
कथा-सार— एक अति अविश्वसनीय आश्चर्य। एक हजार साल तक सर्पणी की काया में रहने के बाद एक नागिन का कायाकल्प और वह भी एक सुन्दर युवती के रूप में! सहज ही विश्वास नहींं हो रहा था मुझको। —नागमोहिनी विद्या कापालिक ने मोहनचन्द के जन्म के समय ही वचन दिया कि उसकी रक्षा करेगा। उसी मोहनचन्द की सौतेली माँ ने हत्या करवा दी। इतना ही नहीं उसके आदेश पर मोहनचन्द का शव चिता पर रख कर आग भी लगा दी गयी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद देखा गया तो शव चिता पर से गायब था। आखिर क्या हो गया। — कापालिक अद्भुत शक्ति थी उस माला में गुंथी मूर्ति में। वह आगामी घटनाओं के बारे में पहले ही स्वप्न में सूचना दे देती थी। उसकी शक्ति से क्या से क्या हो गया? लेकिन सफलता के मद में एक ऐसी भूल हो गयी जिसने सब कुछ उलट-पुलट दिया। —चमत्कारी मूर्ति क्या मैं तुमसे एक बात पूछ सकता हूँ? मैंने कहा। पूछिये। पाखी ने जवाब दिया। क्या तुम सचमुच में डायन हो? तुम्हें लोग जादूगरनी कहते हैं। क्या यह बात सच है? —क्या वह डायन थी? प्रतिमा के ठीक सामने एक बड़ा-सा त्रिकोण हवन कुण्ड बना था। जिसमें अग्नि प्रज्जवलित थी। कुण्ड के चारों तरफ बैठे हुए भयानक शक्ल के कापालिकों के होंठ इस प्रकार हिल रहे थे, जैसे वे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। —तिब्बत का वह रहस्यमय मठ पालकी का रेशमी पर्दा धीरे से हटा। उसमें से एक युवती बाहर निकली। उसकी उम्र अठारह वर्ष से अधिक नहीं थी। अङ्क्षनद्य सुन्दरी थी वह—सुगठित देह चम्पई रंग, पुष्ट उन्नत वक्ष, नितम्बों तक लहराती काली घनी केशराशि, मोर जैसी आँखें, अनार के फूल जैसे कोमल लाल होंठ। —तिब्बत का वह रहस्यमय मठ
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Vishwavidyalaya Prakashan, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Tulasi Ki Kavyabhasha
भक्तिकाल के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान सर्वोपरि है। उनकी पंक्तियाँ शिक्षित-अशिक्षित सबकी जुबान से सुनने को मिलती हैं। उनका ‘मानसÓ परम् परावादी लोगों को जितना प्रिय है, उतना ही आधुनिक पाठकों को भी। वह जितना प्रिय धर्म के अनुयाइयों को है उससे कम प्रिय धर्म का निषेध करने वालों को नहीं। इसका एक ही मुख्य कारण है कि वह हर तरह जन-जीवन से जुड़ा है। तुलसी का काव्य प्रेम, संघर्ष, आत्मसम्मान एवं निष्कम्प आत्मविश्वास का काव्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में यदि कहें तो—”उनकी वाणी के प्रभाव से आज भी हिन्दू भक्त, अवसर के अनुसार सौन्दर्य पर मुग्ध होता है, सम्मार्ग पर पैर रखता है, विपत्ति में धैर्य धारण करता है, कठिन कर्म में उत्साहित होता है, दया से आद्र्र होता है, बुराई पर ग्लानि करता है, शिष्टता का अवलम्बन करता है और मानव जीवन के महत्त्व का अनुभव कराता है।
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