Rajasthani Granthagar
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास
Kshatriya Jati ki Suchi
क्षत्रिय जाति की सूची : ‘क्षत्रिय जाति की सूची’ में समस्त क्षत्रियों की एकता और संगठन के लिए एक प्रशस्त एवं सर्वतो-भद्र सभागार के अनुरूप है, जिसका सृजन आधुनिक युग के प्रभात में लगभग एक शताब्दी पूर्व हुआ था। इस पुस्तक में भारत के प्राचीन इतिहास, पुराणों में वर्णित सभी क्षत्रिय-कुलों के वर्णन के अतिरिक्त मध्य-युग में राजस्थान के क्षत्रिय-कुलों की शाखाओं का भी वर्णन हुआ है। आधुनिक युग में इस प्रकार की यह प्रथम पुस्तक है, जिससे समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप क्षत्रियों को संगठित होने में बहुत महत्वपूर्ण सहायता मिलेगी। इस दृष्टि से इस पुस्तक के रचयिता ठाकुर बहादुर सिंह, बीदासर, का यह संग्रह उनकी दूरदर्शिता एवं जाति-प्रेम का परिचय देता है। भारत के प्राचीन क्षत्रियों को आधुनिक क्षत्रिय समाज से जोड़ने के लिए यह संग्रह एक सुदृढ एवं time tested सेतुबन्ध का कार्य भी करता है और इस प्रकार हमें भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध एवं महावीर के धर्म-सम्मत जीवन-व्यवहार और सम्राट अशोक, विक्रमादित्य, भोज और हर्षवर्द्धन के प्रजा-हितैषी कार्यों से प्रोत्साहित होने की प्रेरणा देता है। आशा है क्षत्रिय-समाज अपने संगठित बल से ऋषियों द्वारा स्थापित अपने कर्तव्यों के निर्वाह-स्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनैतिक और प्रशासनिक कुशलता और जन-कल्याण की भावनाओं के प्रति क्रियाशील एवं सजग रहकर अन्य समाजों से मैत्री तथा सुहृदयता के सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए अपने बहुमुखी कर्तव्यों के प्रति तन-मन-धन से ससंकल्प उन्मुख होगा।
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Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Kshatriya Samaj ki Kuldeviyan
Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, संतों का जीवन चरित व वाणियांKshatriya Samaj ki Kuldeviyan
क्षत्रिय समाज की कुलदेवियाँ : ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है।
नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है। प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहास
Kul Devi Shri Tanot (Aawad) Mata Ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, इतिहासKul Devi Shri Tanot (Aawad) Mata Ka Itihas
कुल देवी श्री तनोट (आवड़) माता का इतिहास
राजपूत युग के प्रारम्भ के साथ ही वि.सं. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन मामड़ियाजी चारण के घर भगवती श्रीतनोट (आवड़) माता का जन्म हुआ, also जो इतिहास में बावन नामों से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने जन्म से लेकर ज्योतिर्लीन होने तक अनेक परचे दिये, जिसके कारण उनकी प्रसिद्ध सम्पूर्ण भारत वर्ष में हुई। श्रीआवड़ादि सातों बहिनों व भाई मेहरख जी (खेतरपाल जी) के परचों व परवाड़ों पर लेखक ने बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है। भगवती श्रीतनोट (आवड़) माता का विराट व्यक्तिव था, जिसके कारण वे राजपूतों, चारणों एवं हिन्दुओं के ज्यादातर जातियों की कुल देवी या आराध्य देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। उनके द्वारा हाकरा दरियाव का शोषण करना, सूरज को अपनी लोवड़ी की ओट में सोलह प्रहर तक रोकना, बावन देत्यों (हूणों) का संहार करना, भाटियों के राज्य को स्थायित्व देने में मदद करना आदि उनके प्रमुख परचे है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kumbhalgarh Ajey Durg
कुम्भलगढ़ अजेय दुर्ग : महाराणा कुम्भा जो एक वीर, साहसी, योग्य, विद्वान, संगीतकार, नाटककार व स्थापत्य कला का ज्ञाता था, उसने मेवाड़ राज्य की सुरक्षा हेतु मेवाड़ के चारों तरफ दुर्गों का निर्माण व पुननिर्माण करवाया। कर्नल टाॅड अपनी पुस्तक ‘राजस्थान के इतिहास’ भाग 1 में लिखता है कि ‘विदेशी लोगों के आक्रमण से मेवाड़ भूमि की रक्षा करने के लिए 84 दुर्ग स्थित हैं, उनमें से 32 दुर्गों का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया। उन 32 दुर्गों में कुम्भलगढ़ का नाम दुर्गविशेष प्रसिद्ध है। यह दुर्ग ऐसे स्थान पर बनाया गया है, जहाँ चारों और ऊँची दीवारें विद्यमान है, इसी कारण यह दुर्ग चितौड़ के अलावा श्रेष्ठ कहा जा सकता है।’ इससे स्पष्ट है कि महारणा कुम्भा ने अपने साम्राज्य की दूसरी राजधानी सुरक्षा की दृष्टि से कुम्भलगढ़ को बनाया। महाराणा कुम्भा के काल में मालवा व गुजरात के मुस्लिम शासकों ने कई आक्रमण कर कुम्भलगढ़ विजय का स्वप्न साकार करने का प्रयत्न किया, लेकिन प्रत्येक बार उन्हें असफलता ही प्राप्त हुई।
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Life Law
Accordingly, In this Book I tried to mentioned Life Law. It means life and law or life law begins in Society while living, Life a Journey, an alphabet, which comes between B and D. B means Birth and D means Die. In between C is left. C means challenges in life. Life is a trip. The only Problem is that it does not come with a map. We have to search to reach our destination. Life is a miracle and every day we live is only a gift But it is a human Nature that we need everything permanent in a temporary life. Me, Dr. Aruna Tak believe in Lord and on Karma. But my education is in Law Karma is Natural Lord made and Law is Man Made.
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Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lok Sahitya Vigyan
लोक साहित्य विज्ञान : उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जब लोक साहित्य अध्ययन-अध्यापन का विषय बना तब हिन्दी में उच्च स्तरीय लोक साहित्य-सम्बन्धी पुस्तकों की बेहद कमी थी। ‘लोक साहित्य विज्ञान’ ने उस कमी को काफी हद तक पूरा किया। वस्तुतः लोक साहित्य को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने वाला यह हिन्दी का प्रथम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में न केवल लोक साहित्य की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया गया है, अपितु वैज्ञानिक सिद्धान्त-निरूपण करके पुष्ट आधार पर लोक साहित्य को विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है।
“इस ग्रन्थ में कई विचारोत्तेजक तथा मानवीय स्थापनाएँ हैं। एक है ‘लोकमानस’ का सिद्धान्त। लोक मनोविज्ञान पर पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत काम किया है, पर इस ग्रन्थ में लोकमानस की स्थापना का स्वरूप कुछ भिन्न है।” इसी प्रकार पुस्तक में लोक साहित्य की संकलन-संग्रह सम्बन्धी ऐतिहासिक-भौगोलिक प्रणाली का उपयोग तो किया गया है, पर उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप कई प्रकार से संशोधित करके काम में लिया गया है। लोक साहित्य का ‘क्षेत्रीय अनुसंधान’ से विशेष सम्बन्ध है। क्षेत्रीय अनुसंधानदृसम्बन्धी वैज्ञानिक प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए इसे पूरे एक अध्याय में विस्तार के साथ स्पष्ट किया गया है। स्वयं डॉ. सत्येन्द्र की सम्मति में यह इस पुस्तक का ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अध्याय’ है। अपने प्रथम प्रकाशन के बाद से ही लोक साहित्य के अध्येताओंदृशोधार्थियों आदि के लिए यह एक अनिवार्य ग्रन्थ के रूप में मान्य रहा है। पिछले काफी समय से यह अनुपलब्ध था। ग्रन्थ की उपयोगिता तथा महत्त्व को देखते हुए ही इसका पुनप्रकाशन किया गया है।SKU: n/a -
Hindi Books, Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lok Sahitya Vigyan (PB)
-10%Hindi Books, Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLok Sahitya Vigyan (PB)
लोक साहित्य विज्ञान
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जब लोक साहित्य अध्ययन-अध्यापन का विषय बना तब हिन्दी में उच्च स्तरीय लोक साहित्य-सम्बन्धी पुस्तकों की बेहद कमी थी। ‘लोक साहित्य विज्ञान’ ने उस कमी को काफी हद तक पूरा किया। obviously वस्तुतः लोक साहित्य को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने वाला यह हिन्दी का प्रथम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में न केवल लोक साहित्य की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया गया है, अपितु वैज्ञानिक सिद्धान्त-निरूपण करके पुष्ट आधार पर लोक साहित्य को विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। Lok Sahitya Vigyan
“इस ग्रन्थ में कई विचारोत्तेजक तथा मानवीय स्थापनाएँ हैं। एक है ‘लोकमानस’ का सिद्धान्त। लोक मनोविज्ञान पर पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत काम किया है, पर इस ग्रन्थ में लोकमानस की स्थापना का स्वरूप कुछ भिन्न है।” thus इसी प्रकार पुस्तक में लोक साहित्य की संकलन-संग्रह सम्बन्धी ऐतिहासिक-भौगोलिक प्रणाली का उपयोग तो किया गया है, पर उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप कई प्रकार से संशोधित करके काम में लिया गया है।
also डॉ॰ सत्येन्द्र के अनुसार- “लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो आभिजात्य संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है।”
लोक साहित्य का ‘क्षेत्रीय अनुसंधान’ से विशेष सम्बन्ध है। क्षेत्रीय अनुसंधानदृसम्बन्धी वैज्ञानिक प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए इसे पूरे एक अध्याय में विस्तार के साथ स्पष्ट किया गया है। surely स्वयं डॉ. सत्येन्द्र की सम्मति में यह इस पुस्तक का ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अध्याय’ है। अपने प्रथम प्रकाशन के बाद से ही लोक साहित्य के अध्येताओंदृशोधार्थियों आदि के लिए यह एक अनिवार्य ग्रन्थ के रूप में मान्य रहा है। पिछले काफी समय से यह अनुपलब्ध था। ग्रन्थ की उपयोगिता तथा महत्त्व को देखते हुए ही इसका पुनः प्रकाशन किया गया है। Lok Sahitya Vigyan (Science of Folk Literature)
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Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Lokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
Literature & Fiction, Rajasthani Granthagar, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिLokavlokan (Lok Jeevan Evam Lok Sahitya Sambandhi Lekh)
लोकावलोकन (लोक जीवन एवं लोक साहित्य सम्बन्धी लेख) : सुपर बाजार में सब्जी खरीदते हुए हम माली के बारे में नहीं सोचते, ऐसे ही कला को जब हम मात्र मंच पर से विशिष्टजनों के लिए प्रक्षेपित या सेवार्पित की जाती हुई जिंस बना देते हैं तब हम कलाकार और उस कला के व्यापक और निर्णायक आर्थिक-सामाजिक मानवीय पहलुओं को नजरअन्दाज कर देते हैं। यदि परम्परा के मूल और मूल्यवान अंशों की रक्षा होनी है, तो सांस्कृतिक संध्याओं के मौसमी ढोल-ढमाके के परे कुछ ज्यादा ठोस, ज्यादा सुचिंतित और ज्यादा सतत प्रयासों की दरकार रहेगी। इन विधाओं, उनकी विशेषताओं और उनसे जुड़े वाद्ययंत्रों को बचाना है, तो उन्हें नये सन्दर्भों में नई सार्थकता देनी होगी। तीन संकट हैं :- संकुचन-विलोपन, अवमिश्रण-पनीलापन, विरूपण-वर्णसंकरण-शायद तीन ही संभव निदान हैं। कुछ चीजों को लगभग ज्यों-का-त्यों बनाये रखने का प्रयास, उनके ही ठीए पर, गुरु शिष्य परम्परा आदि के माध्यम से ‘सम्प्रेषण’ (ट्रांसमिशन)। शेष का अनुकूलन, रूपान्तरण, प्रतिरोपण-एडैप्टेशन, ट्रांसफौर्मेशन, ट्रांसप्लान्टेशन। इन दोनों के लिए असाध्य, शेष मरणोन्मुख की यादगार, पहचान संजोना, शव का परिरक्षण-ममिफिकेशन जैसा, म्यूजियम में रखने जैसा। कुछ लोग पूरी सदेच्छा से, लोकवार्ता को रखने के लिए लोक संस्कृति की संबंधित सीप को बनाये रखने की बात करते हैं। यह अव्यावहारिक दुराशा है। कुछ और उतनी ही सदेच्छा से कहते हैं कि लोक-कला सीखने-सिखाने की चीज नहीं है, रूपान्तरण, अनुकूलन से उसका मूल स्वरूप नष्ट होता है। मत करिये, वह जहां है वहीं अपना मूल स्वरूप लिए-दिए नष्ट हो जाने वाली है। फिर, विरूपण तो बिना एडैप्टेशन, बिना हमारे चाहे भी तो हो ही रहा है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास
Madhyakalin Bharat ka Itihas
मध्यकालीन भारत का इतिहास (1200 ई. से 1760 ई. तक) : भारत का मध्यकाल विदेशी आक्रांताओं द्वारा किये गये रक्तपात, हिंसा और लूटमार से भरा हुआ है किंतु यही वह समय है जिसमें प्राचीन शासन व्यवस्थायें समाप्त होकर नवीन शासन व्यवस्थाएं आरम्भ हो रही थीं। इन बड़े परिवर्तनों ने भारत के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृति जनजीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इतिहास के क्षेत्र में नित्य नई शोध सामने आ रही हैं। अब इतिहास कुछ घिसी पिटी सूचनाओं का संग्रह नहीं रह गया है, प्राप्त तथ्यों को तार्किकता के साथ अपनाया जा रहा है तथा उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों की कसौटी पर भी कसा जा रहा है। विगत दशकों में सामने आई नई जानकारियों को इस पुस्तक में समाविष्ट करके इस पुस्तक को रोचक, पठनीय एवं सग्रंहणीय बनाया गया है। प्रस्तुत पुस्तक को भारत के विश्वविद्यालयों में स्नातक उपाधि की परीक्षाओं के लिये स्वीकृत पाठ्यक्रम के अनुसार लिखा गया है तथा 1200 ईस्वी से लेकर 1760 ईस्वी तक का इतिहास दिया गया है। इस पुस्तक की भाषा को स्नातक उपाधि स्तर के विद्यार्थियों की मांग के अनुरुप सरल रखा गया है। छोटे-छोटे वाक्य लिखे गये हैं ताकि सूचनाओं को मस्तिष्क में अच्छी तरह संजोया जा सके। ऐतिहासिक तथ्यों को क्रमबद्ध लिखा गया है तथा असंगत एवं विरोधाभासी तथ्यों से बचने का प्रयास किया गया है। डाॅ. मोहनलाल गुप्ता ने इतिहास के विद्यार्थियों को पहले भी अच्छी पुस्तकें दी हैं, मुझे आशा है कि यह पुस्तक स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Ke Patra
महाभारत के पात्र
बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि ‘महाभारत ग्रंथ’ घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में ‘महाभारत’ अर्थात् लड़ाई होती है। ‘महाभारत’ का अर्थ ही ‘लड़ाई’ का ग्रन्थ घोषित कर दिया गया। also तब जिज्ञासा होना स्वाभाविक था कि क्या किसी ग्रंथ को पढ़ने से भी कोई व्यक्ति युद्ध में प्रवृत हो सकता है? तब ऐसे ग्रंथ को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस कसौटी पर देखना चाहिए कि क्या इससे हिंसक प्रवृत्ति होती है। Mahabharat Ke Patra
परन्तु जब सेवानिवृत्ति पश्चात् उक्त ग्रन्थ पढ़ा तो विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जिस ग्रंथ को श्री वेद व्यासजी ने लिखा और जिस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निसृत ‘ श्रीमद्भगवद्गीता’ का उपदेश है उसमें युद्ध करने या हिंसक प्रवृत्ति का तो उल्लेख ही नहीं है। all in all इस ग्रंथ में जो उपदेश है वह मानव मात्र के कल्याण के लिये है। युद्ध करने का उपदेश अपने धर्म के अनुसार जो कर्म निश्चित किया गया है, उसको करने के लिये है। तब फिर प्रश्न होता है कि महाभारत युद्ध” हुआ उसमें केवल दुर्योधन की मात्र राज्य लिप्सा ही एक मात्र कारण था या अन्य कारण भी थे? अगर मात्र राज्य लिप्सा ही कारण होता तो दुर्योधन को इतने अन्य राजाओं का सहयोग नहीं मिलता और इसी तरह पाण्डवों को भी श्री कृष्ण जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ, वीर तथा अन्यों का सहयोग नहीं मिलता।
Mahabharat Ke Patra (Characters of Mahabharata)
अतः यह युद्ध नैतिकता बनाम अनैतिकता, धर्म विरुद्ध अधर्म, सदाचार बनाम अनाचार में प्रवृत शक्तियों के मध्य था। और इसमें पाण्डवों की जय मानव स्वातन्त्रय के सत्य की जय है, धर्म की जय है, मानवता की जय है। महाभारत मात्र वीर गाथा नहीं है, युद्ध गाथा भी नहीं है यह मनुष्यत्व की कठिन यात्रा का काव्य है। और इस युद्ध में जो प्रमुख नायक थे, उनके चारित्रिक गुणों, अवगुणों के कारण यह युद्ध हुआ। और जब कोई घटना घटित होती है तो उसके प्रारम्भ होने की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार होती है। accordingly लेखक ने इसी दृष्टिकोण को रख कर विश्लेषण करने का प्रयास किया है।
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Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Mahabharat Mein Ashva Mimansa
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताMahabharat Mein Ashva Mimansa
महाभारत में अश्व मीमांसा : प्राचीन काल में अश्व मानव के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग रहा है। वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, उपनिषद, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, स्मृतियों, पुराणों, महाकाव्य आदि ग्रन्थों में अश्व सम्बन्धी सामग्री प्राप्त होती है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा शुक्रनीति में अश्वों के लक्षणों, जाति, वर्ण आदि की विशद व्याख्या की गई है। वराहमिहिर की बृहत्संहिता, अपराजितपृच्छा, कामन्दकनीति, नीतिवाक्यामृत आदि ग्रन्थों में प्रासंगिक रूप से अश्व-विवेचन है। इन ग्रन्थों के समान महाभारत में अश्वों से सम्बन्धित कोई अलग अध्याय नहीं है, परन्तु महाभारत के लगभग सभी पर्यों में अश्वविषयक विषयवस्तु की प्रचुरता है।
डॉ. संदीप जोशी द्वारा सम्पादित तथा जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा सन् 2008 में प्रकाशित अश्वशास्त्रम् में अश्वों के विविध पक्षों का विस्तृत विवेचन किया गया है। अश्वों के अष्टविध लक्षण कहे गये है, आवर्त, वर्ण (रंग) सत्व (बल), छाया, गन्ध, चाल, स्वर तथा शरीर महाभारत में अश्वों के अष्टविध लक्षणों का आलेखन हुआ है।
भारतीय संस्कृति में अश्व-पूजा का विशेष महत्व रहा है। अश्वों में देवों का निवास कहा गया हैं श्रीमद्भगवद्गीता में उच्चैःश्रवा अश्व की ईश्वर की विभूति में गणना की गई है।
महाभारत अनेक युद्धों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। चतुरंगिणी सेना में अश्वसेना का विशेष महत्व था। स्थारूढ़ योद्धाओं की रक्षापंक्ति के रूप में अश्वसेना ने अपनी विशेष भूमिका निभायी है। सोमेदेवसूरी के नीतिवाक्यामृत में कहा गया है कि अश्वसेना, सेना की चलती फिरती रक्षापंक्ति (प्राचीर) है – अश्वबल सैन्यस्य जगम : प्राकार :। अश्वशास्त्रम् यह प्रतिपादित करता है कि अश्वहीन सेना जड़ से कटे हुए वृक्ष के समान नष्ट हो जाती है – अविहीनं यान्त्यन्तं छिन्नमूला इव द्रुमाः।
सैन्य संगठन की इकाइयों के विषय में महाभारत विशिष्ट जानकारी प्रदान करता है। इन्द्रियों को अश्व की संज्ञा तथा शरीर-रथ रूपक अध्यात्म चिन्तन का निर्देश देता है।
“महाभारत में अश्व मीमांसा” पुस्तक में लेखिका ने अपने गहन अध्ययन का परिचय दिया है। अश्व शब्द की व्यापकता की चर्चा उल्लेखनीय है। आशा है अश्वविषयक चर्चा – विचारणा, लेखन आदि क्षेत्रों में यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी तथा शोध के नये आयाम प्रस्तुत करेगी।
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Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
Rajasthani Granthagar, Religious & Spiritual Literature, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMaharaja Agrasen evam Agrawal Samaj ka Sampurn Itihas
महाराजा अग्रसेन एवं अग्रवाल समाज का सम्पूर्ण इतिहास : इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने महाराजा श्री अग्रसेनजी के जीवन सम्बंधित प्रामाणिक महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। पुस्तक में महाराजा अग्रसेनजी की शासन प्रणाली, उनके सिद्धांत, अग्रोहा का विवरण, वर्तमान अग्रोहा धाम, अग्रवालों के गोत्र, उपनाम, वैश्य वर्ण और जातियां, अग्रोहा से सम्बंधित लोक कथाएं, महालक्ष्मी ब्रतकथा, उरुचरितम् तथा भाटों के गीत, अग्रवाल समाज के संस्कार एवं रीति-रिवाज, देश के विभिन क्षेत्रों में नाम कमाने वाले अग्रवाल गौरव, श्री पीठ का महत्व एवं कुलदेवी महालक्ष्मी की स्तुति, श्री अग्रचालीसा, अग्रस्तुति, उनके भजन, आरती इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित करके गागर में सागर भरने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज तक अग्रसेन, अग्रोहा और अग्रवालों पर लिखी गई पुस्तकों का सार मिलाकर एक ऐसी पुस्तक लिखी है, जिसे पढ़कर अग्रवाल समाज की समस्त जानकारी प्राप्त होगी तथा प्रत्येक अग्रवाल भाई का सर गर्व से ऊँचा हो जायेगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharana Kumbha : Vyaktitva evam Krititva
महाराणा कुम्भा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व : महाराणा कुम्भा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उनके कृत्यों में ‘शास्त्र, संगीत और साहित्य’ का सुन्दर संगम सुस्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। विभिन्न प्रकार के विरुद्ध तथा परमगुरु, शैलगुरु तोडरमल्ल, दानगुरु, चापगुरु अभिनव – भरताचार्य, नंदिकेश्वरावतार, हिन्दू सूत्राण, न्वयभरत इत्यादि से विभूषित कुम्भा के विशाल व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण संकेत हैं। वह एक महान् विजेता, कुशल प्रशासक, उच्चकोटि के निर्माता, विशाल साहित्य का पल्लवितकार, वैदिक संस्कृति को संक्रमण काल से मुक्त कर, पुनर्जागरण स्थापित करने में प्रयासरत व्यक्तित्व था। इसीलिए कुम्भा के शासनकाल (1433 ई. से 1466 ई.) को मेवाड़ में स्वर्णयुग माना जाता है। वास्तव में कुम्भा को परमार नरेश भोज, मौर्यकालीन अशोक और समुद्रगुप्त का सामूहिक प्रतिरूप भी कहा गया है। भोज के समान संस्कृत साहित्य तथा देशज साहित्य को सृजनशीलता में तथा भवन निर्माण में भी अनुपम योगदान दिया। समुद्रगुप्त के समरूप विजय अभियानों का सूत्रपात करना तथा जनजीवन को सुखी एवं समृद्धशाली बनाने में अशोक के समकक्ष माना है। कुम्भा में एक राष्ट्रीय नायक होने के सारे गुणों के उपरान्त भी आश्चर्य है कि उनका राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन न होने का अभाव खटकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 10-12 जुलाई 2019 को उदयपुर में आहुत की थी। उसमें आये अधिकांश शोध पत्रों को ग्रन्थ के आकार में प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा और विश्वास है कि यह ग्रन्थ इस अभाव की पूर्ति की ओर अग्रसर होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Maharana Pratap : The Hero of Haldighati
“What follows is a feast of Rajasthani Dingal poetry in translation. There are few, perhaps none, as well equipped as Kesri Singh to create such translation. He is a master of Dingal and of English. His translation reflects not only his command of both languages but also his poetic imagination and fluency. It takes a poet to translate a poet.” – Prof. Lloyd L. Rudolph from the “Introduction”
I hope The Story of the Battle of Haldighati – which is as close to authentic history as can be – will be found interesting by the general reader; the essay discussing some of the Controversies Concerning the Battle, to be of some worth by serious scholars and researchers in the field of medieval Mewar history; and the Maharana and the Muse, delightful by lovers of property. – Author from the “Afterword”SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियां
Main Vidhyalay Bol Raha Hoon
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, कहानियांMain Vidhyalay Bol Raha Hoon
मैं विद्यालय बोल रहा हूँ :
प्रस्तुत लेखनी मेरे जीवन की उस यात्रा का वर्णन है, जिसका कर्ता भी मैं (विद्यालय) हूँ और कारक भी मैं (विद्यालय) ही हूँ। मैं, शिक्षक, विद्यार्थी, भवन एवं अभिभावक नामक चार महत्त्वपूर्ण स्तम्भों के सामंजस्य की कहानी भी हूँ तो वर्तमान दौर में लड़खड़ाते उसी सामंजस्य की दुहाई भी हूँ। इस यात्रा में मेरे सुंदर से उपवन का विश्लेषण भी है एवं बंजर होती भूमि का अन्वेषण भी है। मेरे विविध आयामों का प्रस्तुतिकरण भी है तो भीतर छिपी असीमित संभावनाओं का प्रकटीकरण भी है। बदलते वक्त में व्यापक हो रहे मेरे परिवेश का प्रकट स्वरूप भी है तो बदलाव की संकीर्णताओं से मेरे भीतर उपजे आवेश का भयावह रूप भी है। मुझमे छिपी संस्कारों की सुहास का प्रतिफल भी है तो मेरे भीतर पनप रही व्यसन जैसी कुरीतियों का दावानल भी है। अविद्या से मिलने वाले भौतिक संसाधनों के महत्व का गहन चिंतन भी है तो विद्या के अभाव में लुप्त हो रहे मानवीय मूल्यों का मानस मंथन भी है। मेरे अस्तित्व की खोज ही इस लेखन का मूल है जो मुझे और मेरे चारों स्तम्भों को मेरे अस्तित्व का बोध कराती है।SKU: n/a -
Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Marwad ke Thikanon ka Itihas
-10%Hindi Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिMarwad ke Thikanon ka Itihas
मारवाड़ के ठिकानों का इतिहास (ठिकाना रोहिट के विशेष संदर्भ में, 1706-1950 ई.) :
राजस्थान के गौरवमय इतिहास में राठौड़ वंश का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिनकी साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विभिन्न सौपानों में भूमिका बड़ी ही महत्त्वपूर्ण रही। इतिहास के आलोक में देखने पर ज्ञात होता है कि मण्डोर के राव रणमल के सुयोग्य आत्मज एवं जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के अनुज चांपा से राठौड़ों की चांपावत शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था।
मारवाड़ के इतिहास में चांपावत राठौड़ों की विशेष भूमिका रहने के फलस्वरूप यहाँ के उमरावों में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। जोधपुर की स्थापना के पीछे 200 वर्ष का संघर्षमय इतिहास रहा। राव रणमल के समय राठौड़ों के इतिहास ने एक नई करवट ली। मारवाड़ के राठौड़ों की बढ़ती हुई शक्ति और वर्चस्व के फलस्वरूप मेवाड़ के महाराणा कुंभा को चित्तौड़ की बागडोर संभालने में सफलता मिली। चांपाजी ने कापरड़ा में अपना ठिकाना स्थापित कर अपने वंशजों के उज्ज्वल भविष्य की नींव डाली। कापरड़ा गांव में आज भी उनकी छतरी विद्यमान है जो उनकी गौरवगाथाओं की याद दिलाती है।
चांपाजी के वंशजों का खूब वंश विस्तार हुआ, जिससे कई ठिकानों का निर्माण भी हुआ, जिनमें रोहिट ठिकाना भी प्रमुख रूप से है। रोहिट के चांपावत राठौड़ों ने जहाँ राज्य की ओर से लड़े जाने वाले युद्धों में रणकुशलता का परिचय दिया वहीं ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया।
मारवाड़ के उमरावों में चांपावत राठौड़ों का विशिष्ट स्थान रहा था। गोपालदास चांपावत और उसके 8 पुत्रों ने अलग-अलग युद्ध अभियानों में अपने प्राणों की आहुतियां दी थीं। शिलालेखों की खोज कार्यों में कापरड़ा, रणसी, हरसोलाव, रोहट, पाली और आऊवा की शोध यात्राएं और वहाँ से असंख्य शिलालेख जो काल के गरत में समा चुके थे उन्हें प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया।
डाॅ. भगवानसिंह जी शेखावत द्वारा रोहिट ठिकाने पर किया गया शोध कार्य ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ठिकाने की इकाई को न सिर्फ इसमें स्पष्ट किया गया है बल्कि मारवाड़ में यहाँ के उमरावों की भूमिका को समझने के साथ ही ठिकाने की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है, जिसमें सहायक सामग्री के रूप में रोहिट ठिकाने की बहियों का भरपूर उपयोग किया गया है। मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशा करता हूँ कि ऐसे शोध कार्य लगोलग प्रकाश में आने से न सिर्फ मारवाड़ बल्कि राजस्थान के इतिहास में उमरावों की भूमिका को समझने में महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।SKU: n/a -
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Marwar Ka Itihas
मारवाड़ का इतिहास
मारवाड़ अपनी प्राचीन समृद्ध परम्परा, अद्भूत शौर्य एवं अनूठे कलात्मक अवदानों के कारण विश्व के परिदृश्य में दैदीप्यमान है। Marwar Ka Itihas
राजस्थान की मध्यकालीन रियासतों में मारवाड़ का विशेष महत्व रहा हैं। पुस्तक में मारवाड़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, जोधपुर के राठौड़ नरेशों के वंशजों का विद्या प्रेम, दानशीलता, धर्म, कला-कौशल प्रेम का विवरण दिया गया है।
राव सीहा, राव चूण्डा, राव जोधा, राव मालदेव, राव चन्द्रसेन, मोटा राजा उदयसिंह, सवाई राजा सूरसिंह, महाराजा जसवंत सिंह, अजीत सिंह, अभय सिंह, विजय सिंह तथा भीमसिंह व राजा मानसिंह कालीन इतिहास के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का वर्णन किया हैं। इन शासकों के राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था, जागीरदारी व्यवस्था, राजस्व व्यवस्था व व्यापार वाणिज्य की विस्तृत विवेचना को प्रस्तुत करने के साथ ही मारवाड़ की पारम्परिक जल संरक्षण तकनीक व ओरण परम्परा का विश्लेषण किया गया हैं।
व्यापक परिपेक्ष्य में राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य के संरक्षण व संर्वधन की भी विवेचना की गई है। Marwar Ka Itihas
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