Rajpal and Sons
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Buddham Sharnam Gachhami
-15%Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBuddham Sharnam Gachhami
बुद्धम् शरणम् गच्छामि गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित उपन्यास है। गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। इनका जन्म कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में) के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और वे बचपन से ही दयालु थे। 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपने नवजात शिशु राहुल, धर्मपत्नी यशोधरा और राजपाठ का मोह त्यागकर सत्य ज्ञान की खोज में वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को भेजा। जिन्होंने भारत से निकालकर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में बौद्ध धर्म को फैलाया और जहाँ बौद्ध धर्म आज भी बहुसंख्यक धर्म है।
राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान ‘मीरा पुरस्कार’ और ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित राजेन्द्र मोहन भटनागर अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। युगपुरुष अंबेडकर, विवेकानन्द, सरदार, दलित संत, गौरांग, कुली बैरिस्टर और शहादत उनकी कुछ लोकप्रिय रचनाएँ हैं।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Chanakya Aur Chandragupt
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास और राजनीति का वर्णन अधूरा है। भारत में तो चाणक्य नीति को ही वास्तविक राजनीति माना जाता है और मगध नरेश के महामंत्री कौटिल्य की कूटनीति जगप्रसिद्ध है। चाणक्य ने मगध के राजदरबार में हुए अपमान के कारण नंदवंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की, और षड्यंत्र रच कर मगध नरेश धनानन्द एवं उसके आठ पुत्रों की हत्या कराने के पश्चात चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान करा दिया। हरिनारायण आप्टे ने अपने इस उपन्यास में इतिहास के इस काल का दर्शन कराते हुए चाणक्य और चन्द्रगुप्त के बारे में कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं जिनसे इस पुस्तक की रोचकता बढ़ी है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Chaturang
किसी लोकप्रिय लेखक के एक से अधिक चुने हुए उपन्यास एकसाथ उपलब्ध होना महत्त्वपूर्ग घटना है। प्रस्तुत पुस्तक में बिमल मित्र के प्याज कल परसों’, ‘वे दोनों ओर वहां, “गवाह नंबर तीन’ तथा ‘काजल’ उपन्यास, जो सभीपाठको के मन में अपना विशेष स्थान बना चुके है उपलब्ध हैं। ये चारों विभिन्न वातावरण में चार विभिन्न प्रकार की कथाएं कहते हैं।”आज कल परसों’ मानव जीवन की नियति को, जो कई बार बहुत नाटकीय रूप धारण कर होती हैं, रेखांकित करती है। ‘वे दोनों और वहां दो नारियों और एक पुरूष की कथा है जिससे प्यार सबल है अथवा प्रतिशोध … यह निर्णय करना कठिन हो जाता है। ‘गवाह नंबर तीन’ मनुष्य के वास्तविक चरित्र के सम्बन्ध में कई विलक्षण सच्चाईयां सामने रखता है। ‘काजल’ एक विशिष्ट नारों के त्याग की मर्मस्पर्शी कहानी है … दुनिया जिसे कुत्नटा समझती रही, वह वास्तव में अपनी सहेली के भविष्य को सुधारने में लगी देवी है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Chokher Bali
रवीन्द्रनाथ टैगोर का उपन्यास चोखेर बाली हिन्दी में ‘आँख की किरकिरी’ के नाम से प्रचलित है। प्रेम, वासना, दोस्ती और दाम्पत्य-जीवन की भावनाओं के भंवर में डूबते-उतरते चोखेर बाली के पात्रों-विनोदिनी, आशालता, महेन्द्र और बिहारी-की यह मार्मिक कहानी है। 1902 में लिखा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह उपन्यास मानवीय भावनाओं और उस समय के बंगाल के समाज का जीता-जागता चित्रण प्रस्तुत करता है और इसलिए उनका सबसे उत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। जिस पर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Dark Room
मेरा कुछ नहीं है इस दुनिया में। औरत के पास उसके बदन के अलावा अपना और क्या है? इसके अलावा सब कुछ उसके बाप का है, पति का है, बेटे का है। बच्चे तुम्हारे हैं, क्योंकि तुमने मिडवाइफ और नर्स को पैसा दिया है। तुम इनके कपड़ों और पढ़ाई का खर्चा देते हो और यह सब भी लो…’ यह कहकर उसने अपनी हीरे की अँगूठी, नथ, नेकलेस, सोने की चूड़ियाँ, सब ज़ेवर उतारे और उसके सामने फेंक दिये। इस उपन्यास में पति-पत्नी के बनते-बिगड़ते सम्बन्धों का बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत आर.के. नारायण की अन्य लोकप्रिय पुस्तकें हैं-‘मालगुड़ी की कहानियाँ’, ‘स्वामी और उसके दोस्त’, ‘गाइड’, और इंग्लिश टीचर’।
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Dashdwar Se Sopan Tak
प्रख्यात हिन्दी कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ की आत्मकथा का पहला खंड, ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’, जब 1969 में प्रकाशित हुआ तब हिन्दी साहित्य में मानो हलचल-सी मच गई। यह हलचल 1935 में प्रकाशित ‘‘मधुशाला’’ से किसी भी प्रकार कम नहीं थी। अनेक समकालीन लेखकों ने इसे हिन्दी के इतिहास की ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में इतनी बेबाक़ी से सब कुछ कह देने का साहस किसी ने दिखाया। इसके बाद आत्मकथा के आगामी खंडों की बेताबी से प्रतीक्षा की जाने लगी और उन सभी का ज़ोरदार स्वागत होता रहा। प्रथम खंड ‘‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’’ के बाद ‘‘नीड़ का निर्माण फिर’’, ‘‘बसेरे से दूर’’ और ‘‘‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक’’ लगभग पंद्रह वर्षों में इसके चार खंड प्रकाशित हुए। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Deepgeet
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर में हुई। 22 वर्ष की उम्र में महादेवी जी बौद्ध-दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहती थीं लेकिन महात्मा गांधी से संपर्क होने के बाद अपना निर्णय बदलकर वह समाज सेवा में लग गईं। नारी-शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और प्रधानाचार्य के पद की बागडोर संभाली। महादेवी जी की पहचान एक उच्च कोटि की हिन्दी कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षा-शास्त्री और महिला ‘एक्टिविस्ट’ की थी। उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी फैलोशिप, 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1988 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। महीयसी महादेवी की संपूर्ण काव्य-यात्रा न सिर्फ आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास बनने की साक्षी है, भारतीय मनीषा की महिमा का भी वह जीवन्त प्रतीक है। उनकी कविताएं हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। छायावाद की इस कवयित्री की हिन्दी साहित्य में अपनी एक अनूठी पहचान है। ‘दीप’ महादेवी जी का प्रिय प्रतीक था। अंधेरे में आलोक को नए-नए अर्थ देतीं दीपगीत की कविताएं मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Dekh Kabira Roya
‘‘अब कभी नहीं पैदा होगा इस धरती पर ऐसा आदमी। ऐसा निर्भीक, ऐसा समतावादी, ऐसा मानवता-प्रेमी, ऐसा राम-भक्त और सबसे ऊपर ऐसा आशु-कवि जिसके मुख से दोहे और साखियां, रमैनी और उलटबांसियां झरने से निकलते जल की तरह झरती थीं-निर्बाध, निद्वन्द्व, अनायास, अप्रयास।’’
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Devangana | देवांगना
वैशाली की नगरवधू, वयं रक्षाम: और सोमनाथ जैसे सुप्रसिद्ध उपन्यासों के लेखक आचार्य चतुरसेन के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि बारहवीं ईस्वी सदी का बिहार है जब बौद्ध धर्म कुरीतियों के कारण पतन की ओर तेज़ी से बढ़ रहा था। कहानी है बौद्ध भिक्षु दिवोदास की, जो धर्म के नाम पर होने वाले दुराचारों को देखकर विद्रोह कर डालता है। जिसके लिए उसे कारागार और पागलखाने में डाल दिया जाता है। वहां पर उसे एक देवदासी और एक भूतपूर्व सेवक सहारा देते हैं और उनकी सहायता से दिवोदास धर्म के नाम पर किए जाने वाले अत्याचारों का भंडाफोड़ करता है। आचार्य चतुरसेन ने किस्सागोई के अपने खास अंदाज़ में, इस कथानक के जरिये धर्म और धर्म के ढोंग को बहुत ही भावनात्मक और रोचक ढंग से चित्रित किया है और दिखाया है कि भारत से बौद्ध धर्म का लोप किन कारणों से हुआ। पठनीयता इतनी है कि शुरू से अंत तक पाठक को बाँधे रखती है।
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Rajpal and Sons, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Devki Ka Beta | देवकी का बेटा
Rajpal and Sons, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताDevki Ka Beta | देवकी का बेटा
श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास-ऐतिहासिक अध्ययन और यथार्थ सम्मत दृष्टि से महान पुरुषार्थी, योगेश्वर श्रीकृष्ण का सामान्य मनुष्य के रूप में चित्रण-यशस्वी उपन्यासकार रांगेय राघव की कलम से।
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Rajpal and Sons, ऐतिहासिक उपन्यास
Dharmaputra | धर्मपुत्र
धर्मपुत्र मनुष्य की अस्मिता के बारे में मूल प्रश्न उठाता है-क्या किसी इंसान का अस्तित्व इस बात पर निर्भर है कि वह किस परिवार में जन्मा या उसे किस प्रकार की शिक्षा संस्कार दिए गए या फिर इंसान की अस्मिता धर्म, शिक्षा और संस्कारों से परे इंसानियत से जुड़े जीवन-मूल्यों से है। यह कहानी है हिन्दू और मुसलमान परिवार की जिनका आपस में प्रेम भरा संबंध है। मुस्लिम परिवार की जवान लड़की की नाजायज़ औलाद को हिन्दू परिवार अपना लेता है और हिन्दू संस्कारों से उसका पालन-पोषण करता है। जवान होते-होते यह लड़का कट्टर हिन्दू बन जाता है और उसकी धारणा है कि मुसलमानों को भारत छोड़ देना चाहिए। इसी दौरान उसे अपनी जन्म देने वाली मां की सच्चाई का पता चलता है। मां और बेटे के आपसी संबंध होने के बावजूद वे नदी के दो अलग-अलग किनारों की तरह खड़े हैं और बीच में घृणा और अविश्वास की सुलगती नदी बह रही है। मशहूर फ़िल्म-निर्माता यश चोपड़ा ने 1961 में इस उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म बनाई थी जो बहुत ही लोकप्रिय हुई थी।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Dharti Ab Bhi Ghoom Rahi Hai
‘पद्यमभूषण’ से सम्मानित लेखक विष्णु प्रभाकर का यह कहानी-संकलन हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ है। इसमें लेखक ने जिन चुनिंदा सोलह कहानियों को लिया है उन की दिलचस्प बात यह है कि अपनी हर कहानी से पहले उन्होंने उस घटना का भी उल्लेख किया है जिसने उन्हें कहानी लिखने की प्रेरणा दी।
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Rajpal and Sons, अन्य कथा साहित्य
Dhyaan
महान शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की वार्ताओं तथा लेखन से संकलित संक्षिप्त उद्धरणों का यह क्लासिक संग्रह ध्यान के संदर्भ में उनकी शिक्षा को सार प्रस्तुत करता है-अवधान की, होश की वह अवस्था जो विचार से परे है, जो समस्त द्वंद्व, भय व दुख से पूर्णतः मुक्ति लाती है जिनसे मनुष्य-चेतना की अंतर्वस्तु निर्मित है। इस परिवर्द्धित संस्करण में मूल संकलन की अपेक्षा कृष्णमूर्ति के और अधिक वचन संगृहीत हैं, जिनमें कुछ अब तक अप्रकाशित सामग्री भी सम्मिलित है।
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Rajpal and Sons, कहानियां
Dilli Ab Door Nahin
धूल और सुस्ती में लिपटा पीपलनगर उत्तर भारत का एक छोटा-सा शहर है जहाँ ज़िंदगी बड़ी धीमी गति से चलती है और एक दिन से दूसरे दिन में कोई फर्क नहीं लगता। न कोई बड़ी घटना घटती और न ही बड़ी कोई खबर पैदा होती है। छोटे-से पीपल नगर के वासियों के सपने भी छोटे हैं जिनकी उड़ान दिल्ली पहुँच कर रुक जाती है। नाई दीपचंद का सपना है दिल्ली जाकर अपनी दुकान खोले और प्रधानमंत्री के बाल काटे। साइकिल-रिक्शा की जगह दिल्ली में स्कूटर-रिक्शा चलाना पीतांबर का सपना है और अज़ीज चाँदनी चौक में अपनी कबाड़ी की दुकान खोलने का सपना देखता है अपने को लेखक समझने वाला अरुण जासूसी उपन्यास लिखने के सपने देखता है और वेश्या कमला से भी प्यार करता है। इनमें से कौन अपने सपने पूरे कर पाते हैं और कौन पीपल नगर में ही रह जाते हैं-पढ़िए इस उपन्यास में। सरल भाषा, चुस्त कहानी और दिल को छू लेने वाले किस्सों से भरपूर रस्किन बान्ड का यह उपन्यास पाठकों को बहुत देर तक याद रहेगा। ‘‘वर्तमान भारत के एक बेहतरीन कहानीकार’’-ट्रिब्यून ‘‘एक लाजवाब किताब’’-आउट्लुक
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Rajpal and Sons, कहानियां
Do Chattanein
देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, बच्चनजी को उनके कविता-संग्रह ‘दो चट्टानें’ पर मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना अपनी विशिष्टता लिये हुए है। यह भी कहा जा सकता है कि बच्चनजी को सम्मानित करने से साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है। इस सम्मान से वर्षों पहले से ही बच्चनजी हिन्दी के सुधी पाठकों के हृदय पर राज कर रहे थे-अपनी कविताओं के द्वारा।
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Rajpal and Sons, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Draupadi
द्रौपदी महाभारत ही नहीं, भारतीय जीवन तथा संस्कृति का एक अत्यन्त विलक्षण और महत्त्वपूर्ण चरित्र है-परन्तु साहित्य ने अब तक उसे प्रायः छुआ नहीं था। उपन्यास के रूप में इस रचना का एक विशिष्ट पक्ष यह भी है कि इसे एक महिला ने उठाया और वाणी दी है, जिस कारण वे इसके साथ न्याय करने में पूर्ण सफल हुई हैं। डा. प्रतिभा राय उड़िया की अग्रणी लेखिका हैं जिनके अनेक उपन्यास प्रकाशित होकर लोकप्रिय हो चुके हैं। उन पर अनेक पुरस्कार मिले हैं, फिल्में बनी हैं तथा कई कृतियां हिन्दी में भी सामने आ चुकी हैं। कृष्ण समर्पित तथा पांच पांडवों की ब्याही द्रौपदी का जीवन अनेक दिशाओं में विभक्त है, फिर भी उसका व्यक्तित्व बँटता नहीं, टूटता नहीं, वह एक ऐसी इकाई के रूप में निरन्तर जीती है जो तत्कालीन घटनाचक्र को अनेक विशिष्ट आयाम देने में समर्थ है। नारी-मन की वास्तविक पीड़ा, सुख-दुःख और व्यक्तिगत अन्तर्संबंधों की जटिलता को गहराई से पकड़ पाना, इस उपन्यास की विशेषता है।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, इतिहास
Ek Desh Barah Duniya
‘‘जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गाँवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है।’’
-हर्ष मंदर, सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक‘‘यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है।’’
-आनंद पटवर्धन, डाॅक्येमेंट्री फिल्मकार‘‘इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की ज़िन्दगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिन्दुस्तान को पेश करते हैं, हिन्दुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है।’’
-रामशरण जोशी, वरिष्ठ पत्रकारपिछले दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय शिरीष खरे वंचित और पीड़ित समुदायों के पक्ष में लिखते रहे हैं। राजस्थान पत्रिका और तहलका में कार्य करते हुए इनकी करीब एक हज़ार रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं। भारतीय गाँवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ और वर्ष 2009, 2013 और 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर स्टोरीज़ के लिए ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित शिरीष खरे की अभी तक दो पुस्तकें तहक़ीकात और उम्मीद की पाठशाला प्रकाशित हो चुकी हैं।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
English Teacher
काल्पनिक मालगुडी पर आधारित यह उपन्यास कहीं न कहीं लेखक आर.के. नारायण की अपनी ज़िन्दगी से प्रेरित है। कृष्ण एक कॉलेज में अध्यापक है और उसकी पत्नी व बेटी थोड़ी दूरी पर उसके माता-पिता के साथ रहते हैं। फिर अवसर मिलता है सारे परिवार को साथ रहने का, लेकिन विवाहित जीवन का आनन्द कृष्ण कुछ ही दिन तक भोग पाता है और…विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक आर.के. नारायण की यह विशेषता रही है कि वह ज़िन्दगी की छोटी से छोटी बात को बहुत जीवंत और मनोरंजक बना देते हैं। ‘गाइड’ और ‘मालगुडी की कहानियाँ’ की तरह उस उपन्यास में भी जीवन के हर रस का आनन्द पाठक को मिलता है।
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Hindi Books, Rajpal and Sons, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Gandhi Ke Brahmacharya Prayog | गाँधी के ब्रह्मचार्य प्रयोग
-10%Hindi Books, Rajpal and Sons, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Gandhi Ke Brahmacharya Prayog | गाँधी के ब्रह्मचार्य प्रयोग
‘‘गाँधी काम-भावना की दुर्दम्य शक्ति से जीवनपर्यंत आक्रान्त रहे। उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत, अर्थात पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध का त्याग सन् 1906 में ही ले लिया था। पर वे स्त्री-पुरुष सम्बन्ध के आकर्षण से कभी मुक्त नहीं हो सके। जिसे गाँधीजी ने जीवन के उत्तरार्ध में ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ कहा, उसके गम्भीर अध्ययन के बाद वह मोह और आकर्षण ही लगता है। स्वयं गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा लिखने में तथा उस के बारह वर्ष बाद भी स्वीकार किया है कि वे ‘इन्द्रिय नियन्त्रण’ रखने में कठिनाई महसूस करते हैं। अर्थात् 57 और 69 वर्ष की आयु में भी उनका ब्रह्मचर्य एक सचेत प्रयत्न था, सहजावस्था नहीं। गाँधीजी ने यह छिपाया नहीं, यह उनकी महानता थी। किन्तु उन प्रयोगों में कोई महानता नहीं थी।’’ गाँधीजी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग क्या थे? ऐसे प्रयोगों के पीछे गाँधीजी की क्या धारणा थी? कारण क्या थे, ऐसे प्रयोग करने के? और इन प्रयोगों की गाँधीजी के जीवन में क्या अहमियत थी? ऐसे ही कुछ असहज सवालों पर यह पुस्तक प्रकाश डालती है। गंभीर अध्ययन के बाद लिखी यह पुस्तक प्रामाणिक उद्धरणों पर आधारित है और लेखक का कहना है कि ‘‘यह एक प्रयास है ताकि हम प्रत्येक विषय पर पूर्वाग्रहरहित होकर जानकारी प्राप्त करने तथा सोचने-विचारने के प्रति सचेत हों।’’
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